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Thursday, 18 April 2024

अजिया पाल देवता मंदिर, सिमस (जोगिंदर नगर) ज़िला मंडी हिमाचल प्रदेश

अजिया पाल देवता की अनेकों कथाएं प्रचलित हैं। अगर बात करें तो अजिया पाल देवता से जुड़े बहुत से मंदिर हिमाचल प्रदेश के मंडी व कांगड़ा जिलों के पधर, जोगिन्दर नगर, लडभड़ोल, चौहारघाटी, छोटा व बड़ा भंगाल इत्यादि क्षेत्रों में स्थापित हैं। स्थानीय लोग अपने-अपने तरीकों व आस्था के चलते अजिया पाल देवता की पूजा अर्चना करते हैं।

कहते हैं कि जोगिन्दर नगर उपमंडल की ग्राम पंचायत सिमस में भी अजिया पाल देवता से जुड़ा एक ऐसा मंदिर है जिसका इतिहास काफी प्राचीन है। गांव सिमस की सबसे ऊंची पहाड़ी जिसे 'अजिया पाल' के नाम से भी जाना जाता है, यहां पर अजिया पाल देवता जी का पवित्र स्थान मौजूद है। गांव के बड़े बुजुर्गों का कहना है कि अजिया पाल देवता की ग्रामीण पुरातन समय से ही पूजा अर्चना करते रहे हैं। वर्तमान स्थान पर उनका एक प्राचीन मंदिर हुआ करता था, लेकिन वक्त के साथ यह ध्वस्त हो गया था। यहां मात्र कुछ मूर्तियां ही शेष रह गई थीं। लेकिन अब ग्रामीणों ने सामूहिक श्रमदान कर इस मंदिर का पुनरूधार का कार्य किया है।
स्थानीय बुजुर्ग कहते हैं कि आज से लगभग 25-30 वर्ष पूर्व तक गांव में सौंझी जातर यानि की सभी ग्रामीण मिलकर मई व जून माह में सामूहिक जातर का आयोजन किया करते थे। इस दौरान स्थानीय ग्रामीण पूरे गाजे बाजे के साथ संतान दात्री मां शारदा सिमसा के अलावा अजिया पाल देवता की पूजा अर्चना करते थे।
कहते हैं कि अजिया पाल गांव के रक्षक हैं तथा किसानों की अच्छी फसल के साथ-साथ जान माल की भी सुरक्षा करते हैं। यह प्रथा प्राचीन समय से ही जारी रही है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से सौंझी जातर जैसे सामुदायिक कार्यक्रम न होने के चलते यह मंदिर उपेक्षा का शिकार हो गया था। इस बीच कुछ स्थानीय ग्रामीणों के प्रयासों के चलते इसका जीर्णोद्धार कर यहां एक नया मंदिर स्थापित किया है। इस स्थान पर न तो पानी, न ही बिजली की आपूर्ति उपलब्ध है। ऐसे में ग्रामीण सामूहिक श्रमदान व सहयोग के माध्यम से ही मंदिर निर्माण की दिशा में आगे बढ़े हैं।
यह स्थान काफी ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से आसपास का विहंगम नजारा देखते ही बनता है।

अजिया पाल के इस पवित्र स्थान से एक तरफ जहां हमीरपुर, सुजानपुर, जयसिंहपुर, चढिय़ार, मां आशापुरी, संधोल, धर्मपुर, सरकाघाट इत्यादि क्षेत्रों को देखा जा सकता है तो वहीं दूसरी ओर बर्फ से ढक़ी धौलाधार पर्वत श्रृंखला का नजारा बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है। इसके अलावा बैजनाथ, संपूर्ण लडभड़ोल क्षेत्र, भभौरी धार, मां चतुर्भुजा का भी खूबसूरत नजारा यहां से देखा जा सकता है। सर्दियों के मौसम में बर्फबारी के बाद जो धौलाधार पर्वत श्रृंखला का बेहद खूबसूरत नजारा बनता है मानों ऐसा लगता है कि प्रकृति अपनी पूरी छटा बिखेर कर रख दी हो। साथ ही ब्यास नदी व विनवा नदी के पवित्र संगम त्रिवेणी महादेव के भी दर्शन यहां से किये जा सकते हैं। इसके अलावा पूरे सिमस गांव का खूबसूरत दृश्य देखते ही बनता है। इस स्थान पर महज 15 से 20 मिनट खड़ी चढ़ाई चढक़र पैदल ही पहुंचा जा सकता है।
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Wednesday, 10 April 2024

नि: संतानों को संतान सुख देती है मां सिमसा

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के अंतर्गत जोगिन्दर नगर उपमंडल की तहसील लडभड़ोल मुख्यालय से लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर एक ऐसा मां का मंदिर है जो अपने भक्तों को संतान का सुख प्रदान करता है। शारदा माता सिमस जिसे अब लोग सिमस गांव के चलते मां सिमसा के नाम से जानते हैं का यह पवित्र दरबार दैवीय शक्ति के तौर पर संतान सुख प्रदान करने में राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका है। 

भले ही आज के इस वैज्ञानिक युग में नि:संतानों को संतान प्राप्ति के नए-नए तरीके खोज लिये गए हों, परन्तु मां सिमसा की दैवीय शक्ति अपना ही महत्व रखती है। प्रतिवर्ष हजारों नि:संतान दंपति संतान प्राप्ति की चाह में मां सिमसा के दरबार में आते हैं, लेकिन मां सिमसा कभी भी अपने भक्तों को निराश नहीं लौटाती है। यही कारण है कि मां सिमसा के दरबार में वर्ष भर संतान सुख से वंचित हजारों श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। वैसे तो वर्ष भर लेकिन विशेष तौर पर नवरात्र पूजन के दौरान नि:संतान महिलाएं मंदिर की निर्धारित पूजा मान्यताओं के अनुरूप मां के दरबार में सोने पहुंचती हैं। जिसे स्थानीय बोली में धरना देना भी कहा जाता है। इस बीच स्वप्र में मां सिमसा संबंधित महिला को अपनी इच्छानुसार फल प्रदान करती है। इस बीच संतान के जन्म के बाद एक वर्ष की हो जाए, तब तक नि:संतान दंपति को स्पप्र में दिए गए फल को खाने से परहेज करना पड़ता है। बच्चे के जन्म का एक वर्ष पूर्ण हो जाने तथा मां के दरबार में हाजरी भरकर तथा आशीर्वाद स्वरूप स्वप्र में दिये गए फल को चढ़ाने के बाद दंपति उस फल का सेवन कर सकते हैं। कहते हैं अब तक सैंकड़ों नहीं बल्कि हजारों नि:संतान दंपतियों को मां सिमसा आशीर्वाद स्वरूप संतान सुख दे चुकी है। मां के प्रति श्रद्धालुओं की अटूट आस्था ही है कि मां के दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालु केवल हिमाचल प्रदेश से ही नहीं बल्कि देश के अन्य राज्यों से भी यहां पहुंचते हैं।

मां सिमसा का यह प्राचीन मंदिर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के अंतर्गत तहसील लडभड़ोल से पक्की सडक़ के माध्यम से 9 किलोमीटर दूर है। विश्व प्रसिद्ध शिवधाम बैजनाथ से लगभग 30 किलोमीटर, जिला मुख्यालय मंडी से 100 किलोमीटर तथा राजधानी शिमला से लगभग 250 किलोमीटर की दूरी पर है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन बैजनाथ-पपरोला है जबकि नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल कांगड़ा है।

इस मंदिर को पहुंचने के लिये वैसे तो कई मार्ग हैं लेकिन सबसे उपयुक्त मार्ग बैजनाथ से होते हुए है। इसके अलावा श्रद्धालु सरकाघाट धर्मपुर से होते हुए भी मंदिर पहुंच सकते हैं। उपमंडल मुख्यालय जोगिन्दर नगर से यह मंदिर लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर है तथा यहां से सीधी बस के माध्यम से भी मंदिर पहुंचा जा सकता है। अब हमीरपुर व ऊना क्षेत्र की ओर से आने वाले श्रद्धालु वाया संधोल होते हुए भी मंदिर पहुंच सकते हैं। सांडापत्तन में ब्यास नदी पर पुल बन चुका है जिससे अब लोगों को आने जाने में काफी सुविधा मिल रही है। रहने के लिये मंदिर मे सराय भी हैं। इसके अलावा श्रद्धालु लडभड़ोल में लोक निर्माण विभाग जलशक्ति विभाग के विश्राम गृह में भी रूक सकते हैं जबकि जोगिन्दर नगर बैजनाथ में सरकारी विश्राम गृहों के साथ-साथ कई निजी होटल भी उपलब्ध हैं।

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टोबा सिंह को पिंडी रूप में मिली मां सिमसा

माता सिमसा की उत्पत्ति के बारे में एक किंवदन्ति है कि मां सिमसा पिंडी रूप में गांव के ही एक व्यक्ति टोबा सिंह को मिली है। कहते हैं कि टोबा सिंह नागण नामक स्थान पर तरडी (एक प्रकार की सब्जी जो कि एक बेल के रुप में जमीन पर गड़ी रहती है) को खोदने गया। जब तरडी निकालने के लिये टोबा सिंह अपने औजार से जमीन पर पहली चोट करता है तो दूध की धारा बाहर आने लगती है। ये सब देखकर टोबा सिंह को लगा कि तरडी काफी मात्रा में है। जब टोबा सिंह ने दूसरा प्रहार जमीन पर किया तो जमीन से पानी की धारा निकलने लगी। ऐसे में भोला-भाला टोबा सिंह सोचने लगा कि दूध पतला हो रहा है तथा इसके ढलने के कारण पानी जैसा लग रहा है। लेकिन जब टोबा सिंह ने तीसरी चोट जमीन पर की तो वह चकित हो जाता है कि उसी स्थान से अब रक्त की धारा बहने लगती है। ऐसे में यह सब देखकर टोबा सिंह घबरा जाता है तथा डर के मारे घर वापिस चला जाता है।

इस सारी घटना के बाद घर पहुंचकर जहां टोबा सिंह तरडी मिलने के कारण दु:खी था तो वहीं उसके साथ तरडी खोदते वक्त हुई घटना से चिंतित भी था कि आखिर उसके साथ यह सब क्या हुआ। घर पहुंचकर टोबा सिंह ने इस सारी घटना का परिवार के दूसरे लोगों के साथ जिक्र भी किया लेकिन किसी को भी यह पता नहीं चला कि आखिर ऐसा क्या हो सकता है। रात्रि का भोजन करने के बाद जब टोबा सिंह सोने का प्रयास करता लेकिन उसे नींद नहीं रही थी। नींद आने तक टोबा सिंह दिन में उसके साथ घटित सारी घटना लगातार दिमाग में घूम रही थी कि आखिर यह सब क्या हुआ है। लेकिन जब टोबा सिंह को नींद आई तो स्वप्न में माता ने दर्शन दिये तथा कहा कि जिस बात से तू घबराया हुआ है, मैं उसी चिंता का निवारण करने आई हूं। मां कहती है कि ये सब उसी का ही चमत्कार है। मां ने टोबा सिंह से कहा कि सुबह उठकर तथा नहा धोकर जहां तुम खुदाई कर रहे थे उसी स्थान पर वापिस जाना तथा खुदाई के दौरान वहां पर एक मूर्ति मिलेगी। इस मूर्ति को पालकी में सजाकर गांव में ले जाकर धूमधाम से इसकी सवारी निकालना, जहां यह मूर्ति भारी लगे उसी स्थान पर इसकी स्थापना कर मंदिर का निर्माण करवाना।

सुबह होते ही टोबा सिंह ने स्वपन वाली बात अपने भाईयों को भी बताई तथा मां के आदेशानुसार तरडी वाले स्थान पहुंचकर दोबारा खुदाई का कार्य शुरू किया जाता है। खुदाई करने के बाद वहां पर देवी की मूर्ति मिली। जिसकी लम्बाई 7 वर्ष की कन्या के बराबर थी, यह मूर्ति आज भी वर्तमान मंदिर में मौजूद है। मूर्ति को जमीन में इतना दबा दिया गया कि इसका सिर का ऊपरी हिस्सा ही दिखाई देता है। खुदाई के समय जो तीन चोटें लगी थीं वो आज भी प्रत्यक्ष रुप में मां के सिर पर दिखाई देती हैं।

कहते हैं कि टोबा सिंह ने अपने भाईयों की सहायता से मां के आदेशानुसार माता की पालकी सजाकर गांव के चारों और ऊंची-ऊंची पहाडिय़ों पर घुमाया। कहते हैं कि उनका विचार मां की पालकी को गांव की सबसे उंची चोटी अजयपाल पर ले जाने की थी। लेकिन वर्तमान मंदिर के पास ही पानी की बावडी थी। टोबा सिंह उसके भाईयों ने सोचा की हाथ मुंह धोकर कुछ समय यहां पर आराम करने के बाद अजयपाल की चोटी पर जाया जाए। लेकिन थोड़ी देर तक आराम करने के बाद जैसे ही उन्होने पालकी को उठाने का प्रयास किया तो पालकी पहले से काफी भारी हो चुकी थी तथा उठाई नहीं जा रही थी। ऐसे में टोबा सिंह को स्वपन में कही बात याद गई कि कि जहां मेरी पालकी भारी हो जाएगी वहीं मेरे मंदिर का निर्माण करना। ऐसे में उन्होंने वहीं पर छोटा सा मंदिर बनवा दिया। वर्तमान मंदिर उसी स्थान पर है।

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कीमूृ वकील की कहानी

मां के आशीर्वाद के तौर पर कीमू वकील की कहानी प्रसिद्ध है। सिमसा माता के मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर सांडा पत्तन नामक गांव है। यह गांव छोटी-छोटी टोलियों में बंटा हुआ था तथा दूसरे गांव की तरह यह गांव भी मंडी जिला के सेना शासकों के अधीन ही था। कहते हैं पुराने समय में शादियां छोटी ही उम्र में कर दी जाती थीं। 

कीमू की शादी भी छोटी आयु में ही कर दी गई। कीमू की शादी वर्तमान में माता सिमसा से वर्तमान में सडक़ मार्ग के माध्यम से 8 किलोमीटर दूर द्रोव नामक स्थान पर हुई। कीमू एक निर्धन परिवार से ताल्लुक रखता था। गरीबी में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी बेहद मुश्किल था, ऐसे में वह अपनी पत्नी को स्वयं के घर में कैसे रख सकता था? ऐसे में कीमू के विवाहित होने के बावजूद भी उसकी पत्नी ससुराल में ही रहती थी। गरीबी के कारण ससुराल वाले भी उसकी पत्नी को उसके साथ नहीं भेजते थे। इस बीच कीमू पत्नी को लाने के लिये कई बार ससुराल गया, लेकिन उन्होने कीमू का हमेशा उपहास ही उड़ाया। ससुराल वाले हास्य व्यंग्य करते की जब तक तू यानि कि कीमू घोड़े पर सवार होकर हमारे घर नहीं आएगा तब तक हम अपनी बेटी को उसके साथ नहीं भेजेंगे। ऐसे में कीमू जैसे गरीब व्यक्ति के लिये घोड़ा मानों दुनिया की सबसे मूल्यवान वस्तु थी। जिसके लिए दो वक्त की रोटी जुटा पाना कठिन था वह घोड़ा कहां से लाता। वैसे भी उन दिनों घोड़े बड़े-बड़े साहूकारों और राजाओं के पास ही होते थे। ऐसे में एक गरीब इंसान के लिए ये सब कल्पना से परे था। 

एक दिन पत्नी लेने ससुराल गए कीमू को खाना खिलाने के बाद ससुराल वालों ने उसके सोने का प्रबंध गौशाला जिसे स्थानीय बोली में 'घराल' कहा जाता है में किया। गरीबी के कारण कीमू के पास केवल एक फटी हुई कमीज़ तथा अंगोछा के अलावा कुछ भी नहीं था। दिन भर की थकान के कारण कीमू को जल्दी ही नींद आ गई। जब वह भरी नींद में सोया हुआ था तो गाय उसके सारे वस्त्र खा गई। जब आधी रात को कीमू की नींद खुली तो उसने अपने आप को निर्वस्त्र पाया। ऐसे में वह सोचने लगा कि लोग मुझे इस हालत में देखेंगे तो मेरा उपहास उड़ाएंगे तथा मैं अपने घर कैसे जाऊंगा? उसने योजना बनाई कि इसी वक्त घर को भाग जाना ही उचित रहेगा। रात के अंधेरे में उसे कोई नहीं देखेगा तथा घर जाकर कपड़े भी बदल लेगा। 

कीमू जब रात के अंधेरे में अपने घर की ओर जा रहा था तो सिमस गांव में सिमसा माता मंदिर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर एक वाबडी है। जब वह उस बावड़ी के समीप से गुजर रहा था तो उसे एक औरत उसकी तरफ आती हुई दिखाई दी। यह कोई साधारण औरत नहीं बल्कि मां सिमसा ही थी जो उस समय बावड़ी में स्नान कर मंदिर की ओर लौट रही थी। ऐसे में कीमू ने सोचा कि मैं तो बिल्कुल निर्वस्त्र हूं तथा आगे से कोई औरत आ रही है। इसलिए उसने अपने आप को पत्थर की आड़ में छुपा लिया तथा प्रतीक्षा करने लगा कि वह औरत वहां से निकल जाए तो मैं आगे निकलूं। लेकिन देवी तो तीनों लोकों की दृष्टिगोचर है। माता उसी पत्थर पर खड़ी हो गई जिसकी आड़ में कीमू ने स्वयं को छिपाया था। माता ने प्यार से आवाज लगाई बेटा कीमू बाहर आ जाओ। ऐसा सुनते ही कीमू चौंक पड़ा तथा मन ही मन सोचने लगा कि यह औरत तो उसका नाम भी जानती है। कीमू लगातार बाहर आने से इंकार करता रहा है, ऐसे में मां बोली कि बेटा कीमू मैं जानती हूॅं कि तू निर्वस्त्र है। तेरे ससुराल वाले अपनी बेटी तेरे साथ तभी भेजेंगे जब तू घोड़े पर बैठकर जाएगा।

मैं माता सिमसा हूं जो कुछ मैं कह रही हूं उसे ध्यान से सुनो। ठीक आज से आठवें दिन तेरे पास मंडी के सेन राजा का एक सिपाही आएगा और तुझे अपने साथ चलने को कहेगा। उस समय तू इंकार मत करना तथा उसके साथ चले जाना, बाकी मैं देख लूंगी। वहां राज दरबार में राजा जो भी सवाल करे उसका जवाब मेरा नाम लेकर देते रहना, मैं तेरी जुबान पर निवास करूंगी। इतना कहने के बाद वह आदि शक्ति वहां से अंतर्ध्यान हो गई। जब कीमू को काफी देर तक मां का स्वर नहीं सुनाई दिया तो वह घबराकर पत्थर की आड़ से बाहर निकला तथा जिस पत्थर पर मां खड़ी थी उसे ध्यान से देखता तो चकित रह गया। उस पत्थर पर देवी मां के दोनों चरण अंकित हो गए। आज भी प्रत्यक्ष रूप से उन्हे वहां देखा जा सकता है तथा भक्तजन आज भी आते जाते देवी के चरणों को स्पर्श करते हैं। 

कीमू ने मां के चरणों को स्पर्श किया तथा अपने घर वापिस चल पड़ा। रात खुलने से पहले कीमू अपने घर सांढापत्तन पहुंच गया और दूसरे कपड़े पहन लिए। घर जाकर माता सिमसा द्वारा कहे शब्द याद आने लगे और माता के कथनानुसार राजा के सिपाही के आने का इंतजार करने लगा। उसने माता का किस्सा अपने परिवार व सगे संबंधियों को भी सुनाया लेकिन केवल उपहास का ही पात्र बना। लोग उसकी इस बात पर हंसते की माता सिमसा कीमू को मिली है ऐसा हो ही नहीं सकता। कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि वह झूठ बोल रहा है। लेकिन कीमू को आंखों देखा दृश्य पर पूर्ण विश्वास था। ठीक आठवें दिन मंडी के सेन राजा का सिपाही गांव में आया था तथा पूछा कि इस गांव में कीमू कौन है। स्थानीय लोगों ने कीमू का घर दिखाया। पहले तो कीमू राजा के सिपाही को देखकर घबरा गया, लेकिन बाद में उसे माता के शब्द याद आ जाते हैं। सिपाही ने उससे पूछा कि क्या कीमू तेरा ही नाम है। उसने कहा जी कहिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं, तो सिपाही ने कहा कि तुझे राजा ने मंडी बुलाया है तथा इसी वक्त मेरे साथ चलना होगा। कीमू राजा के सिपाहियों की बात सुनकर अंदर ही अंदर काफी खुश था कि माता सिमसा की कही बात सच होने जा रही है। जैसे की कीमू मंडी में राजा के दरबार में पहुंचे तो राजा ने पूछा कि क्या आप एक वकील हैं? आप बड़े-बड़े मुकदमें हल कर सकते हो। कीमू ने मां सिमसा का नाम लेकर कहा हां सरकार मैं एक वकील हूं। राजा साहब कीमू की बातों से बड़े प्रभावित हुए तथा उसे अपना निजी वकील नियुक्त कर दिया। राजा साहब ने उसे मुंह मांगा धन दिया था सवारी के लिए घोड़ा भी दिया। राजा साहब ने कहा कि कीमू तुम यह धन अपने गांव छोड़ आओ तथा अपनी पत्नी को भी साथ ले आओ। कीमू को राजा द्वारा उपहार स्वरूप दिया घोड़ा बहुत पसंद आया तथा उसे उसके ससुराल वालों की घोड़े के बैठकर आने की शर्त भी पूरी होने जा रही थी। कीमू बड़ी प्रसन्नता के साथ मंडी राज दरबार से अपने घर को रवाना हुआ। जब वह गोरा नामक स्थान पर पहुंचा तो उसने घोड़े के नौकरों से कहा कि सारा सामान मेरे गांव सांडापत्तन में छोड़ आओ, मैं अपनी पत्नी को ससुराल से लेकर आता हूं। जब वह अपने ससुराल पहुंचा तो सब लोग कीमू की शाही पोशाक को देखने के लिए एकत्रित हो गए और पहचानने की कोशिश करने लगे। उसने कहा वह कि कीमू है तथा ससुराल वालों से घर के प्रवेशद्वार को तोडऩे के लिये कहा ताकि वह घोड़े सहित घर के अंदर प्रवेश कर सके। ससुराल वाले कीमू से माफी मांगने लगे तथा कि घोड़े की शर्त तो महज एक हास्य-व्यंग्य था। तुम घोड़े से नीचे उतर आओ तथा खाना खाने के बाद हम अपनी लडक़ी को आपके साथ भेज देंगे। लेकिन कीमू अपनी जिद्द पर अड़ा रहा तथा अंत में ससुराल वालों को पैरोल तोडऩी पड़ी। कीमू अपनी पत्नी को घोड़े पर बिठाकर अपने घर वापस ले आया कुछ दिन घर पर ठहरने के बाद वह पत्नी सहित मंडी दरबार चला गया। वह राजा साहब के वकील के रूप में कार्य करने लगा, आज भी उसके परिवार वालों को वकील परिवार के नाम से पुकारा जाता है। मां के आशीर्वाद एवं कीमू के जरिए राजा साहब हर मुकदमें जीतते रहे तथा वह काफी प्रसिद्ध हो गया।

लेकिन कुछ समय के बाद कीमू ने दैवीय शक्ति का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। एक दिन उसने भरे दरबार में कह दिया कि यदि ब्यास नदी में जाल फेंक दिया जाए तो उसमें भूने हुए तीतर निकलेंगे। कीमू की कोई भी बात दैवीय शक्ति के कारण गलत नहीं होती थी, जब राजा ने जाल बिछाया तो नदी में भूने हुए तीतर निकले। अब कीमू ने राजा साहब को बताया कि जंगल की झाडिय़ों में जाल फेंका जाए तो उससे मछलियां निकलेगीं। राजा के आदेशानुसार जंगल में झाडिय़ों पर जाल फेंका गया तो इस बार जादुई रूप से मछलियां मिलीं। मां सिमसा की दैवीय शक्ति के कारण कीमू दिन प्रतिदिन खूब सम्मान प्राप्त कर रहा था। 

फिर एक दिन जब कीमू सो रहा था तो मां सिमसा सपने में आई तथा कीमू से कहा कि तुम मेरी दी हुई शक्तियों का दुरूपयोग कर रहे हो। तुम्हारे लिये ही मुझे ब्यास नदी में भूने हुए तीतर तथा झाडियों में मछलियों का प्रबंध करना पड़ा। ऐसे में मां सिमसा ने कहा कि वह अब तुम्हारी जिहवा से बाहर निकल रही है। इस घटना के बाद कीमू ने राजा को अपनी सारी असलियत बताई तथा कहा कि वह कोई वकील नहीं है बल्कि मां सिमसा के आशीर्वाद का ही चमत्कार है। राजा भी मां की कहानी सुन कर आश्चर्यचकित रह गया। राजा के पास कोई संतान नहीं थी तो उसने मां से संतान प्राप्ति की प्रार्थना की। मां के आशीर्वाद से राजा को संतान प्राप्त हुई तथा राजा ने मां के दरबार में हाजरी लगाकर मां का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद मंडी के राजा ने मां के मंदिर का भी निर्माण करवाया।

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