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Friday, 28 July 2023

बाबा बालक नाथ जी का मूल स्थान है बनाड़, ऊंची पहाड़ी पर स्थित है मंदिर

 मंदिर परिसर में मिलता है अलौकिक शांति का अनुभव, आसपास का वातावरण है बेहद शांत व खूबसूरत

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल के तहत गांव बनाड़ में ऊंची पहाड़ी पर बाबा बालक नाथ जी का प्राचीन मंदिर स्थापित है। कहते हैं कि यह स्थान बाबा बालक नाथ जी का मूल स्थान है तथा बाबा बालक नाथ जी साक्षात यहां विराजमान रहते हैं। बाबा बालक नाथ जी के साथ ही ऊंची चट्टान पर गुरु गोरखनाथ जी की प्रतिमा भी स्थापित है। कहते हैं कि यह प्रतिमा भी साक्षात चट्टान के नीचे से ही निकली है। गुरू गोरख नाथ जी की प्रतिमा से कुछ ही दूरी पर पवन पुत्र हनुमान जी का भी स्थान है।
बाबा बालक नाथ जी के मंदिर तक पहुंचने के लिए सडक़ से लगभग 20 से 25 मिनट का पैदल सफर तय कर आसानी से पहुंचा जा सकता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए पक्की सीढिय़ां निर्मित की गई हैं तथा थोड़े-थोड़े अंतराल पर श्रद्वालुओं के बैठने को बैंच तथा पेयजल के लिए नलके लगाए गए हैं। पेयजल के लिए एक ऊंची पहाड़ी से प्राकृतिक स्त्रोत से पानी लाया गया है जो 24 घंटे उपलब्ध रहता है। रास्ते में चील, देवदार व बान के घने पेड़ों की ठंडक सफर को ओर आसान बना देती है। मंदिर परिसर में पहुंचने पर जहां अलौकिक शांति का अनुभव होता है तो वहीं आसपास का खूबसूरत प्राकृतिक सौंदर्य मन को बेहद सुकून प्रदान करता है। ऊंची पहाड़ी पर स्थित होने के कारण यहां से दूर-दूर तक प्रकृति का विहंगम नजारा देखते ही बनता है। इस स्थान की औसतन ऊंचाई लगभग साढ़े चार से पांच हजार फीट है।

जब बाबा से महिला ने मांगी थी संतान की मन्नत, खुदाई पर निकली थी सुनहरी थाल व अन्य सामान

मंदिर के पुजारी महन्त राम बताते हैं कि आज से लगभग 120 या 150 वर्ष पूर्व उनकी दादी ने बाबा से यह कहते हुए मन्नत मांगी थी, कि यदि तू सच्चा है तो मेरी ओर संतानें होनी चाहिए। उस महिला के पास केवल दो ही संतान थी लेकिन बाबा की कृपा से उसके यहां 4 या 5 बच्चे ओर हुए। कहते हैं कि उसके बाद इस प्राचीन मंदिर के प्रति लोगों की आस्था बढ़ने लगी। बाबा ने गुर के माध्यम से मंदिर वाले स्थान में खुदाई करने को कहा। खुदाई करने पर यहां सुनहरी थाल सहित अन्य धातुएं तथा अन्य मूर्तियां व सामान निकला। बाबा के आदेशों के तहत सुनहरी थाल व अन्य धातुओं को वापिस उसी स्थान पर दबा दिया गया।
महन्त राम बताते हैं कि गुर के माध्यम से ही बाबा बालक नाथ जी ने मूल स्थान से ऊंची चट्टान पर गुरु गोरखनाथ जी की प्रतिमा होने की बात कही। बाबा जी के आदेशों के तहत चट्टान को तोड़ा गया तो चट्टान के भीतर गुरु गोरखनाथ जी की प्रतिमा मिली। आज भी यह प्रतिमा उसी स्थान पर चट्टान के भीतर स्थापित है। कहते हैं कि बनाड़ गांव स्थित ऊंची चोटी पर बाबा बालक नाथ जी का यह मूल स्थान हैं। कहते हैं कि पुरातन समय में बाबा जी की ठीक से पूजा अर्चना न होने के कारण वे यहां से शाहतलाई चले गए थे। महन्त राम बताते हैं कि यहां समय-समय पर कई तरह के चमत्कार होते रहे हैं।

मांहूनाग देवता भी बाबा के साथ रहते हैं विराजमान, बाबा के पानी में नहाने से दूर होते हैं कई रोग

महन्त राम बताते हैं कि बाबा बालक नाथ जी के साथ मांहूनाग देवता भी विराजमान हैं। यहां पर भाद्रपद की 20 तारीख को पवित्र स्नान होता है। बाबा जी के पवित्र पानी में नहाने से कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है। उन्होने बताया कि बहुत समय पहले किसी गांव के एक व्यक्ति को कुष्ठ रोग हो गया था। इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए उसने अनेकों प्रयास किये, लेकिन जब उस व्यक्ति ने बाबा जी के पानी में स्नान किया तो उसे इस बीमारी से धीरे-धीरे छुटकारा मिल गया। बाबा बालक नाथ व देवता मांहूनाग का एक मंदिर गांव बनाड में भी स्थित है। इसी मंदिर के साथ बाबा बालक नाथ जी का यह पवित्र पानी है जिससे श्रद्धालु स्नान करते हैं।

कैसे पहुंचे मंदिर:
जोगिन्दर नगर-मंडी राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर जोगिन्दर नगर कस्बे के समीप अप्रोचरोड के पास जिमजिमा-बनाड-गलू पटट सपंर्क सडक़ पर लगभग 4 किलोमीटर की दूरी तय कर गांव बनाड पहुंचते हैं। बनाड़ में ही बाबा बालकनाथ व माहूंनाग देवता का मंदिर है तथा इसी स्थान पर बाबा बालक नाथ जी का पवित्र पानी भी है। बनाड़ से ही बाबा बालक नाथ जी के मूल स्थान तक लगभग 20 से 25 मिनट का पैदल सफर कर ऊंची पहाड़ी तक पहुंचा जा सकता है।


Sunday, 25 June 2023

ऊना के विपन धीमान ई-रिक्शा बनाकर बने उद्यमी, पंडोगा में स्थापित किया प्लांट

सीएम स्टार्टअप योजना के तहत आईआईटी मंडी में एक वर्ष तक प्रोजेक्ट पर किया शोध कार्य

कभी बचपन से भारतीय सेना ज्वाईन कर देश सेवा का सपना पाले ऊना के 38 वर्षीय विपन धीमान आज ई-रिक्शा बनाकर उद्यमी बन गए हैं। विपन धीमान ने प्रदेश सरकार की विभिन्न स्वावलंबी योजनाओं का लाभ उठाते हुए ऊना के औद्योगिक क्षेत्र पंडोगा में ई-रिक्शा प्लांट स्थापित किया है। मुख्य मंत्री स्टार्टअप योजना के तहत इंक्युबेशन केंद्र आईआईटी मंडी में ई-रिक्शा पर एक वर्ष तक शोध कार्य करते हुए वे न केवल ई-रिक्शा का सफलतापूर्वक उत्पादन कर रहे हैं बल्कि अब 6 अन्य युवाओं को रोजगार भी प्रदान किया है। 

वर्तमान में विपन धीमान के ई-रिक्शा के हिमाचल, चंडीगढ तथा पंजाब में कुल 5 डीलर भी कार्य कर रहे हैं जिनके माध्यम से लोग ई-रिक्शा को खरीद सकते हैं। अब तक 15 ई-रिक्शा का निर्माण कर लगभग 35 लाख रूपये राशि जुटा चुके हैं। उनके द्वारा तैयार ये ई-रिक्शा न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं बल्कि ऊना सहित अन्य स्थानों पर धड़ल्ले से यात्रियों को लाने व ले जाने का कार्य भी सफलता पूर्वक कर रहे हैं।

बचपन में पाला सेना में शामिल होने का सपना, एक अच्छे खिलाडी भी हैं विपन धीमान

जब विपन धीमान से उनके द्वारा तैयार इलेक्ट्रिक वाहन (ई-रिक्शा) निर्माण की कहानी पर बातचीत की तो वे कहते हैं कि बचपन से ही भारतीय सेना में भर्ती होने का सपना पाला हुआ था तथा शारीरिक तौर पर स्वयं को तैयार भी करते रहे।

स्कूली शिक्षा के दौरान उन्होंने एनसीसी भी ज्वाईन कर ली थी। लेकिन इस बीच शारीरिक समस्या के चलते सेना में भर्ती होने से रह गए तथा कॉलेज में स्नातक की पढाई शुरू कर दी। साथ ही एनसीसी में प्रमुखता से भाग लेते हुए एनसीसी-सी सर्टिफिकेट भी हासिल किया। साथ ही बॉक्सिंग व शूटिंग खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे तथा प्रदेश स्तर पर गोल्ड व सिल्वर मेडल भी जीते। स्नातक स्तर की परीक्षा में कम अंकों के चलते वे एनसीसी सी सर्टिफिकेट के बावजूद सेना में एक बार फिर भर्ती होने से वंचित रहना पड़ा। 

ग्रेजुएशन के बाद संभाला पिता का ऑटो स्पेयर पार्टस बिजनेस, ऑटो सेक्टर में काम करने का बढ़ा जज्बा

भावुक होते हुए विपन धीमान कहते हैं कि कॉलेज शिक्षा पूरी होते ही पिता नौकरी के लिए विदेश चले गए। उन्हें पारिवारिक स्पेयर पार्टस के बिजनेस को संभालना पड़ा। इस दौरान ऑटो सेक्टर में कुछ हटकर करने का जज्बा पैदा हुआ। वर्ष 2010 में रोपड़ स्थित रियात-बाहरा पॉलीटेक्निक संस्थान में ऑटो मोबाइल पाठयक्रम में प्रवेश ले लिया। वर्ष 2013 में डिप्लोमा पाठयक्रम के अंतिम समेस्टर में एक ऐसा प्रोजेक्ट तैयार किया जिसे राज्य स्तर पर सर्वश्रेष्ठ आंका गया। इसके बाद चंडीगढ से डिजाइन कैड में मास्टर डिप्लोमा भी हासिल किया। उन्होंने महिंद्रा ऑटो कंपनी में एक साल तक कार्य किया तथा वर्ष 2015 में वे दुबई चले गए। दुबई में भी ऑटो मोबाइल सेक्टर कंपनी में काम करते हुए इसकी बारीकियों को समझा। वर्ष 2017 में स्वदेश लौटे तथा पारिवारिक बिजनेस को पुन: संभालना शुरू किया।

जब दिल्ली में किया ई-रिक्शा में सफर, कमियों को पहचान ई-रिक्शा निर्मित करने को बढ़ाए कदम

विपन धीमान कहते हैं कि वर्ष 2017 में बिजनेस के संबंध में दिल्ली गए तो उन्हें ई-रिक्शा में सफर करने का मौका मिला। इस दौरान ई-रिक्शा निर्माण की खामियों को पहचाना तथा एक अच्छा मॉडल तैयार करने की ठानी। इंटरनेट के माध्यम से ई-रिक्शा बनाने के सभी पैरामीटर को जाना व समझा तथा वर्ष 2018 में ई-रिक्शा का प्रोटोटाइप मॉडल तैयार किया। लगभग एक माह तक शोध करने के बाद अपने स्तर पर ही लगभग 15 लाख रूपये व्यय कर ई-रिक्शा निर्मित करने का निर्णय लिया। इस बीच प्रदेश सरकार की ओर से उद्योग विभाग के तहत आर्थिक सहायता की जानकारी मिली। उद्योग विभाग के माध्यम से डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) सरकार को प्रस्तुत करके उन्हें सीएम स्र्टाटअप स्कीम के तहत स्वीकृति मिली। स्कीम के तहत 10 लाख रूपये तथा इंक्युबेशन केन्द्र के माध्यम से 15 लाख रूपये स्वीकृत हुए। वर्ष 2019 में इंक्युबेशन केंद्र आईआईटी मंडी ने ई-रिक्शा प्रोजेक्ट पर कार्य करने की स्वीकृति प्रदान की और 1.50 लाख रूपये की राशि भी उपलब्ध करवाई।

हिम स्टार्टअप  के तहत स्वीकृत हुए 50 लाख रूपये, जनवरी 2023 से शुरू किया उत्पादन

आईआईटी मंडी ने ई-रिक्शा प्रोजेक्ट का प्रमाणीकरण कर उन्हें हिम स्र्टाटअप स्कीम के तहत 50 लाख रूपये, भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की निधि ट्रिप्पल एस (एनआईडीएचआई सीड स्पोर्ट प्रोग्राम) स्कीम के तहत 20 लाख रूपये की आर्थिक सहायता राशि स्वीकृत हुई। अप्रैल, 2022 में ऊना के पंडोगा में ई-रिक्शा मैन्युफैक्चरिंग इकाई स्थापित की तथा जनवरी 2023 से ई-रिक्शा का उत्पादन शुरू कर दिया है। उन्होंने अब तक 15 ई-रिक्शा तैयार कर लगभग 35 लाख रूपये की राशि जुटा ली है।

क्या कहते हैं अधिकारी:

संयुक्त निदेशक उद्योग विभाग अंशुल धीमान का कहना है कि सीएम स्टार्टअप स्कीम के तहत विपन धीमान के ई-व्हीकल प्रोजेक्ट को स्वीकार करते हुए आईआईटी मंडी के माध्यम से शोध कार्य किया गया। पंडोगा औद्योगिक क्षेत्र में 2 हजार वर्ग मीटर का प्लाट आवंटित कर एक करोड रूपये का निवेश कर प्रोडक्शन इकाई स्थापित की है। जनवरी 2023 से ई-व्हीकल (ई-रिक्शा) का व्यावसायिक उत्पादन भी शुरू कर दिया है। उन्होंने प्रदेश के ऐसे युवाओं से आगे आने का आहवान किया है जो  इन्नोवेटिव आईडिया के तहत उद्यम स्थापित कर आगे बढना चाहते हैं, प्रदेश सरकार हैं उनकी पूरी मदद करेगी।








Tuesday, 20 June 2023

कांगड़ा घाटी रेलवे लाइन का अंतिम स्टेशन जोगिन्दर नगर

164 किलोमीटर लंबी कांगड़ा घाटी रेलवे लाइन (पठानकोट-जोगिन्दर नगर) का अंतिम रेलवे स्टेशन मंडी जिला का जोगिन्दर नगर कस्बा है। ब्रिटीश इंजीनियर कर्नल बी.सी. बैटी तथा उनकी टीम ने जोगिन्दर नगर स्थित शानन पॉवर हाउस निर्माण के लिए मशीनरी को यहां तक पहुंचाने की दृष्टि से इस रेलवे लाइन का निर्माण किया था। वर्ष 1925 में तत्कालीन पंजाब सरकार ने शानन पनविद्युत परियोजना निर्माण को देखते हुए पठानकोट से जोगिन्दर नगर तक 2 फीट 6 इंच नैरो गेज लाइन बनाने का प्रस्ताव रखा। 164 किलोमीटर लंबी यह रेलवे लाइन उत्तर पश्चिम रेलवे के लाहौर मंडल का हिस्सा थी। इस रेलवे लाइन पर एक अप्रैल, 1929 से यात्री यातायात आरंभ किया गया। इस रेलवे लाइन के निर्माण की वास्तविक लागत 296 लाख रूपये थी।

कागड़ा घाटी रेलवे लाइन में कुल 16 क्रॉसिंग स्टेशन तथा 18 यात्री हॉल्ट हैं। इस लाइन पर समुद्री सतह से 1290 मीटर की ऊंचाई पर ऐहजू सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन है। इस रेल लाइन में कुल 1009 पुल तथा 2 सुरंगे हैं। कांगड़ा घाटी के समीप रियोंड नाले पर बना स्टील मेहराब पुल एक गहरे नाले पर बना है, जोकि नदी के स्तर से 200 फीट ऊपर तथा 260 फीट लंबा है।
अप्रैल, 1942 में नगरोटा से जोगिन्दर नगर सेक्शन पर बंद कर इसकी रेलों को ब्रिटीश सरकार द्वारा यूरोप में युद्ध के लिए भेजा गया था। 12 वर्ष के बाद 15 अप्रैल, 1954 को तत्कालीन रेल मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा इसे पुन: आरंभ किया गया। बाद में पोंग बांध के निर्माण के कारण वर्तमान ट्रैक के पोंग बांध के पानी में डूबने का खतरा उत्पन्न हो गया था। ज्वांवाला शहर तथा गुलेर के बीच के भाग को 1 अप्रैल, 1973 को बंद कर दिया गया था तथा लाइन उखाड दी गई थी। 24.87 किलोमीटर लंबी पुन: निर्मित लाइन माल यातायात के लिए 15 अक्तूबर, 1976 को तथा यात्री यातायात के लिए 28 दिसम्बर, 1976 को खोली गई।
पूर्व में पठानकोट-जोगिन्दर नगर रेलवे लाइन में विभिन्न सेक्शनों से जैड-ई, जैड-बी, जैड-एफ तथा जैड-एफ एक श्रेणी के रेल इंजन प्रयोग में लाए जाते थे। अब इस रेल लाइन में केवल जैड-डीएम 3 डीजल रेल इंजनों की आवाजें गुंजती है।
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Tuesday, 13 June 2023

नागचला में सच्चे मन से मांगी मन्नत होती है पूरी, 20 भाद्रपद को आयोजित होता है मेला

मंदिर परिसर में मिलता है अलौकिक शांति का अनुभव, आसपास का वातावरण है बेहद खूबसूरत 

मंडी जिला के जोगिंदर नगर उपमंडल के तहत गांव हराबाग में नाग देवता का प्रसिद्ध मंदिर नागचला स्थित है। कहते हैं कि यहां पर सच्चे मन से मांगी गई मन्नत को नाग देवता पूरी करते हैं। इस स्थान पर प्रति वर्ष 20 भाद्रपद को एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।

नागचला में प्राकृतिक तौर पर दिव्य पानी बहता है। कहते हैं कि यह पानी छोटा भंगाल घाटी की प्रसिद्ध डहनसर झील से चलकर यहां निकला है। इस पवित्र पानी से स्नान आदि करने के बाद सच्चे मन से मांगी गई मन्नत को नागचला देवता पूरी करते हैं। श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर मंदिर में स्नान आदि कर देवता के दर्शन करते हैं। साथ ही श्रद्धालु नागचला के पानी को बोतल में भरकर घर भी ले जाते हैं। प्रतिवर्ष 20 भाद्रपद को लगने वाले विशेष मेले में श्रद्धालुओं की संख्या देखने योग्य होती है। इस दिन जहां श्रद्धालु मंदिर में नाग देवता के दर्शन करते हैं तो वहीं नागचला के इस दिव्य पानी से स्नान भी करते हैं। दिव्य स्नान के लिए मंदिर परिसर में पुरूषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग स्नानागार की व्यवस्था रहती है।
मन्नत पूरी होने पर वायदा न निभाने पर जब नाग देवता हुए थे नाराज, परिवार को हुआ नुकसान 

मंदिर के पुजारी अर्जुन सिंह बताते हैं कि एक जनश्रुति के अनुसार काफी वर्ष पूर्व एक व्यक्ति ने नागचला से कोई मन्नत मांगी थी तथा मन्नत पूरी होने पर कान की सोने की बाली (मुरकली) चढ़ाने का वायदा किया था। कहते हैं कि मन्नत अनुसार उस व्यक्ति का परिवार काफी खुशहाल व सम्पन्न हो गया। लेकिन बीतते समय के साथ उस व्यक्ति ने नागचला से मांगी गई मन्नत अनुसार अपने वायदे को पूरा करना उचित नहीं समझा। ऐसे में नाग देवता उस व्यक्ति से रुष्ट हो गए तथा उसके साथ अनिष्ट होते चला गया।

इसी तरह एक महिला की कहानी भी बताई जाती है। उस महिला ने भी मांगी गई मन्नत पूरी होने पर नागचला देवता को काजल लगाने का वायदा किया था। कहते हैं कि वह महिला वायदे अनुसार नागदेवता के असली रूप को देखकर घबरा गई तथा नाग देवता को काजल लगाने में असफल रहीं। ऐसे में नाग देवता महिला से नाराज हुए तथा उसके साथ भी अनिष्ट हुआ।

अर्जुन सिंह बताते हैं कि आज भी लोग सच्चे मन से नागचला देवता से मन्नतें मांगते हैं तथा नागचला देवता उन्हे पूरा भी करते हैं। नागचला देवता के प्रति श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है तथा प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु नागचला के दर्शनार्थ मंदिर परिसर में पहुंचते हैं।

मंदिर परिसर में होता है अलौकिक शांति का अनुभव, आसपास का वातावरण है बेहद खूबसूरत 

नागचला मंदिर परिसर में पहुंचने पर अलौकिक शांति का अनुभव होता है। मंदिर परिसर के आसपास का दृश्य प्राकृतिक तौर पर बेहद खूबसूरत है। मंदिर परिसर के आसपास घने पेड़ों की मौजूदगी यहां की खूबसूरती ज्यादा आकर्षक एवं आंखों को सुकून प्रदान करने वाला दृश्य बनाती है।  

कैसे पहुंचे मंदिर: 

जोगिन्दर नगर-मंडी राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर जोगिन्दर नगर कस्बे से मंडी की ओर महज 3 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत हारगुणैन के गांव हराबाग में यह पवित्र स्थान मौजूद है। मुख्य सडक़ से मंदिर की दूरी लगभग आधा किलोमीटर है तथा मंदिर परिसर पक्की सडक़ से जुड़ा हुआ है। श्रद्धालु वाहन के माध्यम से भी आसानी से मंदिर परिसर में पहुंचकर नागचला देवता के दर्शन कर सकते हैं।






Tuesday, 6 June 2023

जोगिन्दर नगर के लांगणा गांव में स्थापित है पंचमुखी महादेव की भव्य मूर्ति

कहते हैं कई वर्ष पूर्व ब्यास नदी में बहकर आई है यह मूर्ति, छोटे से मंदिर में आज भी है विराजमान
मंडी जिला के जोगिंदर नगर उपमंडल के तहत गांव लांगणा में भगवान शिव की पंचमुखी मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति के पंचमुख होने पर इसे पंचमुखी महादेव के नाम से भी जाना जाता है। कई वर्षों तक यह मूर्ति खुले आसमान के नीचे ही रही। बाद में एक छोटे से मंदिर का निर्माण कर इसे मंदिर के भीतर स्थापित किया गया है। आज भी यह मूर्ति इसी छोटे से मंदिर में विराजमान है तथा श्रद्धालुओं की इसके प्रति गहरी आस्था है। हर वर्ष श्रावण मास में बेलपत्र से महादेव की पूजा की जाती है तथा प्रतिवर्ष 5 अगस्त से 15 अगस्त तक शिव महापुराण कथा का भी आयोजन किया जाता है।
कहते हैं कि यह विशाल मूर्ति ब्यास नदी में बहकर आई है। इस मूर्ति का इतिहास सैंकड़ों वर्ष पूर्व का माना जाता है। क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि भगवान शिव की यह पंचमुखी मूर्ति का इतिहास ब्रिटिश शासन के समय से ही जुड़ा रहा है। बताते हैं कि इस मूर्ति को ब्यास नदी के दूसरे छोर की ओर ले जाने के लिए कई लोगों ने प्रयास किये परन्तु उन्हे हमेशा असफलता ही मिली।
ब्यास नदी में बहकर आई पंचमुखी मूर्ति को पाबो गांव का पंडित लेकर पहुंचा था कठियार
जनश्रुति अनुसार ग्राम पंचायत धार के पाबो गांव का एक पंडित ब्यास नदी पार कर अपने घर पाबो की ओर जा रहा था। जैसे ही वह पंडित नाव से उतरा तो उसे पता चला है कि भगवान शिव की मूर्ति नदी में बहकर यहां आई है। इस मूर्ति को ले जाने के लिए नदी के दूसरे छोर के लोग पहुंचे हुए थे, लेकिन इसे ले जाने में असफल हो रहे थे। इस बीच पंडित ने शीशम पेड़ की जड़ में भगवान शिव की इस मूर्ति को देखा। उन्होने मूर्ति को प्रणाम कर स्पर्श किया तो मूर्ति डगमगाने लगी। पंडित ने मूर्ति को बड़ी आसानी से सिर पर उठा लिया तथा गांव धार पाबो की ओर चल पड़े। चलते-चलते जब पंडित वर्तमान मंदिर के समीप एक स्थान पर पहुंचे, जहां कभी मंडी राजा का कठियार हुआ करता था। इस स्थान पर पीपल के नीचे अटियाला बना हुआ था। पंडित मूर्ति को रखकर आराम करने लगा, बाद में जब दोबारा मूर्ति को उठाने का प्रयास किया तो मूर्ति जरा भी न हिल पाई। पंडित भगवान शिव को प्रणाम कर अपने गांव की ओर चल निकले। कहते हैं कि उस समय से लेकर वर्ष 1970 तक यह मूर्ति इसी तरह कठियार वर्तमान में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला लांगणा के समीप खुले आसमान के नीचे ही रही।
मूर्ति ने पुन्नू नामक व्यक्ति को दिया स्वपन, शूल में मंदिर बनाने का किया आग्रह
स्थानीय लोगों के अनुसार लांगणा स्कूल के समीप ही एक निजी मकान में पशु औषधालय हुआ करता था। इस औषधालय में पुन्नू राम नामक कर्मचारी कार्यरत था। एक रात को पुन्नू राम को सपने में भगवान शिव की मूर्ति ने बताया कि आप नि:सन्तान हो, समीप के तालाब (शूल) के पास एक छोटा सा मंदिर बनवा कर मेरी स्थापना करवाना। संतान के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। सुबह पुन्नू राम ने लांगणा स्कूल पहुंचकर सारी बात अध्यापकों के साथ साझा की। स्वपन अनुसार बताई जगह पर मंदिर निर्माण को सभी ने सहमति जताई। यथायोग्य चन्दा इकट्ठा कर एक छोटे से मंदिर का निर्माण कर बडी धूम-धाम से इस विशाल पंचमुखी मूर्ति की स्थापना की गई। कहते हैं कि मंदिर में मूर्ति स्थापना के बाद पुन्नू राम के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। आज भी यह मूर्ति इसी छोटे से मंदिर में विराजमान है। इस मूर्ति के पांच मुख होने के चलते इसे पंचमुखी महादेव के नाम से जाना जाने लगा। मंदिर में समय-समय पर कई साधु महात्माओं ने भी निवास किया। यहां पर बाबा चरण गिरि की समाधि भी स्थापित की गई है। वर्तमान में बाबा बसंत गिरि यहां रहते हैं।
मंदिर विकास को गठित की है पंचमुखी महादेव मंदिर समिति, किये कई विकास कार्य
मन्दिर कार्य चलाने के लिए पंचमुखी महादेव मंदिर समिति गठित की गई है। यह समिति पंजीकृत हैं। मंदिर समिति के सचिव कालीदास सकलानी ने बताया कि मंदिर समिति ने श्रद्धालुओं के सहयोग से सराय भवन, रसोई घर, लंगर हॉल, सत्संग भवन तथा निवास करने वाले महात्मा के लिए कुटिया का निर्माण करवाया है। पंचमुखी महादेव के भव्य मंदिर निर्माण के लिए समिति द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं।
कैसे पहुंचे मंदिर:
ब्यास नदी तथा सिकन्दर धार के बीच बसा यह पंचमुखी महादेव का मन्दिर मण्डी जिला के उपमंडल जोगिन्दर नगर की ग्राम पंचायत लांगणा के शूल में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला के समीप स्थित है। यहां पर पहुंचने के लिए जोगिन्दर नगर से सरकाघाट की ओर जाने वाली मुख्य सडक़ पर नेरी गांव से लडभड़ोल-बैजनाथ सडक़ पर लगभग अढ़ाई किलोमीटर चलकर पहुंचा जा सकता है। नेरी गांव से आगे चलकर कोटला-प्रैण लिंक रोड के माध्यम से मन्दिर के प्रांगण तक गाड़ी से भी पहुंचा जा सकता है।





Wednesday, 17 May 2023

मौसम की देवी के रूप में पूजी जाती है रोपड़ी गांव स्थित मां सुरगणी

 ऊंची चोटी पर स्थित है मां सुरगणी का भव्य मंदिर, आसपास प्रकृति का दिखता है विहंगम नजारा

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत रोपड़ी कलैहडू के गांव रोपड़ी में मां सुरगणी का भव्य मंदिर मौजूद है। यह मंदिर ऐहजू-बसाही सडक़ के साथ रोपड़ी गांव में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर मुख्य सडक़ से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर संपर्क सडक़ से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर से जोगिन्दर नगर, चौंतड़ा, बीड़-बिलिंग इत्यादि क्षेत्रों के साथ-साथ हिमाच्छादित धौलाधार पर्वतमाला का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है। साथ ही मंदिर के दूसरी ओर लडभड़ोल क्षेत्र तथा भभौरी धार  का भी खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। मंदिर प्रांगण में पहुंचते ही जहां मन को एक अलौकिक शांति का अनुभव होता है तो वहीं यहां की मंद-मंद बहती ठंडी हवा का स्पर्श, शरीर में एक नई तरह की ताजगी, उमंग एवं आध्यात्म का प्रवाह महसूस होता है।
कहा जाता है कि मां सुरगणी को पुराने समय से ही मौसम की देवी के रूप में पूजा जाता रहा है। कहते हैं कि जब कभी भी अत्यधिक वर्षा या अनावृष्टि होती थी तो स्थानीय लोग मनौती के रूप में मां सुरगणी को बकरी की बली देते थे। ऐसा करने से लोगों की मन्नत पूरी हो जाती थी। परन्तु वर्तमान समय में बलि प्रथा को बंद कर कड़ाह-प्रसाद व पकौनियों की प्रथा को शुरू किया गया है तथा अब लोग मनौती के लिए मां को कड़ाह-प्रसाद व पकौनियां चढ़ाते हैं।
कहते हैं कि पुरातन समय में मां सुरगणी पिंडी रूप में दो पत्थरों के बीच एक शिला में विराजमान थी। कहते हैं कि वर्ष 1985 को स्थानीय निवासी गुरी सिंह को मां ने स्वपन के माध्यम से पिंडी स्थान पर मंदिर निर्माण करने को कहा। ऐसे में यहां पर एक छोटा सा मां का मंदिर निर्मित किया गया। वर्तमान में यहां पर मां का एक बड़ा मंदिर स्थापित किया गया है। साथ ही शिव व शनि मंदिरों का भी निर्माण किया है। स्थानीय एवं मां सुरगणी के प्रति गहरी आस्था रखने वाले लोगों के सहयोग से मंदिर परिसर को लगातार विकसित किया जा रहा है।
मंदिर परिसर विकास के लिए मंदिर कमेटी सुरगणी का गठन किया गया है तथा मेघ सिंह चौहान कमेटी के वर्तमान अध्यक्ष हैं। मंदिर कमेटी के समन्वयक रोशन लाल ठाकुर ने बताया कि मंदिर कमेटी ने दो मंजिला सत्संग भवन निर्माण करवाने का भी निर्णय लिया है। जिसके लिए मां के प्रति आस्था रखने वाले लोग मंदिर कमेटी को अपना सहयोग प्रदान कर सकते हैं।
मंदिर में चैत्र नवरात्र के दौरान अष्टमी व नवमी को भव्य मेले का आयोजन कर भंडारा इत्यादि भी आयोजित किया जाता है। साथ ही चैत्र नवरात्रि के दौरान सरस्वती पाठ भी करवाया जाता है।
कैसे पहुंचे मां सुरगणी के मंदिर:
मां सुरगणी के इस पवित्र स्थान तक पहुंचने के लिए कई सडक़ मार्ग उपलब्ध हैं। विश्व प्रसिद्ध पैराग्लाइडिंग साइट बीड़-बिलिंग से वाया ऐहजू यह स्थान लगभग 12 किलोमीटर, लडभड़ोल से वाया रोपड़ी भी लगभग 12 किलोमीटर, जोगिन्दर नगर से वाया टिकरू-मोरडुग-रोपड़ी भी लगभग 12 किलोमीटर, बसाहीधार से भी लगभग 12 किलोमीटर तथा मछयाल से वाया बल्ह भी लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सरकाघाट की ओर से आने वाले श्रद्वालु वाया बसाहीधार, पालमपुर बैजनाथ की ओर से आने वाले श्रद्धालु वाया ऐहजू, मंडी की ओर से आने वाले श्रद्धालु वाया जोगिन्दर नगर यहां पहुंच सकते हैं। मंदिर परिसर तक पक्की सडक़ बनी हुई है।






Tuesday, 9 May 2023

पांडवों ने वनवास काल के दौरान निर्मित किया था मां चतुर्भुजा का मंदिर

 संतान प्राप्ति को निसंतान महिलाएं करती हैं मौन जागरण, आंखों की रोशनी को लोग मांगते हैं मन्नत

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर सिकंदर धार की उंची चोटी पर मां चतुर्भुजा का पवित्र स्थान मौजूद है। इस मंदिर के प्रति लोगों की गहरी आस्था है तथा प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु मां के दर्शनार्थ इस पवित्र स्थान पर पहुंचते हैं। निसंतान दंपति मां के दरबार में हाजरी लगाकर नवरात्रों में संतान प्राप्ति को निसंतान स्त्रियां मौन जागरण करती हैं। साथ ही जिन भक्तों की आंखों की रोशनी चली जाती है वे मां से आंखों की रोशनी की मन्नत मांगते हुए मां को चांदी की आंखें चढ़ाते हैं। इस तरह मां चतुर्भुजा के प्रति श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है तथा मां भी अपने भक्तों को निराश नहीं करती है।


प्राकृतिक तौर पर भी यह स्थान बेहद खूबसूरत है। इस मंदिर की पहाड़ी के एक ओर जहां चील के घने पेड़ मौजूद हैं तो दूसरी तरफ घने बान, काफल इत्यादि के जंगल हैं। इस स्थान से चारों ओर दूर-दूर तक का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है। एक तरफ खूबसूरत बर्फ से ढक़ी धौलाधार पर्वत श्रृंखला का नजारा देखने को मिलता है तो दूसरी तरफ ब्यास नदी के उस पार धर्मपुर, संधोल इत्यादि क्षेत्रों का नजारा भी कम खूबसूरत नहीं होता है। यहां आकर मानसिक रूप से आलौकिक शांति का अनुभव होता है।

पांडवों ने वनवास के समय निर्मित किया था मां का मंदिर
कहते हैं कि जोगिन्दर नगर उपमंडल की सुरम्य सिकंदर धार की लगभग 6 हजार फीट ऊंची चोटी पर पांडवों ने वनवास काल के समय इस मंदिर का निर्माण किया था। पांडव वनवास के समय जब इस स्थान से गुजर रहे थे तो मां शेरांवाली ने उन्हे इस खूबसूरत चोटी पर दर्शन दिये थे। मां ने पांडवों से सर्व कल्याण के लिए इस स्थान पर मंदिर निर्माण करने को कहा तथा पांडवों ने पिंडी रूप में यहां माता की स्थापना की। कहते हैं उस समय पांडवों ने मंदिर के ऊपर मोटे-मोटे पत्थरों की छत बनाकर इस मंदिर का निर्माण किया था।

वर्ष 1905 के भूकंप के दौरान ध्वस्त हुआ मंदिर, राजा जोगिन्द्रसेन ने 1948 में करवाया निर्माण

वर्ष 1905 को कांगड़ा घाटी में आए प्रलयकारी भूकंप के दौरान यह मंदिर भी ध्वस्त हो गया था तथा मंदिर का केवल गर्भ गृह ही बचा था। सन 1948 को मंडी रियासत के राजा जोगिन्द्रसेन ने पुन: इस मंदिर का निर्माण करवाया था। वर्तमान में इस मंदिर में मां चतुर्भुजा की भव्य मूूर्ति विराजमान है। इसके अलावा मंदिर परिसर में हनुमान जी बड़ी मूर्ति, शिव पार्वती मंदिर, नवग्रह मंदिर, राधा कृष्ण के छोटे-छोटे मंदिर भी स्थापित हैं।

नाग पंचमी को देवताओं-डायनों के युद्ध का बताते हैं परिणाम, लागत पर लगे लोगों की सूची होती है जारी

मां चतुर्भुजा के दरबार में प्रति वर्ष तीन मेलों का आयोजन किया जाता है। जिनमें पहला मेला बैसाखी को लगता है, दूसरा नाग पंचमी को तथा तीसरा मेला लोहड़ी के अवसर आयोजित होता है। नाग पंचमी को आयोजित होने वाले मेले का अपना ही एक महत्व है। इस दिन मां चतुर्भुजा पुजारी के माध्यम से पूछ द्वारा पधर के घोघर धार में पुरातन समय से ही होने वाले देवताओं व डायनों के युद्ध का परिणाम बताती है। लोककथानुसार प्रति वर्ष मंडी जिला की घोघर धार में प्राचीन काल से देवताओं व डायनों के बीच लगभग एक सप्ताह तक डायना पार्क में यह युद्ध लड़ा जाता है। मां चतुर्भुजा पुजारी के माध्यम से इस युद्ध की हार व जीत का परिणाम सार्वजनिक करती है तथा युद्ध के दौरान उपमंडल के जो लोग, पशु, जमीन इत्यादि लागत पर लगाए होते हैं उनकी सूची भी जारी की जाती है।

मंदिर विकास को 1982 में गठित हुई मंदिर सुधार कमेटी, श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं का हुआ विकास
मंदिर विकास एवं श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं विकसित करने को लेकर वर्ष 1982 में क्षेत्रवासियों ने माता चतुर्भुजा सुधार कमेटी का गठन किया। इस कमेटी के माध्यम से मंदिर विकास के विभिन्न कार्यों को निरन्तर आगे बढ़ाया जा रहा है। वर्तमान में मंदिर परिसर में जहां श्रद्धालुओं के लिए जागरण इत्यादि के लिए एक बड़ा हॉल निर्मित किया गया है तो वहीं ठहरने की भी उचित व्यवस्था मौजूद है। लंगर के लिए एक बड़े लंगर हॉल का निर्माण किया गया है। साथ ही मंदिर ही ओर आने वाले रास्ते को बेहतर बनाया गया है तथा इस पर छत का निर्माण किया गया है। मंदिर सौदर्यीकरण को बढ़ावा देते हुए रास्ते में जगह-जगह बैठने के लिए बैंच, पेयजल की सुविधा तथा शौचालयों का भी निर्माण किया गया है।

कैसे पहुंचे मां चतुर्भुजा के दरबार:
मां चतुर्भुजा का यह पवित्र स्थान उपमंडल मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर दूर सडक़ मार्ग से जुड़ा हुआ है। जोगिन्दर नगर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु बस व रेल के माध्यम से पहुंच सकते हैं। जोगिन्दर नगर से पठानकोट, चंडीगढ़, दिल्ली, लुधियाणा, अमृतसर इत्यादि स्थानों के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है। साथ ही रेल के माध्यम से भी वाया पठानकोट, पालमपुर, बैजनाथ होते हुए यहां पहुंचा जा सकता है। सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल कांगड़ा है। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर परिसर में ही सराय इत्यादि की व्यवस्था है। साथ जोगिन्दर नगर व आसपास कई सरकारी विश्राम गृहों के साथ-साथ निजी होटल भी उपलब्ध हैं। इसके अलावा श्रद्धालु होम स्टे में भी रूक सकते हैं।




Monday, 1 May 2023

जयसिंहपुर के आलमपुर से पिंडी रूप में आए हैं गरोडू स्थित बाबा बालक रूपी

मंडी व कांगड़ा जनपद के लोगों की है कुलज, प्रतिवर्ष हजारों लोग पहुंचते हैं दर्शनार्थ

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर के गरोडू स्थित बाबा बालक रूपी कांगड़ा जिला के जयसिंहपुर क्षेत्र के आलमपुर के गांव जांगल के समीप से पिंडी रूप में यहां आए हैं। बाबा बालक रूपी गरोडू मंडी व कांगड़ा जनपद के लोगों की कुलज भी है तथा प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु बाबा जी के दर्शनार्थ यहां पहुंचते हैं। बाबा बालक रूपी के इस पवित्र दरबार में जहां लोग अपने बच्चों के मुंडन संस्कार के लिए पहुंचते हैं तो वहीं घर में हुए मुंडन संस्कार के बाद बच्चों के बाल भी चढ़ाते हैं। इस मंदिर का इतिहास मंडी रियासत काल से ही जुड़ा हुआ है।
स्थानीय जानकार बताते हैं कि काफी समय पूर्व इस क्षेत्र के कस गांव की एक महिला बाबा बालक रूपी की सेवा के लिए जयसिंहपुर क्षेत्र के आलमपुर के समीप जांगल गांव में स्थित मंदिर में जाया करती थी। महिला के वृद्ध होने के चलते उसने बाबा बालक रूपी से क्षमा मांगते हुए कहा कि बुढ़ापे के कारण अब वह सेवा करने के लिए यहां नहीं आ सकती है। कहते हैं कि स्वप्र में बाबा बालक रूपी ने महिला से कहा कि वह एक पत्थर पिंडी से स्पर्श कर ले जाए तथा इसकी पूजा करे। बाबा ने महिला से कहा कि वह इस स्पर्श किये हुए पत्थर को रास्ते में कहीं भी धरती पर न रखे अन्यथा उसी स्थान पर स्थापित हो जाएगा। स्वप्न अनुसार उस महिला ने एक पत्थर को बाबा बालक रूपी की पिंडी से स्पर्श कर उसे लेकर अपने घर कस की ओर चल पड़ी। कहते हैं कि जब वह गरोडू स्थित वर्तमान बाबा बालकरूपी मंदिर वाले स्थान पर पहुंची तो वह शौचालय के लिए रूकी। इस बीच उस महिला ने स्पर्श किये हुए पत्थर को एक चट्टान पर रख दिया। उस समय इस स्थान पर घना जंगल हुआ करता था। जैसे ही वह महिला शौचालय करने के बाद उस पत्थर को उठाने लगी तो वह इसे उठाने में असमर्थ रही तथा इसी स्थान पर स्थापित हो गया। वह चट्टान आज भी मंदिर परिसर में मौजूद है।

कहते हैं कि इसी बीच बाबा बालक रूपी ने तत्कालीन मंडी रियासत के राजा को स्वप्न में दर्शन देते हुए कहा कि राजन मैं आपकी रियासत में पहुंच चुका हूं तथा मेरा वहां एक मंदिर बनवाओ। तब राजा ने यहां पर एक छोटा सा मंदिर बनवाया तथा मंडी रियासत के साथ-साथ कांगड़ा जनपद के लोगों के कुल देवता (कुलज) के रूप में प्रसिद्ध हुए। कहते हैं कि रियासत काल में ही लोगों की सुविधा के लिए तत्कालीन राजा ने गरोडू स्थित बाबा के मंदिर से एक पत्थर स्पर्श कर उसे मंडी में भूतनाथ गली में भी स्थापित कर वहां मंदिर का निर्माण करवाया है। लोग कुलज के रूप में इन्हे वहां भी पूजते हैं तथा कई लोग अभी भी गरोडू में आना पसंद करते हैं।

स्थापना के समय से ही सरकारी नियंत्रण में रहा है यह मंदिर
इस मंदिर की अहम बात यह है कि अपनी स्थापना के समय से ही सरकारी नियंत्रण में रहा है। रियासत काल में यह मंदिर राजा के अधीन रहा जबकि स्वतंत्रता के बाद सीधे सरकारी नियंत्रण में आ गया। वर्तमान में एसडीएम जोगिन्दर नगर इस मंदिर कमेटी के अध्यक्ष हैं।
आषाढ़ महीने में होते हैं शनिवार के मेले, शिवरात्रि पर शिव महापुराण कथा होती है आयोजित
बाबा बालक रूपी मंदिर में आषाढ़ व मार्गशीर्ष माह में शनिवार मेलों का आयोजन होता है। शिवरात्रि पर्व के अवसर पर महाशिवपुराण कथा भी आयोजित की जाती है। महाशिवपुराण कथा का आयोजन पिछले लगभग 25 वर्षों से निरन्तरता में किया जा रहा है। इसके अलावा शिवरात्रि पर्व के मौके पर झांकी भी निकाली जाती है।
क्या कहते हैं अधिकारी:
मंदिर समिति के अध्यक्ष एवं एसडीएम जोगिन्दर नगर कृष्ण कुमार शर्मा का कहना है कि मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए कई तरह की सुविधाएं जुटाई गई हैं। मंदिर में लंगर या भंडारा लगाने के लिए एक बड़े हॉल का निर्माण किया गया है। साथ ही श्रद्धालुओं के ठहरने को चार कमरे भी निर्मित किये गए हैं। जिनमें शौचालय एवं किचन की सुविधा उपलब्ध है। मुंडन संस्कार के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा को लेकर जहां तीन नए शौचालय निर्मित किये हैं तो वहीं गिजर के साथ बाथरूम की सुविधा भी उपलब्ध करवाई गई है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पार्किंग स्थल को भी बेहतर बनाया गया है तथा मेला आयोजन के लिए मेला ग्राउंड का भी निर्माण किया गया है। इसके अतिरिक्त मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण भी किया गया है।

कैसे पहुंचे बाबा बालकरूपी मंदिर:
बाबा बालक रूपी मंदिर जोगिन्दर नगर बस स्टैंड से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जोगिन्दर नगर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु बस व रेल के माध्यम से आ सकते हैं। जोगिन्दर नगर सीधे रेल नेटवर्क के साथ जुड़ा हुआ है तथा वाया पठानकोट, पालमपुर  बैजनाथ होकर यहां पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा पठानकोट, कांगड़ा, धर्मशाला, बैजनाथ, मंडी इत्यादि स्थानों से भी सीधे सडक़ मार्ग से पहुंचा जा सकते हैं। सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल कांगड़ा है।