संतान प्राप्ति को निसंतान महिलाएं करती हैं मौन जागरण, आंखों की रोशनी को लोग मांगते हैं मन्नत
मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर सिकंदर धार की उंची चोटी पर मां चतुर्भुजा का पवित्र स्थान मौजूद है। इस मंदिर के प्रति लोगों की गहरी आस्था है तथा प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु मां के दर्शनार्थ इस पवित्र स्थान पर पहुंचते हैं। निसंतान दंपति मां के दरबार में हाजरी लगाकर नवरात्रों में संतान प्राप्ति को निसंतान स्त्रियां मौन जागरण करती हैं। साथ ही जिन भक्तों की आंखों की रोशनी चली जाती है वे मां से आंखों की रोशनी की मन्नत मांगते हुए मां को चांदी की आंखें चढ़ाते हैं। इस तरह मां चतुर्भुजा के प्रति श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है तथा मां भी अपने भक्तों को निराश नहीं करती है।
प्राकृतिक तौर पर भी यह स्थान बेहद खूबसूरत है। इस मंदिर की पहाड़ी के एक ओर जहां चील के घने पेड़ मौजूद हैं तो दूसरी तरफ घने बान, काफल इत्यादि के जंगल हैं। इस स्थान से चारों ओर दूर-दूर तक का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है। एक तरफ खूबसूरत बर्फ से ढक़ी धौलाधार पर्वत श्रृंखला का नजारा देखने को मिलता है तो दूसरी तरफ ब्यास नदी के उस पार धर्मपुर, संधोल इत्यादि क्षेत्रों का नजारा भी कम खूबसूरत नहीं होता है। यहां आकर मानसिक रूप से आलौकिक शांति का अनुभव होता है।
पांडवों ने वनवास के समय निर्मित किया था मां का मंदिर
कहते हैं कि जोगिन्दर नगर उपमंडल की सुरम्य सिकंदर धार की लगभग 6 हजार फीट ऊंची चोटी पर पांडवों ने वनवास काल के समय इस मंदिर का निर्माण किया था। पांडव वनवास के समय जब इस स्थान से गुजर रहे थे तो मां शेरांवाली ने उन्हे इस खूबसूरत चोटी पर दर्शन दिये थे। मां ने पांडवों से सर्व कल्याण के लिए इस स्थान पर मंदिर निर्माण करने को कहा तथा पांडवों ने पिंडी रूप में यहां माता की स्थापना की। कहते हैं उस समय पांडवों ने मंदिर के ऊपर मोटे-मोटे पत्थरों की छत बनाकर इस मंदिर का निर्माण किया था।
वर्ष 1905 के भूकंप के दौरान ध्वस्त हुआ मंदिर, राजा जोगिन्द्रसेन ने 1948 में करवाया निर्माण
वर्ष 1905 को कांगड़ा घाटी में आए प्रलयकारी भूकंप के दौरान यह मंदिर भी ध्वस्त हो गया था तथा मंदिर का केवल गर्भ गृह ही बचा था। सन 1948 को मंडी रियासत के राजा जोगिन्द्रसेन ने पुन: इस मंदिर का निर्माण करवाया था। वर्तमान में इस मंदिर में मां चतुर्भुजा की भव्य मूूर्ति विराजमान है। इसके अलावा मंदिर परिसर में हनुमान जी बड़ी मूर्ति, शिव पार्वती मंदिर, नवग्रह मंदिर, राधा कृष्ण के छोटे-छोटे मंदिर भी स्थापित हैं।
नाग पंचमी को देवताओं-डायनों के युद्ध का बताते हैं परिणाम, लागत पर लगे लोगों की सूची होती है जारी
मां चतुर्भुजा के दरबार में प्रति वर्ष तीन मेलों का आयोजन किया जाता है। जिनमें पहला मेला बैसाखी को लगता है, दूसरा नाग पंचमी को तथा तीसरा मेला लोहड़ी के अवसर आयोजित होता है। नाग पंचमी को आयोजित होने वाले मेले का अपना ही एक महत्व है। इस दिन मां चतुर्भुजा पुजारी के माध्यम से पूछ द्वारा पधर के घोघर धार में पुरातन समय से ही होने वाले देवताओं व डायनों के युद्ध का परिणाम बताती है। लोककथानुसार प्रति वर्ष मंडी जिला की घोघर धार में प्राचीन काल से देवताओं व डायनों के बीच लगभग एक सप्ताह तक डायना पार्क में यह युद्ध लड़ा जाता है। मां चतुर्भुजा पुजारी के माध्यम से इस युद्ध की हार व जीत का परिणाम सार्वजनिक करती है तथा युद्ध के दौरान उपमंडल के जो लोग, पशु, जमीन इत्यादि लागत पर लगाए होते हैं उनकी सूची भी जारी की जाती है।
मंदिर विकास को 1982 में गठित हुई मंदिर सुधार कमेटी, श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं का हुआ विकास
मंदिर विकास एवं श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं विकसित करने को लेकर वर्ष 1982 में क्षेत्रवासियों ने माता चतुर्भुजा सुधार कमेटी का गठन किया। इस कमेटी के माध्यम से मंदिर विकास के विभिन्न कार्यों को निरन्तर आगे बढ़ाया जा रहा है। वर्तमान में मंदिर परिसर में जहां श्रद्धालुओं के लिए जागरण इत्यादि के लिए एक बड़ा हॉल निर्मित किया गया है तो वहीं ठहरने की भी उचित व्यवस्था मौजूद है। लंगर के लिए एक बड़े लंगर हॉल का निर्माण किया गया है। साथ ही मंदिर ही ओर आने वाले रास्ते को बेहतर बनाया गया है तथा इस पर छत का निर्माण किया गया है। मंदिर सौदर्यीकरण को बढ़ावा देते हुए रास्ते में जगह-जगह बैठने के लिए बैंच, पेयजल की सुविधा तथा शौचालयों का भी निर्माण किया गया है।
कैसे पहुंचे मां चतुर्भुजा के दरबार:
मां चतुर्भुजा का यह पवित्र स्थान उपमंडल मुख्यालय से लगभग 22 किलोमीटर दूर सडक़ मार्ग से जुड़ा हुआ है। जोगिन्दर नगर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु बस व रेल के माध्यम से पहुंच सकते हैं। जोगिन्दर नगर से पठानकोट, चंडीगढ़, दिल्ली, लुधियाणा, अमृतसर इत्यादि स्थानों के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है। साथ ही रेल के माध्यम से भी वाया पठानकोट, पालमपुर, बैजनाथ होते हुए यहां पहुंचा जा सकता है। सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल कांगड़ा है। श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए मंदिर परिसर में ही सराय इत्यादि की व्यवस्था है। साथ जोगिन्दर नगर व आसपास कई सरकारी विश्राम गृहों के साथ-साथ निजी होटल भी उपलब्ध हैं। इसके अलावा श्रद्धालु होम स्टे में भी रूक सकते हैं।
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