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Sunday, 25 June 2023

ऊना के विपन धीमान ई-रिक्शा बनाकर बने उद्यमी, पंडोगा में स्थापित किया प्लांट

सीएम स्टार्टअप योजना के तहत आईआईटी मंडी में एक वर्ष तक प्रोजेक्ट पर किया शोध कार्य

कभी बचपन से भारतीय सेना ज्वाईन कर देश सेवा का सपना पाले ऊना के 38 वर्षीय विपन धीमान आज ई-रिक्शा बनाकर उद्यमी बन गए हैं। विपन धीमान ने प्रदेश सरकार की विभिन्न स्वावलंबी योजनाओं का लाभ उठाते हुए ऊना के औद्योगिक क्षेत्र पंडोगा में ई-रिक्शा प्लांट स्थापित किया है। मुख्य मंत्री स्टार्टअप योजना के तहत इंक्युबेशन केंद्र आईआईटी मंडी में ई-रिक्शा पर एक वर्ष तक शोध कार्य करते हुए वे न केवल ई-रिक्शा का सफलतापूर्वक उत्पादन कर रहे हैं बल्कि अब 6 अन्य युवाओं को रोजगार भी प्रदान किया है। 

वर्तमान में विपन धीमान के ई-रिक्शा के हिमाचल, चंडीगढ तथा पंजाब में कुल 5 डीलर भी कार्य कर रहे हैं जिनके माध्यम से लोग ई-रिक्शा को खरीद सकते हैं। अब तक 15 ई-रिक्शा का निर्माण कर लगभग 35 लाख रूपये राशि जुटा चुके हैं। उनके द्वारा तैयार ये ई-रिक्शा न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं बल्कि ऊना सहित अन्य स्थानों पर धड़ल्ले से यात्रियों को लाने व ले जाने का कार्य भी सफलता पूर्वक कर रहे हैं।

बचपन में पाला सेना में शामिल होने का सपना, एक अच्छे खिलाडी भी हैं विपन धीमान

जब विपन धीमान से उनके द्वारा तैयार इलेक्ट्रिक वाहन (ई-रिक्शा) निर्माण की कहानी पर बातचीत की तो वे कहते हैं कि बचपन से ही भारतीय सेना में भर्ती होने का सपना पाला हुआ था तथा शारीरिक तौर पर स्वयं को तैयार भी करते रहे।

स्कूली शिक्षा के दौरान उन्होंने एनसीसी भी ज्वाईन कर ली थी। लेकिन इस बीच शारीरिक समस्या के चलते सेना में भर्ती होने से रह गए तथा कॉलेज में स्नातक की पढाई शुरू कर दी। साथ ही एनसीसी में प्रमुखता से भाग लेते हुए एनसीसी-सी सर्टिफिकेट भी हासिल किया। साथ ही बॉक्सिंग व शूटिंग खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे तथा प्रदेश स्तर पर गोल्ड व सिल्वर मेडल भी जीते। स्नातक स्तर की परीक्षा में कम अंकों के चलते वे एनसीसी सी सर्टिफिकेट के बावजूद सेना में एक बार फिर भर्ती होने से वंचित रहना पड़ा। 

ग्रेजुएशन के बाद संभाला पिता का ऑटो स्पेयर पार्टस बिजनेस, ऑटो सेक्टर में काम करने का बढ़ा जज्बा

भावुक होते हुए विपन धीमान कहते हैं कि कॉलेज शिक्षा पूरी होते ही पिता नौकरी के लिए विदेश चले गए। उन्हें पारिवारिक स्पेयर पार्टस के बिजनेस को संभालना पड़ा। इस दौरान ऑटो सेक्टर में कुछ हटकर करने का जज्बा पैदा हुआ। वर्ष 2010 में रोपड़ स्थित रियात-बाहरा पॉलीटेक्निक संस्थान में ऑटो मोबाइल पाठयक्रम में प्रवेश ले लिया। वर्ष 2013 में डिप्लोमा पाठयक्रम के अंतिम समेस्टर में एक ऐसा प्रोजेक्ट तैयार किया जिसे राज्य स्तर पर सर्वश्रेष्ठ आंका गया। इसके बाद चंडीगढ से डिजाइन कैड में मास्टर डिप्लोमा भी हासिल किया। उन्होंने महिंद्रा ऑटो कंपनी में एक साल तक कार्य किया तथा वर्ष 2015 में वे दुबई चले गए। दुबई में भी ऑटो मोबाइल सेक्टर कंपनी में काम करते हुए इसकी बारीकियों को समझा। वर्ष 2017 में स्वदेश लौटे तथा पारिवारिक बिजनेस को पुन: संभालना शुरू किया।

जब दिल्ली में किया ई-रिक्शा में सफर, कमियों को पहचान ई-रिक्शा निर्मित करने को बढ़ाए कदम

विपन धीमान कहते हैं कि वर्ष 2017 में बिजनेस के संबंध में दिल्ली गए तो उन्हें ई-रिक्शा में सफर करने का मौका मिला। इस दौरान ई-रिक्शा निर्माण की खामियों को पहचाना तथा एक अच्छा मॉडल तैयार करने की ठानी। इंटरनेट के माध्यम से ई-रिक्शा बनाने के सभी पैरामीटर को जाना व समझा तथा वर्ष 2018 में ई-रिक्शा का प्रोटोटाइप मॉडल तैयार किया। लगभग एक माह तक शोध करने के बाद अपने स्तर पर ही लगभग 15 लाख रूपये व्यय कर ई-रिक्शा निर्मित करने का निर्णय लिया। इस बीच प्रदेश सरकार की ओर से उद्योग विभाग के तहत आर्थिक सहायता की जानकारी मिली। उद्योग विभाग के माध्यम से डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) सरकार को प्रस्तुत करके उन्हें सीएम स्र्टाटअप स्कीम के तहत स्वीकृति मिली। स्कीम के तहत 10 लाख रूपये तथा इंक्युबेशन केन्द्र के माध्यम से 15 लाख रूपये स्वीकृत हुए। वर्ष 2019 में इंक्युबेशन केंद्र आईआईटी मंडी ने ई-रिक्शा प्रोजेक्ट पर कार्य करने की स्वीकृति प्रदान की और 1.50 लाख रूपये की राशि भी उपलब्ध करवाई।

हिम स्टार्टअप  के तहत स्वीकृत हुए 50 लाख रूपये, जनवरी 2023 से शुरू किया उत्पादन

आईआईटी मंडी ने ई-रिक्शा प्रोजेक्ट का प्रमाणीकरण कर उन्हें हिम स्र्टाटअप स्कीम के तहत 50 लाख रूपये, भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की निधि ट्रिप्पल एस (एनआईडीएचआई सीड स्पोर्ट प्रोग्राम) स्कीम के तहत 20 लाख रूपये की आर्थिक सहायता राशि स्वीकृत हुई। अप्रैल, 2022 में ऊना के पंडोगा में ई-रिक्शा मैन्युफैक्चरिंग इकाई स्थापित की तथा जनवरी 2023 से ई-रिक्शा का उत्पादन शुरू कर दिया है। उन्होंने अब तक 15 ई-रिक्शा तैयार कर लगभग 35 लाख रूपये की राशि जुटा ली है।

क्या कहते हैं अधिकारी:

संयुक्त निदेशक उद्योग विभाग अंशुल धीमान का कहना है कि सीएम स्टार्टअप स्कीम के तहत विपन धीमान के ई-व्हीकल प्रोजेक्ट को स्वीकार करते हुए आईआईटी मंडी के माध्यम से शोध कार्य किया गया। पंडोगा औद्योगिक क्षेत्र में 2 हजार वर्ग मीटर का प्लाट आवंटित कर एक करोड रूपये का निवेश कर प्रोडक्शन इकाई स्थापित की है। जनवरी 2023 से ई-व्हीकल (ई-रिक्शा) का व्यावसायिक उत्पादन भी शुरू कर दिया है। उन्होंने प्रदेश के ऐसे युवाओं से आगे आने का आहवान किया है जो  इन्नोवेटिव आईडिया के तहत उद्यम स्थापित कर आगे बढना चाहते हैं, प्रदेश सरकार हैं उनकी पूरी मदद करेगी।








Tuesday, 20 June 2023

कांगड़ा घाटी रेलवे लाइन का अंतिम स्टेशन जोगिन्दर नगर

164 किलोमीटर लंबी कांगड़ा घाटी रेलवे लाइन (पठानकोट-जोगिन्दर नगर) का अंतिम रेलवे स्टेशन मंडी जिला का जोगिन्दर नगर कस्बा है। ब्रिटीश इंजीनियर कर्नल बी.सी. बैटी तथा उनकी टीम ने जोगिन्दर नगर स्थित शानन पॉवर हाउस निर्माण के लिए मशीनरी को यहां तक पहुंचाने की दृष्टि से इस रेलवे लाइन का निर्माण किया था। वर्ष 1925 में तत्कालीन पंजाब सरकार ने शानन पनविद्युत परियोजना निर्माण को देखते हुए पठानकोट से जोगिन्दर नगर तक 2 फीट 6 इंच नैरो गेज लाइन बनाने का प्रस्ताव रखा। 164 किलोमीटर लंबी यह रेलवे लाइन उत्तर पश्चिम रेलवे के लाहौर मंडल का हिस्सा थी। इस रेलवे लाइन पर एक अप्रैल, 1929 से यात्री यातायात आरंभ किया गया। इस रेलवे लाइन के निर्माण की वास्तविक लागत 296 लाख रूपये थी।

कागड़ा घाटी रेलवे लाइन में कुल 16 क्रॉसिंग स्टेशन तथा 18 यात्री हॉल्ट हैं। इस लाइन पर समुद्री सतह से 1290 मीटर की ऊंचाई पर ऐहजू सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन है। इस रेल लाइन में कुल 1009 पुल तथा 2 सुरंगे हैं। कांगड़ा घाटी के समीप रियोंड नाले पर बना स्टील मेहराब पुल एक गहरे नाले पर बना है, जोकि नदी के स्तर से 200 फीट ऊपर तथा 260 फीट लंबा है।
अप्रैल, 1942 में नगरोटा से जोगिन्दर नगर सेक्शन पर बंद कर इसकी रेलों को ब्रिटीश सरकार द्वारा यूरोप में युद्ध के लिए भेजा गया था। 12 वर्ष के बाद 15 अप्रैल, 1954 को तत्कालीन रेल मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा इसे पुन: आरंभ किया गया। बाद में पोंग बांध के निर्माण के कारण वर्तमान ट्रैक के पोंग बांध के पानी में डूबने का खतरा उत्पन्न हो गया था। ज्वांवाला शहर तथा गुलेर के बीच के भाग को 1 अप्रैल, 1973 को बंद कर दिया गया था तथा लाइन उखाड दी गई थी। 24.87 किलोमीटर लंबी पुन: निर्मित लाइन माल यातायात के लिए 15 अक्तूबर, 1976 को तथा यात्री यातायात के लिए 28 दिसम्बर, 1976 को खोली गई।
पूर्व में पठानकोट-जोगिन्दर नगर रेलवे लाइन में विभिन्न सेक्शनों से जैड-ई, जैड-बी, जैड-एफ तथा जैड-एफ एक श्रेणी के रेल इंजन प्रयोग में लाए जाते थे। अब इस रेल लाइन में केवल जैड-डीएम 3 डीजल रेल इंजनों की आवाजें गुंजती है।
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Tuesday, 13 June 2023

नागचला में सच्चे मन से मांगी मन्नत होती है पूरी, 20 भाद्रपद को आयोजित होता है मेला

मंदिर परिसर में मिलता है अलौकिक शांति का अनुभव, आसपास का वातावरण है बेहद खूबसूरत 

मंडी जिला के जोगिंदर नगर उपमंडल के तहत गांव हराबाग में नाग देवता का प्रसिद्ध मंदिर नागचला स्थित है। कहते हैं कि यहां पर सच्चे मन से मांगी गई मन्नत को नाग देवता पूरी करते हैं। इस स्थान पर प्रति वर्ष 20 भाद्रपद को एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।

नागचला में प्राकृतिक तौर पर दिव्य पानी बहता है। कहते हैं कि यह पानी छोटा भंगाल घाटी की प्रसिद्ध डहनसर झील से चलकर यहां निकला है। इस पवित्र पानी से स्नान आदि करने के बाद सच्चे मन से मांगी गई मन्नत को नागचला देवता पूरी करते हैं। श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर मंदिर में स्नान आदि कर देवता के दर्शन करते हैं। साथ ही श्रद्धालु नागचला के पानी को बोतल में भरकर घर भी ले जाते हैं। प्रतिवर्ष 20 भाद्रपद को लगने वाले विशेष मेले में श्रद्धालुओं की संख्या देखने योग्य होती है। इस दिन जहां श्रद्धालु मंदिर में नाग देवता के दर्शन करते हैं तो वहीं नागचला के इस दिव्य पानी से स्नान भी करते हैं। दिव्य स्नान के लिए मंदिर परिसर में पुरूषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग स्नानागार की व्यवस्था रहती है।
मन्नत पूरी होने पर वायदा न निभाने पर जब नाग देवता हुए थे नाराज, परिवार को हुआ नुकसान 

मंदिर के पुजारी अर्जुन सिंह बताते हैं कि एक जनश्रुति के अनुसार काफी वर्ष पूर्व एक व्यक्ति ने नागचला से कोई मन्नत मांगी थी तथा मन्नत पूरी होने पर कान की सोने की बाली (मुरकली) चढ़ाने का वायदा किया था। कहते हैं कि मन्नत अनुसार उस व्यक्ति का परिवार काफी खुशहाल व सम्पन्न हो गया। लेकिन बीतते समय के साथ उस व्यक्ति ने नागचला से मांगी गई मन्नत अनुसार अपने वायदे को पूरा करना उचित नहीं समझा। ऐसे में नाग देवता उस व्यक्ति से रुष्ट हो गए तथा उसके साथ अनिष्ट होते चला गया।

इसी तरह एक महिला की कहानी भी बताई जाती है। उस महिला ने भी मांगी गई मन्नत पूरी होने पर नागचला देवता को काजल लगाने का वायदा किया था। कहते हैं कि वह महिला वायदे अनुसार नागदेवता के असली रूप को देखकर घबरा गई तथा नाग देवता को काजल लगाने में असफल रहीं। ऐसे में नाग देवता महिला से नाराज हुए तथा उसके साथ भी अनिष्ट हुआ।

अर्जुन सिंह बताते हैं कि आज भी लोग सच्चे मन से नागचला देवता से मन्नतें मांगते हैं तथा नागचला देवता उन्हे पूरा भी करते हैं। नागचला देवता के प्रति श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है तथा प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु नागचला के दर्शनार्थ मंदिर परिसर में पहुंचते हैं।

मंदिर परिसर में होता है अलौकिक शांति का अनुभव, आसपास का वातावरण है बेहद खूबसूरत 

नागचला मंदिर परिसर में पहुंचने पर अलौकिक शांति का अनुभव होता है। मंदिर परिसर के आसपास का दृश्य प्राकृतिक तौर पर बेहद खूबसूरत है। मंदिर परिसर के आसपास घने पेड़ों की मौजूदगी यहां की खूबसूरती ज्यादा आकर्षक एवं आंखों को सुकून प्रदान करने वाला दृश्य बनाती है।  

कैसे पहुंचे मंदिर: 

जोगिन्दर नगर-मंडी राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर जोगिन्दर नगर कस्बे से मंडी की ओर महज 3 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत हारगुणैन के गांव हराबाग में यह पवित्र स्थान मौजूद है। मुख्य सडक़ से मंदिर की दूरी लगभग आधा किलोमीटर है तथा मंदिर परिसर पक्की सडक़ से जुड़ा हुआ है। श्रद्धालु वाहन के माध्यम से भी आसानी से मंदिर परिसर में पहुंचकर नागचला देवता के दर्शन कर सकते हैं।






Tuesday, 6 June 2023

जोगिन्दर नगर के लांगणा गांव में स्थापित है पंचमुखी महादेव की भव्य मूर्ति

कहते हैं कई वर्ष पूर्व ब्यास नदी में बहकर आई है यह मूर्ति, छोटे से मंदिर में आज भी है विराजमान
मंडी जिला के जोगिंदर नगर उपमंडल के तहत गांव लांगणा में भगवान शिव की पंचमुखी मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति के पंचमुख होने पर इसे पंचमुखी महादेव के नाम से भी जाना जाता है। कई वर्षों तक यह मूर्ति खुले आसमान के नीचे ही रही। बाद में एक छोटे से मंदिर का निर्माण कर इसे मंदिर के भीतर स्थापित किया गया है। आज भी यह मूर्ति इसी छोटे से मंदिर में विराजमान है तथा श्रद्धालुओं की इसके प्रति गहरी आस्था है। हर वर्ष श्रावण मास में बेलपत्र से महादेव की पूजा की जाती है तथा प्रतिवर्ष 5 अगस्त से 15 अगस्त तक शिव महापुराण कथा का भी आयोजन किया जाता है।
कहते हैं कि यह विशाल मूर्ति ब्यास नदी में बहकर आई है। इस मूर्ति का इतिहास सैंकड़ों वर्ष पूर्व का माना जाता है। क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि भगवान शिव की यह पंचमुखी मूर्ति का इतिहास ब्रिटिश शासन के समय से ही जुड़ा रहा है। बताते हैं कि इस मूर्ति को ब्यास नदी के दूसरे छोर की ओर ले जाने के लिए कई लोगों ने प्रयास किये परन्तु उन्हे हमेशा असफलता ही मिली।
ब्यास नदी में बहकर आई पंचमुखी मूर्ति को पाबो गांव का पंडित लेकर पहुंचा था कठियार
जनश्रुति अनुसार ग्राम पंचायत धार के पाबो गांव का एक पंडित ब्यास नदी पार कर अपने घर पाबो की ओर जा रहा था। जैसे ही वह पंडित नाव से उतरा तो उसे पता चला है कि भगवान शिव की मूर्ति नदी में बहकर यहां आई है। इस मूर्ति को ले जाने के लिए नदी के दूसरे छोर के लोग पहुंचे हुए थे, लेकिन इसे ले जाने में असफल हो रहे थे। इस बीच पंडित ने शीशम पेड़ की जड़ में भगवान शिव की इस मूर्ति को देखा। उन्होने मूर्ति को प्रणाम कर स्पर्श किया तो मूर्ति डगमगाने लगी। पंडित ने मूर्ति को बड़ी आसानी से सिर पर उठा लिया तथा गांव धार पाबो की ओर चल पड़े। चलते-चलते जब पंडित वर्तमान मंदिर के समीप एक स्थान पर पहुंचे, जहां कभी मंडी राजा का कठियार हुआ करता था। इस स्थान पर पीपल के नीचे अटियाला बना हुआ था। पंडित मूर्ति को रखकर आराम करने लगा, बाद में जब दोबारा मूर्ति को उठाने का प्रयास किया तो मूर्ति जरा भी न हिल पाई। पंडित भगवान शिव को प्रणाम कर अपने गांव की ओर चल निकले। कहते हैं कि उस समय से लेकर वर्ष 1970 तक यह मूर्ति इसी तरह कठियार वर्तमान में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला लांगणा के समीप खुले आसमान के नीचे ही रही।
मूर्ति ने पुन्नू नामक व्यक्ति को दिया स्वपन, शूल में मंदिर बनाने का किया आग्रह
स्थानीय लोगों के अनुसार लांगणा स्कूल के समीप ही एक निजी मकान में पशु औषधालय हुआ करता था। इस औषधालय में पुन्नू राम नामक कर्मचारी कार्यरत था। एक रात को पुन्नू राम को सपने में भगवान शिव की मूर्ति ने बताया कि आप नि:सन्तान हो, समीप के तालाब (शूल) के पास एक छोटा सा मंदिर बनवा कर मेरी स्थापना करवाना। संतान के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। सुबह पुन्नू राम ने लांगणा स्कूल पहुंचकर सारी बात अध्यापकों के साथ साझा की। स्वपन अनुसार बताई जगह पर मंदिर निर्माण को सभी ने सहमति जताई। यथायोग्य चन्दा इकट्ठा कर एक छोटे से मंदिर का निर्माण कर बडी धूम-धाम से इस विशाल पंचमुखी मूर्ति की स्थापना की गई। कहते हैं कि मंदिर में मूर्ति स्थापना के बाद पुन्नू राम के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। आज भी यह मूर्ति इसी छोटे से मंदिर में विराजमान है। इस मूर्ति के पांच मुख होने के चलते इसे पंचमुखी महादेव के नाम से जाना जाने लगा। मंदिर में समय-समय पर कई साधु महात्माओं ने भी निवास किया। यहां पर बाबा चरण गिरि की समाधि भी स्थापित की गई है। वर्तमान में बाबा बसंत गिरि यहां रहते हैं।
मंदिर विकास को गठित की है पंचमुखी महादेव मंदिर समिति, किये कई विकास कार्य
मन्दिर कार्य चलाने के लिए पंचमुखी महादेव मंदिर समिति गठित की गई है। यह समिति पंजीकृत हैं। मंदिर समिति के सचिव कालीदास सकलानी ने बताया कि मंदिर समिति ने श्रद्धालुओं के सहयोग से सराय भवन, रसोई घर, लंगर हॉल, सत्संग भवन तथा निवास करने वाले महात्मा के लिए कुटिया का निर्माण करवाया है। पंचमुखी महादेव के भव्य मंदिर निर्माण के लिए समिति द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं।
कैसे पहुंचे मंदिर:
ब्यास नदी तथा सिकन्दर धार के बीच बसा यह पंचमुखी महादेव का मन्दिर मण्डी जिला के उपमंडल जोगिन्दर नगर की ग्राम पंचायत लांगणा के शूल में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला के समीप स्थित है। यहां पर पहुंचने के लिए जोगिन्दर नगर से सरकाघाट की ओर जाने वाली मुख्य सडक़ पर नेरी गांव से लडभड़ोल-बैजनाथ सडक़ पर लगभग अढ़ाई किलोमीटर चलकर पहुंचा जा सकता है। नेरी गांव से आगे चलकर कोटला-प्रैण लिंक रोड के माध्यम से मन्दिर के प्रांगण तक गाड़ी से भी पहुंचा जा सकता है।