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Tuesday, 20 February 2024

जाईका परियोजना से जुडक़र आर्थिकी को सुदृढ़ बना रही राधा रानी समूह की महिलाएं

जोगिन्दर नगर के रैंस भलारा की महिलाएं तैयार कर रही हैं विभिन्न तरह का अचार

वन मंडल जोगिन्दर नगर के अंतर्गत वन परिक्षेत्र लडभड़ोल के गांव रैंस भलारा की महिलाएं हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन और आजीविका सुधार परियोजना (जाईका वानिकी परियोजना) के माध्यम से स्वयं सहायता समूह बनाकर अपनी आर्थिकी को सुदृढ़ करने का प्रयास कर रही हैं। वर्ष 2020-21 के दौरान ग्राम वन विकास समिति रैंस भलारा द्वारा गठित राधा रानी स्वयं सहायता समूह में 9 महिलाएं इसका हिस्सा बनी हैं। इन महिलाओं द्वारा ग्रामीण स्तर पर उपलब्ध विभिन्न तरह के जंगली व प्राकृतिक उत्पादों से अचार, चटनी इत्यादि बनाने का कार्य किया जा रहा है।
जब समूह की प्रधान रीतू देवी से बातचीत की उनका कहना है कि जाईका वानिकी परियोजना के माध्यम से उन्होंने राधा रानी स्वयं सहायता समूह गठित किया है। इस समूह से कुल नौ महिलाएं जुड़ी हुई हैं जो 10 प्रकार का आचार बना रही हैं। जिसमें कद्दू, रेली, अदरक, लहसुन, नींबू, आंवला, गलगल, अरबी, मिर्च, मूली प्रमुख हैं। साथ ही हरड़, आंवला व बेहड़ा का पाउडर भी तैयार किया जाता है।
उन्होंने बताया कि जनवरी, 2023 में जाईका वानिकी परियोजना के माध्यम से अचार चटनी इत्यादि बनाने का तीन दिन का प्रशिक्षण भी हासिल किया है। स्वयं सहायता समूह को विभिन्न तरह की आर्थिक गतिविधियां संचालित करने के लिए एक लाख रूपये का रिवॉलविंग फंड भी उपलब्ध करवाया गया है। उन्होंने बताया कि समूह की महिलाएं अपनी आर्थिक जरूरतों के अनुसार समय-समय पर इंटरलोनिंग भी करती हैं।
रीतू देवी का कहना है कि समूह द्वारा तैयार उत्पादों को स्थानीय स्तर के अलावा विभिन्न मेलों के दौरान स्टॉल इत्यादि लगाकर ग्राहकों को उचित दामों पर उपलब्ध करवाया जाता है। उन्होंने बताया कि अब तक जितना भी आचार समूह की महिलाओं द्वारा तैयार किया गया है वह पूरा बिक्री हो चुका है तथा इससे उन्हें अतिरिक्त आय सृजन का एक माध्यम भी मिला है।
क्या कहते हैं अधिकारी
वन मंडलाधिकारी जोगिन्दर नगर कमल भारती का कहना है कि जोगिन्दर नगर वन मंडल की कुल 6 वन रेंज में से पांच जिनमें उरला, जोगिन्दर नगर, लडभड़ोल, धर्मपुर व कमलाह वन रेंज शामिल है में जाईका वानिकी परियोजना को कार्यान्वित किया जा रहा है। इस परियोजना के माध्यम से कुल 33 वन विकास समितियों के तहत 66 स्वयं सहायता समूहों का गठन कर लगभग 700 लोगों को जोड़ा गया है।
उन्होंने बताया कि हल्दी प्रसंस्करण, कटिंग व टेलरिंग, नीटिंग, अचार चटनी, मशरूम उत्पादन के साथ-साथ टौर के पत्तल निर्माण, लहसुन व अदरक का प्रसंस्करण का कार्य स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से किया जा रहा है। जाईका वानिकी परियोजना के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों को एक दिन से लेकर 45 दिन तक प्रशिक्षण सुविधा भी उपलब्ध करवाई जा रही है। साथ ही स्वयं सहायता समूहों द्वारा विभिन्न गतिविधियों के संचालन के लिए एक-एक लाख रुपये का रिवॉल्विंग फंड भी मुहैया करवाया गया है। स्वयं सहायता समूहों द्वारा तैयार उत्पादों की बिक्री को वन मंडल कार्यालय परिसर जोगिन्दर नगर में सेल्स काउंटर भी स्थापित किया गया है। DOP 20/02/2024












Wednesday, 4 January 2023

स्वयं सहायता समूह संगठन की महिलाएं आंवला बर्फी व ढींगरी मशरूम का कर रही उत्पादन

 चौंतड़ा ब्लॉक में ग्राम संगठन समूह बनाकर महिलाओं ने बढ़ाए स्वरोजगार की ओर कदम

मंडी जिला के चौंतड़ा ब्लॉक में ग्रामीण महिलाओं ने ग्राम स्वयं सहायता समूह संगठन गठित कर विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाए हैं। ग्रामीण महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से आंवला बर्फी, ढ़ींगरी मशरूम, विभिन्न तरह के अचार, बैग इत्यादि का उत्पादन कर आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में आगे बढऩे का प्रयास कर रही हैं। वर्तमान में चौंतड़ा ब्लॉक में लगभग 45 स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं 6 ग्राम संगठन समूह बनाकर विभिन्न गतिविधियों से जुडक़र परिवार की आर्थिकी को सुदृढ़ करने का प्रयास कर रही हैं।
इन्ही ग्राम संगठन समूहों से जुड़ी महिलाएं आंवला बर्फी के साथ-साथ ढींगरी मशरूम का भी उत्पादन कर रही हैं। प्राकृतिक फल एवं विटामिन सी की प्रचुर मात्रा वाले आंवला से महिलाएं आंवला बर्फी का निर्माण कर रही हैं। यह आंवला बर्फी न केवल सेहत के लिए अच्छी है बल्कि आंवला रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का भी काम करता है। ऐसे में आंवला से तैयार हो रही यह बर्फी सेहतमंद तो है ही साथ ही खाने में भी बेहद स्वादिष्ट है।
जब इस बारे अन्नपूर्णा ग्राम संगठन समूह की सदस्य लीला देवी से बातचीत की उनका कहना है कि आंवला बर्फी परंपरागत मिठाई का एक बेहतरीन विकल्प है। पूरी तरह से प्राकृतिक फल आंवला से बनने वाली यह बर्फी एकदम प्राकृतिक एवं सेहतमंद है। इसके सेवन से शरीर में जहां विटामिन सी की कमी को दूर किया जा सकता है तो वहीं शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाने में मदद मिलती है। आंवला बर्फी को तिल के तेल तथा देसी घी में दो तरह से तैयार किया जा रहा है तथा इसमें किसी प्रकार के केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है। आंवला बर्फी को कई वर्षों तक बिना फ्रीज किये स्टोर किया जा सकता है तथा यह खराब नहीं होती है।
इसी तरह यही महिलाएं ढींगरी मशरूम का भी उत्पादन कर रही हैं। इसके लिए इन्होने अन्नपूर्णा आश्रम लदरूहीं में एक कमरा ले रखा है जहां पर ढींगरी मशरूम तैयार की जा रही है। ओम नमो शिवाय ग्राम संगठन समूह तलकेहड़ की सदस्य रजनी देवी का कहना है कि वर्तमान में 30 किलोग्राम ढ़ींगरी मशरूम के 150 बैग लगाए हैं तथा अब तक वे 20 किलोग्राम से अधिक ढींगरी मशरूम बेच चुकी हैं। वर्तमान यह ढींगरी मशरूम बाजार में 200 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रही है। ढींगरी मशरूम उत्पादन से ग्राम संगठन समूह की लगभग 10 से 15 महिलाएं जुड़ी हुई हैं तथा आगामी दो से तीन माह तक ढींगरी मशरूम का यह उत्पादन जारी रहेगा।
इसी ग्राम संगठन समूह से जुड़ी गीतांजलि कबाड़ वस्तुओं से सजावटी सामान को तैयार कर रही है। इसके अलावा इन्ही ग्राम संगठन समूह की महिलाओं ने दीपावली के अवसर पर गोबर के दीपक, कैंडल, तोरण इत्यादि भी तैयार किये थे। साथ ही कुछ महिलाएं बैग निर्माण, गर्म स्वेटर इत्यादि बनाने का भी कार्य कर रही हैं। ऐसे में हमारी ग्रामीण परिवेश की ये महिलाएं स्वरोजगार गतिविधियों से जुडक़र महिला सशक्तीकरण की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए हैं।

तैयार उत्पाद को बेचने के लिये मार्केटिंग की है दरकार, बड़े स्तर पर निर्मित करेंगे उत्पाद

ग्राम संगठन समूह की महिलाओं का कहना है कि यदि उन्हे आंवला बर्फी, ढींगरी मशरूम, अचार इत्यादि को बेचने के लिए विपणन की अच्छी सुविधा मिले तो वे बड़े पैमाने पर इनका उत्पादन कर सकती हैं। इससे न केवल उनके इन उत्पादों को ज्यादा लोगों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी बल्कि संगठन से जुड़ी महिलाओं की आमदनी में भी वृद्धि होगी।  

क्या कहते हैं अधिकारी:

एसडीएम जोगिन्दर नगर डॉ. (मेजर) विशाल शर्मा का कहना है कि जोगिन्दर नगर उपमंडल में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं आर्थिकोपार्जन के लिए बेहतरीन गतिविधियां चला रही हैं। ऐसे में इन स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं द्वारा तैयार उत्पादों को एक बेहतरीन मंच मिले इस दिशा में जोगिन्दर नगर प्रशासन द्वारा आने वाले समय में हरसंभव मदद करने का प्रयास किया जाएगा। साथ ही इन्हे बेहतर प्रशिक्षण प्रदान कर उत्पादों को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाने की दिशा में कार्य किया जाएगा ताकि हमारी ये ग्रामीण महिलाएं आर्थिक व सामाजिक तौर ज्यादा सशक्त हो सकें।














Tuesday, 3 January 2023

संगम स्वयं सहायता समूह संगठन बाग की महिलाएं स्वरोजगार से सुदृढ़ कर रही आर्थिकी

 सिलाई, कढ़ाई, आचार, चटनी, बैग इत्यादि निर्मित कर प्रतिमाह कमा रही 5-6 हजार रुपये

ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं विभिन्न स्वरोजगार गतिविधियों से जुडक़र न केवल आर्थिक तौर पर सशक्त हो रही हैं बल्कि समाज में दूसरी महिलाओं को भी प्रेरित करने का कार्य कर रही हैं। ऐसा ही एक स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं द्वारा गठित संगम संगठन बाग तहसील लडभड़ोल उपमंडल जोगिन्दर नगर जिला मंडी है। इस संगठन के साथ जुड़े 9 स्वयं सहायता समूहों की लगभग 125 महिलाएं आर्थिकोपार्जन के लिए सिलाई, कढ़ाई, आचार, चटनी, बैग इत्यादि का निर्माण कर न केवल प्रतिमाह 5 से 6 हजार रूपये की आमदनी अर्जित कर पा रही हैं बल्कि समाज में स्वयं को स्थापित भी किया है।
जब इस बारे संगम स्वयं सहायता समूह संगठन बाग की प्रधान राज कुमारी से बातचीत की उनका कहना है कि संगम संगठन के अंतर्गत 9 स्वयं सहायता समूहों की लगभग 125 महिलाएं जुड़ी हुई हैं जो आर्थिकोपार्जन की विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से प्रतिमाह 5-6 हजार रुपये की आमदनी अर्जित कर रही हैं। उनका कहना है कि महिलाएं गर्म स्वेटर, कोटी, जुराबें, परांदे इत्यादि बनाने के साथ-साथ विभिन्न तरह के अचार जैसे सूखे सेब, गल-गल, आंवला, आम इत्यादि तैयार कर रही हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न तरह के सजावटी सामान को भी तैयार किया जा रहा है।
राज कुमारी कहती है कि वर्तमान में खंड विकास कार्यालय परिसर चौंतड़ा में एक दुकान के माध्यम से संगठन की महिलाओं द्वारा तैयार उत्पादों को बेचने का कार्य किया जा रहा है। गत दो से तीन माह के दौरान ही लगभग 50 हजार रुपये से अधिक की आमदनी अर्जित कर ली है। इसके अलावा महिलाओं द्वारा तैयार उत्पादों को स्थानीय दुकानदार घरों से ही खरीदकर ले जा रहे हैं। जिससे तैयार माल को बेचने में उन्हे किसी प्रकार की दिक्कत नहीं आ रही है।
संगम संगठन से जुड़ी लगभग 10 महिलाओं को मुख्यमंत्री ग्राम कौशल योजना के माध्यम से प्रशिक्षित भी किया गया है तथा प्रशिक्षण प्राप्त करने पर प्रति महिला 9-9 हजार रुपये की राशि सरकार ने कौशल विकास भत्ता योजना के माध्यम से बतौर प्रोत्साहन राशि मुहैया करवाई है। जबकि बतौर प्रशिक्षक राजकुमारी को 22 हजार रुपये की राशि प्राप्त हुई है। इसके अलावा स्वयं सहायता समूहों को स्वरोजगार गतिविधियां शुरू करने के लिए खंड विकास कार्यालय के माध्यम से 15-15 हजार रुपये का रिवोल्विंग फंड भी प्राप्त हुआ है। साथ ही कच्चा माल खरीदने एवं संगठन की अन्य गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिये 3 लाख रुपये का ऋण भी संगठन की महिलाओं ने लिया है।

क्या कहते हैं अधिकारी:

एसडीएम जोगिन्दर नगर डॉ. (मेजर) विशाल शर्मा का कहना है कि जोगिन्दर नगर उपमंडल में कुछ स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं आर्थिकोपार्जन के लिए बेहतरीन गतिविधियां चला रही हैं। ऐसे में इन स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं द्वारा तैयार उत्पादों को एक बेहतरीन मंच मिले इस दिशा में जोगिन्दर नगर प्रशासन द्वारा आने वाले समय में हर संभव मदद करने का प्रयास किया जाएगा। उन्होने ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं द्वारा स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से स्वरोजगार की दृष्टि विभिन्न आर्थिक गतिविधियों से जुडऩे पर सराहना की तथा कहा कि जोगिन्दर नगर प्रशासन इन्हे प्रशिक्षित करने की दिशा में मदद करेगा ताकि वे बेहतर कार्य कर सकें।











Friday, 5 May 2017

स्वयं सहायता समूह बनाकर देहलां की महिलाओं ने स्वावलंबन की ओर बढ़ाए कदम

गांव में ही वाशिंग पाऊडर बनाकर आर्थिकी को प्रदान कर रही है मजबूती
कहावत है यदि व्यक्ति के मन में कुछ करने की चाह हो तो विकट परिस्थितियां भी उसे आगे बढऩे से नहीं रोक सकती हैं। कमोवेश कुछ यही कर दिखाया है ऊना विकास खंड की ग्राम पंचायत लोअर देहलां की 20 ग्रामीण महिलाओं ने। गांव की यह 20 महिलाएं कपडे धोने का वाशिंग पाऊडर (सर्फ) बनाकर न केवल सरकार के महिला शक्तिकरण के उदेश्य को साकार करने में एक कदम आगे बढ़ी है बल्कि साबित कर दिया है कि यदि थोडी सी हिम्मत के साथ सकारात्मक प्रयास किए जाएं तो कुछ करना असंभव नहीं है। आज गांव की यह 20 महिलाएं मिलकर वाशिंग पाऊडर (सर्फ) तैयार कर अपनी सफलता की कहानी को खुद लिखने जा रही हैं।
यह कहानी है ऊना विकास खंड के अंतर्गत ग्राम पंचायत लोअर देहलां की 20 महिलाओं की है। इन महिलाओं ने कृषि विभाग के सहयोग से वर्ष 2016 में बाबा भाई पैहलों स्वयं सहायता समूह बनाया। समूह बनने के बाद सभी महिलाओं ने एक सौ रूपये प्रतिमाह की दर से बचत शुरू की तथा बचत को रखने के लिए स्थानीय कांगडा सहकारी बैंक की शाखा में बचत खाता खोल दिया। महिलाओं ने एक दूसरे की आर्थिक मदद करने के लिए दो प्रतिशत पर इंटरलोनिंग तथा समूह से बाहर के लोगों को पांच प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण मुहैया करवाने की शुरूआत की। इससे न केवल समूह बल्कि गांव की अन्य महिलाओं को जरूरत पडने पर सस्ती ब्याज दरों पर ऋण की सुविधा गांव में ही उपलब्ध हो गई। लेकिन समूह की महिलाओं में इससे भी आगे बढक़र कुछ बेहतर करने का जज्बा था, लेकिन सही मार्गदर्शन न होने के कारण वह अनिर्णय की स्थिति में रही। लेकिन समूह के हौंसले को उस वक्त एक नया लक्ष्य मिल गया जब फरवरी, 2017 में उन्हे कृषि विभाग के सौजन्य से एक दिन का कपडे धोने का वाशिंग पाऊडर तैयार करने का प्रशिक्षण हासिल हुआ। प्रशिक्षण के बाद समूह की सभी महिलाओं ने सर्फ तैयार करने का निर्णय लिया। आज समूह की महिलाएं गांव में ही वाशिंग पाऊडर (सर्फ) तैयार कर धीरे-धीरे अपनी आर्थिकी को मजबूती प्रदान करने में लगी हैं।
स्वयं सहायता समूह की महिलाएं तैयार वाशिंग पाउडर के साथ
जब इस बारे समूह की प्रधान अनीता कुमारी से बातचीत की तो उनका कहना है कि समूह की सभी महिलाएं स्थानीय मंदिर में महीने या फिर दो सप्ताह बाद इक्टठी होकर वाशिंग पाउडर को तैयार करती हैं तथा एक बार में कम से कम एक क्विटल तक वाशिंग पाऊडर तैयार किया जाता है। उनका कहना है कि समूह ने फरवरी, 2017 से अब तक लगभग पांच क्विंटल वाशिंग पाऊडर तैयार किया है जिसमें से लगभग साढ़े चार क्विंटल तक बिक चुका है। उनका कहना है कि उनका सर्फ प्रति किलो 45 रूपये की दर से गांव व आसपास के क्षेत्रों में बिक रहा है। उनका कहना है कि वाशिंग पाऊडर तैयार करने के लिए कच्चे माल को प्रदेश के बाहर जाकर लुधियाना या फिर दूसरे शहरों से लाना पडता है जिससे डिटर्जेंट तैयार करने की न केवल लागत बढ़ जाती है बल्कि मुनाफे में भी कमी आती है। उनका कहना है कि आज समूह के लिए सबसे बडी समस्या सर्फ की पैकेजिंग की है। उनका कहना है कि यदि सरकार उन्हे पैकेजिंग की ट्रेनिंग मुहैया करवा दे तो वह अपने उत्पाद को बडी कंपनियों की तर्ज पर मार्केट में उतार सकती हैं। उन्होने इस बारे महिलाओं को ग्रामीण स्तर पर ही बेहतर प्रशिक्षण करवाने की वकालत भी की ताकि समूह वर्तमान बाजार की जरूरतों के आधार पर वाशिंग पाऊडर का उत्पादन कर सके।
जब इस बारे स्थानीय पंचायत प्रधान देवेन्द्र कुमार से बातचीत की तो उन्होने समूह के प्रयासों की सराहना की तथा कहा कि समूह द्वारा तैयार उत्पाद ग्रामीण स्तर पर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे इसके लिए पंचायत उन्हे डिटर्जेंट विक्रय के लिए एक बेहतर स्थान मुहैया करवाने का प्रयास करेगी। उन्होने बताया कि पंचायत में महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से सशक्त बनाने के लिए अबतक राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत 10 समूहों का गठन कर लिया गया है।







Tuesday, 22 October 2013

श्री साईं स्वयं सहायता समूह की महिलाएं लिख रही हैं सफलता की कहानी

जिला सिरमौर के विकास खंड पांवटा साहिब की ग्राम पंचायत पुरुवाला के कांशीपुर गांव की दस महिलाएं स्वयं सहायता समूह बनाकर आर्थिक व सामाजिक तौर पर सशक्त हो रही हैं। यह महिलाएं न केवल अपनी मेहनत व लगन से अपनी सफलता की कहानी स्वयं लिख रही हैं बल्कि हमारे समाज की अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत बनकर खडी हुई हैं। इन महिलाओं द्वारा पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ कुछ हटकर करने की चाहत ने ही इन्हे आज अन्य महिलाओं के मुकाबले एक अलग पहचान मिल रही है।
जुलाई, 2012 में समूह की ही कुछ महिलाओं के अथक प्रयास के चलते स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के अन्र्तगत खंड विकास कार्यालय पांवटा साहिब के सहयोग से श्री साईं स्वयं सहायता समूह का गठन किया गया। इस समूह ने सबसे पहले यूको बैंक की शाखा बद्रीपुर पांवटा साहिब में खाता खोला तथा प्रतिमाह 100 रुपये प्रति सदस्य बचत की शुरुआत की। आज यह महिलाएं काफी धनराशि बतौर बचत इक्टठा कर चुकी हैं। लेकिन इनके इस प्रयास को एक नई मंजिल तब मिली जब यूको-आरसेटी ने डीआरडीए जिला सिरमौर के सौजन्य से इन्हे मार्च 2013 में मिठाई के डिब्बे बनाने के लिए पांच दिन का प्रशिक्षण मिला। इसके बाद विभाग ने इन्हे अपना स्वयं का काम शुरु करने के लिए दस हजार रुपये की आर्थिक सहायता राशि मुहैया करवाई। आज इन महिलाओं ने मात्र 6-7 महीनों की मेहनत से ही जहां लगभग 30 हजार मिठाई के डिब्बे बनाकर लगभग 30-35 हजार रुपये का मुनाफा कमा लिया है तो वहीं अपनी मेहनत से समाज में अपनी एक अलग पहचान भी बना रही हैं।
बडे ही आत्मविश्वास से लबरेज इस समूह की प्रधान श्रीमति शीला देवी से बातचीत की तो उनका कहना है कि समूह की सभी सदस्य प्रतिदिन दो से पांच बजे तक मिठाई के डिब्बे बनाने का कार्य करती हैं। जबकि विशेष त्योहारों जैसे रक्षा बंधन, दशहरा, ईद, दिवाली इत्यादि के मौके पर दुकानदारों की अतिरिक्त मांग को पूरा करने के लिए अतिरिक्त समय लगाकर इस कार्य को पूरा करती हैं। साथ ही जानकारी दी कि अकेले रक्षा बंधन के पर्व के दौरान ही उन्होने दस हजार से ज्यादा डिब्बे बनाए हैं। समूह की सचिव श्रीमति ममता देवी का कहना है कि समूह की सभी सदस्य अपने घर के रोजमर्रा के कामकाज, खेतीवाडी, पशुपालन इत्यादि के कार्य निपटाने के बाद ही जो खाली समय बचता है उसी में ही वह यह डिब्बे बनाने का कार्य करती हैं। उनका यह भी कहना है कि यह कार्य करते हुए न केवल आत्मनिर्भरता व स्वावलंबन का एहसास हो रहा है बल्कि इस मंहगाई के दौर में परिवार की आर्थिकी हो मजबूत बनाने में भी सफल हो पा रही हैं।

इसी संबंध में इनका कहना है कि समूह की सभी सदस्य मिठाई के डिब्बे बनाने के लिए कच्चामाल बाजार से खरीदने से लेकर तैयार माल की सप्लाई तक के कार्य वह स्वयं ही करती हैं। साथ ही इनका कहना है कि यदि सरकार उनके इस तैयार माल के लिए मॉर्केटिंग की कुछ व्यवस्था कर दे तो वह इससे भी बेहतर कार्य कर सकती हैं। साथ उनकी सरकार से मांग है कि यदि उन्हे सरकार डिब्बे तैयार करने के लिए मशीन खरीदने के लिए कम ब्याजदर पर ऋण मुहैया करवाए तो उनका समूह जहां अच्छी गुणवता वाले मिठाई के डिब्बे तैयार कर पाएगा तो वहीं बाजार में भी उनके तैयार माल की डिमांड बढऩे के साथ-साथ आमदन में भी बढौतरी होगी। 

क्या कहते हैं अधिकारी:
इस संबंध में खंड विकास अधिकारी पांवटा साहिब श्री सतपाल सिंह राणा का कहना है कि पांवटा विकास खंड में वर्ष 2012-13 के दौरान स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के तहत कुल 138 एेसे महिला स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया है। जिसमें से 20 समूहों को बैंकों से जोडकर लगभग 72 लाख रुपये का ऋण विभिन्न गतिविधियों को चलाने के लिए मुहैया करवाया गया है। जबकि 10 समूहों को अपनी छोटी मोटी गतिविधियों को चलाने के लिए दस-दस हजार रुपये का रिवोलविंग फंड भी मुहैया करवाया है। साथ ही जानकारी दी कि स्वयं सहायता समूहों के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण शिविर भी लगाए जाते हैं जिसके माध्यम से समूूहों को बचत करना, कैश बुक मैंटेन करना, इंटरलोनिंग इत्यादि की जानकारी दी जाती है। साथ ही गरीब परिवारों से संबंध रखने वाली महिलाआें व युवतियों को यूको आरसेटी के माध्यम से भी स्वरोजगार से जुडे विषयों पर प्रशिक्षण दिया जाता है। 
(साभार: हिमाचल दस्तक 21 अक्तूबर, आपका फैसला, 20 अक्तूबर, हिमाचल दिस वीक 9 नवम्बर, हिंदुस्तान टाईम्स 25 नवम्बर तथा हिमप्रस्थ अंक नवम्बर, 2013 में प्रकाशित)