Himdhaara Search This Blog

Showing posts with label प्रगतिशील किसान. Show all posts
Showing posts with label प्रगतिशील किसान. Show all posts

Sunday, 31 August 2025

जिला बिलासपुर के बरठीं के टिहरी क्लस्टर में लहलहा रही है अनार की फसल

शिवा परियोजना ने बदली 44 किसानों की तकदीर, 60 मीट्रिक टन अनार उत्पादन का लक्ष्य 

प्रदेश सरकार एचपी शिवा परियोजना के माध्यम से चालू वितवर्ष में व्यय कर रही है 100 करोड़

हिमाचल प्रदेश में बागवानी न केवल किसानों व बागवानों के लिए आजीविका का स्त्रोत है बल्कि यह ग्रामीण विकास, रोजगार सृजन और आर्थिक स्थिरता का भी प्रमुख स्तंभ है। प्रदेश में ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू सरकार ने बागवानी को बढ़ावा देते हुए वितीय वर्ष 2025-26 के दौरान प्रदेश में एचपी शिवा परियोजना के माध्यम से 100 करोड़ रूपये व्यय करने का प्रावधान किया है। सरकार इस महत्वपूर्ण कदम से न केवल प्रदेश के निचले क्षेत्रों में शिवा परियोजना के माध्यम से बागवानी को बल मिल रहा है बल्कि प्रदेश सरकार के यह प्रयास धरातल में फलीभूत भी हो रहे हैं।

हिमाचल सरकार के निरंतर प्रयासों का ही नतीजा है कि आजकल जिला बिलासपुर के बरठीं के अंतर्गत टिहरी कलस्टर में अनार की फसल लहलहा रही है। एचपी शिवा परियोजना के तहत लगभग 100 बीघा में स्थापित इस बगीचे में अनार की फसल पक कर तैयार हो चुकी है तथा लाभार्थी किसान अब इसे बाजार भेजने की तैयारी में जुट गए हैं। वर्ष 2021 में फ्रंट लाइन डेमोंस्ट्रेशन (एफएलडी) के तौर पर टीहरी-एक व टीहरी-दो में लगभग 2 हैक्टेयर क्षेत्र में अनार के पौधों का रोपण किया गया, जिसे वर्ष 2022 में बढ़ाकर 8 हैक्टेयर (लगभग 100 बीघा) भूमि में 44 किसानों को जोड़ते हुए कलस्टर के तौर पर विकसित किया गया है। इस कलस्टर में भगवा प्रजाति के लगभग 8900 अनार के पौधे रोपित किये हैं तथा इस वर्ष 60 मिट्रिक टन अनार उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। कलस्टर में जुडे़ किसानों की विभिन्न गतिविधियों को संचालित करने के लिए दि बरठीं कन्वर्जिंग हॉर्टिकल्चर प्रोडक्शन मार्केटिंग एसोसिएशन (सीएचपीएमए) सहकारी समिति लिमिटेड का भी गठन किया गया है।

जब इस संबंध में लाभार्थी किसान एवं कलस्टर के अंतर्गत गठित दि बरठीं सीएचपीएमए सहकारी समिति लिमिटेड के प्रधान प्रेम लाल नड्डा से बातचीत की तो बताया कि वर्ष 2021 में बतौर एफएलडी-एक व दो में बागवानी विभाग के माध्यम से अनार के पौधे रोपित किये गए। वर्ष 2022 में अन्य किसानों को जोड़ते हुए लगभग 100 बीघा क्षेत्र में इसे कलस्टर के तौर पर विकसित किया गया है। वर्तमान में लगभग 44 किसान जुड़ चुके हैं, और कुछ किसानों ने गत वर्ष अनार बेचकर लगभग 1 से 1.5 लाख रुपये तक की आमदनी अर्जित कर ली है। इस वर्ष कुछ किसान लगभग 3 से 4 लाख रुपये तक की आमदनी अर्जित कर सकते हैं।
प्रेम लाल नड्डा ने बताया कि शिवा परियोजना के अंतर्गत स्थापित इस अनार क्लस्टर में बागवानी एवं जलशक्ति विभाग के माध्यम से विभिन्न विकास कार्य किए गए हैं, जिनमें भूमि का विकास, बेड व पिट तैयार करना, सोलर बाड़बंदी, ड्रिप सिंचाई सुविधा तथा उठाऊ सिंचाई परियोजना के माध्यम से जल उपलब्धता सुनिश्चित करना शामिल है। इसके अतिरिक्त जलशक्ति विभाग द्वारा सिंचाई सुविधा हेतु लगभग 2 लाख लीटर क्षमता वाला पानी का टैंक भी निर्मित किया गया है।
इसी बीच लाभार्थी किसान सोम देव शर्मा का कहना है कि गत वर्ष लगभग 1 से डेढ लाख रूपये अनार से आमदनी हुई है। इस वर्ष फसल ज्यादा अच्छी है, लगभग 3 से 4 लाख रूपये आमदनी की उम्मीद है। क्लस्टर में उनके लगभग 125 अनार के पौधे हैं जिनसे औसतन प्रति पौधा 25 से 30 किलोग्राम अनार उत्पादन की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि अनार की फसल के साथ-साथ गेंदे का फूल भी लगाया, जिससे भी लगभग 25 हजार रूपये की अतिरिक्त आमदनी हुई है।
लाभार्थी किसानों का कहना है कि भगवा प्रजाति का यह अनार लगभग बिना बीज का होता है, जिसे बच्चे व बुजुर्ग भी आसानी से खा सकते हैं। इसके छिलके पतले होते हैं और इसमें रस की मात्रा अधिक होती है। यह अनार स्वाद में भी अत्यंत उत्तम है। किसानों को उम्मीद है कि इस बार उन्हें अच्छे दाम मिलेंगे और आमदनी में और वृद्धि होगी। बागवानी विभाग ने किसानों को तकनीकी मार्गदर्शन देने के लिए फैसिलिटेटर, क्लस्टर इंचार्ज तथा फील्ड ऑपरेटर भी तैनात किए हुए हैं।
उन्होंने युवाओं से भी बागवानी के साथ जुड़ने का आहवान किया है ताकि घर के समीप ही न केवल रोजगार के अवसर सृजित किये जा सकते हैं बल्कि वह स्वावलंबी बनकर दूसरों के लिए रोजगार सृजन का कार्य भी कर सकते हैं।
क्या कहते हैं अधिकारीः
उपनिदेशक बागवानी डॉ. जगदीश चंद वर्मा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश शिवा परियोजना के माध्यम से जिला बिलासपुर में कुल 37 क्लस्टर स्थापित किए हैं। इन क्लस्टरों के अंतर्गत नींबू प्रजाति, अमरूद और अनार की खेती को बढ़ावा दिया गया है तथा लगभग 134 हेक्टेयर भूमि को कवर किया गया है। उन्होंने कहा कि टिहरी क्लस्टर जिला का एकमात्र अनार का क्लस्टर है, और इस वर्ष लगभग 60 मीट्रिक टन अनार उत्पादन का लक्ष्य है। बागवानी विभाग किसानों को मार्केटिंग की सुविधा भी उपलब्ध करवा रहा है ताकि फसल के बेहतर दाम मिल सकें।
उपायुक्त बिलासपुर राहुल कुमार ने कहा कि सरकार ने किसानों व बागवानों के उत्थान के लिए अनेक योजनाएं आरंभ की हैं ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और अधिक सशक्त हो सके। शिवा परियोजना के माध्यम से जिला के किसान आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं और संबंधित विभागों के माध्यम से अधिक से अधिक किसानों को लाभान्वित करने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। उन्होंने लोगों से सरकार की योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ उठाने का आह्वान भी किया। DOP 01/09/2025















Friday, 12 July 2024

डेयरी फॉर्म चलाकर आर्थिकी को सुदृढ़ बना रहे हैं देहलां के हरभजन सिंह

 20 गाय व 6 भैंस पालकर प्रतिदिन बेच रहे एक से डेढ क्विंटल दूध, हो रही है अच्छी आमदन

ऊना जिला के देहलां गांव के प्रगतिशील किसान 50 वर्षीय हरभजन सिंह डेयरी फॉर्म चलाकर परिवार की आर्थिकी को सुदृढ़ बना रहे हैं। निजी क्षेत्र में काम करने वाले हरभजन सिंह आज 20 गाय व 6 भैंस पालकर जहां प्रतिदिन एक से डेढ़ क्विंटल दूध का उत्पादन कर रहे हैं तो वहीं दूध बेचकर अच्छी खासी आमदन भी प्राप्त कर रहे है। हरभजन सिंह के इस कार्य में उनका 19 वर्षीय बेटा अमनवीर सिंह भी हाथ बंटा रहा है। साथ ही डेयरी फार्म में सहयोग के लिए एक स्थानीय ग्रामीण को भी रोजगार मुहैया करवाया है।
जब इस संबंध में खुश मिजाज व्यक्तित्व के धनी हरभजन सिंह से बातचीत की तो उनका कहना है बचपन से ही पिता जी के साथ वे पशुपालन से जुड़े रहे हैं। पहले वे छोटे स्तर पर यह कार्य करते रहे हैं लेकिन पिछले 4 वर्षों से उन्होंने बडे़ स्तर पर डेयरी फॉर्म चलाने का निर्णय लिया। वर्तमान में उनके पास मुर्रा नस्ल की 6 भैंसे तथा साहीवाल, जर्सी तथा एचएफ नस्ल की 20 गाय हैं। एक भैंस से जहां औसतन 18 लीटर दूध प्राप्त हो रहा है तो वहीं गायों से औसतन 30 से 35 लीटर दूध प्रतिदिन मिल रहा है। कुल मिलाकर एक दिन में वे औसतन एक से डेढ़ क्विंटल दूध उत्पादन कर रहे हैं। वर्तमान में उन्हें कुल दूध उत्पादन में से संपूर्ण लागत व खर्च निकालकर लगभग 30 से 35 प्रतिशत तक की शुद्ध आय प्राप्त हो रही है।
हरभजन सिंह बताते हैं कि वे अधिकत्तर दूध अमूल डेयरी को बेच रहे हैं। इसके अलावा आसपास के ग्रामीण भी घर से ही दूध खरीदते हैं। कुल मिलाकर डेयरी फॉर्म से तैयार दूध आसानी से बिक जाता है, लेकिन उन्हें दूध की लागत के हिसाब से बड़ी कंपनियां अमूल, वेरका इत्यादि बेहतर दाम नहीं दे रही हैं। उनका कहना है दूध खरीद की दिशा में प्रदेश सरकार कुछ मदद करे तो वे भविष्य में डेयरी फॉर्म से अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं।
डेयरी फार्म से जुड़कर युवा घर बैठे कमा सकते हैं लाखों रूपये
हरभजन सिंह कहते हैं कि डेयरी फॉर्म के कार्य को पूरी मेहनत व लगन से किया जाए तो घर बैठे अच्छी आय सृजित की जा सकती है। उनका कहना है कि नये युवाओं को डेयरी फॉर्म के कार्य से जुड़ना चाहिए। इससे न केवल घर बैठे स्वरोजगार की राह आसान होगी बल्कि अच्छी खासी आमदन भी प्राप्त की जा सकती है। उनका कहना है कि उनका बेटा भी डेयरी फॉर्म संचालन में पूरा सहयोग प्रदान कर रहा है तथा इस क्षेत्र में भविष्य में बड़े स्तर पर कार्य करने की योजना बना रहे हैं।
उनका कहना है कि बेटा 12 वीं कक्षा पास कर वेटनरी फॉर्मासिस्ट का प्रशिक्षण भी हासिल कर रहा है ताकि डेयरी उत्पादन की बारीकियों को बेहतर तरीके से समझा जा सके। उन्होंने युवाओं को डेयरी उत्पादन से जोड़ने एवं तकनीकी जानकारी उपलब्ध करवाने को ग्रामीण स्तर पर पशु स्वास्थ्य एवं प्रजनन विभाग के माध्यम से प्रशिक्षण कार्यशालाओं के आयोजन पर भी बल दिया।
क्या कहते हैं अधिकारीः
वरिष्ठ पशु चिकित्साधिकारी ऊना डॉ. राकेश भटटी का कहना है कि देहलां के प्रगतिशील किसान हरभजन सिंह डेयरी उत्पादन के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य कर रहे हैं। उन्हें विभाग के माध्यम से सरकार की ओर मिलने वाली विभिन्न तरह की मदद प्रदान की जा रही है। उन्होंने बताया कि किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से दो दुधारू पशु खरीदने को 1 लाख 60 हजार रुपये का आर्थिक लाभ प्रदान किया है। साथ ही समय-समय पर विभाग की ओर से प्रशिक्षण तथा अन्य लाभ भी दिये जा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि इन्हें मुख्य मंत्री स्वावलंबन योजना के साथ जोड़ने का भी प्रयास किया जाएगा। साथ ही आधुनिक वैज्ञानिक डेयरी फॉर्मिंग की जानकारी तथा प्रशिक्षण भी उपलब्ध करवाया जाएगा। इसके अलावा दुधारू पशुपालकों को प्रदेश सरकार की ओर से सेक्स सॉर्टिड सीमन की सुविधा भी प्रत्येक पशुपालन चिकित्सा केंद्र तक उपलब्ध करवाई गई है ताकि पशुपालकों को इसका लाभ मिल सके।
उपायुक्त ऊना जतिन लाल का कहना है कि सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से पात्र लोगों को लाभान्वित करने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने जिला के सभी विभागीय अधिकारियों को धरातल पर सरकार की योजनाओं के कार्यान्वयन को सख्त निर्देश जारी किये हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को सरकारी योजनाओं से जोड़ा जा सके। DOP 08/07/2024
-000-





Monday, 1 July 2024

कृषि व पशुपालन से आर्थिकी को सुदृढ़ बना रहे लोअर बढे़ड़ा के रघुवीर सिंह

खेतीबाड़ी व पशुपालन को बनाया आर्थिकी का अहम जरिया, प्रतिवर्ष कमा रहे हैं 6 से 8 लाख रूपये

ऊना जिला के लोअर बढे़ड़ा निवासी 50 वर्षीय रघुवीर सिंह के लिए कृषि व पशुपालन आर्थिकी का अहम जरिया बना है। अर्धसैन्य बल सीआरपीएफ में लगभग 22 वर्षों तक देश सेवा करने के उपरान्त रघुवीर सिंह ने अपनी पुश्तैनी जमीन को संभाला तथा कृषि के साथ-साथ पशुपालन को भी आर्थिकी का आधार बनाया है। वर्ष 2016 में सीआरपीएफ से सेवानिवृति लेने के उपरान्त पिछले लगभग 6 से 7 वर्षों के दौरान वे समय-समय पर सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न कृषि व पशुपालन विकास योजनाओं के साथ जुड़ते हुए आज वे एक प्रगतिशील किसान की दिशा में आगे बढ़े हैं। 

जब इस संबंध में रघुवीर सिंह से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि सबसे पहले वे कृषि विभाग की जाइका परियोजना से जुड़े तथा कृषि की नई तकनीकों का प्रशिक्षण प्राप्त किया। साथ ही मिश्रित खेती की दिशा में भी कदम आगे बढ़ाए। उन्होंने बताया कि वे वर्तमान में मिश्रित खेती कर रहे हैं, जिसमें मक्की, गेहूं, आलू, गन्ना के साथ-साथ विभिन्न तरह की सब्जियों का भी उत्पादन शामिल है। 

मक्की की अग्रिम फसल के मिल रहे अच्छे दाम, उत्पादन क्षमता में भी हुई है वृद्धि

उन्होंने बताया कि अन्य किसानों के साथ मक्की की अग्रिम तैयार होने वाली फसल को बीजा है। अग्रिम मक्की का बीजारोपण तीन चरणों में किया है जिसमें पहला चरण मार्च, दूसरा अप्रैल तथा तीसरा मई में शामिल है। उन्होंने बताया कि पहले चरण की कटाई जून माह में की जा रही है जबकि दूसरे चरण की कटाई जुलाई तथा तीसरा चरण अगस्त माह में पूरा होगा। उनका कहना है कि समय पूर्व मक्की तैयार होने से जहां बाजार में अच्छा दाम मिल रहा है तो वहीं उत्पादन क्षमता में भी वद्धि हुई है। 

मिश्रित खेती अपनाने से वर्ष भर प्राप्त होती है आय, खेती की आधुनिक तकनीकों का कर रहे इस्तेमाल

रघुवीर सिंह का कहना है कि खेतीबाड़ी से उन्हें प्रति वर्ष औसतन लगभग 5 से 6 लाख रूपये की आय प्राप्त हो रही है। उन्होंने बताया कि मिश्रित खेती के चलते उन्हे वर्ष भर विभिन्न फसलों से आय प्राप्त होती रहती है। उन्होंने ने बताया कि कृषि विभाग के माध्यम से उन्हें उन्नत खेती बारे प्रशिक्षण भी मिला है। इसके अलावा जाइका परियोजना के माध्यम से भी मिश्रित खेती बारे आवश्यक प्रशिक्षण हासिल किया है। साथ ही विभागीय अधिकारियों का भी समय-समय पर मार्गदर्शन मिलता रहता है। 

पशुपालन भी आर्थिकी को दे रहा मजबूती, प्राकृतिक खाद को कर रहे तैयार

उन्होंने बताया कि वे कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी कर रहे हैं। उन्होंने गाय व भैंसें भी पाल रखी है। जिनसे प्राप्त होने वाले दुग्ध उत्पादों से भी उन्हें औसतन प्रतिवर्ष 2 से अढ़ाई लाख रूपये की आमदन हो रही है। इसके अलावा पशुओं के गोबर से वे प्राकृतिक खाद भी तैयार कर रहे हैं। रासायनिक खाद के बजाय प्राकृतिक खाद फसलों के लिए अच्छी है तो वहीं इससे तैयार फसलें सेहतमंद भी हैं। साथ ही प्राकृतिक खाद के चलते फसलों की लागत भी घटती है।
उन्होंने कहा कि यदि सच्ची लगन व कड़ी मेहनत के साथ कृषि व्यवसाय को भी अपनाया जाए तो इससे न केवल बेहतर आमदन अर्जित की जा सकती है बल्कि अन्य लोगों को भी रोजगार उपलब्ध करवाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कृषि हमारी अर्थ व्यवस्था का अहम आधार है तथा कृषि की नई व आधुनिक तकनीकों को अपनाते हुए इससे जुडे़ रहना चाहिए। उन्होंने जिला व प्रदेश के शिक्षित युवाओं से भी कृषि की आधुनिक तकनीकों को अपनाते हुए इससे जुड़ने का आहवान किया।

क्या कहते हैं अधिकारी: 

उपनिदेशक कृषि ऊना कुलभूषण धीमान ने बताया कि जिला ऊना में मक्की की अग्रिम फसल के प्रति रूझान बढ़ रहा है तथा विभाग भी ऐसे किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए समय-समय पर उन्हें तकनीकी सहयोग प्रदान कर रहा है। उन्होंने बताया कि अग्रिम मक्की फसल के किसानों को होशियारपुर मंडी में विक्रय करके अच्छे दाम प्राप्त हो रहे हैं।  ऊना के लोअर बढे़ड़ा निवासी रघुवीर सिंह मक्की की अग्रिम  फसल से अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं। इसके अलावा वह पिछले काफी समय से जापान वित पोषित जाइका परियोजना से भी जुड़े रहे हैं तथा मिश्रित खेती अपनाकर आय के अतिरिक्त स्त्रोत सृजित कर रहे हैं। DOP 01/07/2024
-000-







Thursday, 15 July 2021

कोरोना काल में जोल के राजेश कुमार ने टमाटर की खेती से मजबूत की आर्थिकी

 सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के तहत टमाटर बेचकर कमाए 50 हजार, बेरोजगारों के लिये बने प्रेरणास्रोत

वैश्विक महामारी कोरोना संकट के बीच जहां कई लोग नौकरियां छूट जाने के कारण बेरोजगार हो गए तो वहीं कईयों के सामने आजीविका का भी संकट खड़ा हो गया है। लेकिन ऐसे में कुछ लोग ऐसे भी सामने आए जिन्होने स्वरोजगार के माध्यम से जीवन को एक नई दिशा देने का न केवल प्रयास किया बल्कि उसमें वे कामयाब भी हुए हैं। कोरोना संकट के बीच जोगिन्दर नगर उपमंडल के अंतर्गत ग्राम पंचायत मतेहड़ के गांव जोल निवासी 43 वर्षीय राजेश कुमार ने खेती-बाड़ी को आजीविका का न केवल जरिया बनाया बल्कि अच्छी खासी आमदन भी अर्जित की है। राजेश कुमार ने टमाटर बेचकर अब तक लगभग 50 हजार रूपये घर बैठे कमा लिये हैं।

इस बारे प्रगतिशील किसान राजेश कुमार से बातचीत की तो उन्होने बताया कि उन्होने अपनी तीन बीघा जमीन में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के तहत टमाटर की फसल ऊगाई है। अब तक वे लगभग 50 हजार रूपये का टमाटर बेच चुके हैं जबकि 2 बीघा में अभी भी टमाटर की फसल तैयार हो रही है। ऐसे में एक अनुमान है कि टमाटर की इस पूरी फसल से वे लगभग एक लाख रूपये तक की आमदन अर्जित करने में कामयाब हो जाएंगे। जब उनसे मार्केटिंग के बारे में जानना चाहा ने उन्होने बताया कि वे स्वयं ही आसपास के गांवों में लोगों के घर-द्वार पहुंचकर टमाटर को बेचते हैं तथा उन्हे अच्छे दाम प्राप्त हो रहे हैं। सबसे अहम बात यह है कि उनके द्वारा तैयार टमाटर पूरी तरह से प्राकृतिक है तथा इसमें किसी प्रकार की रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं हुआ है।

आईटीआई एवं स्नातक स्तर तक की शिक्षा प्राप्त राजेश कुमार स्वरोजगार के माध्यम से ही जीवन में आगे बढ़ने को प्रयासरत हैं। पिछले दो वर्षों से वे आत्मा परियोजना के माध्यम से सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के साथ जुड़े हैं तथा सब्जी उत्पादन की ओर कदम बढ़ाए हैं। पहले ही प्रयास में वे टमाटर की बंपर पैदावार कर वे इसमें न केवल कामयाब हुए हैं बल्कि उन्हे हौसला भी मिला है। उनका कहना है कि आने वाले समय में वे बागवानी के साथ भी जुड़ेगें ताकि उनके इन प्रयासों को बल मिल सके। उन्होने बताया कि सिंचाई सुविधा के लिए भू-संरक्षण विभाग के माध्यम से उन्होने टयूब वैल लगाया है जिस पर सरकार ने लगभग 1.10 लाख रूपये का उपदान दिया है। आत्मा परियोजना के माध्यम से उन्हे बीजा अमृत, जीवामृत एवं घन जीवामृत तैयार करने को प्लास्टिक ड्रम्स तथा फलदार पौधे मुहैया करवाए गए हैं।

राजेश कुमार का बेरोजगार युवाओं से आहवान है कि वे यदि खेती-बाड़ी व बागवानी को आधुनिक एवं वैज्ञानिक तरीके से अपनाते हैं तो न केवल घर बैठे उनके लिये आमदनी का एक जरिया बन सकता है बल्कि नौकरी की तलाश में इधर-उधर भी नहीं भटकना पड़ेगा। उनका कहना है कि हमारे गांव में प्रत्येक व्यक्ति के पास थोड़ी या ज्यादा जमीन अवश्य उपलब्ध है। जिसका वे सही तरीके से सदुपयोग कर न केवल घर बैठे स्वरोजगार हासिल कर सकते हैं बल्कि उन्हे आत्म संतुष्टि का भी अहसास होगा।

क्या कहते हैं अधिकारी:

जब इस बारे कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण (आत्मा परियोजना) के खंड तकनीकी प्रबंधक (बी.टी.एम.)चौंतड़ा सुनील कुमार से बातचीत की तो इनका कहना है कि वर्ष 2018 में राजेश कुमार सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के साथ जुड़े हैं। वर्ष 2019 में इन्होने प्रदर्शनी के तौर पर टमाटर की बिजाई की थी जिससे उन्हे लगभग 22 हजार रूपये की आमदन हुई। वर्तमान में उन्होने तीन बीघा जमीन में टमाटर की खेती की है तथा अनुमान है कि वे लगभग एक लाख रूपये से अधिक आय अर्जित कर लेंगे। उन्होने बताया कि चौंतड़ा ब्लॉक में 2243 किसानों को प्राकृतिक खेती के साथ जोड़ने का प्रयास हुआ है। उन्होने ज्यादा से ज्यादा किसानों खासकर बेरोजगार युवाओं से सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के साथ जुडऩे का आहवान किया है।

किसानों को घन जीवामृत, जीवामृत एवं बीजामृत उपलब्ध करवाने के लिए संसाधन भंडार स्थापित किये हैं जिनके माध्यम से किसान 5 रूपये किलो देसी गाय का गोबर, दो रूपये प्रति लीटर जीवामृत तथा गोमूत्र आठ रूपये प्रति लीटर की दर से प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा देसी गाय खरीदने, गाय का शैड बनाने एवं प्लास्टिक का ड्रम खरीदने के लिए भी सरकार सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए किसानों को उपदान मुहैया करवा रही है।  







Wednesday, 21 April 2021

चौंतड़ा के देवराज भारती ने प्राकृतिक खेती से जुडक़र लिख डाली सफलता की कहानी

सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती करना बना अब फायदे का सौदा, 5 बीघा जमीन भी हुई जहरमुक्त

कहते हैं कि यदि दिल से कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो तो न उम्र, न संसाधनों का अभाव, न ही जीवन में असफल होने का डर आगे बढऩे से रोक पाता है। बल्कि धुन के पक्के ऐसे लोग तमाम सुविधाओं व किंतु परन्तु को दर किनार कर कड़ी मेहनत के दम पर जहां निर्धारित लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर लेते हैं तो वहीं दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी बन जाते हैं। ऐसी ही कुछ कहानी है मंडी जिला के चौंतड़ा विकास खंड के अंर्तगत ग्राम पंचायत पस्सल के गांव डमेहड़ के 72 वर्षीय प्रगतिशील किसान देव राज भारती की। जिन्होने मात्र तीन वर्षों की अथक मेहनत व प्रयास के दम पर सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को अपनाकर सफलता की कहानी लिख डाली है। इनकी यह उपलब्धि आज पूरे जोगिन्दर नगर क्षेत्र ही नहीं बल्कि प्रदेश के लाखों किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी बन गई है। 

पेशे से भाषा अध्यापक रह चुके 72 वर्षीय देवराज भारती ने लगभग साढ़े पांच बीघा जमीन को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के तहत न केवल पूरी तरह से जहरमुक्त बना दिया है बल्कि उनके निरंतर प्रयासों से प्राकृतिक खेती अब फायदे का सौदा साबित होने लगी है। इस संबंध में देवराज भारती से चर्चा की तो उनका कहना है कि वर्ष 2018 में कृषि विभाग की आत्मा परियोजना के माध्यम से सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को अपनाने का निर्णय लिया। शुरू में उन्हे कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा लेकिन विभागीय अधिकारियों के निरंतर मार्गदर्शन एवं आगे बढऩे की हिम्मत ने आज उन्हे एक सफल किसान बना दिया है। उन्होने बताया कि प्राकृतिक खेती से जुडऩे को राजस्थान के गंगा नगर कस्बे से एक थार पारकर स्वदेशी नस्ल की गाय लेकर आए हैं जिस पर सरकार ने उन्हे 25 हजार रूपये का उपदान एवं पांच हजार रूपये टांस्पोर्टेशन चार्जेच दिये हैं। सिंचाई के लिए टयूबवैल स्थापित किया है। इनका कहना है कि जमीन में अब केंचुआ आ गया है तथा जमीन पूरी तरह से रसायनमुक्त हो चुकी है। 

साढ़े पांच क्विंटल मटर एवं 30 किलो धनिया तैयार कर बेचा, लगभग 12 हजार की हुई आमदन

देवराज भारती ने बताया कि इस वर्ष उन्होने लगभग एक बीघा जमीन में मटर व धनिया की खेती की जिससे लगभग साढ़े पांच क्विंटल मटर तथा 30 किलोग्राम हरा धनिया तैयार हुआ। जिससे लगभग 12 हजार रूपये की शुद्ध आमदन हुई है। इसके अलावा देसी किस्म की गेंहू की फसल भी लगभग तैयार है। साथ ही मस्सर व चना दालों की भी बिजाई की है जिनके परिणाम भी बेहतर आ रहे हैं। इसके अतिरिक्त खेतों में फूल गोभी, अरबी, मूली, आलू, अदरक इत्यादि की भी बिजाई कर रहे हैं जिनके परिणाम भी अच्छे आ रहे हैं। उन्होने बताया कि यह सब पूरी तरह देसी गाय के गोबर व गोमूत्र से तैयार घन जीवामृत, जीवमृत एवं बीजामृत के उपयोग से ही संभव हो पाया है तथा सभी तरह के उत्पाद पूरी तरह से प्राकृतिक तौर पर तैयार किये जा रहे हैं। 

इसके अलावा उन्होने संसाधन भंडार भी स्थापित किया है जहां से आसपास के किसान मामूली दरों पर प्राकृतिक तौर पर तैयार घनजीवामृत, जीवामृत एवं बीजामृत प्राप्त कर सकते हैं। संसाधन केंद्र से ही उन्हे लगभग 10 हजार रूपये की आय प्राप्त हो चुकी है। साथ ही बताया कि गाय शैड निर्माण को सरकार ने 8 हजार रूपये की आर्थिक मदद की है। प्राकृतिक खेती की व्यापक जानकारी लेने को वर्ष 2020 में हरियाणा के कुरूक्षेत्र स्थित गुरूकूलम में भी तीन दिन का प्रवास कर चुके हैं। उन्होने ज्यादा से ज्यादा किसानों से सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती से जुडऩे का आहवान किया ताकि जहां हमारी फसलों को जहरमुक्त बनाया जा सके तो वहीं खाद्यान्नों की गुणवत्ता भी बढ़ सके। इससे न केवल व्यक्ति शरीरिक व मानसिक तौर पर स्वस्थ रहेगा बल्कि गंभीर बीमारियों से बचाव होगा।  

तैयार फसल बेचने एवं देसी नस्ल की गाय को लेकर आ रही दिक्कतें, सरकार से मांगा उचित सहयोग 

बकौल देवराज भारती का कहना है कि प्राकृतिक तौर पर तैयार फल, सब्जियां व अन्न इत्यादि को बेचने के लिए किसानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इस दिशा में सरकार कुछ ऐसे कदम उठाए जिससे न केवल उनके यह तैयार उत्पाद आसानी से बिक जाएं बल्कि लोगों को भी इनका लाभ मिल सके। इसके अलावा देसी नस्ल की गाय खरीदने में भी किसानों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है इस संबंध में भी सरकार उचित कदम उठाये ताकि किसानों को गुणवत्तायुक्त देसी गाय की आसानी से उपलब्धता हो सके।

क्या कहते हैं अधिकारी:

जब इस बारे आत्मा परियोजना के खंड तकनीकी प्रबंधक (बी.टी.एम.) चौंतड़ा सुनील कुमार से बातचीत की तो इनका कहना है कि वर्ष 2018 में देवराज भारती सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के साथ जुड़े तथा वे अब एक सफल किसान बन चुके हैं। उन्होने बताया कि 66 किसानों से शुरूआत करते हुए वर्तमान में चौंतड़ा ब्लॉक के अंतर्गत लगभग 18 से 19 सौ किसानों को प्राकृतिक खेती से जोडऩे का प्रयास हुआ है। घनजीवामृत, जीवमृत एवं बीजामृत उपलब्ध करवाने के लिए 16 संसाधन भंडार स्थापित किये हैं जिनके माध्यम से किसान 5 रूपये किलो देसी गाय का गोबर, दो रूपये प्रति लीटर जीवामृत तथा गोमूत्र आठ रूपये प्रति लीटर की दर से प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा देसी गाय खरीदने, गाय का शैड बनाने एवं प्लास्टिक का ड्रम खरीदने के लिए भी सरकार सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए किसानों को उपदान मुहैया करवा रही है।