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Friday, 30 December 2016

जिला ऊना में बेटियों को बचाएगी हिमाचल सरकार की मुस्कान

हिमाचल प्रदेश में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में कन्या भ्रूण हत्याओं एवं अन्य कारणों से जहां हमारे समाज में बेटियों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज हुई है तो वहीं बेटों की चाहत में बेटियों की अनदेखी ने हमारी सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रश्न चिन्ह खडा कर दिया है। ऐसे में यदि प्रदेश की पिछली जनगणाओं के आंकडों का विशलेषण करें तो प्रदेश में कन्या शिशु लिंगानुपात में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। प्राप्त आंकडों की बात करें तो प्रदेश में जहां वर्ष 1981 में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति हजार लडकों पर लडकियों का शिशु लिंगानुपात 971 था जो वर्ष 1991 में गिरकर 951 तथा 2001 में यही आंकडा नौ सौ के नीचे 896 तक जा पहुंचा। भले ही वर्ष 2011 की जनगणना में प्रदेश में यही लिंगानुपात 906 हो गया हो लेकिन राष्ट्रीय अनुपात 914 के मुकाबले न केवल कम है बल्कि प्रदेश के कई जिलों में प्राप्त आंकडों के कारण स्थिति को ओर भी भयावह बना दिया है। 
राष्ट्रीय स्तर पर देश भर में बेटियों को बचाने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को चलाया गया जिसके तहत देश भर के उन चुनिंदा जिलों को शामिल किया गया है जहां बेटियों की संख्या बेटों के मुकाबले लगातार कम होती गई है। इसी अभियान के तहत जहां प्रथम चरण में हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना को शामिल किया गया तो वही दूसरे चरण में जिला कांगडा व हमीरपुर को भी शामिल कर लिया गया है। लेकिन ऐसे में बेटियों के प्रति समाज में व्यापक जन जागरूकता लाने तथा कन्या भ्रूण हत्याओं को रोकने के लिए हिमाचल सरकार ने स्वयं पहल करते हुए मुस्कान योजना को प्रारंभ किया। मुस्कान योजना को पहले चरण में प्रदेश के सात जिलों चंबा, किन्नौर, लाहुल व स्पिति, कुल्लू, शिमला, सिरमौर तथा सोलन में आरंभ किया गया तो वहीं अब इस योजना को प्रदेश के शेष बचे जिलों में भी प्रारंभ कर दिया गया जिसमें कन्या शिशु लिंगानुपात की दृष्टि प्रदेश के अति संवेदनशील जिला ऊना भी शामिल है। 
ऐसे में वर्ष 2011 के आंकडों की बात करें तो जिला ऊना में जहां कन्या शिशु लिंगानुपात 870 दर्ज किया गया है जो राष्ट्रीय औसत के मुकाबले काफी कम आंका गया था। लेकिन जिला में चले बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत जहां स्वास्थ्य विभाग के आंकडों के मुताबिक शिश ुलिंगानुपात में वृद्धि दर्ज हुई है तो वहीं प्रशासन द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों से बेटियों के प्रति व्यापक जागरूकता भी आई है। लेकिन इन सब प्रयासों के बावजूद जिला ऊना प्रदेश का एक सीमावर्ती जिला होने के कारण जहां पडोसी राज्यों में कन्या भ्रूण हत्याओं की घटनाओं के कारण शिशु लिंगानुपात को प्रभावित किया है तो वहीं कानूनी शिकंजा भी ऐसे कुकृत्य करने वालों को आसानी से अपनी पकड़ में नहीं ले पाता है। 
ऐसे में प्रदेश सरकार की मुस्कान योजना जहां जिला में कन्या शिशु लिंगानुपात में व्यापक सुधार लाने तथा कन्या भ्रूण हत्याओं को रोकने में कारगर साबित होगी। इस योजना के तहत प्रत्येक पंचायत में गर्भावस्था के दस सप्ताह के दौरान पंजीकरण करवाना अनिवार्य बनाया गया है तो वहीं आंगनवाडी कार्यकत्र्ताओं के माध्यम से गर्भवती महिलाओं को नजदीकी स्वास्थ्य या उप स्वास्थ्य केन्द्र में भी पंजीकृत करवाया जाएगा। सबसे अहम पहेलु तो यह है कि आंगनवाडी कार्यकत्र्ताओं के सहयोग से गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं को लगातार ट्रैक किया जाएगा। इसके अलावा जिन परिवारों में पहले से ही एक या दो लडकियां हैं उन परिवारों को महिला की गर्भावस्था की स्थिति के दौरान अति संवेदनशील श्रेणी में रखा जाएगा तथा आंगनवाडी वर्कर्ज के माध्यम से लगातार निगरानी रखी जाएगी। इसी योजना के अंतर्गत पंचायतों के पिछले पांच वर्षों के जन्म पर शिशु लिंगानुपात के आंकडे भी एकत्रित किए जाएंगें तथा जिन पंचायतों में कन्या शिशु लिंगानुपात की दर में लगातार कमी पाई जाती है तो ऐसी पंचायतों को रेड अलर्ट पर रखा जाएगा।
मुस्कान योजना के तहत बेटियों के प्रति व्यापक जन जागरूकता लाने के लिए कम कन्या लिंगानुपात वाली पंचायतों को चिन्हित कर जहां नवविवाहित जोडों को परामर्श के माध्यम से जागरूक किया जाएगा तो वहीं व्यापक जन जागरूकता लाने के लिए जगह-जगह जागरूकता शिविर भी आयोजित किए जाएंगे। साथ ही जिला में गुडडा-गुडडी बोर्ड के माध्यम से प्रमुख जगहों पर नवजात कन्याओं व बेटियों की संख्या को भी प्रदर्शित किया जाएगा। जबकि पंचायत में पैदा होने वाली नवजात कन्याओं के अभिभावकों को मुख्य मंत्री द्वारा हस्ताक्षरित बधाई पत्र भी दिया जाएगा। इसके अलावा नवजात कन्याओं के नाम पर विभिन्न तरह की बचत योजनाओं में खाते खोलने जैसे सुकन्या समृद्धि योजना खाता, आरडी या एफडी इत्यादि बारे प्रोत्साहित किया जाएगा। साथ ही प्रत्येक पंचायत में वर्ष में कम से कम तीन बार बालिका दिवस आयोजित किया जाएगा। इसके अलावा पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पीसी पीएनडीटी) अधिनियम, घरेलु हिंसा अधिनियम, प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (पॉक्सो) एक्ट, दहेज निरोधक कानून सहित अन्य महिला अधिकारों व कानूनों तथा कल्याण के लिए चल रही विभिन्न योजनाओं बारे भी व्यापक जन जागरूकता लाई जाएगी।
इस तरह जिला ऊना में गत दो वर्षों से चल रहे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के साथ-साथ अब प्रदेश सरकार की मुस्कान योजना भी लिंगानुपात में सुधार लाने, नवजात कन्याओं को बचाने तथा बेटियों के प्रति व्यापक जन जागरूकता लाने में कारगर साबित होगी। ऐसे में जिला प्रशासन व यहां के लोगों की व्यापक जन सहभागिता से वह दिन दूर नहीं होगा जब जिला ऊना प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के उन चुनिंदा जिलों में शुमार होगा जहां बेटियों की संख्या बेटों के मुकाबले कमतर नहीं रहेगी।

(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 27 दिसम्बर, 2016 एवं दैनिक आपका फैसला, 9 जनवरी, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Saturday, 17 December 2016

भ्रष्टाचार को लेकर सामाजिक मानसिकता बदलेगी

भारत में भ्रष्टाचार व कालेधन को लेकर आजकल कोहराम मचा हुआ है। 8 नवम्बर के बाद देश में बंद हुए एक हजार व पांच सौ रूपये के नोटों के चलते हर तरफ  मानो अफरातफरी का माहौल व्याप्त है। समाज के हर वर्ग का व्यक्ति बंद हुए नोटों के चलते जहां बैंकों व डाकघरों के बाहर पुराने नोटों को जमा करने व बदलवाने के लिए घंटों कतारबद्ध हो रहे हैं तो वहीं काली कमाई कर लाखों-करोडों दबा बैठे लोगों की मानों रातों-रात पूरी जिंदगी ही तबाह हो गई हो। खैर ये सब जो हुआ इसके पीछे भारत सरकार का निर्णय लेने के कारण कुछ भी रहे हों। लेकिन ऐेसे माहौल मेें अब एक ही प्रश्न उभर कर सामने आ रहा है कि आखिर भ्रष्टाचार को लेकर सामाजिक मानसिकता में बदलाव आ पाएगा? क्या भ्रष्टाचार के विरूद्ध इस लडाई में हमारी कार्य संस्कृति, स्वच्छ, पारदर्शी व जबावदेह बन पाएगी? क्या लोगों के आचरण व व्यवहार में वह परिवर्तन आ पाएगा जिसकी आज देश को सख्त दरकार है? 
लेकिन ऐसे में अब प्रश्न यह उठ रहा है कि आखिर भ्रष्टाचार है क्या? क्या महज चंद रूपयों की खातिर नियमों की उलंघना करना या फिर गलत तरीके से राज्य व्यवस्थाओं के विरूद्ध कार्य करते हुए चल व अचल संपति को एकत्रित करना मात्र है। वास्तव में भ्रष्टाचार इन सब बातों से भी कहीं आगे बढक़र है जो सीधा व्यक्ति विशेष के आचरण व व्यवहार से जुडा मसला है।
हमारी इस सामाजिक व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन कहीं न कहीं लडता है, जूझता है या फिर यूं कहें कि विभिन्न परिस्थितियों का सामना करता है। बात चाहे बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन पर टिकट हासिल करने की हो या फिर सरकारी कार्यालयों में कार्यों के निपटान से लेकर बाजार से जरूरी चीजों की खरीदफरोख्त की हो। ऐसे में अक्सर देखा जाता है कि व्यक्ति अपने जीवन व दिनचर्या से जुडे इन छोटे-छोटे कार्यों के लिए या तो वह किसी ऊंची पहुंच की तलाश में जुट जाता है या कुछ ले देकर जल्द निपटाने में ही भला चाहता है। जबकि हमारी बाजारी व्यवस्था के कडवे अनुभव उपभोक्ताओं की खून पसीने की कमाई पर कई बार भारी पड जाते हैं। लेकिन भ्रष्ट आचरण व व्यवहार की इस विषवेल में जहां देश का आम नागरिक मनमसोस कर रह जाता है तो वहीं इसका सीधा असर हमारी कार्य संस्कृति व व्यवस्था पर भी पडता है। लेकिन अब सवाल यह खडा होता है कि समाज का एक तबका लाइन व सिस्टम में खडा होकर कार्य करवाने को अपनी हैसियत के विरूद्ध अपनी तौहीन समझता है या फिर ऐसा करके वह समाज में अपनी धौंस जमाता है। 
अब आप दिनचर्या में से ही बैंकों या अस्पतालों का ही उदाहरण ले लीजिए। जहां पहुंच व जान पहचान से दूर व्यक्ति घंटों लाईन पर खडा होकर अपनी बारी का इंतजार करता है तो वहीं ऊंची पहुंच व रसूखदार व्यक्ति सेटिंग या चालाकी से अपना काम निकलवा लेता है। कई बार तो आलम यह हो जाता है कि जहां सही व्यक्ति भ्रष्टाचारियों से लडते-2 कहीं कोसों दूर पीछे रह जाता है तो वहीं व्यवस्था का दम घोटने वाले ही निर्णय की स्थिति में पहुंच जाते हैं। अब आप क्या इसे भ्रष्टाचार नहीं कहेंगें? वास्तव में भ्रष्टाचार के पोषक महज समाज के चंद लोगों को ही नहीं कहा जा सकता बल्कि इसे बढावा देेने में समाज को भी कहीं न कहीं जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। ऐसे में जरूरी है कि समाज के हर वर्ग चाहे वह किसी भी स्तर या हैसियत का हो, भ्रष्टाचार की इस सामाजिक लडाई में न केवल सबको एक ही पंक्ति में लगना होगा बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को समाज व सिस्टम के प्रति जबावदेह भी बनना होगा। 
भ्रष्टाचार के लिए महज चंद लोगों के गले में भ्रष्टाचारी होने का तमगा लटका देने से न तो समाज पूरी तरह से भ्रष्टाचार मुक्त होगा न ही सामाजिक व्यवस्था का लाभ हर जरूरतमंद तक पहुंच पाएगा। इसके लिए जरूरी है कि समाज का हर वर्ग, व्यक्ति, संस्था चाहे वह निजी हो या फिर सरकारी अपनी कार्य संस्कृति में पूरी पारदर्शिता के साथ व्यापक बदलाव लाते हुए समाज के प्रति जबावदेह बने। साथ ही वक्त आ गया है कि समाज में आम व खास के मध्य की उस दीवार को ध्वस्त करने का जो अक्सर भ्रष्ट आचरण में पोषक का कारण बनती है। इन सबसे अधिक जरूरी है कि भ्रष्टाचार की इस लडाई में दूसरों पर दोषारोपण करने के बजाए प्रत्येक व्यक्ति को आत्म निरीक्षण कर स्वयं से पहल करने की। 
यह समझ लीजिए जिस दिन समाज का प्रत्येक व्यक्ति भ्रष्टाचार व भ्रष्ट आचरण के प्रति अपनी सोच में बदलाव ले आएगा उस दिन खुद व खुद हमारा सामाजिक ढ़ांचा व कार्य संस्कृति भी बदल जाएगी। तो क्या राष्ट्र व समाजिक हित में भ्रष्टाचार की इस बुराई के विरूद्ध आप स्वयं से शुरूआत कर रहे हैं?

(साभार: दैनिक दिव्य हिमाचल, 17 नवम्बर, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Friday, 18 November 2016

औद्योगिकरण की राह में अग्रसर जिला ऊना

हिमाचल प्रदेश में लघु स्तरीय उद्योगों का इतिहास क्रमबद्ध नहीं रहा। पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से उद्योगपतियों को यहां उद्योग स्थापित करना घाटे का सौदा लगता था। तकनीकी मार्गदर्शन तथा सुनियोजित औद्योगिक नीति का अभाव भी उद्योगों के विकास में बाधक रहे। इन तमाम कठिनाईयों को अनुभव करते हुए प्रदेश सरकार ने सन् 1967 में एक नीति के तहत लघु उद्योगों के पंजीकरण का विकेन्द्रीकरण करते हुए जिला स्तर पर पंजीकरण की सुविधा उपलब्ध करवाई, जिससे उद्यमियों को सहायता, सुझाव तथा मार्गदर्शन भी प्राप्त होने लगा।
वर्ष 1971 में हिमाचल प्रदेश ने विविध उद्योगों की स्थापना हेतु उद्योगपतियों को आकर्षित करने के लिए नए नियम बनाए और उदार सहायता नीति को अपनाने के अतिरिक्त कुछ क्षेत्रों का चयन कर उन्हे औद्योगिक क्षेत्रों के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया। इस निर्णय के तहत हर जिला में एक क्षेत्र का चयन किया गया। ऊना जिला में प्राथमिकता के आधार पर मैहतपुर को चयनित किया गया। होशियारपुर-ऊना-नंगल सडक़ पर जिला मुख्यालय से करीब 13 किलोमीटर दूर स्थित मैहतपुर में 109 एकड़ भूमि का चयन किया गया। वर्ष 1974 में औद्योगिक दृष्टि से गगरेट जिला का दूसरा महत्वपूर्ण स्थान बना। यह ऊना से लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर होशियारपुर-धर्मशाला सडक़ पर स्थित है। सोलन के बाद प्रमुखता से प्रदेश के औद्योगिक मानचित्र पर उभरने वाले इस जिला में मैहतपुर तथा गगरेट के पश्चात विकसित होने वाले औद्योगिक स्थानों में टाहलीवाल, धमांदरी तथा अंब शामिल हैं।
केन्द्र सरकार द्वारा 07 जनवरी, 2003 को हिमाचल प्रदेश के लिए घेाषित विशेष औद्योगिक इकाईयों के 1,734 विभिन्न अस्थाई पंजीकरण में 497 लघु उद्यम, 1,148 सूक्ष्म तथा 89 मध्यम एवं बड़े उद्योग शामिल थे। इससे लघु उद्योगों में 856.04 करोड रूपये का निवेश से 20,645 व्यक्तियों, सूक्ष्म उद्योगों में 422.14 करोड रूपये का निवेश से 20,334 व्यक्तियों तथा 7752.48 करोड़ रूपये के निवेश से 45,001 लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ। इस तरह इन उद्योगों की स्थापना से ऊना में कुल 9030.66 करोड़ रूपये के निवेश से 88,980 लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ। 
प्रदेश की शिवालिक पहाडियों के अंचल में बसा जिला ऊना समय के साथ-साथ प्रगति के पथ पर निरन्तर अग्रसर है। जिला में जिस तेज गति के साथ औद्योगिकरण को बढ़ावा मिला है उसी का ही नतीजा है कि आज ऊना विकास के पथ पर सरपट दौड रहा है। औद्योगिकरण की बात करें तो आज जिला ऊना में 2367 औद्योगिक इकाईयां कार्यरत है। जिसमें 2174 सूक्ष्म, 170 छोटी तथा 23 मध्यम व बडी इकाईयां शामिल हैं। इन छोटी बडी औद्योगिक इकाईयों में लगभग 1775 करोड रूपये का निवेश हुआ है। जिनके माध्यम से 15346 लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है जिसमें से 13670 हिमाचली शामिल हैं। मैहतपुर, टाहलीवाल, गगरेट, बसाल, अंब व जीतपुर बाथडी प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र हैं। क्रीमिका, नेस्ले, ल्यूमिनस पॉवर टैक्रॉलॉजी, हिम सिलेंडर, सुखजीत एग्रो, प्रीतिका ऑटो कैटस, एमबीडी प्रिंट ग्राफिक्स जैसी अनेक नामी कंपनियां जिला में कार्यरत हैं।
अगर गत साढ़े तीन वर्षों की ही बात करें तो जिला में औद्योगिकरण की दिशा में न केवल कई अहम निर्णय लिए गए बल्कि नए औद्योगिक क्षेत्रों के विकास का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है। प्रदेश सरकार की विकासोन्मुख सोच का ही नतीजा है आज जिला ऊना के पंडोगा में 150 करोड रूपये की लागत से 1570 कनाल भूमि पर एक नया अत्याधुनिक औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जा रहा है तो वहीं देहलां-दुलैहड-इसपुर-गगरेट क्षेत्र को भी औद्योगिक कॉरीडोर के तहत शामिल किया गया है। जिससे इन क्षेत्रों में औद्योगिक अधोसंरचना के विकास को बल मिलेगा तो वहीं नए उद्योग स्थापित करने का मार्ग भी प्रशस्त होगा। 
जिला में औद्योगिक अधोसंरचना को विकसित करने तथा इससे जुडी विभिन्न गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई अहम प्रोजैक्टस को शुरू किया है। जिनमें नंगल से टाहलीवाल बाथडी तक प्राकृतिक गैस पाइप लाईन के तहत लगभग अढ़ाई करोड रूपये का एक प्रोजैक्ट, बाथू में 4.46 करोड रूपये की लागत से लेबर हॉस्टल का निर्माण, बाथू में ही 10.08 करोड रूपये की लागत से कॉमन फैसिलिटी सैंटर शामिल है। इसके अतिरिक्त सिंगा में 51 एकड भूमि में लगभग 250 करोड रूपये की लागत से फूड पार्क तथा ठठल में 65 एकड क्षेत्र में 103.90 करोड रूपये की लागत से हिमाचल कपडा पार्क भी स्थापित किया जाना प्रस्तावित है। 
ऊना जिला में गत साढ़े तीन वर्षों के दौरान प्रधान मंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत बैंकों के माध्यम से 118 मामलों में दो करोड रूपये से अधिक की मार्जिन मनी उपलब्ध करवाई गई है। जिनमें वर्ष 2013-14 के दौरान 32 मामलों में 54.77 लाख, वर्ष 2014-15 के दौरान 37 मामलों में 57.35 लाख तथा वर्ष 2015-16 के दौरान 49 मामलों में 90.12 लाख रूपये की राशि शामिल है। इसी दौरान 44 औद्योगिक इकाइयों को लगभग 5 करोड रूपये की राशि बतौर केन्द्रीय उपदान उलब्ध हुई है। जबकि दो इकाइयों को 30 लाख रूपये की राशि बतौर ट्रांस्पोर्ट सब्सिडी मिली है।
वर्तमान में जिला में कार्यरत औद्योगिक क्षेत्रों की बात करे तो मैहतपुर में 902 कनाल भूमि में 158 प्लाटस आंवटित किए गए हैं जिनमें 135 इकाईयां, टाहलीवाल में 726 कनाल में 184 प्लॉटस आवंटित किए हैं जिनमें 174 इकाईयां स्थापित हैं। इसी तरह जहां गगरेट औद्योगिक क्षेत्र की 1109 कनाल भूमि में 75 प्लाटस आवंटित किए गए हैं जिनमें 61 इकाईयां तो वहीं अंब औद्योगिक क्षेत्र की 1059 कनाल क्षेत्र में 30 प्लाटस आवंटित किए गए हैं जिनमें 18 औद्योगिक इकाईयां स्थापित हैं। जबकि 244 कनाल बसाल औद्योगिक क्षेत्र में 41 प्लाटस में दो तथा जीतपुर बाथडी की 235 कनाल भूमि में 27 प्लाटस आवंटित कर तीन इकाईयां स्थापित हुई हैं।
जिला में औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए 15.15 करोड रूपये की राशि व्यय कर अजौली-लालूवाल वाया टाहलीवाल सडक़ को बेहतर बनाया गया है। औद्योगिक क्षेत्र टाहलीवाल में सडकों के सुदृढिकरण पर 2.15 करोड जबकि मैहतपुर क्षेत्र में 1.61 करोड रूपये की राशि व्यय की गई है। गोंदपुर जयचंद में 1.78 करोड रूपये की लागत से औद्योगिक पार्क विकसित किया जा रहा है। साथ ही जिला के हरोली विधानसभा क्षेत्र के अन्तर्गत पालकवाह में लगभग 18 करोड रूपये की लागत से हिमाचल प्रदेश का पहला कौशल विकास प्रशिक्षण संस्थान स्थापित किया जा रहा है। 
इसके अलावा टाहलीवाल औद्योगिक क्षेत्र में सडक के किनारे जल निकासी एवं सिवरेज सिस्टम के तहत प्रथम व द्वितीय फेज में 2.15 करोड रूपये जबकि गगरेट औद्योगिक क्षेत्र में एक करोड रूपये की राशि व्यय की गई है। जिला के खडड गांव में बहुउदेश्यीय सुविधा केन्द्र की स्थापना को लेकर एक करोड, घालूवाल व सलोह में रैहन बसेरा के निर्माण कार्यों के लिए 50-50 लाख रूपये की राशि व्यय की जा रही है। साथ ही सामुदायिक केन्द्र पंडोगा, गोंदपुर जयचंद, सिंगा व हलेडा के निर्माण कार्यों के लिए भी 25-25 लाख रूपये की राशि प्रथम चरण में स्वीकृत कर दी गई है। इसके अतिरिक्त बाथू, बाथडी, गोंदपुर जयचंद, टाहलीवाल, सिंगा, ईसपुर, भडियारा, हलेडा, बालीवाल, लालूवाल, मैहतपुर में ख्खूबसूरत शैली में रेन शैल्टरों के निर्माण कार्य के लिए भी औसतन 10-15 लाख रूपये की राशि मुहैया करवाई गई है। औद्योगिक अधोसंरचना के विकास के साथ-साथ स्थानीय ग्रामीणों के विकास पर भी उद्योग विभाग के माध्यम से विभिन्न विकासात्मक कार्यों के लिए भी करोडों रूपये की राशि उपलब्ध करवाई गई है। जिसमें रास्तों व गलियों का निर्माण इत्यादि प्रमुख कार्य शामिल हैं।
इस तरह जिला ऊना में वर्तमान सरकार के साढ़े तीन वर्षों के कार्यकाल के दौरान औद्योगिक अधोसंरचना के साथ-साथ औद्योगिक विकास के लिए गए अहम निर्णयों से न केवल जिला में औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल रहा है बल्कि नए औद्योगिक क्षेत्र स्थापित हो जाने से प्रदेश सहित जिला ऊना के शिक्षित युवाओं को सीधे व परोक्ष तौर पर रोजगार के नए अवसर सृजित होंगें।

 
 (साभार: हिमप्रस्थ, सितम्बर-अक्तूबर विशेषांक, 2016 में प्रकाशित)                                                             

Thursday, 13 October 2016

नाग नावणा देवता मंदिर, डोबरी सालवाला पांवटा साहिब हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश देवभूमि के नाम से जाना जाता है। प्रदेश के कोने-कोने में जहां देव आस्था से लोगों की संस्कृति व परम्पराएं जुड़ी हैं तो वहीं यहां की देव संस्कृति इसको प्रमाणित भी करती है। इन्हीं देव आस्थाओं में से एक है सिरमौर जिला के गिरिपार क्षेत्र डोबरी सालवाला स्थित नाग नावणा देवता मंदिर। मंदिर के पुजारी के अनुसार नटनी के श्राप से सिरमौर रियासत की पुरानी राजधानी सिरमौरी ताल जहां गिरि नदी में आई भंयकर बाढ़ के चलते पूरी तरह से नष्ट होकर खण्डहर बन गई तो वहीं सिरमौर रियासत का राजवंश भी खत्म हो गया था।
किंवदन्ति है कि एक बार किसी नटनी ने तत्कालिन राजा सिरमौर मदन सिंह से शर्त लगाई कि वह कच्चे सूत के धागे (रस्सी) पर टोका से पोका तक नाचते हुए गिरि नदी को पार करेगी। जिसकी एवज में राजा सिरमौर ने अपने राज्य का आधा हिस्सा देने का वायदा किया। ऐसे में जब नटनी शर्त के अनुसार गिरि नदी पार करने ही वाली थी तब राजा व उसके सहयोगियों के दिलों में खेाट पैदा हो गया और धागे (रस्सी) को बीच में ही काट दिया, ऐसे में नटनी ने मरते-मरते राजा को श्राप दिया ‘आर टोका पार पोका बीच में बह जाए सारे सिरमौर के लोका‘। कहते हैं कि नटनी के इस श्राप के चलते सिरमौर रियासत की राजधानी सिरमौरी ताल गिरि नदी में आई भयंकर बाढ़ में पूरी तरह से नष्ट हो गई थी।
नाग देवता मंदिर का दृश्य
जनश्रुति है कि इसके बाद रियासत को पुनः स्थापित करने के लिए तब रियासत के राजपुरोहित व ज्योतिषियों ने जैसलमेर के राजा (जिनके पास तीन रानीयां थी) से अपनी एक रानी को सिरमौर भेजने का निवेदन किया ताकि रानी से होने वाली संतान राज्य का शासन सम्भाल सके। तब राजा ने अपनी एक रानी जो गर्भवती थी उसे सिरमौर भेजा। इसके बाद रानी जो गर्भवती थी वह सिरमौरी ताल की ओर चल पड़ी लेकिन बीच रास्ते में ही प्रसव पीडा शुरु हो गई तथा ढ़ाक (पलाश) के पेड़़ (वर्तमान नाग देवता स्थान) के नीचे पहले नाग देवता निकले उसके बाद एक सुन्दर बालक को जन्म दिया। इस बालक का नाम बदन सिंह रखा तथा ढ़ाक के पेड़ (पलाश) के नीचे पैदा होने पर ढ़ाक प्रकाश भी कहलाया। ऐसे में एक बार फिर सिरमौर रियासत का राजवंश चल पडा। 
लेकिन कहते है कि नई रियासत बस जाने के वर्षों बाद राज परिवार को नाग देवता का दोष लगा। एक दिन नाग देवता ने राज परिवार के सदस्य को स्वपन में दर्शन दिए कि आपकी राजधानी तो बस चुकी तथा स्वयं तो आराम से रह रहे हैं परन्तु मेरे मंदिर का निर्माण अब तक नहीं किया गया है तथा मुझे ढ़ाक के पेड़ में शरण लेनी पड़ रही है। तदोपरान्त लगभग 1000 वर्ष पहले राज परिवार ने ढ़ाक के पेड (नाग देवता के जन्म स्थान) के पास नाग देवता के मंदिर का निर्माण करवाया। कहते है तभी से ही सिरमौर रियासत की महिलाएं व राज परिवार नाग देवता का परम भक्त रहा तथा नाग देवता को वह अपने कुल इष्ट देवता की तरह पूजते रहे हैं।लेकिन जानकार कहते हैं कि सैंकड़ों वर्ष पहले मंदिर के साथ लगते कंडेला की पहाड़ियों, जंगलों व साथ लगती दुपहरिया खड़ड से भारी भू-स्खलन होने के कारण यह प्राचीन व ऐतिहासिक मंदिर भारी मलबे के नीचे दब गया था। परन्तु कुछ वर्ष पहले की गई खुदाई में प्राचीन काल की 11वीं से लेकर 15वीं शताब्दी के मध्य की मूर्तियां व मंदिर के पुख्ता सबूत मिले हैं। पुरात्व विभाग की टीम ने खुदाई के दौरान मिली मूर्तियों की जाॅंच की तथा इनका पंजीकरण कर इन्हें मंदिर के अन्दर व बाहर रखा गया है। जानकारों के अनुसार यहां खुदाई के दौरान प्राचीन काल की लगभग 60-65 मूर्तियां मिली हैं, जिनकी लंबाई लगभग एक फुट से लेकर चार फुट तक है। इन प्राचीन मूर्तियों में ब्रह्मा, कुंड़ल, सुदर्शन, चक्रधारी, लक्ष्मी नारायण दरबार, गणेश, सदाशिव, सूर्यदेव, कुम्म कलश, कार्तिक, विष्णु शेषनाग, शिव-पार्वती इत्यादि शामिल हैं। ऐसे में यह मंदिर प्राचीन व ऐतिहासिक घटनाओं का जीवंत उदाहरण है। 
यहां पर दशहरे के दिन चार दिवसीय मेला लगता है। इस मेले में आसपास क्षेत्रों के साथ-साथ पडोसी राज्यों उतराखंड व हरियाणा के लोग भी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। परम्परा के अनुसार दशहरा उत्सव के एक दिन पहले नाग देवता की पालकी कोटगा गांव से आती है तथा पांचवें दिन वापिस चली जाती है। तब तक यहां मेले का आयोजन चलता रहता है तथा लोग नाग देवता के दर्शन प्राप्त करते हैं। यही नहीं परम्परा के अनुसार लोग अनाज जैसे गेहॅूं व मक्की इत्यादि की नई फसल, जिसे यहां के लोग फसलनामा भी कहते को भी चढ़ाने आते हैं। बरसात के दिनों में मंदिर पूरी तरह से पानी में डूब जाता है। इस मंदिर के साथ ही लक्ष्मी नारायण, काली माता व माॅं बाला सुंदरी के मंदिर भी हैं। वर्तमान में इस मंदिर का संचालन नाग देवता समिति के माध्यम से किया जा रहा है, जिसका गठन वर्ष 2000 में किया है। समिति ने श्रद्धालुओं के ठहरने हेतू दो कमरों का निर्माण तथा पीने के पानी का भी उचित प्रबंध करवाया है।
यह ऐतिहासिक व प्राचीन मंदिर पांवटा साहिब से लगभग 12 कि0मी0, नाहन से 58 कि0मी0 तथा देहरादून से भी 58 कि0मी0 की दूरी पर है। यह स्थान वर्ष भर सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है जबकि सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भी देहरादून ही है।

Friday, 30 September 2016

बढते साइबर अपराध सावधानी की जरूरत

सूचना तकनीक की 21वीं सदी में जहां कम्प्यूटर व मोबाइल आधारित टेक्रालॉजी का इस्तेमाल बढ़ा है तो वहीं इंटरनेट के बढ़ते उपयोग से हमारी दिनचर्या व कामकाज में भी काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। कंप्यूटर के साथ-साथ मोबाइल में इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल के कारण आज सोशल मीडिया व नेटवर्किग साइटस का इस्तेमाल करने वालों का दायरा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। इंटरनेट क्रांति की हकीकत तो यह है कि जैसे-जैसे इसकी पहुंच समाज के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक हो रही है उसी गति से न केवल कंप्यूटर एवं मोबाइल फोन आधारित सूचनाओं के आदान-प्रदान की गति बढी है बल्कि सोशल नेटवर्किग साइटस जैसे फेसबुक, टवीटर, ब्लॉगस, इंस्टाग्राम, टंबलर, लिंकडन, यू-टयूब इत्यादि का इस्तेमाल भी तेजी से बढ़ता जा रहा है। पूरी दुनिया सहित भारत में नितदिन डिजिटल क्रांति का ही परिणाम है कि आज बैंकिंग, व्यापार सहित ऑन लाइन शापिंग के लिए डेबिट व क्रेडिट कॉर्ड के साथ-साथ अन्य तरह के लेन देन व सूचनाओं के आदान प्रदान में भी इंटरनेट का प्रयोग बढा है। ऐसे में भले ही इंटरनेट के बढते इस्तेमाल के कारण सूचनाओं के आदान प्रदान के साथ-साथ आम जीवन के विभिन्न कार्यों के निपटान में सुविधा हो रही हो लेकिन उतनी ही तेजी के साथ साइबर अपराधों ने हमारी राह में मुश्किलें भी खडी कर दी हैं।
ऐसे में यदि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी 2015 के आंकडों का विश्लेषण करें तो देश में वर्ष 2014 के मुकाबले 2015 में साइबर अपराधों के मामलों में काफी वृद्धि दर्ज हुई है। प्राप्त आंकडों के आधार पर वर्ष 2014 में 9622 साइबर अपराध के मामलों के मुकाबले वर्ष 2015 में यह आंकडा बढक़र 11562 हो गया है जिसमें लगभग 20.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। जबकि साइबर अपराध से जुडे मामलों में वर्ष 2014 में गिरफतार 5752 लोगों के मुकाबले वर्ष 2015 में यह आंकडा 8121 हो गया है जिसमें भी लगभग 41.2 फीसदी की बढौतरी दर्ज हुई है। ऐसे में यदि हिमाचल प्रदेश की बात करें तो हिमाचल में भी वर्ष 2014 में 38 मामले साइबर अपराध के सामने आए थे तथा 2015 में यह आंकडा बढक़र 50 हो गया है जिसमें लगभग 31.6 फीसदी की बढ़ौतरी दर्ज हुई है जबकि प्रदेश में वर्ष 2014 में साइबर अपराध को लेकर 16 गिरफतारियों के मुकाबले वर्ष 2015 में 38 गिरफतारियां हुई है जिसमें भी लगभग 137.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है। 
साइबर अपराध में सूचना प्रौद्योगिकी कानून (सेशोधित)-2008 की बात करें तो इस कानून की विभिन्न धाराओं के तहत वर्ष-2015 में कुल 8045 मामले दर्ज हुए हैं जिसमें कंप्यूटर डाक्यूमेंट के साथ छेडछाड के 88, आईटी एक्ट की धारा 66 के तहत 6567 मामले दर्ज हुए जिसमें 66ए के तहत 4154, 66 बी के तहत 132, 66सी के तहत 1081, 66 डी के तहत 1083 तथा 66 ई के तहत 117 मामले शामिल हैं। इसी दौरान साइबर आतंकवाद से जुडे 13 जबकि आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत 816 मामले दर्ज हुए हैं जिसमें 67ए के तहत 792, 67बी के तहत आठ तथा 67सी के अंतर्गत 16 मामले शामिल हैं।
ऐसे में जिस तेज रफतार के साथ हमारा इंटरनेट व इससे जुडी सोशल नेटवर्किग का इस्तेमाल बढ रहा उतनी ही रफतार के साथ लोग साइबर अपराध के शिकार भी होते जा रहे हैं। जिसमें बात चाहे ई-मेल या मोबाइल फोन के माध्यम से सूचनाओं के गलत आदान-प्रदान की हो या फिर कंप्यूटर को हैक करके जरूरी सूचनाओं को चुराने की हो। बात यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि इंटरनेट के माध्यम से कई बार किसी व्यक्ति विशेष से संबंधित अश्लील सामग्री का प्रचार-प्रसार कर दिया जाता है तो कई बार फर्जी ई-मेल, फेसबुक, टवीटर, ब्लॉगस इत्यादि के खाते बनाकर गलत प्रचार-प्रसार एवं धोखधडी या बेईमानी इत्यादि की जाती है। इस तरह साइबर अपराध को अंजाम देने वाले लोग शायद यह भूल कर बैठते हैं कि उनकी इन घटनाओं को न तो कोई देख रहा है न ही जान पा रहा है कि वह ऐसा करने वाला कौन व्यक्ति है। परन्तु साइबर अपराध करने वाले यह भूल जाते हैं कि ऐसे लोगों के लिए सूचना प्रौद्योगिकी कानून (संशोधित)-2008 के तहत सजा का सख्त प्रावधान किया गया है।
आईटी एक्ट की धारा 67 में अश्लील सामग्री को इलैक्ट्रानिक रूप में प्रकाशित या संचारित करने के लिए 3-5 साल तक की जेल व 5-10 लाख रूपये तक का जुर्माना जबकि 67ए व 67बी में किसी के आचरण व्यस्क या बच्चा से संबंधित किसी भी प्रकार की सामग्री को प्रकाशित या संचारित या इलैक्ट्रानिक रूप में प्रेषित करता है तो ऐसे व्यक्ति को 5-7 साल की जेल व 10 लाख रूपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। इसी तरह धारा 66ए, 66 बी, 66सी, 66डी, 66 ई व 66एफ के तहत यदि कोई व्यक्ति संचार सेवा के माध्यम से आक्रामक संदेश भेजता है, चोरी या बेईमानी से प्राप्त कंप्यूटर का इस्तेमाल करता है, धोखे या बेईमानी से इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर, पासवर्ड या अन्य व्यक्तिगत जानकारी का इस्तेमाल करता है, कंप्यूटर संसाधन के माध्यम से वेशधारण कर धोखाधडी करता है या किसी की प्राइवेसी को भंग करता है तथा साइबर आतंकवाद में भागीदार पाया जाता है तो इन धाराओं के तहत एक से तीन साल तक की जेल, एक से दो लाख रूपये तक का जुर्माना या दोनों सजाएं हो सकती है। 
भले ही माननीय उच्चतम न्याायालय ने धारा 66ए को निरस्त कर दिया हो लेकिन अभी भी सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट के तहत साइबर अपराधियों को पकडने के लिए कई कानूनी प्रावधान मौजूद हैं। ऐसे में हमारे देश में इंटरनेट क्रांति के चलते जहां सूचनाओं के आदान-प्रदान व संप्रेषण में सहूलियत हुई है तो वहीं बढते साइबर अपराधों  ने मुश्किलें भी खडी कर दी है। ऐसे मेें जहां हमें साइबर अपराधियों से सावधान रहने की जरूरत है तो वहीं सूचना तकनीकी कानून की जानकारी होना भी लाजमी हो जाता है ताकि कल हमें किसी भी तरह की साइबर अपराध से जुडी परेशानी न उठानी पडे।


(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 15 सितम्बर, 2016 एवं हिमाचल दिस वीक, 17 सितम्बर, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Saturday, 10 September 2016

सडक दुर्घटना के पीडितों व घायलों की खुलकर मदद करें

सडक़ दुर्घटनाओं के कारण मरने वाले व्यक्तियों की सूची में भारत का स्थान दुनिया में सबसे ऊपर है। भारत में प्रतिवर्ष पांच लाख से अधिक सडक दुर्घटनाएं होती है जिनमें लगभग डेढ लाख लोगों की जान चली जाती है जबकि लाखों घायलों को यह सडक दुर्घटनाएं जीवन भर का दर्द दे जाती है। सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय भारत सरकार के आंकडों के आधार पर देश में प्रतिदिन 1374 सडक़ दुर्घटनाओं में 400 लोगों की मौत हो रही है। लेकिन इन सडक दुर्घटनाओं के शिकार कई लोगों की मौत इसलिए भी हो रही है क्योंकि सडक दुर्घटनाओं के शिकार घंटों सडकों पर पडे रहते हैं लेकिन नजदीकी अस्पताल तक पहुंचाने के लिए कोई मदद को आगे नहीं आ पाता है। ऐसे में सडक दुर्घटनाओं के शिकार कई लोग घावों को न सह पाने तथा समय पर प्राथमिक उपचार न मिल पाने के कारण तडपते हुए मौत के आगोश में समा जाते हैं। 
इस संदर्भ में किए गए एक सर्वेक्षण से यह पता चला है कि सडक दुर्घटना स्थल के आसपास खड़े लगभग 88 फीसदी लोग कानूनी पचडों और पुलिसिया कार्रवाई से बचने के लिए दुर्घटना से पीडित लोगों की मदद के लिए आगे नहीं आ पाते हैं। जिसका प्रमुख कारण पुलिस द्वारा बार-बार प्रश्न पूछे जाने, न्यायालय द्वारा बार-बार समन देने तथा गैर-इरादतन दुर्घटनात्मक मृत्यु के लिए मुकदमा चलाए जाने के डर से दुर्घटना स्थल के आसपास से गुजरने वाले लोग पीडित की मदद करने से गुरेज करते हैं। लेकिन माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक मामले के तहत अब सडक दुर्घटनाओं के शिकार लोगों की मदद करने वालों के बचाव में कई कडे निर्देश जारी किए हैं। 
उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी इन निर्देशों के तहत किसी भी सडक़ दुर्घटना के प्रत्यक्षदर्शी सहित कोई भी बाईस्टैंडर या गुड सेमेरिटन किसी घायल व्यक्ति को निकटतम अस्पताल में लेकर जा सकता है तथा उन्हे अस्पताल से तुरन्त जाने की अनुमति दे दी जाएगी और इनसे कोई भी प्रश्न नहीं पूछा जाएगा सिवाय प्रत्यक्षदर्शी के जिसे भी पता बताने के बाद जाने दिया जाएगा। सडक दुर्घटना के पीडितों की मदद के लिए आगे आने वाले नागरिकों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार अपने तरीके से ऐसे भले आदमी को ईनाम या मुआवजा देने का प्रावधान भी कर सकती है। बाईस्टैंडर या गुड समेरिटन किसी सिविल एवं आपराधिक दायित्व के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। सडक़ पर घायल व्यक्ति के लिए पुलिस या आपातकालीन सेवा के लिए सूचना देने पर भले आदमी को फोन अथवा व्यक्तिगत रूप से उ पस्थित होकर अपना नाम और व्यक्तिगत विवरण देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है बल्कि ऐसी सूचना देने को स्वैच्छिक व वैकल्पिक बनाया गया है। 
इन्ही निर्देशों के तहत उन सरकारी अधिकारियों के विरूद्ध संबंधित सरकार द्वारा अनुशासनात्मक या विभागीय कार्रवाई अमल में लाई जा सकती है जो सडक दुर्घटना पीडितों की मदद के लिए आगे आए किसी भले आदमी को अपना नाम या व्यक्तिगत जानकारी देने के लिए बाघ्य करेंगें। यदि इस संदर्भ में कोई बाईस्टैंडर या भला आदमी स्वैच्छिक तौर पर दुर्घटना का प्रत्यक्षदर्शी होने का उल्लेख करता है तो ऐसे व्यक्ति को राज्य सरकार यह सुनिश्चित बनाए कि उसे उत्पीडित या धमकाया न जाए। साथ ही भले आदमी को उत्पीडऩ या असुविधा से दूर रखने के लिए पूछताछ के दौरान विडियो कांफ्रेंसिंग का विस्तृत रूप से इस्तेमाल किया जाए।
न्यायालय ने यह निर्देश भी जारी किए हैं कि यदि कोई भला व्यक्ति किसी सडक दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को किसी पंजीकृत सरकारी या निजी अस्पताल में ईलाज के लिए साथ लेकर आता है तो ऐसे व्यक्ति को वह न तो रोक सकते हैं न ही अस्पताल में पंजीकरण एवं भर्ती लागतों के लिए भुगतान की मांग कर सकते हैं बशर्ते वह भला आदमी घायल व्यक्ति के परिवार का कोई सदस्य या सगा संबंधी न हो। ऐसी स्थिति में संबंधित अस्पताल द्वारा घायल का तुरन्त इलाज किया जाए। साथ ही सडक दुर्घटनाओं से संबंधित किसी आपातकालीन परिस्थिति में यदि डॉक्टर उचित चिकित्सीय देखभाल व ईलाज करने में कोताही करता है तो ऐसे चिकित्सकों के खिलाफ भारतीय चिकित्सा परिषद् (व्यवसायिक आचार, शिष्टाचार और नैतिक विनियम-2002) के अध्याय-7 के अंतर्गत अनुशासनात्मक कार्रवाई अमल में लाई जा सकती है। इस संदर्भ में न्यायालय ने यह निर्देश भी जारी किए हैं कि सभी अस्पताल अपने प्रवेश द्वार में हिंदी, अंग्रेजी सहित स्थानीय भाषाओं में एक चार्टर भी प्रकाशित करें जिसमें यह उल्लेख किया गया हो कि सडक दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को उपचार के लिए लाने वाले बाईस्टैंडर या भले व्यक्ति को वह नहीं रोकेंगे तथा न ही घायल व्यक्ति के उपचार के लिए धन जमा कराने के लिए कहेंगें। बल्कि बाईस्टैंडर या भले आदमी को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारें ऐसे व्यक्तियों को पावती भी उपलब्ध करा सकती हैं तथा ऐसे नेक व्यक्ति बारे जानकारी दूसरे अस्पतालों में भी भेज सकती है।
सडक दुर्घटनाओं में घायल व्यक्तियों को लेकर माननीय न्यायालय का यही कहना है कि मानव जीवन की रक्षा से सर्वोपरि कोई दूसरा विचार नहीं हो सकता है। क्योंकि व्यक्ति की मृत्यु हो जाने के पश्चात, कुछ भी करके पूर्ववृत स्थिति प्राप्त नहीं की जा सकती है, क्योंकि मृत व्यक्ति को जीवित करना मनुष्य की क्षमताओं से बाहर है। इसलिए प्रत्येक चिकित्सक सहित पुलिस व इन दुर्घटनाओं से जुडा कोई भी व्यक्ति मामले से जुडी दूसरी औपचारिकताओं को पूरी करने से पहले सर्वप्रथम घायलों के उपचार व जिंदगी बचाने को शीर्ष प्राथमिकता प्रदान करे।



(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 8 सितम्बर, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Wednesday, 24 August 2016

नशाखोरी के खिलाफ समाज का हर व्यक्ति आगे आए

हमारे समाज में नशे के फैलते जहर से न केवल हमारा पारिवारिक व समाजिक ढ़ांचा प्रभावित हो रहा है बल्कि इसकी चपेट में आकर हमारी नौजवान पीढी आए दिन तबाह हो रही है। आज हमारे समाज में न जाने ऐसे कितने परिवार हैं जहां इस नशीले जहर ने किसी का भाई, किसी का बेटा तो किसी का पति असमय की जीवन के गर्त में धकेल दिया। यही नहीं ऐसे न जाने कितने परिवार होगें जिनके लिए मादक द्रव्यों एवं पदार्थों का यह काला कारोबार जीते जी मौत का कुंआ साबित हो रहा है। कितने ऐसे परिवार हैं जिनके लिए नशे का यह जहर परिवार की आर्थिकी को तबाह कर कंगाली के स्तर पर ले गया है।
लेकिन अब प्रश्न यह खडा हो रहा है कि आखिर नशीले पदार्थों का यह जहरीला कारोबार करने वाले कौन हैं? क्या हमारा समाज ऐसे लोगों के आगे बौना साबित हो रहा है? या फिर नशे का काला कारोबार करने वालों के खिलाफ हमारा समाज लडने की पहल ही नहीं कर पा रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं हम हर समस्या के समाधान की तरह नशे की इस सामाजिक बुराई को लेकर भी हल केवल सरकारी चौखट में ही ढूूंढ रहे हैं। लेकिन अब वक्त आ गया है कि नशे की इस बुराई को लेकर समाज के हर वर्ग, हर व्यक्ति यहां तक की हर परिवार को पहल करनी होगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी इस सामाजिक व्यवस्था में ऐसी कोई भी समस्या नहीं है जिसका हम मुकाबला नहीं कर सकते हैं। लेकिन जरूरत है नशे व नशीले पदार्थों के विरूद्ध एक सकारात्मक पहल करने की। जरूरत है ऐसे लोगों को बेनकाब करने की जो इस काले कारोबार में सैंकडों नहीं बल्कि हजारों युवाओं की हंसती खेलती जिंदगी को तबाह कर रहे हैं।
हम यहां यह क्यों भूल रहे हैं कि नशे का यह जहरीला कारोबार करने वाले कोई ओर नहीं बल्कि हमारे ही समाज के वे चंद लोग हैं जो कुछ रूपयों की खातिर हंसते खेलते परिवारों में नशे का यह जहरीला दंश देकर तबाही का मंजर लिख रहे हैं। लेकिन हैरत कि हम ऐसे लोगों के विरूद्ध लडने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं। जिसका नतीजा यह है कि आए दिन अफीम, चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर, भुक्की इत्यादि जैसे घातक मादक द्रव्यों एवं पदार्थों का काला कारोबार करने वाले हमारे पडोस में आकर दस्तक देकर नितदिन एक नई जिंदगी को तबाह कर रहे हैं। हमें केवल व्यवस्था को कोसते रहना या फिर समस्या के कारणों के लिए दूसरों के ऊपर दोषारोपण करने के बजाए इसे समाज से उखाड फैंकने के लिए मिलकर प्रयास करने होगें। हमें इस सामाजिक समस्या के समाधान के लिए स्वयं से पहल करते हुए अपने परिवार व आसपास के समाज में जागरूकता फैलाकर जहां नशे के इस जहर से लोगों विशेषकर युवाओं को बचाना होगा तो वहीं नशीले पदार्थों के काले कारनामें वालों का पर्दाफाश भी करना होगा।
हमारे समाज के लिए यह एक सुखद पहल ही कही जाएगी कि इस नशे के जहरीले दंश से समाज को बचाने के लिए हमारी सरकार स्वयं आगे आई है। हिमाचल सरकार लोगों को नशे के विरूद्ध जन जागरूकता लाने के लिए 22 अगस्त से 5 सितंबर तक समाज से भांग व अफीम की खेती को नष्ट करने के लिए एक व्यापक अभियान लेकर आई है। इस अभियान का उदेश्य भी जहां नशीले पदार्थों के सेवन के प्रति समाज में जन जागरूकता फैलाना है तो वहीं नशे के अवैध कारोबार में शामिल लोगों के लिए एक चेतावनी भी कही जा सकती है ताकि वह किसी के हंसते खेलते परिवार में यह जहरीला दंश देने से पहले सौ बार सोचे। जिस तरह से प्रदेश सरकार ने इस गंभीर समस्या के निपटारे के लिए विभिन्न कानूनी पहेलुओं पर भी गंभीरता से मंथन किया है यह आने वाले समय में नशे के जहरीले कारोबारियों के लिए सुधरने व इस काले कारोबार को छोडने का एक मौका भी कह सकते है। 
इस अभियान के माध्यम से जहां समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने आसपास उगी भांग व अफीम के पौधों को नष्ट करने के लिए आगे आए तो वहीं इन नशीले पदार्थों के दुष्प्रभावों को लेकर अपने परिवार व आसपास के समाज में चर्चा करे। इस पुनीत कार्य में शिक्षण संस्थाओं के अतिरिक्त ग्रामीण स्तर पर महिला व युवक मंडल, स्वयं सहायता समूह, ग्राम पंचायतें, गैर सरकारी व स्वयं सेवी संस्थाएं लोगों को इस अभियान के साथ जोडने तथा इस अभियान का संदेश घर-घर तक पहुंचाने में अहम योगदान दे सकते हैं। साथ ही हमारे समाज में विभिन्न सामाजिक समारोहों में परोसे जाने वाले विभिन्न नशीले पेय पदार्थों मसलन शराब इत्यादि के इस्तेमाल को भी प्रतिबंधित करना होगा ताकि नशे के विरूद्ध हमारी इस जंग का हमारे आसपास एक सकारात्मक संदेश जाए। यहां हमें यह नहीं भूलना चाहिए हमारे देश में प्रतिवर्ष कुल सडक़ दुर्घटनाओं का दस प्रतिशत का कारण मादक द्रव्य व नशीले पदार्थों का सेवन कर वाहन चलाना है।
लेकिन अब प्रश्न यह उठ रहा है कि एक पखवाडे तक चलने वाला यह विशेष भांग व अफीम हटाओ अभियान महज सरकार का समाज के प्रति अपने दायित्व निर्वहन तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को इस अभियान के साथ जुडकर सरकार को अपना साकारात्मक योगदान देना होगा। हमें यहां यह नहीं भूलना चाहिए संविधान ने जहां हमें कई अधिकार दिए हैं तो वहीं समाज के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है इसका उल्लेख भी किया है। ऐसे में अब वक्त आ गया है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति महज व्यवस्था को कोसने के बजाए अपने संवैधानिक दायित्वों व कत्र्तव्यों का निर्वहन करते हुए प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई इस मुहिम का हिस्सा बन समाज से नशे के इस जहरीले दंश को उखाड फैंकने में अपना साकारात्मक योगदान दे।

(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 22 अगस्त, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Saturday, 13 August 2016

बिना सेट टॉप बॉक्स 31 दिसम्बर के बाद नहीं देख पाएंगें केबल टीवी

हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले केबल टीवी उपभोक्ता अब बिना सेट टॉप बॉक्स 31 दिसम्बर, 2016 के बाद टेलीविजन का प्रसारण अपने टीवी पर नहीं देख पाएंगें। संपूर्ण भारत वर्ष में चलाए जा रहे केबल टीवी डिजिटाईजेशन के चलते देश के सभी ग्रामीण क्षेत्रों सहित हिमाचल प्रदेश की 3226 ग्राम पंचायतों के केबल टीवी उपभोक्ताओं को टीवी प्रसारण के लिए सेट टॉप बॉक्स या डीटीएच की सुविधा लेनी होगी अन्यथा उनके टीवी पर प्रसारण बंद हो जाएगा। साथ ही केबल टीवी प्रसारणकर्ता को भी केबल टीवी अधिनियम के तहत निर्धारित तिथि के बाद डिजिटल प्रसारण करना भी अनिवार्य है। 
भारत की जनगणना-2011 के आंकडों के अनुसार देश में 117 मिलियन यानि की 11.7 करोड घरों में टीवी की सुविधा उपलब्ध है। जबकि फीकी-केपीएमजी रिपोर्ट-2015 के अनुसार यह आंकडा बढक़र लगभग 168 मिलियन यानि की 16.8 करोड तक पहुंच गया है। जिसमें से लगभग 9.9 करोड केबल टीवी, 4 करोड डीटीएच, एक करोड डीडी फ्री डिस व आइपीटीवी तथा 1.9 करोड परिवार डीडी टेरेस्ट्रेअल के माध्यम से जुडे हुए हैं। 
ऐसे में देश के अन्दर केबल टीवी प्रसारण को केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) अधिनियम-1995 के तहत संचालित किया जा रहा है। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने अगस्त-2010 में केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) संशोधन अधिनियम-2011 के तहत भारत में डिजिटल संबोधनीय केबल प्रणालियों का कार्यान्वयन को लेकर 4 विभिन्न चरणों में एनॉलाग केबल टीवी सेवाओं को डिजिटल संबोधनीय केबल टीवी प्रणाली में परिवर्तित करने की सिफारिश की है। जिसके तहत प्रथम व द्वितीय चरण में देश के चार महानगरों एवं 38 बडे शहरों को केबल टीवी डिजिटाइजेशन के तहत लाया गया है। जबकि तीसरे चरण मे 31 दिसम्बर, 2015 तक देश के सभी नगरीय क्षेत्रों तथा 31 दिसम्बर, 2016 तक देश के बचे हुए सभी ग्रामीण क्षेत्रों को केबल टीवी डिजिटल नेटवर्क के तहत लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इसी प्रक्रिया के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश की सभी ग्रामीण क्षेत्रों को केबल टीवी डिजिटाइजेशन के साथ 31 दिसंबर, 2016 तक जोडा जाना लाजिमी है। ऐसे में प्रदेश के 54 नगरीय क्षेत्रों सहित सभी ग्रामीण क्षेत्रों में केबल टीवी का प्रसारण कर रहे मल्टी  सिस्टम आपरेटर (एमएसओ) तथा लोकल केबल आपरेटर (एलसीओ) को केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) अधिनियम-1995 एवं केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) संशोधन अधिनियम-2011 की धारा तीन के अन्तर्गत सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार तथा संबंधित प्रसारण क्षेत्र के पंजीकरण प्राधिकरण के पास पंजीकरण के लिए आवेदन करना तथा धारा चार(क) के तहत सभी केबल आपरेटर एमएसओ व एलसीओ को निर्धारित तिथि के बाद केबल टीवी का डिजिटल संबोधनीय प्रणाली(डीएएस) के तहत प्रसारण करना अनिवार्य है।
साथ ही केबल टीवी नेटवर्क पंजीकरण नियम 5 के तहत सभी स्थानीय केबल ऑपरेटर्स (एलसीओ) को अपने प्रसारण क्षेत्र के मुख्य डाकपाल तथा पंजीकरण नियम 11 सी के तहत मल्टी सिस्टम आपरेटर (एमएसओ) को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार में पंजीकरण करवाना अनिवार्य है। इसी तरह केबल टीवी नेटवर्क अधिनियम की धारा 5 के तहत प्रोग्राम कोड तथा धारा 6 के अनुसार निर्धारित विज्ञापन कोड लेना भी जरूरी है जिसके बिना केबल टीवी पर प्रसारण अवैध है। इसके अतिरिक्त धारा आठ के तहत केबल आपरेटर को दूरदर्शन के 25 चैनल जिसमें डीडी नेशनल, लोकसभा, राज्यसभा, डीडी न्यूज, ज्ञानदर्शन, स्पोटर्स, किसान चैनल इत्यादि शामिल है का प्रसारण करना भी अनिवार्य है। यही नहीं केबल प्रसारणकत्र्ता को केबल नेटवर्क अधिनियम की धारा 9 के तहत भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा प्रमाणित बीआईएस गुणवत्ता वाले सेट टॉप बॉक्स व अन्य उपकरण भी लगाने अनिवार्य हैं। 
ऐसे में यदि केबल टीवी आपरेटर सरकार द्वारा निर्धारित तिथि तथा केबल टीवी नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत नियमों का पालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ केबल टीवी नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम की धारा 11 व 12 के अनुसार प्राधिकृत अधिकारी जिसमें जिला मेजिस्ट्रेट (डीएम), अतिरिक्त जिला मेजिस्ट्रेट (एडीएम), उपमंडलीय दंडाधिकारी (एसडीएम) तथा पुलिस कमीश्नर शामिल है नियमों के विरूद्ध कार्य करने पर केबल टीवी प्रसारणकत्र्ता के उपकरणों को जब्त कर सकता है तथा नियमानुसार कडी कार्रवाई अमल में ला सकते हंै। धारा 16 के तहत नियम की उल्लंघना पाए जाने पर एक हजार रूपये का जुर्माना या दो साल तक की जेल या दोनों जबकि पुन: उल्लंघना होने पर पांच हजार रूपये तक का जुर्माना या पांच साल की जेल या दोनों सजाएं हो सकती है। 
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के अनुसार देश में अब तक हुए केबल टीवी डिजिटाइजेशन के कारण जहां उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्तायुक्त केबल टीवी प्रसारण की सुविधा सुनिश्चित हुई है तो वहीं मनपंसद चैनल देखने की आजादी भी मिली है। साथ ही केबल टीवी डिजिटाइजेशन के कारण सरकार के राजस्व में भी बतौर मनोरंजन व सेवा कर के तौर पर अभूतपूर्व बढ़ौतरी दर्ज हुई है। 
ऐसे में हिमाचल प्रदेश के सभी ग्रामीण क्षेत्रों में केबल टीवी का प्रसारण कर रहे केबल आपरेटर (एमएसओ व एलसीओ) केबल टीवी नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत अपना पंजीकरण करवाना सुनिश्चित करें ताकि प्रदेश के लाखों केबल टीवी उपभोक्ताओं को सेट टॉप बॉक्स के माध्यम से डिजिटल प्रसारण की सुविधा समयानुसार सुनिश्चित हो सके। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा निर्धारित तिथि 31 दिसम्बर, 2016 के बाद प्रदेश के  सभी ग्रामीण क्षेत्रों में एनॉलाग केबल टीवी प्रसारण की सेवा समाप्त हो जाएगी।
उपभोक्ता व केबल ऑपरेटर केबल टीवी डिजीटाईजेशन के तहत अधिक जानकारी के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के टोल फ्री हेल्पलाईन नम्बर-18001804343 पर जानकारी हासिल कर सकते हैं।

 (साभार: दैनिक न्याय सेतु 21 अक्तूबर, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Monday, 1 August 2016

स्वयं की जागरूकता से ही रूकेंगी सडक़ दुर्घटनाएं

सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय भारत सरकार की सडक़ दुर्घटनाओं को लेकर वर्ष-2015 के जारी आंकडों के अनुसार देश में वर्ष 2014 के मुकाबले 2015 में सडक़ दुर्घटनाओं में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। जबकि इसी दौरान सडक़ दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों में भी 4.6 प्रतिशत तथा घायलों की संख्या में 1.4 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज हुई है। जारी आंकडों के आधार पर देश में प्रतिदिन 1374 सडक़ दुर्घटनाओं में 400 लोगों की मौत हो रही है। यानि की हम कह सकते हैं कि हमारे देश की सडक़ें प्रतिदिन हो रही सडक़ दुर्घटनाओं के शिकार लोगों के रक्त से हर पल लाल हो रही है तथा जिस गति से यह आंकडा बढ़ रहा है सडक़ दुर्घटनाओं को लेकर देश की एक भयावह तस्वीर हमारे सामने प्रस्तुत हो रही है। 
सरकार द्वारा जारी इन्ही आंकडों का आगे विश्लेषण करें तो सबसे चौकाने वाली बात यह सामने आ रही है कि इन सडक़ दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे लोगों में से 54.1 फीसदी 15-34 आयु वर्ग के युवा हैं। युवाओं का इस तरह सडक़ दुर्घटनाओं में शिकार हो जाना हमारे देश व समाज के लिए एक बहुत बडी त्रासदी कही जा सकती है। आंकडों के आधार पर कुल सडक़ दुर्घटनाओं में से 77.1 प्रतिशत सडक हादसे चालकों की लापरवाही के कारण घटित हो रहे हैं। जिसमें से लगभग 62 फीसदी कारण ओवरस्पीड जबकि शराब व नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों का आंकडा दस फीसदी है। इसी तरह ओवरलोडिंग के कारण देश में 77 हजार से अधिक सडक़ दुर्घटनाएं हुई जिनमें 25 हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई है। यानि की यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकतर सडक दुर्घटनाओं के कारण हम स्वयं ही बन रहे हैं। आंकडों से दूसरी सबसे चौकाने वाली बात यह सामने आ रही है कि देश में हिट व रन के मामलों में भी वृद्धि दर्ज हुई है तथा वर्ष 2015 में कुल सडक दुर्घटनाओं में से 11.4 प्रतिशत हिट व रन के मामले सामने आए जिनके तहत 20 हजार से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पडी है।
इन आंकडों से एक ओर बात मुख्य तौर पर सामने आ रही है कि गत दो वर्षों के दौरान दोपहिया वाहनों की सडक़ दुर्घटना के आंकडों में भी लगभग दो फीसदी जबकि कार, जीप, टैक्सी इत्यादि के मामले में लगभग डेढ़ फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है। पूरे देश में 26 फीसदी सडक दुर्घटनाओं के कारण दोपहिया वाहन, साढे पच्चीस फीसदी ट्रक, टैंपो इत्यादि, 19 फीसदी कार, जीप, टैक्सी इत्यादि तथा 8 फीसदी बसें सडक़ दुर्घटनाओं का कारण बन रही हैं। ऐसे में एक बार फिर यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकतर सडक़ दुर्घटनाओं के लिए वाहन चालक स्वयं ही कारण बन रहे हैं। इसके अलावा एक महत्वपूर्ण बात यह भी सामने आई है कि 79 फीसदी सडक़ दुर्घटनाओं के मामले में चालकों के पास नियमित ड्राईविंग लाईसेंस था जबकि लर्नर लाईसेंस धारकों का आंकडा 12 फीसदी तथा बिना लाईसेंस वाले चालकों का आंकडा नौ फीसदी है।
ऐसे में यदि हिमाचल प्रदेश की बात करें तो वर्ष 2015 में तीन हजार सडक़ दुर्घटनाएं घटित हुई जिनमें लगभग 11 सौ लोगों की मौत व 5 हजार से अधिक घायल हुए हैं। राष्ट्रीय स्तर की भांति हिमाचल प्रदेश में भी अधिकतर सडक़ दुर्घटनाओं का मुख्य कारण वाहन चालक की लापरवाही ही सामने आई है। प्राप्त आंकडों के आधार पर प्रदेश में कुल सडक़ दुर्घटनाओं में से 2893 वाहन चालकों की गलती के कारण हुई जिनमें 1042 लोग मारे गए तथा पांच हजार के करीब घायल हुए हैं। वाहन चालकों के कारण हुई कुल सडक़ दुर्घटनाओं में से 2670 दुर्घटनाओं का कारण तेज गति से वाहन चलाना ही सामने आया है। ऐसे में एक बार फिर स्पष्ट हो गया कि लोगों की स्वयं की गलती के कारण की अधिकतर सडक़ दुर्घटनाओं के मामले घट रहे हैं।
इन परिस्थितियों में अब यह जरूरी हो जाता है कि सडक दुर्घटनाओं के प्रति लोगों को जागरूक करने की बहुत आवश्यकता है ताकि प्रतिवर्ष लाखों लोगों को सडक़ दुर्घटनाओं के कारण असमय ही मौत के आगोश में जाने से बचाया जा सके। इसके लिए जरूरी है कि लोग वाहन चलाते समय सडक़ पर लगी संकेतावली व चिन्हों का गंभीरता से पालन करते हुए स्वयं व दूसरों की अनमोल जिंदगी को बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। साथ ही वाहन चालक गाडी चलाते समय सीट बैल्ट का प्रयोग करते हैं तो सडक दुर्घटना की स्थिति में मौत होने की 60 प्रतिशत तक संभावनाएं कम हो जाती हैं जबकि दोपहिया वाहन चलाते समय अच्छी गुणवत्ता वाला हेल्मेट पहनने से सिर पर लगने वाली चोटों की संभावनाओं को 70 प्रतिशत तक कम कर देता है। 
यही नहीं वाहन चलाते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना भी सडक दुर्घटनाओं का बहुत बडा कारण बनता जा रहा है। इस दिशा में किए गए अनुसंधानों से पता चला है कि वाहन चलाते समय फोन को सुनना, कॉल या लिखित संदेश आने से भ्रमित हो जाना, एकाएक मोबाईल फोन की घंटी बज जाना इत्यादि विभिन्न कारणों से वाहन चालक की सडक पर जोखिमों के प्रति पहचान और प्रतिक्रिया की क्षमता धीमी हो जाती है जिसके कारण सडक दुर्घटना होने का अंदेशा लगातार बना रहता है। सडक यातायात में दिन के मुकाबले रात में घातक दुर्घटनाएं होने की संभावना 3-4 गुणा अधिक होती है। इसलिए रात्रि के समय वाहन चलाते समय अतिरिक्त सावधानी व सत्तर्कता अपनाएं तथा पैदल चलने वाले यात्रियों, साइकिल सवारों, पशुओं इत्यादि के प्रति सावधान रहें। साथ ही रेट्रो-रिफलैक्टिव शीटों व टेपों का व्यापक इस्तेमाल करें।
देश में वाहनों की ओवरलोडिंग भी सडक़ दुर्घटनाओं का एक बहुत बडा कारण है इसलिए ओवर लोडिंग न करके हम देश की सडकों को क्षति पहुंचाने से बचा सकते हैं बल्कि वाहनों की क्षमता को भी बढ़ाने के साथ-साथ होने वाले आर्थिक नुकसान से भी बच सकते हैं। इसके अलावा वाहन चालकों को वाहन चलाते समय शराब व नशीले पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए। देश में 77 फीसदी सडक दुर्घटनाओं के लिए वैध ड्राईविंग लाईसैंस धारी चालक ही कारण बन रहे हैं, ऐसे मेें जरूरी है कि वाहन चालकों का समय-समय पर सडक़ सुरक्षा के प्रति औचक परीक्षण भी होना चाहिए ताकि वाहन चालक सडक़ नियमों के प्रति सचेत बने रहें।
ऐसे में यदि हमारे देश को ब्राजीलिया डिक्लेरेशन के तहत 2020 तक सडक़ दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों में 50 फीसदी तक कमी लानी है तो जरूरी है कि लोग सडक़ सुरक्षा नियमों के प्रति जागरूक बनें तथा ड्राईविंग लाईसेंस जारी किए जाने वाली प्रक्रिया में सख्ती के साथ-साथ पारदर्शिता अपनाए जाने की आवश्यकता है। साथ ही सडक सुरक्षा नियमों का पालन न करने वाले वाहन चालकों के प्रति सख्त कानूनी कार्रवाई भी अमल लानी होगी। अन्यथा हमारी सडक़ों पर मौत यह तांडव इसी तरह जारी रहेगा तथा असमय की असंख्य लोग अपनी अनमोल जिंदगी को गंवाते रहेंगें।



(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 1 अगस्त, 2016 एवं हिमाचल दिस वीक, 6 अगस्त, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Saturday, 23 July 2016

प्राचीन तालाबों का जीर्णोद्धार, पर्यावरण संरक्षण की एक अनूठी पहल

जिला ऊना में ही नहीं बल्कि हिमाचल प्रदेश के नक्शे में हरोली हलके ने गत तीन वर्षों के दौरान जहां विकास की नई ऊंचाईयों को छूआ है तो वहीं जिस रचनात्मकता के साथ हलके के विकास को पंख लगे हैं, जिसके परिणाम स्वरूप हरोली हलका पूरे प्रदेश भर में एक आदर्श विधानसभा क्षेत्र के तौर पर ऊभर कर सामने आया है। आज इस हलके में औद्योगिक विकास से लेकर शिक्षा के क्षेत्र तक, किसानों के खेत से लेकर प्रशासनिक  ढांचे के विकास में हलके ने अभूतपूर्व तरक्की कर विकास की नई ऊंचाईयों को छुआ है। 
हिमाचल प्रदेश सरकार में काबीना मंत्री एवं स्थानीय विधायक मुकेश अग्रिहोत्री की नई सोच व रचनात्मकता के साथ विकास को एक नई दिशा देकर आज हरोली हलके के प्राचीन तालाबों (टोबों) को विकास के नवीनतम मॉडल के साथ न केवल सहेजा जा रहा है बल्कि एक नई दिशा देकर इन्हे खूबसूरत सैरगाह के साथ-साथ पर्यटक केन्द्रों के तौर पर भी विकसित किया जा रहा है। आज हलके में कांगड के तालाब से लेकर पूबोवाल, ललडी, सलोह, गोंदपुर बुल्ला, गोंदपुर जयचंद, हीरां थडा, पंजाबर, दुलैहड के प्राचीन तालाबों (टोबों) को बेहद खूबसूरती के साथ विकसित किया गया है। इन तालाबों के जीर्णोद्धार के कार्य कर जहां तालाब के चारों ओर स्थानीय लोगों की सुविधा के लिए खूबसूरत ट्रैक का निर्माण किया गया है तो वहीं बैठने के लिए लॉन, बैंच व रात्रि के समय सोलर लाईटों का भी प्रबंध किया गया है। साथ ही इन तालाबों में स्थानीय पंचायत की आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए मछली पालन को भी प्रोत्साहित किया गया है। इससे न केवल स्थानीय पंचायत को आय के नए स्त्रोत के तौर इन तालाबों का महत्व बढा है बल्कि यह गांव की आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र बिन्दु बनकर भी उभर कर सामने आए हैं। 
जीर्णोद्धार से पहले तालाब का दृश्य 
आज हरोली हलके का शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जहां पर प्राचीन तालाब (टोबे) न हो। भले ही वक्त के बदलाव के साथ इन तालाबों का महत्व कम हुआ हो लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से ये तालाब आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने वह पहले हुआ करते थे। बदलते वक्त की इस तेज रफतार भरी जिन्दगी में इन प्राचीन तालाबों के रखरखाव, उत्थान व जीर्णोद्धार के लिए भले ही श्रमदान कर अब आधुनिक समाज के लोग आगे आने से कतराते रहे हों, लेकिन उद्योग मंत्री मुकेश अग्रिहोत्री ने हरोली हलके की इस प्राचीन विरासत को सहेजने में न केवल प्राथमिकता के साथ कार्य किया है बल्कि टौबों के जीर्णोद्धार कार्यों में निजी तौर पर दिलचस्पी लेकर पर्यावरण के प्रति इनके महत्व को भी बखूवी पहचाना है। मुकेश अग्रिहोत्री की इसी दूरदर्शी सोच का ही नतीजा है कि जहां हरोली हलके की प्राचीन तालाबों (टोबों) को न केवल एक नया जीवन मिला है बल्कि विकास के आईने में रचनात्मकता का भाव भी साफ झलकता है। हलके के प्रति इसी दूरदर्शी सोच का नतीजा है कि आज हरोली के कई तालाबों का जीर्णोंद्धार संभव हुआ है बल्कि इस प्राचीन विरासत को नए अंदाज में सहेजकर खूबसूरत भी बनाया गया है। 
जीर्णोंद्धार के बाद तालाब का दृश्य
वक्त के साथ नई पीढ़ी के लिए इन प्राचीन धरोहरों को सहेजना व संवारना इतना महत्वपूर्ण न रह गया हो, लेकिन हम यह क्यों भूल रहे हैं इन तालाबों के कारण न केवल स्थानीय लोगों के साथ-साथ मवेशियों एवं जंगली जानवरों को पानी की समस्या से निजात मिलती है बल्कि पर्यावरण को संरक्षित करने में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इन्ही तालाबों का नजीता रहा है कि जहां भू-जल का स्तर बेहतर बना रहता है तो वहीं खेतीबाडी से लेकर पशुपालन में इनकी अहम भूमिका रहती है। आज पूरी दुनिया सहित भारत के कई हिस्सों में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची है, लोग एक-एक पानी की बूंद को तरस रहे है, ऐसे में अपनी प्राचीन विरासत टोबों को सहेजकर न केवल आने वाली पीढिय़ों को इन तालाबों के जीर्णोद्धार के माध्यम से युवा पीढ़ी को जागरूक किया है, बल्कि पर्यावरण व वन्य जीवों को बचाने में भी अपना अहम योगदान दिया है।
एक खूबसूरत तालाब का दृश्य
इस तरह मुकेश अग्रिहोत्री ने विकास के आईने में हरोली हलके की प्राचीन धरोहर तालाबों का जीर्णोद्धार कर न केवल बुजुर्गों की अनमोल विरासत को सहेजा है बल्कि हरोली हलके के यह प्राचीन तालाब फिल्मी दुनिया के लोगों के लिए पसंदीदा स्थल के तौर पर भी उभरे हैं जिससे इस हलके को पर्यटन के क्षेत्र में भी एक नई उडान मिली है। 
इस बारे उद्योग मंत्री मुकेश अग्रिहोत्री का इन तालाबों को नया स्वरूप देने के पीछे कहना है कि पर्यावरण की दृष्टि से जहां इन प्राचीन तालाबों की हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है तो वहीं हलके की जनता को आधुनिक शहरों की भीडभाड व प्रदूषण भरी जिन्दगी से दूर गांव में ही वह तमाम सुविधाएं मुहैया करवा दी जाएं जिनके लिए लोग अकसर शहरों की ओर रूख करते हैं।








Wednesday, 13 July 2016

बुढ़ापे में देवराज व बलदेव चंद के लिए वृद्धावस्था पैंशन बनी एकमात्र सहारा

चालू वित वर्ष के दौरान जिला में सामाजिक सुरक्षा पैंशन के तहत 22062 लोगों पर व्यय होंगें 20 करोड रूपये
जिला ऊना के गगरेट विकास खंड की दूरदराज ग्राम पंचायत नंगल जरियालां के वार्ड नम्बर तीन के मुहल्ला छैवालिया के बीपीएल परिवार में शामिल निवासी देवराज व उनकी धर्मपत्नी भगवती देवी के लिए जीवन के आखिरी पडाव में सरकार की सामाजिक सुरक्षा पैंशन जीने का एकमात्र सहारा बनी है। नाई की दुकान चलाकर गुजर बसर करने वाले देवराज की कुछ वर्ष पहले आंखों की रोशनी चली गई जिसके कारण वह अपना काम करने से भी वंचित हो गए। परिवार में कोई दूसरा सदस्य न होने के कारण देवराज की मुश्किलें बढ़ती गई तथा इस मंहगाई के जमाने में गुजर बसर करना मुश्किल होता चला गया। परन्तु ऐसे में सरकार की सामाजिक सुरक्षा पैंशन इस वृद्ध दंपति के लिए जीने का एकमात्र सहारा बन कर आई है। आज देवराज व उनकी धर्मपत्नी को सरकार की ओर से मिलने वाली इस सामाजिक सुरक्षा पैंशन के कारण न केवल उनका चूल्हा जलता है बल्कि  जिंदगी की अपनी अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए भी वह इसी पैंशन पर निर्भर हैं।  
कमोवेश यही कहानी इसी जिला के हरोली विकास खंड के गांव नथूरे ग्राम पंचायत हीरां थडा के 82 वर्षीय बलदेव चंद की है। 4 बेटियों व एक बेटे के पिता बलदेव चंद ने ताउम्र मेहनत मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण किया तथा बच्चों को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार पढ़ाई-लिखाई करवाकर उनकी शादी कर उनके परिवारों को बसाया। आज उनके सभी बच्चे अपने-अपने परिवारों के साथ खुशी-खुशी रह रहे हैं, लेकिन जीवन के इस अंतिम पडाव में बलदेव चंद व उनकी पत्नी के लिए जिंदगी उम्र बढऩे के साथ-साथ पहाड सी चुनौती बनती गई। बढ़ती उम्र के साथ-साथ जहां वह काम करने में असमर्थ होते चले गए तो वहीं आय का कोई दूसरा साधन न होने के कारण इस बुजुर्ग दंपति की मुश्किलें भी लगातार बढ़ती चली गई। लेकिन ऐसे में इस बुजुर्ग दंपति के लिए भी सरकार की सामाजिक सुरक्षा पैंशन सहारा बनकर आई। आज बलदेव चंद को प्रतिमाह सरकार की ओर से 12 सौ रूपये की दर से सामाजिक सुरक्षा पैंशन मिल रही है।
इस बारे देवराज व बलदेव चंद का कहना है कि सरकार द्वारा गरीब व जरूरतमंदों विशेषकर 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए बिना किसी आय सीमा के आरंभ की गई यह सामाजिक सुरक्षा पैंशन वास्तव में ही सहारा बन कर आई है। इस बारे उनकी सरकार से मांग है कि वृद्धावस्था के कारण बुजुर्ग लोगों की विभिन्न समस्याओं को ध्यान में रखते हुए पैंशन का भुगतान समय पर उनके घरद्वार पर ही हो जाना चाहिए ताकि उन्हे पैंशन की धनराशि लेने के लिए इधर-उधर न जाना पडे। ऐसे में देवराज व बलदेव चंद की तरह जिला ऊना में सैंकडों गरीब, जरूरतमंद व्यक्ति एवं परिवार हैं जिनके जीवन में सरकार की यह सामाजिक सुरक्षा पैंशन जिंदगी के इस आखिरी पडाव में आर्थिक सहारा बनकर खडी हुई है। 
जिला ऊना में वर्ष 2015-16 के दौरान विभिन्न सामाजिक सुरक्षा पैंशन के तहत 20683 लोगों को लाभान्वित कर लगभग साढे 15 करोड रूपये की आर्थिक सहायता मुहैया करवाई गई है। जिसमें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पैंशन के 5543, वृद्धावस्था के 6673, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पैंशन के 1929, विद्यवा पैंशन के 3860, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय अपंग पैंशन के 51, अपंग राहत भत्ता के 2582 तथा कुष्ठ रोगी राहत भत्ता के 45 मामले शामिल हैं।
जिला कल्याण अधिकारी ऊना असीम सूद ने बताया कि जिला में चालू वित्त वर्ष के दौरान सरकार ने 2594 नए पैंशन के मामलों को स्वीकृति प्रदान कर कुल 22062 लोगों को सामाजिक सुरक्षा पैंशन पर लगभग 20 करोड रूपये की धनराशि व्यय की जाएगी। उन्होने बताया कि वर्तमान सरकार ने सामाजिक सुरक्षा पैंशन को साढ़े चार सौ से बढ़ाकर 650 सौ रूपये प्रतिमाह जबकि 80 वर्ष या इससे अधिक उम्र तथा 70 प्रतिशत से अधिक अक्षमता वालों के लिए यह राशि आठ सौ रूपये से बढाकर 12 सौ रूपये प्रतिमाह कर दी है।
इस तरह जिला ऊना में हजारों गरीब व जरूरतमंद लोगों के लिए सरकार की सामाजिक सुरक्षा पैंशन जीवन के आखिरी पडाव में आर्थिक सुरक्षा के तौर पर सहारा बनकर आई है।








Friday, 1 July 2016

शैक्षणिक संस्कार बने बुजुर्गों का सम्मान

वृद्धावस्था मानव जीवन की एक ऐसी अवस्था होती है, जिसमें बुजुर्गों को न केवल आर्थिक बल्कि भावनात्मक व सामाजिक सुरक्षा की जरुरत होती है। परन्तु पिछले कुछ दशकों में तेजी से बदलते सामाजिक परिदृश्य के कारण हमारे समाज में बुजुर्गों के प्रति न केवल संवेदनहीनता बढ़ी है बल्कि जीवन के अन्तिम पड़ाव में खड़े हमारे बुजुर्गों की स्थिति दयनीय हो चली है। कितने दु:ख के साथ कहना पड़ रहा है कि जिन्होने बड़े लाड़-प्यार से बच्चों को पाला पोसा व बड़ा कर समाज में एक काबिल इन्सान बनाया वही लोग जीवन की आपाधापी, व्यस्तता व घरों से मीलों दूर बड़े-2 शहरों यहां तक कि विदेशों में जाकर अपने बुजुर्गों के प्रति कर्तव्यों को भूलते नजर आ रहे हैं। अब हम इसे समय की पुकार कहें या फिर जिन्दगी की लड़ाई में हारती मानवता। कारण कुछ भी हो सकते हैं, परन्तु यहां यह तर्क बिल्कुल ठीक बैठता है कि बढ़ते शहरीकरण, औद्योगिकरण व आधुनिकता की इस चकाचौंध में जहां हमारे समाज में संयुक्त परिवार की सदियों पुरानी संस्कृति एकल परिवारों की ओर बढ़ी है, तो वहीं घर व समाज में बड़े-बुजुर्गों के प्रति हमारे संबंध भी बदलते नजर आ रहे हैं। ऐसा एक वक्त था जब संयुक्त खुशहाल परिवार, जहां सारे सदस्य एक साथ खाना खाते थे, एक जगह एक ही देवी-देवता की पूजा पाठ में शरीक होते थे, दादा-दादी के मार्गदर्शन, लाड़ व प्यार में बच्चे बड़े होते थे, वहां अब इस प्रेम-मोहब्बत की जगह स्वार्थ और संकीर्णता का बोलवाला हो गया है और घर-परिवार, समाज में कल का सम्मानित बुजुर्ग बेगानेपन और बोझ समझे जाने की इस अहसनीय मानवीय पीड़ा से टूटता चला जा रहा है।जनगणना-2011 के आंकड़ों के अनुसार देश में प्रजननदर घट रही है, जिससे बच्चों की आबादी घटनी और बूढ़ों की बढऩी शुरु हो गई है। अनुमान है कि वर्ष 2026 तक देश में बूढ़ों की संख्या लगभग 17.5 करोड़ हो जाएगी। वर्तमान में देश की कुल आबादी का 7.3 फीसदी हिस्सा बुजुर्गों का है जो लगभग 9 करोड़ बनता है जो 2026 में लगभग 12.4 प्रतिशत के साथ 17.5 करोड़ तक पहुंच जाएगा। ऐसे में आने वाले समय में देश के अन्दर 60 वर्ष या इससे अधिक उम्र के लोगों की आबादी को हम किसी भी सूरत में नजर अन्दाज नहीं कर सकते हैं। दूसरी तरफ  हकीकत तो यह है कि वक्त के साथ-साथ औसत आयु में भी वृिद्ध हुई है। एक जानकारी के अनुसार वर्ष 1947 में व्यक्ति की औसत आयु 31 साल थी जो वर्तमान में 65 साल से भी अधिक हो गई है। ऐसे में निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि आने वाले समय में 75-80 साल आयु वाले बुजुर्ग लोगों की संख्या में बढ़ौतरी होगी। साथ ही हमारे समाज में सार्वजनिक सेवाओं से सेवानिवृति की उम्र भी अब 60 वर्ष तथा कुछेक व्यावसायों जैसे उच्च शिक्षा व स्वास्थ्य में यह 65 व 70 वर्ष तक हो गई है। ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले वर्षों में 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों का यह आंकड़ा बढऩे वाला है। वल्डऱ् पॉपुलेशन प्रोस्पेक्टस-2006 के मुताबिक 2050 में हमारे देश में 80 वर्ष से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों की संख्या मौजूदा करीब 80 लाख से 6 गुणा बढक़र करीब 5.14 करोड़ हो जाएगी। ऐसे में अब प्रश्न यह उठ रहा है कि जहां समय के साथ-साथ बुजुर्गों की आबादी बढ़ेगी तो वहीं बढ़ती उम्र के साथ-साथ कई समस्याएं भी आएंगी।
ऐसे में भले ही समय-समय पर देश व विभिन्न प्रदेशों की सरकारों ने बुजुर्गों को समाज की मुख्यधारा में सम्मानजनक जीवनयापन के लिए माता-पिता भरण पोषण अधिनियम सहित कई कानून बनाए हैं, जिसमें वृद्ध मां-बाप की उपेक्षा करने वाले बच्चों के खिलाफ  कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। सरकारी व निजी क्षेत्र में वृद्धाआश्रम खोलने के अतिरिक्त उन्हे आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने के लिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन, सरकारी योजनाओं, बैंकों, अस्पतालों, परिवहन सेवाओं इत्यादि में कई रियायती सुविधाएं भी प्रदान की गई है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश की ही बात करें तो प्रदेश सरकार 80 वर्ष या इससे अधिक आयु वाले समाज के सभी ऐसे बुजुर्गों को बिना किसी की आय सीमा के 11 सौ रूपये सामाजिक सुरक्षा पैंशन मुहैया करवा रही है। 
परन्तु इसके बावजूद इस बढ़ती उम्र के साथ-साथ हमारे बुजुर्गों को कई तरह की समस्याओं से दो चार होना पड़ता है। जिसमें चाहे बुढ़ापे के दौरान होने वाली विभिन्न बीमारियां हों या फिर सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ बढ़ता एकाकीपन हो। ऐसे में यहां बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि जिन्दगी के अंतिम पड़ाव में खड़े हमारे बुजुर्गों को जहां अकेलेपन का जो दंश झेलना पड़ता है, यह हमारे समाज के लिए किसी भी गंभीर बीमारी से होने वाली पीड़ा से ज्यादा दु:खदायी ही है, तो वहीं महानगरों, शहरों और अब ग्रामीण परिवेश में भी हमारे बुजुर्ग अपनों की बेरुखी के कारण सुरक्षित नहीं रह गए हैं। जीवनयापन के लिए वे अपनी जिस पेंशन या जमापूुंजी पर निर्भर हैं, वह भी अपनों की बेरुखी तथा अकेलेपन के चलते सुरक्षित नहीं है। आए दिन बुजुर्गों के साथ मारपीट व हत्या कर संपति की लूट करने की घटनाएं इसका जवलंत उदाहरण हैं।
इस तेजी से बदलते परिदृष्य में भविष्य में बुजुर्गों की देखभाल व सुरक्षा की जिम्मेदारी परिवार, समाज, सरकार व समुदाय की सामूहिक इच्छाशक्ति, एकजुट प्रयास व जागरुकता के बगैर संभव नहीं होगी। ऐसे में अब यह जरुरी हो जाता है कि आने वाली पीढी़ को आधुनिक व व्यावसायिक शिक्षा के साथ-साथ सुसंस्कारित, नैतिक मूल्यों व आदर्श विचारों से ओतप्रोत शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि इस बढ़ती सामाजिक समस्या का कोई बेहतर व स्थाई हल निकाला जा सके। ऐसे में हमारा सदियों पुराना पारिवारिक ढ़ांचा व समृद्ध संस्कृति बुजुर्गों को समाज की मुख्यधारा में बनाए रखने में एक अहम कड़ी का काम कर सकती है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया के विकसित व पश्चिमी संस्कृति से ओतप्रोत मुल्कों में आधुनिकता व विकास की दौड़ में जिस तेजी से पारिवारिक ढ़ांचा बिखरा आज वहां पर बच्चों व बुजुर्गों की स्थिति अत्यन्त दयनीय व दु:खदायी कही जा सकती है। कमोवेश कल हमारा समाज व देश भी उनमें से एक हो सकता है यदि हमने समय रहते इस दिशा में कठोर व प्रभावी कदम नहीं उठाए।
इस संबंध में अब यह जरूरी हो जाता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में स्कूली स्तर से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक सभी पाठयक्रमों में देश की सामाजिक व्यवस्था एवं यहां की संस्कृति से स्बरू करवाने के लिए हमारी नौजवान पीढी को अवगत करवाने की आवश्यकता है। आज भले ही हम लाखों व करोडों रूपयों का पैकेज दिलवाने वाली बडी-बडी डिग्रीयों की बात करते हैं लेकिन वास्तव में हमारी शिक्षा का उदेश्य तभी पूरा होगा जब हम आधुनिकता के चकाचौंध से भरी इस जिंदगी में बुजुर्गों की देखभाल से लेकर उन्हे पारिवारिक संरक्षण एवं वह प्यार मोहब्बत जीवन के अंतिम पडाव में परिवार के अन्दर ही मुहैया करवा पाते हैं जिनकी उन्हे बेहद जरूरत होती है।

(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 25 जून, 2016 एवं दिव्य हिमाचल 28 जून, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Wednesday, 22 June 2016

हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड बना श्रमिकों का सहारा

जिला ऊना में एक वर्ष के दौरान 4376 मजदूरों को बांटे एक करोड रूपये  के लाभ
हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड अपनी विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से श्रमिकों व उनके परिजनों के कल्याण एवं उत्थान में कारगर साबित हो रहा है। अकेले जिला ऊना में ही गत एक वर्ष के दौरान 4376 श्रमिकों को लगभग एक करोड 16 लाख रूपये से अधिक के वित्तीय व अन्य लाभ प्रदान किए गए हैं।
श्रम अधिकारी ऊना जितेन्द्र बिन्द्रा ने बताया कि जिला ऊना में गत एक वर्ष के दौरान 4376 श्रमिकों को लाभान्वित कर लगभग एक करोड 16 लाख रूपये से अधिक के वित्तीय व अन्य लाभ प्रदान किए गए हैं। जिसमें बच्चों की शिक्षा के 819 मामलों में लगभग 15 लाख 88 हजार, बच्चों के विवाह के 109 मामलों में 21 लाख 34 हजार रूपये, चिकित्सा के 32 मामलों में एक लाख, कामगार की मृत्यु होने पर दी जाने वाली आर्थिक सहायता पर दो लाख 60 हजार तथा मातृत्व व पितृत्व के लिए एक लाख 86 हजार रूपये की आर्थिक सहायता शामिल है। जबकि इस दौरान 1338 कामगारों को 26 लाख रूपये मूल्य के इंडक्शन हीटर, 388 मामलों में 5 लाख  82 हजार रूपये के कैरोसीन स्टोव तथा 64 मामलों में एक लाख 66 हजार रूपये के सोलर लैंप भी वितरित किए गए हैं। जिला ऊना में वर्तमान में हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड के तहत 10523 श्रमिक पंजीकृत हैं जिसमें 2247 मनरेगा कामगार शामिल हैं। 
किन-किन योजनाओं के तहत मिलता है लाभ
हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड के माध्यम से कामगारों एवं उनके परिजनों के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही है जिसमें कामगारों के दो बच्चों की शिक्षा तक प्रति बच्चा एक हजार से 15 हजार रूपये प्रतिवर्ष, कामगार की स्वयं अथवा दो बच्चों की शादी के लिए प्रति बच्चा 25 हजार रूपये, प्रसूति लाभ योजना के तहत महिला कामगार को प्रसूति लाभ के लिए दो बच्चों तक दस-दस हजार जबकि पुरूष कामगार को एक हजार रूपये, बीमार होने की स्थिति में सरकारी एवं सरकार द्वारा अनुमोदित अस्पतालों में उपचार के लिए आउटडोर के तौर पर दस हजार जबकि इन्डोर तीस हजार रूपये वार्षिक की आर्थिक सहायता, 60 वर्ष से अधिक उम्र के कामगारों को पांच सौ रूपये प्रतिमाह पैंशन सहित महिला कामगारों को साईकिल और वाशिंग मशीन, कामगार को औजार खरीद के लिए 6 हजार रूपये ब्याजमुक्त ऋण, लाभार्थियों को सोलर कुकर, सोलर लैंप व इंडक्शन हीटर जैसी अन्य सुविधाएं भी मुहैया करवाई जा रही है। इसके अतिरिक्त लाभार्थी पति व पत्नी सहित बच्चों के कौशल विकास हेतु 15 सौ रूपये प्रतिमाह तथा 18हजार रूपये वार्षिक कौशल विकास भत्ता एवं आवासीय व्यवसायिक पाठयक्रम का रहन सहन सहित पूरा खर्च वहन किया जाता है जबकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत कामगार पति व पत्नी सहित परिवार के अन्य तीन सदस्यों को 30 हजार रूपये तक ईलाज की सुविधा भी दी जाती है।
किसका हो सकता है पंजीकरण
हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड में ऐसे कामगार अपना पंजीकरण करवा सकते हैं जो भवन एवं अन्य सन्निर्माण कार्य में 90 दिन या इससे अधिक दिनों से कार्यरत तथा मनरेगा में एक वर्ष में 50 दिन तक कार्य करने वाले कामगार अपना पंजीकरण करवा सकते हैं। इस सबंध में अधिक जानकारी के लिए मुख्य कार्यकारी अधिकारी हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड के शिमला कार्यालय या अपने जिला के श्रम अधिकारी कार्यालय से संपर्क स्थापित कर सकते हैं।

Monday, 20 June 2016

ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री पांवटा साहिब हिमाचल प्रदेश

गुरु गोबिन्द सिंह जी का यमुना नदी के तट पर बसाया नगर पांवटा साहिब इतिहास की कई महान घटनाओं को संजोए हुए है। एक तरफ जहां सिख धर्म के इतिहास में विशेष स्थान रखता है तो दूसरी तरफ  सिक्खों के गौरवमयी इतिहास की यादों को ताजा करता है। इस धरती पर पांवटा साहिब ही एक ऐसा नगर है जिसका नामकरण स्वयं गुरु गोबिन्द सिंह जी ने किया है। इतिहास में लिखा है कि गुरु गोबिन्द सिंह जी 17 वैशाख संवत 1742 (1685 ई0) को नाहन पहुंचे तथा संक्राति 1742 संवत को पांवटा साहिब की नींव रखी। इसी स्थान से गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 16 वैशाख संवत 1746 (1689 ई0) को भंगाणी के मैदान में पहला युद्ध लड़ा था। बिना प्रशिक्षण एकत्रित फौज को बाईसधार के राजाओं के मुकाबले में लाकर उनकी 25,000 फौज की कमर तोड़ दी थी। इसी युद्ध से गुरु जी ने जुल्म के विरुद्ध जंग लडऩे का ऐलान किया और एक-एक करके 13 युद्ध लड़े। 
गुरु गोबिन्द सिंह जी 4 साल तक पांवटा साहिब में रहे। इस दौरान उन्होने यहां रहकर बहुत से साहित्य तथा गुरुवाणी की रचनांए भी की है। प्राचीन साहित्य का अनुभव और ज्ञान से भरी रचनाओं को सरल भाषा में बदलने का काम भी गुरु गोबिन्द सिंह जी ने लेखकों से करवाया। गुरु गोबिन्द सिंह जी यहां पर एक कवि दरबार स्थान की स्थापना की जिसमें 52 भाषाओं के भिन्न-भिन्न कवि थे। कवि दरबार स्थान पर गुरु गोबिन्द सिंह जी पूर्णमाशी की रात को एक विशेष कवि दरबार भी सजाया। 
यमुना नदी के तट की ओर से गुरूद्वारे का विहंगम दृश्य
इतिहास के पन्नों के अनुसार बाईस धार के राजाओं में परस्पर लड़ाई झगड़े चलते रहते थे। नाहन रियासत के तत्कालीन राजा मेदनी प्रकाश का कुछ इलाका श्रीनगर गढ़वाल के राजा फतहशाह ने अपने कब्जे में कर लिया था, और राजा मेदनी प्रकाश अपने क्ष्ेात्र को वापिस लेने में विफल रहा था। राजा मेदनी प्रकाश ने रियासत के प्रसिद्ध तपस्वी ऋषि काल्पी से सलाह मांगी। उन्होने कहा कि दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी को अपनी रियासत में बुलाओ वही तुम्हारा संकट दूर कर सकते हैं। राजा मेदनी प्रकाश के आग्रह पर गुरु गोबिन्द सिंह जी नाहन पहुंचे। जब गुरु जी नाहन पहुंचे तो राजा मेदनी प्रकाश, उनके मंत्रियों, दरबारियों व गुरु घर के सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने उनका शानदार और परंमपरागत स्वागत किया। कुछ दिन नाहन रहकर गुरु गोबिन्द सिंह जी इलाके का दौरा किया और कई स्थान देखे। वह वर्तमान पांवटा साहिब नगर वाली एक जगह पर यमुना नदी के किनारे पहुंचे तो गुरु जी को यहां का प्राकृतिक सौंदर्य बहुत ही पसंद आया और यहीं ठहरने का फैसला कर लिया। इसी स्थान पर कुछ ही दिनों के भीतर एक किले जैसी इमारत बन गई और लोगों के रहने और कारोबार के लिए नगर का निर्माण शुरु हो गया। राजा मेदनी प्रकाश ने यहां की सारी जमीन गुरु गोबिन्द सिंह जी को सौंप दी। गुरु जी ने इस नगर का नाम पांवटा रखा। महान शब्द कोश में पांवटा शब्द के तीन अर्थ मिलते हैं।
1 जिसमें पांव टिकाया जा सके, रकाब
2 जोड़ा जूता
3 मकान के आगे बिछाया गया कालीन जिस पर सम्मान योग्य मेहमान पांव रख कर आए। 
विशेष आयोजन के दौरान गुरूद्वारे का खूबसूरत दृश्य
यह सारे अर्थ ही इस नगर के नाम से मेल खाते कहे जा सकते हैं। गुरु जी अपने बसाए इस नगर में 4 वर्ष तक रहे तथा बाईस धार के राजाओं के साथ भंगाणी के मैदान में युद्ध लड़े और शानदार विजय प्राप्त कर राजा मेदनी प्रकाश की समस्या को हल किया। यमुना नदी के तट पर बसा यह गुरुद्वारा विश्व प्रसिद्ध है। यहां पर भारत से ही नहीं अपितु दुनियाभर से श्रद्धालु आते हैं। पांवटा साहिब आने वाला प्रत्येक यात्री चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित क्यों न हो, गुरुद्वारे में माथा टेकना नहीं भूलता है। प्रतिवर्ष होला मोहल्ला पर्व भी पांवटा साहिब में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। जिसमें सभी धर्मों के लोग बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं। धार्मिक आस्था रखने वालों के लिए यह स्थान अति महत्वपूर्ण है। यह स्थान देश के सभी प्रमुख स्थानों से सडक़ मार्ग से वर्ष भर जुड़ा हुआ है। यहां से जिला मुख्यालय नाहन लगभग 45 कि0मी0, यमुनानगर 50 कि0मी0, चण्डीगढ 125 कि0मी0, अंबाला 104 कि0मी0, शिमला वाया सरांहा 178 कि0मी0 तथा देहरादून लगभग 45 कि0मी0 दूर है। इसके अलावा पांवटा व आसपास के क्षेत्र में भी अनेक गुरुद्वारे है, जिनका धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टि से अपना महत्व हैं । 
गुरुद्वारा तीरगढ़ी साहिब:
यह सुन्दर स्थान पांवटा साहिब से लगभग 18 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। यह वह स्थान है जहॉं ऊंचे टीले पर खड़े होकर कलगीधार पातशाह खुद तीर चलाते हुए दुश्मनों की फौजों का सामना करते रहे हैं। गुरु साहिब के यहॉं तीर चलाने के कारण ही इस स्थान को तीर गढ़ी कहा जाता है। 
गुरुद्वारा भंगाणी साहिब:
यह सुन्दर स्थान भी पांवटा साहिब से लगभग 18 कि0मी0 तथा तीरगढ़ी साहिब से 01 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। यह वह स्थान है जहां पर कलगीधार पातशाह ने बाईसधार के राजाओं के विरुद्ध पहल युद्ध लड़ा है। यहॉं गुरु साहिब रात को विश्राम किया करते थे और अगले दिन युद्ध की रुप रेखा तैयार करते थे। हरे भरे खेतों, यमुना नदी व ऊंचे पहाड़ों के बीच एक रमणीय स्थल है। 
गुरुद्वारा रणथम्म साहिब:
यह पवित्र स्थान गुरुद्वारा श्री तीरगढ़ी साहिब व गुरुद्वारा श्री भंगाणी साहिब के बीच में है। भंगाणी साहिब के युद्ध के समय श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के नियुक्त किये हुए सेनापति संगोशाह ने गुरु जी का हुक्म मानकर अपनी आधी सेना को मैदान में ले जाकर रणथम्म गाड़ कर हुक्म किया कि इससे पीछे नहीं हटना, आगे बेशक बढ़ जाना। गुरु जी की इस रणनीति की वजह से गुरु घर के आत्म बलिदानियों ने दुश्मन की 25 हजार की हर तरह से ट्रेंड़ और हथियारों से लैस फौज का डट कर मुकाबला किया और रणथम्म से आगे आने का मौका ही नहीें दिया। गुरु साहिब ने यह युद्ध जीत लिया। इस तरह यह ऐतिहासिक स्थान एक विशेष महत्व रखता है। 
गुरुद्वारा शेरगाह साहिब:
यह पवित्र स्थान पांवटा साहिब से पांच कि0मी0 दूर निहालगढ़ गांव में है। इस स्थान पर श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने महाराजा नाहन, मेदनी प्रकाश और महाराजा गढ़वाल फतह चंद के सामने उस आदमखोर शेर को तलवार से मारा था जिस ने इलाके में बहुत बड़ा जानी नुकसान कर दिया था और जिस के सामने बड़े-बड़े शूरवीर भी जाने से कतराते थे। बताते हैं कि यह शेर राजा जैयदर्थ था जिस ने वीर अभिमन्यु को महाभारत की जंग में छलावे से मारा था और अब शेर की जूनी भुगत रहा था। गुरु जी ने उस की मुक्ति की। 
गुरुद्वारा दशमेश दरबार साहिब:
  यह ऐतिहासिक स्थान पांवटा साहिब से लगभग 8 कि0मी0 श्री भंगाणी साहिब मार्ग पर गांव हरिपुर के साथ छावनीवाला में स्थित है। यहां पर गुरु जी भंगाणी साहिब के योद्धाओं से विचार विमर्श किया करते थे, इसलिए इस जगह का नाम छावनी वाला पड़ गया।
गुरुद्वारा कृपाल शिला पांवटा साहिब:
यह गुरुद्वारा मुख्य गुरुद्वारे से मात्र एक कि0मी0 की दूरी पर है। यहां गुरु गोविन्द सिंह जी के शिष्य बाबा कृपालदास ने शिला के ऊपर बैठक कर तपस्या की थी।
गुरुद्वारा साहिब, नाहन:
जब गुरु जी महाराजा सिरमौर मेदनी प्रकाश के बुलावे पर नाहन पहुंचे तो उनका शानदार और श्रद्धापूर्वक स्वागत हुआ। जिस स्थान पर गुरु जी ठहरे वहां ऐतिहासिक यादगार के तौर पर महाराजा ने गुरुद्वारा बना दिया।
गुरुद्वारा टोका साहिब:
यह वह ऐतिहासिक स्थान है जहॉं पंजाब (अब हरियाणा) से सिरमौर रियासत में दाखिल होते समय गुरु जी ने पहला पड़ाव किया था। गुरु जी का यह ऐतिहासिक यादगार स्थान औद्योगिक कस्बे कालाअंब से महज पांच कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। 
गुरुद्वारा बडूसाहिब:
यह स्थान खालसा की गुप्त तपोभूमि के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस स्थान को वर्ष 1957 में संत अतर सिंह ने खोजा था। यह स्थान राजगढ़ से 20 कि0मी0, नाहन से 50 कि0मी0, तथा पांवटा साहिब से लगभग 100 कि0मी0 दूर है।