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Tuesday, 20 February 2024

जाईका परियोजना से जुडक़र आर्थिकी को सुदृढ़ बना रही राधा रानी समूह की महिलाएं

जोगिन्दर नगर के रैंस भलारा की महिलाएं तैयार कर रही हैं विभिन्न तरह का अचार

वन मंडल जोगिन्दर नगर के अंतर्गत वन परिक्षेत्र लडभड़ोल के गांव रैंस भलारा की महिलाएं हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन और आजीविका सुधार परियोजना (जाईका वानिकी परियोजना) के माध्यम से स्वयं सहायता समूह बनाकर अपनी आर्थिकी को सुदृढ़ करने का प्रयास कर रही हैं। वर्ष 2020-21 के दौरान ग्राम वन विकास समिति रैंस भलारा द्वारा गठित राधा रानी स्वयं सहायता समूह में 9 महिलाएं इसका हिस्सा बनी हैं। इन महिलाओं द्वारा ग्रामीण स्तर पर उपलब्ध विभिन्न तरह के जंगली व प्राकृतिक उत्पादों से अचार, चटनी इत्यादि बनाने का कार्य किया जा रहा है।
जब समूह की प्रधान रीतू देवी से बातचीत की उनका कहना है कि जाईका वानिकी परियोजना के माध्यम से उन्होंने राधा रानी स्वयं सहायता समूह गठित किया है। इस समूह से कुल नौ महिलाएं जुड़ी हुई हैं जो 10 प्रकार का आचार बना रही हैं। जिसमें कद्दू, रेली, अदरक, लहसुन, नींबू, आंवला, गलगल, अरबी, मिर्च, मूली प्रमुख हैं। साथ ही हरड़, आंवला व बेहड़ा का पाउडर भी तैयार किया जाता है।
उन्होंने बताया कि जनवरी, 2023 में जाईका वानिकी परियोजना के माध्यम से अचार चटनी इत्यादि बनाने का तीन दिन का प्रशिक्षण भी हासिल किया है। स्वयं सहायता समूह को विभिन्न तरह की आर्थिक गतिविधियां संचालित करने के लिए एक लाख रूपये का रिवॉलविंग फंड भी उपलब्ध करवाया गया है। उन्होंने बताया कि समूह की महिलाएं अपनी आर्थिक जरूरतों के अनुसार समय-समय पर इंटरलोनिंग भी करती हैं।
रीतू देवी का कहना है कि समूह द्वारा तैयार उत्पादों को स्थानीय स्तर के अलावा विभिन्न मेलों के दौरान स्टॉल इत्यादि लगाकर ग्राहकों को उचित दामों पर उपलब्ध करवाया जाता है। उन्होंने बताया कि अब तक जितना भी आचार समूह की महिलाओं द्वारा तैयार किया गया है वह पूरा बिक्री हो चुका है तथा इससे उन्हें अतिरिक्त आय सृजन का एक माध्यम भी मिला है।
क्या कहते हैं अधिकारी
वन मंडलाधिकारी जोगिन्दर नगर कमल भारती का कहना है कि जोगिन्दर नगर वन मंडल की कुल 6 वन रेंज में से पांच जिनमें उरला, जोगिन्दर नगर, लडभड़ोल, धर्मपुर व कमलाह वन रेंज शामिल है में जाईका वानिकी परियोजना को कार्यान्वित किया जा रहा है। इस परियोजना के माध्यम से कुल 33 वन विकास समितियों के तहत 66 स्वयं सहायता समूहों का गठन कर लगभग 700 लोगों को जोड़ा गया है।
उन्होंने बताया कि हल्दी प्रसंस्करण, कटिंग व टेलरिंग, नीटिंग, अचार चटनी, मशरूम उत्पादन के साथ-साथ टौर के पत्तल निर्माण, लहसुन व अदरक का प्रसंस्करण का कार्य स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से किया जा रहा है। जाईका वानिकी परियोजना के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों को एक दिन से लेकर 45 दिन तक प्रशिक्षण सुविधा भी उपलब्ध करवाई जा रही है। साथ ही स्वयं सहायता समूहों द्वारा विभिन्न गतिविधियों के संचालन के लिए एक-एक लाख रुपये का रिवॉल्विंग फंड भी मुहैया करवाया गया है। स्वयं सहायता समूहों द्वारा तैयार उत्पादों की बिक्री को वन मंडल कार्यालय परिसर जोगिन्दर नगर में सेल्स काउंटर भी स्थापित किया गया है। DOP 20/02/2024












Monday, 19 February 2024

जोगिन्दर नगर क्षेत्र का प्रमुख लोक नृत्य है 'लुड्डी-लुहासड़ी'

 विभिन्न सामाजिक समारोहों में प्रमुखता से गाई व नाची जाती है 'लुड्डी-लुहासड़ी'

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल के अंतर्गत तहसील लडभड़ोल व उपतहसील मकरीड़ी क्षेत्र में यहां का पारंपरिक लोक नृत्य लुड्डी-लुहासड़ी प्रमुखता से गाया व नाचा जाता है। सामूहिक तौर पर गाये जाने वाले इस लुड्डी-लुहासड़ी लोकनृत्य में लोग सामूहिक तौर पर गाते व नाचते हैं। विभिन्न सामाजिक समारोहों जैसे विवाह, शादी, जडोलण, सौंजी जातर, जातर, मेलों व त्योहारों में इसे स्थानीय लोग लुड्डी-लुहासड़ी पर प्रमुखता से गाते व नाचते हैं। लुड्डी-लुहासड़ी के गाने व नाचने की यह प्रक्रिया पूरी रात भर चलती है। भले ही बदलते वक्त व डीजे संस्कृति के चलते हमारा यह पारंपरकि लोकनृत्य लुड्डी-लुहासड़ी की चमक जरूर कुछ फीकी पड़ी है लेकिन अभी भी यह लोकनृत्य जीवित है तथा विभिन्न सामाजिक समारोहों में आज भी गाया व नाचा जाता है। लेकिन संरक्षण के अभाव में लुड्डी-लुहासड़ी लोकनृत्य का आकर्षण लगातार कम हो रहा है। जिसके कारण लुड्डी-लुहासड़ी पारंपरिक लोकनृत्य से जुड़े बजंतरियों व वाद्ययंत्रों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है। 

लुड्डी-लुहासड़ी लोकनृत्य की विस्तृत जानकारी रखने वाले एवं लोक कलाकार मनोहर ठाकुर के अनुसार लुड्डी-लुहासड़ी लोकनृत्य अलग-अलग ताल में गाया व नाचा जाता है। इसमें कुल 6 पारंपरिक वाद्ययंत्र बजाये जाते हैं जिनमें शहनाई, नगाड़ा, ढ़ोल, डगा, ताशा व नरसिंगा शामिल है। लुड्डी-लुहासड़ी लोकनृत्य के कुल चार प्रमुख भाग हैं, जो अलग-अलग ताल में चलते हैं। जिसमें पहला भाग गढिय़ा, दूसरा लोहली, तीसरा लुड्डी व चौथा लुहासड़ी शामिल है।  

1. गढिय़ा:

लुड्डी-लुहासड़ी पारंपरिक लोकनृत्य में गढिय़ा पहला भाग है। गढिय़ा बिल्कुल धीमी ताल में चलता है और इसे कई घंटों तक गाया व नाचा जाता है। गढिय़ा के अंतर्गत कई तरह के बोल गाये व नाचे जाते हैं जिनमें जैसे:-

1. मजला रे मारे ओ भाईया मनी रामा, 

लूणा रा तोड़ा ओ भाईया मनी रामा,

ओ भाईया मनी रामा चौहारी जो जाणा.....

2. खलडू रा मुक्की रा खर्चा, ओ भाईया मनी रामा

ओ भाईया मनी रामा बोला बीबडू राम मुक्की रा पाणी,

घाटिया जो घोड़ा ओ भाईया मनी रामा, पधरिया जो डोला......

2. लोहली:

लुड्डी-लुहासड़ी लोकनृत्य का दूसरा भाग लोहली है। इस भाग में ताल गढिय़ा से थोड़ा बढ़ जाता है। लोहली भाग को कई घंटों तक गाया व नाचा जाता है। लोहली भाग के अंतर्गत भी कई तरह के बोल गाये व नाचे जाते हैं जिनमें जैसे:-

1. बालू बोला भन्नी वो थेया, 

थेया वो सुनियारा तेरिया हिक्कड़ीया हो,

बालू भन्नी वो थेया......

2. इक बोला जिंदडियां री तांहीं, घटे-घटे फाईयां लगाईयां

हो इक बोला जिंदडियां री तांहीं.......

3. दाड़ी बोला जलया जीरा, बटिटया ते शेर घटाया हो,

दाड़ी बोला जलया जीरा........

4. भंगा री ये डालिये, भंगोलू पक्की रे,

असां बोला जाणा, सोरयां रे देशा ओ भलिये ओ बल्ले ओ बल्ले,

कुछ बोला रूमकुए लगे, कुछ बोला झुमकुए लगे,

कुछ बोला पकणा वो लगे कुछ बोला अलणा लगे,

ओ मेरिये भंगा री ये डालिये, भंगोलू पक्की रे.....

5. नाच बिंदलो ओ मेरी नाच बिंदलो,

इस ढ़ोला रे ढमाके कने नाच बिंदलो,

कियां नचणा ओ छोरू कियां बोले नचणा,

मेरा बोला घघरू पुराणा ओ छोरू, कियां बोला नचणा......

6. करनपुरे दिये नौकरिये, तू भर वो सयाले आई,

सोहरा बोला सूता ओबरिया, मैं हुक्का देने गई,

आंगण जलया चीफला मैं बखिया रे भारे पेई......

3. लुड्डी:

लुड्डी-लुहासड़ी लोक नृत्य में लुड्डी तीसरा भाग है। इसमें धीमी ताल में नाचते हुए अंत में ताल काफी तेज हो जाता है तथा नाचने वाले बड़ी तेजी से नाचते हैं। लुड्डी के नाट पूरे जोशीले होते हैं व जोश में नाचते हैं। यह क्रम भी एक से दो घंटे तक चलता है। लुड्डी भाग के अंतर्गत भी कई तरह के बोल गाये व नाचे जाते हैं जिनमें जैसे:-

1. हथूडूवा धोंदिया ओ मुहूडुवा धोंदिया, अरसू डूब्बी रा बांईयां,

ओ भंडारणिये अरसू डुब्बी रा बाईयां,

आर भी कांगड़ा पार भी कांगड़ा बिच भर कांगड़े री बाईं,

ओ भंडारणिये बिच भर कांगड़े री बाईं।

औंदिया ओ भाल्दी जांदिया ओ भाल्दी क्या ओ मन बोल्दा तेरा भंडारणिये,

क्या ओ मन बोल्दा तेरा ओ भंडारणिये......

2. झांझर घड़ी दे वो, घड़ी दे भाई सुनियार,

झांझर घट गई ओ, घट गई मासे चार,

झांझर घड़ी दे वो, घड़ी दे भाई सुनियार....

ओ मेला नंदपुर दा मेले जाणा बो जरूर,

ओ मेले ता ओ जाणां गबरूए चक मेरा देर,

ओ मेला नंदपुर दा मेले जाणा बो जरूर......

3. ध्याड़ा भर कटया गलू री जातरा, रात पेई गुम्मे रे नाला,

रात पेई गुम्मे रे नाला मेरे लोभिया रात पेई गुम्मे रे नाला,

किलणू कदालू मेरे ब्याडू रे दितरे, तेरा बी न दितरा धेल्ला,

तेरा बी न दितरा धेल्ला मेरे लोभिया तेरा बी न दितरा धेल्ला।

गिल्हड़ी घलैपड़ी भाग्ये पेई अपणे, बांकी हुंदी लोकां री नारां,

बांकी हुंदी लोकां री नारां मेरे लोभिया, बांकी हुंदी लोकां री नारां.....

4. पक्की कणकां पक्की कणकां, बल्हा रे रोपे पक्की कणकां,

ओ दे दे मदना दे दे मदना, ओ तोले रा बालू, दे दे मदना।

होया भरती होया भरती, काकड़ी कलेजा पेया धरती,

ओ तेरा बुरिये ओ तेरा बुरिये, नंद पटवारी तेरा बुरिये.....

4. लुहासड़ी:

लुड्डी-लुहासड़ी लोक नृत्य में लुहासड़ी (खनैटी) चौथा व अंतिम भाग है। इसमें दो ग्रुप या दल के दो योद्धा नाटी के दौरान रह जाते हैं। नाचते हुए तलवार, बैंत व डंडों से कलाबाजी करते हैं। जिस ग्रुप या दल का योद्धा यानि की नाट जीत जाता था उसे मान सम्मान भी देते थे। लुहासड़ी नृत्य बड़ी तेजी से नाचा जाता है और इसमें बेहद फुर्तिला व जोशिला व्यक्ति ही नाच पाता है। इस नाच के अंतिम समय में मारू राग बजता है। जिसका उल्लेख राम चरित मानस (लंका कांड) में भी मिलता है। लुहासड़ी (खनैटी) भाग के अंतर्गत भी कई तरह के बोल गाये व नाचे जाते हैं जिनमें जैसे:-

खाने को तो हलवा पूरी, चापने को पान

ओ हेसी देया पुतरा तू हेसी बोली बोल।

दिल्ली में तो तंबुआ तान, लाहौर में मकान,

ओ हेसी देया पुतरा तू हेसी बोली बोल।

साहब को तो राम-राम, मीम को तो सलाम,

ओ हेसी देया पुतरा तू हेसी बोली बोल।

डोगरे आये ओ भाभी डोगरे आये,

चौंतड़े रेल ओ भाभी चौंतड़े रेल.......

इस तरह लुड्डी लुहासड़ी का यह पारंपरिक लोक नृत्य नाचा व गाया जाता है। वर्तमान समय में भी इसे विभिन्न सामाजिक समारोहों में जरूर गाया व नाचा जाता है लेकिन इसमें हमारी अगली पीढ़ी को संपूर्ण जानकारी न होने के चलते सभी भाग पूरी तरह से गाये व नाचे नहीं जाते हैं। सबसे अहम बात तो यह है कि लुड्डी लुहासड़ी लोक नृत्य को डंडों व बैंत के साथ नाचा जाता है। 


Sunday, 18 February 2024

रूचि, क्षमता व योग्यता के तहत निर्धारित करें बच्चे का लक्ष्य

देश में प्रतिवर्ष फरवरी, मार्च व अप्रैल महीनों में वार्षिक व विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं का दौर शुरू होते ही छात्रों द्वारा आत्महत्या की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं। इन वार्षिक एवं प्रतियोगी परीक्षाओं के दबाव के चलते व उससे उत्पन्न होने वाले मानसिक तनाव के कारण प्रतिवर्ष सैंकड़ों छात्र आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठा लेते हैं। ऐसे में यदि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट का विश्लेषण करें तो वर्ष 2022 के दौरान देश में कुल 1 लाख 70 हजार 924 लोगों ने आत्महत्या की है जिनमें से अकेले 13 हजार छात्र ही हैं जो कुल आत्म हत्याओं का लगभग 7.6 फीसदी है। सबसे अहम बात यह है कि आत्महत्या करने वाले कुल 13 हजार छात्रों में से 2095 ऐसे छात्र हैं जिन्होंने परीक्षाओं में फेल होने के कारण अपनी जान दे दी। इससे भी महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जान देने वाले 18 वर्ष से कम आयु वाले कुल 1123 छात्र हैं जिनमें 578 लड़कियां तथा 575 लडक़े शामिल हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों का आगे विश्लेषण करें तो देश में परीक्षाओं में असफल होने के कारण जहां वर्ष 2021 में कुल 1673 छात्रों ने आत्महत्याएं की है तो यही आंकड़ा वर्ष 2022 में बढक़र 2095 हो गया है। जिसमें लगभग 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज होना बेहद चिंतनीय विषय है। अगर कुल आत्महत्या के आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2021 में यह आंकड़ा 1 लाख 64 हजार 33 था जो 2022 में बढक़र 1 लाख 70 हजार 924 हो गया है जिसमें भी लगभग 4.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। यही नहीं वर्ष 2022 में छात्रों द्वारा आत्महत्या के कुल 10 हजार 204 मामले दर्ज हुए हैं जिनमें से 18 वर्ष से कम आयु वालों का यह आंकड़ा 1123 रहा है। ऐसे में आत्महत्या करने वाले छात्रों में से आधे से अधिक मामले 18 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों व किशोरों के हैं।

ऐसे में देश के बुद्धिजीवियों व चिंतकों के सामने यह प्रश्न आकर खड़ा हो जाता है कि आखिर देश के बच्चों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृति के लिए क्या हमारी परीक्षा प्रणाली दोषी है या फिर बदलते परिवेश में हमारा पारिवारिक व सामाजिक ढ़ांचा उन्हें ऐसे आत्मघाती पग उठाने के लिए बाध्य करता है? लेकिन परीक्षा प्रणाली में मूल्यांकन की बात करें तो बदलते वक्त के साथ-साथ कई अहम बदलाव भी हुए हैं। वार्षिक परीक्षाओं के कारण होने वाले मानसिक तनाव को कम करने की दिशा में विभिन्न शिक्षा बोर्डों ने कई कदम भी उठाए हैं। लेकिन इन सब प्रयासों के बावजूद छात्रों द्वारा आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाना बेहद चिंतनीय है।

ऐसे में यदि स्कूली स्तर की वार्षिक परीक्षाओं की बात करें तो एक तरफ जहां बच्चों पर बेहतर प्रदर्शन करने का हमेशा कक्षा के भीतर दबाव बना रहता है तो दूसरी तरफ पारिवारिक व सामाजिक दबाव भी कुछ हद तक बच्चों को झेलना पड़ता है। कई बार यह भी देखने को मिलता है कि बच्चा वर्ष भर नियमित तौर पर कक्षाएं लगाता है तथा वार्षिक परीक्षा के दौरान बीमारी या अन्य पारिवारिक समस्या के कारण ठीक से परीक्षा नहीं दे पाता है तो स्वाभाविक है कि इसका प्रभाव भी बच्चे के परीक्षा परिणाम पर पड़ता है। इसके अलावा बदलते पारिवारिक व सामाजिक परिप्रेक्ष्य में मां-बाप की ऊंची व बढ़ती अपेक्षाओं का दबाव भी बच्चों को झेलना पड़ता है। ऐसे में यदि किसी एक कारण से भी बच्चा वार्षिक परीक्षाओं में बेहतर न कर पाए तो प्रतिभाशाली व होनहार बच्चा भी मानसिक व सामाजिक दबाव का शिकार आसानी से हो सकता है। जिसका नतीजा कई बार बच्चों द्वारा आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाने के तौर पर सामने आता रहता है।

ऐसे में समय-समय पर हुए शैक्षिक अध्ययनों की बात करें तो परीक्षाओं के दौरान बेहतर प्रदर्शन करने तथा मनचाहे प्रोफेशनल कोर्स में दाखिला पाने को लेकर बच्चों पर मानसिक तनाव के चलते आत्महत्या करने के मामले बढ़ जाते हैं। ऐसे अध्ययनों में यह बात भी सामने आई है कि बच्चों में मानसिक दबाव के लिए परिवार और समाज का बेहताशा प्रतिस्पर्धी माहौल भी कम जिम्मेदार नहीं रहता है। इसके अलावा सामाजिक ढांचे में आ रहे बदलाव, संयुक्त परिवारों का लगातार बिखराव, शहरों में मां-बाप का नौकरीपेशा होना इत्यादि कारणों से बच्चे लगातार उपेक्षा के शिकार होते हैं। संयुक्त परिवारों के कारण बुजुर्गों की उपलब्धता जहां बच्चों को कई तरह के मानसिक दबाव झेलने में कारगर साबित होती हैं तो वहीं समय-समय मार्गदर्शन भी मिलता रहता है। लेकिन बदलते दौर में एकल परिवारों के बढ़ते चलन के कारण न केवल बच्चे मानसिक तनाव को झेलने में कमजोर पड़ते दिखाई दे रहे हैं बल्कि अभिभावकों की बच्चों से उनकी क्षमताओं व रूचिओं के विपरीत बढ़ती अपेक्षाएं आग में घी का काम कर रही हैं। साथ ही बच्चों का खेल मैदान से दूर होना, टीवी व मोबाइल में अधिक समय तक कार्यशील रहना इत्यादि भी बच्चों को मानसिक व शारीरिक तौर पर कमजोर बना रहा है।

ऐसी परिस्थितियों में शिक्षा ढ़ांचे से जुड़ी तमाम एजेंसियों के साथ-साथ समाज, शिक्षकों, शिक्षण संस्थाओं एवं अभिभावकों का व्यापक तौर पर जागरूक होना तथा एक मंच पर खड़ा होना लाजमी हो जाता है। स्कूलों व शिक्षण संस्थानों को जहां बच्चों के सर्वांगीण विकास की दृष्टि से किताबी ज्ञान से आगे बढ़ते हुए खेलकूद, सांस्कृतिक, रचनात्मक एवं अन्य गैर शैक्षणिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने पर बल देना होगा ताकि हमारे बच्चे मानसिक व सामाजिक तौर पर सशक्त बन सकें। साथ ही परिवार व समाज को भी भावी पीढ़ी को जीवन के उस सत्य से रू-ब-रू करवाने में किसी प्रकार की झिझक नहीं होनी चाहिए जिसने जिंदगी को केवल परीक्षाओं में उच्च अंक व मनचाहे प्रोफैशन तक ही सीमित कर दिया है। हमें भावी पीढ़ी को इस बात से बखूबी परिचय कराना चाहिए कि व्यक्ति का जीवनकाल अपने आप में एक बहुत बड़ी परीक्षा है जिसका वह पग-पग पर सामना करते हुए जीवन के संघर्ष में विजयी होता है।

आज के दौर में बच्चों को किताबी ज्ञान से कहीं ज्यादा उस व्यावहारिक ज्ञान की जरूरत है जिससे हमारी नौजवान पीढ़ी लगातार अनभिज्ञ होती जा रही है। हमें भावी पीढ़ी को कड़ी मेहनत के साथ-साथ जीवन में संपूर्ण निष्ठा, तप, त्याग, लगन, धैर्य, ईमानदारी तथा इन सबसे ऊपर नैतिकता व आदर्शों का पाठ पढ़ाना जरूरी हो गया है, जिसे हमने बनावटी जीवन की चकाचौंध में कहीं पीछे धकेल दिया है। हमें बच्चों को कल्पनाओं से भरी सफलताओं के कागजी ख्यालों से बाहर निकाल कर जीवन के वास्तविक सत्य से रू-ब-रू करवाने पर जोर देना चाहिए। हकीकत तो यह है कि आज हमने जीवन की सफलता को महज अंकों, ऊंचे पद व मनचाहे प्रोफैशन को पाने तक ही सीमित कर दिया है, लेकिन जीवन का वास्तविक सत्य इनसे भी कहीं आगे है। जरूरत है बच्चों व युवाओं को उन महान हस्तियों की जीवनी से अवगत करवाने की जो जिन्दगी के शुरूआती दौर में असफलता के बावजूद जिंदगी के अंतिम मुकाम में सफल होकर दुनिया के लिए मिसाल बन गए।

ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि जहां हमारे शिक्षण संस्थानों को बच्चों में कठिन परिश्रम, ईमानदारी व उच्च मूल्यों एवं आदर्शों का समावेश गंभीरता से करना होगा तो वहीं अभिभावकों को भी बच्चों की रूचि, क्षमता व योग्यता को ध्यान में रखकर ही लक्ष्यों का निर्धारण करना चाहिए। अन्यथा क्षमता से अधिक महत्वाकांक्षा प्रतिवर्ष सैकड़ों बच्चों को असमय ही मौत के आगोश में समाने को मजबूर करती रहेगी।

(साभार: दैनिक अनंत ज्ञान 18 फरवरी, 2024 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित) 

Monday, 12 February 2024

छोटा भंगाल व चौहार घाटी: हिमाचल प्रदेश के अनछुए पर्यटन स्थल

 अनछुए पर्यटन स्थलों में विश्वस्तरीय सुविधाएं उपलब्ध करवाने को प्रदेश सरकार दे रही है बल

हिमाचल प्रदेश को पर्यटन की दृष्टि से प्रकृति ने खूब संवारा है। प्रदेश में एक ओर जहां प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर अनेक पर्यटन स्थान हैं तो वहीं धार्मिक आस्था की दृष्टि से कई प्रसिद्ध धार्मिक स्थल भी मौजूद हैं। पर्यटन स्थलों में अधोसंरचना को मजबूत करने तथा अनछुए पर्यटन स्थलों में विश्व स्तरीय सुविधाएं उपलब्ध करवाने को प्रदेश की सुख की सरकार विशेष बल दे रही है। सरकार के इन प्रयासों से जहां प्रदेश में पर्यटकों को बेहतर अधोसंरचना सुविधाएं सुनिश्चित हो रही हैं तो वहीं अनछुए पर्यटन स्थलों के विकास को भी खासा बल दिया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला की चौहार घाटी तथा कांगड़ा जिला का छोटा भंगाल क्षेत्र दो ऐसे अनछुए पर्यटन स्थल हैं, जो पर्यटन की दृष्टि से बेहद खूबसूरत हैं। इन दोनों क्षेत्रों में पर्यटकों के लिए प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से वे सभी स्थान उपलब्ध हैं जिनका अनुभव व आनंद प्राप्त करने को पर्यटक हिमाचल प्रदेश आना चाहते हैं।
यदि मंडी जिला की चौहार घाटी की बात करें तो बरोट गांव ऊहल नदी के दोनों ओर बसा एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। बरोट में जहां प्राकृतिक खूबसूरती भरी पड़ी है तो वहीं सर्दियों में बर्फ का भी दीदार होता है। बरोट गांव ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। हिमाचल प्रदेश की मैगावॉट स्तर की पहली पनबिजली परियोजना का डैम इसी गांव में निर्मित किया गया है।
वर्ष 1922 के आसपास तत्कालीन पंजाब सरकार के चीफ इंजीनियर कर्नल बी.सी. बैटी ने जोगिन्दर नगर के शानन नामक स्थान पर पनबिजली परियोजना निर्माण की परिकल्पना की थी। वर्ष 1925 में तत्कालीन भारत सरकार व मंडी रियासत के राजा जोगिन्द्र सेन के साथ पनबिजली परियोजना निर्माण को लेकर एक समझौता हुआ। इसी समझौते के तहत जोगिन्दर नगर कस्बे के शानन नामक स्थान पर पहले चरण में 48 मैगावॉट पनबिजली परियोजना का निर्माण कार्य शुरू हुआ जो वर्ष 1932 में पूरा हुआ। इस परियोजना का डैम भी ऊहल नदी पर बरोट गांव में ही निर्मित किया गया है। बरोट गांव तक भारी भरकम मशीनरी पहुंचाने को शानन से बरोट तक हॉलेज रोप वे ट्राली लाइन बिछाई गई थी, जिसकी निशानियां आज भी मौजूद हैं तथा पर्यटक इस ऐतिहासिक ट्रॉली लाइन का भी दीदार बरोट स्थित जीरो प्वाइंट के पास कर सकते हैं। हॉलेज रोप वे (हेरिटेज ट्राली लाइन) दुनिया भर में अपनी तरह की एक अनूठी ट्रॉली है। इस ट्राली लाइन की कुल लंबाई 10.65 किलोमीटर है तथा कुल 6 चरणों में चलाई जाती थी। वर्तमान में शानन की ओर से केवल दो चरणों में ही यह ट्राली लाइन विंच कैंप तक चलती है जबकि अंतिम चरण में जीरो प्वाइंट से बरोट डैम साईट तक इस लाइन को उखाड़ दिया गया है।
ऊहल नदी व लंबाडग नदियों में प्राकृतिक तौर पर ट्राउट मछली पाई जाती है तथा एंगलिंग के शौकीन पर्यटकों के लिए यह स्थान उपयुक्त है। इसके अलावा बरोट व आसपास के गांव में देवदार, कायल, बान, बुरांस इत्यादि के घने जंगल यहां की प्राकृतिक खूबसूरती को चार चांद लगाते हैं। इसके अतिरिक्त टै्रकिंग के शौकीन पर्यटकों के लिए भी कई बेहतरीन स्थान मौजूद हैं। बरोट से लगभग 5 किलोमीटर दूर रूलंग नाला वाटरफॉल स्थित है जिसका पर्यटक आनंद उठा सकते हैं। साथ ही बरोट गांव के समीप ही जलान में कर्नल बी.सी. बैटी द्वारा निर्मित ऐतिहासिक विश्राम गृह भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
धार्मिक दृष्टि से देव श्री हुरंग नारायण जी व देव श्री पशाकोट जी यहां के प्रमुख देवता हैं। देव हुरंग नारायण जी का मंदिर गांव हुरंग में है जो बरोट से लगभग 30 किलोमीटर जबकि देव पशाकोट के अलग-अलग मंदिर हैं जिनमें नालदेहरा (टिक्कन) बरोट से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मंदिर प्रमुख है। इसके अलावा चौहार घाटी में कई अन्य देवी देवताओं के भी मंदिर मौजूद हैं। पर्यटक देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त कर आध्यात्मिक दृष्टि से एक अलग अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं। देव परंपरा के अनुसार देव स्थानों में चमड़े से निर्मित वस्तुओं सहित प्रवेश तथा धूम्रपान पूर्णतया निषेध है। इसके अतिरिक्त कई गांवों में भी चमड़े से बनी वस्तुओं व धुम्रपान करना पूरी तरह प्रतिबंधित है। चौहार वासियों ने देव आस्था सहित लोक परंपराओं व मान्यताओं को अभी भी जिंदा रखा हुआ है। पुरातन समय में चौहार घाटी मंडी रियासत का हिस्सा रही है।
छोटा भंगाल क्षेत्र की बात करें तो यह कांगड़ा जिला के बैजनाथ उपमंडल का हिस्सा है। मुल्थान इस क्षेत्र का प्रमुख स्थान है जो तहसील मुख्यालय भी है तथा बरोट गांव से महज एक पुल की दूरी पर स्थित है। छोटा भंगाल क्षेत्र को ऊहल तथा लंबाडग नदियां चौहार घाटी से अलग करती हैं। पर्यटक छोटा भंगाल के मुल्थान के अतिरिक्त लोहारडी, बडाग्रां, कोठी कोहड़, नलोहता, राजगुंधा, पलाचक इत्यादि क्षेत्रों का भी भ्रमण कर सकते हैं। ये सभी स्थान प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से बेहद खूबसूरत हैं। पर्यटक यहां की प्राकृतिक सुंदरता को निहारने के साथ-साथ यहां के देवी-देवताओं का भी आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही पर्यटन की दृष्टि से ट्रैकिंग व कैंपिंग की सुविधा उपलब्ध है। पर्यटक कोठी कोहड गांव के समीप प्राकृतिक वाटर फॉल का भी आनंद उठा सकते हैं। पुरातन समय मेें छोटा भंगाल भंगाल रियासत के साथ-साथ कुल्लू व कांगड़ा रियासतों को हिस्सा रहा है।
कृषि व पशुपालन लोगों का प्रमुख व्यवसाय है तथा आलू यहां की प्रमुख फसल है। इसके अलावा लोग विभिन्न प्रकार की सब्जियां जिनमें हरा मटर, बंद व फूल गोभी प्रमुख हैं का भी उत्पादन करते हैं। साथ ही लोग गेहूं, मक्की के अलावा अन्य पारंपरिक फसलें जैसे कोदरा (रागी) इत्यादि को भी उगाते हैं। इस क्षेत्र के लोग भेड़ व बकरी पालन भी करते हैं।
चौहारघाटी के बरोट व छोटा भंगाल पहुंचने के लिए पर्यटक जोगिन्दर नगर या फिर पधर कस्बों से वाया झटिंगरी सडक़ मार्ग द्वारा आसानी से आ सकते हैं। छोटा भंगाल क्षेत्र में भी सडक़ मार्ग से पहुंचा जा सकता है। छोटा भंगाल व चौहारघाटी तक अब पर्यटक विश्व प्रसिद्ध पैराग्लाइडिंग साईट बीड-बिलिंग से होते हुए भी यहां पहुंच सकते हैं। सर्दियों में बीड़-बिलिंग के राजगुंधा क्षेत्र में अत्यधिक बर्फबारी होने के कारण इस ओर से आना मुश्किल होता है, लेकिन पर्यटक बरोट की ओर से आसानी से यहां पहुंच सकते हैं।
पर्यटकों के ठहराव को यहां कई होम स्टे, होटल तथा सरकारी विश्राम गृह मौजूद हैं। इसके अलावा प्रकृति का आनंद उठाने को कई कैंपिंग साइट्स भी उपलब्ध हैं। चौहारघाटी का बरोट तथा छोटा भंगाल क्षेत्र सडक़ मार्ग से प्रमुख धार्मिक स्थल बैजनाथ से लगभग 55 से 60 किलोमीटर तो वहीं मंडी के ओर से भी पर्यटक इतना ही सफर तय कर यहां पहुंच सकते हैं। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन लगभग 40 किलोमीटर दूर जोगिन्दर नगर है जबकि हवाई अड्डा कांगडा धर्मशाला है। DOP 13/02/2024
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Wednesday, 7 February 2024

जोगिन्दर नगर में एक वर्ष के दौरान सामाजिक सुरक्षा पेंशन के 933 मामले स्वीकृत

 अंतरजातीय विवाह योजना के तहत 33 दंपति, फॉलो-अप-प्रोग्राम के अंतर्गत 30 पात्र महिलाएं लाभान्वित

समाज के वृद्धजनों, जरूरतमंद नागरिकों तथा कमजोर वर्गों को पर्याप्त सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना प्रदेश सरकार की प्राथमिकता में है। सरकार इसी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ते हुए समाज के सबसे जरूरतमंद व निचले तबके तक सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित बनाते हुए लोगों को समयबद्ध विभिन्न सामाजिक जनकल्याण योजनाओं का कार्यान्वयन सुनिश्चित बनाकर लाभान्वित कर रही है। सरकार की विभिन्न सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं का लाभ 60 वर्ष आयु वर्ग से अधिक वरिष्ठ नागरिकों व बुजुर्गों के अतिरिक्त विधवाओं, एकल व परित्यक्ता नारियों तथा दिव्यांगजनों को भी प्राप्त हो रहा है।
सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं की ही बात करें तो जहां पूरे प्रदेश भर में सुख की सरकार ने एक वर्ष के भीतर 41 हजार 799 नये मामले स्वीकृत किये हैं तो वहीं अकेले जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र में ही यह आंकड़ा 933 का है। जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत गत एक वर्ष के भीतर स्वीकृत 933 नये मामलों में से 712 वृद्धावस्था, 6 राष्ट्रीय वृद्धावस्था, 122 विधवा, परित्यक्ता व एकल नारियां, 14 राष्ट्रीय विधवा तथा 79 दिव्यांग पेंशन के मामले शामिल हैं।
सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के अंतर्गत सरकार 70 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के बुजुर्गों को 17 सौ रुपये प्रतिमाह, 60 से 69 वर्ष के पुरूष नागरिकों को एक हजार जबकि 65 से 69 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं को 11 सौ 50 रुपये प्रतिमाह प्राप्त हो रहे हैं। इसी तरह विधवा, परित्यक्ता व एकल नारियों तथा 40 से 69 प्रतिशत दिव्यांगता वालों को 1150 रुपये तथा 70 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगता वालों को 1700 रुपये प्रतिमाह बतौर सामाजिक सुरक्षा प्रदान किये जा रहे हैं।
यही नहीं प्रदेश सरकार की अंतरजातीय विवाह प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत जोगिन्दर नगर विस क्षेत्र में गत एक वर्ष के दौरान 33 पात्र दंपतियों को लाभान्वित कर 16 लाख 25 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान की है। इस योजना के माध्यम से सरकार 50 हजार रुपये बतौर प्रोत्साहन प्रदान कर रही है। महिलाओं को स्वरोजगार गतिविधियों से जोड़ने के लिए फॉलो-अप-प्रोग्राम के तहत सिलाई मशीनों का आवंटन करती है। इस योजना के माध्यम से जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र में गत एक वर्ष के दौरान कुल 30 पात्र महिलाओं को सिलाई मशीनों का आवंटन किया गया है, जिनमें अनुसूचित जाति की 26 तथा अन्य पिछड़ा वर्ग की 4 महिलाएं शामिल हैं।
युवाओं को कंप्यूटर संचालन में दक्ष बनाने के लिए कंप्यूटर पाठ्यक्रम में प्रशिक्षण भी प्रदान कर रही है। इस प्रशिक्षण पाठयक्रम के माध्यम से अकेले जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र में ही गत एक वर्ष के दौरान 41 युवाओं को लाभान्वित किया गया है। कंप्यूटर पाठयक्रम के माध्यम से सरकार संबंद्ध कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र में प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ-साथ विभिन्न सरकारी कार्यालयों में 6 माह का व्यवहारिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इस दौरान प्रशिणार्थियों को प्रतिमाह एक हजार रूपये का स्टाईपेंड भी दिया जाता है जबकि व्यवहारिक प्रशिक्षण के दौरान यह स्टाईपेंड बढक़र 15 सौ रूपये प्रतिमाह मिलता है।
क्या कहते हैं अधिकारी:
इस संबंध में तहसील कल्याण अधिकारी, जोगिन्दर नगर चंदन वीर सिंह ने पुष्टि करते हुए बताया कि गत एक वर्ष के दौरान जोगिन्दर नगर क्षेत्र में कुल 933 सामाजिक सुरक्षा पेंशन के मामलों को स्वीकृति प्राप्त हुई है। इसके अलावा अंतरजातीय विवाह योजना के माध्यम से 33 पात्र दंपति तथा फॉलो-अप-प्रोग्राम के माध्यम से 30 पात्र महिलाओं को लाभान्वित किया गया है। साथ ही बताया कि कंप्यूटर प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से 41 युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान किया है।
उन्होंने बताया कि विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र लोग किसी भी कार्य दिवस को तहसील कल्याण अधिकारी कार्यालय जोगिन्दर नगर व लडभड़ोल से संपर्क स्थापित कर सकते हैं। DOP 06/02/2024









Tuesday, 6 February 2024

युवाओं के प्रेरणास्त्रोत व मार्गदर्शक, एथेलेटिक्स कोच गोपाल ठाकुर

16 जुलाई, 1963 को पैदा हुए एथेलेटिक्स कोच गोपाल ठाकुर मूलत: हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी के उपमंडल जोगिन्दर नगर की ग्राम पंचायत खद्दर के गांव मगयाल निवासी हैं। वर्ष 2005 में हिमाचल प्रदेश सरकार के युवा सेवा एवं खेल विभाग में बतौर कोच नियुक्त होने से पहले वे भारतीय सेना में कार्यरत रहे। वर्ष 1982 में दसवीं परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद गोपाल ठाकुर भारतीय सेना में शामिल हुए। भारतीय सेना की 60 हैवी आर्टलरी रैजिमेंट में शामिल होने पर इन्होंने 1983 में जालंधर कैंट में अपनी उपस्थिति दी।
सेना में देश सेवा करते हुए गोपाल ठाकुर ने भारतीय सेना द्वारा समय-समय पर चलाए गए विभिन्न ऑपरेशन में भी सक्रिया भूमिका निभाई। जिसमें वर्ष 1984 का ऑपरेशन ब्लू स्टार, वर्ष 1987 में मालदीव तथा श्रीलंका में चलाए ऑपरेशन शामिल हैं। इसके साथ-साथ इन्होंने वर्ष 1992-93 में दुनिया का सबसे खतरनाक युद्ध क्षेत्र सियाचिन गलेश्यिर में भी अपनी सेवाएं देश को प्रदान की हैं। इसी बीच सेना में रहते हुए गोपाल ठाकुर नियमित तौर पर विभिन्न खेल स्पर्धाओं में शामिल होते रहे तथा खेल के क्षेत्र में भी बेहतर प्रदर्शन किया। इसी दौरान वर्ष 1992 में एथेलेटिक्स के क्षेत्र में बंगलुरू से एक वर्ष का एनआईएस डिप्लोमा हासिल किया। इसी बीच पढ़ाई को भी जारी रखते हुए गोपाल ठाकुर ने बीए, सीपीएड, बीपीएड, एमए पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की शिक्षा हासिल की।
गोपाल ठाकुर वर्ष 2001 में भारतीय सेना से सेवानिवृत होने के बाद गोस्वामी गणेश दत्त सनातन धर्म महाविद्यालय बैजनाथ में पहले नि:शुल्क प्रशिक्षण प्रदान करना शुरू किया। इसके बाद वर्ष 2002 में कॉलेज ने इन्हें बतौर कोच तैनाती प्रदान की। इस दौरान बेहतर प्रदर्शन करते हुए उनके मार्गदर्शन में कई खिलाडिय़ों ने इंटर युनिवर्सिटी टूर्नामेंट में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाकर अच्छे परिणाम दिये। इसके बाद वर्ष 2005 में हिमाचल प्रदेश सरकार के युवा सेवा एवं खेल विभाग में बतौर कोच तैनाती हुई। तीन वर्ष तक कुल्लू में बतौर कोच सेवाएं प्रदान करने के उपरांत वर्ष 2008 में परम श्रेष्ठ एथेलेटिक्स प्रशिक्षण केंद्र जोगिन्दर नगर में कार्य प्रारंभ किया। गोपाल ठाकुर के मार्गदर्शन में कई खिलाडिय़ों ने एथेलेटिक्स के क्षेत्र में राज्य व राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न प्रतियोगिताओं में पदक हासिल किये। वर्तमान में इन्ही के मार्गदर्शन में प्रशिक्षित खिलाड़ी सावन बरवाल ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर की एथेलेटिक्स प्रतियोगिताओं ने विभिन्न पदक हासिल कर प्रदेश व क्षेत्र का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया है। साथ ही गोपाल ठाकुर के ही मार्गदर्शन में लगभग 2 हजार से अधिक युवा भारतीय सेना सहित अन्य अर्धसैन्य बलों में कार्यरत हैं तथा देश सेवा के साथ-साथ खेल में बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त खेल कोटे के तहत कई खिलाड़ी प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों में चयनित होकर खेल के साथ-साथ सरकारी सेवा में कार्यरत हैं।
वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौरान सामाजिक क्षेत्र में भी बेहतरीन कार्य करते हुए जहां इस दौरान कोविड ग्रस्त 10 लोगों का अपने वालंटियर के साथ अंतिम संस्कार करवाया तो वहीं सेनेटाइजेशन कैंपेन से जुड़ते हुए लगभग 400 खिलाडिय़ों ने प्रदेश के विभिन्न स्थानों में अपना अहम योगदान दिया। कोविड के दौरान किये गए उनके इन प्रयासों को सराहते हुए प्रदेश के महामहिम राज्यपाल ने उन्हें प्रशस्ति देकर प्रोत्साहित किया है। इसके अलावा युवा विकास, आपदा प्रबंधन, नशा निवारण, सडक़ सुरक्षा, पर्यावरण इत्यादि से जुड़े विभिन्न कार्यों में भी लगातार अपना योगदान प्रदान करते रहते हैं।
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