सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय भारत सरकार की सडक़ दुर्घटनाओं को लेकर वर्ष-2016 के जारी आंकडों के अनुसार देश में वर्ष 2016 के दौरान 4,80,652 सडक़ हादसे हुए जिनमें जहां डेढ़ लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई तो वहीं लगभग पांच लाख लोग घायल हुए हैं। देश की सडक़ों में प्रतिदिन 1317 सडक़ हादसे हो रहे हैं तथा 413 लोग प्रतिदिन जबकि प्रतिघंटा 17 लोग सडक़ों पर दम तोड रहे हैं। भले ही वर्ष 2015 के मुकाबले देश में सडक़ हादसों में लगभग 4.1 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई है लेकिन सडक़ हादसों के कारण मरने वाले लोगों के आंकडे में 3.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ऐसे में सडक़ों पर प्रतिदिन सडक़ दुर्घटनाओं के कारण सैंकडों लोगों की जान चली जाना एक बहुत बड़ा चिंतनीय विषय है तथा जिस गति से यह आंकडा बढ़ रहा है सडक़ दुर्घटनाओं को लेकर देश की एक भयावह तस्वीर हमारे सामने प्रस्तुत हो रही है।
सरकार द्वारा जारी इन्ही आंकडों का आगे विश्लेषण करें तो सबसे चौकाने वाली बात यह सामने आ रही है कि इन सडक़ दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे लोगों में से 46.3 फीसदी 18-35 वर्ष आयु वर्ग के युवा हैं जबकि 18-45 वर्ष आयु वर्ग में यह आंकड़ा बढक़र 68.6 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। देश की युवा शक्ति का इस तरह सडक़ दुर्घटनाओं में शिकार हो जाना देश व समाज के लिए एक बहुत बडी त्रासदी कही जा सकती है। आंकड़ों से एक बात यह ऊभर कर सामने आ रही है कि देश में हो रहे सडक़ हादसों में से 33.8 प्रतिशत सडक़ हादसे दुपहिया वाहनों के कारण हो रहे हैं जबकि टैक्सी, जीप, कार की भागीदारी 23.6 प्रतिशत, ट्रक, टैम्पों, ट्रैक्टर इत्यादि की भागीदारी 21 जबकि बसों का आंकडा 7.8 प्रतिशत है। देश में वर्ष 2015 के मुकाबले 2016 में दुपहिया वाहन दुर्घटनाओं का आंकड़ा 28.8 प्रतिशत से बढक़र 33.8 प्रतिशत तक पहुंच गया है। दुपहिया सडक़ दुर्घटना के कारण दस हजार लोगों की मौत इसलिए हो गई कि उन्होने हेल्मेट नहीं पहना था जबकि बिना सीट बेल्ट वाहन चलाने वाले लोगों की यह संख्या पांच हजार से अधिक रही है।
आंकड़ो का आगे विश्लेषण करें तो देश में गत वर्ष नशीले पदार्थों के सेवन के चलते लगभग 15 हजार सडक़ हादसे हुए जबकि वाहन चलाते समय मोबाईल फोन का इस्तेमाल करते हुए लगभग पांच हजार सडक़ दुर्घटनाएं हुई तथा 2138 लोगों ने अपनी जान गंवाई और लगभग 47 सौ लोग घायल हो गए। आंकडों से एक चौकाने वाली अहम बात यह सामने आ रही है कि देश में हिट व रन के मामलों में भी वृद्धि दर्ज हुई है तथा वर्ष 2016 में कुल सडक दुर्घटनाओं में से 11.6 प्रतिशत हिट व रन के मामले सामने आए जिनके तहत लगभग 23 हजार लोगों को अपनी जान गंवानी पडी है। जबकि ओवरलोडिंग के कारण देश में लगभग 61 हजार सडक़ हादसे हुए जिनमें लगभग 21 हजार लोगों की मौत हो गई। यही नहीं देश में कुल सडक़ हादसों में से 84 प्रतिशत हादसे वाहन चालक की लापरवाही के कारण हो रहे हैं तथा 80 प्रतिशत लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। ऐसे में इन आंकडों से यह स्पष्ट हो रहा है कि अधिकतर सडक दुर्घटनाओं के लिए लोग स्वयं ही कारण बन रहे हैं तथा सडक़ पर स्वयं के साथ-साथ दृूसरों की जिंदगी के लिए भी बहुत बड़ा खतरा बन रहे हैं।
ऐसे में यदि हिमाचल प्रदेश की बात करें तो वर्ष 2016 में 3168 सडक़ हादसे हुए जिनमें वर्ष 2015 के आंकडे 1096 लोगों के मुकाबले 1271 लोगों को अपनी जान गंवानी पडी तथा 5764 लोग घायल हुए जो वर्ष 2015 में यह आंकडा 5108 का था। हिमाचल में ड्राईवरों की लापरवाही के कारण 2274 सडक़ दुर्घटनाएं घटित हुई जिनमें 946 लोगों की मौत हो गई। राष्ट्रीय आंकड़ों की तरह ही हिमाचल में भी हिट व रन के 728 मामले सामने आए जिनमें 207 लोगों की मौत तथा 748 घायल हुए जबकि पैदल चल रहे लोगों को हिट करने का आंकडा 429 रहा जिसमें 101 लोगों की मौत हो गई जबकि 608 लोग घायल हो गए। ऐसे में यह स्पष्ट हो रहा है कि हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में भी हिट व रन के मामले लगातार बढ़ रहे है। इसके अतिरिक्त जहां प्रदेश में नशीले पदार्थों के सेवन के कारण हुए 72 हादसों में 17 लोगों की मौत हो गई तो वहीं ओवर स्पीड के कारण 516 सडक़ हादसों में 187 लोगों की मौत हुई है। यही नहीं प्रदेश में बिना हेल्मेट दुपहिया वाहन हादसों में 125 जबकि बिना सीट बेल्ट के कारण 450 लोगों की मौत सडक़ हादसों में हो गई। प्रदेश में ओवर लोडिंग के कारण 135 सडक़ दुर्घटनाओं के चलते 81 लोग मौत के आगोश में समा गए।
ऐसे में प्रतिवर्ष देश में सडक़ दुर्घटनाओं के कारण लोगों का असमय ही मौत के मुंह में चले जाना एक बहुत बड़ी राष्ट्रीय त्रासदी कही जा सकती है। ऐसे में लोगों को सडक़ सुरक्षा के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ सडक़ नियमों का पालन करना जरूरी हो जाता है ताकि सडक़ों पर बेमौत मरते लोगों की अनमोल जिंदगी को बचाया जा सके। इसके लिए जरूरी है कि देश के जिम्मेवार नागरिक वाहन चलाते समय सडक़ पर लगी संकेतावली व चिन्हों का गंभीरता से पालन करते हुए स्वयं व दूसरों की अनमोल जिंदगी को बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। वाहन चलाते समय लोग सीट बैल्ट का प्रयोग अवश्य करें तथा दुपहिया वाहन चलाते समय अच्छी गुणवत्ता वाला हेल्मेट जरूर पहनें। यही नहीं वाहन चलाते समय मोबाइल फोन के इस्तेमाल से बचें ऐसे करने से न केवल वह स्वयं बल्कि दूसरों को भी सडक़ पर सुरक्षित रख सकते हैं। सडक यातायात में दिन के मुकाबले रात में घातक दुर्घटनाएं होने की संभावना 3-4 गुणा अधिक होती है। इसलिए रात्रि के समय वाहन चलाते समय अतिरिक्त सावधानी व सत्तर्कता अपनाएं तथा पैदल चलने वाले यात्रियों, साइकिल सवारों, पशुओं इत्यादि के प्रति सावधान रहें। साथ ही रेट्रो-रिफलैक्टिव शीटों व टेपों का व्यापक इस्तेमाल करें।
देश में वाहनों की ओवरलोडिंग भी सडक़ दुर्घटनाओं का एक बहुत बडा कारण है इसलिए ओवर लोडिंग से जहां सडकों को क्षति पहुंचती है तो वहीं वाहनों को नुकसान होता है। ऐसे में वाहन चालकों को ओवरलोडिंग से बचना चाहिए। इसके अलावा वाहन चालकों को वाहन चलाते समय शराब व नशीले पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए। देश में 85 फीसदी सडक दुर्घटनाओं के लिए वैध ड्राईविंग लाईसैंस धारी चालक ही कारण बन रहे हैं, ऐसे मेें जरूरी है कि वाहन चालकों का समय-समय पर सडक़ सुरक्षा के प्रति औचक परीक्षण भी होना चाहिए ताकि वाहन चालक सडक़ नियमों के प्रति सचेत बने रहें।
ऐसे में यदि हम बढ़ते सडक़ हादसों के प्रति समय रहते सचेत नहीं हुए तो प्रतिवर्ष हमारी सडक़ों पर मौत यह तांडव इसी तरह जारी रहेगा तथा असमय की लाखों लोग अपनी अनमोल जिंदगी को गंवाते रहेंगें।
(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 4 अक्तूबर, 2017 एवं दैनिक आपका फैसला, 12 अक्तूबर, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 4 अक्तूबर, 2017 एवं दैनिक आपका फैसला, 12 अक्तूबर, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
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