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Wednesday, 14 June 2017

मुख्य मंत्री राज्य स्वास्थ्य देखभाल योजना के तहत जिला ऊना में 15815 व्यक्ति पंजीकृत

सामान्य बीमारी में तीस हजार जबकि गंभीर बीमारी में पौने दो लाख तक का मिलता है फ्री ईलाज 
हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्रदेश के ऐसे हजारों अस्थाई कर्मचारियों के लिए बीमारी जैसी मुश्किल घडी में राहत प्रदान करने के लिए मुख्य मंत्री राज्य स्वास्थ्य देखभाल बीमा योजना को लागू किया है जिन्हे सरकारी स्तर पर स्वयं या परिजनों को चिकित्सा सुविधा के लिए न तो चिकित्सा भत्ता प्रदान किया जाता है न ही नियमित कर्मचारियों की तर्ज पर उनके चिकित्त्सा बिलों का भुगतान हो पाता है। इसी योजना के अंतर्गत जिला ऊना में अब तक लगभग 15815 कर्मचारियों व व्यक्तियों को पंजीकृत किया जा चुका है। जिनमें हरोली ब्लॉक में 2077, अंब में 3918, बंगाणा में 2739, ऊना में 5362 तथा गगरेट ब्लॉक में 1719 कर्मचारियों का पंजीकरण शामिल है। 
शतप्रतिशत राज्य सरकार द्वारा पोषित मुख्य मंत्री राज्य स्वास्थ्य देखभाल योजना के तहत प्रदेश की ऐसी 9 विभिन्न श्रेणीयों जिनमें 80 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिक, ऐसी एकल महिलाएं जो विधवा, तलाकशुदा, परित्यक्त, पति लापता या अविवाहित हो, विभिन्न सरकारी विभागों, निगमों, बोर्डो इत्यादि में कार्यरत दैनिक वेतनभोगी व अंशकालिक कर्मचारी, आंगनवाडी वर्कर व हैल्पर, मिड-डे-मील वर्कर, राज्य सरकार के विभिन्न विभागों, निगमों, बोर्डों इत्यादि में अनुबंध पर कार्यरत कर्मचारी एवं 70 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगता वाले व्यक्तियों को शामिल किया गया है। इस योजना के तहत पात्र परिवार के पांच व्यक्तियों जिसमें परिवार का मुखिया, उसकी पत्नी तथा उन पर आश्रित तीन सदस्य शामिल है को प्रदेश सरकार द्वारा चिन्हित अस्पातलों व स्वास्थ्य संस्थानों में सामान्य बीमारी में भर्ती होने पर प्रति परिवार प्रतिवर्ष अधिकत्तम तीस हजार रूपये जबकि गंभीर बीमारी में एक लाख पचहत्तर हजार रूपये तक का नि:शुल्क (कैशलेस) ईलाज की सुविधा इस योजना के तहत जारी स्मार्ट कार्ड के माध्यम से दी जा रही हैं।
इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र व्यक्ति को तीस रूपये शुल्क अदा कर स्मार्ट कार्ड जारी किया जा रहा जो पांच वर्षों के लिए मान्य होगा जबकि तीन वर्ष बाद इसका नवीनीकरण किया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत जारी स्मार्ट कार्ड के माध्यम से ही चिन्हित स्वास्थ्य संस्थानों में नि:शुल्क (कैशलेस) चिकित्सा सुविधा का लाभ दिया जा रहा है। स्मार्ट कार्ड में किसी भी सदस्य का नाम हटाना या जोडना हो तो लाभार्थी बीमा कम्पनी द्वारा स्थापित जिला कियोस्क केन्द्र जिसे क्षेत्रीय अस्पताल ऊना में स्थापित है में जाकर परिवर्तन करा सकता है। 
इस योजना के तहत सामान्य बीमारी होने पर प्रदेश के 174 अस्पतालों को चिन्हित किया गया है, जहां पर किसी भी बीमारी के दौरान भर्ती होने पर फ्री (कैशलेस) चिकित्त्सा सुविधा मिलेगी। जबकि किसी भी गंभीर बीमारी के दौरान यह सुविधा आईजीएमसी शिमला, डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल टांडा कांगडा तथा पीजीआई चंडीगढ़ शामिल है में मिलेगी।
क्या कहते हैं अधिकारी
मुख्य चिकित्सा अधिकारी ऊना डॉ0 प्रकाश दडोच ने बताया कि मुख्य मंत्री स्वास्थ्य देखभाल योजन के तहत जिला में पात्र व्यक्तियों का पंजीकरण किया जा रहा है तथा अबतक 15815 लोगों को इस योजना के तहत जोडा जा चुका है। उन्होने बताया कि जिला में यदि कोई भी पात्र व्यक्ति इस योजना के तहत अभी तक पंजीकृत नहीं हुआ है तो वह निर्धारित प्रपत्र पर मांगी गई संपूर्ण जानकारी के साथ अपना आवेदन संबंधित विभाग से सत्यापित करवाकर जिला अस्पताल में स्थापित विशेष कक्ष में प्रस्तुत कर सकता है। उन्होने बताया कि इस संबंध में पात्र व्यक्ति क्षेत्रीय अस्पताल ऊना में स्थापित कियोस्क केन्द्र से अधिक जानकारी हासिल कर सकते हैं।







Saturday, 3 June 2017

धार्मिक आस्था एवं सांस्कृतिक मिलन का प्रतीक है ऐतिहासिक पिपलू मेेला

इस वर्ष 4 से 6 जून तक मनाया जा रहा जिला स्तरीय पिपलू मेला
हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला के बंगाणा से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर प्रतिवर्ष लगने वाला वार्षिक पिपलू मेला जहां हमारी धार्मिक आस्था व श्रद्धा का प्रतीक है तो वहीं प्राचीन समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी सदियों से संजोए हुए है। बदलते वक्त के साथ-साथ हमारे प्राचीन मेलों का स्वरूप भले ही बदला हो लेकिन ऐतिहासिक पिपलू मेला आज भी अपनी प्राचीन सांस्कृतिक स्वरूप में कुछ हद तक यथावथ देखा जा सकता है। पिपलू गांव में पिपल के पेड के नीचे शीला के रूप में विराजमान भगवान नरसिंह के दर्शनों के लिए मेला अवधि के दौरान हजारों लोग शिरकत करते हैं तथा भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
पिपलू गांव में भगवान नरसिंह से जुड़ी अनेक जनश्रुतियां प्रचलित है जिनमें से एक जनश्रुति के अनुसार पास के हटली गांव में एक उतरू नाम का किसान अपने खेत में काम कर रहा था। लेकिन अचानक उसकी दराती मली के एक पौधे में फंस गई तदोपरान्त पौधे को साफ करते हुए उसके नीचे एक शीला दिखाई दी। लेकिन उतरू ने शिला की ओर कोई ध्यान नहीं दिया तथा खेत को साफ कर वहां से चला गया। परन्तु रात्रि स्वपन्न में उसने देखा की भगवान विष्णु उससे कह रहे हैं, मुझे खेत में नग्र छोडक़र तुम स्वयं बड़े आनंद से यहां सो रहे हो। उन्होने कहा कि मुझे अब वहां धूप और ठंड लगेगी साथ ही मुझ पर बारिश भी गिरेगी। दूसरे दिन उतरू फिर उसी खेत में पहुंचा तथा वहां से शिला को उठाकर पशुशाला में रख दिया और स्वयं चारपाई में जाकर सोने लगा। परन्तु अभी वह मुश्किल से चारपाई पर सोया ही था कि वह चारपाई से नीचे गिर पडा। जैसे ही वह चारपाई में सोने का प्रयास करता वैसे ही वह नीचे गिर पडता। इस दौरान पशुशाला में उसके पशु भी जोर-जोर से चिल्लाने लग पडे। तब उसने भगवान विष्णु को याद किया तथा दर्शन देने की प्रार्थना करने लगा। भगवान विष्णु ने दर्शन देकर कहा कि तुम मेरी पिंडी को बाजे बजाते हुए सूखे पीपल पेड के नीचे रख दो।
भगवान नरसिंह के दर्शनों के लिए पहुंचे श्रद्धालु (फाईल फोटो)
दतोपरांत उतरू सूखा पीपल का पेड़ ढ़ूढ़ते-ढूढ़ते झगरोट गांव आ पहुंचा जहां उसे सूखा पीपल का पेड़ दिखाई दिया। उतरू ने शीला को पीपल के पेड़ के नीचे स्थापित करवा दिया तथा स्थापना के आठवें दिन सूखे पीपल से कोंपलें फूटने लगीं और कुछ ही दिनों में यह पेड़ हरा-भरा हो गया। उतरू ने प्रतिदिन यहां आकर पूजा-अर्चना आरंभ कर दी तथा धीरे-धीरे इस स्थान का नाम पिपलू पड़ गया और लोगों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होने लग पड़ीं।
प्रदेश के तीन जिलों की सांस्कृतिक मिलन का प्रतीक यह मेला आज भी प्राचीन रंग में रंगा हुआ नजर आता है तथा लोगों की आस्था में वह जोश आज भी यथावथ बना हुआ है। प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की निर्जला एकादशी को आयोजित होने वाले इस मेले में ऊना, हमीरपुर तथा कांगड़ा जिलों के अतिरिक्त प्रदेश व प्रदेश के बाहर से हजारों श्रद्धालु भगवान नरसिंह के दर्शनों के लिए यहां पहुंचते हैं। मेले के दौरान जहां स्थानीय लोग अपनी नई फसल को भगवान नरसिंह के चरणों में चढ़ाते हैं तो वहीं भगवान का आशीर्वाद भी प्राप्त कर धन्य होते हैं। 
मेले के दौरान टमक बजाता श्रद्धालु (फाईल फोटो)
मेले के दौरान सदियों से बजती आ रही टमक की धमक आज भी पिपलू मेला में वैसे ही है जैसे सैंकडों वर्ष पूर्व रही है। लोग आज भी टमक की मधुर धुन में रंगे हुए नजर आते हैं। मेले के दौरान इलाके के विभिन्न स्थानों से नाचने गाने वालों की अलग-अलग टोलियां वाद्ययंत्रों के साथ एक दूसरे को ललकारती हुई पीपल की परिक्रमा करती थी, परन्तु आज वर्षों पुरानी यह परंपरा भी अब लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। मेले के दौरान जगह-जगह लोगों द्वारा छबीलें भी लगाई जाती हैं। भले ही आज बदलते वक्त के साथ-साथ हमारी परंपराएं काफी तेजी से बदली है लेकिन पिपलू मेला अभी भी अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है।
मेले के स्वरूप को बढ़ावा देने के लिए कुछ वर्ष पूर्व इसे प्रदेश सरकार ने जिला स्तरीय मेला घोषित कर दिया। अब मेले के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त विभिन्न खेल स्पर्धाएं भी अयोजित की जाती हैं। इस वर्ष मेले का आयोजन 4 से 6 जून के दौरान किया जा रहा है।









Friday, 5 May 2017

स्वयं सहायता समूह बनाकर देहलां की महिलाओं ने स्वावलंबन की ओर बढ़ाए कदम

गांव में ही वाशिंग पाऊडर बनाकर आर्थिकी को प्रदान कर रही है मजबूती
कहावत है यदि व्यक्ति के मन में कुछ करने की चाह हो तो विकट परिस्थितियां भी उसे आगे बढऩे से नहीं रोक सकती हैं। कमोवेश कुछ यही कर दिखाया है ऊना विकास खंड की ग्राम पंचायत लोअर देहलां की 20 ग्रामीण महिलाओं ने। गांव की यह 20 महिलाएं कपडे धोने का वाशिंग पाऊडर (सर्फ) बनाकर न केवल सरकार के महिला शक्तिकरण के उदेश्य को साकार करने में एक कदम आगे बढ़ी है बल्कि साबित कर दिया है कि यदि थोडी सी हिम्मत के साथ सकारात्मक प्रयास किए जाएं तो कुछ करना असंभव नहीं है। आज गांव की यह 20 महिलाएं मिलकर वाशिंग पाऊडर (सर्फ) तैयार कर अपनी सफलता की कहानी को खुद लिखने जा रही हैं।
यह कहानी है ऊना विकास खंड के अंतर्गत ग्राम पंचायत लोअर देहलां की 20 महिलाओं की है। इन महिलाओं ने कृषि विभाग के सहयोग से वर्ष 2016 में बाबा भाई पैहलों स्वयं सहायता समूह बनाया। समूह बनने के बाद सभी महिलाओं ने एक सौ रूपये प्रतिमाह की दर से बचत शुरू की तथा बचत को रखने के लिए स्थानीय कांगडा सहकारी बैंक की शाखा में बचत खाता खोल दिया। महिलाओं ने एक दूसरे की आर्थिक मदद करने के लिए दो प्रतिशत पर इंटरलोनिंग तथा समूह से बाहर के लोगों को पांच प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण मुहैया करवाने की शुरूआत की। इससे न केवल समूह बल्कि गांव की अन्य महिलाओं को जरूरत पडने पर सस्ती ब्याज दरों पर ऋण की सुविधा गांव में ही उपलब्ध हो गई। लेकिन समूह की महिलाओं में इससे भी आगे बढक़र कुछ बेहतर करने का जज्बा था, लेकिन सही मार्गदर्शन न होने के कारण वह अनिर्णय की स्थिति में रही। लेकिन समूह के हौंसले को उस वक्त एक नया लक्ष्य मिल गया जब फरवरी, 2017 में उन्हे कृषि विभाग के सौजन्य से एक दिन का कपडे धोने का वाशिंग पाऊडर तैयार करने का प्रशिक्षण हासिल हुआ। प्रशिक्षण के बाद समूह की सभी महिलाओं ने सर्फ तैयार करने का निर्णय लिया। आज समूह की महिलाएं गांव में ही वाशिंग पाऊडर (सर्फ) तैयार कर धीरे-धीरे अपनी आर्थिकी को मजबूती प्रदान करने में लगी हैं।
स्वयं सहायता समूह की महिलाएं तैयार वाशिंग पाउडर के साथ
जब इस बारे समूह की प्रधान अनीता कुमारी से बातचीत की तो उनका कहना है कि समूह की सभी महिलाएं स्थानीय मंदिर में महीने या फिर दो सप्ताह बाद इक्टठी होकर वाशिंग पाउडर को तैयार करती हैं तथा एक बार में कम से कम एक क्विटल तक वाशिंग पाऊडर तैयार किया जाता है। उनका कहना है कि समूह ने फरवरी, 2017 से अब तक लगभग पांच क्विंटल वाशिंग पाऊडर तैयार किया है जिसमें से लगभग साढ़े चार क्विंटल तक बिक चुका है। उनका कहना है कि उनका सर्फ प्रति किलो 45 रूपये की दर से गांव व आसपास के क्षेत्रों में बिक रहा है। उनका कहना है कि वाशिंग पाऊडर तैयार करने के लिए कच्चे माल को प्रदेश के बाहर जाकर लुधियाना या फिर दूसरे शहरों से लाना पडता है जिससे डिटर्जेंट तैयार करने की न केवल लागत बढ़ जाती है बल्कि मुनाफे में भी कमी आती है। उनका कहना है कि आज समूह के लिए सबसे बडी समस्या सर्फ की पैकेजिंग की है। उनका कहना है कि यदि सरकार उन्हे पैकेजिंग की ट्रेनिंग मुहैया करवा दे तो वह अपने उत्पाद को बडी कंपनियों की तर्ज पर मार्केट में उतार सकती हैं। उन्होने इस बारे महिलाओं को ग्रामीण स्तर पर ही बेहतर प्रशिक्षण करवाने की वकालत भी की ताकि समूह वर्तमान बाजार की जरूरतों के आधार पर वाशिंग पाऊडर का उत्पादन कर सके।
जब इस बारे स्थानीय पंचायत प्रधान देवेन्द्र कुमार से बातचीत की तो उन्होने समूह के प्रयासों की सराहना की तथा कहा कि समूह द्वारा तैयार उत्पाद ग्रामीण स्तर पर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे इसके लिए पंचायत उन्हे डिटर्जेंट विक्रय के लिए एक बेहतर स्थान मुहैया करवाने का प्रयास करेगी। उन्होने बताया कि पंचायत में महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से सशक्त बनाने के लिए अबतक राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत 10 समूहों का गठन कर लिया गया है।







Monday, 27 March 2017

प्रतिस्पर्धा के माहौल में बच्चों से अत्यधिक अपेक्षाएं कितनी उचित

देश में प्रतिवर्ष मार्च व अप्रैल महीनों में परीक्षाओं का दौर शुरू होते ही छात्रों द्वारा आत्महत्या की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं। इन वार्षिक एवं प्रतियोगी परीक्षाओं के दबाव के चलते व उससे उत्पन्न होने वाले मानसिक तनाव के कारण प्रतिवर्ष सैंकडों छात्र आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठा लेते हैं। ऐसे में यदि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट का विश्लेषण करें तो वर्ष 2014 के दौरान देश में कुल आत्महत्याओं में से 1.8 फीसदी आत्महत्याएं परीक्षाओं में फेल होने के कारण सामने आई है जबकि यही आंकडा वर्ष 2015 में बढक़र 2 फीसदी हो गया। वर्ष 2014 में परीक्षाओं में फेल होने के कारण 2403 के मुकाबले 2015 में 2646 मामले आत्महत्या के सामने आए हैं। जिनमें से आधे से अधिक मामले 18 वर्ष के कम आयु वाले बच्चों व किशोरों के हैं।
ऐसे में देश के बुद्धिजीवियों व चिंतकों के सामने यह प्रश्न आकर खडा हो जाता है कि आखिर देश के बच्चों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृति के लिए क्या हमारी परीक्षा प्रणाली दोषी है या फिर बदलते परिवेश में हमारा पारिवारिक व सामाजिक ढ़ांचा उन्हे ऐसे आत्मघाती पग उठाने के लिए बाध्य करता है। ऐसे में यदि स्कूली स्तर की परीक्षाओं की बात करें तो वर्ष भर की पढ़ाई का मूल्यांकन तीन घंटों में कर लिया जाता है। दूसरा बच्चा वर्ष भर नियमित तौर पर कक्षाएं लगाता है तथा परीक्षा के दौरान बीमारी या अन्य पारिवारिक समस्या के कारण ठीक से परीक्षा नहीं दे पाता है तो स्वभाविक है कि वर्ष भर की मेहनत चंद घंटों में ही धराशायी हो जाती है। तीसरा प्रमुख कारण बदलते सामाजिक परिप्रेक्ष्य में मां-बाप की ऊंची व बढ़ती अपेक्षाओं का दबाव भी बच्चों को झेलना पड रहा है। ऐसे में यदि किसी एक कारण से भी बच्चा वार्षिक परीक्षाओं में बेहतर न कर पाए तो प्रतिभाशाली व होनहार बच्चा भी मानसिक व सामाजिक दबाव का शिकार आसानी से हो सकता है। जिसका नतीजा कई बार बच्चों द्वारा आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठाने के तौर पर सामने आता रहता है।
ऐसे में समय-समय पर हुए शैक्षिक अध्ययनों की बात करें तो परीक्षाओं के दौरान बेहतर प्रदर्शन करने तथा मनचाहे प्रोफैशनल कोर्स में दाखिला पाने को लेकर बच्चों पर मानसिक तनाव के चलते आत्महत्या करने के मामले बढ़ जाते हैं। ऐसे अध्ययनों में यह बात भी सामने आई है कि बच्चों में मानसिक दबाव के लिए परिवार और समाज का बेहताशा प्रतिस्पर्धी माहौल भी कम जिम्मेदार नहीं रहता है। इसके अलावा सामाजिक ढ़ांचे में आ रहे बदलाव, संयुक्त परिवारों का लगातार बिखराव, शहरों में मां-बाप का नौकारीपेशा होना इत्यादि कारणों से बच्चे लगातार उपेक्षा के शिकार होते हैं। संयुक्त परिवारों के कारण बुजुर्गों की उपलब्धता जहां बच्चों को कई तरह के मानसिक दबाव झेलने में कारगर साबित होती हैं तो वहीं समय-समय मार्गदर्शन भी मिलता रहता है। लेकिन बदलते दौर में न्युक्लियर परिवारों के बढ़ते चलन के कारण न केवल बच्चे मानसिक तनाव को झेलने में कमजोर पडते दिखाई दे रहे हैं बल्कि अभिभावकों की बच्चों से उनकी क्षमताओं व रूचिओं के विपरीत बढ़ती अपेक्षाएं आग में घी का काम कर रही हैं। साथ ही बच्चों का खेल मैदान से दूर होना, टीवी व मोबाइल में अधिक समय तक कार्यशील रहना इत्यादि भी बच्चों को मानसिक व शारीरिक तौर पर कमजोर बना रहा है। 
ऐसी परिस्थितियों में शिक्षा ढांचे से जुडे तमाम एजैन्सियों के साथ-साथ समाज व अभिभावकों का व्यापक तौर पर जागरूक होना लाजमी हो जाता है। हमें अपनी भावी पीढ़ी को जीवन के उस सत्य से रू-ब-रू करवाने में किसी प्रकार की झिझक नहीं होनी चाहिए जिसने जिंदगी को केवल परीक्षाओं में उच्च अंक व मनचाहे प्रोफैशन तक ही सीमित कर दिया है। हमें भावी पीढ़ी को इस बात से बखूवी परिचय करवाना चाहिए कि व्यक्ति का जीवनकाल अपने आप में एक बहुत बडी परीक्षा है जिसका वह पग-पग पर सामना करते हुए जीवन के संघर्ष में विजयी होता है। बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ उस व्यावहारिक ज्ञान की जरूरत है जिससे हमारी नौजवान पीढ़ी लगातार अनभिज्ञ होती जा रही है। युवाओं में कडी मेहनत के साथ-साथ जीवन में संपूर्ण निष्ठा, तप, त्याग, लगन, धैर्य, ईमानदारी तथा इन सबसे ऊपर नैतिकता व आदर्शों का सोपान करवाना होगा जिसे हमने बनावटी जीवन की चकाचौंध में कहीं पीछे छोड दिया है। आज हमने जीवन की सफलता को महज अंकों, ऊंचे पद व मनचाहे प्रोफैशन को पाने तक ही सीमित कर दिया है, लेकिन जीवन का वास्तविक सत्य इनसे भी कहीं आगे है। जरूरत है बच्चों व युवाओं को उन महान हस्तियों की जीवनी से अवगत करवाने की जो जिन्दगी के शुरूआती दौर में असफलता के बावजूद जिंदगी के अंतिम मुकाम में सफल होकर दुनिया के लिए मिसाल बन गए।
ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि जहां हमारे शिक्षण संस्थानों को बच्चों में कठिन परिश्रम, ईमानदारी व उच्च मूल्यों एवं आदर्शों का समावेश गंभीरता से करना होगा तो वहीं अभिभावकों को भी बच्चों की रूचि, क्षमता व योग्यता को ध्यान में रखकर ही लक्ष्यों का निर्धारण करना चाहिए। अन्यथा क्षमता से अधिक महत्वकांक्षा प्रतिवर्ष सैंकडों बच्चों को असमय ही मौत के आगोश में समाने को मजबूर करती रहेगी।


(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 7 मार्च, 2017 एवं दैनिक आपका फैसला, 15 मार्च, 2018 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Wednesday, 22 February 2017

जिला ऊना में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के आ रहे सकारात्मक परिणाम

राष्ट्रीय स्तर पर कन्याओं को बचाने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को चलाया गया जिसके तहत देश भर के उन चुनिंदा जिलों को शामिल किया गया है जहां बेटियों की संख्या बेटों के मुकाबले लगातार कम हुई है। इसी अभियान के तहत प्रथम चरण में हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना को शामिल किया गया है, जहां वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर 0-6 वर्ष आयु वर्ग में कन्या शिशु लिंगानुपात प्रति हजार लडकों पर  870 दर्ज किया गया है। जिला ऊना का शिशु लिंगानुपात न केवल राष्ट्रीय औसत 914 से कम आंका गया है बल्कि हिमाचल प्रदेश के औसत शिशु लिंगानुपात 906 सहित अन्य जिलों के मुकाबले भी काफी कम रहा है। लेकिन गत दो वर्षों के दौरान जिला में चले बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के अब कई सकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे हैं। ऐसे में यदि स्वास्थ्य विभाग के प्रारंभिक आंकडों की बात करें तो जिला ऊना में कन्या शिशु लिंगानुपात की दर 900 से ऊपर का आंकडा पार कर गई है। यह आंकडा न केवल एक सुखद एहसास दे रहा है बल्कि बेटियों के प्रति लोगों में व्यापक जन जागरूकता लाने में भी कामयाब हुआ है।
जिला प्रशासन द्वारा बेटियों के प्रति जागरूकता लाने के लिए जहां पंचायत व उप-मंडल स्तर पर विशेष कार्यबल गठित किए गए हैं तो वहीं पंचायतों व ग्राम सभाओं के माध्यम से जन साधारण को भी जोडा गया। इस अभियान के तहत जहां जिला के तमाम शिक्षण संस्थानों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संदेश विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के माध्यम से बडे पैमाने पर घर-घर पहुंचाया गया है तो वहीं कन्या भ्रूण हत्याओं पर भी विभिन्न स्तरों पर पैनी नजर रखी गई। इतना ही नहीं जिला प्रशासन ने बेटी बचाओ का संदेश लोगों तक पहुंचाने तथा बेटियों के प्रति व्याप्त रूढिवादी नजरिये में बदलाव लाने के दृष्टिगत विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से जिला का नाम रोशन करने वाली पांच बेटियों के चित्रों को प्रदर्शित करते हुए लगभग 25 बडे-बडे होर्डिंगस विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर स्थापित किए गए हैं। इन होर्डिंगस में आईपीएस, जज तथा आर्मी ऑफिसर बन जिला का नाम चमकाने वाली पांच बेटियों की तस्वीरें प्रदर्शित की गई हैं। इसके अलावा जिला प्रशासन द्वारा बेटी बचाओ पर एक कॉलर टयून भी बनाई गई है जो लोगों के मोबाइल फोन में लगातार बज रही है। यह कॉलर टयून जिला ऊना सहित पूरे प्रदेश भर में न केवल लोकप्रिय हुई है बल्कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संदेश आम जनमानस तक आसानी से पहुंचे इस लक्ष्य में भी सफल हो पा रही है। 
जिला प्रशासन ने राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रदेश व जिला का नाम रोशन करने वाली बेटियों को प्रोत्साहित करने के लिए एक लाख रूपये का ईनाम देने की योजना भी बनाई है ताकि न केवल प्रतिभावान बेटियों को प्रोत्साहित किया जा सके बल्कि लोगों के नजरिए में बेटियों के प्रति व्याप्त मानसिकता में भी बदलाव लाया जा सके। इसके अलावा बेटियों के महत्व को पर्यावरण से जोडते हुए एक वन बेटियों के नाम के तहत जहां बेटियों को समर्पित विशेष आरक्षित वनक्षेत्र में पौधारोपण किया गया तो वहीं इन्हे बचाने के लिए समाज की व्यापक सहभागिता भी सुनिश्चित बनाई गई। 
जिला में बेटी बचाओ अभियान के ओर भी सकारात्मक व बेहतर परिणाम आए इसके लिए जिला प्रशासन ने कारगर योजना भी बनाई है। इस बारे उपायुक्त विकास लाबरू का कहना है कि जिला में कन्या भ्रूण हत्या की प्रवृति पर पूरी तरह से अंकुश लगाने के लिए कन्या शिशुलिंगानुपात की दृष्टि से चिन्हित 75 ऐसी अति संवेदनशील ग्राम पंचायतों में चार स्तर में विशेष मुहिम चलाई जाएगी। जिसके तहत पहले स्तर में बाल विकास परियोजना अधिकारियों एवं स्वास्थ्य विभाग की आशा वर्कर्ज के माध्यम से गर्भवती महिलाओं का दोहरा पंजीकरण किया जाएगा तथा पंजीकरण के बाद लगातार ट्रैक किया जाएगा कि उस परिवार में बच्चे ने जन्म लिया है या फिर गर्भवती महिला की लिंग जांच करवाकर गर्भपात तो नहीं करवाया गया है। इसके साथ ही रैड जोन में उन परिवारों को चिन्हित किया जाएगा जहां पहले ही 2 या उससे अधिक बेटियां हैं। इसके बाद येलो जोन में एक बेटी वाले परिवार को चिन्हित करके उपायुक्त स्वयं ऐसे परिवारों से रू-ब-रू होकर समाज में बेटियों का महत्व भी बताएंगे और साथ ही कन्या भ्रूण हत्या जैसे सामाजिक बुराई से दूर रहने के लिए भी प्रेरित करेंगे। चौथे स्तर के तहत जिन पंचायतों में शिशु लिंगानुपात कम हो रहा है वहां सीडीपीओ और संबंधित सुपरवाइजर द्वारा कारणों का आकलन किया जाएगा और ठोस रणनीति तैयार की जाएगी।
ऐसे में जिला प्रशासन व यहां के लोगों की व्यापक जन सहभागिता से वह दिन दूर नहीं होगा जब ऊना जिला प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के उन चुनिंदा जिलों में शुमार होगा जहां बेटियों की संख्या बेटों के मुकाबले कमतर नहीं रहेगी।


(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 22 फरवरी, 2017 एवं दैनिक आपका फैसला, 23 फरवरी, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Tuesday, 24 January 2017

बेटियों के प्रति सामाजिक मानसिकता में बदलाव जरूरी

आज हम ज्ञान व तकनीक की 21वीं सदी के उस दौर में जी रहे हैं जहां हमारे पास सुख सुविधाओं की वह तमाम तकनीकें व साधन उपलब्ध हैं जिनकी हम कभी परिकल्पना करते थे। हमारे पास गाडी, बंगला, धन-दौलत यहां तक की समाज में दंभ भरने के लिए ऊंचा पद, मान मर्यादा या यूं कहें की वह सभी तमाम साजो-सामान व साधन मौजूद हैं जो हमें इस सांसारिक जीवन मेंं प्रतिष्ठा दिला सकते हैं। लेकिन इन तमाम सुख-सुविधाओं के शोर शराबे व तडक़ भडक़ में लगता है कि हमारी मानवीय संवेदनाएं भी समाप्त हो चली हैं या फिर संसारिक सुख की इन भौतिक सुविधाओं व लालसाओं के आगे कहीं गौण सी हो गई हैं। एक तरफ जहां हमारा समाज चांद ही नहीं बल्कि मंगल ग्रह की सतह में पहुंचकर अपनी प्रतिभा का डंका बजा कर गोर्वान्वित महसूस करता हैं लेकिन इसी समाज में जब कोई नन्ही बेटी मां के गर्भ में पलने लगती है तो तमाम आधुनिक यंत्र व सुविधाएं उसे इस संसार में न आने देने के लिए सक्रिया हो जाती हैं जिससे हमारा सिर लज्जा से झुक जाता है। 
हमारे समाज में आए दिन बेटियों के प्रति कन्या भ्रूण हत्याएं, नवजात बच्चियों को कूडेदान या सूनसान स्थान पर छोड देना, दहेज प्रथा जैसी क्रूर व रूह कंपा देने वाली घटनाएं न केवल इंसानियत को शर्मशार करती रहती हैं बल्कि ऐसे अमानवीय वाक्यात हमारे इंसान होने पर ही प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं? अब इसे इंसान की क्रूरता ही कहें कि हमारे समाज मेें बेटी को जन्म लेने के लिए कितना संघर्ष करना पड रहा है। ऐसे में यदि कोई बेटी जन्म ले भी लेती है तो हमारा सामाजिक परिवेश बेटी को पराया धन कह कर न केवल उसके प्रति अपनी रूढि़वादी मानसिकता का परिचय देता है बल्कि उसके के लिए वह लगाव व प्रेम उडेलने में भी पीछे रह जाता हैं जिसकी की वह सही मायने में हकदार होती है। वास्तविक सच तो यह है कि बेटी के जन्म लेने पर समाज उस गर्म जोशी के साथ स्वागत क्यों नहीं कर पाता जितना हम अक्सर बेटे के आने की खुशी में करते हैं। दुर्गा व लक्ष्मी की पूजा करने वाले हमारे समाज में बेटियों के प्रति व्याप्त यह मानसिकता समझ से परे लग रही है। लेकिन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का झंडा गाडने वाली हमारी बेटियों के प्रति समाज की व्याप्त रूढि़वादी मानसिकता में व्यापक बदलाव लाने का समय आ गया है। 
वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में सरकारी प्रयासों से बेटियों को समाज में स्थापित करने तथा उन्हे वह मान सम्मान दिलाने के लिए लगातार विभिन्न योजनाओं व कार्यक्रमों के माध्यम से प्रयास हो रहे हैं जिनकी वह हकदार है। बात विभिन्न सरकारी योजनाओं की हो या फिर पढ़ाई लिखाई से लेकर सरकारी नौकरियों में तरजीह देने की। इन सब प्रयासों के चलते भले ही आज समाज में बेटियों के जन्म से लेकर शिक्षा के प्रकाश तक हमारा समाज जागरूक अवश्य हो रहा है, लेकिन क्या सही मायने में लोगों की मानसिकता में वह बदलाव आ पाया है जिसके लिए हम लगातार प्रयासरत हैं? कहीं ऐसा तो नहीं की सख्त कानूनी प्रावधानों के चलते समाज की सोच व भूमिका महज कन्या भ्रूण हत्याओं सहित बेटियों व महिलाओं के प्रति हो रहे सामाजिक कुकृत्यों पर पर्दा लाडने मात्र तक ही सीमित होकर तो नही रह गई है? भले ही आज हमारी बेटियां नितदिन आगे बढ़ रही हैं लेकिन उसी समाज में बेटियों की घटती संख्या हमारे माथे पर चिंता की सिकन भी खींच रही हैं। लेकिन ऐसे में अब वक्त आ गया है कि समाज को बेटियों के प्रति व्याप्त उन कारणों की तह तक जाना होगा जो रूढिवादी सामाजिक मान्यताओं व मानसिकता से ग्रस्त सोच के बदलाव में अक्सर रोडा बन कर खडे हो जाते हैं।
कानूनी स्तर पर बेटियों को संपति में बराबर हक, समाज में आगे बढऩे के लिए बेहतरीन अवसर मिले इसके लिए समाज के हर तबके को आगे आना होगा। ऐसे में बात शासन व प्रशासन की हो या फिर परिवार व समाज में समान अवसर प्रदान करने की, इस दिशा में समय-समय पर समाज सुधारकों, बुद्धिजीवियों, स्वयं सेवी व गैर सरकारी संगठनों तथा सरकार के सामूहिक प्रयासों के कारण आज महिलाएं आगे आ भी रही हैं तथा कई मामलों में बेटियों ने समाज में अपने आपको स्थापित भी किया है। लेकिन इसके बावजूद भी बेटियों के प्रति व्याप्त दोयम दर्जे वाली मानसिकतायुक्त गंभीर व अति संवेदनशील मुददे पर व्यापक चर्चा करने की पूरी गुंजाईस दिख रही है। 
भले ही व्यापक जन जागरूकता के कारण आज बेटियों के प्रति हीन भावना दिखाना सामाजिक दृष्टिकोण से एक असभ्य माना जाने लगा है। लेकिन अभी भी ऐसे अनेकों उदाहरण मिल जाएंगें जो इस बात की ओर ईशारा कर रहे हैं कि बेटों की चाहत में हमारा आधुनिक समाज क्या-क्या नहीं कर रहा है। ऐसे में अब जरूरी हो जाता है कि समाज को उन तमाम कारणों की तह तक जाना होगा जो अक्सर बेटियों के पैदा होने से लेकर उनके लालन-पालन में बाधक का कारण बनते हैं। जिसमें बात चाहे दहेज प्रथा, महिला अत्याचार या फिर परिवार व समाज में उत्तराधिकारी की ही क्यों न हो। ऐसे अनगिनत कारण है जिन पर अब सामाजिक स्तर पर व्यापक चर्चा करने का वक्त आ गया है, क्योंकि कानून का पंजा ढ़ीला होते ही कल फिर बेटों की चाहत में बेटियों के दुश्मन नहीं उठ खडे होंगें इस बात की भी क्या गारंटी है?

(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 15 दिसम्बर, 2016 एवं दैनिक आपका फैसला, 20 जनवरी, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Saturday, 14 January 2017

युवाओं को स्वावलंबी बनाने में मददगार साबित हो रही कौशल विकास भत्ता योजना

जिला ऊना में अब तक 13,936 युवाओं पर व्यय किए साढे 11 करोड रूपये
जिला ऊना के तहसील अंब के अंतर्गत अलोह गांव की शहनाज बेगम सुपुत्री कवालखान के लिए हिमाचल सरकार की कौशल विकास भत्ता योजना किसी वरदान से कम साबित नहीं हुई है। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण कभी एक तकनीकी कोर्स तक नहीं कर पाने वाली शहनाज बेगम आज न केवल अपने पांव पर खडी हो सकी है बल्कि आसपास की अन्य लडकियों को भी प्रशिक्षण प्रदान कर पा रही है। यह सब हुआ हिमाचल प्रदेश सरकार की कौशल विकास भत्ता योजना के कारण। 
इस बारे शहनाज बेगम का कहना है कि वह शुरू से ही अपने पांव पर खडी होकर न केवल स्वावलंबी बनना चाहती थी बल्कि परिवार को भी आर्थिक तौर पर स्पोर्ट करना चाहती थी। लेकिन घर की आर्थिक सेहत ठीक न होने के कारण वह आगे कुछ नहीं कर पा रही थी। लेकिन जब उसे प्रदेश सरकार की कौशल विकास भत्ता योजना का पता चला तो उसने सरकार से मान्यता प्राप्त आईटीआई में सिलाई कढाई व ड्रैस मेकिंग कोर्स में दाखिला ले लिया। इस दौरान सरकार द्वारा उसे प्रतिमाह एक हजार रूपये का कौशल विकास भत्ता मिलने से न केवल वह कोर्स के दौरान फीस के अतिरिक्त अपने छोटे-छोटे खर्चों को पूरा करने में कामयाब रही बल्कि परिवार पर भी किसी प्रकार का आर्थिक बोझ नहीं पडा। शहनाज बेगम का कहना है कि आज वह कौशल विकास भत्ता योजना के कारण एक कुशल कारीगर बन पाई है तथा अपनी आर्थिकी को सुधारने के साथ-साथ अन्य लडकियों को भी प्रशिक्षण प्रदान कर स्वावलंबी बना पा रही है।
इसी तरह जिला के तहसील घनारी के अंतर्गत गांव मावा सिंधिया की सोनिया सुपुत्री राम किशन के लिए भी कौशल विकास भत्ता योजना जीवन में एक नई आशा की किरण लेकर आई। मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण करने वाले उनके पिता ने कमजोर आर्थिकी के बावजूद सोनिया को 12वीं कक्षा तक की शिक्षा दिलाई, लेकिन आगे की शिक्षा दिलाना न केवल मुश्किल था बल्कि असंभव सा लग रहा था। जबकि सोनिया किसी संस्थान से व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने पैरों पर खडा होना चाहती थी ताकि वह परिवार की आर्थिक तौर पर मदद कर सके। इसी दौरान उसे सरकार की कौशल विकास भत्ता योजना का पता चला तथा संयुक्ता चौधरी हिमोत्कर्ष तकनीकी संस्थान ऊना में सिलाई-कटाई व पोषाक निर्माण का एक वर्षीय कोर्स में दाखिला ले लिया। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद सोनिया ने कुठेडा जसवालां गांव में आठ सौ रूपये प्रतिमाह किराए पर दुकान ली और वस्त्र सिलाई का काम शुरू कर दिया। सोनिया का कहना है कि शुरूआती दौर में इस कार्य में कुछ कठिनाईयां आई लेकिन हिम्मत न हारते हुए आज वह प्रतिमाह दो से तीन हजार रूपये कमा लेती है। साथ ही वह इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय इग्रू से स्नातक की पढ़ाई भी कर रही है। 
इसी तरह लालसिंगी गांव के संदीप कुमार ने डीजल मैकेनिक, मोरवढ भटोली के तरूणदीप ने मैकेनिक इलैक्ट्रानिक्स, भटोली के अच्छर ने इलैक्ट्रीशियन, अजौली के सुखविंद्र कपिला ने फिटर ट्रेड, सेंसोवाल के गुरदीप सिंह ने मैकेनिक इलैक्ट्रॉनिक, अंब के रणधीर सिंह व लोअर बढेडा के राकेश कुमार ने कम्प्यूटर में प्रशिक्षण हासिल कर स्वावलंबी बने हैं। यही कहानी जिला के ऐसे सैंकडो युवाओं की है जिन्होने कौशल विकास भत्ता योजना के माध्यम से तकनीकी प्रशिक्षण हासिल कर आत्मनिर्भर व स्वावलंबी बने हैं।
कौशल विकास भत्ता योजना के तहत सरकार द्वारा किसी मान्यता प्राप्त तकनीकी संस्थान से कोर्स करने पर सामान्य युवाओं को एक हजार जबकि 50 प्रतिशत से अधिक अक्षमता वालों को 15 सौ रूपये प्रतिमाह अधिकत्तम दो वर्ष की अवधि के लिए कौशल विकास भत्ता प्रदान किया जा रहा है। इस योजना से संबंधित अधिक जानकारी के लिए उम्मीदवार अपने नजदीकी रोजगार कार्यालय से संपर्क स्थापित कर सकते हैं। इसके अलावा श्रम एवं रोजगार विभाग की वैबसाईट का भी अवलोकन कर सकते हैं।
क्या कहते हैं अधिकारी
जिला रोजगार अधिकारी ऊना आरसी कटोच का कहना है कि जिला में कौशल विकास भत्ता योजना-2013 के तहत जिला ऊना में वर्ष 2013-14 से लेकर 30 नवम्बर, 2016 तक 13,936 युवाओं को विभिन्न तकनीकी पाठयक्रमों में प्रशिक्षण प्रदान कर लगभग 11 करोड 58 लाख रूपये की आर्थिक मदद उपलब्ध करवाई जा चुकी है। उन्होने बताया कि जिला रोजगार कार्यालय ऊना के माध्यम से 8856 जबकि उप-रोजगार कार्यालय अंब के माध्यम से 5080 युवाओं को कौशल विकास भत्ता प्रदान किया जा चुका है।








Friday, 30 December 2016

जिला ऊना में बेटियों को बचाएगी हिमाचल सरकार की मुस्कान

हिमाचल प्रदेश में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में कन्या भ्रूण हत्याओं एवं अन्य कारणों से जहां हमारे समाज में बेटियों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज हुई है तो वहीं बेटों की चाहत में बेटियों की अनदेखी ने हमारी सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रश्न चिन्ह खडा कर दिया है। ऐसे में यदि प्रदेश की पिछली जनगणाओं के आंकडों का विशलेषण करें तो प्रदेश में कन्या शिशु लिंगानुपात में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। प्राप्त आंकडों की बात करें तो प्रदेश में जहां वर्ष 1981 में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति हजार लडकों पर लडकियों का शिशु लिंगानुपात 971 था जो वर्ष 1991 में गिरकर 951 तथा 2001 में यही आंकडा नौ सौ के नीचे 896 तक जा पहुंचा। भले ही वर्ष 2011 की जनगणना में प्रदेश में यही लिंगानुपात 906 हो गया हो लेकिन राष्ट्रीय अनुपात 914 के मुकाबले न केवल कम है बल्कि प्रदेश के कई जिलों में प्राप्त आंकडों के कारण स्थिति को ओर भी भयावह बना दिया है। 
राष्ट्रीय स्तर पर देश भर में बेटियों को बचाने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को चलाया गया जिसके तहत देश भर के उन चुनिंदा जिलों को शामिल किया गया है जहां बेटियों की संख्या बेटों के मुकाबले लगातार कम होती गई है। इसी अभियान के तहत जहां प्रथम चरण में हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना को शामिल किया गया तो वही दूसरे चरण में जिला कांगडा व हमीरपुर को भी शामिल कर लिया गया है। लेकिन ऐसे में बेटियों के प्रति समाज में व्यापक जन जागरूकता लाने तथा कन्या भ्रूण हत्याओं को रोकने के लिए हिमाचल सरकार ने स्वयं पहल करते हुए मुस्कान योजना को प्रारंभ किया। मुस्कान योजना को पहले चरण में प्रदेश के सात जिलों चंबा, किन्नौर, लाहुल व स्पिति, कुल्लू, शिमला, सिरमौर तथा सोलन में आरंभ किया गया तो वहीं अब इस योजना को प्रदेश के शेष बचे जिलों में भी प्रारंभ कर दिया गया जिसमें कन्या शिशु लिंगानुपात की दृष्टि प्रदेश के अति संवेदनशील जिला ऊना भी शामिल है। 
ऐसे में वर्ष 2011 के आंकडों की बात करें तो जिला ऊना में जहां कन्या शिशु लिंगानुपात 870 दर्ज किया गया है जो राष्ट्रीय औसत के मुकाबले काफी कम आंका गया था। लेकिन जिला में चले बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत जहां स्वास्थ्य विभाग के आंकडों के मुताबिक शिश ुलिंगानुपात में वृद्धि दर्ज हुई है तो वहीं प्रशासन द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों से बेटियों के प्रति व्यापक जागरूकता भी आई है। लेकिन इन सब प्रयासों के बावजूद जिला ऊना प्रदेश का एक सीमावर्ती जिला होने के कारण जहां पडोसी राज्यों में कन्या भ्रूण हत्याओं की घटनाओं के कारण शिशु लिंगानुपात को प्रभावित किया है तो वहीं कानूनी शिकंजा भी ऐसे कुकृत्य करने वालों को आसानी से अपनी पकड़ में नहीं ले पाता है। 
ऐसे में प्रदेश सरकार की मुस्कान योजना जहां जिला में कन्या शिशु लिंगानुपात में व्यापक सुधार लाने तथा कन्या भ्रूण हत्याओं को रोकने में कारगर साबित होगी। इस योजना के तहत प्रत्येक पंचायत में गर्भावस्था के दस सप्ताह के दौरान पंजीकरण करवाना अनिवार्य बनाया गया है तो वहीं आंगनवाडी कार्यकत्र्ताओं के माध्यम से गर्भवती महिलाओं को नजदीकी स्वास्थ्य या उप स्वास्थ्य केन्द्र में भी पंजीकृत करवाया जाएगा। सबसे अहम पहेलु तो यह है कि आंगनवाडी कार्यकत्र्ताओं के सहयोग से गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं को लगातार ट्रैक किया जाएगा। इसके अलावा जिन परिवारों में पहले से ही एक या दो लडकियां हैं उन परिवारों को महिला की गर्भावस्था की स्थिति के दौरान अति संवेदनशील श्रेणी में रखा जाएगा तथा आंगनवाडी वर्कर्ज के माध्यम से लगातार निगरानी रखी जाएगी। इसी योजना के अंतर्गत पंचायतों के पिछले पांच वर्षों के जन्म पर शिशु लिंगानुपात के आंकडे भी एकत्रित किए जाएंगें तथा जिन पंचायतों में कन्या शिशु लिंगानुपात की दर में लगातार कमी पाई जाती है तो ऐसी पंचायतों को रेड अलर्ट पर रखा जाएगा।
मुस्कान योजना के तहत बेटियों के प्रति व्यापक जन जागरूकता लाने के लिए कम कन्या लिंगानुपात वाली पंचायतों को चिन्हित कर जहां नवविवाहित जोडों को परामर्श के माध्यम से जागरूक किया जाएगा तो वहीं व्यापक जन जागरूकता लाने के लिए जगह-जगह जागरूकता शिविर भी आयोजित किए जाएंगे। साथ ही जिला में गुडडा-गुडडी बोर्ड के माध्यम से प्रमुख जगहों पर नवजात कन्याओं व बेटियों की संख्या को भी प्रदर्शित किया जाएगा। जबकि पंचायत में पैदा होने वाली नवजात कन्याओं के अभिभावकों को मुख्य मंत्री द्वारा हस्ताक्षरित बधाई पत्र भी दिया जाएगा। इसके अलावा नवजात कन्याओं के नाम पर विभिन्न तरह की बचत योजनाओं में खाते खोलने जैसे सुकन्या समृद्धि योजना खाता, आरडी या एफडी इत्यादि बारे प्रोत्साहित किया जाएगा। साथ ही प्रत्येक पंचायत में वर्ष में कम से कम तीन बार बालिका दिवस आयोजित किया जाएगा। इसके अलावा पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (पीसी पीएनडीटी) अधिनियम, घरेलु हिंसा अधिनियम, प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (पॉक्सो) एक्ट, दहेज निरोधक कानून सहित अन्य महिला अधिकारों व कानूनों तथा कल्याण के लिए चल रही विभिन्न योजनाओं बारे भी व्यापक जन जागरूकता लाई जाएगी।
इस तरह जिला ऊना में गत दो वर्षों से चल रहे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के साथ-साथ अब प्रदेश सरकार की मुस्कान योजना भी लिंगानुपात में सुधार लाने, नवजात कन्याओं को बचाने तथा बेटियों के प्रति व्यापक जन जागरूकता लाने में कारगर साबित होगी। ऐसे में जिला प्रशासन व यहां के लोगों की व्यापक जन सहभागिता से वह दिन दूर नहीं होगा जब जिला ऊना प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के उन चुनिंदा जिलों में शुमार होगा जहां बेटियों की संख्या बेटों के मुकाबले कमतर नहीं रहेगी।

(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 27 दिसम्बर, 2016 एवं दैनिक आपका फैसला, 9 जनवरी, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Saturday, 17 December 2016

भ्रष्टाचार को लेकर सामाजिक मानसिकता बदलेगी

भारत में भ्रष्टाचार व कालेधन को लेकर आजकल कोहराम मचा हुआ है। 8 नवम्बर के बाद देश में बंद हुए एक हजार व पांच सौ रूपये के नोटों के चलते हर तरफ  मानो अफरातफरी का माहौल व्याप्त है। समाज के हर वर्ग का व्यक्ति बंद हुए नोटों के चलते जहां बैंकों व डाकघरों के बाहर पुराने नोटों को जमा करने व बदलवाने के लिए घंटों कतारबद्ध हो रहे हैं तो वहीं काली कमाई कर लाखों-करोडों दबा बैठे लोगों की मानों रातों-रात पूरी जिंदगी ही तबाह हो गई हो। खैर ये सब जो हुआ इसके पीछे भारत सरकार का निर्णय लेने के कारण कुछ भी रहे हों। लेकिन ऐेसे माहौल मेें अब एक ही प्रश्न उभर कर सामने आ रहा है कि आखिर भ्रष्टाचार को लेकर सामाजिक मानसिकता में बदलाव आ पाएगा? क्या भ्रष्टाचार के विरूद्ध इस लडाई में हमारी कार्य संस्कृति, स्वच्छ, पारदर्शी व जबावदेह बन पाएगी? क्या लोगों के आचरण व व्यवहार में वह परिवर्तन आ पाएगा जिसकी आज देश को सख्त दरकार है? 
लेकिन ऐसे में अब प्रश्न यह उठ रहा है कि आखिर भ्रष्टाचार है क्या? क्या महज चंद रूपयों की खातिर नियमों की उलंघना करना या फिर गलत तरीके से राज्य व्यवस्थाओं के विरूद्ध कार्य करते हुए चल व अचल संपति को एकत्रित करना मात्र है। वास्तव में भ्रष्टाचार इन सब बातों से भी कहीं आगे बढक़र है जो सीधा व्यक्ति विशेष के आचरण व व्यवहार से जुडा मसला है।
हमारी इस सामाजिक व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन कहीं न कहीं लडता है, जूझता है या फिर यूं कहें कि विभिन्न परिस्थितियों का सामना करता है। बात चाहे बस स्टैंड व रेलवे स्टेशन पर टिकट हासिल करने की हो या फिर सरकारी कार्यालयों में कार्यों के निपटान से लेकर बाजार से जरूरी चीजों की खरीदफरोख्त की हो। ऐसे में अक्सर देखा जाता है कि व्यक्ति अपने जीवन व दिनचर्या से जुडे इन छोटे-छोटे कार्यों के लिए या तो वह किसी ऊंची पहुंच की तलाश में जुट जाता है या कुछ ले देकर जल्द निपटाने में ही भला चाहता है। जबकि हमारी बाजारी व्यवस्था के कडवे अनुभव उपभोक्ताओं की खून पसीने की कमाई पर कई बार भारी पड जाते हैं। लेकिन भ्रष्ट आचरण व व्यवहार की इस विषवेल में जहां देश का आम नागरिक मनमसोस कर रह जाता है तो वहीं इसका सीधा असर हमारी कार्य संस्कृति व व्यवस्था पर भी पडता है। लेकिन अब सवाल यह खडा होता है कि समाज का एक तबका लाइन व सिस्टम में खडा होकर कार्य करवाने को अपनी हैसियत के विरूद्ध अपनी तौहीन समझता है या फिर ऐसा करके वह समाज में अपनी धौंस जमाता है। 
अब आप दिनचर्या में से ही बैंकों या अस्पतालों का ही उदाहरण ले लीजिए। जहां पहुंच व जान पहचान से दूर व्यक्ति घंटों लाईन पर खडा होकर अपनी बारी का इंतजार करता है तो वहीं ऊंची पहुंच व रसूखदार व्यक्ति सेटिंग या चालाकी से अपना काम निकलवा लेता है। कई बार तो आलम यह हो जाता है कि जहां सही व्यक्ति भ्रष्टाचारियों से लडते-2 कहीं कोसों दूर पीछे रह जाता है तो वहीं व्यवस्था का दम घोटने वाले ही निर्णय की स्थिति में पहुंच जाते हैं। अब आप क्या इसे भ्रष्टाचार नहीं कहेंगें? वास्तव में भ्रष्टाचार के पोषक महज समाज के चंद लोगों को ही नहीं कहा जा सकता बल्कि इसे बढावा देेने में समाज को भी कहीं न कहीं जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। ऐसे में जरूरी है कि समाज के हर वर्ग चाहे वह किसी भी स्तर या हैसियत का हो, भ्रष्टाचार की इस सामाजिक लडाई में न केवल सबको एक ही पंक्ति में लगना होगा बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को समाज व सिस्टम के प्रति जबावदेह भी बनना होगा। 
भ्रष्टाचार के लिए महज चंद लोगों के गले में भ्रष्टाचारी होने का तमगा लटका देने से न तो समाज पूरी तरह से भ्रष्टाचार मुक्त होगा न ही सामाजिक व्यवस्था का लाभ हर जरूरतमंद तक पहुंच पाएगा। इसके लिए जरूरी है कि समाज का हर वर्ग, व्यक्ति, संस्था चाहे वह निजी हो या फिर सरकारी अपनी कार्य संस्कृति में पूरी पारदर्शिता के साथ व्यापक बदलाव लाते हुए समाज के प्रति जबावदेह बने। साथ ही वक्त आ गया है कि समाज में आम व खास के मध्य की उस दीवार को ध्वस्त करने का जो अक्सर भ्रष्ट आचरण में पोषक का कारण बनती है। इन सबसे अधिक जरूरी है कि भ्रष्टाचार की इस लडाई में दूसरों पर दोषारोपण करने के बजाए प्रत्येक व्यक्ति को आत्म निरीक्षण कर स्वयं से पहल करने की। 
यह समझ लीजिए जिस दिन समाज का प्रत्येक व्यक्ति भ्रष्टाचार व भ्रष्ट आचरण के प्रति अपनी सोच में बदलाव ले आएगा उस दिन खुद व खुद हमारा सामाजिक ढ़ांचा व कार्य संस्कृति भी बदल जाएगी। तो क्या राष्ट्र व समाजिक हित में भ्रष्टाचार की इस बुराई के विरूद्ध आप स्वयं से शुरूआत कर रहे हैं?

(साभार: दैनिक दिव्य हिमाचल, 17 नवम्बर, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Friday, 18 November 2016

औद्योगिकरण की राह में अग्रसर जिला ऊना

हिमाचल प्रदेश में लघु स्तरीय उद्योगों का इतिहास क्रमबद्ध नहीं रहा। पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से उद्योगपतियों को यहां उद्योग स्थापित करना घाटे का सौदा लगता था। तकनीकी मार्गदर्शन तथा सुनियोजित औद्योगिक नीति का अभाव भी उद्योगों के विकास में बाधक रहे। इन तमाम कठिनाईयों को अनुभव करते हुए प्रदेश सरकार ने सन् 1967 में एक नीति के तहत लघु उद्योगों के पंजीकरण का विकेन्द्रीकरण करते हुए जिला स्तर पर पंजीकरण की सुविधा उपलब्ध करवाई, जिससे उद्यमियों को सहायता, सुझाव तथा मार्गदर्शन भी प्राप्त होने लगा।
वर्ष 1971 में हिमाचल प्रदेश ने विविध उद्योगों की स्थापना हेतु उद्योगपतियों को आकर्षित करने के लिए नए नियम बनाए और उदार सहायता नीति को अपनाने के अतिरिक्त कुछ क्षेत्रों का चयन कर उन्हे औद्योगिक क्षेत्रों के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया। इस निर्णय के तहत हर जिला में एक क्षेत्र का चयन किया गया। ऊना जिला में प्राथमिकता के आधार पर मैहतपुर को चयनित किया गया। होशियारपुर-ऊना-नंगल सडक़ पर जिला मुख्यालय से करीब 13 किलोमीटर दूर स्थित मैहतपुर में 109 एकड़ भूमि का चयन किया गया। वर्ष 1974 में औद्योगिक दृष्टि से गगरेट जिला का दूसरा महत्वपूर्ण स्थान बना। यह ऊना से लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर होशियारपुर-धर्मशाला सडक़ पर स्थित है। सोलन के बाद प्रमुखता से प्रदेश के औद्योगिक मानचित्र पर उभरने वाले इस जिला में मैहतपुर तथा गगरेट के पश्चात विकसित होने वाले औद्योगिक स्थानों में टाहलीवाल, धमांदरी तथा अंब शामिल हैं।
केन्द्र सरकार द्वारा 07 जनवरी, 2003 को हिमाचल प्रदेश के लिए घेाषित विशेष औद्योगिक इकाईयों के 1,734 विभिन्न अस्थाई पंजीकरण में 497 लघु उद्यम, 1,148 सूक्ष्म तथा 89 मध्यम एवं बड़े उद्योग शामिल थे। इससे लघु उद्योगों में 856.04 करोड रूपये का निवेश से 20,645 व्यक्तियों, सूक्ष्म उद्योगों में 422.14 करोड रूपये का निवेश से 20,334 व्यक्तियों तथा 7752.48 करोड़ रूपये के निवेश से 45,001 लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ। इस तरह इन उद्योगों की स्थापना से ऊना में कुल 9030.66 करोड़ रूपये के निवेश से 88,980 लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ। 
प्रदेश की शिवालिक पहाडियों के अंचल में बसा जिला ऊना समय के साथ-साथ प्रगति के पथ पर निरन्तर अग्रसर है। जिला में जिस तेज गति के साथ औद्योगिकरण को बढ़ावा मिला है उसी का ही नतीजा है कि आज ऊना विकास के पथ पर सरपट दौड रहा है। औद्योगिकरण की बात करें तो आज जिला ऊना में 2367 औद्योगिक इकाईयां कार्यरत है। जिसमें 2174 सूक्ष्म, 170 छोटी तथा 23 मध्यम व बडी इकाईयां शामिल हैं। इन छोटी बडी औद्योगिक इकाईयों में लगभग 1775 करोड रूपये का निवेश हुआ है। जिनके माध्यम से 15346 लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है जिसमें से 13670 हिमाचली शामिल हैं। मैहतपुर, टाहलीवाल, गगरेट, बसाल, अंब व जीतपुर बाथडी प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र हैं। क्रीमिका, नेस्ले, ल्यूमिनस पॉवर टैक्रॉलॉजी, हिम सिलेंडर, सुखजीत एग्रो, प्रीतिका ऑटो कैटस, एमबीडी प्रिंट ग्राफिक्स जैसी अनेक नामी कंपनियां जिला में कार्यरत हैं।
अगर गत साढ़े तीन वर्षों की ही बात करें तो जिला में औद्योगिकरण की दिशा में न केवल कई अहम निर्णय लिए गए बल्कि नए औद्योगिक क्षेत्रों के विकास का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है। प्रदेश सरकार की विकासोन्मुख सोच का ही नतीजा है आज जिला ऊना के पंडोगा में 150 करोड रूपये की लागत से 1570 कनाल भूमि पर एक नया अत्याधुनिक औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया जा रहा है तो वहीं देहलां-दुलैहड-इसपुर-गगरेट क्षेत्र को भी औद्योगिक कॉरीडोर के तहत शामिल किया गया है। जिससे इन क्षेत्रों में औद्योगिक अधोसंरचना के विकास को बल मिलेगा तो वहीं नए उद्योग स्थापित करने का मार्ग भी प्रशस्त होगा। 
जिला में औद्योगिक अधोसंरचना को विकसित करने तथा इससे जुडी विभिन्न गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई अहम प्रोजैक्टस को शुरू किया है। जिनमें नंगल से टाहलीवाल बाथडी तक प्राकृतिक गैस पाइप लाईन के तहत लगभग अढ़ाई करोड रूपये का एक प्रोजैक्ट, बाथू में 4.46 करोड रूपये की लागत से लेबर हॉस्टल का निर्माण, बाथू में ही 10.08 करोड रूपये की लागत से कॉमन फैसिलिटी सैंटर शामिल है। इसके अतिरिक्त सिंगा में 51 एकड भूमि में लगभग 250 करोड रूपये की लागत से फूड पार्क तथा ठठल में 65 एकड क्षेत्र में 103.90 करोड रूपये की लागत से हिमाचल कपडा पार्क भी स्थापित किया जाना प्रस्तावित है। 
ऊना जिला में गत साढ़े तीन वर्षों के दौरान प्रधान मंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत बैंकों के माध्यम से 118 मामलों में दो करोड रूपये से अधिक की मार्जिन मनी उपलब्ध करवाई गई है। जिनमें वर्ष 2013-14 के दौरान 32 मामलों में 54.77 लाख, वर्ष 2014-15 के दौरान 37 मामलों में 57.35 लाख तथा वर्ष 2015-16 के दौरान 49 मामलों में 90.12 लाख रूपये की राशि शामिल है। इसी दौरान 44 औद्योगिक इकाइयों को लगभग 5 करोड रूपये की राशि बतौर केन्द्रीय उपदान उलब्ध हुई है। जबकि दो इकाइयों को 30 लाख रूपये की राशि बतौर ट्रांस्पोर्ट सब्सिडी मिली है।
वर्तमान में जिला में कार्यरत औद्योगिक क्षेत्रों की बात करे तो मैहतपुर में 902 कनाल भूमि में 158 प्लाटस आंवटित किए गए हैं जिनमें 135 इकाईयां, टाहलीवाल में 726 कनाल में 184 प्लॉटस आवंटित किए हैं जिनमें 174 इकाईयां स्थापित हैं। इसी तरह जहां गगरेट औद्योगिक क्षेत्र की 1109 कनाल भूमि में 75 प्लाटस आवंटित किए गए हैं जिनमें 61 इकाईयां तो वहीं अंब औद्योगिक क्षेत्र की 1059 कनाल क्षेत्र में 30 प्लाटस आवंटित किए गए हैं जिनमें 18 औद्योगिक इकाईयां स्थापित हैं। जबकि 244 कनाल बसाल औद्योगिक क्षेत्र में 41 प्लाटस में दो तथा जीतपुर बाथडी की 235 कनाल भूमि में 27 प्लाटस आवंटित कर तीन इकाईयां स्थापित हुई हैं।
जिला में औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए 15.15 करोड रूपये की राशि व्यय कर अजौली-लालूवाल वाया टाहलीवाल सडक़ को बेहतर बनाया गया है। औद्योगिक क्षेत्र टाहलीवाल में सडकों के सुदृढिकरण पर 2.15 करोड जबकि मैहतपुर क्षेत्र में 1.61 करोड रूपये की राशि व्यय की गई है। गोंदपुर जयचंद में 1.78 करोड रूपये की लागत से औद्योगिक पार्क विकसित किया जा रहा है। साथ ही जिला के हरोली विधानसभा क्षेत्र के अन्तर्गत पालकवाह में लगभग 18 करोड रूपये की लागत से हिमाचल प्रदेश का पहला कौशल विकास प्रशिक्षण संस्थान स्थापित किया जा रहा है। 
इसके अलावा टाहलीवाल औद्योगिक क्षेत्र में सडक के किनारे जल निकासी एवं सिवरेज सिस्टम के तहत प्रथम व द्वितीय फेज में 2.15 करोड रूपये जबकि गगरेट औद्योगिक क्षेत्र में एक करोड रूपये की राशि व्यय की गई है। जिला के खडड गांव में बहुउदेश्यीय सुविधा केन्द्र की स्थापना को लेकर एक करोड, घालूवाल व सलोह में रैहन बसेरा के निर्माण कार्यों के लिए 50-50 लाख रूपये की राशि व्यय की जा रही है। साथ ही सामुदायिक केन्द्र पंडोगा, गोंदपुर जयचंद, सिंगा व हलेडा के निर्माण कार्यों के लिए भी 25-25 लाख रूपये की राशि प्रथम चरण में स्वीकृत कर दी गई है। इसके अतिरिक्त बाथू, बाथडी, गोंदपुर जयचंद, टाहलीवाल, सिंगा, ईसपुर, भडियारा, हलेडा, बालीवाल, लालूवाल, मैहतपुर में ख्खूबसूरत शैली में रेन शैल्टरों के निर्माण कार्य के लिए भी औसतन 10-15 लाख रूपये की राशि मुहैया करवाई गई है। औद्योगिक अधोसंरचना के विकास के साथ-साथ स्थानीय ग्रामीणों के विकास पर भी उद्योग विभाग के माध्यम से विभिन्न विकासात्मक कार्यों के लिए भी करोडों रूपये की राशि उपलब्ध करवाई गई है। जिसमें रास्तों व गलियों का निर्माण इत्यादि प्रमुख कार्य शामिल हैं।
इस तरह जिला ऊना में वर्तमान सरकार के साढ़े तीन वर्षों के कार्यकाल के दौरान औद्योगिक अधोसंरचना के साथ-साथ औद्योगिक विकास के लिए गए अहम निर्णयों से न केवल जिला में औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल रहा है बल्कि नए औद्योगिक क्षेत्र स्थापित हो जाने से प्रदेश सहित जिला ऊना के शिक्षित युवाओं को सीधे व परोक्ष तौर पर रोजगार के नए अवसर सृजित होंगें।

 
 (साभार: हिमप्रस्थ, सितम्बर-अक्तूबर विशेषांक, 2016 में प्रकाशित)                                                             

Thursday, 13 October 2016

नाग नावणा देवता मंदिर, डोबरी सालवाला पांवटा साहिब हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश देवभूमि के नाम से जाना जाता है। प्रदेश के कोने-कोने में जहां देव आस्था से लोगों की संस्कृति व परम्पराएं जुड़ी हैं तो वहीं यहां की देव संस्कृति इसको प्रमाणित भी करती है। इन्हीं देव आस्थाओं में से एक है सिरमौर जिला के गिरिपार क्षेत्र डोबरी सालवाला स्थित नाग नावणा देवता मंदिर। मंदिर के पुजारी के अनुसार नटनी के श्राप से सिरमौर रियासत की पुरानी राजधानी सिरमौरी ताल जहां गिरि नदी में आई भंयकर बाढ़ के चलते पूरी तरह से नष्ट होकर खण्डहर बन गई तो वहीं सिरमौर रियासत का राजवंश भी खत्म हो गया था।
किंवदन्ति है कि एक बार किसी नटनी ने तत्कालिन राजा सिरमौर मदन सिंह से शर्त लगाई कि वह कच्चे सूत के धागे (रस्सी) पर टोका से पोका तक नाचते हुए गिरि नदी को पार करेगी। जिसकी एवज में राजा सिरमौर ने अपने राज्य का आधा हिस्सा देने का वायदा किया। ऐसे में जब नटनी शर्त के अनुसार गिरि नदी पार करने ही वाली थी तब राजा व उसके सहयोगियों के दिलों में खेाट पैदा हो गया और धागे (रस्सी) को बीच में ही काट दिया, ऐसे में नटनी ने मरते-मरते राजा को श्राप दिया ‘आर टोका पार पोका बीच में बह जाए सारे सिरमौर के लोका‘। कहते हैं कि नटनी के इस श्राप के चलते सिरमौर रियासत की राजधानी सिरमौरी ताल गिरि नदी में आई भयंकर बाढ़ में पूरी तरह से नष्ट हो गई थी।
नाग देवता मंदिर का दृश्य
जनश्रुति है कि इसके बाद रियासत को पुनः स्थापित करने के लिए तब रियासत के राजपुरोहित व ज्योतिषियों ने जैसलमेर के राजा (जिनके पास तीन रानीयां थी) से अपनी एक रानी को सिरमौर भेजने का निवेदन किया ताकि रानी से होने वाली संतान राज्य का शासन सम्भाल सके। तब राजा ने अपनी एक रानी जो गर्भवती थी उसे सिरमौर भेजा। इसके बाद रानी जो गर्भवती थी वह सिरमौरी ताल की ओर चल पड़ी लेकिन बीच रास्ते में ही प्रसव पीडा शुरु हो गई तथा ढ़ाक (पलाश) के पेड़़ (वर्तमान नाग देवता स्थान) के नीचे पहले नाग देवता निकले उसके बाद एक सुन्दर बालक को जन्म दिया। इस बालक का नाम बदन सिंह रखा तथा ढ़ाक के पेड़ (पलाश) के नीचे पैदा होने पर ढ़ाक प्रकाश भी कहलाया। ऐसे में एक बार फिर सिरमौर रियासत का राजवंश चल पडा। 
लेकिन कहते है कि नई रियासत बस जाने के वर्षों बाद राज परिवार को नाग देवता का दोष लगा। एक दिन नाग देवता ने राज परिवार के सदस्य को स्वपन में दर्शन दिए कि आपकी राजधानी तो बस चुकी तथा स्वयं तो आराम से रह रहे हैं परन्तु मेरे मंदिर का निर्माण अब तक नहीं किया गया है तथा मुझे ढ़ाक के पेड़ में शरण लेनी पड़ रही है। तदोपरान्त लगभग 1000 वर्ष पहले राज परिवार ने ढ़ाक के पेड (नाग देवता के जन्म स्थान) के पास नाग देवता के मंदिर का निर्माण करवाया। कहते है तभी से ही सिरमौर रियासत की महिलाएं व राज परिवार नाग देवता का परम भक्त रहा तथा नाग देवता को वह अपने कुल इष्ट देवता की तरह पूजते रहे हैं।लेकिन जानकार कहते हैं कि सैंकड़ों वर्ष पहले मंदिर के साथ लगते कंडेला की पहाड़ियों, जंगलों व साथ लगती दुपहरिया खड़ड से भारी भू-स्खलन होने के कारण यह प्राचीन व ऐतिहासिक मंदिर भारी मलबे के नीचे दब गया था। परन्तु कुछ वर्ष पहले की गई खुदाई में प्राचीन काल की 11वीं से लेकर 15वीं शताब्दी के मध्य की मूर्तियां व मंदिर के पुख्ता सबूत मिले हैं। पुरात्व विभाग की टीम ने खुदाई के दौरान मिली मूर्तियों की जाॅंच की तथा इनका पंजीकरण कर इन्हें मंदिर के अन्दर व बाहर रखा गया है। जानकारों के अनुसार यहां खुदाई के दौरान प्राचीन काल की लगभग 60-65 मूर्तियां मिली हैं, जिनकी लंबाई लगभग एक फुट से लेकर चार फुट तक है। इन प्राचीन मूर्तियों में ब्रह्मा, कुंड़ल, सुदर्शन, चक्रधारी, लक्ष्मी नारायण दरबार, गणेश, सदाशिव, सूर्यदेव, कुम्म कलश, कार्तिक, विष्णु शेषनाग, शिव-पार्वती इत्यादि शामिल हैं। ऐसे में यह मंदिर प्राचीन व ऐतिहासिक घटनाओं का जीवंत उदाहरण है। 
यहां पर दशहरे के दिन चार दिवसीय मेला लगता है। इस मेले में आसपास क्षेत्रों के साथ-साथ पडोसी राज्यों उतराखंड व हरियाणा के लोग भी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। परम्परा के अनुसार दशहरा उत्सव के एक दिन पहले नाग देवता की पालकी कोटगा गांव से आती है तथा पांचवें दिन वापिस चली जाती है। तब तक यहां मेले का आयोजन चलता रहता है तथा लोग नाग देवता के दर्शन प्राप्त करते हैं। यही नहीं परम्परा के अनुसार लोग अनाज जैसे गेहॅूं व मक्की इत्यादि की नई फसल, जिसे यहां के लोग फसलनामा भी कहते को भी चढ़ाने आते हैं। बरसात के दिनों में मंदिर पूरी तरह से पानी में डूब जाता है। इस मंदिर के साथ ही लक्ष्मी नारायण, काली माता व माॅं बाला सुंदरी के मंदिर भी हैं। वर्तमान में इस मंदिर का संचालन नाग देवता समिति के माध्यम से किया जा रहा है, जिसका गठन वर्ष 2000 में किया है। समिति ने श्रद्धालुओं के ठहरने हेतू दो कमरों का निर्माण तथा पीने के पानी का भी उचित प्रबंध करवाया है।
यह ऐतिहासिक व प्राचीन मंदिर पांवटा साहिब से लगभग 12 कि0मी0, नाहन से 58 कि0मी0 तथा देहरादून से भी 58 कि0मी0 की दूरी पर है। यह स्थान वर्ष भर सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है जबकि सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भी देहरादून ही है।

Friday, 30 September 2016

बढते साइबर अपराध सावधानी की जरूरत

सूचना तकनीक की 21वीं सदी में जहां कम्प्यूटर व मोबाइल आधारित टेक्रालॉजी का इस्तेमाल बढ़ा है तो वहीं इंटरनेट के बढ़ते उपयोग से हमारी दिनचर्या व कामकाज में भी काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। कंप्यूटर के साथ-साथ मोबाइल में इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल के कारण आज सोशल मीडिया व नेटवर्किग साइटस का इस्तेमाल करने वालों का दायरा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। इंटरनेट क्रांति की हकीकत तो यह है कि जैसे-जैसे इसकी पहुंच समाज के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक हो रही है उसी गति से न केवल कंप्यूटर एवं मोबाइल फोन आधारित सूचनाओं के आदान-प्रदान की गति बढी है बल्कि सोशल नेटवर्किग साइटस जैसे फेसबुक, टवीटर, ब्लॉगस, इंस्टाग्राम, टंबलर, लिंकडन, यू-टयूब इत्यादि का इस्तेमाल भी तेजी से बढ़ता जा रहा है। पूरी दुनिया सहित भारत में नितदिन डिजिटल क्रांति का ही परिणाम है कि आज बैंकिंग, व्यापार सहित ऑन लाइन शापिंग के लिए डेबिट व क्रेडिट कॉर्ड के साथ-साथ अन्य तरह के लेन देन व सूचनाओं के आदान प्रदान में भी इंटरनेट का प्रयोग बढा है। ऐसे में भले ही इंटरनेट के बढते इस्तेमाल के कारण सूचनाओं के आदान प्रदान के साथ-साथ आम जीवन के विभिन्न कार्यों के निपटान में सुविधा हो रही हो लेकिन उतनी ही तेजी के साथ साइबर अपराधों ने हमारी राह में मुश्किलें भी खडी कर दी हैं।
ऐसे में यदि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी 2015 के आंकडों का विश्लेषण करें तो देश में वर्ष 2014 के मुकाबले 2015 में साइबर अपराधों के मामलों में काफी वृद्धि दर्ज हुई है। प्राप्त आंकडों के आधार पर वर्ष 2014 में 9622 साइबर अपराध के मामलों के मुकाबले वर्ष 2015 में यह आंकडा बढक़र 11562 हो गया है जिसमें लगभग 20.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। जबकि साइबर अपराध से जुडे मामलों में वर्ष 2014 में गिरफतार 5752 लोगों के मुकाबले वर्ष 2015 में यह आंकडा 8121 हो गया है जिसमें भी लगभग 41.2 फीसदी की बढौतरी दर्ज हुई है। ऐसे में यदि हिमाचल प्रदेश की बात करें तो हिमाचल में भी वर्ष 2014 में 38 मामले साइबर अपराध के सामने आए थे तथा 2015 में यह आंकडा बढक़र 50 हो गया है जिसमें लगभग 31.6 फीसदी की बढ़ौतरी दर्ज हुई है जबकि प्रदेश में वर्ष 2014 में साइबर अपराध को लेकर 16 गिरफतारियों के मुकाबले वर्ष 2015 में 38 गिरफतारियां हुई है जिसमें भी लगभग 137.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है। 
साइबर अपराध में सूचना प्रौद्योगिकी कानून (सेशोधित)-2008 की बात करें तो इस कानून की विभिन्न धाराओं के तहत वर्ष-2015 में कुल 8045 मामले दर्ज हुए हैं जिसमें कंप्यूटर डाक्यूमेंट के साथ छेडछाड के 88, आईटी एक्ट की धारा 66 के तहत 6567 मामले दर्ज हुए जिसमें 66ए के तहत 4154, 66 बी के तहत 132, 66सी के तहत 1081, 66 डी के तहत 1083 तथा 66 ई के तहत 117 मामले शामिल हैं। इसी दौरान साइबर आतंकवाद से जुडे 13 जबकि आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत 816 मामले दर्ज हुए हैं जिसमें 67ए के तहत 792, 67बी के तहत आठ तथा 67सी के अंतर्गत 16 मामले शामिल हैं।
ऐसे में जिस तेज रफतार के साथ हमारा इंटरनेट व इससे जुडी सोशल नेटवर्किग का इस्तेमाल बढ रहा उतनी ही रफतार के साथ लोग साइबर अपराध के शिकार भी होते जा रहे हैं। जिसमें बात चाहे ई-मेल या मोबाइल फोन के माध्यम से सूचनाओं के गलत आदान-प्रदान की हो या फिर कंप्यूटर को हैक करके जरूरी सूचनाओं को चुराने की हो। बात यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि इंटरनेट के माध्यम से कई बार किसी व्यक्ति विशेष से संबंधित अश्लील सामग्री का प्रचार-प्रसार कर दिया जाता है तो कई बार फर्जी ई-मेल, फेसबुक, टवीटर, ब्लॉगस इत्यादि के खाते बनाकर गलत प्रचार-प्रसार एवं धोखधडी या बेईमानी इत्यादि की जाती है। इस तरह साइबर अपराध को अंजाम देने वाले लोग शायद यह भूल कर बैठते हैं कि उनकी इन घटनाओं को न तो कोई देख रहा है न ही जान पा रहा है कि वह ऐसा करने वाला कौन व्यक्ति है। परन्तु साइबर अपराध करने वाले यह भूल जाते हैं कि ऐसे लोगों के लिए सूचना प्रौद्योगिकी कानून (संशोधित)-2008 के तहत सजा का सख्त प्रावधान किया गया है।
आईटी एक्ट की धारा 67 में अश्लील सामग्री को इलैक्ट्रानिक रूप में प्रकाशित या संचारित करने के लिए 3-5 साल तक की जेल व 5-10 लाख रूपये तक का जुर्माना जबकि 67ए व 67बी में किसी के आचरण व्यस्क या बच्चा से संबंधित किसी भी प्रकार की सामग्री को प्रकाशित या संचारित या इलैक्ट्रानिक रूप में प्रेषित करता है तो ऐसे व्यक्ति को 5-7 साल की जेल व 10 लाख रूपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। इसी तरह धारा 66ए, 66 बी, 66सी, 66डी, 66 ई व 66एफ के तहत यदि कोई व्यक्ति संचार सेवा के माध्यम से आक्रामक संदेश भेजता है, चोरी या बेईमानी से प्राप्त कंप्यूटर का इस्तेमाल करता है, धोखे या बेईमानी से इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर, पासवर्ड या अन्य व्यक्तिगत जानकारी का इस्तेमाल करता है, कंप्यूटर संसाधन के माध्यम से वेशधारण कर धोखाधडी करता है या किसी की प्राइवेसी को भंग करता है तथा साइबर आतंकवाद में भागीदार पाया जाता है तो इन धाराओं के तहत एक से तीन साल तक की जेल, एक से दो लाख रूपये तक का जुर्माना या दोनों सजाएं हो सकती है। 
भले ही माननीय उच्चतम न्याायालय ने धारा 66ए को निरस्त कर दिया हो लेकिन अभी भी सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट के तहत साइबर अपराधियों को पकडने के लिए कई कानूनी प्रावधान मौजूद हैं। ऐसे में हमारे देश में इंटरनेट क्रांति के चलते जहां सूचनाओं के आदान-प्रदान व संप्रेषण में सहूलियत हुई है तो वहीं बढते साइबर अपराधों  ने मुश्किलें भी खडी कर दी है। ऐसे मेें जहां हमें साइबर अपराधियों से सावधान रहने की जरूरत है तो वहीं सूचना तकनीकी कानून की जानकारी होना भी लाजमी हो जाता है ताकि कल हमें किसी भी तरह की साइबर अपराध से जुडी परेशानी न उठानी पडे।


(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 15 सितम्बर, 2016 एवं हिमाचल दिस वीक, 17 सितम्बर, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Saturday, 10 September 2016

सडक दुर्घटना के पीडितों व घायलों की खुलकर मदद करें

सडक़ दुर्घटनाओं के कारण मरने वाले व्यक्तियों की सूची में भारत का स्थान दुनिया में सबसे ऊपर है। भारत में प्रतिवर्ष पांच लाख से अधिक सडक दुर्घटनाएं होती है जिनमें लगभग डेढ लाख लोगों की जान चली जाती है जबकि लाखों घायलों को यह सडक दुर्घटनाएं जीवन भर का दर्द दे जाती है। सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय भारत सरकार के आंकडों के आधार पर देश में प्रतिदिन 1374 सडक़ दुर्घटनाओं में 400 लोगों की मौत हो रही है। लेकिन इन सडक दुर्घटनाओं के शिकार कई लोगों की मौत इसलिए भी हो रही है क्योंकि सडक दुर्घटनाओं के शिकार घंटों सडकों पर पडे रहते हैं लेकिन नजदीकी अस्पताल तक पहुंचाने के लिए कोई मदद को आगे नहीं आ पाता है। ऐसे में सडक दुर्घटनाओं के शिकार कई लोग घावों को न सह पाने तथा समय पर प्राथमिक उपचार न मिल पाने के कारण तडपते हुए मौत के आगोश में समा जाते हैं। 
इस संदर्भ में किए गए एक सर्वेक्षण से यह पता चला है कि सडक दुर्घटना स्थल के आसपास खड़े लगभग 88 फीसदी लोग कानूनी पचडों और पुलिसिया कार्रवाई से बचने के लिए दुर्घटना से पीडित लोगों की मदद के लिए आगे नहीं आ पाते हैं। जिसका प्रमुख कारण पुलिस द्वारा बार-बार प्रश्न पूछे जाने, न्यायालय द्वारा बार-बार समन देने तथा गैर-इरादतन दुर्घटनात्मक मृत्यु के लिए मुकदमा चलाए जाने के डर से दुर्घटना स्थल के आसपास से गुजरने वाले लोग पीडित की मदद करने से गुरेज करते हैं। लेकिन माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक मामले के तहत अब सडक दुर्घटनाओं के शिकार लोगों की मदद करने वालों के बचाव में कई कडे निर्देश जारी किए हैं। 
उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी इन निर्देशों के तहत किसी भी सडक़ दुर्घटना के प्रत्यक्षदर्शी सहित कोई भी बाईस्टैंडर या गुड सेमेरिटन किसी घायल व्यक्ति को निकटतम अस्पताल में लेकर जा सकता है तथा उन्हे अस्पताल से तुरन्त जाने की अनुमति दे दी जाएगी और इनसे कोई भी प्रश्न नहीं पूछा जाएगा सिवाय प्रत्यक्षदर्शी के जिसे भी पता बताने के बाद जाने दिया जाएगा। सडक दुर्घटना के पीडितों की मदद के लिए आगे आने वाले नागरिकों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार अपने तरीके से ऐसे भले आदमी को ईनाम या मुआवजा देने का प्रावधान भी कर सकती है। बाईस्टैंडर या गुड समेरिटन किसी सिविल एवं आपराधिक दायित्व के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। सडक़ पर घायल व्यक्ति के लिए पुलिस या आपातकालीन सेवा के लिए सूचना देने पर भले आदमी को फोन अथवा व्यक्तिगत रूप से उ पस्थित होकर अपना नाम और व्यक्तिगत विवरण देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है बल्कि ऐसी सूचना देने को स्वैच्छिक व वैकल्पिक बनाया गया है। 
इन्ही निर्देशों के तहत उन सरकारी अधिकारियों के विरूद्ध संबंधित सरकार द्वारा अनुशासनात्मक या विभागीय कार्रवाई अमल में लाई जा सकती है जो सडक दुर्घटना पीडितों की मदद के लिए आगे आए किसी भले आदमी को अपना नाम या व्यक्तिगत जानकारी देने के लिए बाघ्य करेंगें। यदि इस संदर्भ में कोई बाईस्टैंडर या भला आदमी स्वैच्छिक तौर पर दुर्घटना का प्रत्यक्षदर्शी होने का उल्लेख करता है तो ऐसे व्यक्ति को राज्य सरकार यह सुनिश्चित बनाए कि उसे उत्पीडित या धमकाया न जाए। साथ ही भले आदमी को उत्पीडऩ या असुविधा से दूर रखने के लिए पूछताछ के दौरान विडियो कांफ्रेंसिंग का विस्तृत रूप से इस्तेमाल किया जाए।
न्यायालय ने यह निर्देश भी जारी किए हैं कि यदि कोई भला व्यक्ति किसी सडक दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को किसी पंजीकृत सरकारी या निजी अस्पताल में ईलाज के लिए साथ लेकर आता है तो ऐसे व्यक्ति को वह न तो रोक सकते हैं न ही अस्पताल में पंजीकरण एवं भर्ती लागतों के लिए भुगतान की मांग कर सकते हैं बशर्ते वह भला आदमी घायल व्यक्ति के परिवार का कोई सदस्य या सगा संबंधी न हो। ऐसी स्थिति में संबंधित अस्पताल द्वारा घायल का तुरन्त इलाज किया जाए। साथ ही सडक दुर्घटनाओं से संबंधित किसी आपातकालीन परिस्थिति में यदि डॉक्टर उचित चिकित्सीय देखभाल व ईलाज करने में कोताही करता है तो ऐसे चिकित्सकों के खिलाफ भारतीय चिकित्सा परिषद् (व्यवसायिक आचार, शिष्टाचार और नैतिक विनियम-2002) के अध्याय-7 के अंतर्गत अनुशासनात्मक कार्रवाई अमल में लाई जा सकती है। इस संदर्भ में न्यायालय ने यह निर्देश भी जारी किए हैं कि सभी अस्पताल अपने प्रवेश द्वार में हिंदी, अंग्रेजी सहित स्थानीय भाषाओं में एक चार्टर भी प्रकाशित करें जिसमें यह उल्लेख किया गया हो कि सडक दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को उपचार के लिए लाने वाले बाईस्टैंडर या भले व्यक्ति को वह नहीं रोकेंगे तथा न ही घायल व्यक्ति के उपचार के लिए धन जमा कराने के लिए कहेंगें। बल्कि बाईस्टैंडर या भले आदमी को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारें ऐसे व्यक्तियों को पावती भी उपलब्ध करा सकती हैं तथा ऐसे नेक व्यक्ति बारे जानकारी दूसरे अस्पतालों में भी भेज सकती है।
सडक दुर्घटनाओं में घायल व्यक्तियों को लेकर माननीय न्यायालय का यही कहना है कि मानव जीवन की रक्षा से सर्वोपरि कोई दूसरा विचार नहीं हो सकता है। क्योंकि व्यक्ति की मृत्यु हो जाने के पश्चात, कुछ भी करके पूर्ववृत स्थिति प्राप्त नहीं की जा सकती है, क्योंकि मृत व्यक्ति को जीवित करना मनुष्य की क्षमताओं से बाहर है। इसलिए प्रत्येक चिकित्सक सहित पुलिस व इन दुर्घटनाओं से जुडा कोई भी व्यक्ति मामले से जुडी दूसरी औपचारिकताओं को पूरी करने से पहले सर्वप्रथम घायलों के उपचार व जिंदगी बचाने को शीर्ष प्राथमिकता प्रदान करे।



(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 8 सितम्बर, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Wednesday, 24 August 2016

नशाखोरी के खिलाफ समाज का हर व्यक्ति आगे आए

हमारे समाज में नशे के फैलते जहर से न केवल हमारा पारिवारिक व समाजिक ढ़ांचा प्रभावित हो रहा है बल्कि इसकी चपेट में आकर हमारी नौजवान पीढी आए दिन तबाह हो रही है। आज हमारे समाज में न जाने ऐसे कितने परिवार हैं जहां इस नशीले जहर ने किसी का भाई, किसी का बेटा तो किसी का पति असमय की जीवन के गर्त में धकेल दिया। यही नहीं ऐसे न जाने कितने परिवार होगें जिनके लिए मादक द्रव्यों एवं पदार्थों का यह काला कारोबार जीते जी मौत का कुंआ साबित हो रहा है। कितने ऐसे परिवार हैं जिनके लिए नशे का यह जहर परिवार की आर्थिकी को तबाह कर कंगाली के स्तर पर ले गया है।
लेकिन अब प्रश्न यह खडा हो रहा है कि आखिर नशीले पदार्थों का यह जहरीला कारोबार करने वाले कौन हैं? क्या हमारा समाज ऐसे लोगों के आगे बौना साबित हो रहा है? या फिर नशे का काला कारोबार करने वालों के खिलाफ हमारा समाज लडने की पहल ही नहीं कर पा रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं हम हर समस्या के समाधान की तरह नशे की इस सामाजिक बुराई को लेकर भी हल केवल सरकारी चौखट में ही ढूूंढ रहे हैं। लेकिन अब वक्त आ गया है कि नशे की इस बुराई को लेकर समाज के हर वर्ग, हर व्यक्ति यहां तक की हर परिवार को पहल करनी होगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी इस सामाजिक व्यवस्था में ऐसी कोई भी समस्या नहीं है जिसका हम मुकाबला नहीं कर सकते हैं। लेकिन जरूरत है नशे व नशीले पदार्थों के विरूद्ध एक सकारात्मक पहल करने की। जरूरत है ऐसे लोगों को बेनकाब करने की जो इस काले कारोबार में सैंकडों नहीं बल्कि हजारों युवाओं की हंसती खेलती जिंदगी को तबाह कर रहे हैं।
हम यहां यह क्यों भूल रहे हैं कि नशे का यह जहरीला कारोबार करने वाले कोई ओर नहीं बल्कि हमारे ही समाज के वे चंद लोग हैं जो कुछ रूपयों की खातिर हंसते खेलते परिवारों में नशे का यह जहरीला दंश देकर तबाही का मंजर लिख रहे हैं। लेकिन हैरत कि हम ऐसे लोगों के विरूद्ध लडने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं। जिसका नतीजा यह है कि आए दिन अफीम, चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर, भुक्की इत्यादि जैसे घातक मादक द्रव्यों एवं पदार्थों का काला कारोबार करने वाले हमारे पडोस में आकर दस्तक देकर नितदिन एक नई जिंदगी को तबाह कर रहे हैं। हमें केवल व्यवस्था को कोसते रहना या फिर समस्या के कारणों के लिए दूसरों के ऊपर दोषारोपण करने के बजाए इसे समाज से उखाड फैंकने के लिए मिलकर प्रयास करने होगें। हमें इस सामाजिक समस्या के समाधान के लिए स्वयं से पहल करते हुए अपने परिवार व आसपास के समाज में जागरूकता फैलाकर जहां नशे के इस जहर से लोगों विशेषकर युवाओं को बचाना होगा तो वहीं नशीले पदार्थों के काले कारनामें वालों का पर्दाफाश भी करना होगा।
हमारे समाज के लिए यह एक सुखद पहल ही कही जाएगी कि इस नशे के जहरीले दंश से समाज को बचाने के लिए हमारी सरकार स्वयं आगे आई है। हिमाचल सरकार लोगों को नशे के विरूद्ध जन जागरूकता लाने के लिए 22 अगस्त से 5 सितंबर तक समाज से भांग व अफीम की खेती को नष्ट करने के लिए एक व्यापक अभियान लेकर आई है। इस अभियान का उदेश्य भी जहां नशीले पदार्थों के सेवन के प्रति समाज में जन जागरूकता फैलाना है तो वहीं नशे के अवैध कारोबार में शामिल लोगों के लिए एक चेतावनी भी कही जा सकती है ताकि वह किसी के हंसते खेलते परिवार में यह जहरीला दंश देने से पहले सौ बार सोचे। जिस तरह से प्रदेश सरकार ने इस गंभीर समस्या के निपटारे के लिए विभिन्न कानूनी पहेलुओं पर भी गंभीरता से मंथन किया है यह आने वाले समय में नशे के जहरीले कारोबारियों के लिए सुधरने व इस काले कारोबार को छोडने का एक मौका भी कह सकते है। 
इस अभियान के माध्यम से जहां समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने आसपास उगी भांग व अफीम के पौधों को नष्ट करने के लिए आगे आए तो वहीं इन नशीले पदार्थों के दुष्प्रभावों को लेकर अपने परिवार व आसपास के समाज में चर्चा करे। इस पुनीत कार्य में शिक्षण संस्थाओं के अतिरिक्त ग्रामीण स्तर पर महिला व युवक मंडल, स्वयं सहायता समूह, ग्राम पंचायतें, गैर सरकारी व स्वयं सेवी संस्थाएं लोगों को इस अभियान के साथ जोडने तथा इस अभियान का संदेश घर-घर तक पहुंचाने में अहम योगदान दे सकते हैं। साथ ही हमारे समाज में विभिन्न सामाजिक समारोहों में परोसे जाने वाले विभिन्न नशीले पेय पदार्थों मसलन शराब इत्यादि के इस्तेमाल को भी प्रतिबंधित करना होगा ताकि नशे के विरूद्ध हमारी इस जंग का हमारे आसपास एक सकारात्मक संदेश जाए। यहां हमें यह नहीं भूलना चाहिए हमारे देश में प्रतिवर्ष कुल सडक़ दुर्घटनाओं का दस प्रतिशत का कारण मादक द्रव्य व नशीले पदार्थों का सेवन कर वाहन चलाना है।
लेकिन अब प्रश्न यह उठ रहा है कि एक पखवाडे तक चलने वाला यह विशेष भांग व अफीम हटाओ अभियान महज सरकार का समाज के प्रति अपने दायित्व निर्वहन तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को इस अभियान के साथ जुडकर सरकार को अपना साकारात्मक योगदान देना होगा। हमें यहां यह नहीं भूलना चाहिए संविधान ने जहां हमें कई अधिकार दिए हैं तो वहीं समाज के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है इसका उल्लेख भी किया है। ऐसे में अब वक्त आ गया है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति महज व्यवस्था को कोसने के बजाए अपने संवैधानिक दायित्वों व कत्र्तव्यों का निर्वहन करते हुए प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई इस मुहिम का हिस्सा बन समाज से नशे के इस जहरीले दंश को उखाड फैंकने में अपना साकारात्मक योगदान दे।

(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 22 अगस्त, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)