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Wednesday, 14 June 2017

मुख्य मंत्री राज्य स्वास्थ्य देखभाल योजना के तहत जिला ऊना में 15815 व्यक्ति पंजीकृत

सामान्य बीमारी में तीस हजार जबकि गंभीर बीमारी में पौने दो लाख तक का मिलता है फ्री ईलाज 
हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्रदेश के ऐसे हजारों अस्थाई कर्मचारियों के लिए बीमारी जैसी मुश्किल घडी में राहत प्रदान करने के लिए मुख्य मंत्री राज्य स्वास्थ्य देखभाल बीमा योजना को लागू किया है जिन्हे सरकारी स्तर पर स्वयं या परिजनों को चिकित्सा सुविधा के लिए न तो चिकित्सा भत्ता प्रदान किया जाता है न ही नियमित कर्मचारियों की तर्ज पर उनके चिकित्त्सा बिलों का भुगतान हो पाता है। इसी योजना के अंतर्गत जिला ऊना में अब तक लगभग 15815 कर्मचारियों व व्यक्तियों को पंजीकृत किया जा चुका है। जिनमें हरोली ब्लॉक में 2077, अंब में 3918, बंगाणा में 2739, ऊना में 5362 तथा गगरेट ब्लॉक में 1719 कर्मचारियों का पंजीकरण शामिल है। 
शतप्रतिशत राज्य सरकार द्वारा पोषित मुख्य मंत्री राज्य स्वास्थ्य देखभाल योजना के तहत प्रदेश की ऐसी 9 विभिन्न श्रेणीयों जिनमें 80 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिक, ऐसी एकल महिलाएं जो विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्त, पति लापता या अविवाहित हो, विभिन्न सरकारी विभागों, निगमों, बोर्डो इत्यादि में कार्यरत दैनिक वेतनभोगी व अंशकालिक कर्मचारी, आंगनवाडी वर्कर व हैल्पर, मिड-डे-मील वर्कर, राज्य सरकार के विभिन्न विभागों, निगमों, बोर्डों इत्यादि में अनुबंध पर कार्यरत कर्मचारी एवं 70 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों को शामिल किया गया है। इस योजना के तहत पात्र परिवार के पांच व्यक्तियों जिसमें परिवार का मुखिया, उसकी पत्नी तथा उन पर आश्रित तीन सदस्य शामिल है को प्रदेश सरकार द्वारा चिन्हित अस्पातलों व स्वास्थ्य संस्थानों में सामान्य बीमारी में भर्ती होने पर प्रति परिवार प्रतिवर्ष अधिकत्तम तीस हजार रूपये जबकि गंभीर बीमारी में एक लाख पचहत्तर हजार रूपये तक का नि:शुल्क (कैशलेस) ईलाज की सुविधा इस योजना के तहत जारी स्मार्ट कार्ड के माध्यम से दी जा रही हैं।
इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र व्यक्ति को तीस रूपये शुल्क अदा कर स्मार्ट कार्ड जारी किया जा रहा जो पांच वर्षों के लिए मान्य होगा जबकि तीन वर्ष बाद इसका नवीनीकरण किया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत जारी स्मार्ट कार्ड के माध्यम से ही चिन्हित स्वास्थ्य संस्थानों में नि:शुल्क (कैशलेस) चिकित्सा सुविधा का लाभ दिया जा रहा है। स्मार्ट कार्ड में किसी भी सदस्य का नाम हटाना या जोडना हो तो लाभार्थी बीमा कम्पनी द्वारा स्थापित जिला कियोस्क केन्द्र जिसे क्षेत्रीय अस्पताल ऊना में स्थापित है में जाकर परिवर्तन करा सकता है। 
इस योजना के तहत सामान्य बीमारी होने पर प्रदेश के 174 अस्पतालों को चिन्हित किया गया है, जहां पर किसी भी बीमारी के दौरान भर्ती होने पर फ्री (कैशलेस) चिकित्त्सा सुविधा मिलेगी। जबकि किसी भी गंभीर बीमारी के दौरान यह सुविधा आईजीएमसी शिमला, डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल टांडा कांगडा तथा पीजीआई चंडीगढ़ शामिल है में मिलेगी।
क्या कहते हैं अधिकारी
मुख्य चिकित्सा अधिकारी ऊना डॉ0 प्रकाश दडोच ने बताया कि मुख्य मंत्री स्वास्थ्य देखभाल योजन के तहत जिला में पात्र व्यक्तियों का पंजीकरण किया जा रहा है तथा अबतक 15815 लोगों को इस योजना के तहत जोडा जा चुका है। उन्होने बताया कि जिला में यदि कोई भी पात्र व्यक्ति इस योजना के तहत अभी तक पंजीकृत नहीं हुआ है तो वह निर्धारित प्रपत्र पर मांगी गई संपूर्ण जानकारी के साथ अपना आवेदन संबंधित विभाग से सत्यापित करवाकर जिला अस्पताल में स्थापित विशेष कक्ष में प्रस्तुत कर सकता है। उन्होने बताया कि इस संबंध में पात्र व्यक्ति क्षेत्रीय अस्पताल ऊना में स्थापित कियोस्क केन्द्र से अधिक जानकारी हासिल कर सकते हैं।







Saturday, 3 June 2017

धार्मिक आस्था एवं सांस्कृतिक मिलन का प्रतीक है ऐतिहासिक पिपलू मेेला

इस वर्ष 4 से 6 जून तक मनाया जा रहा जिला स्तरीय पिपलू मेला
हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला के बंगाणा से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर प्रतिवर्ष लगने वाला वार्षिक पिपलू मेला जहां हमारी धार्मिक आस्था व श्रद्धा का प्रतीक है तो वहीं प्राचीन समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी सदियों से संजोए हुए है। बदलते वक्त के साथ-साथ हमारे प्राचीन मेलों का स्वरूप भले ही बदला हो लेकिन ऐतिहासिक पिपलू मेला आज भी अपनी प्राचीन सांस्कृतिक स्वरूप में कुछ हद तक यथावथ देखा जा सकता है। पिपलू गांव में पिपल के पेड के नीचे शीला के रूप में विराजमान भगवान नरसिंह के दर्शनों के लिए मेला अवधि के दौरान हजारों लोग शिरकत करते हैं तथा भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
पिपलू गांव में भगवान नरसिंह से जुड़ी अनेक जनश्रुतियां प्रचलित है जिनमें से एक जनश्रुति के अनुसार पास के हटली गांव में एक उतरू नाम का किसान अपने खेत में काम कर रहा था। लेकिन अचानक उसकी दराती मली के एक पौधे में फंस गई तदोपरान्त पौधे को साफ करते हुए उसके नीचे एक शीला दिखाई दी। लेकिन उतरू ने शिला की ओर कोई ध्यान नहीं दिया तथा खेत को साफ कर वहां से चला गया। परन्तु रात्रि स्वपन्न में उसने देखा की भगवान विष्णु उससे कह रहे हैं, मुझे खेत में नग्र छोडक़र तुम स्वयं बड़े आनंद से यहां सो रहे हो। उन्होने कहा कि मुझे अब वहां धूप और ठंड लगेगी साथ ही मुझ पर बारिश भी गिरेगी। दूसरे दिन उतरू फिर उसी खेत में पहुंचा तथा वहां से शिला को उठाकर पशुशाला में रख दिया और स्वयं चारपाई में जाकर सोने लगा। परन्तु अभी वह मुश्किल से चारपाई पर सोया ही था कि वह चारपाई से नीचे गिर पडा। जैसे ही वह चारपाई में सोने का प्रयास करता वैसे ही वह नीचे गिर पडता। इस दौरान पशुशाला में उसके पशु भी जोर-जोर से चिल्लाने लग पडे। तब उसने भगवान विष्णु को याद किया तथा दर्शन देने की प्रार्थना करने लगा। भगवान विष्णु ने दर्शन देकर कहा कि तुम मेरी पिंडी को बाजे बजाते हुए सूखे पीपल पेड के नीचे रख दो।
भगवान नरसिंह के दर्शनों के लिए पहुंचे श्रद्धालु (फाईल फोटो)
दतोपरांत उतरू सूखा पीपल का पेड़ ढ़ूढ़ते-ढूढ़ते झगरोट गांव आ पहुंचा जहां उसे सूखा पीपल का पेड़ दिखाई दिया। उतरू ने शीला को पीपल के पेड़ के नीचे स्थापित करवा दिया तथा स्थापना के आठवें दिन सूखे पीपल से कोंपलें फूटने लगीं और कुछ ही दिनों में यह पेड़ हरा-भरा हो गया। उतरू ने प्रतिदिन यहां आकर पूजा-अर्चना आरंभ कर दी तथा धीरे-धीरे इस स्थान का नाम पिपलू पड़ गया और लोगों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होने लग पड़ीं।
प्रदेश के तीन जिलों की सांस्कृतिक मिलन का प्रतीक यह मेला आज भी प्राचीन रंग में रंगा हुआ नजर आता है तथा लोगों की आस्था में वह जोश आज भी यथावथ बना हुआ है। प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की निर्जला एकादशी को आयोजित होने वाले इस मेले में ऊना, हमीरपुर तथा कांगड़ा जिलों के अतिरिक्त प्रदेश व प्रदेश के बाहर से हजारों श्रद्धालु भगवान नरसिंह के दर्शनों के लिए यहां पहुंचते हैं। मेले के दौरान जहां स्थानीय लोग अपनी नई फसल को भगवान नरसिंह के चरणों में चढ़ाते हैं तो वहीं भगवान का आशीर्वाद भी प्राप्त कर धन्य होते हैं। 
मेले के दौरान टमक बजाता श्रद्धालु (फाईल फोटो)
मेले के दौरान सदियों से बजती आ रही टमक की धमक आज भी पिपलू मेला में वैसे ही है जैसे सैंकडों वर्ष पूर्व रही है। लोग आज भी टमक की मधुर धुन में रंगे हुए नजर आते हैं। मेले के दौरान इलाके के विभिन्न स्थानों से नाचने गाने वालों की अलग-अलग टोलियां वाद्ययंत्रों के साथ एक दूसरे को ललकारती हुई पीपल की परिक्रमा करती थी, परन्तु आज वर्षों पुरानी यह परंपरा भी अब लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। मेले के दौरान जगह-जगह लोगों द्वारा छबीलें भी लगाई जाती हैं। भले ही आज बदलते वक्त के साथ-साथ हमारी परंपराएं काफी तेजी से बदली है लेकिन पिपलू मेला अभी भी अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है।
मेले के स्वरूप को बढ़ावा देने के लिए कुछ वर्ष पूर्व इसे प्रदेश सरकार ने जिला स्तरीय मेला घोषित कर दिया। अब मेले के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त विभिन्न खेल स्पर्धाएं भी अयोजित की जाती हैं। इस वर्ष मेले का आयोजन 4 से 6 जून के दौरान किया जा रहा है।