घरों में रहती, आंगन में फुदकती, घरों की छतों, आसपास के पेड़-पौधों की टहनियों में चीं-चीं कर कौतुहल मचाने और फंख फड़फड़ाते हुए चहल कदमी करने वाली गौरया यानि चिड़िया अब जहां ये शहरी क्षेत्रों से लगभग गायब सी हो गई है तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी इनकी संख्या में तेजी से गिरावट दर्ज हुई है। अक्सर हमारे घरों के आसपास नजर आने वाली ये गौरया अब कहीं-कहीं ही नजर आती है। घास के बीज, कीड़े-मकौड़े और अनाज खाकर अपनी बसर करने वाली इस सुन्दर चिड़िया (गौरया) के समूह घर के आसपास, बस स्टाॅप, रेलवे स्टेशन इत्यादि स्थानों पर अक्सर देखने को मिल जाते थे। परन्तु आज यह दुनिया की एक विलुप्त होने वाली प्रजाति बन गई है। भारत में ही नहीं अपितु दुनिया के कई देशों जैसे ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, फिनलैंड़ इत्यादि देशों में भी गौरया की संख्या में भारी कमी पायी गई है। गौरया की घटती संख्या को लेकर पूरे विश्व में 20 मार्च को विश्व घरेलू गौरया दिवस के रुप में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उदेश्य जहां लोगों को इसके बारे में जागरुक करना है तो वहीं उनकी समस्याओं पर भी रोशनी ड़ालना है। इसलिए 20 मार्च को दुनियाभर में गौरया को लेकर विभिन्न संगठनों, स्वयंसेवी व शैक्षणिक संस्थाओं, पर्यावरण व पशु-पक्षी प्रेमियों इत्यादि द्वारा जागरुकता कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।
पूरी दुनिया में गाने वाली चिड़िया के नाम से मशहूर गौरया एक सामाजिक पक्षी भी है। यह पूरे साल भर समूह में रहती है तथा भोजन की तलाश में ड़ेढ़ से दो मील तक की दूरी तय कर सकती है। इस घरेलू गौरया को एक समझदार चिड़िया भी माना जाता है क्योंकि यह घोसलों की जगह, खाने और आश्रय स्थल के बारे में बदलाव की क्षमता रखती है। गौरया मुख्यरुप से हरे बीज, अन्न इत्यादि को ही अपना भोजन बनाती है, परन्तु खाद्यान्न न मिलने पर यह अपने भोजन में परिवर्तन लाने में भी सक्षम होती है। इसके अतिरिक्त यह कीड़े-मकोड़े भी खा लेती है।
लंबाई में 14-16 सेंटीमीटर के इस पक्षी के पंखों की लंबाई 19-25 सेंटीमीटर तक होती है, जबकि इसका वजन 26-32 ग्राम तक होता है। नर गौरया का शीर्ष व गाल तथा अंदरुनी हिस्से भूरे जबकि गला, छाती का उपरी हिस्सा श्वेत होता है। इसी तरह मादा गौरया के सिर पर काला रंग नहीं पाया जाता है, बच्चों का रंग गहरा भूरा होता है। गौरया एक बार में कम से कम तीन अंड़े देती है। इसका गर्भधारण काल 10-12 दिन का होता है।
आज पूरी दुनिया में गौरया की घटती संख्या के पीछे कोई एक प्रमुख कारण सामने नहीं आया है। लेकिन वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों, पर्यावरण व पक्षी प्रेमियांे का मानना है कि हमारे शहरी पारिस्थितिक तंत्र में पिछले कुछ समय से आये कठोर बदलाव के चलते गौरया की संख्या को बुरी तरह से प्रभावित किया है तथा इनकी यह संख्या अब लगातार कम होती जा रही है। इसके अतिरिक्त मोबाईल टावरों से निकलने वाली विकिरण और आधुनिक खेती में रासायनिक उर्वरकों के ज्यादा प्रयोग के चलते भी इनकी समस्या में बढ़ौतरी की है। जिन्हे आज गौरया के मरने के लिए एक प्रमुख कारण के रुप में पहचाना गया है। इसके अतिरिक्त यह देखने में भी आया है कि कुछेक लोग गौरया को कामोत्तेजक और गुप्त रोगों के पक्के इलाज के लिए दवा के तौर पर बेचते हैं, जिससे भी इनका शिकार बढ़ा है। इसके अतिरिक्त सीसे रहित पैट्रोल का प्रयोग होना भी इनकी घटती संख्या के पीछे एक प्रमुख कारण के तौर पर सामने आ रहा है। क्योंकि पैट्रोल के जलने से मिथाइल नाइट्रेट जैसे खतरनाक पदार्थ निकलते हैं, जो छोटे कीड़े-मकोड़े के लिए जानलेवा होते हैं, जबकि यही कीड़े-मकोड़े गौरया के बच्चों के भोजन का मुख्य अंग होते हंै। इसके अलावा ग्रामीण परिवेश में भी बदलती जीवन शैली और भवन निर्माण में आधुनिक तरीकों से गौरया के अवास पर प्रभाव पड़ा है। क्योंकि गौरया अक्सर हमारे घरों की छतों व इसके आसपास ही अपना आवास बनाती है। इसके अतिरिक्त हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि गौरया मुख्य जैव संकेतक पक्षी है और इनकी कमी शहरी पर्यावरण के क्षरण का सूचक तथा दीर्घकाल में मानव जाति पर आने वाले खतरे का सूचक भी है। ऐसे में अब समय आ गया है कि हम सब मिलकर दुनिया से विलुप्त होती इस खूबसूरत गौरया (चिड़िया) को बचाने के लिए जहां प्रत्येक व्यक्ति अपने स्तर पर स्वयं पहल करे तो वहीं अपने आसपास लोगों को भी जागरुक करने में अपनी भूमिका निभाए। ताकि दुनिया से विलुप्त होती इस खूबसूरत प्रजाति गौरया को बचाया जा सके।
(साभार: आपका फैसला, 20 मार्च, 2013 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)