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Saturday, 23 December 2017

शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं के सुदृढ़ीकरण को मिले विशेष प्राथमिकता

नई सरकार से अपेक्षाएं
हिमाचल में हाल ही में सम्पन्न हुए प्रदेश विधानसभा चुनाव-2017 की मतदान प्रक्रिया के पूर्ण होते ही 13वीं विधानसभा का गठन कर लिया गया है। 13वीं विधानसभा चुनाव प्रक्रिया के दौरान न केवल प्रदेश की जनता ने बढ़चढ़ कर मतदान में भाग लेकर इस बार मतप्रतिशत्ता के पुराने रिकॉर्ड को ध्वस्त किया बल्कि जिस खामोशी व शांति के साथ नई विधानसभा का गठन किया गया है इसके लिए प्रदेश की तमाम जनता बधाई की पात्र है। यहीं नहीं इस तमाम चुनावी प्रक्रिया में नामांकन पत्रों के दाखिले से लेकर चुनावी प्रचार, मतदान व मतगणना की अंतिम प्रक्रिया तक प्रदेश में महज अपवाद को लेकर एक दो छुटपुट घटनाओं को छोडक़र तमाम चुनावी प्रक्रिया शांतिपूर्वक संपन्न हुई है, इसके लिए न केवल प्रदेश की जनता बल्कि तमाम प्रशासनिक मशीनरी के साथ-साथ राजनीतिक दल एवं प्रत्याशी भी बधाई के पात्र हैं।
लेकिन इस तमाम चुनावी प्रक्रिया के दौरान प्रत्याशियों की हार व जीत दो प्रमुख पहलू रहे हैं, जिंदगी का भी यही कड़वा सच है कि जीत व हार सिक्के के दो प्रमुख पहलू हैं जिन्हे न तो नजरअंदाज न ही नकारा जा सकता है। अगर यूं कहें कि हार व जीत के बिना न केवल जिंदगी अधूरी है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए। विधानसभा चुनाव के दौरान कौन हारा व कौन जीता अब यह प्रश्न यहां महत्व नहीं रखता, जितना अहम नई सरकार द्वारा लोगों के उत्थान, जनकल्याण एवं उनके विकास से जुडी विभिन्न विकास योजनाओं व मुददों को धरातल तक ले जाना व जनआंकाक्षाओं की पूर्ति करना है। हिमाचल प्रदेश के एक छोटा सा पहाड़ी प्रदेश होने के नाते जहां सरकार के साथ-साथ लोगों की आय के साधन सीमित हैं तो वहीं प्रदेश की विकट भौगोलिक परिस्थिति भी यहां के जीवन को कठिन बनाती है। हिमाचल प्रदेश में विकास योजनाओं को धरातल में लागू करने के लिए जहां देश के मैदानी राज्यों के मुकाबले न केवल दुगुनी ऊर्जा व धनराशि की जरूरत रहती है बल्कि मूलभूत सुविधाओं को आमजन तक पहुंचानें की भी एक बड़ी चुनौती होती है। ऐसे में प्रदेश में नई सरकार को न केवल मूलभूत सुविधाओं को समाज के सबसे निम्नस्तर के व्यक्ति तक पहुंचाने की चुनौती रहेगी बल्कि जनकल्याण व विकास में आमजन की भागीदारी सुनिश्चित हो इसपर भी गंभीरता से प्रयास करने होंगे।
वैसे तो हिमाचल प्रदेश ने अपने गठन से लेकर आजतक विकास के क्षेत्र में कई नींव पत्थर रखे हैं तथा विकास का यह कारवां प्रदेश में समय-समय पर सत्तासीन रही लोकप्रिय सरकारों ने आगे बढ़ाने का भी भरसक प्रयास किया है। जिसकी बदौलत आज प्रदेश देश के पहाड़ी राज्यों में एक अग्रिम पंक्ति में खड़ा हुआ है। लेकिन विकास व जनकल्याण एक सतत् प्रक्रिया है तथा इन दोनों लक्ष्यों की पूर्ति किए बिना सरकार व जनता दोनों के सपनें अधूरे ही रहते हैं। लेकिन ऐसे में नई सरकार द्वारा प्रदेश में शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं के सुदृढ़ीकरण के साथ-साथ जनकल्याण को आम लोगों तक पहुंचे इसके लिए विशेष प्रयास करने की जरूरत है। आज प्रदेश में जहां स्वास्थ्य संस्थानों का दायरा प्रदेश के ग्रामीण व दूरदराज क्षेत्रों तक जरूर पहुंचा है तो वहीं प्राथमिक से लेकर कॉलेज स्तर की शिक्षा का भी खूब विस्तारीकरण हुआ है। लेकिन ऐसे में लोगों को घरद्वार के समीप गुणात्मक व बेहतर शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाएं मिले इसके लिए नई सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में जहां शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में मूलभूत ढ़ांचे को मजबूती प्रदान करनी होगी तो वहीं स्टाफ की पर्याप्त तैनाती के साथ-साथ शिक्षा व ईलाज की तमाम सुविधाएं ग्रामीण स्तर पर मुहैया करवाने पर भी विशेष बल देना होगा।
वास्तविकता के धरातल में आज भी देखें तो लोगों को छोटे से छोटे इलाज के लिए जहां सैंकडों किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है तथा कई बार यह सफर लोगों के जीवन पर भारी भी पड़ जाता है। यहीं नहीं प्रदेश में आईजीएमसी शिमला व टांडा मेडिकल कॉलेज कांगडा को छोडक़र जिला व उपमंडल स्तरीय अस्पतालों में ही बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें इसके लिए विशेष प्रयास करने होंगे। ऐसे में जरूरत है सभी जिला स्तरीय अस्पतालों में वह तमाम आधुनिक सुविधाओं मुहैया करवाने की जिसके प्रति अभी भी हमें विशेष प्रयास की जरूरत महसूस हो रही है, इसके लिए न केवल जिला अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती को प्राथमिकता देनी होगी बल्कि आधुनिक लैब की तमाम सुविधाएं जिला व उपमंडल स्तर पर ही लोगों को नसीब हो जाएं इस पर ध्यान देना होगा। सच्चाई यह है कि आज भी प्रदेश के लोगों को छोटे-छोटे इलाज के लिए या तो शिमला, टांडा या फिर पीजीआई चंडीगढ़ का रूख करना पड़ता है। इससे न केवल प्रदेश के लोगों को अनावश्यक परेशानी झेलनी पड़ती है बल्कि समय व धन की भी बर्बादी होती है। कई बार तो लोग थक हार कर निजी अस्पतालों की मंहगे इलाज के आगे नतमस्तक होते दिखाई देते हैं। रही बात शिक्षा क्षेत्र की तो आज शिक्षण संस्थाओं के आंकड़े जरूर सुकून दे रहे हैं, लेकिन यहां भी मूलभूत सुविधाओं सहित स्टाफ की कमी हमेशा खलती रही है जिस पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत होगी।
जनकल्याण हमेशा ही किसी भी सरकार का सबसे प्राथमिक उदेश्य रहा है तथा इसका लाभ समाज के सबसे निम्न व गरीब व्यक्ति तक पहुंचे इसके लिए भी धरातल स्तर पर एक ऐसा तंत्र विकसित करना होगा ताकि कोई भी पात्र लाभार्थी वंचित न रहे। इसके अलावा समाज के हर वर्ग व तबके की सरकार से अपनी-अपनी अपेक्षाएं व इच्छाएं रहती है जिनको सरकार ने पूरा करना होता है, लेकिन सरकार की योजनाओं व कार्यक्रमों से समाज का जरूरतमंद तबका लाभान्वित हो इसके लिए शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं को ओर मजबूती प्रदान करना नई सरकार की विशेष प्राथमिकता में हो ऐसी अपेक्षा है ताकि कोई भी बेहतर ईलाज के अभाव में न तो दम तोड सके, न ही बेहतर ईलाज के लिए निजी अस्पतालों के लिए मजबूर होना पड़े। साथ ही प्रदेश के ग्रामीण व गरीब तबके के बच्चों को विश्वस्तरीय स्कूल व कॉलेज की शिक्षा घरद्वार पर ही उपलब्ध हो इस पर 
भी विशेष ध्यान देना होगा ताकि प्रदेश की नौजवान पीढ़ी महज सरकारी नौकरियों के पीछे भागने के बजाए विश्व की खुली अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को स्वीकर करने के योग्य बन अपनी प्रतिभा का डंका देश, दुनिया में स्थापित कर सकें।

(साभार: दैनिक न्याय सेतु 22 दिसम्बर, 2017 एवं दैनिक आपका फैसला, 28 दिसम्बर, 2018 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Wednesday, 6 December 2017

वर्ग विषमता व जातिगत छुआछूत मिटाकर समाज को समरस बनाएं

आज 6 दिसम्बर को राष्ट्र देश के महानायक एवं संविधान निर्माता डॉ0 भीमराव अंबेदकर जी की पुण्यतिथि मना रहा है। डॉ0 भीमराव अंबेदकर भारत के एक ऐसे महान सपूत थे जिन्होने देश से जातिप्रथा व छूआछूत के खिलाफ न केवल विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से जन जागरूकता फैलाई बल्कि वह स्वयं एक ऐसे परिवार से निकले जो इस कुप्रथा का शिकार रहे। ऐसे में हम यह सहज अनुमान लगा सकते हैं कि एक ऐसा व्यक्ति जो स्वयं वर्ग विषमता, जातिगत छुआछूत व भेदभाव की समस्या से पीडि़त रहा हो वह समाज को इस कुप्रथा से छुटकारा दिलाने के लिए कितना संघर्षरत व चिंतित हो सकता है। 
वास्तव में हमारा भारतीय समाज डॉ0 भीम राव अंबेदकर जी के जन्म व पुण्य तिथि को एक समरस समाज बनाने व समाज से वर्ग विषमता, जातिगत छुआछूत व भेदभाव को समाप्त करने का हर वर्ष प्रण तो लेता है, लेकिन आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी क्या हम एक ऐसा समाज का निर्माण कर पाए हैं जहां जातिगत भेदभाव व छुआछूत के लिए कोई स्थान न हो? क्या हम उन लोगों को समाज की मुख्यधारा में बिना किसी भेदभाव के जोड़ पाए हंै या फिर यूं कहें क्या हमारा समाज पूरी तरह से जातिगत भेदभाव व छुआछूत से मुक्त हो पाया है? कहने को तो ऐेसे अनगिनत प्रश्न हैं जो आज भी हमारे समाज में मुंहबाए खडे हैं और जातिगत भेदभाव व छुआछूत की ओर ईशारा कर रहे हों? लेकिन अब प्रश्न कितने लोगों का जीवन स्तर उठा, कितने लोगों का आर्थिक व सामाजिक सशक्तिकरण हुआ का नहीं है बल्कि प्रश्न भारतीय समाज को पूरी तरह से वर्ग विषमता, जातिगत छुआछूत व भेदभाव के उस चंगुल से बाहर निकालने का है जिसके लिए आज भी हमारा समाज किसी न किसी स्तर पर संघर्षरत है। 
भले ही वर्ग विषमता एवं जातिगत छुआछूत व भेदभाव को लेकर हमारे देश में न केवल समय-समय पर अनेक सामाजिक आंदोलन हुए बल्कि विभिन्न स्तरों पर भी समरस समाज बनाने के लगातार अनेक प्रयास होते रहे हैं। लेकिन भारतीय समाज में जातिगत छुआछूत व भेदभाव का यह जहर लोगों के मन मस्तिष्क से आज भी पूरी तरह से बाहर नहीं निकल पाया है जिसके लिए सीधे व परोक्ष तौर पर हम आजादी के इन सात दशकों से संघर्षरत हैं। यहां इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि हमारे समाज में इस दिशा में न केवल अबतक बेहतर प्रयास हुए हैं बल्कि बहुत से लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने व समाज की मुख्यधारा में जोडऩे के अनेक कदम भी उठाए हैं। लेकिन ऐसे में प्रश्न हमारे इन प्रयासों से लाभान्वित होने वालों के आंकड़ों का नहीं बल्कि प्रश्न इस कुप्रथा के शिकार समाज के सबसे निचले तबके को जोडऩे व समाज को वर्ग विषमता से मुक्त बनाने का है जिसकी तरफ शायद अभी तक हमने कोई सार्थक प्रयास करने की जहमत ही नहीं उठाई है। 
वास्तव में किसी भी समाज का उत्थान इस बात पर निर्भर करता है कि समाज के सबसे निचले स्तर के कितने लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाया गया है। वैसे तो भारतीय संविधान में वह सभी प्रावधान मौजूद हैं जो देश में वर्ग विषमता व जातिगत छुआछूत व भेदभाव को मिटाने में कारगर साबित हो सकते हैं। लेकिन वास्तव में क्या इन संवैधानिक प्रावधानों का एक समरस समाज स्थापित करने में बेहतर इस्तेमाल हो पाया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि समाज में संविधान के मूल तत्वों व भावनाओं के साथ छेड़छाड़ कर इस सामाजिक समस्या को जड़ से उखाडऩे के बजाए निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए समाज को ही एक अन्य वर्ग व्यवस्था के तहत बांटने का तो प्रयास नहीं हो रहा है। इस पर भी समाज के बुद्धिजीवी वर्ग, राजनीतिक विश्लेषकों व चिंतकों को गौर फरमाने की आवश्यकता महसूस हो रही है।
वास्तव में हमारी वर्ग विषमता तथा जातिगत छुआछूत व भेदभाव के प्रति उस समय एक बड़ी जीत होगी जब देश का एक भी कोना ऐसा नहीं रहेगा जहां जाति विशेष के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव होता हो। ऐसा कोई भी समाज नहीं होगा जहां पर व्यक्ति की पहचान महज एक इन्सान व भारतीयता के अलावा कोई दूसरी रहे। ऐसे में प्रश्न उठ रहा है कि क्या वर्तमान परिस्थितियों में देश से यह समस्या खत्म हो पाएगी? लेकिन ऐसे में हम यह क्यों भूल रहे हैं कि यह वही भारतीय समाज है जहां के लोगों ने समय-समय पर अनेक सामाजिक बुराईयों व कुरीतियों के खिलाफ झंडा बुलंद किया तथा समाज को कई कुप्रथाओं से आजाद किया है। ऐसे में हमारे समाज से वर्ग विषमता व जातिगत छुआछूत की यह समाजिक बुराई पूरी तरह से समाप्त हो इसके लिए 21वीं सदी की हमारी युवा पीढ़ी न केवल सक्षम व समर्थ है बल्कि वह एक ऐसा भारतीय समाज स्थापित करने का भी सामथ्र्य रखती है जिसमें वर्ग विषमता, जातिप्रथा व छुआछूत के लिए कोई स्थान नहीं होगा। 
ऐसे में देश से वर्ग विषमता व जाति प्रथा को मिटाना एवं डॉ0 भीमराव अंबेदकर जी के बताए सिद्धांतों व सदमार्ग पर चलने का प्रण लेना ही आज भारतीय समाज की उनके प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी। आओ आज हम सब मिलकर अपने समाज को वर्ग व जातिगत विषमता से मुक्त बनाने का प्रण लेेकर भारत को दुनिया का एक आदर्श समाज बनाएं।

(साभार: दैनिक न्याय सेतु 6 दिसम्बर, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Thursday, 23 November 2017

टशी दावा और अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती का प्रतीक है रोहतांग टनल

सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रोहतांग सुरंग से खुलेगी लाहौल वासियों की किस्मत
हिमाचल प्रदेश के कबायली ईलाका लाहौल का अब जल्द ही देश व दुनिया से 12 माह तक जुडे रहने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। प्रदेश के मनाली व लाहुल के मध्य रोहतांग दर्रा के बीच बन रही लगभग 9 किलोमीटर सुरंग के पूरी तरह से क्रियाशील हो जाने से न केवल सुरक्षा की दृष्टि से इसका सीधा लाभ भारतीय सेना को होगा बल्कि इससे सदियों से बंद पडी प्रदेश के कबायली ईलाके लाहौल वासियों की किस्मत को भी पंख लगने वाले हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2018 के अंत तक इस सुरंग को पूरी तरह से मुकम्मल  करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। 
सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण रोहतांग टनल लाहौल निवासी टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल तथा देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती का प्रतीक बनकर हमारे सामने आई है। इसी दोस्ती के कारण आज न केवल लाहौल वासियों की किस्मत बदलने वाली है बल्कि वर्ष में छह माह तक बर्फ की कैद में जीवन व्यतीत करने वाले लाहौल के लोगों को अब जल्द ही बर्फ की कैद से आजादी भी मिलने वाली है। 
रोहतांग टनल के निर्माण को लेकर नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन मेें
 तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिलते टशी दावा (फाईल फोटो)
जब इस संबंध में टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल के संबंध में उनके सुपुत्र एवं जिला लोक संपर्क अधिकारी ऊना का अस्थाई कार्यभार देख रहे रामदेव से अनौपचारिक बातचीत की तो उन्होने अपने पिता एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से संबंधित कई महत्वपूर्ण बातें सांझा की। उन्होने बताया कि टशी दावा और वाजपेयी की दोस्ती देश की स्वतंत्रता के पूर्व की रही है। उन्होंने बताया कि उनके पिता टशी दावा देश के सबसे पुराने गैर राजनैतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सक्रिया कार्यकत्र्ता थे। इसी बीच वर्ष 1942 को आरएसएस के एक प्रशिक्षण शिविर के दौरान उनकी पहली मुलाकात गुजरात के बडोदरा में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ हुई थी। इस दौरान टशी दावा और वाजपेयी के बीच एक घनिष्ठ दोस्ती कायम हुई। लेकिन एक लंबे अर्से तक इन दोनों की मुलाकात जीवन की आपाधापी एवं व्यस्तता के कारण नहीं हो पाई।
 लेकिन इस दौरान टशी दावा के मन में न केवल लाहौल वासियों की समस्या हर वक्त उन्हे परेशान करती रहती थी बल्कि इस क्षेत्र को बर्फ की कैद से छुटकारा दिलाने के लिए वे हमेशा चिंतित रहते थे। इसी बीच उनके मन में लाहौल व मनाली के बीच एक सुरंग निर्मित करने का विचार आया ताकि यह क्षेत्र देश व दुनियां के साथ लगातार जुडा रह सके। इसी विचार को लेकर टशी दावा लगभग 56 वर्ष के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने दिल्ली पहुंचे। 
3 जून, 2000 को लाहौल के केलांग में आयोजित जनसभा में
पूर्व प्रधानमंत्री का अविवादन करते हुए टशी दावा (फाईल फोटो)
इस बीच एक लंबे वक्त के बाबजूद जब टशी दावा अटल बिहारी वाजपेयी से नई दिल्ली स्थित उनके निवास स्थान में मिले तो एकाएक वाजपेयी टशी दावा को शक्ल से पहचान नहीं पाए लेकिन उन्होने कहा कि उन्हे आभास हो रहा है कि यह आवाज उनके नाटे कद वाले कबायली परम मित्र टशी दावा की लग रही है। ऐसे में जब उन्हे बताया गया कि उनसे मुलाकात करने आया व्यक्ति टशी दावा ही है तो वाजपेयी ने न केवल टशी दावा को गले से लगा लिया बल्कि उस लंबे अर्से को याद कर वह भावुक भी हो गए। इस बीच वाजपेयी ने केवल उनका कुशलक्षेम पूछा बल्कि उनके यहां आने का कारण भी जाना। टशी दावा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लाहौल वासियों को लगभग छह माह तक बर्फ की कैद से छुटकारा दिलाने के लिए रोहतांग सुरंग बनाने की मांग रखी। इस पर वाजपेयी ने उन्हे इस टनल को सामरिक दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण मानते हुए इसके निर्माण की हामी भरी। इस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी जब तीन जून, 2000 को अपने हिमाचल दौरे के दौरान लाहौल के मुख्यालय केलांग में पहुंचे तो अपने परम मित्र टशी दावा की उपस्थिति में आयोजित एक जनसभा में इस सुरंग के निर्माण की घोषणा की थी। टशी दावा द्वारा बार-बार तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से सुरंग निर्माण की मांग को लेकर हुई मुलाकातों का ही नतीजा था कि केलांग जनसभा में वाजपेयी ने इसके निर्माण की घोषणा की।
टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल का चित्र (फाईल फोटो)
सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण रोहतांग सुरंग अब जल्द की बनकर तैयार होने जा रही है जिसका सीधा लाभ न केवल लाहौल वासियों को होगा बल्कि भारतीय सेना को भी लेह तक रसद एवं अन्य सैन्य सामान पहुंचाने में भी सुविधा होगी तथा सैन्य दृष्टि से यह रास्ता सुरक्षित भी है। वर्ष 1924 को लाहौल के ठोलंग गांव में पैदा हुए टशी दावा भले ही प्रदेश व देश की राजनीति में एक अनभिज्ञ चेहरा रहे हों, लेकिन वर्ष 1942 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ आरएसएस के शिविर के दौरान हुई दोस्ती ने आज न केवल प्रदेश बल्कि देश के लिए लगभग 9 किलोमीटर लंबी रोहतांग सुरंग को एक तोहफे के तौर पर हिमाचल को एक सौगात मिली है। यूं कहें कि यदि रोहतांग सुरंग का निर्माण टशी दावा और अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती की उपज है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
रोहतांग दर्रा पार करते हुए ही टशी दावा ने त्यागे प्राण
दो दिसंबर, 2007 को टशी दावा ने लगभग 83 वर्ष की उम्र में उसी जगह पर अपने प्राण त्याग दिए जिस समस्या से लाहौल वासियों को छुटकारा दिलवाने के लिए वे लगातार संघर्ष कर रहे थे। उनके सुपुत्र का कहना है कि सांस की बीमारी से पीडित टशी दावा को जब ईलाज के लिए कुल्लू लाया जा रहा था तो इसी बीच रोहतांग दर्रा पार करते समय उन्होने अपने प्राण त्याग दिए थे। ऐसे में आज भले ही टशी दावा हमारे बीच नहीं हैं लेकिन आज रोहतांग सुरंग के निर्माण का सपना उनके परम मित्र अटल बिहारी वाजपेयी के आशीर्वाद से पूरा होने जा रहा है, जिससे न केवल लाहौल वासियों को छह माह बर्फ  की कैद से मुक्ति मिलने वाली है बल्कि इससे इस क्षेत्र की आर्थिकी को भी बल मिलेगा।





Sunday, 5 November 2017

पेड न्यूज-लोकतंत्र की आत्मा पर प्रहार

भारतीय लोकतंत्र में देश के 18 वर्ष या इससे अधिक आयु वर्ग के प्रत्येक नागरकि को मताधिकार के माध्यम से सरकार चुनने का अधिकार प्रदान किया है। मतदाता निष्पक्ष व निर्भय होकर उम्मीदवारों का चयन कर सकें इसके लिए चुनाव आयोग को एक स्वतंत्र एजैंसी के तौर पर स्थापित किया गया है। परन्तु जैसे जैसे हमारा लोकतंत्र परिपक्वता की तरफ बढ़ रहा है वैसे-वैसे चुनावों के दौरान धन-बल का प्रभाव भी बढ़ता रहा है। जिससे न केवल मतदाताओं में सही व योग्य उम्मीदवारों के चुनाव में बाधा उत्पन्न होती है बल्कि चुनावी प्रक्रिया के दौरान भ्रम की स्थिति भी पैदा होती है। लेकिन यही प्रभाव यदि मीडिय़ा में इस्तेमाल होने लगे तो लोकतंत्र के उदेश्यों की पूर्ति न केवल असंभव हो जाएगी बल्कि चुनावों के माध्यम से निष्पक्ष तौर पर उम्मीदवारों के चयन को लेकर मतदाताओं में भ्रम की स्थिति भी पैदा होती है। 
मीडिया समाज का आईना होता है तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया में मीडिया जनमत तैयार करने में बहुत बडी भूमिका अदा करता है। मीडिया के माध्यम से न केवल मतदाताओं को उम्मीदवारों के संबंध में सही सूचनाओं की जानकारी उपलब्ध होती है बल्कि सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं अन्य महत्वपूर्ण विषयों को लेकर भी एक जनमत तैयार करता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से चुनावों के दौरान मीडिया में पेड न्यूज का चलन तेजी से बढ़ा है। जिससे न केवल भारतीय लोकतंत्र की आत्मा पर प्रहार हुआ है बल्कि पेड न्यूज निष्पक्ष मतदान में एक बाधक बनकर सामने आई है। वास्तव में पेड न्यूज के माध्यम से धन-बल या अन्य प्रकार के प्रलोभन देकर एक उम्मीदवार अपने पक्ष में न केवल समाचारों को बढ़ा चढ़ाकर प्रसारण व प्रकाशन करवाता है बल्कि ऐसे भ्रामक समाचारों से लोगों में सही निर्णय लेने को लेकर भ्रम की स्थिति भी उत्पन्न होती है। भारतीय लोकतंत्र में पेड न्यूज के बढ़ते चलन को लेकर वर्ष 2010 में विभिन्न राजनैतिक दलों की मांग तथा भारतीय प्रेस परिषद के प्रयासों से पेड न्यूज को परिभाषित करते हुए निगरानी रखने के लिए चुनाव आयोग ने मीडिया प्रमाणीकरण एवं निगरानी समिति (एमसीएमसी) का गठन करने का निर्णय लिया। 
लोकसभा व विधानसभा चुनावों के दौरान मीडिया में पेड न्यूज पर नजर रखने के लिए मीडिया प्रमाणीकरण एवं निगरानी समिति (एमसीएमसी) को राज्य व जिला स्तर पर गठित किया जाता है। एमसीएमसी का प्रमुख उदेश्य जहां प्रिंट व इलैक्ट्रानिक मीडिया में उम्मीदवारों द्वारा अपने-अपने पक्ष में प्रसारित किए जाने वाले विज्ञापनों के साथ-साथ पेड न्यूज का गहनता से विश्लेषण करना है तो वहीं उम्मीदवारों द्वारा प्रचार के लिए पोस्टर, पंफलेट, हैंडबिल, होर्र्डिंग्स, बैनर इत्यादि को इस्तेमाल करने से पहले जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा 127ए के तहत अनुमोदन करना भी है। जबकि वर्ष 2013 में इंटरनेट व सोशल मीडिया को भी एमसीएमसी के दायरें में लाया गया है।
चुनावी प्रक्रिया के दौरान उम्मीदवारों द्वारा मीडिया में अपने-अपने पक्ष में धन या अन्य प्रलोभन देकर बढ़ा चढ़ाकर समाचारों को प्रकाशित करवाना पेड न्यूज के दायरे में आता है। ऐसे में मीडिया की भूमिका न केवल महत्वपूर्ण हो जाती है बल्कि बिना मिलावट एवं भेदभाव एक स्वस्थ एवं साफ सुथरा जनमत तैयार करने में भी मीडिया बहुत बडा कार्य करता है। इन परिस्थितियों में चुनावी प्रक्रिया के दौरान स्वतंत्र व निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करने में एमसीएमसी एक महत्वपूर्ण कडी के तौर पर कार्य करती है। 
चुनावी प्रक्रिया के दौरान एमसीएमसी द्वारा पेड न्यूज का मामला सामने आने पर संबंधित निर्वाचन अधिकारी को अगली कार्रवाई के लिए प्रेषित किया जाता है। जबकि पेड न्यूज के संबंध में एमसीएमसी से सूचना मिलने पर संबंधित निर्वाचन अधिकारी 96 घंटे की समयावधि में उम्मीदवार को नोटिस जारी करता है तथा नोटिस मिलने के 48 घंटे के भीतर संबंधित उम्मीदवार को इसका जबाव देना होता है। यदि इस संबंध में उम्मीदवार नोटिस का जवाब नहीं देता है तो एमसीएमसी का निर्णय अंतिम माना जाता है तथा जिला स्तरीय एमसीएमसी के निर्णय के खिलाफ राज्य स्तरीय एमसीएमसी में अपील की जा सकती है। तदोपरान्त मामला चुनाव आयोग के पास भेजा जा सकता है तथा इस संदर्भ में चुनाव आयोग का निर्णय अंतिम होता है। एमसीएमसी या चुनाव आयोग द्वारा पेड न्यूज साबित होने पर इससे संबंधित सारे खर्चे को उम्मीदवार के चुनावी व्यय में जोडा जाता है। जहां तक हिमाचल प्रदेश की बात है तो विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने प्रत्येक उम्मीदवार के लिए 28 लाख रूपये की चुनावी खर्च की सीमा निर्धारित की है। 
ऐसे में पेड न्यूज के संबंध में प्राप्त आंकडों का भी विश्लेषण करें तो वर्ष 2010 के बाद हुए विधानसभा चुनावों के दौरान बडे पैमाने पर पेड न्यूज के मामले सामने आते रहे हैं। 2010 बिहार विस चुनावों में 15, 2011 के विस चुनाव केरल में 65, पुडूच्चेरी में तीन, असम में 27, पश्चिम बंगाल में आठ, तमिलनाडू में 22 पेड न्यूज के मामलों की पुष्टि हुई है। इसी तरह 2012 के विस चुनावों में उत्तर प्रदेश में 97, उत्तराखंड में 30, पंजाब में 523, गोवा में नौ, गुजरात में 414, हिमाचल प्रदेश में 104 पेड न्यूज के मामले साबित हुए हैं। जबकि 2013 के विस चुनावों में कर्नाटक में 93, मध्यप्रदेश में 165, दिल्ली में 25, छतीसगढ़ में 32 तथा राजस्थान में 81 पेड न्यूज के मामलों की पुष्टि हुई है। पंजाब विधानसभा चुनाव-2017 के दौरान पेड न्यूज के 107 मामले संज्ञान में लाए गए हैं, जबकि हाल ही में पेड न्यूज के मामले में मध्य प्रदेश के एक मामले में चुनाव आयोग ने संबंधित व्यक्ति को दोषी पाया है। 
ऐसे में पेड न्यूज को लेकर मीडिया को न केवल स्वयं की आचार संहिता को लागू कर स्वस्थ व सशक्त लोकतंत्र निर्माण में सकारात्मकता से अपने दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए बल्कि पेड न्यूज का वहिष्कार कर समाज के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए। अन्यथा लोकतंत्र के महापर्व चुनावों में मीडिया द्वारा धन-बल के आधार पर उम्मीदवार विशेष के पक्ष में समाचारों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रकाशन व प्रसारण करके न केवल भारतीय लोकतंत्र की आत्मा ही कमजोर होगी बल्कि मीडिया के प्रति लोगों का विश्वास भी कम होगा।

(साभार: दैनिक न्याय सेतु 2 नवम्बर, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Saturday, 30 September 2017

सडक़ दुर्घटनाओं के कारण देश में प्रतिदिन 413 लोगों की हो रही मौत

सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय भारत सरकार की सडक़ दुर्घटनाओं को लेकर वर्ष-2016 के जारी आंकडों के अनुसार देश में वर्ष 2016 के दौरान 4,80,652 सडक़ हादसे हुए जिनमें जहां डेढ़ लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई तो वहीं लगभग पांच लाख लोग घायल हुए हैं। देश की सडक़ों में प्रतिदिन 1317 सडक़ हादसे हो रहे हैं तथा 413 लोग प्रतिदिन जबकि प्रतिघंटा 17 लोग सडक़ों पर दम तोड रहे हैं। भले ही वर्ष 2015 के मुकाबले देश में सडक़ हादसों में लगभग 4.1 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई है लेकिन सडक़ हादसों के कारण मरने वाले लोगों के आंकडे में 3.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ऐसे में सडक़ों पर प्रतिदिन सडक़ दुर्घटनाओं के कारण सैंकडों लोगों की जान चली जाना एक बहुत बड़ा चिंतनीय विषय है तथा जिस गति से यह आंकडा बढ़ रहा है सडक़ दुर्घटनाओं को लेकर देश की एक भयावह तस्वीर हमारे सामने प्रस्तुत हो रही है। 
सरकार द्वारा जारी इन्ही आंकडों का आगे विश्लेषण करें तो सबसे चौकाने वाली बात यह सामने आ रही है कि इन सडक़ दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे लोगों में से 46.3 फीसदी 18-35 वर्ष आयु वर्ग के युवा हैं जबकि 18-45 वर्ष आयु वर्ग में यह आंकड़ा बढक़र 68.6 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। देश की युवा शक्ति का इस तरह सडक़ दुर्घटनाओं में शिकार हो जाना देश व समाज के लिए एक बहुत बडी त्रासदी कही जा सकती है। आंकड़ों से एक बात यह ऊभर कर सामने आ रही है कि देश में हो रहे सडक़ हादसों में से 33.8 प्रतिशत सडक़ हादसे दुपहिया वाहनों के कारण हो रहे हैं जबकि टैक्सी, जीप, कार की भागीदारी 23.6 प्रतिशत, ट्रक, टैम्पों, ट्रैक्टर इत्यादि की भागीदारी 21 जबकि बसों का आंकडा 7.8 प्रतिशत है। देश में वर्ष 2015 के मुकाबले 2016 में दुपहिया वाहन दुर्घटनाओं का आंकड़ा 28.8 प्रतिशत से बढक़र 33.8 प्रतिशत तक पहुंच गया है। दुपहिया सडक़ दुर्घटना के कारण दस हजार लोगों की मौत इसलिए हो गई कि उन्होने हेल्मेट नहीं पहना था जबकि बिना सीट बेल्ट वाहन चलाने वाले लोगों की यह संख्या पांच हजार से अधिक रही है।
आंकड़ो का आगे विश्लेषण करें तो देश में गत वर्ष नशीले पदार्थों के सेवन के चलते  लगभग 15 हजार सडक़ हादसे हुए जबकि वाहन चलाते समय मोबाईल फोन का इस्तेमाल करते हुए लगभग पांच हजार सडक़ दुर्घटनाएं हुई तथा 2138 लोगों ने अपनी जान गंवाई और लगभग 47 सौ लोग घायल हो गए। आंकडों से एक चौकाने वाली अहम बात यह सामने आ रही है कि देश में हिट व रन के मामलों में भी वृद्धि दर्ज हुई है तथा वर्ष 2016 में कुल सडक दुर्घटनाओं में से 11.6 प्रतिशत हिट व रन के मामले सामने आए जिनके तहत लगभग 23 हजार लोगों को अपनी जान गंवानी पडी है। जबकि ओवरलोडिंग के कारण देश में लगभग 61 हजार सडक़ हादसे हुए जिनमें लगभग 21 हजार लोगों की मौत हो गई। यही नहीं देश में कुल सडक़ हादसों में से 84 प्रतिशत हादसे वाहन चालक की लापरवाही के कारण हो रहे हैं तथा 80 प्रतिशत लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। ऐसे में इन आंकडों से यह स्पष्ट हो रहा है कि अधिकतर सडक दुर्घटनाओं के लिए लोग स्वयं ही कारण बन रहे हैं तथा सडक़ पर स्वयं के साथ-साथ दृूसरों की जिंदगी के लिए भी बहुत बड़ा खतरा बन रहे हैं। 
ऐसे में यदि हिमाचल प्रदेश की बात करें तो वर्ष 2016 में 3168 सडक़ हादसे हुए जिनमें वर्ष 2015 के आंकडे 1096 लोगों के मुकाबले 1271 लोगों को अपनी जान गंवानी पडी तथा  5764 लोग घायल हुए जो वर्ष 2015 में यह आंकडा 5108 का था। हिमाचल में ड्राईवरों की लापरवाही के कारण 2274 सडक़ दुर्घटनाएं घटित हुई जिनमें 946 लोगों की मौत हो गई। राष्ट्रीय आंकड़ों की तरह ही हिमाचल में भी हिट व रन के 728 मामले सामने आए जिनमें 207 लोगों की मौत तथा 748 घायल हुए जबकि पैदल चल रहे लोगों को हिट करने का आंकडा 429 रहा जिसमें 101 लोगों की मौत हो गई जबकि 608 लोग घायल हो गए। ऐसे में यह स्पष्ट हो रहा है कि हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में भी हिट व रन के मामले लगातार बढ़ रहे है। इसके अतिरिक्त जहां प्रदेश में नशीले पदार्थों के सेवन के कारण हुए 72 हादसों में 17 लोगों की मौत हो गई तो वहीं ओवर स्पीड के  कारण 516 सडक़ हादसों में 187 लोगों की मौत हुई है। यही नहीं प्रदेश में बिना हेल्मेट दुपहिया वाहन हादसों में 125 जबकि बिना सीट बेल्ट के कारण 450 लोगों की मौत सडक़ हादसों में हो गई। प्रदेश में ओवर लोडिंग के कारण 135 सडक़ दुर्घटनाओं के चलते 81 लोग मौत के आगोश में समा गए। 
ऐसे में प्रतिवर्ष देश में सडक़ दुर्घटनाओं के कारण लोगों का असमय ही मौत के मुंह में चले जाना एक बहुत बड़ी राष्ट्रीय त्रासदी कही जा सकती है। ऐसे में लोगों को सडक़ सुरक्षा के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ सडक़ नियमों का पालन करना जरूरी हो जाता है ताकि सडक़ों पर बेमौत मरते लोगों की अनमोल जिंदगी को बचाया जा सके। इसके लिए जरूरी है कि देश के जिम्मेवार नागरिक वाहन चलाते समय सडक़ पर लगी संकेतावली व चिन्हों का गंभीरता से पालन करते हुए स्वयं व दूसरों की अनमोल जिंदगी को बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। वाहन चलाते समय लोग सीट बैल्ट का प्रयोग अवश्य करें तथा दुपहिया वाहन चलाते समय अच्छी गुणवत्ता वाला हेल्मेट जरूर पहनें। यही नहीं वाहन चलाते समय मोबाइल फोन के इस्तेमाल से बचें ऐसे करने से न केवल वह स्वयं बल्कि दूसरों को भी सडक़ पर सुरक्षित रख सकते हैं। सडक यातायात में दिन के मुकाबले रात में घातक दुर्घटनाएं होने की संभावना 3-4 गुणा अधिक होती है। इसलिए रात्रि के समय वाहन चलाते समय अतिरिक्त सावधानी व सत्तर्कता अपनाएं तथा पैदल चलने वाले यात्रियों, साइकिल सवारों, पशुओं इत्यादि के प्रति सावधान रहें। साथ ही रेट्रो-रिफलैक्टिव शीटों व टेपों का व्यापक इस्तेमाल करें।
देश में वाहनों की ओवरलोडिंग भी सडक़ दुर्घटनाओं का एक बहुत बडा कारण है इसलिए ओवर लोडिंग से जहां सडकों को क्षति पहुंचती है तो वहीं वाहनों को नुकसान होता है। ऐसे में वाहन चालकों को ओवरलोडिंग से बचना चाहिए। इसके अलावा वाहन चालकों को वाहन चलाते समय शराब व नशीले पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए। देश में 85 फीसदी सडक दुर्घटनाओं के लिए वैध ड्राईविंग लाईसैंस धारी चालक ही कारण बन रहे हैं, ऐसे मेें जरूरी है कि वाहन चालकों का समय-समय पर सडक़ सुरक्षा के प्रति औचक परीक्षण भी होना चाहिए ताकि वाहन चालक सडक़ नियमों के प्रति सचेत बने रहें।
ऐसे में यदि हम बढ़ते सडक़ हादसों के प्रति समय रहते सचेत नहीं हुए तो प्रतिवर्ष हमारी सडक़ों पर मौत यह तांडव इसी तरह जारी रहेगा तथा असमय की लाखों लोग अपनी अनमोल जिंदगी को गंवाते रहेंगें।


(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 4 अक्तूबर, 2017 एवं दैनिक आपका फैसला, 12 अक्तूबर, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)


Monday, 28 August 2017

हिमाचल प्रदेश के 18.6 लाख बच्चों को लगेगा खसरा-रूबैला का टीका

हिमाचल प्रदेश में 30 अगस्त से शुरू हो रहा खसरा-रूबैला टीकाकरण अभियान
हिमाचल प्रदेश में बच्चों को खसरा जैसी जानलेवा बीमारी से पूरी तरह बचाव के लिए 30 अगस्त से खसरा-रूबैला विशेष टीकाकरण अभियान की शुरूआत होने जा रही है। इस अभियान के माध्यम से प्रदेश के सभी 9 माह से 15 वर्ष तक आयु वाले लगभग 18.6 लाख बच्चों का खसरा-रूबैला का टीकाकरण किया जाएगा। पूरे प्रदेश में इस अभियान को सफल बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने लगभग 2760 टीमों का गठन किया है। इस अभियान के तहत पूरे देश में दो वर्षों के भीतर लगभग 41 करोड बच्चों का टीकाकरण किया जाएगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं भारत सरकार के संयुक्त प्रयासों से देश में पहले चरण में पांच राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों जिसमें कर्नाटक, तमिलनाडू, पुडूच्चेरी, गोवा तथा लक्षद्वीप शामिल के लगभग 3.33 करोड बच्चों को खसरा-रूबैला का यह टीका सफलतापूर्वक लगाया जा चुका है। जबकि दूसरे चरण में देश के आठ राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों जिनमें आंध्रप्रदेश, चंडीगढ़, हिमाचल, केरल, तेलंगाना, उत्तराखंड, दादरा एवं नगर हवेली तथा दमण व द्वीव शामिल है के लगभग 3.40 करोड बच्चों को खसरा-रूबैला का यह टीका लगाया जा रहा है।
भारत में पूरे विश्व के मुकाबले लगभग 37 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु खसरा की बीमारी के कारण हो जाती है। भले ही भारत सरकार ने खसरा से होने वाली मृत्यु के आंकडे को वर्ष 2000 के आंकडे एक लाख बच्चों के मुकाबले वर्ष 2015 में 49 हजार तक ला दिया हो, लेकिन देश में खसरे के कारण बच्चों की होने वाली मृत्यु का यह आंकडा अभी भी बहुत बडा है। इसी तरह रूबैला के कारण देश में प्रतिवर्ष लगभग 40 हजार बच्चे जन्मजात बहरेपन व अंधेपन का शिकार हो रहे हैं। 
इस अभियान को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रतिनिधि डॉ0 निधि दंवर का कहना है कि भारत सरकार द्वारा पोलियो मुक्ति के बाद बच्चों को खसरा-रूबैला से बचाव के लिए यह विशेष टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है। इसके माध्यम से सरकार ने देश को वर्ष 2020 तक खसरा से मुक्ति तथा रूबैला से होने वाली बच्चों में जन्मजात विकृतियों को नियंत्रित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। उन्होने बताया कि नियमित टीकाकरण के अंतर्गत खसरा वैक्सीन का 9 माह तथा डेढ़ वर्ष की आयु पर टीका लगाया जाता है। लेकिन इस विशेष अभियान के दौरान 9 माह से 15 वर्ष तक आयु वाले सभी बच्चों को खसरा-रूबैला का टीका एक अतिरिक्त खुराक के तौर पर लगाया जाएगा तथा भविष्य में खसरा-रूबैला का टीका नियमित टीकाकरण में शामिल हो जाएगा।
डॉ0 निधि का कहना है कि खसरा एक अत्यन्त संक्रामक रोग है जिसके कारण भारत बर्ष में प्रतिवर्ष 50 हजार से ज्यादा बच्चों की मृत्यु हो जाती है। उन्होने बताया कि यदि गर्भवती माता गर्भावस्था के दौरान रूबैला से संक्रमित होती है तो गर्भस्थ शिशु में कई जन्मजात बीमारियां होने का खतरा पैदा हो जाता है, जिनमें बहरापन, अंधापन, मंदबुद्धि तथा ह्रदय रोग इत्यादि शामिल है। इसके अलावा गर्भ में बच्चे की मृत्यु तक हो जाती है। जबकि खसरे का टीका न लगने के कारण बच्चे न्युमोनिया, डायरिया सहित अन्य बीमारियों के जल्द शिकार हो सकते हैं। खसरा-रूबैला वैक्सीन के टीकाकरण से इन बीमारियों से बचा जा सकता है तथा भारत में खसरा पर नियंत्रण करने के लिए रूबैला वैक्सीन पहली बार खसरा-रूबैला के नाम से संयुक्त रूप से आरम्भ की जा रही है। उन्होने बताया कि यह टीका पूरी तरह से सुरक्षित है तथा इसे स्वास्थ्य विभाग की प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मी द्वारा ही बच्चों को लगाया जाएगा।
ऐसे में यदि जिला ऊना की बात करें तो जिला में लगभग एक लाख 28 हजार बच्चों को खसरा-रूबैला का टीका लगाया जाएगा। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने जिला में 940 स्कूलों को चिन्हित कर लिया गया है। जिनमें 761 सरकारी, 157 निजी, आठ विशेष स्कूल, सात क्रैच व प्ले स्कूल तथा एक मदरसा शामिल है। इसके अतिरिक्त 1344 आंगनवाडी केन्द्रों को भी शामिल किया गया है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी ऊना डॉ0 प्रकाश दडोच का कहना है कि विभाग ने अभियान के दृष्टिगत 190 टीमों का गठन कर लिया है तथा एक टीम द्वारा एक दिन में कम से कम दो सौ बच्चों का टीकाकरण किया जाएगा। टीकाकरण के दौरान बच्चों को कम से कम आधे घंटे तक विशेष निगरानी में रखा जाएगा तथा कोई भी समस्या होने पर संबंधित बच्चे को तुरन्त प्राथमिक उपचार मुहैया करवाया जाएगा। इस दौरान किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए सभी टीमों को आवश्यक दवाईयों के साथ-साथ अन्य जरूरी सामान व जानकारी मुहैया करवाई गई है। इसके अलावा जिला के सभी प्राथमिक, सामुदायिक, सिविल तथा जोनल अस्पताल में भी खसरा-रूबैला टीकाकरण को लेकर भी सभी आवश्यक प्रबंध कर लिए गए हैं। खसरा-रूबैला अभियान को लेकर जिला स्वास्थ्य विभाग ने एक हेल्पलाइन नम्बर भी जारी किया गया है जिसका नम्बर 92184-30213 है, जिस पर इस अभियान से जुडी कोई भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। 
इस तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन व भारत सरकार के संयुक्त प्रयासों से देश को 2020 तक खसरा-रूबैला से पूर्णत मुक्ति के लिए समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपनी साकारात्मक भूमिका निभाए। साथ ही इस अभियान के दौरान 9 माह से 15 वर्ष तक आयु वाले सभी बच्चों के अभिभावकों से भी आहवान है कि वह बच्चों को खसरा-रूबैला का टीका अवश्य लगावाएं ताकि हमारे बच्चे खसरे जैसी जानलेवा बीमारी से मुक्त हो सकें।

(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 28 अगस्त, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Tuesday, 1 August 2017

बरसात में स्क्रब टाइफस, मलेरिया व डेंगू से रहें सावधान

बरसात के मौसम के दौरान मच्छरों तथा पिस्सुओं के काटने से मलेरिया, डेंगू व स्क्रब टाइफस जैसी बीमारियां होने का ज्यादा खतरा बना रहता है। ऐसे में इन बीमारियों के बचाव के लिए जरूरी है कि लोग घर के चारों ओर घास, खरपतवार इत्यादि न उगने दें, घर के अंदर कीटनाशक दवाओं का छिडकाव करें तथा गडडों इत्यादि में पानी को जमा न होने दें ताकि उसमें मच्छर न पनप सकें। 
इस संबंध में मुख्य चिकित्सा अधिकारी ऊना डॉ0 प्रकाश दडोच ने लोगों को परामर्श जारी करते हुए आहवान किया है कि बरसात में मलेरिया, डेंगू तथा स्क्रब टाइफस जैसी बीमारियों से बचाव के लिए लोग विशेष एहतियात बरतें तथा इन बीमारियों से जुडा कोई भी लक्षण दिखे तो तुरन्त नजदीकी स्वास्थ्य संस्थान में उपचार के लिए पहुंचें। 
उन्होने बताया कि मलेरिया मादा एनाफिल्ज नामक मच्छर के काटने से होता है।  यह मच्छर खड़े पानी में अंडे देता है तथा इस मच्छर के काटने से मलेरिया होने का खतरा बना रहता है। उन्होने बताया कि व्यक्ति को मलेरिया होने पर ठंड लगकर बुखार आता है तथा समय पर मलेरिया का इलाज न हो तो यह कई बार जानलेवा भी साबित हो सकता है। 
सीएमओ ने बताया कि एडीज नाम मच्छर के काटने से डेंगू की बीमारी होती है। उन्होने बताया कि यह मच्छर भी साफ पानी में अंडे देता है तथा दिन के समय काटता है। डेंगू होने पर पीडित व्यक्ति को तेज बुखार, जोडों में दर्द, आंखों के पीछे दर्द तथा आंतरिक्त रक्त स्त्राव होता है। डेंगू होने पर प्रभावित व्यक्ति के शरीर में प्लेटलेट्स की कमी हो जाती है तथा यदि समय पर डेंगू का ईलाज न किया जाए तो यह भी जानलेवा साबित हो सकता है। 
उन्होने बताया कि स्क्रब टाइफस एक जीवाणु विशेष (रिकेटशिया) से संक्रमित पिस्सु (माइट) के काटने से फैलता है जो खेतों, झाडियों व घास में रहने वाले चूहों में पनपता है। शरीर को काटने पर यह जीवाणु चमड़ी के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है तथा स्क्रब टाईफस बुखार पैदा करता है जो जोडों में दर्द व कंपकपी के साथ 104 या 105 डिग्री फॉरेनहाइट तक जा सकता है। इसके अलावा शरीर में ऐंठन, अकडऩ या शरीर टूटा हुआ लगना स्क्रब टाइफस के लक्षणों में शामिल है।
स्क्रब टाइफस, डेंगू व मलेरिया के बचाव के लिए ये रखें सावधानियां
डॉ0 प्रकाश दडोच ने स्क्रब टाइफस, डेंंगू व मलेरिया से बचाव के लिए कुछ एहतियात बरतने की भी सलाह दी है। उन्होने बताया कि लोग अपने घरों के आसपास साफ-सफाई बनाए रखें, घर के चारों ओर घास, खरपतवार नहीं उगने दें, घर के अंदर कीटनाशक दवाओं का छिडक़ाव करें, पानी को गडडों इत्यादि में जमा न होने दें ताकि उसमें मच्छर न पनप सकें। लोग अपने बदन को ढक़ कर रखें तथा सप्ताह में कम से कम एक या दो बार कूलर, एसी तथा टंकी का पानी जरूर बदलें। टूटे हुए बर्तन, पुराने टायर, टूटे हुए घड़े इत्यादि को घर में न रखें ताकि उनमें पानी न ठहर सके। इसके अतिरिक्त मच्छरों से बचाव के लिए मच्छरदानी का उपयोग करें तथा बुखार होने पर अपने रक्त की तुरन्त जांच करवाएं। उन्होने कहा कि यदि स्क्रब टाइफस, मलेरिया या डेंगू से जुडे कोई भी लक्षण व्यक्ति में दिखाई दें तो प्रभावित को तुरन्त उपचार के लिए अस्पताल लेकर जाएं।










Saturday, 1 July 2017

सर्पदंश होने पर झाडफूंक के बजाए सीधे अस्पताल पहुंचें

हिमाचल प्रदेश में गत 6 वर्षों में चार हजार लोग बने सर्पदंश का शिकार
हिमाचल प्रदेश में बरसात के मौसम के दौरान सर्पदंश के मामले भी बढऩे लगते हैं, ऐसे में लोगों को इस मौसम के दौरान विशेष एहतियात बरतनी चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को सर्पदंश हो जाए तो उसे झाडफूंक के बजाए उपचार के लिए सीधे सरकारी अस्पताल में ले जाया जाना चाहिए। ऐसा करने से प्रभावित व्यक्ति को न केवल तुरन्त उपचार मिलेगा बल्कि अनमोल जिन्दगी को भी बचाया जा सकेगा।
ऐसे में यदि आंकडों की बात करें तो सर्पदंश को लेकर 108 नेशनल एंबुलेंस सेवा द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2011 से लेकर 2016 के दौरान 4037 लोग सर्पदंश का शिकार हो चुके हैं। जिनमें वर्ष 2011 में 476, 2012 में 487, 2013 में 571, 2014 में 728, 2015 में 790 तथा वर्ष 2016 में 878 लोग शामिल हैं। ऐसे में जिलावार इन आंकडों का विश्लेषण करें तो कांगडा में सबसे अधिक 905 जबकि लाहुल एवं स्पिति में सबसे कम दो मामले सर्पदंश के गत 6 वर्षों के दौरान सामने आए हैं। इसके अतिरिक्त जिला मंडी में 473, सोलन में 467, हमीरपुर में 436, शिमला में 398, चंबा में 378, बिलासपुर में 312, सिरमौर में 279, ऊना में 224, कुल्लू में 135 तथा किन्नौर जिला में 28 मामले सर्पदंश के सामने आ चुके हैं। अगर आंकडों की बात करें तो वर्ष 2011 से लेकर 2016 तक प्रदेश में सर्पदंश के मामलों में लगभग एक सौ फीसदी की वृद्धि दर्ज की हुई है। ऐसे में कहा जा सकता है कि प्रदेश में सर्पदंश के मामले लगातार बढ़ रहे हैं तथा सर्पदंश को लेकर लोगों को जागरूक होने की बेहद जरूरत है। 
सर्वेक्षण की ही बात करें तो प्रदेश मेें जून से नवम्बर माह के दौरान सर्पदंश के अधिकत्तर मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे में इन महीनों के दौरान लोगों को विशेष एहतियात बरतने की जरूरत है। विशेषकर बरसात के मौसम के दौरान लोगों को चप्पल पहनकर जंगलों व खेतों में घास काटने से परहेज करना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि लोग जूतों के साथ-साथ पूरी बाहों की कमीज पहनकर खेतों व घासनियों में काम करने जाएं। अंधेरे में बाहर जाने पर टॉर्च को साथ रखें तथा रोशनी के लिए इसका इस्तेमाल करें। इसके अतिरिक्त भूमि पर सोने से भी सर्पदंश का खतरा बना रहता है इसलिए जमीन पर सोने से परहेज करना चाहिए। यदि किसी भी व्यक्ति को सर्पदंश हो जाए तो पीडित का झांडफूंक के बजाए सीधे अपने नजदीकी अस्पताल ले जाकर ईलाज करवाना चाहिए। स्वास्थ्य संस्थानों में सर्पदंश के लिए एंटीस्नेक वेलम उपलब्ध रहती है। इसके अलावा 108 एंबुलेंस को भी तुरन्त सूचित करना चाहिए, क्योंकि 108 एंबुलेंस में सांप के काटने पर लगने वाला एंटी स्नेक टीका उपलब्ध रहता है तथा प्रभावित व्यक्ति का अस्पताल पहुंचने से पहले ही तुरंत ईलाज आरंभ हो जाता है।
सर्पदंश को लेकर चिकित्सकों का कहना है कि सांप के काटने पर उस जगह को बांधना नहीं चाहिए, क्योंकि बांधने से खून का प्रवाह रुक जाता है, जिससे जहर उस जगह पर ज्यादा असर करता है। साथ ही सर्पदंश की जगह पर किसी चाकू या ब्लेड से कोई चीरफाड़ नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से जहर जल्दी फैलता है। काटने वाली जगह के नजदीकी जोड़ को हिलाना नहीं चाहिए और बिना समय बर्वाद किये पीडित व्यक्ति को नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र में पहुंचाया जाना चाहिए। 
चिकित्सकों का कहना है कि काटने वाली जगह पर दर्द, खून का बहना, गले या पेट में दर्द, आंखें खोलने में परेशानी, बेहोशी, पेशाव कम आना या सांस का रुकना इत्यादि सर्पदंश के मुख्य लक्ष्णों में शामिल हैं। चिकित्सकों का यह भी मानना है कि बहुत से सांप जहरीले नहीं होते, लेकिन कई बार सांप के काटने पर घबराहट से दिल की धडकऩ बढ़ जाने से गंभीर स्थिति उपत्पन्न हो जाती है।
इसलिए यदि कोई भी व्यक्ति सर्पदंश का शिकार होता है तो ऐसे व्यक्ति को झाडफूंक पर समय बर्बाद करने के बजाए चिकित्सा उपचार के लिए तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र में ले जाया जाना चाहिए ताकि सर्पदंश के कारण अनमोल जिंदगी को बचाया जा सके।


Wednesday, 14 June 2017

मुख्य मंत्री राज्य स्वास्थ्य देखभाल योजना के तहत जिला ऊना में 15815 व्यक्ति पंजीकृत

सामान्य बीमारी में तीस हजार जबकि गंभीर बीमारी में पौने दो लाख तक का मिलता है फ्री ईलाज 
हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्रदेश के ऐसे हजारों अस्थाई कर्मचारियों के लिए बीमारी जैसी मुश्किल घडी में राहत प्रदान करने के लिए मुख्य मंत्री राज्य स्वास्थ्य देखभाल बीमा योजना को लागू किया है जिन्हे सरकारी स्तर पर स्वयं या परिजनों को चिकित्सा सुविधा के लिए न तो चिकित्सा भत्ता प्रदान किया जाता है न ही नियमित कर्मचारियों की तर्ज पर उनके चिकित्त्सा बिलों का भुगतान हो पाता है। इसी योजना के अंतर्गत जिला ऊना में अब तक लगभग 15815 कर्मचारियों व व्यक्तियों को पंजीकृत किया जा चुका है। जिनमें हरोली ब्लॉक में 2077, अंब में 3918, बंगाणा में 2739, ऊना में 5362 तथा गगरेट ब्लॉक में 1719 कर्मचारियों का पंजीकरण शामिल है। 
शतप्रतिशत राज्य सरकार द्वारा पोषित मुख्य मंत्री राज्य स्वास्थ्य देखभाल योजना के तहत प्रदेश की ऐसी 9 विभिन्न श्रेणीयों जिनमें 80 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिक, ऐसी एकल महिलाएं जो विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्त, पति लापता या अविवाहित हो, विभिन्न सरकारी विभागों, निगमों, बोर्डो इत्यादि में कार्यरत दैनिक वेतनभोगी व अंशकालिक कर्मचारी, आंगनवाडी वर्कर व हैल्पर, मिड-डे-मील वर्कर, राज्य सरकार के विभिन्न विभागों, निगमों, बोर्डों इत्यादि में अनुबंध पर कार्यरत कर्मचारी एवं 70 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों को शामिल किया गया है। इस योजना के तहत पात्र परिवार के पांच व्यक्तियों जिसमें परिवार का मुखिया, उसकी पत्नी तथा उन पर आश्रित तीन सदस्य शामिल है को प्रदेश सरकार द्वारा चिन्हित अस्पातलों व स्वास्थ्य संस्थानों में सामान्य बीमारी में भर्ती होने पर प्रति परिवार प्रतिवर्ष अधिकत्तम तीस हजार रूपये जबकि गंभीर बीमारी में एक लाख पचहत्तर हजार रूपये तक का नि:शुल्क (कैशलेस) ईलाज की सुविधा इस योजना के तहत जारी स्मार्ट कार्ड के माध्यम से दी जा रही हैं।
इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र व्यक्ति को तीस रूपये शुल्क अदा कर स्मार्ट कार्ड जारी किया जा रहा जो पांच वर्षों के लिए मान्य होगा जबकि तीन वर्ष बाद इसका नवीनीकरण किया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत जारी स्मार्ट कार्ड के माध्यम से ही चिन्हित स्वास्थ्य संस्थानों में नि:शुल्क (कैशलेस) चिकित्सा सुविधा का लाभ दिया जा रहा है। स्मार्ट कार्ड में किसी भी सदस्य का नाम हटाना या जोडना हो तो लाभार्थी बीमा कम्पनी द्वारा स्थापित जिला कियोस्क केन्द्र जिसे क्षेत्रीय अस्पताल ऊना में स्थापित है में जाकर परिवर्तन करा सकता है। 
इस योजना के तहत सामान्य बीमारी होने पर प्रदेश के 174 अस्पतालों को चिन्हित किया गया है, जहां पर किसी भी बीमारी के दौरान भर्ती होने पर फ्री (कैशलेस) चिकित्त्सा सुविधा मिलेगी। जबकि किसी भी गंभीर बीमारी के दौरान यह सुविधा आईजीएमसी शिमला, डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल टांडा कांगडा तथा पीजीआई चंडीगढ़ शामिल है में मिलेगी।
क्या कहते हैं अधिकारी
मुख्य चिकित्सा अधिकारी ऊना डॉ0 प्रकाश दडोच ने बताया कि मुख्य मंत्री स्वास्थ्य देखभाल योजन के तहत जिला में पात्र व्यक्तियों का पंजीकरण किया जा रहा है तथा अबतक 15815 लोगों को इस योजना के तहत जोडा जा चुका है। उन्होने बताया कि जिला में यदि कोई भी पात्र व्यक्ति इस योजना के तहत अभी तक पंजीकृत नहीं हुआ है तो वह निर्धारित प्रपत्र पर मांगी गई संपूर्ण जानकारी के साथ अपना आवेदन संबंधित विभाग से सत्यापित करवाकर जिला अस्पताल में स्थापित विशेष कक्ष में प्रस्तुत कर सकता है। उन्होने बताया कि इस संबंध में पात्र व्यक्ति क्षेत्रीय अस्पताल ऊना में स्थापित कियोस्क केन्द्र से अधिक जानकारी हासिल कर सकते हैं।







Saturday, 3 June 2017

धार्मिक आस्था एवं सांस्कृतिक मिलन का प्रतीक है ऐतिहासिक पिपलू मेेला

इस वर्ष 4 से 6 जून तक मनाया जा रहा जिला स्तरीय पिपलू मेला
हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला के बंगाणा से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर प्रतिवर्ष लगने वाला वार्षिक पिपलू मेला जहां हमारी धार्मिक आस्था व श्रद्धा का प्रतीक है तो वहीं प्राचीन समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी सदियों से संजोए हुए है। बदलते वक्त के साथ-साथ हमारे प्राचीन मेलों का स्वरूप भले ही बदला हो लेकिन ऐतिहासिक पिपलू मेला आज भी अपनी प्राचीन सांस्कृतिक स्वरूप में कुछ हद तक यथावथ देखा जा सकता है। पिपलू गांव में पिपल के पेड के नीचे शीला के रूप में विराजमान भगवान नरसिंह के दर्शनों के लिए मेला अवधि के दौरान हजारों लोग शिरकत करते हैं तथा भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
पिपलू गांव में भगवान नरसिंह से जुड़ी अनेक जनश्रुतियां प्रचलित है जिनमें से एक जनश्रुति के अनुसार पास के हटली गांव में एक उतरू नाम का किसान अपने खेत में काम कर रहा था। लेकिन अचानक उसकी दराती मली के एक पौधे में फंस गई तदोपरान्त पौधे को साफ करते हुए उसके नीचे एक शीला दिखाई दी। लेकिन उतरू ने शिला की ओर कोई ध्यान नहीं दिया तथा खेत को साफ कर वहां से चला गया। परन्तु रात्रि स्वपन्न में उसने देखा की भगवान विष्णु उससे कह रहे हैं, मुझे खेत में नग्र छोडक़र तुम स्वयं बड़े आनंद से यहां सो रहे हो। उन्होने कहा कि मुझे अब वहां धूप और ठंड लगेगी साथ ही मुझ पर बारिश भी गिरेगी। दूसरे दिन उतरू फिर उसी खेत में पहुंचा तथा वहां से शिला को उठाकर पशुशाला में रख दिया और स्वयं चारपाई में जाकर सोने लगा। परन्तु अभी वह मुश्किल से चारपाई पर सोया ही था कि वह चारपाई से नीचे गिर पडा। जैसे ही वह चारपाई में सोने का प्रयास करता वैसे ही वह नीचे गिर पडता। इस दौरान पशुशाला में उसके पशु भी जोर-जोर से चिल्लाने लग पडे। तब उसने भगवान विष्णु को याद किया तथा दर्शन देने की प्रार्थना करने लगा। भगवान विष्णु ने दर्शन देकर कहा कि तुम मेरी पिंडी को बाजे बजाते हुए सूखे पीपल पेड के नीचे रख दो।
भगवान नरसिंह के दर्शनों के लिए पहुंचे श्रद्धालु (फाईल फोटो)
दतोपरांत उतरू सूखा पीपल का पेड़ ढ़ूढ़ते-ढूढ़ते झगरोट गांव आ पहुंचा जहां उसे सूखा पीपल का पेड़ दिखाई दिया। उतरू ने शीला को पीपल के पेड़ के नीचे स्थापित करवा दिया तथा स्थापना के आठवें दिन सूखे पीपल से कोंपलें फूटने लगीं और कुछ ही दिनों में यह पेड़ हरा-भरा हो गया। उतरू ने प्रतिदिन यहां आकर पूजा-अर्चना आरंभ कर दी तथा धीरे-धीरे इस स्थान का नाम पिपलू पड़ गया और लोगों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होने लग पड़ीं।
प्रदेश के तीन जिलों की सांस्कृतिक मिलन का प्रतीक यह मेला आज भी प्राचीन रंग में रंगा हुआ नजर आता है तथा लोगों की आस्था में वह जोश आज भी यथावथ बना हुआ है। प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की निर्जला एकादशी को आयोजित होने वाले इस मेले में ऊना, हमीरपुर तथा कांगड़ा जिलों के अतिरिक्त प्रदेश व प्रदेश के बाहर से हजारों श्रद्धालु भगवान नरसिंह के दर्शनों के लिए यहां पहुंचते हैं। मेले के दौरान जहां स्थानीय लोग अपनी नई फसल को भगवान नरसिंह के चरणों में चढ़ाते हैं तो वहीं भगवान का आशीर्वाद भी प्राप्त कर धन्य होते हैं। 
मेले के दौरान टमक बजाता श्रद्धालु (फाईल फोटो)
मेले के दौरान सदियों से बजती आ रही टमक की धमक आज भी पिपलू मेला में वैसे ही है जैसे सैंकडों वर्ष पूर्व रही है। लोग आज भी टमक की मधुर धुन में रंगे हुए नजर आते हैं। मेले के दौरान इलाके के विभिन्न स्थानों से नाचने गाने वालों की अलग-अलग टोलियां वाद्ययंत्रों के साथ एक दूसरे को ललकारती हुई पीपल की परिक्रमा करती थी, परन्तु आज वर्षों पुरानी यह परंपरा भी अब लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। मेले के दौरान जगह-जगह लोगों द्वारा छबीलें भी लगाई जाती हैं। भले ही आज बदलते वक्त के साथ-साथ हमारी परंपराएं काफी तेजी से बदली है लेकिन पिपलू मेला अभी भी अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है।
मेले के स्वरूप को बढ़ावा देने के लिए कुछ वर्ष पूर्व इसे प्रदेश सरकार ने जिला स्तरीय मेला घोषित कर दिया। अब मेले के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त विभिन्न खेल स्पर्धाएं भी अयोजित की जाती हैं। इस वर्ष मेले का आयोजन 4 से 6 जून के दौरान किया जा रहा है।









Friday, 5 May 2017

स्वयं सहायता समूह बनाकर देहलां की महिलाओं ने स्वावलंबन की ओर बढ़ाए कदम

गांव में ही वाशिंग पाऊडर बनाकर आर्थिकी को प्रदान कर रही है मजबूती
कहावत है यदि व्यक्ति के मन में कुछ करने की चाह हो तो विकट परिस्थितियां भी उसे आगे बढऩे से नहीं रोक सकती हैं। कमोवेश कुछ यही कर दिखाया है ऊना विकास खंड की ग्राम पंचायत लोअर देहलां की 20 ग्रामीण महिलाओं ने। गांव की यह 20 महिलाएं कपडे धोने का वाशिंग पाऊडर (सर्फ) बनाकर न केवल सरकार के महिला शक्तिकरण के उदेश्य को साकार करने में एक कदम आगे बढ़ी है बल्कि साबित कर दिया है कि यदि थोडी सी हिम्मत के साथ सकारात्मक प्रयास किए जाएं तो कुछ करना असंभव नहीं है। आज गांव की यह 20 महिलाएं मिलकर वाशिंग पाऊडर (सर्फ) तैयार कर अपनी सफलता की कहानी को खुद लिखने जा रही हैं।
यह कहानी है ऊना विकास खंड के अंतर्गत ग्राम पंचायत लोअर देहलां की 20 महिलाओं की है। इन महिलाओं ने कृषि विभाग के सहयोग से वर्ष 2016 में बाबा भाई पैहलों स्वयं सहायता समूह बनाया। समूह बनने के बाद सभी महिलाओं ने एक सौ रूपये प्रतिमाह की दर से बचत शुरू की तथा बचत को रखने के लिए स्थानीय कांगडा सहकारी बैंक की शाखा में बचत खाता खोल दिया। महिलाओं ने एक दूसरे की आर्थिक मदद करने के लिए दो प्रतिशत पर इंटरलोनिंग तथा समूह से बाहर के लोगों को पांच प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण मुहैया करवाने की शुरूआत की। इससे न केवल समूह बल्कि गांव की अन्य महिलाओं को जरूरत पडने पर सस्ती ब्याज दरों पर ऋण की सुविधा गांव में ही उपलब्ध हो गई। लेकिन समूह की महिलाओं में इससे भी आगे बढक़र कुछ बेहतर करने का जज्बा था, लेकिन सही मार्गदर्शन न होने के कारण वह अनिर्णय की स्थिति में रही। लेकिन समूह के हौंसले को उस वक्त एक नया लक्ष्य मिल गया जब फरवरी, 2017 में उन्हे कृषि विभाग के सौजन्य से एक दिन का कपडे धोने का वाशिंग पाऊडर तैयार करने का प्रशिक्षण हासिल हुआ। प्रशिक्षण के बाद समूह की सभी महिलाओं ने सर्फ तैयार करने का निर्णय लिया। आज समूह की महिलाएं गांव में ही वाशिंग पाऊडर (सर्फ) तैयार कर धीरे-धीरे अपनी आर्थिकी को मजबूती प्रदान करने में लगी हैं।
स्वयं सहायता समूह की महिलाएं तैयार वाशिंग पाउडर के साथ
जब इस बारे समूह की प्रधान अनीता कुमारी से बातचीत की तो उनका कहना है कि समूह की सभी महिलाएं स्थानीय मंदिर में महीने या फिर दो सप्ताह बाद इक्टठी होकर वाशिंग पाउडर को तैयार करती हैं तथा एक बार में कम से कम एक क्विटल तक वाशिंग पाऊडर तैयार किया जाता है। उनका कहना है कि समूह ने फरवरी, 2017 से अब तक लगभग पांच क्विंटल वाशिंग पाऊडर तैयार किया है जिसमें से लगभग साढ़े चार क्विंटल तक बिक चुका है। उनका कहना है कि उनका सर्फ प्रति किलो 45 रूपये की दर से गांव व आसपास के क्षेत्रों में बिक रहा है। उनका कहना है कि वाशिंग पाऊडर तैयार करने के लिए कच्चे माल को प्रदेश के बाहर जाकर लुधियाना या फिर दूसरे शहरों से लाना पडता है जिससे डिटर्जेंट तैयार करने की न केवल लागत बढ़ जाती है बल्कि मुनाफे में भी कमी आती है। उनका कहना है कि आज समूह के लिए सबसे बडी समस्या सर्फ की पैकेजिंग की है। उनका कहना है कि यदि सरकार उन्हे पैकेजिंग की ट्रेनिंग मुहैया करवा दे तो वह अपने उत्पाद को बडी कंपनियों की तर्ज पर मार्केट में उतार सकती हैं। उन्होने इस बारे महिलाओं को ग्रामीण स्तर पर ही बेहतर प्रशिक्षण करवाने की वकालत भी की ताकि समूह वर्तमान बाजार की जरूरतों के आधार पर वाशिंग पाऊडर का उत्पादन कर सके।
जब इस बारे स्थानीय पंचायत प्रधान देवेन्द्र कुमार से बातचीत की तो उन्होने समूह के प्रयासों की सराहना की तथा कहा कि समूह द्वारा तैयार उत्पाद ग्रामीण स्तर पर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे इसके लिए पंचायत उन्हे डिटर्जेंट विक्रय के लिए एक बेहतर स्थान मुहैया करवाने का प्रयास करेगी। उन्होने बताया कि पंचायत में महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से सशक्त बनाने के लिए अबतक राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत 10 समूहों का गठन कर लिया गया है।