मंडी-पठानकोट हाईवे पर गुम्मा के पास दर्जनों महिलाएं बेच रही मौसमी फल व सब्जिया
ग्रामीण महिलाएं बच्चों व परिवार की देखरेख के साथ-साथ अब परिवार की आर्थिकी का भी सहारा बन रही है। हमारे ग्रामीण परिवेश में महिलाएं न केवल खेती-बाड़ी व पशुपालन के साथ बड़े पैमाने पर जुड़ी रहती हैं बल्कि बच्चों के पालन-पोषण में भी अहम भूमिका अदा करती हैं। लेकिन बदलते वक्त के साथ आज ग्रामीण महिलाएं न केवल घर की दहलीज से बाहर निकल परिवार की आर्थिकी को मजबूती प्रदान कर रही हैं बल्कि काम करने से भी परहेज नहीं कर रही है। महिलाओं की इस बदलती सोच का ही नतीजा है कि कोरोना महामारी के इस कठिन दौर में वे परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए मनरेगा में दिहाड़ी मजदूरी के साथ-साथ मौसमी फल व सब्जियों को बेचने में भी अब पीछे नहीं है।
हमारी इन ग्रामीण महिलाओं की इस बदलती सोच का ही नतीजा है कि पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर जोगिन्दर नगर से लेकर गुम्मा तक ऐसी दर्जनों महिलाएं सडक़ किनारे मौसमी फल व सब्जियां बेचते हुए नजर आ जाएंगी। जब इस संबंध में इन स्थानीय महिलाओं जिनमें कमला देवी, रती देवी, कलू देवी, पुष्पा देवी, प्रीतो देवी आदि से बातचीत की तो इन महिलाओं ने बताया कि वे प्रतिदिन बरसाती मौसम के दौरान तैयार मौसमी फल व सब्जियों को बचने का काम कर रही हैं। इससे न केवल उन्हे परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए धनराशि प्राप्त हो जाती है बल्कि घर में प्राकृतिक तौर पर तैयार इन मौसमी फल व सब्जियों को एक मार्केट भी उपलब्ध हो रही है। इनका कहना है प्रतिदिन इस राष्ट्रीय उच्च मार्ग से सैंकड़ो वाहन गुजरते हैं, ऐसे में राहगीर प्राकृतिक तौर पर तैयार इन फलों व सब्जियों को खरीदने के लिए विशेष तरजीह देते हैं। इनका कहना है कि इससे उन्हे रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी आर्थिकी का इंतजाम भी हो जाता है।
इसी बीच सब्जियां खरीदने के लिए रूके कुछ यात्रियों से बातचीत की तो इनका भी कहना है कि ग्रामीण महिलाओं द्वारा बेचे जा रहे ये उत्पाद जहां पूरी तरह से प्राकृतिक तौर पर तैयार हुए हैं तो वहीं इनकी कीमत बाजार भाव से भी कम है। जिसका सीधा असर उनकी सेहत के साथ-साथ आर्थिकी पर भी पड़ता है। साथ ही कहना है कि प्राकृतिक तौर पर तैयार सब्जियां बाजारों में आज बमुश्किल से ही मिल पाती हैं, लेकिन आज वे यहां से भिंडी, तोरी, काकड़ी, करेला, कद्दू, प्याज, अदरक, लहुसन इत्यादि खरीद कर ले जा रहे हैं जो पूरी तरह से प्राकृतिक तौर पर उगाए गए हैं तथा इनकी पौष्टिकता भी अधिक है।
ऐसे में कह सकते हैं कि आज हमारे ग्रामीण परिवेश की महिलाओं ने परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी को अपने कंधों पर उठाकर पशु पालन व खेती बाड़ी के साथ-साथ परिवार की आर्थिकी को मजबूती प्रदान करने की दिशा में अहम कदम बढ़ाया है, जो निश्चित तौर पर महिलाओं के सशक्तीकरण में एक अहम कदम साबित हो रहा है।