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Wednesday, 9 July 2014

मंझियाली (क्वागधार) के भूप सिंह पर्यावरण संरक्षण को मुफत में बांट रहे हैं फलदार व औषधीय पौधे


           पूरी दुनिया में बढ़ते प्रदूषण, घटते जंगलों तथा हमारे आसपास आए दिन प्रकृति के साथ बढ रही छेडछाड के कारण आज हमें बाढ़, भू-स्खलन, बादल फटना, प्रदूषित जल हवा इत्यादि जैसी अनेकों समस्याओं से दो-चार होना पड रहा है। एक तरफ जहां राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न मंचों के माध्यम से पर्यावरण को बचाए रखने के लिए गंभीर मंथन हो रहे हैं तो वहीं हमारे आसपास ऐसे लोग भी मिल जाएंगें जो बिना किसी स्वार्थ से पर्यावरण संरक्षण को लेकर केवल गंभीर में बल्कि निरन्तर कार्यशील हैं।
            हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के नाहन-सोलन उच्च मार्ग पर स्थित गांव मंझियाली (क्वागधार) के 70 वर्षीय किसान भूप सिंह हमारे बीच एक ऐसे शख्स हैं जो पर्यावरण को साफ सुथरा हरा-भरा बनाने के लिए पिछले 7-8 वर्षों से मुफत में समाज सेवा कर रहे हैं। भूप सिंह अब तक लगभग 3 हजार से अधिक फलदार औषधीय पौधे प्रदेश प्रदेश के बाहर के लोगों को मुफत में बांट चुके हैं। पर्यावरण संरक्षण को लेकर भूप सिंह को गैर सरकारी संस्था भृंगी जन कल्याण संगठन वर्ष 2013 में डा0 यशवन्त सिंह परमार की जयन्ती पर उन्हे प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी कर चुकी है।
जब इस बारे भूप सिंह से बातचीत की गई तो उनका कहना है कि वर्ष 2006 में बागवानी विभाग से 40 वर्ष तक बतौर माली सेवा करने के बाद सेवानिवृत हुए हैं। उन्होने बताया कि उन्हे हमेशा से ही हरी भरी धरती को देखने तथा अधिक से अधिक पेड पौधे लगाकर पर्यावरण को हरा-भरा करने की चाहत रहती थी। वह कहते हैं कि जब वह अपने आसपास नंगी होती पहाडियों तथा घटते वृक्षों को देखते हैं तो उन्हे बहुत अधिक पीडा होती है।
            ऐसे में उन्होनेे सेवानिवृति के बाद घर में ही पेड पौधों की नर्सरी लगाकर आसपास तथा प्रदेश के बाहर से आने वाले पर्यटकों को मुफत में पौधे बांटने शुरू कर दिए। आज तक वह हिमाचल प्रदेश सहित गुजरात, राजस्थान, उतरप्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड इत्यादि राज्यों के लोगों को लगभग 3 हजार से अधिक अखरोट, अनार, पपीता, शहतूत, अमरूद, कागजी नींबू जैसे फलदार पौधों के अतिरिक्त अश्वगंधा जैसे औषधीय पौधों का भी वितरण मुफत में कर चुके हैं।
            हिमाचल निर्माता डा0 यशवंत सिंह परमार को अपना आदर्श मानने वाले तथा बडे ही मृदुभाषी साधारण सा जीवन व्यतीत कर रहे भूप सिंह कहते हैं कि आज हमारे आसपास जंगली जानवरों विशेषकर बंदरों इत्यादि की समस्या से किसानों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड रहा है। ऐसे में वह स्थानीय तथा बाहर से आने वालों को जंगलों में ज्यादा से ज्यादा फलदार औषधीय पौधे लगाने के लिए प्रेरित करते रहते हैं जबकि वह स्वयं भी ऐसे पौधों को मुफत में लोगों को बांट रहे हैं। उनका कहना है कि वह अपनी पेंशन का लगभग 30 फीसदी हिस्सा विभिन्न पौधों की नर्सरी तैयार करने में खर्च करते हैं। वह कहते हैं इस वर्ष उन्होने नागपुर से कंधारी अनार के बीज मंगवाकर लगभग 700 पौधों के अतिरिक्त 400 पपीता तथा 200 अमरूद के पौधों की नर्सरी तैयार की है। जिन्हे वह लोगों को मुफत में वितरित करेंगें। भूप सिंह कहते हैं कि वह प्रतिदिन घर के अन्य कार्यों से समय निकालकर प्रतिदिन 2-3 घंटे पौधों की देखभाल में लगाते हैं। सबसे मजेदार बात तो यह है कि इन्होने मुफत में बांटे गए प्रत्येक पौधे का बकायदा एक रजिस्टर में पंजीकरण किया हुआ है जिसमें पौधे ले जाने वालों का नाम, पता फोन नम्बर तक उपलब्ध है।
            जब उनसे इस कार्य में सरकारी सहायता बारे प्रश्न किया तो वह कहते हैं कि पौधे तैयार करने के लिए लिफाफे वन विभाग की ओर से मुफत में दिए जाते हैं। उनका कहना है कि यदि सरकार उन्हे बीज उपलब्ध करवाए तो वह पर्यावरण संरक्षण के इस अभियान में बेहतर कार्य कर सकते हैं। ऐसे में 70 वर्षीय किसान भूप सिंह ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर समाज के सामने एक आदर्श ही स्थापित नहीं किया है बल्कि पर्यावरण को बचाने के लिए हमारे सामने एक अनूठी मिसाल भी कायम की है। 
(साभार: दैनिक न्याय सेतु 8 जुलाई, दिव्य हिमाचल, 8 जुलाई, पंजाब केसरी, 8 जुलाई, दैनिक भास्कर 8 जुलाई, हिमाचल दस्तक 8 जुलाई, हिमाचल दिस वीक 12 जुलाई, 2014 तथा गिरिराज 3 सितम्बर, 2014 में प्रकाशित)