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Wednesday, 7 December 2022

90 वर्ष की आयु में भी आजीविका कमा रहे कांशी राम, दूसरों के लिए बने हैं प्रेरणा स्त्रोत

 60 वर्षों से जोगिन्दर नगर में कर रहे हैं ड्राई क्लीन का काम, लोगों की वे अभी भी पहली पसंद

जहां आमूमन एक व्यक्ति सरकारी दस्तावेजों के तहत 58 या 60 वर्ष की आयु पूर्ण होते ही सेवा से मुक्त हो जाता है। ऐसे में यूं कह लें कि 60 वर्ष की आयु के बाद व्यक्ति किसी भी प्रकार की आजीविका कमाने के कार्य से मुक्त हो जाता है तथा सरकार वरिष्ठ नागरिक का दर्जा प्रदान कर सामाजिक सुरक्षा पेंशन सहित कई तरह के अन्य लाभ उपलब्ध करवाती है। लेकिन बावजूद इसके आज भी हमारे समाज में ऐसे कई लोग मिल जाएंगे जो लंबी उम्र बीतने पर भी न केवल कार्य करना पसंद करते हैं बल्कि आजीविका कमाकर लाखों लोगों विशेषकर हमारी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का भी कार्य कर रहे हैं।
ऐसे ही एक शख्स हैं जोगिन्दर नगर निवासी लगभग 90 वर्षीय कांशी राम, जो इस उम्र में भी न केवल अपनी आजीविका स्वयं कमा रहे हैं बल्कि लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का भी काम कर रहे हैं। जोगिन्दर नगर में पिछले लगभग 60 वर्षों से ड्राई क्लीन का काम करने वाले कांशी राम से बातचीत की तो उनका कहना है कि 1930 के दशक में उनका जन्म हमीरपुर जिला के टौणी देवी में हुआ है। माता पिता की 10 संतानों जिनमें चार भाई व 6 बहनें शामिल हैं में से एक हैं।
उनका कहना है कि मात्र आठ वर्ष की छोटी सी आयु में वे अपने संबंधी के साथ शिमला पहुंच गए तथा लोअर बाजार में एक ड्राई क्लीन की दुकान में काम शुरू कर दिया। तीन वर्ष तक इस कार्य को करने के बाद वे 2 वर्ष के लिए नंगल पंजाब पहुंच गए। इस बीच आजीविका कमाने के लिए वे कुछ समय के लिए अमृतसर भी गए तथा एक फौजी अफसर के घर में काम करने लगे। इस बीच वर्ष 1947 को मात्र 15 वर्ष की आयु में उनकी शादी तय हुई तथा वे वापिस घर पहुंच गए। इस बीच भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हो गया तथा देश में भारी उथल-पुथल देखी। कई परिवारों को उजड़ते हुए देखा तो कईयों ने अपना जीवन तक गंवा दिया। उनका कहना है कि 1947 का बंटवारा बेहद खौफजदा पैदा करने वाला मंजर था।
पूरी तरह औपचारिक शिक्षा से अछूते लेकिन सामाजिक विषयों की खूब समझ रखने वाले कांशी राम बतियाते हैं कि आजीविका की तलाश में वे शादी के बाद जोगिन्दर नगर पहुंचे तथा ड्राई क्लीन का कार्य शुरू कर दिया। वे कहते हैं कि तब से लेकर वे निरन्तर कपड़ों की ड्राई क्लीन का काम कर रहे हैं तथा परिवार की आजीविका को चलाते आ रहे हैं।
हंसमुख व बेहद खुशमिजाज व्यक्तित्व के धनी कांशी राम कहते हैं कि उनके सात बच्चे हैं जिनमें 6 बेटियां व एक बेटा है। बेटियों को थोड़ा बहुत पढ़ा लिखाकर उनकी शादियां कर दी जबकि बेटे को नागपुर महाराष्ट्र से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवाई है। बेटा आजकल जलशक्ति  विभाग में सहायक अभियन्ता के पद पर कार्यरत है। उनका कहना है कि उम्र के इस पड़ाव में भी वे निरन्तर ड्राई क्लीन के कार्य में व्यस्त रहते हैं। पहले उनके साथ कई दूसरे लोग भी काम करते थे लेकिन उम्र के पड़ाव में उनके इस कार्य में अब उनकी धर्मपत्नी मन्सा देवी ही उनका हाथ बंटाती है। बच्चे उन्हे अब यह कार्य छोड़ने की सलाह देते हैं लेकिन काम के प्रति जुनून इतना कि वे प्रतिदिन ड्राई क्लीन के इस कार्य से उन्हे निरन्तर जुड़े रहना बेहद पसंद है बल्कि आत्म संतुष्टि की अनुभूति भी होती है। साथ ही कहते हैं कि उनके ड्राई क्लीन कार्य के प्रति क्षेत्र के लोगों का विश्वास व प्यार आज भी बरकरार है जो उनकी एक पूंजी भी है।
कांशी राम का कहना है कि इस लंबे वक्त में उन्होने जोगिन्दर नगर शहर व आसपास के क्षेत्रों में अनेक बदलावों को होते देखा है। उनका कहना है कि आजादी के बाद जोगिन्दर नगर शहर में मात्र दस या बारह दुकानें हुआ करती थी लेकिन आज यह आंकड़ा 500 को भी पार कर गया है। साधन व सुविधाओं के अभाव में जीवन निर्वहन कठिन होता था, लेकिन आज के दौर में न केवल मूलभूत सुविधाएं बेहतर हुई हैं बल्कि आवागमन भी सुगम व सुलभ तथा आर्थिकी भी सुदृढ़ हुई है।
बेहतरीन सेवाओं के लिए 15 अगस्त को जोगिन्दर नगर प्रशासन ने किया सम्मानित
जीवन के इस पड़ाव में भी कार्य कर लोगों के लिए प्रेरणा का काम करने वाले कांशी राम को 15 अगस्त, 2022 को जोगिन्दर नगर प्रशासन ने शॉल, टोपी व प्रशस्ति पत्र भेंट कर उन्हे न केवल सम्मानित किया बल्कि काम के प्रति उनके इस जज्बे को सलाम भी किया है।
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Monday, 28 November 2022

भरमौर से आई है मां भभौरी, सिकंदर धार की ऊंची चोटी पर है विराजमान

भरमौर से आई है मां भभौरी, सिकंदर धार की ऊंची चोटी पर है विराजमान

जोगिन्दर नगर उपमंडल के अंतर्गत लडभड़ोल तहसील की ग्राम पंचायत खुड्डी स्थित भभौरी धार जिसे सिकंदरधार के नाम से भी जाना जाता है कि ऊंची चोटी में स्थापित है मां भभौरी का प्राचीन मंदिर। कहा जाता है कि भभौरी धार जिसे सिकंदरधार भी कहते हैं में राजाओं का बेहड़ा या चौकी हुआ करती थी। इसी दौरान राजा अपने साथ भभौरी मां को पिंडी रूप में यहां लेकर आए थे। भरमौर से आने के कारण इसका नाम बदलते वक्त के साथ भभौरी हो गया। भभौरी मां मंडी व कांगड़ा जनपद के लोगों की कुल देवी भी है तथा इस मंदिर के प्रति लोगों की गहरी आस्था है।
किंवदंती है कि यह प्राचीन मंदिर हजारों वर्ष पुराना है तथा इसका अपना एक इतिहास है। यह भी कहा जाता है कि यूनानी सम्राट सिकन्दर ने भारतीय उपमहाद्वीप में अपने विजयी अभियान के दौरान वे अपनी सेना के साथ ब्यास नदी के तट तक पहुंचे थे। ऐसे में इस स्थान को सम्राट सिकंदर के साथ जोड़ते हुए इस धार को सिकंदर धार के नाम से भी जाना जाता है। जहां तक प्राचीन राजाओं के साम्राज्य की बात करें तो मंदिर से लगभग 300 या 400 मीटर की दूरी पर राजाओं की चौकी या बेहड़ा हुआ करता था। जिस स्थान पर राजाओं का बेहड़ा स्थापित था वह भभौरी धार की सबसे ऊंची जगह है। लेकिन बीतते समय के साथ अब यह स्थान खंडहर हो चुका है तथा यहां पर केवल पत्थरों के ही ढ़ेर रह गए हैं। परन्तु इस स्थान को देखते ही प्राचीन समय का इतिहास मानो एक बार फिर जीवंत हो उठता है। मंदिर के आसपास एक इंसानी बस्ती भी हुआ करती थी लेकिन यह क्षेत्र अति दुर्गम होने के कारण अधिकतर लोगों ने यहां से पलायन कर लिया है तथा साथ लगते गांवों खुड्डी, गाहरा इत्यादि स्थानों पर जाकर बस गए हैं। वर्तमान में अभी भी स्थानीय लोगों की जमीन भभौरी मंदिर के आसपास है तथा महज एक या दो परिवार ही यहां रह रहे हैं।                                                                                                                       
प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से है खूबसूरत, सर्दियों में होता है बर्फ का दीदार

प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से बात करें मां भभौरी का यह प्राचीन स्थान बेहद खूबसूरत है। मंदिर व आसपास क्षेत्र की ऊंचाई लगभग 1500 से 1800 मीटर के करीब है। यहां पर सर्दियों में बर्फबारी भी होती रही है। यह स्थान घने बान, बुरांस व काफल के पेड़ों से ढक़ा हुआ है। इस स्थान से एक तरफ हिमाच्छादित धौलाधार पर्वत श्रृंखला का बेहद खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है तो दूसरी तरफ कांगड़ा व मंडी घाटी का सुदूर तक दृश्य देखते ही बनता है। शहरों की आपाधापी से दूर यहां आकर मां के दर्शनों के साथ-साथ मन को बेहद सुकून मिलता है। यह स्थान घने पेड़ों से ढक़ा होने के कारण यहां जंगली जानवर भी काफी मात्रा में पाए जाते हैं।

कैसे पहुंचे मां भभौरी के मंदिर में

मां भभौरी के प्रांगण तक खुड्डी गांव से लगभग 3 किलोमीटर एक कच्ची सडक़ पहुंच चुकी है। लेकिन इस सडक़ पर अधिक ऊंचाई, संकरीघाटी तथा कच्ची होने के कारण वाहन से सफर काफी खतरनाक रहता है। ऐसे में श्रद्धालु चाहें तो खुड्डी से लगभग 2 किलोमीटर का पैदल सफर करते हुए प्रकृति के खूबसूरत नजारों को समेटते हुए भी मां के प्रांगण तक पहुंच सकते हैं। इसके अलावा चलहारग पंचायत की ओर से भी पैदल मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। लेकिन घना जंगल होने के चलते जानवरों का भी खतरा बना रहता है। यह मंदिर उपमंडल मुख्यालय जोगिन्दर नगर से वाया ऐहजु लगभग 30 किलोमीटर तथा वाया बल्ह, मैन भरोला 20 किलोमीटर है जबकि तहसील मुख्यालय लडभड़ोल से लगभग 18 किलोमीटर तथा शिव नगरी बैजनाथ से लगभग 35 किलोमीटर दूर है।

धार्मिक के साथ-साथ पैराग्लाइडिंग पर्यटन की संभावनाएं हैं मौजूद

धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से यदि इस क्षेत्र को विकसित किया जाए तो यह जोगिन्दर नगर उपमंडल का एक बेहतरीन पर्यटन स्थल बन सकता है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर होने के कारण ट्रैकिंग के लिए भी एक अच्छा स्थान है। साथ ही भभौरी धार से पैराग्लाइडिंग की संभावनाओं पर कार्य किया जाए तो बीड़-बिलिंग के बाद इस क्षेत्र को साहसिक पर्यटन की दृष्टि से भी आगे बढ़ाया जा सकता है।
फिलवक्त मंदिर कमेटी ने यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सराय का भी निर्माण करवाया है। इसके अलावा यहां पर खुला मैदान भी है जहां पर आषाढ़ माह में मां भभौरी का मेला लगता है। मेले के दौरान यहां पर विभिन्न खेल स्पर्धाओं का भी आयोजन किया जाता है।  
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Monday, 4 July 2022

ढेलू हार के परस राम व अन्य के लिये शिवा प्रोजेक्ट बना बागवानी का आधार

एक हेक्टेयर क्षेत्र में अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन स्थल के तौर पर स्थापित किया है अमरूद का बगीचा

जोगिन्दर नगर उपमंडल की ग्राम पंचायत ढेलू के अंतर्गत ढेलू हार निवासी परसराम ने एचपी शिवा प्रोजेक्ट के माध्यम से अमरूद का बागीचा तैयार कर रहे हैं। लगभग एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में परसराम के साथ उनके अन्य पारिवारिक सदस्यों शुभम ठाकुर, सबनम और श्यामलाल ने मिलकर अपनी जमीन में बागवानी विभाग के माध्यम से अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन स्थल (एफएलडी) तैयार कर रहे हैं। 

जब इस बारे लाभान्वित किसान परसराम से बातचीत की तो उन्होने बताया कि उनके तथा परिवार के दूसरे हिस्सेदारों के पास लगभग एक हेक्टेयर यानि कि 12 बीघा जमीन बेकार में पड़ी थी। इस जमीन में जहां झाडियां व अन्य जंगली पेड़ पौधे उग आए थे तो वहीं देखरेख के अभाव में यह अप्रयुक्त थी। लेकिन जब उन्हे बागवानी विभाग के माध्यम से सरकार द्वारा चलाई जा रही एचपी शिवा प्रोजेक्ट की जानकारी मिली तो उन्होने स्वयं के साथ-साथ परिवार के दूसरे सदस्यों को भी प्रोत्साहित किया तथा मिलकर इस एक हेक्टेयर भूमि में फलदार पौधे रोपित करने का फैसला कर लिया। 

उन्होने बताया कि बागावानी विभाग के माध्यम से एक वर्ष पहले अमरूद के लगभग साढे 16 सौ पौधे नि:शुल्क रोपित किये हैं। इन पौधों को जंगली जानवरों व अन्य बेसहारा पशुओं से बचाने के लिये पूरी जमीन की सोलरयुक्त बाड़बंदी भी विभाग के माध्यम से नि:शुल्क हुई है। वर्तमान में पौधों को पानी की सुविधा वे अपने बोरवैल से उपलब्ध करवा रहे हैं लेकिन जल्द ही जलशक्ति विभाग के माध्यम से सिंचाई की सुविधा भी उपलब्ध होने वाली है। उन्होने बताया कि अमरूद के पौधों की देखरेख, कांट छांट इत्यादि बारे समय-समय पर विभाग के माध्यम से उन्हे मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है। इसके अलावा वे पौधों को गोबर की प्राकृतिक खाद भी दे रहे हैं। 

उन्होने उपमंडल के ज्यादा से ज्यादा किसानों व बागवानों से शिवा प्रोजेक्ट का लाभ उठाने का आहवान किया है ताकि जहां उनकी बेकार व बंजर पड़ी जमीन को बागवानी के साथ जोड़ा जा सके तो वहीं घर बैठे आमदनी का भी एक बेहतर जरिया प्राप्त होगा। साथ ही कहा कि बेरोजगार युवाओं के लिये घर बैठे बागवानी एक अच्छा स्वरोजगार का माध्यम भी बन सकती है। 

क्या कहते हैं अधिकारी:

एचपी शिवा प्रोजेक्ट के माध्यम से चौंतड़ा ब्लॉक में तैनात फैसिलिटेटर निशांत ठाकुर का कहना है कि ढेलू हार में परस राम व अन्य पारिवारिक सदस्यों की एक हेक्टेयर जमीन में शिवा प्रोजेक्ट के माध्यम से अमरूद का अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन स्थल (एफएलडी) तैयार किया जा रहा है। एक वर्ष पहले यहां पर अमरूद के 1666 पौधे रोपित किये गए हैं। आने वाले समय में यहां पर लगभग 10 हेक्टेयर क्षेत्रफल में अमरूद का एक कलस्टर तैयार किया जायेगा जिसके लिये स्थानीय किसान तैयार हो चुके हैं। उन्होने बताया कि वर्तमान में चौंतड़ा ब्लॉक में कुल पांच अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन स्थल (एफएलडी) तैयार किये जा रहे जिसमें ढेलू हार के अतिरिक्त गोलवां में अमरूद, जलाड में संतरा, कोठी-एक में अमरूद व कोठी-दो संतरा का बगीचा शामिल हैं। उन्होने बताया कि गोलवां में भी लगभग 20 हेक्टेयर क्षेत्र में अमरूद का कलस्टर तैयार किया जाएगा जिसके लिये प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। 

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Saturday, 21 May 2022

प्रकाश चंद, कृष्ण चंद, देवेन्द्र व अजय कुमार के लिये 'काफल' बना रोजगार का जरिया

 प्राकृतिक फल 'काफल' बेचकर प्रतिदिन कमा रहे औसतन एक हजार रुपये, दो महीने तक चलता है काफल

मौसमी व जंगली तौर पर पाया जाने वाला 'काफल' प्रकाश चंद, कृष्ण चंद, देवेन्द्र व अजय कुमार सहित कई लोगों के लिये आजकल आमदनी का एक बेहतरीन जरिया बना हुआ है। काफल बेचकर न केवल ये लोग प्रतिदिन एक से डेढ़ हजार रुपये की कमाई कर पा रहे हैं बल्कि डेढ से दो महीनों तक चलने वाले काफल के फल को बेचकर औसतन 60 से 70 हजार रुपये की कमाई कर लेते हैं। ऐसे में काफल बेचने वाले ग्रामीणों के लिये यह जंगली फल काफल वार्षिक आमदनी में कमाई का एक बड़ा जरिया बना है।
जोगिन्दर नगर शहर के थाना चौक में काफल बेचने वाले प्रकाश चंद से बातचीत की तो उन्होने बताया कि वे पिछले लगभग 10 वर्षों से लगातार काफल बेच रहे हैं तथा आजकल वे प्रतिदिन एक क्विंटल से अधिक मात्रा में काफल बेच देते हैं। जिससे उनको लगभग प्रतिदिन तीन हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती है। इसी तरह जोगिन्दर नगर बस स्टैंड के बाहर काफल बेचने वाले देवेन्द्र कुमार ने बताया कि वह भी पिछले 15-16 वर्षों से लगातार काफल बेच रहे हैं तथा इससे अच्छी आमदनी हो जाती है। वर्तमान में उन्हे काफल से प्रतिदिन लगभग 15 सौ रुपये तक की कमाई हो रही है।
इसी तरह जोगिन्दर नगर रेलवे स्टेशन के नजदीक लगभग पांच वर्ष से काफल बेचने वाले अजय कुमार ने बताया कि उन्हे भी प्रतिदिन काफल से लगभग 2 हजार रुपये की आमदनी हो रही है। यही नहीं जोगिन्दर नगर बस स्टेंड में ही काफल बेच रहे कृष्ण चंद ने बताया कि वे भी प्रतिदिन काफल बेचकर एक हजार रुपये तक कमा रहे हैं। अकेले जोगिन्दर नगर शहर में ही आधा दर्जन लोगों के लिये आजकल काफल आमदनी का एक अहम जरिया बना हुआ है।

औषधीय गुणों से भरपूर होता है काफल:
काफल जंगली तौर पर पाया जाने वाला एक फल ही नहीं है बल्कि हमारे शरीर में एक औषधि का काम भी करता है। काफल में विटामिन्स, आयरन और एंटी ऑक्सीडेंन्टस प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। काफल के पेड़ की छाल, फल तथा पत्तियां भी औषधीय गुणों के लिये जानी जाती है। काफल की छाल में एंटी इन्फ्लेमेटरी, एंटी-हेल्मिंथिक, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-माइक्रोबियल क्वालिटी पाई जाती है। इतने गुणों से परिपूर्ण काफल न केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है बल्कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की रोकथाम का भी काम करता है।
काफल खाने से पेट के कई प्रकार के विकार दूर होते हैं। इसका सेवन मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के लिए भी फायदेमंद माना गया है। काफल के फूल का तेल कान दर्द, डायरिया तथा लकवे की बीमारी में उपयोग के साथ-साथ हृदय व मधुमेह रोग, उच्च एवं निम्न रक्तचाप को नियंत्रित करने में भी सहायक होता है।
काफल खाने में स्वादिष्ठ, रंग में हरा, लाल और काले रंग का फल है। इस फल को वैज्ञानिक तौर पर माइरिका एस्कुलेंटा के नाम से भी जाना जाता है। काफल का फल गर्मी में शरीर को ठंडक प्रदान करता है। साथ ही इसके फल को खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
कहां पाया जाता है काफल:
काफल उत्तरी भारत और नेपाल के पर्वतीय क्षेत्र, मुख्यत हिमालय की तलहटी क्षेत्रों में पाया जाने वाला सदा हरा भरा रहने वाला एक काष्ठीय वृक्ष प्रजाति है। काफल का पेड़ 1300 मीटर से 2100 मीटर (4000 फीट से 6000 फीट) तक की ऊँचाई पर प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाला वृक्ष है। काफल जोगिन्दर नगर क्षेत्र के गलू, बसाहीधार, घटासनी, भभौरी धार के साथ-साथ मंडी के चैलचौक, पधर इत्यादि क्षेत्रों में बहुतायत में पाया जाता है। काफल को बॉक्स मर्टल और बेबेरी के नाम से भी जाना जाता है।





Thursday, 28 April 2022

जोगिन्दर नगर के चौंतड़ा में लगभग 25 लाख रुपये की लागत से विकसित हुआ पंचवटी पार्क

वरिष्ठ नागरिकों व बच्चों को मिल रही मनोरंजन के साथ पार्क व झूलों की सुविधा

जोगिन्दर नगर उपमंडल के अंतर्गत चौंतड़ा में वरिष्ठ नागरिकों के साथ-साथ बच्चों की सुविधा के लिये पंचवटी पार्क विकसित किया गया है। इस पंचवटी पार्क में जहां वरिष्ठ नागरिकों को घूमने के लिये पक्के रास्ते, बैठने के लिये बैंच इत्यादि की सुविधा मुहैया करवाई गई है तो वहीं बच्चों के लिये झूले भी स्थापित किये गए हैं। इसके अलावा ग्रामीणों के लिये खेल सुविधा की दृष्टि से जहां बैडमिंटन कोर्ट विकसित किया गया है तो वहीं ओपन जिम की सुविधा उपलब्ध करवाई गई है। साथ ही पार्क में आने वाले सभी वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं व बच्चों के लिये शौचालय की सुविधा भी मुहैया करवाई गई है।

विकास खंड कार्यालय चौंतड़ा के परिसर के साथ विकसित किये गए इस पंचवटी पार्क के निर्माण पर लगभग 25 लाख रुपये से अधिक की धनराशि मनरेगा सहित अन्य मदों के तहत व्यय की गई है। इसके अलावा इस पार्क को चार दीवारी से भी बंद किया गया है ताकि बेसहारा पशुओं इत्यादि से भी इसे सुरक्षित एवं साफ सुथरा बनाये रखा जा सके।

इस संबंध में स्थानीय वरिष्ठ नागरिक महेंद्र सिंह, सुरेंद्र, नरेश इत्यादि का कहना है कि चौंतड़ा में पंचवटी पार्क विकसित हो जाने से उनके जैसे कई वरिष्ठ नागरिकों को सुबह-शाम घूमने व बैठने के लिये उचित स्थान की सुविधा प्राप्त हुई है। इसी गांव से संबंध रखने वाली युवती मेघना का कहना है कि इस पार्क में जहां बच्चों के लिये झूले इत्यादि की सुविधा मिली है तो वहीं युवाओं को ओपन जिम, बैडमिंटन कोर्ट इत्यादि का भी प्रावधान किया गया है।
उन्होने प्रदेश सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में पंचवटी पार्क विकसित करने के निर्णय को न केवल सराहा है बल्कि ग्रामीणों को भी शहरी क्षेत्रों की तर्ज पर पार्क इत्यादि की सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए सरकार का धन्यवाद किया है। साथ ही आग्रह किया है कि इस तरह के पार्कों का निर्माण बड़े पैमाने पर हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाना चाहिए ताकि वरिष्ठ नागरिकों के साथ-साथ बच्चों व युवाओं को पार्क की अच्छी सुविधा उपलब्ध हो सके।
क्या है पंचवटी पार्क विकसित करने की योजना:
प्रदेश सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों को ग्रामीण स्तर पर मनोरंजन के साथ-साथ पार्क व बागीचों की सुविधा मुहैया करवाने के लिए वित्तीय बजट वर्ष 2020-21 में पंचवटी पार्क विकसित करने की घोषणा की थी। पंचवटी पार्क योजना में ग्रामीण विकास विभाग के माध्यम से मनरेगा, स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) तथा 14वें वित्त आयोग सहित अन्य मदों के तहत प्रदेश के सभी विकास खंडों में एक बीघा समतल भूमि पर सभी आवश्यक सुविधाओं से लैस पार्क व बागीचे विकसित करने का अहम निर्णय लिया गया है। इन पार्कों में जहां वरिष्ठ नागरिकों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आयुर्वेदिक व औषधीय पौधों के रोपण का भी लक्ष्य रखा है तो वहीं बच्चों के लिये झूले, खेलने इत्यादि की व्यवस्था का भी प्रावधान किया गया है।
क्या कहते हैं अधिकारी:
खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) चौंतड़ा विवेक चौहान का कहना है कि चौंतड़ा में लगभग 25 लाख रुपये से अधिक की धनराशि मनरेगा सहित अन्य मदों से व्यय कर पंचवटी पार्क विकसित किया गया है। जिसमें वरिष्ठ नागरिकों के साथ-साथ बच्चों व युवाओं के लिये मनोरंजक गतिविधियां विकसित की गई हैं। उन्होने बताया कि इसी योजना के अंतर्गत चौंतड़ा ब्लॉक की विभिन्न ग्राम पंचायतों में लगभग 15 से 20 पार्क विकसित किये जा रहे हैं जिनका निर्माण कार्य विभिन्न चरणों में है।












Wednesday, 16 March 2022

कॉर्पोरेट सेक्टर की नौकरी छोड़, हाईड्रोपोनिक्स खेती से 50 हजार महीना कमा रहे नवीन शर्मा

 जोगिन्दर नगर के ऐहजू में 500 वर्ग मीटर क्षेत्र में स्थापित किया है हाईड्रोपोनिक्स पॉलीहाउस

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) हमीरपुर से इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त 42 वर्षीय नवीन शर्मा ने कॉर्पोरेट सेक्टर की ऊंची तनख्ख्वाह वाली नौकरी छोडक़र हाइड्रोपोनिक्स तरीके से खेती कर न केवल प्रतिमाह 50 से 60 हजार रूपये कमा रहे हैं बल्कि लाखों युवाओं के लिये प्रेरणास्त्रोत भी बने हैं। 500 वर्गमीटर क्षेत्र में स्थापित हाइड्रोपोनिक्स पॉलीहाउस के माध्यम से नवीन शर्मा न केवल अच्छी कमाई कर पा रहे हैं बल्कि दो युवाओं को सीधा रोजगार भी प्रदान किया है। हाइड्रोपोनिक्स तरीके से खेती करने वाले नवीन शर्मा न केवल जोगिन्दर नगर क्षेत्र के ऐसे पहले किसान हैं बल्कि उन्होने इस क्षेत्र में भविष्य की खेती की नींव भी रखी है।
जब इस बारे नवीन शर्मा से बातचीत की तो उन्होने बताया कि वे पिछले एक वर्ष से जोगिन्दर नगर के ऐहजू में हाइड्रोपोनिक विधि से खेती कर रहे हैं तथा उन्हे प्रतिमाह औसतन 50 से 60 हजार रूपये की शुद्ध आय हो रही है। नवीन शर्मा ने पॉलीहाउस में लैट्यूस, चैरी टोमैटो, शिमला मिर्च, स्ट्रॉबेरी, केल, धनिया, मिर्च, टमाटर इत्यादि फसलें नियमित अंतराल के बाद तैयार कर रहे हैं। उनकी यह तैयार फसलें पालमपुर, कांगड़ा, धर्मशाला, मैक्लोडगंज इत्यादि स्थानों में आसानी से बिक भी रही हैं तथा उन्हे अच्छे दाम भी प्राप्त हो रहे हैं।
उनका कहना है कि जहां तैयार लैट्यूस 400 से 450 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से बाजार में बिक रहा है तो वहीं चैरी टोमैटो 300 से 350 जबकि बेसिल तुलसी 400 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से दाम प्राप्त हो रहे हैं। इसके अलावा स्ट्रॉबेरी, केल तथा शिमला मिर्च व धनिया इत्यादि के भी अच्छे दाम प्राप्त हो रहे हैं। 
नवीन शर्मा कहते हैं कि हाइड्रोपोनिक्स खेती की एक ऐसी आधुनिक तकनीक है जिसमें केवल पानी का ही इस्तेमाल होता है। साथ ही पारंपरिक खेती के मुकाबले हाइड्रोपोनिक्स से पानी की लगभग 90 फीसदी तक बचत भी होती है। उनका कहना है कि वे पौधों की नर्सरी भी स्वयं तैयार करते हैं तथा पौधे तैयार होते ही उन्हे स्थापित पाइपों में रोप दिया जाता है। इसके बाद पाइपों के माध्यम से पानी की सप्लाई द्वारा सभी तरह के पोषक तत्व पौधों को दिये जाते हैं। नवीन शर्मा हाइड्रोपोनिक्स खेती को व्हाइट कॉलर खेती की संज्ञा भी देते हैं। हाइड्रोपोनिक्स खेती का कार्य शुरू करने से पहले नवीन शर्मा 15 वर्ष तक कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों में देश व देश के बाहर जॉब कर चुके हैं तथा उन्हे अच्छा पैकेज भी मिल रहा था। लेकिन अब उन्होने स्वरोजगार को ही आगे बढ़ने का माध्यम बनाया है तथा पिछले तीन-चार वर्षों से इस दिशा में वे आगे बढ़ रहे हैं।

पॉलीहाउस निर्माण को 5.18 लाख तो हाइड्रोपोनिक्स सेटिंग को मिला है 3 लाख का सरकारी उपदान

नवीन शर्मा बताते हैं कि पॉलीहाउस निर्माण को सरकार ने 85 प्रतिशत की दर से 5.18 लाख रूपये का उपदान मुहैया करवाया है जबकि हाइड्रोपोनिक्स सेटअप के लिये 3 लाख रूपये की सब्सिडी मिली है। उन्होने बताया कि हाइड्रोपोनिक सेटअप के लिये कुल 10 लाख रूपये की लागत आई है। इसके अलावा पॉलीहाउस की सोलर युक्त बाड़बंदी को भी सरकार ने 80 प्रतिशत की दर से 1.35 लाख रूपये का अनुदान प्रदान किया है।

हाइड्रोपोनिक खेती से जुडऩे को आगे आएं युवा, उपलब्ध करवाएंगे प्रशिक्षण की सुविधा

उन्होने हाइड्रोपोनिक विधि से खेती करने के लिये युवाओं से आगे आने का भी आहवान किया है। उन्होने कहा कि इसके लिये वे युवाओं को प्रशिक्षण भी प्रदान करने के लिये तैयार हैं। बड़े स्तर पर हाइड्रोपोनिक्स खेती से न  केवल बाजार की डिमांड को आसानी से पूरा किया जा सकता है बल्कि अपनी पहुंच को बड़े शहरों जैसे चंडीगढ़, दिल्ली, मुंबई इत्यादि तक ले जाने में उन्हे दाम भी अच्छे प्राप्त होंगे।

क्या कहते हैं अधिकारी:

एसडीएम जोगिन्दर नगर डॉ. (मेजर) विशाल शर्मा का कहना है कि नवीन शर्मा ने हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से खेती का कार्य शुरू किया है जो इस उपमंडल के हजारों युवाओं के लिये प्रेरणा का काम करेगा। उन्होने कहा कि हाइड्रोपोनिक्स तकनीक भविष्य की खेती है जिससे जुडक़र न केवल युवा घर बैठे अच्छी कमाई कर सकते हैं बल्कि रोजगार की तलाश में उन्हे प्रदेश के बाहर भी नहीं जाना पड़ेगा। उन्होने ज्यादा से ज्यादा युवाओं से इस आधुनिक खेती तकनीक से जुडऩे का आहवान किया है।









https://youtu.be/XQwl7IyEDX8