(सच्ची घटना पर आधारित सामाजिक प्रेरक प्रसंग) जीवन कई खटटे मीठे अनुभवों की खान होती है। ऐसे अनुभव न केवल हमें जीवन के वास्तविक रंगों से रू-ब-रू करवाते हैं बल्कि समाज और आसपास के परिवेश को भी देखने, समझने व जानने का मौका मिलता है। हमारा समाज जहां नेक दिल व दूसरों के प्रति समर्पित रहने वाले लोगों से भरा पड़ा है तो उसी समाज में कुछ ऐसे परजीवी भी होते हैं जो दूसरों के हक हकूकों को छीनकर स्वयं को सिकन्दर साबित करने का असफल प्रयास करते रहते हैं।
लेकिन यदि नियति पर जाएं तो हमेशा सच्चा व नेक दिल इंसान ही जीवन में न केवल मोक्ष को प्राप्त करता है बल्कि जीवन भी उसी व्यक्ति का सफल होता है। यहां सफलता महज ऊंचा रूतबा, पद, प्रतिष्ठा या फिर आर्थिक व भौतिक सुख सुविधाओं से नहीं बल्कि व्यक्ति की अंतरआत्मा व ईश्वर के प्रति श्रद्धाभाव से जुड़ा हुआ है। लेकिन अब आपको यह लग रहा होगा कि आखिर मैं यहां क्या कहना चाह रहा हूं। वास्तव में आप सभी के साथ समाज की उस पीड़ा को साझा करना चाहता हूं जो व्यक्ति जीवन की पीड़ा से न केवल ग्रसित होता है बल्कि लड़ भी रहा होता है। जिसकी गहराई का अंदाजा न कोई इंसान लगा सकता है न ही एक सामान्य इंसान उसे महसूस कर पाता है। लेकिन जब वह पीड़ा शब्दों से ज्यादा भावनाओं के माध्यम से व्यक्त की जाने लगे तो इसी से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वास्तव में पीड़ा का दर्द गिनता भयंकर व अंर्तमन तक उसे चोटिल कर रहा होता है।
यहां में एक ऐसी सच्ची व हृदय विदारक घटना को आप सभी से साझा करना चाह रहा हूं, हुआ यूं कि पिछले दिनों प्रदेश के मुख्य मंत्री अपने दौरे पर थे। इस दौरान कई लोगों ने अपनी पीड़ा व दुख को मुख्य मंत्री के समक्ष न केवल रखा बल्कि आर्थिक मदद की भी गुहार लगाई। सीएम साहब ने भी आर्थिक मदद को न केवल तेजी से हाथ आगे बढ़ाए बल्कि समयबद्ध आर्थिक मदद भी पीडि़त परिवार तक पहुंच गई। एक जन संपर्क कर्मी के नाते इसका व्यापक प्रचार-प्रसार हो तो लाभार्थी के घर हम पहुंच गये। घर पहुंचकर जब पीडि़त परिवार से बातचीत की तो उन्होने न केवल अपनी पीड़ा को व्यक्त किया बल्कि नितदिन मिलने वाली सामाजिक पीड़ा से भी अवगत करवाया। सच में जो बातें इस पीडि़त परिवार ने बताई उसने न केवल मुझे अंदर तक झकझोर दिया बल्कि नोट पैड पर चलती कलम को विराम देना ही उचित समझा।
जिस सामाजिक पीड़ा का जिक्र उस परिवार ने किया सचमुच ऐसी घटनाएं इंसान प्रतिदिन अपने आसपास न केवल सदियों से झेलता आ रहा है बल्कि जब तक यह सृष्टि रहेगी यह बदसूरत जारी भी रहेगी। हम कैसे निर्दयी एवं स्व केन्द्रित इंसान होते हैं जो केवल निजी स्वार्थ के आगे हम न तो सोच पाते हैं बल्कि हमें पीडित परिवार की न केवल पीड़ा हमें असहज बनाती है बल्कि उलटे पीडि़त परिवार का दर्द बढ़ाने का काम गाहे बगाहे जरूर करते हैं। आखिर जिंदगी की सच्चाई भी तो यही है इसे जितनी जल्दी समझ लिया जाए उतना बेहतर है।
ऐसे में मैंने न केवल पीडि़त परिवार का हौंसला बढ़ाया बल्कि तय लक्ष्य के प्रति अग्रसर रहने के लिए प्रेरित करने का भी काम किया। यही कहा कि हमारा समाज चढ़ते सूरज को ही नमस्कार करता है। इस पीडि़त परिवार में भी आगे बढऩे का पूरा जज्बा है बस समाज की इस दी हुई पीड़ा को दरकिनार कर स्वयं को संगठित व मजबूत कर अपने लक्ष्य के प्रति आगे बढ़ते चले जाएं। इस बीच जीवन की दी हुई यह पीड़ा न केवल कम होगी बल्कि जिंदगी होने का भी एहसास होगा। (इसमें संबंधित परिवार की जानकारी को पूरी तरह से गोपनीय रखा गया है जैसा कि वे चाहते हैं)
सच कहूं जब कोई व्यक्ति दु:ख के समय में होता है तो उसकी मदद को भी सैंकड़ों नहीं बल्कि हजारों इंसान अपने हाथ जरूर बढ़ाते हैं, लेकिन इस बीच जो दर्द समाज का ही नहीं बल्कि अपनों का दिया हुआ होता है उसका अंदाजा तो केवल एक पीडि़त पक्ष ही लगा सकता है। भले ही मदद के तौर पर हम पीडि़त व्यक्ति को पूरा ढ़ांढस बढ़ाने का भी काम कर लें लेकिन पल-पल पीड़ा को सहता पीडि़त इंसान ही उस दर्द को न केवल झेलता है बल्कि उससे मुकाबला भी करता है।
सचमुच इस सांसारिक यात्रा में इंसान को जीवन की दी हुई पीड़ा से कहीं ज्यादा वह सामाजिक पीड़ा होती है जो पल-पल व्यक्ति को खंडित करती रहती है। इसलिए किसी भी व्यक्ति के प्रति हमें कुछ भी कहने व सुनने से पहले वास्तिकता को पहचानने का प्रयास करना चाहिए। हो सकता है आप द्वारा कहे शब्द पीडि़त पक्ष को न केवल एक नई जिंदगी जीने की उमंग जगा जाए या फिर किसी इंसान की जिंदगी को ही जहन्नुम बना दे। आओ हम सब मानवता के कल्याण के लिए एक इंसान होने का फर्ज निभाएं क्योंकि यह मनुष्य जीवन दोबारा नहीं मिलेगा।