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Tuesday, 29 December 2015

पंचायतों के संचालन एवं अहम निर्णयों में ग्राम सभा सुप्रीम

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पंचायतों के महत्वों को प्रतिपादित करते हुए कहा था, ''सच्चा लोकतंत्र वही है जो निचले स्तर पर लोगों की भागीदारी पर आधारित है। यह तभी संभव है जब गांव में रहने वाले आम आदमी को भी शासन के बारे में फैसला करने का अधिकार मिले।  इसी के दृष्टिगत देश में पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से शासन की शक्तियों के विकेन्द्रीकरण को महत्व प्रदान किया गया तथा पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त बनाने के लिए कई प्रभावी कदम भी उठाए गए। 
पंचायती राज व्यवस्था में संविधान के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम,1992 द्वारा इस दिशा में आगे बढ़ते हुए पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक अधिकार प्रदान कर तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था जिसमें ग्राम पंचायत, पंचायत समिति तथा जिला परिषद शामिल है के गठन का रास्ता प्रशस्त हुआ। इसमें भी महत्वपूर्ण बिन्दु यह रहा कि पंचायत स्तर पर ग्राम सभा को सुप्रीम दर्जा प्रदान किया गया। ऐसे में 73वें संविधान संशोधन के कारण न केवल पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से जन सहभागिता बढ़ाकर देश में लोकतंत्र की जडों को मजबूती प्रदान की गई बल्कि शक्तियों के विकेन्द्रीकरण के कारण देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का सशक्तिकरण भी हुआ है। आज इसी त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का नतीजा है कि देश में लगभग 30 लाख पंचायत प्रतिनिधि देश की कुल आबादी का लगभग 73 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
लेकिन अब प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या पंचायतों में विभिन्न कार्यों से लेकर अन्य महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार महज पंचायतों के चुने हुए प्रधानों व वार्ड सदस्यों के पास ही रहता है? या फिर पंचायत में आम मतदाता की भी कोई भूमिका रहती है। ऐसे में पंचायतों के सभी मतदाताओं को यह समझ लेना जरूरी है कि पंचायत संचालन महज चंद चुने हुए प्रतिनिधियों तक सीमित नहीं रहता है बल्कि संविधान के अनुच्छेद 243( क व ख) में ग्राम सभा को पंचायतों के संचालन व अहम निर्णय लेने के लिए सर्वोच्च संस्था माना गया है। जिसमें पंचायतों के वार्षिक बजट, आय-व्यय का विवरण से लेकर प्रशासनिक व विकास कार्यों से जुडे कई अहम निर्णय लेने की शक्ति ग्राम सभा के पास रहती है। 
यही नहीं ग्राम सभा प्रधानों, पंचायत सदस्यों से किसी भी प्रमुख क्रिया कलाप, सरकारी विकास कार्यक्रमों, आय-व्यय के संबंध में स्पष्टीकरण भी मांग सकती है। साथ ही ग्रामीण स्तर पर विकास कार्यों की देखरेख, जांच पडताल के लिए ग्राम सभा एक या एक से अधिक निगरानी समिति का गठन भी कर सकती है। इसके अतिरिक्त ग्राम सभा ग्रामीण शिक्षा, परिवार व सामुदायिक कल्याण कार्यक्रमों सहित ग्रामीण समाज में भाईचारा, एकता और सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने का कार्य भी करती है। भारत सरकार ने वर्ष 1999-2000 को ग्राम सभा वर्ष के तौर पर मनाने का निर्णय लिया ताकि पंचायती राज  व्यवस्था की महत्वपूर्ण इकाई ग्राम सभा को ज्यादा सशक्त व प्रभावी बनाया जा सके।
लेकिन ऐसे में अब यह प्रश्न खडा हो रहा है कि आखिर ग्राम सभा है क्या? वास्तव में पंचायत स्तर पर ग्राम सभा एक ऐसी संस्था है जिसका निर्माण उन व्यक्तियों से होता है जो उस गांव की चुनाव सूची में पंजीकृत हो या पंचायत के अंतर्गत गांवों के समूह जो पंचायत का चुनाव करते हैं। साधारण शब्दों में पंचायत गठन में शामिल प्रत्येक व्यस्क मतदाता ग्राम सभा का सदस्य है। ऐसे में किसी भी पंचायत के विकास कार्यों सहित सरकार की विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों के लाभार्थियों के चयन से लेकर क्रियान्वयन तक सभी महत्वपूर्ण निर्णय ग्राम सभा में ही लिए जाते हैं। इस तरह किसी भी पंचायत की सफलता वहां की जागरूक एवं निरन्तर क्रियाशील ग्राम सभा पर निर्भर करती है।
 ग्राम सभा की बैठक बुलाने तथा इसकी सूचना पहुंचाने की जिम्मेदारी पंचायत मुखिया की होती है। ग्राम सभा की बैठक का कोरम पूरा करने के लिए ग्राम सभा के कुल सदस्यों का 20वां हिस्सा हाजिर होना लाजमी होता है। कोरम पूरा न होने की स्थिति में बैठक अगले दिन या फिर किसी अन्य दिन तक स्थगित कर दी जाती है। अगली बार होने वाली ग्राम सभा की बैठक में कोरम पूरा होने के लिए कुल सदस्यों का 40वां हिस्सा होना जरूरी होता है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि ग्राम सभा के सभी सदस्य प्रत्येक तीन माह के दौरान आयोजित होने वाली ग्राम सभा की बैठकों में एक जागरूक नागरिक के नाते निरन्तर भाग लेना सुनिश्चित करें ताकि विकास से जुडे कार्यों पर बिना कोई विलंब गांव के हित में अहम निर्णय लिए जा सकें।
हिमाचल प्रदेश में अगले कुछेक दिनों में नई पंचायती राज संस्थाओं का गठन होने जा रहा है। ऐसे में हमारे लोकतंत्र की जड पंचायती राज व्यवस्था ज्यादा पारदर्शिता के साथ-साथ ग्राम सभा के प्रति जबावदेह व उत्तरदायी बने इसके लिए समाज का हर वर्ग सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ गांव व देश के विकास में लोकतंत्र के इस उत्सव में एक जागरूक नागरिक के नाते अपनी भागीदारी सुनिश्चित करे। अंत में यही कहेंगें-
अरमानों के पंख लगाकर भरना है परवाज,
नए सफर का नए जोश से करना है आगाज।
मंजिल मिल ही जाएगी है पूरा हमें यकीन,
बोल रहा है हमसे अपना उडने का अंदाज।।


(साभार: हिमाचल दिस वीक, 19 दिसम्बर, 2015 एवं दैनिक दिव्य हिमाचल, 30 दिसम्बर, 2015 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Tuesday, 1 December 2015

31 दिसम्बर तक हिमाचल के 53 नगरों का होगा केबल टीवी नेटवर्क डिजिटाइजेशन

भारत की जनगणना-2011 के आंकडों के अनुसार देश में 117 मिलियन यानि की 11.7 करोड घरों में टीवी की सुविधा उपलब्ध है। जबकि फीकी-केपीएमजी रिपोर्ट-2015 के अनुसार यह आंकडा बढक़र लगभग 168 मिलियन यानि की 16.8 करोड तक पहुंच गया है जो चीन व अमरीका के बाद भारत दुनिया का तीसरा बडा मुल्क है। इसी रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल टीवी उपभोक्ताओं का 59 फीसदी यानि की लगभग 9.9 करोड केबल टीवी, 24 फीसदी लगभग 4 करोड डीटीएच, 6 फीसदी यानि की एक करोड डीडी फ्री डिस व आइपीटीवी तथा 11 फीसदी यानि की 1.9 करोड परिवार डीडी टेरेस्ट्रेअल के साथ जुडे हुए हैं। 
ऐसे में देश के अन्दर केबल टीवी प्रसारण को केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) अधिनियम-1995 एवं केबल टीवी नेटवर्क नियम-1994 के तहत संचालित किया जा रहा है। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने अगस्त-2010 में केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) संशोधन अध्यादेश-2011 के तहत भारत में डिजिटल संबोधनीय केबल प्रणालियों का कार्यान्वयन को लेकर 4 विभिन्न चरणों में एनॉलाग केबल टीवी सेवाओं को डिजिटल संबोधनीय केबल टीवी प्रणाली में परिवर्तित करने की सिफारिश की है। जिसके तहत प्रथम चरण में 31 अक्तूबर, 2012 तक देश के चार महानगरों दिल्ली, मुंबई, कोलकत्ता और चेन्नई जबकि दूसरे चरण के अन्तर्गत 31 मार्च, 2013 तक देश के एक मिलियन आबादी वाले 38 शहरों को केबल टीवी डिजिटाइजेशन के तहत लाया गया है। जबकि तीसरे फेज मे 31 दिसम्बर, 2015 तक देश के सभी नगरीय क्षेत्रों तथा 31 दिसम्बर, 2016 तक देश के बचे हुए क्षेत्रों को केबल टीवी डिजिटल नेटवर्क के तहत लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इसी प्रक्रिया के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश के 53 नगरीय क्षेत्रों के लगभग सवा लाख परिवारों को केबल टीवी डिजिटाइजेशन के साथ 31 दिसंबर, 2015 तक जोडा जाना लाजिमी है। जिसमें प्रदेश का नगर निगम क्षेत्र शिमला, 30 नगर परिषद क्षेत्र जिसमें रोहडू, रामपुर, ठियोग, सोलन, नालागढ़, नाहन, पांवटा साहिब, परवाणू, बददी, बिलासपुर, श्री नयनादेवी जी, घुमारवीं, मंडी, सुंदरनगर, नेरचौक, कुल्लू, मनाली, ऊना, संतोखगढ़, हमीरपुर, सुजानपुर, धर्मशाला, कांगडा, पालमपुर, नूरपुर, नगरोटा, देहरा, ज्वालाजी, चंबा व डल्हौजी तथा 22 नगर पंचायतों वाले क्षेत्र जिसमें नारकंडा, चौपाल, कोटखाई, जुब्बल, अर्की, सुन्नी, राजगढ़, तलाई, सरकाघाट, जोगेन्द्रनगर, रिवालसर, करसोग, भुन्तर, बन्जार, दौलतपुर, गगरेट, मैहतपुर, टाहलीवाल, नादौन, भोटा, बैजनाथ-पपरोला और चुवाडी शामिल है। ऐसे में प्रदेश के इन 53 नगरीय क्षेत्रों में केबल टीवी का प्रसारण कर रहे मल्टी सिस्टम आपरेटर (एमएसओ) तथा लोकल केबल आपरेटर (एलसीओ) को केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) अधिनियम-1995 एवं केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) संशोधन अधिनियम-2011 की धारा तीन के अन्तर्गत सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार तथा संबंधित प्रसारण क्षेत्र के पंजीकरण प्राधिकरण के पास पंजीकरण के लिए आवेदन करना तथा धारा चार(क) के तहत सभी केबल आपरेटर एमएसओ व एलसीओ को निर्धारित तिथि के बाद केबल टीवी का डिजिटल संबोधनीय प्रणाली(डीएएस) के तहत प्रसारण करना अनिवार्य है।
 यही नहीं केबल टीवी नेटवर्क पंजीकरण नियम 5 के तहत सभी स्थानीय केबल ऑपरेटर्स (एलसीओ) को अपने प्रसारण क्षेत्र के मुख्य डाकपाल तथा पंजीकरण नियम 11 सी के तहत मल्टी सिस्टम आपरेटर (एमएसओ) को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार में पंजीकरण करवाना अनिवार्य है। इसी तरह केबल टीवी नेटवर्क अधिनियम की धारा 5 के तहत प्रोग्राम कोड तथा धारा 6 के अनुसार निर्धारित विज्ञापन कोड लेना भी जरूरी है जिसके बिना केबल टीवी पर प्रसारण अवैध है। इसके अतिरिक्त धारा आठ के तहत केबल आपरेटर को दूरदर्शन के 25 चैनल जिसमें डीडी नेशनल, लोकसभा, राज्यसभा, डीडी न्यूज, ज्ञानदर्शन, स्पोटर्स, किसान चैनल शामिल है का प्रसारण करना भी अनिवार्य है। 
ऐसे में यदि केबल टीवी आपरेटर सरकार द्वारा निर्धारित तिथि तथा केबल टीवी नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत नियमों का पालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ केबल टीवी नेटवर्क विनियमन संशोधन अधिनियम-2011 के अनुसार प्राधिकृत अधिकारी जिसमें जिला मेजिस्ट्रेट (डीएम), उपमंडलीय दंडाधिकारी (एसडीएम) तथा पुलिस कमीश्नर शामिल है नियमों के विरूद्ध केबल टीवी प्रसारणकत्र्ता के उपकरणों को जब्त कर सकता है तथा नियमानुसार कडी कार्रवाई अमल में ला सकते हंै। 
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के अनुसार देश में प्रथम व द्वितीय चरण में हुए केबल टीवी डिजिटाइजेशन के कारण जहां उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्तायुक्त केबल टीवी प्रसारण की सुविधा सुनिश्चित हुई है तो वहीं मनपंसद चैनल देखने की आजादी भी मिली है। साथ ही केबल टीवी के डिजिटलाइजेशन के कारण सरकार के राजस्व में भी बतौर मनोरंजन कर तथा सेवा कर के तौर पर अभूतपूर्व बढ़ौतरी दर्ज हुई है। मंत्रालय के एक आकलन के आधार पर दिल्ली में यह वृद्धि 200 प्रतिशत तक जा पहुंची तो वहीं अहमदाबाद में भी यह आंकडा बढक़र लगभग 165 फीसदी तक पहुंच गया है। इसी तरह देश के अन्य शहरों में भी अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज हुई है।
ऐसे में हिमाचल प्रदेश के सभी 53 नगर निकाय क्षेत्रों में केबल टीवी का प्रसारण कर रहे केबल आपरेटर एमएसओ व एलसीओ केबल टीवी नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत अपना पंजीकरण करवाना सुनिश्चित करें ताकि प्रदेश के लाखों केबल टीवी उपभोक्ताओं को सेट टॉप बॉक्स के माध्यम से डिजिटल प्रसारण की सुविधा समयानुसार सुनिश्चित हो सके। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा निर्धारित तिथि 31 दिसम्बर, 2015 के बाद प्रदेश के इन सभी 53 नगरीय क्षेत्रों में एनॉलाग केबल टीवी सेवाएं समाप्त हो जाएंगी।


 (साभार: दिव्य हिमाचल, 18 नवम्बर, 2015 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)