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Friday, 13 July 2018

जन मंच कार्यक्रम बना आम आदमी की सशक्त आवाज

हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा प्रत्येक माह के पहले रविवार को जन मंच कार्यक्रम की शुरूआत की है। प्रदेश में अब तक सभी जिलों में दो-दो जन मंच कार्यक्रम सफलता पूर्वक आयोजित किए जा चुके हैं। प्रदेश भर में हजारों लोग अपनी छोटी-छोटी समस्याओं के निपटारे के लिए जन मंच कार्यक्रमों में पहुंच रहे हैं। जन मंच में जहां लोग पेयजल, बिजली, सडक़, रास्तों व गलियों के निर्माण, गंदे पानी की निकासी, अवैध कब्जों, मकान बनाने एवं बीमारी के ईलाज इत्यादि के लिए आर्थिक सहायता, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, राशन कार्ड जैसे मामले उठा रहे हैं तो वहीं स्कूलों, स्वास्थ्य संस्थानों, सरकारी कार्यालयों इत्यादि में रिक्त पदों एवं मूलभूत सुविधाओं का मामला भी रखा जा रहा है। कहने को तो ये लोगों की छोटी-छोटी समस्याएं हो सकती हैं लेकिन वास्तव में प्रदेश के गरीब, पिछडे तथा आम आदमी के लिए इन समस्याओं का समाधान उनके लिए सरकार की किसी बडी सौगात से कम नहीं कहा जा सकता है। ऐसे में यदि ये समस्याएं सरकार के किसी बड़े मंत्री की उपस्थिति में बड़े अधिकारियों द्वारा मौके पर ही निपटा ली जाएं तो सच में गरीब व आम आदमी के लिए लोकतंत्र में सरकार होने का सपना एवं उसके मायने वास्तविकता के धरातल में साकार होते नजर आते हैं। 
प्रदेश के युवा एवं मिलनसार व्यक्तित्व के धनी मुख्य मंत्री जय राम ठाकुर ने 26 मई को शिमला से जन मंच कार्यक्रम की शुरूआत की थी। इस कार्यक्रम को शुरू करने का प्रमुख उदेश्य भी जहां सरकार की पहुंच आम आदमी तक आसानी से ले जाना है तो वहीं लोगों के घर-द्वार के समीप समस्याओं का समयबद्ध व त्वरित निपटारा सुनिश्चित बनाना है। ऐसा भी नहीं है कि प्रदेश में इस तरह के प्रयास पहले नहीं हुए हैं। प्रदेश में समय-समय पर सत्तासीन रही सरकारों ने लोगों की समस्याओं का उनके घर-द्वार निपटारे के लिए कभी प्रशासन जनता के द्वार तो कभी सरकार आपके द्वार जैसे अनेक कार्यक्रम होते रहे हैं। लेकिन इन सबसे आगे बढक़र जन मंच एक ऐसा सरकारी कार्यक्रम आम आदमी की आवाज बनकर सामने आया है जिसमें न केवल जन मंच के दिन बल्कि उससे 15 दिन पहले तथा 10 दिन बाद तक भी समस्याओं का निपटारा सुनिश्चित बनाया जा रहा है। जन मंच एक ऐसा कार्यक्रम है जिसे तीन स्तरों पर लागू किया जाता है। प्रत्येक माह के पहले रविवार को होने वाले जन मंच कार्यक्रम को प्रत्येक जिला के एक निर्धारित विधानसभा क्षेत्र के दूर-दराज एवं ग्रामीण क्षेत्र में आयोजित किया जाता है। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष सहित कैबिनेट मंत्री द्वारा की जाती है। जन मंच में न तो मुख्यातिथि का हार व फूलों से स्वागत किया जाता है, न ही कोई उद्घाटन व शिलान्यास तथा न ही किसी नई योजना की शुरूआत।
यह कार्यक्रम पूरी तरह से आम आदमी की जन सुनवाई के लिए समर्पित है तथा जनता की समस्याओं का निपटारा तमाम बड़े अधिकारियों की उपस्थिति में सुनिश्चित बनाया जाता है। जन मंच से 15 दिन पूर्व संबंधित विधानसभा क्षेत्र की चिन्हित 10 पंचायतों में विभिन्न विभागों की कल्याणकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों को लेकर जहां व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाया जाता है तो वहीं छूटे हुए पात्र लाभार्थियों को योजनाओं के साथ जोड़ा भी जाता है। इसके अलावा सरकार द्वारा निर्धारित योजनाओं को लेकर चिन्हित 10 पंचायतों में शत प्रतिशत लक्ष्य की पूर्ति भी सुनिश्चित बनाई जाती है। साथ ही जन मंच के दौरान जिन समस्याओं पर संबंधित अधिकारियों द्वारा आवश्यक कदम उठाए जाने की जरूरत होती है उन्हे जन मंच के बाद 10 दिनों के भीतर हल करना होता है। इस तरह जन मंच के माध्यम से न केवल हमारे समाज के गरीब व आम आदमी की जन सुनवाई सुनिश्चित होती है बल्कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से पात्रों को जोड़ा भी जाता है। जन मंच कार्यक्रम की सबसे बडी बात यह है कि जन मंच के दिन कोई भी व्यक्ति भूखा व प्यासा न रहे इसके लिए सरकार ने भोजन व पानी की भी समुचित व्यवस्था की है। 
ऐसे में यदि प्रदेश में हुए पहले दो जन मंच कार्यक्रमों की बात करें तो पूरे प्रदेश में जहां लगभग आठ हजार से अधिक जन शिकायतों को लोगों ने जन मंच कार्यक्रम के माध्यम से सरकार के पास रखा है बल्कि अधिकत्तर का निपटारा भी समयबद्ध सुनिश्चित हुआ है। वास्तव में जन मंच आम आदमी की सशक्त आवाज बनकर सामने आया है तथा सरकार को इस कार्यक्रम की लगातार न केवल निगरानी की आवश्यकता होगी बल्कि समस्याओं के निपटारे को प्राथमिकता देते हुए गरीब व आम आदमी को पूरा अधिमान देना होगा। सरकार को इस बात पर ही गंभीरता से विश्लेषण करना होगा की आने वाले समय में प्रदेश के गरीब, पिछडे व आम आदमी की यह आवाज आंकड़ों के मायाजाल में उलझकर न रह जाए इस पर विभागीय अधिकारियों की जबावदेही सुनिश्चित बनानी होगी। जिस गति व लोकप्रियता के साथ आज जन मंच गरीब व आम आदमी की आवाज बना है निश्चित तौर पर भविष्य में सरकारी व राजनैतिक स्तर पर इसके परिणाम चौकाने वाले हो सकते हैं। 

(साभार: दैनिक आपका फैसला के अंक 12 जुलाई, 2018 के संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
                 

Monday, 9 July 2018

मीडिया की समरस समाज निर्माण में भूमिका

भारतीय समाज और यहां की परंपराएं व संस्कृति 21वीं सदी की आधुनिकता भरी इस दुनिया में आज भी न केवल कायम है बल्कि अपनी पहचान बनाए हुए है। भले ही दुनिया के कई देशों की संस्कृति व परंपराओं का विलोपन व कई सभ्यताएं समाप्त हो गई हैं, लेकिन भारतीय संस्कृति व परंपराएं न केवल आज भी पूरी दुनिया में विख्यात हैं बल्कि हमारा समाज उन्हे बेहतर ढ़ंग से संजोए हुए है। 
भारतीय समाज में वर्ग विषमता व जातिगत भेदभाव की बात आती है तो हमारा शीश शर्मसार होकर झुक जाता है। बदलते वक्त व बदलती दुनिया के साथ भारतीय समाज भी तेजी से प्रगति के पथ पर अग्रसर है तथा कई रूढिवादी परंपराओं को न केवल हमने बदला है बल्कि उनका त्याग भी किया है। बात चाहे विधवा विवाह, सत्ती प्रथा, स्वच्छता, छुआछूत, महिला उत्पीडन जैसी अनेक बुराईयों को लेकर लडे गए आंदोलनों की हो या फिर समाज सुधारकों व बुद्धिजीवियों द्वारा जन जागरूकता के अलख जगाने की। भारतीय समाज को वर्ग विषमता से मुक्त बनाने तथा सामाजिक बुराईयों से मुक्त बनाने के लिए जितना कठिन परिश्रम देश के महान समाज सुधारकों व पथ प्रदर्शकों ने किया उतना ही अहम योगदान मीडिया का भी रहा है। विभिन्न सामाजिक व स्वतंत्रता आंदोलनों की बात करें तो व्यापक जन जागरूकता लाने में लंबे वक्त तक संघर्ष जारी रहा बल्कि एक साथ समाज के बडे वर्ग को जागरूक बनाने व जोडने में समाचार पत्रों का भी सहारा लिया गया। देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों, देशभक्तों व समाज सुधारकों ने समाचार पत्रों के माध्यम से अपने आंदलनों को आगे बढ़ाने तथा सामाजिक बुराईयों को लेकर जन जागरूकता के लिए अभियान चलाए। 
ऐसे में जहां मीडिया ने विभिन्न सामाजिक बुराईयों के प्रति जागरूकता लाने में अहम भूमिका अदा की तो वहीं सामाजिक रूख बदलने में भी पीछे नहीं रहा है। भारतीय समाज के लिए आज कितने खेद व चिंताजनक बात है कि आजादी के सात दशकों उपरान्त जातिगत छुआछूत के नाम पर व्यक्तियों के साथ भेदभाव होना न केवल घोर निंदनीय है बल्कि शर्मनाक भी है। ऐसा भी नहीं है कि जातिगत भेदभाव को लेकर सरकारी स्तर पर प्रयास नहीं हुए। इस सामाजिक समस्या से छुटकारा पाने तथा दलित व पिछडे लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए कानूनी तौर पर कई संवैधानिक प्रावधान किए गए और बल्कि सरकारी सेवा के साथ-साथ लोकसभा व विधान सभाओं के चुनाव में अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण का भी प्रावधान किया गया है। वाबजूद इसके वर्तमान में भारतीय समाज में जातिगत आधार पर भेदभाव की घटनाएं सामने आना किसी दु:ख दायी पीड़ा से कम नहीं है।
हिमाचली समाज की बात करें तो जाति विशेष के आधार पर मंदिर में प्रवेश न देना, एक ही कुंए से पानी न भरना, एक साथ बैठकर भोजन न करना तथा एक की श्मशानघाट में व्यक्ति का अंतिम संस्कार न करना जैसी घटनाओं को जहां मीडिया समय-समय पर उजागर करता रहा है बल्कि शासन व प्रशासन की आंखे भी खोलता रहा है। पिछले वर्ष कुल्लू जिला के बंजार में हुए अग्रिकांड के दौरान तबाह हुए एक गांव के लोगों को जब एक जाति विशेष के कारण  एक साथ खाना खाने से रोका तो इस घटना को प्रदेश के मीडिया ने न केवल प्रमुखता से उठाया बल्कि इस संवेदनशील मुददे को लेकर व्यापक जन जागरूकता लाने का भी भरसक प्रयास किया। इसी तरह की एक अन्य घटना इसी वर्ष कुल्लू जिला में ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बच्चों के साथ आयोजित टीवी वार्तालाप के सीधे प्रसारण के दौरान एक स्कूल में भी सामने आई। इस घटना के दौरान जहां निचली जाति से बच्चों को सामान्य बच्चों से दूर बिठाया गया बल्कि उनके साथ भेदभाव भी हुआ। इस घटना को भी मीडिया ने न केवल प्रमुखता से उठाया बल्कि इसकी गूंज सरकार व प्रशासन तक पहुंची। जिसके परिणाम स्वरूप सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है तथा घटना में शामिल लोगों के विरूद्ध कानूनी मामला भी दर्ज किया। इसी तरह के मामले मीडिया समय-समय पर उजागर करता आ रहा है।
लेकिन अब प्रश्न जातिगत भेदभाव से जुडी इन घटनाओं के उजागर होने का नहीं बल्कि प्रश्न समाज में व्याप्त उस जातिगत भेदभाव व छूआछूत का है जो आज भी गाहे बगाहे हमारे समाज में व्याप्त है। इस तरह की घटनाएं न केवल मानवता के विरूद्ध है बल्कि सभ्य समाज के लिए चिंता का कारण भी हैं। भले ही आज हमने आधुनिक जीवन की वो तमाम ऊचांईयों छू ली हों, जो कभी हमसे कोसों दूर थीं। लेकिन महज एक व्यक्ति का इसलिए तिरस्कार कर दिया जाए कि वो तथाकथित नीच जाति से है, यह न केवल निंदनीय है बल्कि सभ्य समाज में स्वीकार्य भी नहीं हो सकता है। आखिर वर्ग विषमता से मुक्त एक आदर्श समाज बनाने में हम पीछे क्यों  हैं, इस पर भी गंभीरता से मंथन होना चाहिए। साथ ही जातिगत प्रथा के कारण समाज में विघटन पैदा हो हमें उस मानसिकता के खिलाफ भी जंग लडनी होगी। साथ ही उन स्वार्थी लोगों से भी हमें सतर्क रहना होगा जो जातिगत भेदभाव की घटनाओं को हवा देकर निजी हित साधते रहे हैं। 
इन परिस्थितियों में मीडिया को न केवल जातिगत भेदभाव से जुडी घटनाओं को प्रमुखता से उठाना चाहिए बल्कि जाति के आधार पर समाज को बांटने वाले भी बेनकाव हों ताकि जहां जातिप्रथा व छूआछूत के प्रति व्याप्त सामाजिक मानसिकता में व्यापक बदलाव लाया जा सके तो वहीं निजी हित साधने वाली राष्ट्र विरोधी ताकतों का भी डटकर विरोध किया जा सके। 
ऐसे में हमारे समाज से वर्ग विषमता व जातिगत छुआछूत की यह समाजिक बुराई पूरी तरह से समाप्त हो इसके लिए जहां देश का जागरूक मीडिया व्यापक जन जागरूकता लाने में एक अहम रोल अदा कर सकता है तो वहीं 21वीं सदी की हमारी युवा पीढ़ी इस सामाजिक समस्या को जड़ से उखाडऩे में न केवल सक्षम व समर्थ है बल्कि वह एक ऐसा भारतीय समाज स्थापित करने का भी सामथ्र्य रखती है जिसमें वर्ग विषमता, जातिप्रथा व छुआछूत के लिए कोई स्थान नहीं होगा। आओ हम सब मिलकर जाति प्रथा से मुक्त एक नए व आधुनिक भारतीय समाज निर्माण के लिए आगे आएं जहां व्यक्ति की पहचान उसकी जाति व वर्ग से नहीं बल्कि उसके कर्म व पुरूषार्थ से हो।



 (साभार: हिम संचार विशेषांक विश्व संवाद केंद्र शिमला में प्रकाशित)

Tuesday, 3 July 2018

गृहिणी सुविधा योजना के तहत ऊना जिला में लाभान्वित होंगे 2487 परिवार

गृहिणी सुविधा योजना के अंतर्गत जिला ऊना में प्रथम चरण में 2487 पात्रों को लाभान्वित करने का लक्ष्य रखा गया है। गृहिणी सुविधा योजना हिमाचल प्रदेश सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी योजना है, जिसका शुभारंभ 26 मई, 2018 को प्रदेश के मुख्य मत्री जय राम ठाकुर ने शिमला से किया है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य जहां महिलाओं का सशक्तिकरण करना है तो वहीं प्रदेश के पात्र उपभोक्ताओं को स्वच्छ व धुंआ रहित ईंधन उपलब्ध करवाकर पर्यावरण का संरक्षण भी करना है।
किन्हे मिलेगा योजना का लाभ:
गृहिणी सुविधा योजना के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश के ऐसे महिला परिवार वाले स्थायी निवासी जिनके पास एल.पी.जी. कनैक्शन नहीं है, को एक घरेलू एल.पी.जी. कनैक्शन हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा उपलब्ध करवाया जा रहा है। इस योजना में महिलाओं वाले ऐसे हिमाचली परिवार (किसी भी श्रेणी से संबंधित) जिनके पास अपना या किसी भी सरकारी योजना जैसे उज्ज्वला इत्यादि के तहत घरेलू गैस कनैक्शन नही हैं, को लाभान्वित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, आग्रि, भूकंप इत्यादि से प्रभावित परिवारों को भी इस योजना के अन्तर्गत लाभान्वित किया जाएगा। प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित परिवारों को संबंधित कार्यकारी दंडाधिकारी द्वारा जारी प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा।
किन्हे नहीं मिलेगा लाभ:
 इस योजना के अन्तर्गत ऐसे परिवारों को लाभान्वित नहीं किया जाएगा जिनके पास पहले से ही एलपीजी गैस कनेक्शन उपलब्ध है तथा ऐसे परिवार जिनका कोई भी सदस्य सरकारी/अद्र्ध सरकारी, स्वायत्त संस्था, बोर्ड, कॉर्पोरेशन में कार्यरत इत्यादि में नियमित या अनुबंध के आधार पर कार्यरत न हो। इसके अलावा ऐसे परिवार जिनका कोई भी सदस्य ठेकेदार के नाते सरकार के साथा पंजीकृत है को भी लाभ नहीं मिलेगा। साथ ही ऐसे परिवार जिनका कोई भी सदस्य राज्य/केन्द्र सरकार, बोर्ड, कॉर्पोरेशन, बैंक, स्वायत्त संस्था से पारिवारिक पेंशन तथा सामाजिक सुरक्षा पेंशन लेता हो।
कैसे मिलेगा लाभ:
इस योजना के अंतर्गत पात्र परिवारों का चयन संबंधित ग्राम पंचायत जबकि शहरी क्षेत्रों में संबंधित शहरी निकाय संस्थाओं द्वारा निर्धारित प्रपत्र पर आवेदन प्राप्त किए जाएंगे। प्राप्त आवेदन पत्रों को किसी प्रकार आपत्ति के लिए संबंधित पंचायत या शहरी निकाय के नोटिस बोर्ड में 10 दिन के लिए प्रदर्शित किया जाएगा तथा किसी प्रकार का आपत्ति होने पर जिला नियंत्रक खाद्य, नागरिक आपूर्ति को 15 दिन के भीतर मामला प्रस्तुत करना होगा। इसके उपरान्त चयनित पात्र लोगों की सूची को तेल कंपनियों को भेजा जाएगा तथा निदेशक खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले गैस कनेक्शन के लिए धनराशि जारी करेंगे। गैस एजैंसी तथा संबंधित विभाग द्वारा आयोजित होने वाले कार्यक्रम में पात्रों को एलपीजी गैस कनेक्शन वितरित किए जाएंगे।
क्या कहते हैं अधिकारी:
जिला नियन्त्रक खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले ऊना राजीव शर्मा ने बताया कि इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र लोग अपनी ग्राम पंचायत या शहरी निकाय के कार्यालयों से संपर्क कर निर्धारित प्रपत्र प्राप्त कर सकते हैं। उन्होने बताया कि सरकार ने इस योजना के प्रथम चरण में ऊना जिला में 2487 पात्रों को लाभान्वित करने का लक्ष्य रखा है तथा वर्तमान में संबंधित पंचायतों एवं स्थानीय नगर निकायों से प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग 5958 लोगों ने अपने आवेदन पत्र प्रस्तुत कर दिए हैं। उन्होने कहा कि पात्रों के चयन प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए लगभग 2 माह का समय लगेगा। उन्होने बताया कि इस योजना बारे लोगों को जागरूक करने के लिए पंचायत स्तर पर विभागीय अधिकारियों द्वारा जागरूकता शिविर भी आयोजित किए जा रहे हैं।