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Friday, 27 December 2019

अश्वगंधा की खेती अपनाएं, घर में खुशहाली लाएं

मात्र 5-6 माह में ही प्रति एकड़ आठ से 12 हजार रूपये की करें कमाई
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, बिलासपुर, ऊना, मंडी, कांगड़ा, सोलन, हमीरपुर व कुल्लू जिला के किसान अश्वगंधा की औषधीय खेती से जुडक़र अपनी आर्थिकी को मजबूती प्रदान कर सकते हैं। जलवायु की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश के निचले क्षेत्र अश्वगंधा की खेती के लिए उपयुक्त है तथा किसान थोड़ी सी मेहनत कर अश्वगंधा के माध्यम से अपनी आर्थिकी को बल प्रदान कर सकते हैं।
अश्वगंधा की खेती समुद्रतल से 14 सौ मीटर से नीचे वाले क्षेत्रों में की जा सकती है। जड़ के रूप में यह पौधा हिमाचल प्रदेश के आठ जिलों बिलासपुर, ऊना, मंडी, कांगड़ा, सोलन, सिरमौर, हमीरपुर व कुल्लू में आसानी से उगाया जा सकता है। 7-8 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है तथा इसकी रोपाई जून-जुलाई नर्सरी के दो महीने बाद की जा सकती है तथा पौधों को 4-6 इंच की दूरी पर प्रत्यारोपित किया जाता है। अश्वगंधा की फसल मात्र 5-6 महीने में ही तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ इसकी उपज 250 से 300 किलोग्राम तक रहती है तथा प्रति एकड़ किसान आठ से 12 हजार रूपये के बीच में शुद्ध आय अर्जित कर सकता है।
क्या है अश्वगंधा
अश्वगंधा एक झाड़ीदार रोमयुक्त पौधा है, जो एक से चार फुट ऊंचा तथा बहुशाखीय होता है। इसकी शाखाएं गोलाकार रूप में चारों ओर फैली रहती है। इसका डंठल बहुत ही छोटा जबकि फल शाखाओं के अग्र भाग में खिलते हैं तथा फल छोटे-छोटे गोल मटर के फल के समान पहले हरे, फिर लाल रंग के हो जाते हैं। यह बहुवर्षीय पौधा पौष्टिक जड़ों से युक्त है। अश्वगंधा के बीज, फल व छाल का विभिन्न रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है तथा सूख जाने पर अश्वगंधा की गंध कम हो जाती है।
अश्वगंधा की जड़ में होते हैं कई एल्केलाइड्स
अश्वगंधा की जड़ में कई एल्केलाइड्स पाए जाते हैं। इनमें कुस्कोहाइग्रीन, एनाहाइग्रीन, ट्रोपीन, स्टुडोट्रोपीन, ऐनाफेरीन, आईसोपेलीन, टोरीन और तीन प्रकार के ट्रोपिलीटग्लोएट शामिल है तथा इनकी मात्रा 0.13 से 0.31 प्रतिशत तक होती है। इसके अलावा जड़ में स्टार्च, शर्करा, ग्लाइकोमाइड्स-हेट्रियाकाल्टेन, अलसिटॉल व विदनाल, तने में प्रोटीन तथा बहुत से अमीनो अम्ल भी पाए जाते हैं। इसमें रेशा बहुत कम तथा कैल्शियम व फॅास्फोरस भी प्रचुर मात्रा होती है। इसके अलावा अश्वगंधा के फलों में प्रोटीनों को पचाने वाला एन्जाइम कैमेस भी पाया जाता है।
बड़ी बलवर्धक है अश्वगंधा
अश्वगंधा कशकाय रोगियों, सूखा रोग से ग्रस्त बच्चों व व्याधि उपरांत कमजोरी में, शारीरिक व मानसिक थकान में पुष्टिकारक बलवर्धक के नाते प्रयोग होती है। कुपोषण, बुढ़ापे व मांसपेशियों की कमजोरी और थकान जैसे रोगों में अश्वगंधा का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लगातार सेवन करने से शरीर के सारे विकार बाहर निकल जाते हैं। अश्वगंधा को आयुर्वेद में पुरातन काल से ही वीर्यवर्धक, शरीर में ओज और कांति लाने वाले, परम पौष्टिक व सर्वांग शक्ति देने वाली, क्षय रोगनाशक, रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाली तथा वृद्धावस्था को दूर रखने वाली सर्वोत्तम वनौषधि माना है।
क्या कहते हैं अधिकारी
क्षेत्रीय निदेशक, क्षेत्रीय एवं सुगमता केंद्र उत्तर भारत, जोगिन्दर नगर डॉ. अरूण चंदन का कहना है कि सरकार राष्ट्रीय आयुष मिशन (एनएएम) के अंतर्गत राज्य औषधीय पादप बोर्ड के माध्यम से अश्वगंधा की खेती को प्रति हैक्टेयर लगभग 11 हजार रूपये की वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है। उन्होने हिमाचल प्रदेश के निचले क्षेत्रों में रहने वाले किसानों से व्यक्तिगत या सामूहिक तौर पर अश्वगंधा की औषधीय खेती अपनाने का आह्वान किया है ताकि आय का एक नया साधन सृजित कर उनकी आर्थिकी को मजबूती प्रदान की जा सके।
इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए अपने जिला के जिला आयुर्वेदिक अधिकारी या राज्य औषधीय पादप बोर्ड शिमला के कार्यालय से संपर्क किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय एवं सुगमता केंद्र जोगिन्दर नगर या आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान (आईएसएम) जोगिन्दर नगर जिला मंडी के कार्यालयों से भी संपर्क कर सकते हैं।
इसके अलावा वैबसाइट www.ayurveda.hp.gov.in से भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है।