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Saturday, 29 December 2018

जिला रोजगार कार्यालय व कॉलेज युवाओं को रोजगार व स्वरोजगार बारे देंगे परामर्श

प्रदेश सरकार के प्रयासों से अब पढ़ाई के दौरान ही युवाओं को रोजगार बारे मिलेगी जानकारी
प्रदेश सरकार ने स्कूलों व कॉलेजों में शिक्षा ग्रहण कर रहे विद्यार्थियों को विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध रोजगार के साथ-साथ स्वरोजगार की संभावनाओं बारे जागरूक बनाने के लिए प्रदेश के जिला रोजगार कार्यालयों एवं बड़े कॉलेजों में रोजगार सैल स्थापित करने का अहम निर्णय लिया है। सरकार के इस महत्वपूर्ण निर्णय से अब युवाओं को उपलब्ध रोजगार की संभावनाओं की तलाश में इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा। वास्तव में प्रदेश व प्रदेश के बाहर उपलब्ध विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त करने तथा स्वरोजगार की संभावनाओं को लेकर युवाओं को जहां रोजगार हासिल करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है बल्कि सही जानकारी व परामर्श के अभाव में वर्षों तक बेरोजगारी का दंश भी झेलना पड़ता है। लेकिन प्रदेश के युवाओं के इस दर्द को समझते हुए मुख्य मंत्री जय राम ठाकुर ने रोजगार व स्वरोजगार के विभिन्न क्षेत्रों बारे जागरूक बनाने के लिए जिला रोजगार कार्यालयों एवं चुनिंदा महाविद्यालयों में रोजगार सैल स्थापित कर परामर्श सुविधा उपलब्ध करवाने की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए इस बारे सरकार ने आवश्यक दिशा निर्देश भी जारी कर दिए हैं। 
सरकार ने जिला स्तर पर परामर्श टीम के संचालन के साथ-साथ जिला व राज्य स्तर पर इसकी निगरानी के लिए कमेटियों का भी गठन किया गया है। जिला स्तर पर उप-मंडलाधिकारी नागरिक की अध्यक्षता में यह परामर्श टीम कार्य करेगी। इस टीम में कृषि, बागवानी, पशु पालन, पर्यटन, उद्योग, आयुर्वेद, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, परिवहन, जिला अग्रणी बैंक एवं आरसेटी, विश्वविद्यालय, औद्योगिक संगठनों, हिमाचल प्रदेश कौशल विकास निगम तथा सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग का एक-एक प्रतिनिधि शामिल रहेगा जबकि जिला रोजगार अधिकारी इस परामर्श टीम का सदस्य सचिव होगा। परामर्श टीम की निगरानी के लिए जहां जिला स्तर पर उपायुक्त की अध्यक्षता में तो वहीं राज्य स्तर पर अतिरिक्त मुख्य सचिव (श्रम एवं रोजगार) की अध्यक्षता में कमेटी कार्य करेगी। जिला स्तरीय निगरानी समिति में उपनिदेशक एवं परियोजना अधिकारी डीआरडीए, उपनिदेशक उद्योग, कृषि, बागवानी, उच्च शिक्षा, प्रारंभिक शिक्षा, जिला पर्यटन अधिकारी इसके सदस्य होंगे जबकि जिला रोजगार अधिकारी समिति के सदस्य सचिव होंगे। इसी तरह राज्य स्तरीय निगरानी समिति में प्रधान सचिव शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, पर्यटन, बागवानी, उद्योग, तकनीकी विश्व विद्यालय, बागवानी विवि, कृषि विवि व हिमाचल प्रदेश विश्व विद्यालय के कुल सचिव तथा हिमाचल प्रदेश कौशल विकास निगम के प्रबंध निदेशक सदस्य जबकि श्रमायुक्त एवं निदेशक रोजगार विभाग इसके सदस्य सचिव होंगे। 
कब और कैसे मिलेगा स्कूली व कॉलेज विद्यार्थियों को परामर्श:
परामर्श टीम के संचालन के लिए सरकार ने दिशा निर्देश जारी करते हुए बताया कि प्रत्येक माह के आखिरी शुक्रवार को 9वीं से 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों को जिला रोजगार कार्यालय जबकि प्रत्येक माह के आखिरी शनिवार को संबंधित जिला के कॉलेजों में सांय 3 से 5 बजे के दौरान परामर्श सत्र का आयोजन किया जाएगा। जिसमें विद्यार्थियों को रोजगार के साथ-साथ स्वरोजगार के विभिन्न क्षेत्रों बारे व्यापक जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी। 
सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देशों के अंतर्गत 9वीं से 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों को कला, विज्ञान तथा कॉमर्स संकाय में उपलब्ध रोजगार की संभावनाओं के साथ उपलब्ध कौशलों एवं प्रशिक्षण की जानकारी दी जाएगी। इसी तरह कॉलेज में शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थियों को अतिरिक्त कौशल सुधार के साथ-साथ विभिन्न प्रवेश परीक्षाओं, प्लेसमेंट तथा रोजगार की संभावनाओं पर परामर्श उपलब्ध करवाया जाएगा।
इसके अतिरिक्त सरकार ने इस संबंध में व्यापक प्रचार-प्रसार सुनिश्चित बनाने के लिए भी संबंधित विभागों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए हैं। 
ऐसे में निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि सरकार द्वारा स्कूली व कॉलेज विद्यार्थियों को रोजगार व स्वरोजगार के विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध संभावनाओं बारे परामर्श प्राप्त होने से जहां युवाओं को रोजगार प्राप्त करने में आसानी होगी तो वहीं स्वरोजगार को लेकर भी युवा जागरूक हो सकेंगे। साथ ही प्रदेश सरकार के इस महत्वपूर्ण कदम से युवाओं को पढ़ाई पूर्ण होते ही रोजगार की तलाश में इधर-उधर भटकने से भी निजात मिलेगी।
क्या कहते हैं अधिकारी:
इस बारे उपायुक्त ऊना राकेश कुमार प्रजापति का कहना है कि सरकार की ओर से स्कूली व कॉलेज विद्यार्थियों को रोजगार व स्वरोजगार हेतु रोजगार सैल के माध्यम से परामर्श देने के लिए दिशा-निर्देश प्राप्त हुए हैं तथा जिला में संबंधित विभागों के माध्यम से इस पर जल्द ही अमल किया जाएगा।





(साभार: पंजाब केसरी, दिव्य हिमाचल, दैनिक जागरण, दैनिक सवेरा टाईम्स, आपका फैसला, अजीत समाचार, 29 दिसम्बर, 2018 में प्रकाशित)

Saturday, 15 December 2018

उद्योगों में कार्यरत हिमाचली कामगारों को भी अब मिलेगा कौशल विकास भत्ता

सरकार ने जारी की अधिसूचना, सामान्य को एक हजार तथा दिव्यांगजनों को मिलेगें 1500 रूपये प्रतिमाह
प्रदेश के उद्योगों में कार्यरत हिमाचली कामगारों को उनके कौशल विकास में वृद्धि के लिए सरकार ने औद्योगिक कौशल विकास भत्ता योजना-2018 को अधिसूचित कर दिया है। इस योजना के माध्यम से प्रदेश के रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत तथा उद्योगों में 15 हजार रूपये प्रतिमाह या इससे कम वेतन पाने वाले सामान्य कामगारों को एक हजार रूपये जबकि 50 प्रतिशत दिव्यांगता वालों को 15 सौ रूपये प्रतिमाह की दर से अधिकत्तम 24 माह के लिए कौशल विकास भत्ता प्रदान किया जाएगा। प्रदेश सरकार का इस योजना को लागू करने का प्रमुख उद्देश्य जहां उद्योगों में कार्यरत हिमाचली युवाओं के कौशल में वृद्धि करना है तो वहीं रोजगार के बेहतर अवसरों के लिए भी उन्हे तैयार करना है। 
मुख्य मंत्री जय राम ठाकुर ने अपने पहले बजटीय भाषण में इस योजना का विशेष जिक्र किया था तथा प्रदेश में कौशल विकास भत्ता योजना के लिए बजट में 100 करोड रूपये का प्रावधान किया है। सरकार ने अपने बजटीय घोषणा को अमलीजामा पहनाते हुए इस योजना को लागू कर दिया है। इस योजना के माध्यम से अब प्रदेश सरकार उद्योगों में कार्यरत होने वाले हिमाचली युवाओं को जहां कौशल विकास के लिए प्रतिमाह एक हजार से 15 सौ रूपये भत्ता प्रदान करेगी बल्कि प्रदेश के युवा अपने कौशल में वृद्धि कर बेहतर रोजगार के अवसर भी तलाश पाएंगे।
किन्हे मिलेगा इस योजना का लाभ:
इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए योजना के अधिसूचित होने की तारीख के बाद फैक्टरी अधिनियम-1948 के अंतर्गत पंजीकृत औद्योगिक इकाईयों में 18 से 36 वर्ष आयु वर्ग के 15 हजार रूपये प्रतिमाह या इससे कम वेतनमान पर तैनात होने वाले हिमाचली कामगार ही पात्र होंगे। अप्रेन्टिस अधिनियम-1961 के अंतर्गत बतौर एप्रेन्टिस तैनात होने वाले प्रशिक्षु भी इस योजना के अंतर्गत लाभ प्राप्त कर सकेंगे। इसके अलावा लाभार्थी का नाम प्रदेश के रोजगार कार्यालय में आवेदन करने के समय पंजीकृत होना जरूरी है तथा इससे पहले कौशल विकास भत्ता योजना के अंतर्गत भत्ता प्राप्त न किया हो। इस योजना का लाभ अधिकत्तम 24 माह के लिए ही मिलेगा। साथ ही यदि इससे पहले कौशल विकास भत्ता योजना के तहत 24 माह से कम अवधि के लिए कौशल विकास भत्ता प्राप्त किया हो तो बचे हुए महीनों के लिए कौशल विकास भत्ता प्राप्त किया जा सकता है। इस योजना के तहत मिलने वाले भत्ते को सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में भुगतान किया जाएगा। सरकार ने इस योजना का लाभ हासिल करने के लिए कोई न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता निर्धारित नहीं की है।
किन्हे नहीं मिलेगा योजना का लाभ:
इस योजना के अंतर्गत गैर हिमाचली, जिनकी आयु 18 वर्ष से कम तथा 36 वर्ष से अधिक हो, सरकार द्वारा बर्खास्त कर्मी, 48 घंटे तक जेल में रहने वाला व्यक्ति, औद्योगिक इकाई द्वारा मुफ्त में दी जाने वाली रिहायश तथा 15 हजार रूपये से अधिक वेतमान पर तैनात कामगार इस योजना के अंतर्गत पात्र नहीं होंगे। इसके अलावा जो लोग योजना की अधिसूचना जारी होने से पूर्व औद्योगिक इकाईयों में तैनात होंगे उन्हे भी इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा। साथ ही जिन्होने पहले ही प्रदेश सरकार की कौशल विकास भत्ता योजना का लाभ प्राप्त कर लिया है वे भी इस योजना के लिए पात्र नहीं होंगे।
इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र व्यक्ति सभी औपचारिकताओं को पूर्ण कर निर्धारित प्रपत्र पर अपना आवेदन पत्र जिस रोजगार कार्यालय में नाम पंजीकृत है उसे प्रस्तुत कर सकता है। इस योजना से संबंधित अधिक जानकारी हासिल करने के लिए पात्र व्यक्ति अपने नजदीकी रोजगार कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं। 
क्या कहते हैं अधिकारी:
जिला रोजगार अधिकारी ऊना अनीता गौत्तम का कहना है कि औद्योगिक विकास भत्ता योजना-2018 को सरकार ने अधिसूचित कर दिया है तथा इस बारे सरकार से आवश्यक दिशा-निर्देश भी प्राप्त हो गए हैं। उन्होने कहा कि इस योजना के अंतर्गत पात्र हिमाचली युवा इसका लाभ उठा सकते हैं। 






(साभार: पंजाब केसरी, दिव्य हिमाचल, दैनिक जागरण, दैनिक सवेरा टाईम्स, आपका फैसला, अजीत समाचार, 15 दिसम्बर, 2018 में प्रकाशित) 

Wednesday, 12 December 2018

(आज पुरानी राहों से योजना) प्रदेश में सांस्कृतिक पर्यटन को मिलेगा बल, सांस्कृतिक धरोहर का होगा संरक्षण

सांस्कृतिक मार्गदर्शक के तौर पर स्थानीय युवाओं को मिलेंगे स्वरोजगार के अवसर 
प्रदेश की जय राम ठाकुर सरकार ने अपने पहले बजटीय भाषण में प्रदेश के अंदर सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने तथा सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण को बल देने के दृष्टिगत एक नई योजना आज पुरानी राहों से शुरू करने का ऐलान किया था। इस योजना के माध्यम से प्रदेश के प्रतिष्ठित व्यक्तियों, ऐतिहासिक घटनाओं तथा विलुप्त व अनछुई सांस्कृतिक धरोहरों व विरासतों को जहां सांस्कृतिक एवं हेरिटेज गाईड के माध्यम से लोगों को जागरूक बनाना है तो वहीं प्रदेश में सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण को भी बल दिया जाना है। 
प्रदेश सरकार ने भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग के माध्यम से आज पुरानी राहों से नामक योजना को अधिसूचित कर दिया है। इस योजना के माध्यम से हिमाचल प्रदेश की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर के अनछुए पहलुओं का संरक्षण व संवर्धन करना है तो वहीं जन मानस विशेषकर युवाओं व पर्यटकों को परिचित व जागृत करना भी है। इस योजना के राज्य स्तर पर क्रियान्वयन के लिए प्रशासनिक सचिव (भाषा, कला एवं संस्कृति) की अध्यक्षता में सांस्कृतिक परिधि समिति गठित की है तो वहीं जिला स्तर पर उपायुक्त की अध्यक्षता में यह समिति कार्य करेगी तथा जहां राज्य स्तरीय समिति में निदेशक भाषा, कला एवं संस्कृति सदस्य सचिव होंगे तो वहीं जिला स्तरीय समिति के सदस्य सचिव जिला भाषा अधिकारी को बनाया गया है। इसके अलावा 5 से 6 अन्य सदस्यों को भी समिति का सदस्य नियुक्त किया गया है। 
क्या है इस योजना का प्रमुख उद्ेश्य:
इस योजना का प्रमुख उदेश्य जहां प्रत्येक जिला में लुप्त सांस्कृतिक विरासत को पुर्नजीवित करना है तो वहीं महान व्यक्तित्व, स्मारक, जनश्रुति व पौराणिक गाथा, ललित कला हस्तशिल्प, पुरातत्व दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थानों का इतिहास, नक्शे सहित संकेतक पटिटका इत्यादि लगाना है। इसके साथ ही पर्यटन व होम स्टे योजना को प्रोन्नत करना, स्थानीय युवकों को सांस्कृतिक मार्गदर्शक का प्रशिक्षण दिलवाकर स्वरोजगार के साथ जोडऩा तथा आगंतुकों को संबंधित स्थान से जुडी विशेष वस्तुओं, कलाकृतियों, स्मारकों इत्यादि के मिनिएचराईज्ड सॉवनियर उपलब्ध करवाना भी है। 
इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए राज्य व जिला स्तर पर गठित समितियां प्राप्त सुझावों के आधार पर अपने-अपने क्षेत्रों में सांस्कृतिक परिधि का चुना करेंगीं तथा चयनित परिधियों से संबंधित तमाम जानकारी जन मानस को विभिन्न माध्यमों से उपलब्ध करवाई जाएगी। इसके लिए जहां समिति प्रदेश के कॉलेजों में इतिहास के छात्रों से लुप्त हो रही सांस्कृतिक विरासतों व धरोहरों के प्रस्ताव आमंत्रित करेगी तो वहीं सांस्कृतिक मार्गदर्शकों का चयन कर उन्हे प्रशिक्षित करवाएगी। इसके अलावा चयनित परिधि स्थलों को विकसित करने की दिशा में कार्य किया जाएगा। 
सांस्कृतिक मार्गदर्शक के तौर पर स्थानीय युवाओं को मिलेंगे स्वरोजगार के अवसर 
पर्यटकों, आगन्तुकों की सुविधा व स्थलीय यात्रा को लेकर सांस्कृतिक मार्गदर्शक नियुक्त किए जाएंगे तथा इनके माध्यम से सांस्कृतिक परिधि नक्शे उपलब्ध करवाए जाएंगे। सांस्कृतिक मार्गदर्शक नियुक्ति हेतु न्यूनतम शिक्षा 12वीं पास होगी तथा उसे प्रदेश की संस्कृति, इतिहास, पर्यटन स्थलों, भौगोलिक स्थिति तथा लोक गाथाओं का ज्ञान होना जरूरी है। चयनित मार्गदर्शकों को हिमकॉन, हिमाचल प्रदेश कौशल विकास निगम एवं इनटैच के माध्यम से प्रशिक्षण व प्रमाणिकरण किया जाएगा। 
प्रशिक्षित सांस्कृतिक मार्गदर्शक पर्यटकों व आगन्तुकों को सांस्कृतिक परिधि का भ्रमण, संबंधित इतिहास व गाथाओं इत्यादि से परिचित करवाएंगे और अपनी आजीविका कमाएंगे।
ऐसे मेें कह सकते हैं कि सरकार द्वारा शुरू की गई यह योजना जहां प्रदेश में सांस्कृतिक पर्यटन एवं सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण को बल देगी तो वहीं ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार के माध्यम से रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे।
(साभार: हिमाचल दस्तक, दिव्य हिमाचल, दैनिक सवेरा टाईम्स, अजीत समाचार, पंजाब केसरी, 26 नवम्बर, 2018 में प्रकाशित) 

Sunday, 25 November 2018

सहकारिता क्षेत्र में जिला ऊना ने दिखाई देश को राह

पूरे देश को सहकारिता की राह दिखाने के कार्य की शुरूआत हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना के गांव पंजावर ने की थी। वर्ष 1892 को पंजावर गांव में सहकारिता के क्षेत्र में एक अनूठी पहल करते हुए ठाकुर हीरा सिंह ने गांव के किसानों की भू-स्खलन की समस्या को समझते हुए पहली सहकारी सभा का गठन किया गया। इस सहकारी सभा को भारतीय पंजीकरण अधिनियम-1860 के तहत पंजीकृत किया गया। इस सहकारी सभा में प्राथमिक दौर में कुल 27 सदस्य शामिल हुए जिन्होने सहकारिता आंदोलन को आगे बढ़ाने का कार्य किया। भले ही देश में सहकारिता का अधिनियम वर्ष 1904 को अस्तित्व में आया हो लेकिन पंजावर वासियों ने इसकी शुरूआत इससे पहले ही कर दी थी। इस तरह हम कह सकते हैं कि आज सहकारिता के माध्यम से पूरी दुनिया में विकास का डंका बजाने वाले भारत वर्ष के कई राज्यों को इसकी राह सही मायनों में ऊना जिला ने ही दिखाई थी तथा पंजावर निवासी ठाकुर हीरा सिंह को देश में सहकारिता आंदोलन का जनक भी कहा जाता है। 
वर्तमान समय की बात करें तो आज पूरे देश को सहकारिता के क्षेत्र आगे बढ़ाने वाला ऊना जिला भी पीछे नहीं है। ऊना जिला ने सहकारिता के माध्यम से जहां हिमकैप्स संस्थान की स्थापना कर शिक्षा के क्षेत्र में एक अनूठा प्रयास किया है तथा इसमें सफलता भी मिली है। आज प्रदेश की 92 सहकारी सभाओं के माध्यम से जिला के हरोली उप-मंडल के गांव बढ़ेडा में हिमकैप्स नाम से इस संस्थान को सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है। इस संस्थान में नर्सिंग व वकालत जैसे पाठयक्रम सफलतापूर्वक चलाए जा रहे हैं तथा यहां से शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी देश व दुनिया में अपना नाम कमा रहे हैं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि इस तरह का प्रयास पूरे देश में केवल ऊना जिला में ही हुआ है। इसी तरह जिला की अग्रणी कृषि सेवा सहकारी सभा सीमित कोटला डोहगी ने प्रदेश के चंबा तथा धर्मशाला में क्रमश: पांच व दो मैगावॉट के जल विद्युत संयंत्रों में भी अपनी भागीदारी कर इस क्षेत्र में भी अपना परचम लहराने का प्रयास किया है।  
यही नहीं जिला में सहकारी सभाओं के माध्यम से विभिन्न विविधिकरण के कार्य भी किए जा रहे हैं तथा बाजार से कम दरों पर विभिन्न सेवाएं जैसे इलैक्ट्रॉनिक सामान, ट्रैक्टर, रोवर, सीड प्लांटर, गृह निर्माण का सामान इत्यादि उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। किसानों को खाद की सब्सिडी डीबीटी स्कीम के माध्यम से सीधे बैंक खातों में पहुंचाने के लिए देश के 19 जिला में वर्ष 2016 शुरू किए गए पायलट प्रौजेक्ट के सफलतम क्रियान्वयन में भी जिला ऊना देश के चुनिंदा जिलों में अग्रणी स्थान पर रहते हुए तय समय सीमा से पूर्व ही लक्ष्य को हासिल कर लिया गया। 
जिला में 377 सहकारी सभाएं कार्यरत तथा 43 प्रतिशत आबादी सहकारिता से जुड़ी
जिला में 377 सहकारी सभाओं के माध्यम से कुल 2 लाख 24 हजार 802 लोग बतौर सदस्य जुड़े हुए हैं, जो जिला की कुल जनसंख्या का लगभग 43 प्रतिशत है। जिला में कार्यरत 377 सहकारी सभाओं में 219 कृषि सेवा सहकारी सभाएं, 29 ऋण व बचत सहकारी सभाएं, आठ बहुउदेश्यीय सहकारी सभाएं, 21 दुग्ध, 11 परिवहन तथा 16 अन्य प्रकार की सहकारी सभाएं शामिल हैं। जिला में सहकारी सभाओं की कुल कार्यशील पूंजी लगभग 1883 करोड़ रूपये से अधिक है। वर्ष 2017-18 के दौरान जिला में सहकारी सभाओं के माध्यम से लगभग 3.04 अरब रूपये बतौर ऋण सदस्यों को जारी किया गया जबकि वर्ष के अंत तक लगभग 4.83 अरब रूपये बतौर ऋण शेष हैं। इसके अलावा सहकारी सभाओं के माध्यम से कुल लगभग 88.61 करोड़ रूपये भागधन एवं 1.10 अरब रूपये की अमानतें जमा करवाकर सदस्यों ने सहकारिता के प्रति अपने विश्वास का परिचय दिया है। 
क्या कहते हैं अधिकारी
सहायक पंजीयक सहकारी सभाएं ऊना सुरेंद्र वर्मा का कहना है कि विभाग के माध्यम से सहकारी सभाओं को मजबूत बनाने के दृष्टिगत संचालन मंडलों, कर्मचारी वर्ग व सदस्यों के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण शिविर लगाए जाते हैं तथा चालू वित्त वर्ष में अबत क ऐेसे कुल 58 प्रशिक्षण शिविर लगाए जा चुक हैं जिनके माध्यम से 2548 लाभार्थी लाभान्वित हुए हैं। इसके अलावा विशेष घटक योजना के माध्यम से सहकारी सभाओं को कार्यशील पूंजी, कार्यभागधन तथा सदस्यों की भर्ती के आधार पर आर्थिक सहायता भी उपलब्ध करवाई जाती है। 
उन्होने बताया कि सहकारी सभाओं के सचिवों को ऑडिट संबधी 4 माह का प्रशिक्षण मशोबरा एवं गरली के अलावा क्षेत्रीय सहकारी संस्थान चंडीगढ़ के माध्यम से करवाया जाता है। उन्होने बताया कि सहकारी सभाओं को लेकर आने वाली शिकायतों की जांच भी विभाग द्वारा की जाती है। उन्होने कहा कि विभाग सहकारी सभाओं को विभिन्न विविधिकरण गतिविधियों को लेकर पर भी लगातार प्रेरित करने का कार्य करता रहता है ताकि सहकारी सभाओं के कार्य क्षेत्र का विस्तार हो सके। 

Thursday, 18 October 2018

नशाखोरी के खिलाफ समाज का प्रत्येक व्यक्ति आगे आए

हमारे समाज में नशे के फैलते जहर से न केवल हमारा पारिवारिक व समाजिक ढ़ांचा प्रभावित हो रहा है बल्कि इसकी चपेट में आकर हमारी नौजवान पीढ़ी आए दिन तबाह हो रही है। आज हमारे समाज में न जाने ऐसे कितने परिवार हैं जहां इस नशीले जहर ने किसी का भाई, किसी का बेटा तो किसी का पति असमय की जीवन के गर्त में धकेल दिया। यही नहीं ऐसे न जाने कितने परिवार होगें जिनके लिए मादक द्रव्यों एवं पदार्थों का यह काला कारोबार जीते जी मौत का कुंआ साबित हो रहा है। कितने ऐसे परिवार हैं जिनके लिए नशे का यह जहर परिवार की आर्थिकी को तबाह कर कंगाली के स्तर पर ले गया है।
लेकिन अब प्रश्न यह खड़ा हो रहा है कि आखिर नशीले पदार्थों का यह जहरीला कारोबार करने वाले कौन हैं? क्या हमारा समाज ऐसे लोगों के आगे बौना साबित हो रहा है? या फिर नशे का काला कारोबार करने वालों के खिलाफ हमारा समाज लडऩे की पहल ही नहीं कर पा रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं हम हर समस्या के समाधान की तरह नशे की इस सामाजिक बुराई को लेकर भी हल केवल सरकारी चौखट में ही ढूूंढ़ रहे हैं। लेकिन अब वक्त आ गया है कि नशे की इस बुराई को लेकर समाज के हर वर्ग, हर परिवार यहां तक की हर व्यक्ति को पहल करनी होगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी इस सामाजिक व्यवस्था में ऐसी कोई भी समस्या नहीं है जिसका हम मुकाबला नहीं कर सकते हैं। लेकिन जरूरत है नशे व नशीले पदार्थों के विरूद्ध एक सकारात्मक पहल करने की। जरूरत है ऐसे लोगों को बेनकाब करने की जो इस काले कारोबार में सैंकड़ों नहीं बल्कि हजारों युवाओं की हंसती खेलती जिंदगी को तबाह कर रहे हैं।
 हम यहां यह क्यों भूल रहे हैं कि नशे का यह जहरीला कारोबार करने वाले कोई ओर नहीं बल्कि हमारे ही समाज के वे चंद लोग हैं जो कुछ रूपयों की खातिर हंसते खेलते परिवारों में नशे का यह जहरीला दंश देकर तबाही का मंजर लिख रहे हैं। लेकिन हैरत कि हम ऐसे लोगों के विरूद्ध लडऩे की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं। जिसका नतीजा है कि आए दिन अफीम, चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर, भुक्की इत्यादि जैसे घातक मादक द्रव्यों एवं पदार्थों का काला कारोबार करने वाले हमारे पड़ोस में आकर दस्तक देकर नितदिन एक नई जिंदगी को तबाह कर रहे हैं। हमें केवल व्यवस्था को कोसते रहना या फिर समस्या के कारणों के लिए दूसरों के ऊपर दोषारोपण करने के बजाए इसे समाज से उखाड फैंकने के लिए मिलकर प्रयास करने होगें। हमें इस सामाजिक समस्या के समाधान के लिए स्वयं से पहल करते हुए अपने परिवार व आसपास के समाज में जागरूकता फैलाकर जहां नशे के इस जहर से लोगों विशेषकर युवाओं को बचाना होगा तो वहीं नशीले पदार्थों के काले कारनामे वालों का पर्दाफाश 
भी करना होगा।
हमारे समाज के लिए यह एक सुखद पहल ही कही जाएगी कि इस नशे के जहरीले दंश से समाज को बचाने के लिए हमारी सरकार एक संवेदनशीलता का परिचय देते हुए स्वयं आगे आई है। हिमाचल सरकार ने युवाओं को नशे के इस दल-दल से दूर रखने तथा नशे का अवैध कारोबार करने वालों के खिलाफ एक सख्त अभियान चलाने का निर्णय लिया है। लेकिन यहां हमें यह नहीं भूलना होगा कि सरकारी स्तर पर किसी भी समस्या के समाधान को लेकर उठाए गए पग बिना सामाजिक सहभागिता से न केवल अपने लक्ष्यों से दूर होते नजर आते हैं बल्कि ऐसे अभियानों का उदेश्य भी सफल नहीं हो पाता है। ऐसे में आए दिन नशे के जहरीले दंश में तबाह हो रही हर एक जिंदगी को बचाने के लिए सरकारी व्यवस्था के साथ-साथ समाज को भी गंभीरता से आगे आना होगा। सरकारी-सामाजिक भागीदारी से प्रदेश में एक ऐसा माहौल खडा करने की जरूरत है कि जहरीले पदार्थों का अवैध कारोबार करने वाले न केवल भाग खडे हों बल्कि इस जहर को प्रदेश में लाती बार उन्हे दहशत का एहसास होना चाहिए। 
नशे के दंश से समाज को बचाने के लिए हमें न केवल अपने परिवार व आस पड़ोस से शुरूआत करनी होगी बल्कि ग्रामीण स्तर पर युवक व महिला मंडल, पंचायती राज संस्थाएं, स्वयं सहायता समूहों के अलावा गैर सरकारी समाजाकि संस्थाएं अहम भूमिका निभा सकती हैं। इसके अलावा इस बुराई के खिलाफ सबसे अधिक अहम रोल अदा कर सकती हैं तो वह है हमारे अध्यापक एवं शिक्षण संस्थाएं। हमें शैक्षणिक संस्थानों के भीतर भी एक ऐसा नेटवर्क विकसित करने की जरूरत है ताकि कोई भी बच्चा या युवा नशे के इस जाल में फंसता नजर आता है तो हमें युवा को तो बचाना ही है लेकिन उस नेटवर्क को भी ध्वस्त करने की जरूरत होगी जिनकी बदौलत यह काला कारोबार समाज के साथ-साथ शिक्षण संस्थानों के दरवाजे पर दस्तक देता है।  
लेकिन अब प्रश्न यह उठ रहा है कि सरकार द्वारा नशे के खिलाफ समय-समय पर चलने वाले ऐसे अभियानों का लक्ष्य महज दायित्व निर्वहन तक ही सीमित नहीं होना चाहिए बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को नशे के विरूद्ध एक जंग छेडकर सरकार को अपना साकारात्मक योगदान देना होगा। हमें यहां यह नहीं भूलना चाहिए नशे के जहरीले दंश से भले आज हमारे पडोस या समाज का युवा व उसका परिवार भेंट चढ़ गया लेकिन समय रहते नहीं जागे तो हो सकता है अगला शिकार कोई आपका अपना सगा संबंधी या परिवार का ही सदस्य हो। ऐसे में आओ हम सब नशे के जहरीले दंश के खिलाफ अपने सामाजिक दायित्वों व कत्र्तव्यों का निर्वहन करते हुए इसे समाज से पूरी तरह से उखाड फैंकने में अपना सकारात्मक सहयोग दें।

 (साभार: आपका फैसला, 16 अक्तूबर, 2018 के संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित) 

Monday, 8 October 2018

स्वाधीनता आंदोलन में गांधी सेवा आश्रम ओयल की भूमिका

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में हिमाचल प्रदेश सहित ऊना जिला के अनेक स्वतंत्रता आंदोलनकारियों ने अपनी अहम भूमिका निभाई। इसी स्वाधीनता आंदोलन को आगे बढ़ाते हुए एक अक्तूबर, 1935 को ऊना के तीर्थ राम ओयल ने गांधी जी व पंजाब के नेता डॉ0 गोपी चंद भार्गव के अशीर्वाद और सहयोग से अपने गांव ओयल में गांधी सेवा आश्रम ओयल की स्थापना की। इस स्थापना समारोह में लगभग एक हजार लोगों ने भाग लिया और आजादी की लड़ाई की ज्योति को घर-घर तक पहुंचाने का संकल्प लिया।

23 जुलाई, 1939 को ऊना के ओयल गांव में पंजाब के कांग्रेस नेता डॉ0 गोपी चंद भार्गव ने गांधी सेवा आश्रम ओयल का विधिवत उद्घाटन किया और सरदार हजारा सिंह ने कौमी तिरंगा फहराने की रस्म अदा की। ओयल गांव के महाशय तीर्थ राम को आश्रम का चीफ ऑर्गेनाइजर नियुक्त किया गया। इस मौके पर हजारों लोगों ने डॉ0 गोपी चंद भार्गव के विचार सुने और गांधी जी के अहिंसात्मक राष्ट्रीय आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लेने की प्रतिज्ञा की। आश्रम को कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं के प्रशिक्षण का केंद्र बनाया गया। दिल्ली, पंजाब और पहाडी रियासतों के कार्यकत्र्ता यहां आकर गांधीवादी आंदोलन की शिक्षा ग्रहण करने लगे। डॉ0 गोपी चंद भार्गव ने आश्रम के आर्थिक प्रबंध का बीड़ा उठाया और ऊना के आत्मा राम और जगत राम को आश्रम के लंगर का प्रबंधक बनाया गया।

15 जनवरी, 1940 को सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय जनता से अंग्रेजों को महायुद्ध में सहयोग न देने की अपील की तथा 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस को बडे धूमधाम से मनाने का आग्रह किया। 26 जनवरी, 1940 को ओयल गांव में गांधी सेवा आश्रम में भी ध्वजारोहण समारोह बडी धूमधाम के साथ आयोजित किया गया।
मार्च, 1940 में महात्मा गांधी ने अपने रचनात्मक कार्यक्रमों को छोडक़र फिर से भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व संभाला तथा दूसरे विश्व युद्ध से उत्पन्न विकट एवं विचित्र परिस्थितियों के कारण गांधी जी ने आंदोलन के मार्गदर्शन का बीडा उठाया। इसी काल में उन्होने अपनी शिष्या मीरा बेन को गांधी सेवा आश्रम ओयल, ऊना भेजा तथा आश्रम के कार्यकत्र्ताओं के प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन का कार्य सौंपा।

मीरा बेन एक ब्रिटिश एडमिरल की सुपुत्री थी और उनका असली नाम मिस सालडे था। मिस सालडे ने गांधी जी की शिष्या बनकर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऊना में आकर मीरा बेन ने ओयल आश्रम के प्रशिक्षणार्थियों को गांधीवादी आंदोलन की शिक्षा दी और आंदोलनकारियों का पथ-प्रदर्शन किया। इस दौरान एक अलग कुटिया में रहकर मीरा बेन ने ऊना, देहरा, अंब और गगरेट के गांवों में जाकर आम प्रजा तक गांधी जी का संदेश पहुंचाया।
वर्ष, 1942 में भारत छोडो आंदोलन के दौरान भी गांधी सेवा आश्रम ओयल में आंदोलन का कार्यक्रम स्वयं महाशय तीर्थ राम ने बनाया और इश्तिहार और नोटिस के माध्यम से सारे शहर में गांधी जी के करो या मरो आंदोलन का संदेश जनता तक पहुंचाया। इसी दौरान 18 अगस्त, 1942 को चिंतपूर्णी मेले के दौरान महाशय तीर्थ राम सहित अन्य कार्यकत्र्ताओं पं0 हंस राज ओयल, जगदीश राम ओयल, हरी सिंह ओयल, धनी राम अकरोट, जुलफी राम अकरोट आदि ने गांधी जी के करो या मरो के संदेश को चिंतपूर्णी मेले में आए लाखों लोगों तक पहुंचाया गया। इसी बीच इन सबको पकड लिया गया और गिरफ्तार कर थाना अंब की जेल में डाल दिया गया। इस मामले में महाशय तीर्थ राम को दो वर्ष, हंस राज को एक वर्ष, लक्षमण दास चौधरी को एक वर्ष तथा अन्य आंदोलनकारियों को तीन-तीन माह कड़े कारावास की सजा मिली। इस बीच महाशय तीर्थ राम, हंस राज और लक्षमण दास को मुल्तान जेल भेज दिया गया। ओयल आश्रम के शेष 16-17 कार्यकत्र्ता भूमिगत होकर आंदोलन का प्रचार करते रहे। इनमें जगदीश चंद्र रायपुर, प्रीतम सिंह बनवासी और एक बंगाली बाबू ने आश्रम का कार्यभार सम्भाला और जनता का मार्ग-दर्शन किया।

आजादी के बाद गांधी सेवा आश्रम ओयल का संचालन महाशय तीर्थ राम करते रहे तथा इस आश्रम में लोगों को आजीविका चलाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। जिसके अंतर्गत यहां कपडा़, बाण, कागज, साबुन, कोल्हू जैसे अनेक लघु उद्योगों को चलाने की कवायद शुरू की गई, लेकिन धीरे-धीरे ऐसे सभी लघु उद्योगों का कारोबार बंद होता चला गया।
वर्ष 2007 में महाशय तीर्थ राम की मृत्यु के बाद आश्रम की स्थिति बदहाल होती गई है तथा वर्तमान में आश्रम में रखी कई अमूल्य धरोहर एवं दुर्लभ चित्र भी खराब हो गए हैं। उचित देखरेख न होने के चलते हमारी या अमूल्य धरोहर खंडहर में तबदील होती जा रही है। वर्तमान में आश्रम के भीतर जहां महात्मा गांधी व नेता जी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमाएं स्थापित हैं तो वहीं महाशय तीर्थ राम की मृत्यु के बाद उनकी भी प्रतिमा स्थापित की गई है, लेकिन उचित देख-रेख व साफ-सफाई के अभाव में ये प्रतिमाएं भी धूल-मिटटी से भरी पडी हैं।
स्वतंत्रता आंदोलन की शरणास्थली के रूप में अहम भूमिका निभाने वाले गांधी सेवा आश्रम ओयल के जीर्णोद्धार एवं इसके रख रखाव को लेकर लोग सरकार से उचित कदम उठाने की मांग कर रहे हैं ताकि हमारे स्वतंत्रता आंदोलनकारियों की यह शरणास्थली हमारी आने वाली पीढिय़ों को भी स्वतंत्रता आंदोलन का संदेश देती रहे।

 (साभार: आपका फैसला, 2 अक्तूबर, 2018 के संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित) 


Tuesday, 18 September 2018

ऊना उत्कर्ष से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान होगा अधिक प्रबल

भारत वर्ष की जनगणना-2011 के आंकडों के आधार पर पूरे देश में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति हजार लडक़ों के मुकाबले लड़कियों के लिंगानुपात में कमी दर्ज हुई है। आंकडों के अनुसार यह लिंगानुपात वर्ष 1961 में 976 से वर्ष 2011 में 918 तक पहुंच गया है जो कि अब तक हुई जनगणनाओं में सबसे कम आंका गया है। ऐसे में समाज में बेटियों के प्रति नजरिए में आए बदलाव तथा भ्रूण में ही कन्याओं की बढ़ती हत्यों के प्रति व्यापक जन जागरूकता लाने के लिए प्रथम चरण में पूरे देश के सबसे प्रभावित चुनिंदा 100 जिलों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत से आरंभ किया। इस अभियान के तहत ऊना जिला को भी शामिल किया गया है जहां पर यह लिंगानुपात 875 दर्ज हुआ था। 
जिला ऊना में गत तीन वर्षों के दौरान इस अभियान के माध्यम से जिला प्रशासन द्वारा लगातार अनेक कदम उठाए जाते रहे हैं जिसके परिणाम स्वरूप आज जिला का 0-6 वर्ष आयु वर्ग का कन्या शिशु लिंगानुपात 875 से बढक़र 915 तक पहुंचा है। लेकिन जिला प्रशासन जहां ऊना में कन्या शिशु लिंगानुपात को प्रतिहजार लडकों के पीछे 950 तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है तो वहीं बेटियों के प्रति समाज में व्याप्त नकारात्मक सोच को बदलने के लिए ऊना उत्कर्ष के माध्यम से तीन नई योजनाओं को शुरू किया है। जिनका प्रमुख लक्ष्य जहां बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को प्रबल व गतिशील बनाना है तो वहीं जिला की बेटियों व उनके माता-पिता को सम्मानित भी करना है। साथ ही जिला की बेटियों को शिक्षा के साथ-साथ समाज में प्रोत्साहित करने, बेटियों को जीवन में सक्षम बनाने तथा भविष्य उज्ज्वल हो इस दिशा में मदद का हाथ भी बढ़ाना है।
उपायुक्त राकेश कुमार प्रजापति का कहना है कि ऊना उत्कर्ष के माध्यम से बेटियों के प्रति समाज की सोच में बदलाव लाने को तीन प्रमुख कार्य किए जाएंगे। जिनमें सर्वप्रथम बेटियों वाले परिवारों के माता-पिता को उपायुक्त कार्ड देकर जहां सम्मानित करना है तो वहीं इस कार्ड के माध्यम से सरकारी कार्यालयों, अस्पतालों इत्यादि में सरकारी सेवाओं को प्राथमिकता के आधार पर उपलब्ध करवाना है ताकि बेटी परिवार का गौरव बन सके। दूसरा प्रयास जन भागीदारी के माध्यम से जहां दुकानों व व्यापारिक प्रतिष्ठानों का नामकरण बेटियों के नाम पर करना व उन्हे 21 सौ रूपये की प्रोत्साहन राशि भी प्रदान करना है ताकि जिला में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के प्रचार-प्रसार को एक जन आंदोलन बनाया जा सके।
इसी कडी में तीसरा प्रयास जिला में पैदा होने वाली बेटियों के जन्म को एक उत्सव के रूप में मनाना है। इसके लिए जिला की वे पंचायतें पात्र होंगी जहां वर्ष 2017-18 के आंकडों के आधार पर कन्या लिंगानुपात 800 से कम है तथा ग्राम पंचायत इस आशय का प्रस्ताव पारित करेंगी कि वह अपने क्षेत्र में कन्या भ्रूण हत्या नहीं होने देंगे तथा समस्त घरों के बाहर महिला सदस्य के नाम का बोर्ड लगवाना सुनिश्चित करेंगे। इस प्रयास के माध्यम से चिंतपूर्णी मंदिर न्यास के सौजन्य से पहली बेटी के जन्म पर 11 हजार, दूसरी बेटी के जन्म पर 21 हजार तथा तीसरी बेटी के जन्म पर 51 हजार रूपये की राशि प्रदान की जाएगी। इस योजना का लाभ इसके लागू होने की तिथि के उपरान्त पैदा होने वाली बेटियों को दिया जाएगा। साथ ही बेटी का विवाह परिवार के लिए बोझ न बने इस नकारात्मक दृष्टिकोण को समाप्त करने के लिए बेटी के विवाह पर उपहार स्वरूप 51 हजार रूपये की राशि उन पंचायतों में प्रदान की जाएंगी जिनमें वर्ष 2017-18 के दौरान कन्या लिंगानुपात की दर 950 से अधिक रही है।
इसके अलावा जिला में दसवीं व 12वीं कक्षाओं के कला, विज्ञान तथा वाणिज्य संकायों में बेहतर प्रदर्शन करने वाली पहली 10 बेटियों को 21-21 हजार रूपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान कर सम्मानित किया जाएगा। साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रमाणित पहले 100 रैंक वाले विश्व विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में अध्ययन कर रही जिला की बेटियों का पूरा खर्चा भी जिला प्रशासन द्वारा वहन किया जाएगा। जिन बेटियों ने 12वीं कक्षा के बाद परिवार की तंग आर्थिकी के कारण आगे दाखिला नहीं लिया है, जिला प्रशासन द्वारा सरकारी महाविद्यालयों में पुन: दाखिला लेने के लिए पांच हजार रूपये की राशि एक मुश्त प्रदान की जाएगी। साथ ही जिला में खंड स्तर पर लगने वाले नि:शुल्क विशेषज्ञ चिकित्सा शिविरों में जिला की 0-18 वर्ष आयु वर्ग की बेटियों की नि:शुल्क चिकित्सा जांच भी की जाएगी।
इस तरह ऊना जिला प्रशासन द्वारा बेटियों को समाज में स्थापित करने, सक्षम बनाने तथा लोगों में व्याप्त नकारात्मक सोच को बदलने के लिए ऊना उत्कर्ष के माध्यम से यह महत्वपूर्ण पहल निश्चित तौर जहां समाज में बेेटियों के कारण हाशिए पर गए परिवारों को समाज में गौरवान्ति होने का एक अवसर प्रदान करेगी बल्कि बेटी का माता-पिता होना गौरव की बात भी बनेगा। साथ ही बेटी परिवार व क्षेत्र में सरकार की मूलभूत सुविधाओं में सुधार लाने का भी कारण बने इस दिशा में भी जिला प्रशसान की यह अनूठी पहल निश्चित तौर पर सफल होगी।

(साभार: आपका फैसला 17 सितम्बर, 2018 के संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Friday, 3 August 2018

स्वरोजगार योजनाओं से जुडक़र बेरोजगार युवा मजबूत करें आर्थिकी

हिमाचल प्रदेश सरकार ने बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार योजनाओं के माध्यम से स्वावलंबी बनाने को कई योजनाओं एवं कार्यक्रमों की शुरूआत की है। इन योजनाओं के माध्यम से युवा न केवल स्वयं के लिए रोजगार के साधन सृजित कर सकते हैं बल्कि दूसरों को भी रोजगार के अवसर उपलब्ध करवा सकते हैं। कहने का अर्थ है युवाओं को सरकारी नौकरियों के पीछे भागने के बजाए उद्यमिता को अपनाकर अपने व दूसरे के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने वालों की श्रेणी में खड़ा होना चाहिए।   
युवाओं को अपने पैरों पर खडा करने के लिए प्रदेश सरकार ने मुख्य मंत्री स्वावलंबन योजना, खाद्य प्रसंस्करण आधारित स्टेट मिशन तथा मुख्य मंत्री स्टार्ट अप जैसी अनेक योजनाओं को शुरू किया है। मुख्य मंत्री स्वाबलंबन योजना की बात करें तो इस योजना का लाभ उठाकार प्रदेश के 18 से 35 वर्ष आयु वर्ग के युवा उद्यम इत्यादि स्थापित कर रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं। इस योजना के माध्यम से बेरोजगार युवा नए उद्योग एवं सेवा इकाई में लगने वाली मशीनरी या अन्य उपकरण पर 40 लाख रूपये के निवेश तक 25 प्रतिशत की दर से अनुदान जबकि महिला उद्यमियों के लिए यह अनुदान की दर 35 प्रतिशत तक है। इसके अलावा बैंक ऋण पर पांच प्रतिशत की दर से ब्याज अनुदान, सी श्रेणी के औद्योगिक क्षेत्रों में प्लाट आवंटन की दरों में 25 प्रतिशत तक की छूट तथा अनुमोदित उद्योगों को निजी भूमि की लीज पर तीन प्रतिशत की दर से स्टांप डयूटी का प्रावधान किया गया है। सरकार ने इस योजना के लिए बजट में 80 करोड रूपये का प्रावधान किया गया है। 
इसके साथ ही सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण आधारित स्टेट मिशन की भी शुरूआत की है। इस योजना के माध्यम से खाद्य प्रसंस्करण से जुडी इकाई स्थापित एवं अपग्रेड करने पर प्लांट की कुल लागत व मशीनरी पर 33.33 प्रतिशत तक अनुदान जबकि तकनीकी सिविल कार्य के लिए अधिकत्तम 75 लाख रूपये तक का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा कोल्ड स्टोर व कोल्ड चेन स्थापित करने के लिए सरकार इकाई की कुल लागत का 50 प्रतिशत तक का अनुदान तथा इकाई निर्माण के दौरान अधिकत्तम पांच करोड रूपये तक का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा इसी योजना के अंतर्गत प्राथमिक प्रसंस्करण केंद्र या संग्रहण केंद्र की स्थापना पर परियोजना की कुल लागत का 75 प्रतिशत जो अधिकत्तम अढ़ाई करोड़ रूपये तक हो सकता है का भी प्रावधान किया गया है। साथ ही मीट की दुकान के आधुनिकीकरण के लिए मशीनरी इत्यादि पर 75 प्रतिशत तथा तकनीकी सिविल कार्य के लिए अधिकत्तम पांच लाख रूपये तक की आर्थिक सहायता का प्रावधान है जबकि रीफीर व प्री मोबाइल कूलिंग वाहन खरीदने के लिए 50 प्रतिशत या अधिकत्तम 50 लाख रूपये तक का प्रावधान किया गया है। इस योजना के लिए सरकार ने बजट में 10 करोड रूपये का प्रावधान किया है।  
इसी तरह प्रधान मंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के अंतर्गत 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोग नई औद्योगिक इकाई में 25 लाख तक जबकि सेवा इकाई मेें 10 लाख रूपये तक के निवेश पर ग्रामीण क्षेत्रों में 25 प्रतिशत की दर से तथा शहरी क्षेत्रों में 15 प्रतिशत की दर से अनुदान जबकि महिला, अनुसूचित जाति एवं जनजाति, अल्प संख्यक, भूतपूर्व सैनिकों तथा दिव्यांगों के लिए 35 प्रतिशत की दर से अनुदान मुहैया करवाया जाता है। इस योजना के तहत 10 लाख रूपये से ऊपर औद्योगिक इकाई तथा पांच लाख रूपये से ऊपर सेवा इकाई की स्थापना के लिए आवेदक का आठवीं पास होना अनिवार्य है तथा यह सहायता केवल नई इकाई की स्थापना के लिए मुहैया करवाई जाती है।
साथ ही सरकार ने नवाचार एवं स्वरोजगार के लिए महत्वकांक्षी मुख्य मंत्री स्टार्ट अप योजना भी शुरू की गई है। इस योजना के अंतर्गत रचनात्मक तथा नवाचार परियोजना के लिए 25 हजार रूपये प्रतिमाह की दर से एक वर्ष के लिए छात्रवृति, परियोजना, उत्पाद के वितरण तथा बाजारीकरण के लिए 10 लाख तथा पेटेंट आवेदन के लिए दो लाख रूपये तक की सहायता दी जाती है। इसी तरह नए उद्योगों के लिए 25 लाख रूपये तक के ऋण पर पांच प्रतिशत की दर से ऋण अनुदान, औद्योगिक प्लाटों की दरों में 50 प्रतिशत की छूट, नई औद्योगिक इकाई के लिए तीन प्रतिशत की दर से स्टांप डयूटी तथा स्व-प्रमाणीकरण को मान्यता एवं तीन वर्ष तक विभिन्न विभागीय निरीक्षणों से छूट दी जाती है। 
इसके अलावा सरकार ने स्वरोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने तथा स्थानीय उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए 18 से 40 वर्ष आयु वर्ग के स्थानीय युवाओं को आजीविका प्रदान हेतु मुख्य मंत्री युवा आजीविका योजना को भी प्रारंभ करने का निर्णय लिया है। इस योजना के अंतर्गत अधिकत्तम 30 लाख निवेश पर पुरूष उम्मीदवारों को 25 प्रतिशत तथा महिलाओं को 30 प्रतिशत उपदान का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा पहले वर्ष ब्याज पर आठ प्रतिशत अनुदान तथा अगले वर्षों के लिए दो प्रतिशत कम ब्याज पर अनुदान दिया जाएगा। 
इस तरह प्रदेश सरकार ने वर्षों सरकारी नौकरी की चाहत में समय बर्बाद करने के बजाए युवा सीधे अपने पांव पर खडे होकर आर्थिक व सामाजिक तौर पर सशक्त बनें इस दिशा में आगे बढऩे के लिए प्रगति के द्वार खोल दिए हैं। युवाओं के स्वरोजगार अपनाने की ओर उठाए गए थोडे से साहस से वे न केवल स्वयं बल्कि आसपास के दूसरे युवाओं को भी रोजगार के अवसर पैदा करने वाली की श्रेणी में खडे हो सकते हैं। ऐसे में बस जरूरत है तो प्रदेश के शिक्षित युवाओं को थोडी हिम्मत बांधकर स्वरोजगार की ओर मन लगाकर कदम बढ़ाने की। 

  (साभार: आपका फैसला 30 जुलाई, 2018 एवं दिव्य हिमाचल 2 अगस्त, 2018 के संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Friday, 13 July 2018

जन मंच कार्यक्रम बना आम आदमी की सशक्त आवाज

हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा प्रत्येक माह के पहले रविवार को जन मंच कार्यक्रम की शुरूआत की है। प्रदेश में अब तक सभी जिलों में दो-दो जन मंच कार्यक्रम सफलता पूर्वक आयोजित किए जा चुके हैं। प्रदेश भर में हजारों लोग अपनी छोटी-छोटी समस्याओं के निपटारे के लिए जन मंच कार्यक्रमों में पहुंच रहे हैं। जन मंच में जहां लोग पेयजल, बिजली, सडक़, रास्तों व गलियों के निर्माण, गंदे पानी की निकासी, अवैध कब्जों, मकान बनाने एवं बीमारी के ईलाज इत्यादि के लिए आर्थिक सहायता, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, राशन कार्ड जैसे मामले उठा रहे हैं तो वहीं स्कूलों, स्वास्थ्य संस्थानों, सरकारी कार्यालयों इत्यादि में रिक्त पदों एवं मूलभूत सुविधाओं का मामला भी रखा जा रहा है। कहने को तो ये लोगों की छोटी-छोटी समस्याएं हो सकती हैं लेकिन वास्तव में प्रदेश के गरीब, पिछडे तथा आम आदमी के लिए इन समस्याओं का समाधान उनके लिए सरकार की किसी बडी सौगात से कम नहीं कहा जा सकता है। ऐसे में यदि ये समस्याएं सरकार के किसी बड़े मंत्री की उपस्थिति में बड़े अधिकारियों द्वारा मौके पर ही निपटा ली जाएं तो सच में गरीब व आम आदमी के लिए लोकतंत्र में सरकार होने का सपना एवं उसके मायने वास्तविकता के धरातल में साकार होते नजर आते हैं। 
प्रदेश के युवा एवं मिलनसार व्यक्तित्व के धनी मुख्य मंत्री जय राम ठाकुर ने 26 मई को शिमला से जन मंच कार्यक्रम की शुरूआत की थी। इस कार्यक्रम को शुरू करने का प्रमुख उदेश्य भी जहां सरकार की पहुंच आम आदमी तक आसानी से ले जाना है तो वहीं लोगों के घर-द्वार के समीप समस्याओं का समयबद्ध व त्वरित निपटारा सुनिश्चित बनाना है। ऐसा भी नहीं है कि प्रदेश में इस तरह के प्रयास पहले नहीं हुए हैं। प्रदेश में समय-समय पर सत्तासीन रही सरकारों ने लोगों की समस्याओं का उनके घर-द्वार निपटारे के लिए कभी प्रशासन जनता के द्वार तो कभी सरकार आपके द्वार जैसे अनेक कार्यक्रम होते रहे हैं। लेकिन इन सबसे आगे बढक़र जन मंच एक ऐसा सरकारी कार्यक्रम आम आदमी की आवाज बनकर सामने आया है जिसमें न केवल जन मंच के दिन बल्कि उससे 15 दिन पहले तथा 10 दिन बाद तक भी समस्याओं का निपटारा सुनिश्चित बनाया जा रहा है। जन मंच एक ऐसा कार्यक्रम है जिसे तीन स्तरों पर लागू किया जाता है। प्रत्येक माह के पहले रविवार को होने वाले जन मंच कार्यक्रम को प्रत्येक जिला के एक निर्धारित विधानसभा क्षेत्र के दूर-दराज एवं ग्रामीण क्षेत्र में आयोजित किया जाता है। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष सहित कैबिनेट मंत्री द्वारा की जाती है। जन मंच में न तो मुख्यातिथि का हार व फूलों से स्वागत किया जाता है, न ही कोई उद्घाटन व शिलान्यास तथा न ही किसी नई योजना की शुरूआत।
यह कार्यक्रम पूरी तरह से आम आदमी की जन सुनवाई के लिए समर्पित है तथा जनता की समस्याओं का निपटारा तमाम बड़े अधिकारियों की उपस्थिति में सुनिश्चित बनाया जाता है। जन मंच से 15 दिन पूर्व संबंधित विधानसभा क्षेत्र की चिन्हित 10 पंचायतों में विभिन्न विभागों की कल्याणकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों को लेकर जहां व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाया जाता है तो वहीं छूटे हुए पात्र लाभार्थियों को योजनाओं के साथ जोड़ा भी जाता है। इसके अलावा सरकार द्वारा निर्धारित योजनाओं को लेकर चिन्हित 10 पंचायतों में शत प्रतिशत लक्ष्य की पूर्ति भी सुनिश्चित बनाई जाती है। साथ ही जन मंच के दौरान जिन समस्याओं पर संबंधित अधिकारियों द्वारा आवश्यक कदम उठाए जाने की जरूरत होती है उन्हे जन मंच के बाद 10 दिनों के भीतर हल करना होता है। इस तरह जन मंच के माध्यम से न केवल हमारे समाज के गरीब व आम आदमी की जन सुनवाई सुनिश्चित होती है बल्कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से पात्रों को जोड़ा भी जाता है। जन मंच कार्यक्रम की सबसे बडी बात यह है कि जन मंच के दिन कोई भी व्यक्ति भूखा व प्यासा न रहे इसके लिए सरकार ने भोजन व पानी की भी समुचित व्यवस्था की है। 
ऐसे में यदि प्रदेश में हुए पहले दो जन मंच कार्यक्रमों की बात करें तो पूरे प्रदेश में जहां लगभग आठ हजार से अधिक जन शिकायतों को लोगों ने जन मंच कार्यक्रम के माध्यम से सरकार के पास रखा है बल्कि अधिकत्तर का निपटारा भी समयबद्ध सुनिश्चित हुआ है। वास्तव में जन मंच आम आदमी की सशक्त आवाज बनकर सामने आया है तथा सरकार को इस कार्यक्रम की लगातार न केवल निगरानी की आवश्यकता होगी बल्कि समस्याओं के निपटारे को प्राथमिकता देते हुए गरीब व आम आदमी को पूरा अधिमान देना होगा। सरकार को इस बात पर ही गंभीरता से विश्लेषण करना होगा की आने वाले समय में प्रदेश के गरीब, पिछडे व आम आदमी की यह आवाज आंकड़ों के मायाजाल में उलझकर न रह जाए इस पर विभागीय अधिकारियों की जबावदेही सुनिश्चित बनानी होगी। जिस गति व लोकप्रियता के साथ आज जन मंच गरीब व आम आदमी की आवाज बना है निश्चित तौर पर भविष्य में सरकारी व राजनैतिक स्तर पर इसके परिणाम चौकाने वाले हो सकते हैं। 

(साभार: दैनिक आपका फैसला के अंक 12 जुलाई, 2018 के संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
                 

Monday, 9 July 2018

मीडिया की समरस समाज निर्माण में भूमिका

भारतीय समाज और यहां की परंपराएं व संस्कृति 21वीं सदी की आधुनिकता भरी इस दुनिया में आज भी न केवल कायम है बल्कि अपनी पहचान बनाए हुए है। भले ही दुनिया के कई देशों की संस्कृति व परंपराओं का विलोपन व कई सभ्यताएं समाप्त हो गई हैं, लेकिन भारतीय संस्कृति व परंपराएं न केवल आज भी पूरी दुनिया में विख्यात हैं बल्कि हमारा समाज उन्हे बेहतर ढ़ंग से संजोए हुए है। 
भारतीय समाज में वर्ग विषमता व जातिगत भेदभाव की बात आती है तो हमारा शीश शर्मसार होकर झुक जाता है। बदलते वक्त व बदलती दुनिया के साथ भारतीय समाज भी तेजी से प्रगति के पथ पर अग्रसर है तथा कई रूढिवादी परंपराओं को न केवल हमने बदला है बल्कि उनका त्याग भी किया है। बात चाहे विधवा विवाह, सत्ती प्रथा, स्वच्छता, छुआछूत, महिला उत्पीडन जैसी अनेक बुराईयों को लेकर लडे गए आंदोलनों की हो या फिर समाज सुधारकों व बुद्धिजीवियों द्वारा जन जागरूकता के अलख जगाने की। भारतीय समाज को वर्ग विषमता से मुक्त बनाने तथा सामाजिक बुराईयों से मुक्त बनाने के लिए जितना कठिन परिश्रम देश के महान समाज सुधारकों व पथ प्रदर्शकों ने किया उतना ही अहम योगदान मीडिया का भी रहा है। विभिन्न सामाजिक व स्वतंत्रता आंदोलनों की बात करें तो व्यापक जन जागरूकता लाने में लंबे वक्त तक संघर्ष जारी रहा बल्कि एक साथ समाज के बडे वर्ग को जागरूक बनाने व जोडने में समाचार पत्रों का भी सहारा लिया गया। देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों, देशभक्तों व समाज सुधारकों ने समाचार पत्रों के माध्यम से अपने आंदलनों को आगे बढ़ाने तथा सामाजिक बुराईयों को लेकर जन जागरूकता के लिए अभियान चलाए। 
ऐसे में जहां मीडिया ने विभिन्न सामाजिक बुराईयों के प्रति जागरूकता लाने में अहम भूमिका अदा की तो वहीं सामाजिक रूख बदलने में भी पीछे नहीं रहा है। भारतीय समाज के लिए आज कितने खेद व चिंताजनक बात है कि आजादी के सात दशकों उपरान्त जातिगत छुआछूत के नाम पर व्यक्तियों के साथ भेदभाव होना न केवल घोर निंदनीय है बल्कि शर्मनाक भी है। ऐसा भी नहीं है कि जातिगत भेदभाव को लेकर सरकारी स्तर पर प्रयास नहीं हुए। इस सामाजिक समस्या से छुटकारा पाने तथा दलित व पिछडे लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए कानूनी तौर पर कई संवैधानिक प्रावधान किए गए और बल्कि सरकारी सेवा के साथ-साथ लोकसभा व विधान सभाओं के चुनाव में अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण का भी प्रावधान किया गया है। वाबजूद इसके वर्तमान में भारतीय समाज में जातिगत आधार पर भेदभाव की घटनाएं सामने आना किसी दु:ख दायी पीड़ा से कम नहीं है।
हिमाचली समाज की बात करें तो जाति विशेष के आधार पर मंदिर में प्रवेश न देना, एक ही कुंए से पानी न भरना, एक साथ बैठकर भोजन न करना तथा एक की श्मशानघाट में व्यक्ति का अंतिम संस्कार न करना जैसी घटनाओं को जहां मीडिया समय-समय पर उजागर करता रहा है बल्कि शासन व प्रशासन की आंखे भी खोलता रहा है। पिछले वर्ष कुल्लू जिला के बंजार में हुए अग्रिकांड के दौरान तबाह हुए एक गांव के लोगों को जब एक जाति विशेष के कारण  एक साथ खाना खाने से रोका तो इस घटना को प्रदेश के मीडिया ने न केवल प्रमुखता से उठाया बल्कि इस संवेदनशील मुददे को लेकर व्यापक जन जागरूकता लाने का भी भरसक प्रयास किया। इसी तरह की एक अन्य घटना इसी वर्ष कुल्लू जिला में ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बच्चों के साथ आयोजित टीवी वार्तालाप के सीधे प्रसारण के दौरान एक स्कूल में भी सामने आई। इस घटना के दौरान जहां निचली जाति से बच्चों को सामान्य बच्चों से दूर बिठाया गया बल्कि उनके साथ भेदभाव भी हुआ। इस घटना को भी मीडिया ने न केवल प्रमुखता से उठाया बल्कि इसकी गूंज सरकार व प्रशासन तक पहुंची। जिसके परिणाम स्वरूप सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है तथा घटना में शामिल लोगों के विरूद्ध कानूनी मामला भी दर्ज किया। इसी तरह के मामले मीडिया समय-समय पर उजागर करता आ रहा है।
लेकिन अब प्रश्न जातिगत भेदभाव से जुडी इन घटनाओं के उजागर होने का नहीं बल्कि प्रश्न समाज में व्याप्त उस जातिगत भेदभाव व छूआछूत का है जो आज भी गाहे बगाहे हमारे समाज में व्याप्त है। इस तरह की घटनाएं न केवल मानवता के विरूद्ध है बल्कि सभ्य समाज के लिए चिंता का कारण भी हैं। भले ही आज हमने आधुनिक जीवन की वो तमाम ऊचांईयों छू ली हों, जो कभी हमसे कोसों दूर थीं। लेकिन महज एक व्यक्ति का इसलिए तिरस्कार कर दिया जाए कि वो तथाकथित नीच जाति से है, यह न केवल निंदनीय है बल्कि सभ्य समाज में स्वीकार्य भी नहीं हो सकता है। आखिर वर्ग विषमता से मुक्त एक आदर्श समाज बनाने में हम पीछे क्यों  हैं, इस पर भी गंभीरता से मंथन होना चाहिए। साथ ही जातिगत प्रथा के कारण समाज में विघटन पैदा हो हमें उस मानसिकता के खिलाफ भी जंग लडनी होगी। साथ ही उन स्वार्थी लोगों से भी हमें सतर्क रहना होगा जो जातिगत भेदभाव की घटनाओं को हवा देकर निजी हित साधते रहे हैं। 
इन परिस्थितियों में मीडिया को न केवल जातिगत भेदभाव से जुडी घटनाओं को प्रमुखता से उठाना चाहिए बल्कि जाति के आधार पर समाज को बांटने वाले भी बेनकाव हों ताकि जहां जातिप्रथा व छूआछूत के प्रति व्याप्त सामाजिक मानसिकता में व्यापक बदलाव लाया जा सके तो वहीं निजी हित साधने वाली राष्ट्र विरोधी ताकतों का भी डटकर विरोध किया जा सके। 
ऐसे में हमारे समाज से वर्ग विषमता व जातिगत छुआछूत की यह समाजिक बुराई पूरी तरह से समाप्त हो इसके लिए जहां देश का जागरूक मीडिया व्यापक जन जागरूकता लाने में एक अहम रोल अदा कर सकता है तो वहीं 21वीं सदी की हमारी युवा पीढ़ी इस सामाजिक समस्या को जड़ से उखाडऩे में न केवल सक्षम व समर्थ है बल्कि वह एक ऐसा भारतीय समाज स्थापित करने का भी सामथ्र्य रखती है जिसमें वर्ग विषमता, जातिप्रथा व छुआछूत के लिए कोई स्थान नहीं होगा। आओ हम सब मिलकर जाति प्रथा से मुक्त एक नए व आधुनिक भारतीय समाज निर्माण के लिए आगे आएं जहां व्यक्ति की पहचान उसकी जाति व वर्ग से नहीं बल्कि उसके कर्म व पुरूषार्थ से हो।



 (साभार: हिम संचार विशेषांक विश्व संवाद केंद्र शिमला में प्रकाशित)

Tuesday, 3 July 2018

गृहिणी सुविधा योजना के तहत ऊना जिला में लाभान्वित होंगे 2487 परिवार

गृहिणी सुविधा योजना के अंतर्गत जिला ऊना में प्रथम चरण में 2487 पात्रों को लाभान्वित करने का लक्ष्य रखा गया है। गृहिणी सुविधा योजना हिमाचल प्रदेश सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी योजना है, जिसका शुभारंभ 26 मई, 2018 को प्रदेश के मुख्य मत्री जय राम ठाकुर ने शिमला से किया है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य जहां महिलाओं का सशक्तिकरण करना है तो वहीं प्रदेश के पात्र उपभोक्ताओं को स्वच्छ व धुंआ रहित ईंधन उपलब्ध करवाकर पर्यावरण का संरक्षण भी करना है।
किन्हे मिलेगा योजना का लाभ:
गृहिणी सुविधा योजना के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश के ऐसे महिला परिवार वाले स्थायी निवासी जिनके पास एल.पी.जी. कनैक्शन नहीं है, को एक घरेलू एल.पी.जी. कनैक्शन हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा उपलब्ध करवाया जा रहा है। इस योजना में महिलाओं वाले ऐसे हिमाचली परिवार (किसी भी श्रेणी से संबंधित) जिनके पास अपना या किसी भी सरकारी योजना जैसे उज्ज्वला इत्यादि के तहत घरेलू गैस कनैक्शन नही हैं, को लाभान्वित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, आग्रि, भूकंप इत्यादि से प्रभावित परिवारों को भी इस योजना के अन्तर्गत लाभान्वित किया जाएगा। प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित परिवारों को संबंधित कार्यकारी दंडाधिकारी द्वारा जारी प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा।
किन्हे नहीं मिलेगा लाभ:
 इस योजना के अन्तर्गत ऐसे परिवारों को लाभान्वित नहीं किया जाएगा जिनके पास पहले से ही एलपीजी गैस कनेक्शन उपलब्ध है तथा ऐसे परिवार जिनका कोई भी सदस्य सरकारी/अद्र्ध सरकारी, स्वायत्त संस्था, बोर्ड, कॉर्पोरेशन में कार्यरत इत्यादि में नियमित या अनुबंध के आधार पर कार्यरत न हो। इसके अलावा ऐसे परिवार जिनका कोई भी सदस्य ठेकेदार के नाते सरकार के साथा पंजीकृत है को भी लाभ नहीं मिलेगा। साथ ही ऐसे परिवार जिनका कोई भी सदस्य राज्य/केन्द्र सरकार, बोर्ड, कॉर्पोरेशन, बैंक, स्वायत्त संस्था से पारिवारिक पेंशन तथा सामाजिक सुरक्षा पेंशन लेता हो।
कैसे मिलेगा लाभ:
इस योजना के अंतर्गत पात्र परिवारों का चयन संबंधित ग्राम पंचायत जबकि शहरी क्षेत्रों में संबंधित शहरी निकाय संस्थाओं द्वारा निर्धारित प्रपत्र पर आवेदन प्राप्त किए जाएंगे। प्राप्त आवेदन पत्रों को किसी प्रकार आपत्ति के लिए संबंधित पंचायत या शहरी निकाय के नोटिस बोर्ड में 10 दिन के लिए प्रदर्शित किया जाएगा तथा किसी प्रकार का आपत्ति होने पर जिला नियंत्रक खाद्य, नागरिक आपूर्ति को 15 दिन के भीतर मामला प्रस्तुत करना होगा। इसके उपरान्त चयनित पात्र लोगों की सूची को तेल कंपनियों को भेजा जाएगा तथा निदेशक खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले गैस कनेक्शन के लिए धनराशि जारी करेंगे। गैस एजैंसी तथा संबंधित विभाग द्वारा आयोजित होने वाले कार्यक्रम में पात्रों को एलपीजी गैस कनेक्शन वितरित किए जाएंगे।
क्या कहते हैं अधिकारी:
जिला नियन्त्रक खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले ऊना राजीव शर्मा ने बताया कि इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र लोग अपनी ग्राम पंचायत या शहरी निकाय के कार्यालयों से संपर्क कर निर्धारित प्रपत्र प्राप्त कर सकते हैं। उन्होने बताया कि सरकार ने इस योजना के प्रथम चरण में ऊना जिला में 2487 पात्रों को लाभान्वित करने का लक्ष्य रखा है तथा वर्तमान में संबंधित पंचायतों एवं स्थानीय नगर निकायों से प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग 5958 लोगों ने अपने आवेदन पत्र प्रस्तुत कर दिए हैं। उन्होने कहा कि पात्रों के चयन प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए लगभग 2 माह का समय लगेगा। उन्होने बताया कि इस योजना बारे लोगों को जागरूक करने के लिए पंचायत स्तर पर विभागीय अधिकारियों द्वारा जागरूकता शिविर भी आयोजित किए जा रहे हैं।







Monday, 28 May 2018

बकरी पालन से जुडक़र बीपीएल परिवार मजबूत करें आर्थिकी


बकरी पालन हेतु सरकार दे रही 60 प्रतिशत तक अनुदान, तीन वर्ष का बीमा मुफ्त 

सरकार द्वारा बीपीएल परिवारों की आर्थिकी में उत्थान लाने के उदेश्य से कृषक बकरी पालन योजना को प्रारंभ किया गया है। इस योजना के माध्यम से बीपीएल परिवार को बकरी पालने के लिए सरकार 60 प्रतिशत तक का अनुदान उपलब्ध करवा रही है। 
इस स्कीम के तहत सरकार पशुपालन विभाग के माध्यम से गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) परिवारों को कृषक बकरी पालन योजना के तहत दो बकरियां (मादा) तथा एक बकरा (नर), चार बकरियां (मादा) तथा एक बकरा (नर) या दस बकरियां (मादा) तथा एक बकरा (नर) की इकाईयों में उपलब्ध करवाया जा रहा है। इस योजना के तहत बीपीएल परिवार के लाभार्थी को लागत का चालीस प्रतिशत भाग बतौर लाभार्थी शेयर के रूप में जमा करवाना होता जबकि 60 प्रतिशत सरकार द्वारा वहन किया जाता है। बीपीएल कृषक बकरी पालन योजना के अंतर्गत सामान्य वर्ग के 66 प्रतिशत अनुसूचित जाति के 25 प्रतिशत तथा अनुसूचित जनजाति के 9 प्रतिशत परिवारों के हिसाब से इकाईयां वितरित की जा रही हैं।
इस योजना के माध्यम से दो जमा एक इकाई की कुल लागत 21 हजार 88 रूपये है जिनमें से सरकार की ओर से अनुदान 60 प्रतिशत 13 हजार 888 रूपये तथा लाभार्थी का 40 प्रतिशत की दर से शेयर 72 सौ रूपये बनता है। इसी तरह जहां चार जमा एक इकाई की कुल लागत 34 हजार 356 रूपये है जिनमें से सरकार की ओर से अुनदान 23 हजार 156 रूपये बतौर 60 प्रतिशत तथा लाभार्थी का शेयर 11 हजार 200 रूपये जो 40 प्रतिशत है जबकि दस जमा एक इकाई की कुल लागत 72 हजार 160 रूपये है जिनमें से सरकार की ओर से अनुदान 48 हजार 960 रूपये बतौर 60 प्रतिशत तथा लाभार्थी का शेयर 23 हजार 200 रूपये बतौर 40 प्रतिशत दिया जाता है।
इस योजना के माध्यम से अबतक पूरे प्रदेश भर में 1153 विभिन्न इकाईयां बकरियों की आवंटित की गई हैं। जिनमें दस जमा एक इकाई की 194, चार जमा एक इकाई की 430 तथा दो जमा एक इकाई की 529 इकाईयां शामिल हैं। जिलावार आंकडों का विश्लेषण करें तो जिला बिलासपुर को 164 इकाईयां आवंटित की गई है जिनमें दस जमा एक इकाई की 22, चार जमा एक की 50 तथा दो जमा एक इकाई की 92 इकाईयां शामिल है। चंबा जिला को कुल 56 इकाईयां आवंटित की गई हैं जिनमें दस जमा एक इकाई की दस, चार जमा एक की 24 इकाई तथा दो जमा एक की 22 इकाईयां शामिल हैं। हमीरपुर जिला को कुल 196 इकाईयां आवंटित की गई है जिनमें दस जमा एक इकाई की 27, चार जमा एक की 145 तथा दो जमा एक इकाई की 24 शामिल हैं। कांगडा जिला को कुल 129 इकाईयां आवंटित की हैं जिनमें दस जमा एक की 37, चार जमा एक की 45 तथा दो जमा एक इकाई की 37 इकाईयां शामिल हैं। किन्नौर जिला को 37 ईकाईयां बकरियों की आवंटित की गई हैं जिनमें दस जमा एक ईकाई की आठ, चार जमा एक इकाई की 10 तथा दो जमा एक इकाई की 19 युनिट शामिल हैं। 
इसी तरह जहां कुल्लू जिला को कुल 70 इकाईयां बकरियों की आवंटित की गई है जिनमें दस जाम एक इकाई की 10, चार जमा एक इकाई की 28 तथा दो जमा एक इकाई की 32 बकरियां शामिल है तो वहीं जिला लाहौल एवं स्पिति को कुल 41 बकरियों की इकाइयों को आवंटित किया गया है जिनमें दस जमा एक इकाई की नौ, चार जमा एक इकाई की 11 तथा दो जमा एक इकाई की 21 इकाईयां शामिल है। यही नहीं मंडी जिला को कुल 75 इकाईयां का आवंटन किया गया है जिनमें दस जमा एक युनिट के आठ, चार जमा एक युनिट के 25 तथा दो जमा एक युनिट के 42 मामले शामिल हैं जबकि जिला शिमला को बकरियों की कुल 143 युनिट का आवंटन किया गया है जिनमें दस जमा एक युनिट के 27, दस जमा चार युनिट के 26 तथा दो जमा एक युनिट के 90 मामले शामिल हैं। 
इसी योजना के तहत जिला सिरमौर के लिए कुल 67 बकरियों की इकाईयां आवंटित की गई हैं जिनमें सात दस जमा एक, 39 चार जमा एक तथा 21 दो जमा एक युनिट जबकि सोलन जिला के लिए 49 इकाइयां आवंटित की गई हैं जिनमें दस जमा एक की पांच, चार जमा एक की 12 तथा दो जमा एक की 32 युनिट शामिल है। इसी तरह जिला ऊना के लिए कुल 126 बकरियों की इकाईयां आवंटित की गई हैं जिनमें दस जमा एक की 24, चार जमा एक की 15 तथा दो जमा एक की 87 इकाईयां शामिल है। 
इस योजना के माध्यम से सरकार दो जमा एक इकाई पर 13888 रूपये, चार जमा एक इकाई पर 23156 तथा दस जमा एक इकाई पर 48960 रूपये बतौर उपदान मुहैया करवा रही है। इसके अलावा बकरियों का तीन वर्ष का बीमा भी सरकार की ओर किया जाता है ताकि किसानों को किसी प्रकार की दिक्कतों का सामना न करना पड़े। साथ ही बकरियों की इकाईयां वितरण करते वक्त सरकार की ओर से संबंधित किसान को तीन माह का चारा (फीड) भी दी जा रही है।
क्या कहते हैं मंत्री:
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री वीरेंद्र कंवर का कहना है कि प्रदेश में बीपीएल परिवारों की आर्थिकी को मजबूत करने के लिए सरकार ने बीपीएल बकरी पालन योजना शुरू की है। इस योजना के माध्यम से सरकार 60 प्रतिशत अनुदान पर बकरियां उपलब्ध करवा रही है। उन्होने बताया कि दस (मादा) जमा एक (नर) की युनिट से एक परिवार वर्ष में कम से कम दो से अढ़ाई लाख रूपये तक की आय अर्जित कर सकता है। किसान पर विपरीत परिस्थितियों में बोझ न पड़े इसके लिए बकरियों का तीन वर्ष का बीमा भी मुफ्त किया जाता है।