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Tuesday, 29 December 2015

पंचायतों के संचालन एवं अहम निर्णयों में ग्राम सभा सुप्रीम

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पंचायतों के महत्वों को प्रतिपादित करते हुए कहा था, ''सच्चा लोकतंत्र वही है जो निचले स्तर पर लोगों की भागीदारी पर आधारित है। यह तभी संभव है जब गांव में रहने वाले आम आदमी को भी शासन के बारे में फैसला करने का अधिकार मिले।  इसी के दृष्टिगत देश में पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से शासन की शक्तियों के विकेन्द्रीकरण को महत्व प्रदान किया गया तथा पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त बनाने के लिए कई प्रभावी कदम भी उठाए गए। 
पंचायती राज व्यवस्था में संविधान के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम,1992 द्वारा इस दिशा में आगे बढ़ते हुए पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक अधिकार प्रदान कर तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था जिसमें ग्राम पंचायत, पंचायत समिति तथा जिला परिषद शामिल है के गठन का रास्ता प्रशस्त हुआ। इसमें भी महत्वपूर्ण बिन्दु यह रहा कि पंचायत स्तर पर ग्राम सभा को सुप्रीम दर्जा प्रदान किया गया। ऐसे में 73वें संविधान संशोधन के कारण न केवल पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से जन सहभागिता बढ़ाकर देश में लोकतंत्र की जडों को मजबूती प्रदान की गई बल्कि शक्तियों के विकेन्द्रीकरण के कारण देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का सशक्तिकरण भी हुआ है। आज इसी त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का नतीजा है कि देश में लगभग 30 लाख पंचायत प्रतिनिधि देश की कुल आबादी का लगभग 73 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
लेकिन अब प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या पंचायतों में विभिन्न कार्यों से लेकर अन्य महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार महज पंचायतों के चुने हुए प्रधानों व वार्ड सदस्यों के पास ही रहता है? या फिर पंचायत में आम मतदाता की भी कोई भूमिका रहती है। ऐसे में पंचायतों के सभी मतदाताओं को यह समझ लेना जरूरी है कि पंचायत संचालन महज चंद चुने हुए प्रतिनिधियों तक सीमित नहीं रहता है बल्कि संविधान के अनुच्छेद 243( क व ख) में ग्राम सभा को पंचायतों के संचालन व अहम निर्णय लेने के लिए सर्वोच्च संस्था माना गया है। जिसमें पंचायतों के वार्षिक बजट, आय-व्यय का विवरण से लेकर प्रशासनिक व विकास कार्यों से जुडे कई अहम निर्णय लेने की शक्ति ग्राम सभा के पास रहती है। 
यही नहीं ग्राम सभा प्रधानों, पंचायत सदस्यों से किसी भी प्रमुख क्रिया कलाप, सरकारी विकास कार्यक्रमों, आय-व्यय के संबंध में स्पष्टीकरण भी मांग सकती है। साथ ही ग्रामीण स्तर पर विकास कार्यों की देखरेख, जांच पडताल के लिए ग्राम सभा एक या एक से अधिक निगरानी समिति का गठन भी कर सकती है। इसके अतिरिक्त ग्राम सभा ग्रामीण शिक्षा, परिवार व सामुदायिक कल्याण कार्यक्रमों सहित ग्रामीण समाज में भाईचारा, एकता और सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने का कार्य भी करती है। भारत सरकार ने वर्ष 1999-2000 को ग्राम सभा वर्ष के तौर पर मनाने का निर्णय लिया ताकि पंचायती राज  व्यवस्था की महत्वपूर्ण इकाई ग्राम सभा को ज्यादा सशक्त व प्रभावी बनाया जा सके।
लेकिन ऐसे में अब यह प्रश्न खडा हो रहा है कि आखिर ग्राम सभा है क्या? वास्तव में पंचायत स्तर पर ग्राम सभा एक ऐसी संस्था है जिसका निर्माण उन व्यक्तियों से होता है जो उस गांव की चुनाव सूची में पंजीकृत हो या पंचायत के अंतर्गत गांवों के समूह जो पंचायत का चुनाव करते हैं। साधारण शब्दों में पंचायत गठन में शामिल प्रत्येक व्यस्क मतदाता ग्राम सभा का सदस्य है। ऐसे में किसी भी पंचायत के विकास कार्यों सहित सरकार की विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों के लाभार्थियों के चयन से लेकर क्रियान्वयन तक सभी महत्वपूर्ण निर्णय ग्राम सभा में ही लिए जाते हैं। इस तरह किसी भी पंचायत की सफलता वहां की जागरूक एवं निरन्तर क्रियाशील ग्राम सभा पर निर्भर करती है।
 ग्राम सभा की बैठक बुलाने तथा इसकी सूचना पहुंचाने की जिम्मेदारी पंचायत मुखिया की होती है। ग्राम सभा की बैठक का कोरम पूरा करने के लिए ग्राम सभा के कुल सदस्यों का 20वां हिस्सा हाजिर होना लाजमी होता है। कोरम पूरा न होने की स्थिति में बैठक अगले दिन या फिर किसी अन्य दिन तक स्थगित कर दी जाती है। अगली बार होने वाली ग्राम सभा की बैठक में कोरम पूरा होने के लिए कुल सदस्यों का 40वां हिस्सा होना जरूरी होता है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि ग्राम सभा के सभी सदस्य प्रत्येक तीन माह के दौरान आयोजित होने वाली ग्राम सभा की बैठकों में एक जागरूक नागरिक के नाते निरन्तर भाग लेना सुनिश्चित करें ताकि विकास से जुडे कार्यों पर बिना कोई विलंब गांव के हित में अहम निर्णय लिए जा सकें।
हिमाचल प्रदेश में अगले कुछेक दिनों में नई पंचायती राज संस्थाओं का गठन होने जा रहा है। ऐसे में हमारे लोकतंत्र की जड पंचायती राज व्यवस्था ज्यादा पारदर्शिता के साथ-साथ ग्राम सभा के प्रति जबावदेह व उत्तरदायी बने इसके लिए समाज का हर वर्ग सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ गांव व देश के विकास में लोकतंत्र के इस उत्सव में एक जागरूक नागरिक के नाते अपनी भागीदारी सुनिश्चित करे। अंत में यही कहेंगें-
अरमानों के पंख लगाकर भरना है परवाज,
नए सफर का नए जोश से करना है आगाज।
मंजिल मिल ही जाएगी है पूरा हमें यकीन,
बोल रहा है हमसे अपना उडने का अंदाज।।


(साभार: हिमाचल दिस वीक, 19 दिसम्बर, 2015 एवं दैनिक दिव्य हिमाचल, 30 दिसम्बर, 2015 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Tuesday, 1 December 2015

31 दिसम्बर तक हिमाचल के 53 नगरों का होगा केबल टीवी नेटवर्क डिजिटाइजेशन

भारत की जनगणना-2011 के आंकडों के अनुसार देश में 117 मिलियन यानि की 11.7 करोड घरों में टीवी की सुविधा उपलब्ध है। जबकि फीकी-केपीएमजी रिपोर्ट-2015 के अनुसार यह आंकडा बढक़र लगभग 168 मिलियन यानि की 16.8 करोड तक पहुंच गया है जो चीन व अमरीका के बाद भारत दुनिया का तीसरा बडा मुल्क है। इसी रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल टीवी उपभोक्ताओं का 59 फीसदी यानि की लगभग 9.9 करोड केबल टीवी, 24 फीसदी लगभग 4 करोड डीटीएच, 6 फीसदी यानि की एक करोड डीडी फ्री डिस व आइपीटीवी तथा 11 फीसदी यानि की 1.9 करोड परिवार डीडी टेरेस्ट्रेअल के साथ जुडे हुए हैं। 
ऐसे में देश के अन्दर केबल टीवी प्रसारण को केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) अधिनियम-1995 एवं केबल टीवी नेटवर्क नियम-1994 के तहत संचालित किया जा रहा है। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने अगस्त-2010 में केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) संशोधन अध्यादेश-2011 के तहत भारत में डिजिटल संबोधनीय केबल प्रणालियों का कार्यान्वयन को लेकर 4 विभिन्न चरणों में एनॉलाग केबल टीवी सेवाओं को डिजिटल संबोधनीय केबल टीवी प्रणाली में परिवर्तित करने की सिफारिश की है। जिसके तहत प्रथम चरण में 31 अक्तूबर, 2012 तक देश के चार महानगरों दिल्ली, मुंबई, कोलकत्ता और चेन्नई जबकि दूसरे चरण के अन्तर्गत 31 मार्च, 2013 तक देश के एक मिलियन आबादी वाले 38 शहरों को केबल टीवी डिजिटाइजेशन के तहत लाया गया है। जबकि तीसरे फेज मे 31 दिसम्बर, 2015 तक देश के सभी नगरीय क्षेत्रों तथा 31 दिसम्बर, 2016 तक देश के बचे हुए क्षेत्रों को केबल टीवी डिजिटल नेटवर्क के तहत लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इसी प्रक्रिया के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश के 53 नगरीय क्षेत्रों के लगभग सवा लाख परिवारों को केबल टीवी डिजिटाइजेशन के साथ 31 दिसंबर, 2015 तक जोडा जाना लाजिमी है। जिसमें प्रदेश का नगर निगम क्षेत्र शिमला, 30 नगर परिषद क्षेत्र जिसमें रोहडू, रामपुर, ठियोग, सोलन, नालागढ़, नाहन, पांवटा साहिब, परवाणू, बददी, बिलासपुर, श्री नयनादेवी जी, घुमारवीं, मंडी, सुंदरनगर, नेरचौक, कुल्लू, मनाली, ऊना, संतोखगढ़, हमीरपुर, सुजानपुर, धर्मशाला, कांगडा, पालमपुर, नूरपुर, नगरोटा, देहरा, ज्वालाजी, चंबा व डल्हौजी तथा 22 नगर पंचायतों वाले क्षेत्र जिसमें नारकंडा, चौपाल, कोटखाई, जुब्बल, अर्की, सुन्नी, राजगढ़, तलाई, सरकाघाट, जोगेन्द्रनगर, रिवालसर, करसोग, भुन्तर, बन्जार, दौलतपुर, गगरेट, मैहतपुर, टाहलीवाल, नादौन, भोटा, बैजनाथ-पपरोला और चुवाडी शामिल है। ऐसे में प्रदेश के इन 53 नगरीय क्षेत्रों में केबल टीवी का प्रसारण कर रहे मल्टी सिस्टम आपरेटर (एमएसओ) तथा लोकल केबल आपरेटर (एलसीओ) को केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) अधिनियम-1995 एवं केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) संशोधन अधिनियम-2011 की धारा तीन के अन्तर्गत सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार तथा संबंधित प्रसारण क्षेत्र के पंजीकरण प्राधिकरण के पास पंजीकरण के लिए आवेदन करना तथा धारा चार(क) के तहत सभी केबल आपरेटर एमएसओ व एलसीओ को निर्धारित तिथि के बाद केबल टीवी का डिजिटल संबोधनीय प्रणाली(डीएएस) के तहत प्रसारण करना अनिवार्य है।
 यही नहीं केबल टीवी नेटवर्क पंजीकरण नियम 5 के तहत सभी स्थानीय केबल ऑपरेटर्स (एलसीओ) को अपने प्रसारण क्षेत्र के मुख्य डाकपाल तथा पंजीकरण नियम 11 सी के तहत मल्टी सिस्टम आपरेटर (एमएसओ) को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार में पंजीकरण करवाना अनिवार्य है। इसी तरह केबल टीवी नेटवर्क अधिनियम की धारा 5 के तहत प्रोग्राम कोड तथा धारा 6 के अनुसार निर्धारित विज्ञापन कोड लेना भी जरूरी है जिसके बिना केबल टीवी पर प्रसारण अवैध है। इसके अतिरिक्त धारा आठ के तहत केबल आपरेटर को दूरदर्शन के 25 चैनल जिसमें डीडी नेशनल, लोकसभा, राज्यसभा, डीडी न्यूज, ज्ञानदर्शन, स्पोटर्स, किसान चैनल शामिल है का प्रसारण करना भी अनिवार्य है। 
ऐसे में यदि केबल टीवी आपरेटर सरकार द्वारा निर्धारित तिथि तथा केबल टीवी नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत नियमों का पालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ केबल टीवी नेटवर्क विनियमन संशोधन अधिनियम-2011 के अनुसार प्राधिकृत अधिकारी जिसमें जिला मेजिस्ट्रेट (डीएम), उपमंडलीय दंडाधिकारी (एसडीएम) तथा पुलिस कमीश्नर शामिल है नियमों के विरूद्ध केबल टीवी प्रसारणकत्र्ता के उपकरणों को जब्त कर सकता है तथा नियमानुसार कडी कार्रवाई अमल में ला सकते हंै। 
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के अनुसार देश में प्रथम व द्वितीय चरण में हुए केबल टीवी डिजिटाइजेशन के कारण जहां उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्तायुक्त केबल टीवी प्रसारण की सुविधा सुनिश्चित हुई है तो वहीं मनपंसद चैनल देखने की आजादी भी मिली है। साथ ही केबल टीवी के डिजिटलाइजेशन के कारण सरकार के राजस्व में भी बतौर मनोरंजन कर तथा सेवा कर के तौर पर अभूतपूर्व बढ़ौतरी दर्ज हुई है। मंत्रालय के एक आकलन के आधार पर दिल्ली में यह वृद्धि 200 प्रतिशत तक जा पहुंची तो वहीं अहमदाबाद में भी यह आंकडा बढक़र लगभग 165 फीसदी तक पहुंच गया है। इसी तरह देश के अन्य शहरों में भी अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज हुई है।
ऐसे में हिमाचल प्रदेश के सभी 53 नगर निकाय क्षेत्रों में केबल टीवी का प्रसारण कर रहे केबल आपरेटर एमएसओ व एलसीओ केबल टीवी नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत अपना पंजीकरण करवाना सुनिश्चित करें ताकि प्रदेश के लाखों केबल टीवी उपभोक्ताओं को सेट टॉप बॉक्स के माध्यम से डिजिटल प्रसारण की सुविधा समयानुसार सुनिश्चित हो सके। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा निर्धारित तिथि 31 दिसम्बर, 2015 के बाद प्रदेश के इन सभी 53 नगरीय क्षेत्रों में एनॉलाग केबल टीवी सेवाएं समाप्त हो जाएंगी।


 (साभार: दिव्य हिमाचल, 18 नवम्बर, 2015 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Tuesday, 22 September 2015

एनसीटीई रेग्युलेशन-2014, शिक्षक पाठयक्रमों में गुणवता की ओर कदम

                                                                     
किसी भी देश की बुनियाद वहां की शिक्षा व्यवस्था तथा अध्यापकों के ऊपर निर्भर करती है। आज हमारे देश में शिक्षक प्रशिक्षण पाठयक्रमों जेबीटी, बीएड, एमएड सहित अन्य पाठयक्रमों का जो हाल है उससे हमें कागजी तौर पर ज्यादा तथा प्रैक्टीकल तौर पर कम गुणवता वाले प्रशिक्षित अध्यापक ही मिल पा रहे हैं। शिक्षाविदों एवं बुद्घिजीवियों के अनुसार जिसका प्रमुख कारण जहां शिक्षक प्रशिक्षण पाठयक्रमों का कम अवधि का होना, अधिकतर समय पाठयक्रम के लिए चयन प्रक्रिया व परीक्षा में ही निकल जाना तथा प्रैक्टीकल कार्यों के लिए कम समय मिलना तो वहीं कक्षा में बच्चों की जरूरतों तथा सामाजिक व मनोवैज्ञानिक तौर पर सशक्त अध्यापकों की कमी रहना सबसे प्रमुख कारण माना जाता रहा है।
जिससे जहां इसका असर हमारी शिक्षा व्यवस्था की महत्वपूर्ण बुनियाद स्कूली शिक्षा पर पडा है तो वहीं देश की बुनियादी शिक्षा की नींव भी कहीं न कहीं कमजोर हुई है। ऐसे में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा अध्यापक शिक्षण प्रशिक्षण पाठयक्रमों में गुणवता लाने तथा वर्तनमान कक्षा की जरूरतों एवं प्रैक्टीकल तौर पर ज्यादा अनुभवी अध्यापक तैयार करने के लिए एनसीटीई रेग्युलेशन-2014 के तहत कई महत्वपूर्ण बदलाव लाए गए हैं। जिसमें जहां एक वर्षीय बीएड पाठयक्रम को दो शैक्षणिक वर्षों में तबदील किया गया है तो वहीं चयन व परीक्षा अवधि को छोडकर शैक्षिक दिवसों को बढाकर 200 दिन प्रति वर्ष जबकि प्रति सप्ताह में कम से कम 36 घंटे निर्धारित किए गए है। इसके अलावा कक्षा में प्रशिक्षु अध्यापकों की उपस्थिति 80 प्रतिशत जबकि स्कूलबद्घ प्रशिक्षण (इंटर्नशिप) के लिए 90 प्रतिशत निर्धारित की गई है। साथ ही प्रशिक्षु अध्यापकों को प्रैक्टीकल तौर पर कक्षा में पढाने के कौशलों में ज्यादा निपुण बनाने के लिए स्कूल प्रशिक्षण (इंटर्नशिप) की अवधि को चार सप्ताह से बढाकर 20 सप्ताह किया गया है ताकि भावी अध्यापक कक्षा में पठन-पाठन की प्रक्रिया को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकें।
इसी तरह पूरे देश में जेबीटी, बीटीसी, डीएड सहित कई नामों से चल रहे प्रारंभिक अध्यापक प्रशिक्षण पाठयक्रम में भी कई बदलाव किए गए हैं। जिसमें जहां अब पूरे देश में केवल प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा (डीएलडी) के नाम से ही पाठयक्रम चलाया जाएगा तो वहीं पढने व पढाने के दिवस भी निर्धारित किए गए हैं। इसी तरह एमएड पाठयक्रम में भी बदलाव लाया गया है तथा एक वर्षीय पाठयक्रम को दो शैक्षणिक वर्षों में तबदील किया गया है ताकि देश में बेहतर शिक्षक प्रशिक्षकों के साथ-साथ अच्छे विश्लेषक, शिक्षा नीति निर्माता, योजनाकार, शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर प्रशासक तैयार किए जा सकें। 
यही नहीं शिक्षक पाठयक्रमों को अन्य व्यावसायिक पाठयक्रमों जैसे डॉक्टरी, इंजीनियरिंग, विधि, प्रबंधन, फॉर्मा इत्यादि के तौर पर विकसित करने तथा शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन स्तर के प्रोफैशनल तैयार करने के लिए चार वर्षी बीए-बीएड, बीएससी-बीएड, तीन वर्षीय एकीकृत बीएड-एमएड, चार वर्षीय प्रारंभिक शिक्षा में स्नातक पाठयक्रमों पर बल दिया गया है। इसके अतिरिक्त सेवारत एवं कम से कम दो वर्ष का अध्यापन में अनुभव रखने वालों के लिए तीन वर्षीय बीएड अंशकालिक पाठयक्रम भी तैयार किया गया है। 
साथ ही स्कूली स्तर पर कला शिक्षा व अभिनय कला को मजबूत आधार देने के लिए दो शैक्षिक वर्षों की अवधि वाला कला शिक्षा में डिप्लोमा (अभिनए कलाएं) एवं (दृश्य कलाएं) नाम से दो पाठयक्रम तैयार किए गए हंै। इन दोनों पाठयक्रमों के लिए एेसे अभ्यर्थी पात्र होंगें जिन्होंने दस जमा दो स्तर की कक्षा में संगीत, नृत्य, रंगमंच, पेंटिंग, ड्राईंग, ग्राफिक डिजाईन, मूर्तिकला, एप्लाइड कलाएं, हेरिटेज क्राफट के विषय सहित बाहरवीं कक्षा में कम से कम 50 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हों। यही नहीं प्रारंभिक बाल्यवस्था शिक्षा कार्यक्रम (डीईसीएड) को बदल कर पूर्व शिक्षा में डिप्लोमा (डीपीएसई) कर दिया गया है तथा इसकी अवधि भी दो शैक्षिक वर्ष निर्धारित की गई है। इस पाठयक्रम में बाल्यवस्था को केन्द्र में रखकर पाठयक्रम को निर्धारित करने पर बल दिया गया है ताकि बाल्यवस्था के दौरान बच्चे की जरूरतों व मनोवैज्ञानिक आधार पर बेहतर प्रशिक्षित अध्यापक तैयार हो सके। 
इसी तरह डीपीएड, बीपीएड और एमपीएड की शिक्षा हासिल करने के लिए अभ्यर्थी का खेलकूद गतिविधियों में भागीदारी को आवश्यक शर्त बना दिया गया है ताकि खेलकूद में रूची रखने वाले लोग ही शारीरिक शिक्षा मेें अध्यापक बन सकें।   
एनसीटीई रेग्युलेशन-2014 में डीएलडी, बीएड, एमएड, डीपीएड, बीपीएड, एमपीएड सहित अन्य एकीकृत पाठयक्रमों के लिए अध्यापकों की नियुक्ति बारे भी कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं ताकि शिक्षक प्रशिक्षण प्रदान करने वाले संस्थानों में तय मापदंडों के तहत ही उच्च शिक्षित अध्यापकों की तैनाती की जा सके। इसके अतिरिक्त देश के भावी अध्यापकों को बेहतर शिक्षा मिल सके इसके लिए आधारभूत संरचना मुहैया करवाने सहित कई अहम परिवर्तन किए गए हैं। साथ ही जहां पहले अध्यापक प्रशिक्षण पाठयक्रमों में 100 छात्रों पर एक युनिट तय थी उसे भी घटाकर 50 कर दिया गया है तथा छात्र-अध्यापक अनुपात को नए मापदंडों के तहत कम किया गया है ताकि प्रशिक्षु अध्यापकों को बेहतर प्रशिक्षण की सुविधा प्राप्त हो सके। 
अध्यापक प्रशिक्षण पाठयक्रमों को लेकर देश भर के विभिन्न राज्यों में विशेषकर निजी क्षेत्र में चल रहे संस्थानों में आधारभूत ढांचे की कमी सहित तय मापदंडों के तहत उच्च शिक्षित अध्यापकों की नियुक्ति न होने को लेकर शिक्षा जगत में काफी बवाल मचता रहा है तथा इस बारे मूलभूत संरचना जांचने वाली कमेटियों की कार्यप्रणाली तथा बार-बार अधोसंरचना को मजबूत करने के लिए दी जाने चेतावनियों के कारण शिक्षा ढांचा जस से तस बने रहने को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में एनसीटीई के नए रेग्युलेशन के तहत आधारभूत संरचना सहित अन्य नियमों की अवहेलना होने पर संबंधित संस्थानों के खिलाफ कडी कार्रवाई का प्रावधान किया गया है ताकि देश के भावी शिक्षक निर्माताआें के निर्माण में कोई कोताही न रहे। 
ऐसे में एनसीटीई रेग्युलेशन-2014 के नए प्रावधानों का जहां शिक्षाविद तथा शिक्षा जगत से जुडे बुद्घिजीवी स्वागत कर रहे हैं तो वहीं देश का आम अभिभावक भी यह उम्मीद लगाए बैठा है कि उनके बच्चों के भविष्य निर्माण के लिए बेहतर अध्यापक मिल पाएंगें। लेकिन अब प्रश्न यही खडा हो रहा है कि क्या एनसीटीई नए रेग्युलेशन के तहत नए नियमों का पालन करवा पाती है या नही यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा। परन्तु अध्यापक प्रशिक्षण पाठयक्रमों की गुणवता की ओर एनसीटीई द्वारा उठाया गया यह कदम काबिले तारिफ है तथा उम्मीद है कि अब देश की भावी पीढी को स्कूली शिक्षा का पाठ पढाने वाले ज्यादा बेहतरीन अध्यापक मिल पाएंगें।

(साभार: दिव्य हिमाचल, 10 जून, 2015 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)


Friday, 17 April 2015

जिला ऊना में बेटियों को बचाने के लिए घर-घर तक पहुंचेगा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान

भारत वर्ष की जनगणना-2011 के आंकडों के आधार पर पूरे देश में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति हजार लडक़ों के मुकाबले लड़कियों के लिंगानुपात में कमी दर्ज हुई है। आंकडों के अनुसार यह लिंगानुपात वर्ष 1961 में 976 से वर्ष 2011 में 918 तक पहुंच गया है जो कि अब तक हुई जनगणनाओं में सबसे कम आंका गया है। ऐसे में समाज में बेटियों के प्रति नजरिए में आए बदलाव तथा भ्रूण में ही कन्याओं की बढ़ती हत्यों के प्रति जागरूकता लाने के लिए पूरे देश के सबसे प्रभावित चुनिंदा 100 जिलों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को आरंभ किया गया है। 
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का प्रमुख लक्ष्य जहां बालिका जन्मोत्सव मनाना और उसे शिक्षा दिलाना है तो वहीं जेंडर आधारित लिंग चयन में समापन का निवारण करना, बालिका की उत्तरजीविता और संरक्षण तथा बालिका की शिक्षा सुनिश्चित करना इस अभियान का प्रमुख उदेश्य है। इसके अतिरिक्त समाज में बालिकाओं के जन्म को प्रोत्साहित करने के लिए सभी ग्राम पंचायतों में गुडडा गुडडी बोर्ड लगाकर प्रत्येक माह संबंधित गांव के बालक-बालिका अनुपात को दर्शाया जाएगा। साथ ही ग्राम पंचायत हर लडकी के जन्म होने पर उसके परिवार को तोहफे भेजेगी,प्रतिवर्ष कम से कम एक दर्जन लडकियों का जन्म दिवस मनाया जाएगा। यही नहीं जहां सभी ग्राम पंचायतों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की शपथ दिलाई जाएगी तो वहीं जिस ग्राम पंचायत में बालक-बालिका अनुपात बढ़ता है तो उस ग्राम पंचायत को सम्मानित भी किया जाएगा। जबकि किसी भी गांव में बाल विवाह होने पर संबंधित ग्राम पंचायत प्रधान को जिम्मेदार माना जाएगा और उसके खिलाफ कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। 
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत हमारे समाज में बेटियों के प्रति सामाजिक मानसिकता को बदल कर लडकियों एवं महिलाओं के प्रति हो रहे भेदभाव को समाप्त कर समाज की मुख्यधारा में जोडकर उन्हे आगे बढ़ाया जाएगा। आज भले ही हम अपनी कामयाबी के कितने ही झंडे गाडने के दावे कर रहे हों लेकिन हमारे समाज में बढ़ती कन्या भ्रूण हत्याएं तथा बालिकाओं के प्रति दोयम दर्जे के व्यवहार ने यह साबित कर दिया है आज भी हम मानवीय दृष्टिकोण से काफी पिछडे हुए हैं। जिसमें बात चाहे बालिकाओं के प्रति शिक्षा की हो या फिर गर्भ में ही कन्या भ्रूण हत्या करने की हो। ऐसे में बालिकाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव लाने तथा जागरूकता पैदा करने के लिए देश भर के चुुनिंदा सौ जिलों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को आरंभ किया गया है। 
इस अभियान के तहत हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला को भी शामिल किया गया है। जनगणना-2011 के आंकडों के अनुसार ऊना जिला देश के उन 100 जिलों में शामिल है जिन्हे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के साथ जोडा गया है। जनसंख्या आंकडे-2011 के आधार पर जिला में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रतिहजार लडक़ों के मुकाबले 875 लडकियां हैं जो राष्ट्रीय अनुपात 918 के मुकाबले काफी कम है। जिला में इस अभियान को उपायुक्त ऊना की अगुआई में चलाया जाएगा जिसमें महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, शिक्षा तथा पुलिस विभाग सहित गैर सरकारी एवं स्वयं सेवी संस्थों से मिलकर घर-घर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संदेश पहुंचाया जाएगा। 
उपायुक्त ऊना अभिषेक जैन ने बताया कि जिला ऊना में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए एक्शन प्लान तैयार कर लिया गया है तथा इसके बेहतर कार्यान्वयन के लिए जिला स्तर पर उपायुक्त, खंड स्तर पर एसडीएम जबकि पंचायत स्तर पर स्थानीय पंचायत प्रधान की अध्यक्षता में तीन स्तरीय टॉस्क फोर्स गठित की गई है। जिला में स्कूली स्तर पर बेटियों के ड्राप आउट को कम करने व शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूली स्तर पर विशेष प्रयास किए जाएंगे। लडकियों की शिक्षा में शतप्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करने तथा आसपास के क्षेत्र में लडकियों को शिक्षा हासिल करने लिए के प्रेरित करने वाले स्कूल को जिला स्तर पर एक लाख रूपये का ईनाम भी दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त प्रत्येक माह ही दस तरीख को विशेष कन्या दिवस के तौर पर मनाया जाएगा। 
उपायुक्त ने बताया कि इस अभियान के तहत समाज के प्रत्येक व्यक्ति को जोडने के लिए सोशल मीडिया का सहारा भी लिया जाएगा तथा बेटी बचाओ नाम से वाहटस ऐप ग्रुप बनाया जाएगा। जिसमें विभिन्न विभागों के अधिकारियों, कर्मचारियों के अतिरिक्त समाज से आम जन को भी जोडा जाएगा ताकि वह बेटियों के प्रति अपने विचारों को साझा कर सकें तथा अपने बहुमूल्य सुझाव दे सकें। साथ ही जिला के उद्योगों में हजारों कर्मचारी कार्यरत हैं ऐसे में उद्योगों को भी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के साथ जोडा जाएगा।
डीसी ने बताया कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को जन-जन तक पहुंचाने तथा सफल बनाने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला एवं बाल विकास, पुलिस, पंचायतीराज विभागों तथा पंचायत प्रतिनिधियों के साथ मिलकर इस अभियान को एक जनआंदोलन बनाया जाएगा। उन्होने बताया कि जिला में पीसी पीएनडीटी एक्ट के तहत अवैध तौर पर कन्या भ्रूण हत्या का मामला पकडने पर दी जाने वाली दस हजार रूपये की ईनाम राशि के अतरिक्त संबंधित पुलिस स्टेशन को 21 हजार रूपये की प्रोत्साहन राशि अलग से प्रदान की जाएगी। साथ ही इस अभियान के तहत जिला में पैदा होने वाली लडकियों के जन्म पंजीकरण को समय पर दर्ज करवाना सुनिश्चित बनाया जाएगा तथा मदर-चाईल्ड ट्रैकिंक सिस्टम को भी गंभीरता से लिया जाएगा। साथ ही मदर-चाईल्ड प्रोटेक्शन कॉर्ड को भी गंभीरता से बनाया जाएगा तथा समय पर अपडेट किया जाएगा। इसके अतिरिक्त जिला के सभी स्कूलों में लडकियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाएगी जबकि सभी आंगनबाडी केन्द्रों में शौचालय की सुविधा मुहैया करवाने पर बल दिया जाएगा। 
उन्होने बताया कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए मीडिया व अन्य प्रचार प्रसार माध्यमों के साथ-साथ जिला के धार्मिक व आध्यात्मिक गुरूओं को भी शामिल किया जाएगा। उपायुक्त ने बताया कि जिला के विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए पीसी पीएनडीटी एक्ट की कडाई से अनुपालना सुनिश्चित की जाएगी तथा अवहेलना करने वालों के विरूद्ध सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। इस अभियान के साथ समाज के प्रत्येक वर्ग को जोडने तथा जागरूक करने के लिए विभिन्न स्तरों पर जागरूकता शिविर भी लगाए जाएंगें तथा उनका पूरा सहयोग लिया जाएगा ताकि बेटियों के प्रति व्याप्त इस सामाजिक विषमता को जल्दी ठीक किया जा सके।

(साभार: दिव्य हिमाचल, 7 अप्रैल, 2015 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)