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Tuesday, 5 April 2016

भक्त माई दास के माध्यम से प्रकट हुई मां चिंतपूर्णी

हिमाचल प्रदेश जहां अपने प्राकृतिक सौंदर्य, हिमाच्छादित पर्वतों एवं सुंदर घाटियों के लिए विश्वविख्यात है तों वहंी चप्पे-चप्पे में विराजमान देवी-देवताओं के कारण इसे देवभूमि के नाम से भी पुकारा जाता है। आज हिमाचल प्रदेश में अनेकों प्रसिद्ध धार्मिक स्थान हैं जहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शनार्थ यहां पहुंचते हैं। इन्ही धार्मिक स्थानों में से एक है भारत वर्ष के प्रसिद्ध 52 शक्ति पीठों में विराजमान छिन्नमस्तिका धाम चिंतपूर्णी, जो ऊना जिला के मुख्यालय ऊना से  लगभग 50 किलोमीटर तथा उपमंडल अंब के भरवाईं से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 
चिंतपूर्णी मां के स्थान का प्रादुर्भाव देवी भक्त माई दास के माध्यम से माना जाता है। प्रचलित एक जनश्रुति के अनुसार प्राचीन काल में पंजाब के जिला पटियाला के अठूर नामक गांव में माई दास और दुर्गा दास नामक दो भाई रहते थे। लेकिन इसके बाद ये दोनों हिमाचल प्रदेश के रपोह मुचलेयां नामक गांव में आकर रहने लगे तथा यहां आकर खेतीबाडी करने लगे। माई दास का अधिकतर समय पूजा पाठ में व्यतीत होने लगा जबकि दुर्गा दास अकेले ही खेती बाडी करता था। कहते हैं कि माई दास का ससुराल पिरथीपुर नामक गांव में था। एक बार जब माई दास अपने ससुराल से लोटते वक्त छपरोह गांव से गुजर रहा था तो वह कुछ देर विश्राम करने के लिए एक वट वृक्ष के नीचे लेट गया तथा उसे नींद आ गई। नींद आते ही स्वपन्न में माई दास को एक कन्या ने दर्शन दिए तथा कहा कि तुम मेरी यहां नित्य प्रेम पूर्वक पूजा-अर्चना आरंभ करो। लेकिन जैसे ही स्वप्र टूटा माई दास को कुछ भी दिखाई नहीं दिया तथा वह अपने ससुराल चला गया। परन्तु रात को बिस्तर में लेटने पर नींद नहीं आ रही थी तथा बार-बार सोने का प्रयास करने के बावजूद वह सो नहीं पाया और रात को ही ससुराल से छपरोह आ गया तथा यहां आकर मां से विनम्रतापूर्वक प्रार्थना करने लगा कि मां यदि तू सच्ची है तो अभी दर्शन दो। माई दास की प्रार्थना से प्रसन्न होकर मां ने कन्या रूप में दर्शन दिए तथा कहा कि वह चिरकाल से यहां स्थित वट वृक्ष के नीचे मेरा घर है तथा तुम यहां पूजा-अर्चना आरंभ कर दो। मां ने कहा कि यहां पूजा अर्चना करने से तुम्हारे और अन्य समस्त लोगों के कष्ट एवं चिंताए समाप्त हो जाएंगी।
लेकिन माई दास ने कन्या से कहा कि न तो मेरे रहने की व्यवस्था है न ही यहां पीने के लिए पानी का प्रबंध है। ऐसे में कन्या ने कहा कि मैं भक्तों के ऊपर प्रकाश डालूगीं जो यहां मंदिर बनवाएंगें तथा भोग का प्रबंध करेंगें। जबकि यहां से 50 गज की दूरी पर पहाडी के नीचे एक पत्थर को उखाडने से पानी की समस्या का समाधान हो जाएगा। मां ने कहा कि मेरी पूजा के समस्त अधिकार आपके तथा आपके परिवार के होंगें तथा आपके वंश के लिए किसी प्रकार का सूतक-पातक का बंधन नहीं होगा। यहां किसी प्रकार का अत्याचार या गलत कार्य होने पर मैं किसी भी कन्या में प्रवेश कर आपकी समस्या का समाधान करूंगी। ऐसा कहते ही कन्या पिंडी के रूप में लोप हो गई। मंदिर के प्रांगण में स्थित वट वृक्ष अति प्राचीन है। इस बारे श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां डोरियां बांधने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है तत्पश्चात श्रद्धालु बांधी हुई डोरी को खोलते हैं। यहां प्रति वर्ष नव वर्ष, श्रावण अष्टमी,चैत्र एवं आश्विन के नवरात्रों में मेले लगते हैं। इस वर्ष के चैत्र नवरात्र मेलों का आयोजन 8 अप्रैल से 15 अप्रैल तक किया जा रहा है।
मां के दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालु सडक़ मार्ग के अतिरिक्त रेल के माध्यम से भी यहां पहुंच सकते हैं। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन अंब है जो मंदिर से महज 25 किलोमीटर दूर है। इसके अतिरिक्त हवाई मार्ग के माध्यम से सबसे नजदीकीहवाई अडडा गगल कांगडा है जहां से श्रद्धालु लगभग दो घंटे का सडक मार्ग से सफर कर मां के दरबार में पहुंच सकते हैं। बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ठहरने के लिए मंदिर न्यास के यात्री सदन के अतिरिक्त यहां निजी क्षेत्र में कई होटल व धर्मशालाएं हैं।

(साभार: दिव्य हिमाचल, 09 अप्रैल, 2016 को आस्था अंक तथा गिरिराज 11 मई, 2016 के अंक में प्रकाशित)