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Wednesday, 24 August 2016

नशाखोरी के खिलाफ समाज का हर व्यक्ति आगे आए

हमारे समाज में नशे के फैलते जहर से न केवल हमारा पारिवारिक व समाजिक ढ़ांचा प्रभावित हो रहा है बल्कि इसकी चपेट में आकर हमारी नौजवान पीढी आए दिन तबाह हो रही है। आज हमारे समाज में न जाने ऐसे कितने परिवार हैं जहां इस नशीले जहर ने किसी का भाई, किसी का बेटा तो किसी का पति असमय की जीवन के गर्त में धकेल दिया। यही नहीं ऐसे न जाने कितने परिवार होगें जिनके लिए मादक द्रव्यों एवं पदार्थों का यह काला कारोबार जीते जी मौत का कुंआ साबित हो रहा है। कितने ऐसे परिवार हैं जिनके लिए नशे का यह जहर परिवार की आर्थिकी को तबाह कर कंगाली के स्तर पर ले गया है।
लेकिन अब प्रश्न यह खडा हो रहा है कि आखिर नशीले पदार्थों का यह जहरीला कारोबार करने वाले कौन हैं? क्या हमारा समाज ऐसे लोगों के आगे बौना साबित हो रहा है? या फिर नशे का काला कारोबार करने वालों के खिलाफ हमारा समाज लडने की पहल ही नहीं कर पा रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं हम हर समस्या के समाधान की तरह नशे की इस सामाजिक बुराई को लेकर भी हल केवल सरकारी चौखट में ही ढूूंढ रहे हैं। लेकिन अब वक्त आ गया है कि नशे की इस बुराई को लेकर समाज के हर वर्ग, हर व्यक्ति यहां तक की हर परिवार को पहल करनी होगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी इस सामाजिक व्यवस्था में ऐसी कोई भी समस्या नहीं है जिसका हम मुकाबला नहीं कर सकते हैं। लेकिन जरूरत है नशे व नशीले पदार्थों के विरूद्ध एक सकारात्मक पहल करने की। जरूरत है ऐसे लोगों को बेनकाब करने की जो इस काले कारोबार में सैंकडों नहीं बल्कि हजारों युवाओं की हंसती खेलती जिंदगी को तबाह कर रहे हैं।
हम यहां यह क्यों भूल रहे हैं कि नशे का यह जहरीला कारोबार करने वाले कोई ओर नहीं बल्कि हमारे ही समाज के वे चंद लोग हैं जो कुछ रूपयों की खातिर हंसते खेलते परिवारों में नशे का यह जहरीला दंश देकर तबाही का मंजर लिख रहे हैं। लेकिन हैरत कि हम ऐसे लोगों के विरूद्ध लडने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं। जिसका नतीजा यह है कि आए दिन अफीम, चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर, भुक्की इत्यादि जैसे घातक मादक द्रव्यों एवं पदार्थों का काला कारोबार करने वाले हमारे पडोस में आकर दस्तक देकर नितदिन एक नई जिंदगी को तबाह कर रहे हैं। हमें केवल व्यवस्था को कोसते रहना या फिर समस्या के कारणों के लिए दूसरों के ऊपर दोषारोपण करने के बजाए इसे समाज से उखाड फैंकने के लिए मिलकर प्रयास करने होगें। हमें इस सामाजिक समस्या के समाधान के लिए स्वयं से पहल करते हुए अपने परिवार व आसपास के समाज में जागरूकता फैलाकर जहां नशे के इस जहर से लोगों विशेषकर युवाओं को बचाना होगा तो वहीं नशीले पदार्थों के काले कारनामें वालों का पर्दाफाश भी करना होगा।
हमारे समाज के लिए यह एक सुखद पहल ही कही जाएगी कि इस नशे के जहरीले दंश से समाज को बचाने के लिए हमारी सरकार स्वयं आगे आई है। हिमाचल सरकार लोगों को नशे के विरूद्ध जन जागरूकता लाने के लिए 22 अगस्त से 5 सितंबर तक समाज से भांग व अफीम की खेती को नष्ट करने के लिए एक व्यापक अभियान लेकर आई है। इस अभियान का उदेश्य भी जहां नशीले पदार्थों के सेवन के प्रति समाज में जन जागरूकता फैलाना है तो वहीं नशे के अवैध कारोबार में शामिल लोगों के लिए एक चेतावनी भी कही जा सकती है ताकि वह किसी के हंसते खेलते परिवार में यह जहरीला दंश देने से पहले सौ बार सोचे। जिस तरह से प्रदेश सरकार ने इस गंभीर समस्या के निपटारे के लिए विभिन्न कानूनी पहेलुओं पर भी गंभीरता से मंथन किया है यह आने वाले समय में नशे के जहरीले कारोबारियों के लिए सुधरने व इस काले कारोबार को छोडने का एक मौका भी कह सकते है। 
इस अभियान के माध्यम से जहां समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने आसपास उगी भांग व अफीम के पौधों को नष्ट करने के लिए आगे आए तो वहीं इन नशीले पदार्थों के दुष्प्रभावों को लेकर अपने परिवार व आसपास के समाज में चर्चा करे। इस पुनीत कार्य में शिक्षण संस्थाओं के अतिरिक्त ग्रामीण स्तर पर महिला व युवक मंडल, स्वयं सहायता समूह, ग्राम पंचायतें, गैर सरकारी व स्वयं सेवी संस्थाएं लोगों को इस अभियान के साथ जोडने तथा इस अभियान का संदेश घर-घर तक पहुंचाने में अहम योगदान दे सकते हैं। साथ ही हमारे समाज में विभिन्न सामाजिक समारोहों में परोसे जाने वाले विभिन्न नशीले पेय पदार्थों मसलन शराब इत्यादि के इस्तेमाल को भी प्रतिबंधित करना होगा ताकि नशे के विरूद्ध हमारी इस जंग का हमारे आसपास एक सकारात्मक संदेश जाए। यहां हमें यह नहीं भूलना चाहिए हमारे देश में प्रतिवर्ष कुल सडक़ दुर्घटनाओं का दस प्रतिशत का कारण मादक द्रव्य व नशीले पदार्थों का सेवन कर वाहन चलाना है।
लेकिन अब प्रश्न यह उठ रहा है कि एक पखवाडे तक चलने वाला यह विशेष भांग व अफीम हटाओ अभियान महज सरकार का समाज के प्रति अपने दायित्व निर्वहन तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को इस अभियान के साथ जुडकर सरकार को अपना साकारात्मक योगदान देना होगा। हमें यहां यह नहीं भूलना चाहिए संविधान ने जहां हमें कई अधिकार दिए हैं तो वहीं समाज के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है इसका उल्लेख भी किया है। ऐसे में अब वक्त आ गया है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति महज व्यवस्था को कोसने के बजाए अपने संवैधानिक दायित्वों व कत्र्तव्यों का निर्वहन करते हुए प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई इस मुहिम का हिस्सा बन समाज से नशे के इस जहरीले दंश को उखाड फैंकने में अपना साकारात्मक योगदान दे।

(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 22 अगस्त, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Saturday, 13 August 2016

बिना सेट टॉप बॉक्स 31 दिसम्बर के बाद नहीं देख पाएंगें केबल टीवी

हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले केबल टीवी उपभोक्ता अब बिना सेट टॉप बॉक्स 31 दिसम्बर, 2016 के बाद टेलीविजन का प्रसारण अपने टीवी पर नहीं देख पाएंगें। संपूर्ण भारत वर्ष में चलाए जा रहे केबल टीवी डिजिटाईजेशन के चलते देश के सभी ग्रामीण क्षेत्रों सहित हिमाचल प्रदेश की 3226 ग्राम पंचायतों के केबल टीवी उपभोक्ताओं को टीवी प्रसारण के लिए सेट टॉप बॉक्स या डीटीएच की सुविधा लेनी होगी अन्यथा उनके टीवी पर प्रसारण बंद हो जाएगा। साथ ही केबल टीवी प्रसारणकर्ता को भी केबल टीवी अधिनियम के तहत निर्धारित तिथि के बाद डिजिटल प्रसारण करना भी अनिवार्य है। 
भारत की जनगणना-2011 के आंकडों के अनुसार देश में 117 मिलियन यानि की 11.7 करोड घरों में टीवी की सुविधा उपलब्ध है। जबकि फीकी-केपीएमजी रिपोर्ट-2015 के अनुसार यह आंकडा बढक़र लगभग 168 मिलियन यानि की 16.8 करोड तक पहुंच गया है। जिसमें से लगभग 9.9 करोड केबल टीवी, 4 करोड डीटीएच, एक करोड डीडी फ्री डिस व आइपीटीवी तथा 1.9 करोड परिवार डीडी टेरेस्ट्रेअल के माध्यम से जुडे हुए हैं। 
ऐसे में देश के अन्दर केबल टीवी प्रसारण को केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) अधिनियम-1995 के तहत संचालित किया जा रहा है। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने अगस्त-2010 में केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) संशोधन अधिनियम-2011 के तहत भारत में डिजिटल संबोधनीय केबल प्रणालियों का कार्यान्वयन को लेकर 4 विभिन्न चरणों में एनॉलाग केबल टीवी सेवाओं को डिजिटल संबोधनीय केबल टीवी प्रणाली में परिवर्तित करने की सिफारिश की है। जिसके तहत प्रथम व द्वितीय चरण में देश के चार महानगरों एवं 38 बडे शहरों को केबल टीवी डिजिटाइजेशन के तहत लाया गया है। जबकि तीसरे चरण मे 31 दिसम्बर, 2015 तक देश के सभी नगरीय क्षेत्रों तथा 31 दिसम्बर, 2016 तक देश के बचे हुए सभी ग्रामीण क्षेत्रों को केबल टीवी डिजिटल नेटवर्क के तहत लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इसी प्रक्रिया के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश की सभी ग्रामीण क्षेत्रों को केबल टीवी डिजिटाइजेशन के साथ 31 दिसंबर, 2016 तक जोडा जाना लाजिमी है। ऐसे में प्रदेश के 54 नगरीय क्षेत्रों सहित सभी ग्रामीण क्षेत्रों में केबल टीवी का प्रसारण कर रहे मल्टी  सिस्टम आपरेटर (एमएसओ) तथा लोकल केबल आपरेटर (एलसीओ) को केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) अधिनियम-1995 एवं केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) संशोधन अधिनियम-2011 की धारा तीन के अन्तर्गत सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार तथा संबंधित प्रसारण क्षेत्र के पंजीकरण प्राधिकरण के पास पंजीकरण के लिए आवेदन करना तथा धारा चार(क) के तहत सभी केबल आपरेटर एमएसओ व एलसीओ को निर्धारित तिथि के बाद केबल टीवी का डिजिटल संबोधनीय प्रणाली(डीएएस) के तहत प्रसारण करना अनिवार्य है।
साथ ही केबल टीवी नेटवर्क पंजीकरण नियम 5 के तहत सभी स्थानीय केबल ऑपरेटर्स (एलसीओ) को अपने प्रसारण क्षेत्र के मुख्य डाकपाल तथा पंजीकरण नियम 11 सी के तहत मल्टी सिस्टम आपरेटर (एमएसओ) को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार में पंजीकरण करवाना अनिवार्य है। इसी तरह केबल टीवी नेटवर्क अधिनियम की धारा 5 के तहत प्रोग्राम कोड तथा धारा 6 के अनुसार निर्धारित विज्ञापन कोड लेना भी जरूरी है जिसके बिना केबल टीवी पर प्रसारण अवैध है। इसके अतिरिक्त धारा आठ के तहत केबल आपरेटर को दूरदर्शन के 25 चैनल जिसमें डीडी नेशनल, लोकसभा, राज्यसभा, डीडी न्यूज, ज्ञानदर्शन, स्पोटर्स, किसान चैनल इत्यादि शामिल है का प्रसारण करना भी अनिवार्य है। यही नहीं केबल प्रसारणकत्र्ता को केबल नेटवर्क अधिनियम की धारा 9 के तहत भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा प्रमाणित बीआईएस गुणवत्ता वाले सेट टॉप बॉक्स व अन्य उपकरण भी लगाने अनिवार्य हैं। 
ऐसे में यदि केबल टीवी आपरेटर सरकार द्वारा निर्धारित तिथि तथा केबल टीवी नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत नियमों का पालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ केबल टीवी नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम की धारा 11 व 12 के अनुसार प्राधिकृत अधिकारी जिसमें जिला मेजिस्ट्रेट (डीएम), अतिरिक्त जिला मेजिस्ट्रेट (एडीएम), उपमंडलीय दंडाधिकारी (एसडीएम) तथा पुलिस कमीश्नर शामिल है नियमों के विरूद्ध कार्य करने पर केबल टीवी प्रसारणकत्र्ता के उपकरणों को जब्त कर सकता है तथा नियमानुसार कडी कार्रवाई अमल में ला सकते हंै। धारा 16 के तहत नियम की उल्लंघना पाए जाने पर एक हजार रूपये का जुर्माना या दो साल तक की जेल या दोनों जबकि पुन: उल्लंघना होने पर पांच हजार रूपये तक का जुर्माना या पांच साल की जेल या दोनों सजाएं हो सकती है। 
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के अनुसार देश में अब तक हुए केबल टीवी डिजिटाइजेशन के कारण जहां उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्तायुक्त केबल टीवी प्रसारण की सुविधा सुनिश्चित हुई है तो वहीं मनपंसद चैनल देखने की आजादी भी मिली है। साथ ही केबल टीवी डिजिटाइजेशन के कारण सरकार के राजस्व में भी बतौर मनोरंजन व सेवा कर के तौर पर अभूतपूर्व बढ़ौतरी दर्ज हुई है। 
ऐसे में हिमाचल प्रदेश के सभी ग्रामीण क्षेत्रों में केबल टीवी का प्रसारण कर रहे केबल आपरेटर (एमएसओ व एलसीओ) केबल टीवी नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत अपना पंजीकरण करवाना सुनिश्चित करें ताकि प्रदेश के लाखों केबल टीवी उपभोक्ताओं को सेट टॉप बॉक्स के माध्यम से डिजिटल प्रसारण की सुविधा समयानुसार सुनिश्चित हो सके। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा निर्धारित तिथि 31 दिसम्बर, 2016 के बाद प्रदेश के  सभी ग्रामीण क्षेत्रों में एनॉलाग केबल टीवी प्रसारण की सेवा समाप्त हो जाएगी।
उपभोक्ता व केबल ऑपरेटर केबल टीवी डिजीटाईजेशन के तहत अधिक जानकारी के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के टोल फ्री हेल्पलाईन नम्बर-18001804343 पर जानकारी हासिल कर सकते हैं।

 (साभार: दैनिक न्याय सेतु 21 अक्तूबर, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Monday, 1 August 2016

स्वयं की जागरूकता से ही रूकेंगी सडक़ दुर्घटनाएं

सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय भारत सरकार की सडक़ दुर्घटनाओं को लेकर वर्ष-2015 के जारी आंकडों के अनुसार देश में वर्ष 2014 के मुकाबले 2015 में सडक़ दुर्घटनाओं में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। जबकि इसी दौरान सडक़ दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों में भी 4.6 प्रतिशत तथा घायलों की संख्या में 1.4 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज हुई है। जारी आंकडों के आधार पर देश में प्रतिदिन 1374 सडक़ दुर्घटनाओं में 400 लोगों की मौत हो रही है। यानि की हम कह सकते हैं कि हमारे देश की सडक़ें प्रतिदिन हो रही सडक़ दुर्घटनाओं के शिकार लोगों के रक्त से हर पल लाल हो रही है तथा जिस गति से यह आंकडा बढ़ रहा है सडक़ दुर्घटनाओं को लेकर देश की एक भयावह तस्वीर हमारे सामने प्रस्तुत हो रही है। 
सरकार द्वारा जारी इन्ही आंकडों का आगे विश्लेषण करें तो सबसे चौकाने वाली बात यह सामने आ रही है कि इन सडक़ दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे लोगों में से 54.1 फीसदी 15-34 आयु वर्ग के युवा हैं। युवाओं का इस तरह सडक़ दुर्घटनाओं में शिकार हो जाना हमारे देश व समाज के लिए एक बहुत बडी त्रासदी कही जा सकती है। आंकडों के आधार पर कुल सडक़ दुर्घटनाओं में से 77.1 प्रतिशत सडक हादसे चालकों की लापरवाही के कारण घटित हो रहे हैं। जिसमें से लगभग 62 फीसदी कारण ओवरस्पीड जबकि शराब व नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों का आंकडा दस फीसदी है। इसी तरह ओवरलोडिंग के कारण देश में 77 हजार से अधिक सडक़ दुर्घटनाएं हुई जिनमें 25 हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई है। यानि की यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकतर सडक दुर्घटनाओं के कारण हम स्वयं ही बन रहे हैं। आंकडों से दूसरी सबसे चौकाने वाली बात यह सामने आ रही है कि देश में हिट व रन के मामलों में भी वृद्धि दर्ज हुई है तथा वर्ष 2015 में कुल सडक दुर्घटनाओं में से 11.4 प्रतिशत हिट व रन के मामले सामने आए जिनके तहत 20 हजार से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पडी है।
इन आंकडों से एक ओर बात मुख्य तौर पर सामने आ रही है कि गत दो वर्षों के दौरान दोपहिया वाहनों की सडक़ दुर्घटना के आंकडों में भी लगभग दो फीसदी जबकि कार, जीप, टैक्सी इत्यादि के मामले में लगभग डेढ़ फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है। पूरे देश में 26 फीसदी सडक दुर्घटनाओं के कारण दोपहिया वाहन, साढे पच्चीस फीसदी ट्रक, टैंपो इत्यादि, 19 फीसदी कार, जीप, टैक्सी इत्यादि तथा 8 फीसदी बसें सडक़ दुर्घटनाओं का कारण बन रही हैं। ऐसे में एक बार फिर यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकतर सडक़ दुर्घटनाओं के लिए वाहन चालक स्वयं ही कारण बन रहे हैं। इसके अलावा एक महत्वपूर्ण बात यह भी सामने आई है कि 79 फीसदी सडक़ दुर्घटनाओं के मामले में चालकों के पास नियमित ड्राईविंग लाईसेंस था जबकि लर्नर लाईसेंस धारकों का आंकडा 12 फीसदी तथा बिना लाईसेंस वाले चालकों का आंकडा नौ फीसदी है।
ऐसे में यदि हिमाचल प्रदेश की बात करें तो वर्ष 2015 में तीन हजार सडक़ दुर्घटनाएं घटित हुई जिनमें लगभग 11 सौ लोगों की मौत व 5 हजार से अधिक घायल हुए हैं। राष्ट्रीय स्तर की भांति हिमाचल प्रदेश में भी अधिकतर सडक़ दुर्घटनाओं का मुख्य कारण वाहन चालक की लापरवाही ही सामने आई है। प्राप्त आंकडों के आधार पर प्रदेश में कुल सडक़ दुर्घटनाओं में से 2893 वाहन चालकों की गलती के कारण हुई जिनमें 1042 लोग मारे गए तथा पांच हजार के करीब घायल हुए हैं। वाहन चालकों के कारण हुई कुल सडक़ दुर्घटनाओं में से 2670 दुर्घटनाओं का कारण तेज गति से वाहन चलाना ही सामने आया है। ऐसे में एक बार फिर स्पष्ट हो गया कि लोगों की स्वयं की गलती के कारण की अधिकतर सडक़ दुर्घटनाओं के मामले घट रहे हैं।
इन परिस्थितियों में अब यह जरूरी हो जाता है कि सडक दुर्घटनाओं के प्रति लोगों को जागरूक करने की बहुत आवश्यकता है ताकि प्रतिवर्ष लाखों लोगों को सडक़ दुर्घटनाओं के कारण असमय ही मौत के आगोश में जाने से बचाया जा सके। इसके लिए जरूरी है कि लोग वाहन चलाते समय सडक़ पर लगी संकेतावली व चिन्हों का गंभीरता से पालन करते हुए स्वयं व दूसरों की अनमोल जिंदगी को बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। साथ ही वाहन चालक गाडी चलाते समय सीट बैल्ट का प्रयोग करते हैं तो सडक दुर्घटना की स्थिति में मौत होने की 60 प्रतिशत तक संभावनाएं कम हो जाती हैं जबकि दोपहिया वाहन चलाते समय अच्छी गुणवत्ता वाला हेल्मेट पहनने से सिर पर लगने वाली चोटों की संभावनाओं को 70 प्रतिशत तक कम कर देता है। 
यही नहीं वाहन चलाते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना भी सडक दुर्घटनाओं का बहुत बडा कारण बनता जा रहा है। इस दिशा में किए गए अनुसंधानों से पता चला है कि वाहन चलाते समय फोन को सुनना, कॉल या लिखित संदेश आने से भ्रमित हो जाना, एकाएक मोबाईल फोन की घंटी बज जाना इत्यादि विभिन्न कारणों से वाहन चालक की सडक पर जोखिमों के प्रति पहचान और प्रतिक्रिया की क्षमता धीमी हो जाती है जिसके कारण सडक दुर्घटना होने का अंदेशा लगातार बना रहता है। सडक यातायात में दिन के मुकाबले रात में घातक दुर्घटनाएं होने की संभावना 3-4 गुणा अधिक होती है। इसलिए रात्रि के समय वाहन चलाते समय अतिरिक्त सावधानी व सत्तर्कता अपनाएं तथा पैदल चलने वाले यात्रियों, साइकिल सवारों, पशुओं इत्यादि के प्रति सावधान रहें। साथ ही रेट्रो-रिफलैक्टिव शीटों व टेपों का व्यापक इस्तेमाल करें।
देश में वाहनों की ओवरलोडिंग भी सडक़ दुर्घटनाओं का एक बहुत बडा कारण है इसलिए ओवर लोडिंग न करके हम देश की सडकों को क्षति पहुंचाने से बचा सकते हैं बल्कि वाहनों की क्षमता को भी बढ़ाने के साथ-साथ होने वाले आर्थिक नुकसान से भी बच सकते हैं। इसके अलावा वाहन चालकों को वाहन चलाते समय शराब व नशीले पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए। देश में 77 फीसदी सडक दुर्घटनाओं के लिए वैध ड्राईविंग लाईसैंस धारी चालक ही कारण बन रहे हैं, ऐसे मेें जरूरी है कि वाहन चालकों का समय-समय पर सडक़ सुरक्षा के प्रति औचक परीक्षण भी होना चाहिए ताकि वाहन चालक सडक़ नियमों के प्रति सचेत बने रहें।
ऐसे में यदि हमारे देश को ब्राजीलिया डिक्लेरेशन के तहत 2020 तक सडक़ दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों में 50 फीसदी तक कमी लानी है तो जरूरी है कि लोग सडक़ सुरक्षा नियमों के प्रति जागरूक बनें तथा ड्राईविंग लाईसेंस जारी किए जाने वाली प्रक्रिया में सख्ती के साथ-साथ पारदर्शिता अपनाए जाने की आवश्यकता है। साथ ही सडक सुरक्षा नियमों का पालन न करने वाले वाहन चालकों के प्रति सख्त कानूनी कार्रवाई भी अमल लानी होगी। अन्यथा हमारी सडक़ों पर मौत यह तांडव इसी तरह जारी रहेगा तथा असमय की असंख्य लोग अपनी अनमोल जिंदगी को गंवाते रहेंगें।



(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 1 अगस्त, 2016 एवं हिमाचल दिस वीक, 6 अगस्त, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)