हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला किन्नौर मुख्यालय रिकांगपिओ से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर जिला ही नहीं बल्कि हिमाचल प्रदेश का एक प्रमुख पर्यटक स्थल कल्पा स्थित है। सतलुज नदी घाटी के एक ओर बसा कल्पा गांव जहां अपनी ऐतिहासिक व धार्मिक पृष्ठभूमि के लिए विश्व भर में जाना जाता है तो वहीं गांव व आसपास का खूबसूरत नजारा देखते ही बनता है। कल्पा गांव को निहारने के लिए प्रतिवर्ष सैंकड़ों देसी व विदेशी सैलानी यहां पहुंचते हैं।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ (श्रीमद् भगवद्गीता)
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Tuesday, 9 January 2024
कल्पा: जिला किन्नौर का ऐतिहासिक,धार्मिक व प्रमुख पर्यटक स्थल
धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टि से बात करें तो कल्पा गांव में प्रसिद्ध मां आदि शक्ति देवी चंडिका जी (प्राचीन किला) का पवित्र स्थान स्थित है। इसके साथ ही प्राचीन बौद्ध मंदिर तथा तिब्बतन पैगोडा शैली में निर्मित श्री विष्णु नारायण नागिन जी का मंदिर भी है। मां आदि शक्ति देवी चंडिका जी (प्राचीन किला) के प्रागंण से किन्नर कैलाश जी के दर्शन भी कर सकते हैं, साथ ही दूर-दूर तक प्राकृतिक सुंदरता का दृश्य देखते ही बनता है। कल्पा गांव के चारों और हिमाच्छादित पर्वत श्रृखलांए प्रकृति का एक अदभुत नजारा प्रस्तुत करते हैं। धार्मिक दृष्टि से कल्पा गांव के आस-पास देवी देवताओं और बौद्ध मंदिर के पवित्र स्थान मौजूद हैं जिनके श्रद्धालु व पर्यटक दर्शन कर यहां की देव संस्कृति से रू-ब-रू हो सकते हैं।
कल्पा गांव समुद्र तल से लगभग 2900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पर सर्दियों के दौरान लगभग 4-5 फीट बर्फ पड़ती है तथा यहां का तापमान माइनस 5 से 10 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है। ग्रीष्म और मानसून मौसम के दौरान यहां का वातावरण अति सुहावना बना रहता है। कल्पा गांव में सेब के साथ-साथ चैरी व खुमानी के बागीचे भी हैं। यहां पर, प्राकृतिक तौर पर पाया जाने वाला पेड़ चिलगोजा भी काफी मात्रा में मिलता है। चिलगोजा दुनिया भर में केवल इकलौता ऐसा पेड़ है जो भारत में केवल हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिला के रिकांग पिओ, कल्पा सहित आस-पास के क्षेत्रों तथा अफगानिस्तान में ही पाया जाता है। चिलगोजा से निकलने वाला प्राकृतिक सूखा मेवा 'नियोजा बाजार में औसतन दो हजार रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकता है तथा इसकी काफी मांग रहती है। इसके अलावा स्थानीय लोग पारंपरिक फसलें कोदा, फाफरा, ओगला, जौ, चौलाई, राजमाह, गेहूं इत्यादि भी बीजते हैं।
अगर कल्पा गांव वासियों के पहनावे की बात करें तो महिलाएं जहां दोडू, चोली, पट्टू, पारंपरिक किन्नौरी टोपी व गाच्छी पहनती हैं तो वहीं पुरूष किन्नौरी टोपी, छूबा (लंबा कोट), ऊनी पायजामा, बासकोट इत्यादि पहनते हैं। खाने की बात करें तो स्थानीय लोग विभिन्न तरह के पारंपरिक व्यंजन जैसे ओगला, फाफरा इत्यादि से बनने वाला चिलटा, मीठी चूली से बनने वाला पकवान चुलफांटिग, सत्तू तथा चूली से बनने वाला रेमो थूक्पा के अतिरिक्त नमकीन चाय शामिल है। कल्पा गांव में फरवरी-मार्च महीने में सुस्कर मेला (रौलाने), कश्मीर मेला, सितंबर माह में फुल्याच पर्व का भी आयोजन किया जाता है। यहां के लोग हमकज़ (स्थानीय बोली) बोलते हैं जो कल्पा क्षेत्र के लोगों की बोल-चाल की भाषा है।
पुराना हिंदुस्तान-तिब्बत मार्ग भी कल्पा गांव से होकर ही गुजरता है। कल्पा पुराने समय में भारत-तिब्बत के मध्य होने वाले व्यापार का भी एक अहम पड़ाव रहा है। ऐतिहासिक दृष्टि से बात करें तो कल्पा को पहले चीनी गांव के नाम से भी जाना जाता था। 01 मई, 1960 को जिला किन्नौर के अस्तित्व में आने के बाद कल्पा जिला मुख्यालय बना। बाद में जिला मुख्यालय को 90 के दशक में कल्पा से लगभग 7 कि.मी. नीचे रिकांग पिओ में स्थानांतरित किया गया है। वर्तमान में रिकांग पिओ ही जिला किन्नौर का मुख्यालय है।
कल्पा गांव में पर्यटकों के ठहराव के लिए कई सरकारी विश्राम गृहों के अतिरिक्त हिमाचल पर्यटन विकास निगम का होटल, कई होम-स्टे तथा निजी होटल मौजूद हैं। कल्पा प्रदेश की राजधानी शिमला से सडक़ मार्ग के माध्यम से शिमला-काजा सडक़ पर लगभग 260 कि.मी दूर है। पयर्टक कल्पा के अतिरिक्त प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर 40 कि.मी. दूर सांगला व 70 कि.मी. छितकुल घाटी का भी भ्रमण कर सकते हैं। साथ ही, विश्व प्रसिद्ध प्राकृतिक झील नाको को भी निहार सकते हैं जो लगभग 120 कि.मी दूर है।
-000-Tuesday, 2 January 2024
जोगिन्दर नगर के चुल्ला गांव में स्थित है मां टौण भ्राड़ी का प्राचीन मंदिर
श्रद्धालु पत्थर बजाकर मां से मांगते हैं मन्नत, शादी के बाद नव विवाहित जोड़ा मां के यहां लगाते हैं फेरी
मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल की ग्राम पंचायत तुल्लाह के चुल्ला गांव में मां टौण भ्राड़ी माता का प्राचीन मंदिर स्थित है। कहते हैं कि यह पवित्र स्थान काफी प्राचीन है तथा खुले आसमान के नीचे मां टौण भ्राड़ी की प्रतिमा यहां विराजमान रही है। इसी स्थान पर काफी लंबे समय तक ब्रह्मलीन स्वामी शंकरानंद जी महाराज ने निवास कर इस पवित्र स्थान पर तपस्या की है। आज भी स्वामी शंकरानंद जी महाराज की प्राचीन कुटिया इस स्थान पर सुरक्षित है। प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह के 19 प्रविष्टे को यहां पर प्राचीन समय से ही मां टौण भ्राड़ी का एक दिवसीय मेला भी आयोजित किया जाता है।
मां टौण भ्राड़ी के इस प्राचीन स्थान पर मां का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। मां टौण भ्राड़ी कई परिवारों की कुलदेवी भी है। श्रद्धालु मां की पिंडी के साथ रखे पत्थरों को बजाकर अपनी मन्नत मांगते हैं। कहते हैं कि मां को कम सुनाई देता है ऐसे में भक्तजन मां के दरबार में हाजरी लगाते समय रखे पत्थरों को जरूर बजाते हैं। वर्तमान में मां को मंदिर के भीतर स्थापित करने के लिए भक्तजनों के सहयोग से छोटे मंदिरों का भी निर्माण किया गया है। लेकिन मां की आज्ञा न मिलने के कारण आज भी मां टौण भ्राड़ी मंदिर के बाहर ही विराजमान है तथा भक्तजन यहीं पर मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
कहते हैं कि शादी होने पर नव विवाहित दंपति परिजनों सहित मां का आशीर्वाद प्राप्त करने यहां अवश्य पहुंचते हैं तथा मां की फेरी भी लगाते हैं। प्राचीन समय से ही मां के दरबार में नव दंपति की फेरी लगाने की परंपरा आज भी बरकरार है तथा स्थानीय वासियों सहित अन्य श्रद्धालु आज भी फेरी लगाने मां के दरबार में पहुंचते हैं।
इस स्थान पर लंबे समय पर तपस्या में लीन रहे हैं स्वामी शंकरानंद जी महाराज
मां टौण भ्राड़ी के इस पवित्र स्थान पर ब्रह्मलीन स्वामी शंकरानंद जी महाराज काफी लंबे वक्त तक तपस्या में लीन रहे हैं। उन्होंने इस पवित्र स्थान पर न केवल श्रद्धा व भक्ति का अलख जगाया बल्कि इस पवित्र स्थान को संरक्षित करने का भी प्रयास किया। ब्रह्मलीन स्वामी शंकरानंद जी महाराज की पवित्र कुटिया आज भी सुरक्षित है तथा श्रद्धालु मां का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद स्वामी जी का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करते हैं। मंदिर परिसर में ही स्वामी शंकरानंद जी महाराज का समाधि स्थल भी स्थापित किया गया है।
वर्तमान में ब्रह्मचारी स्वामी राम कुमार दास जी कर रहे हैं मंदिर परिसर की देखरेख
वर्तमान में इस प्राचीन टौण भ्राड़ी मंदिर परिसर की देखरेख ब्रह्मचारी स्वामी राम कुमार दास जी वर्ष 1984 से कर रहे हैं। श्रद्धालुओं के सहयोग से मंदिर परिसर में कई छोटे-बड़े मंदिरों का निर्माण करवाया गया है। जिनमें शिव मंदिर, राम मंदिर, हनुमान मंदिर, शनिदेव मंदिर प्रमुख हैं। इसके अलावा पर्यटन विभाग के सहयोग से यहां पर विश्राम स्थल का निर्माण भी किया गया है। इस पवित्र स्थान पर प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर्व के दौरान शिव कथा का भी आयोजन किया जाता है। मंदिर विकास के लिए स्वामी राम कुमार दास जी ने भक्तों से सहयोग की अपील भी की है ताकि मंदिर परिसर का ओर बेहतर विकास किया जा सके।
कैसे पहुंचे टौण भ्राड़ी मंदिर परिसर
मां टौण भ्राड़ी का यह प्राचीन मंदिर परिसर सडक़ मार्ग से जुड़ा हुआ है तथा वाहन आसानी से मंदिर परिसर तक पहुंचते हैं। यह स्थान उपमंडल मुख्यालय जोगिन्दर नगर से लगभग 45 किलोमीटर, तहसील मुख्यालय लडभड़ोल से लगभग 15 किलोमीटर, प्रमुख धार्मिक स्थल बैजनाथ से लगभग 37 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके अलावा सरकाघाट से वाया धर्मपुर भी यहां पहुंचा जा सकता है। प्राकृतिक दृष्टि से भी यह स्थान बेहद खूबसूरत है तथा यहां से धीमी आवाज में कल-कल बहती ब्यास नदी का विहंगम दृश्य देखते ही बनता है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन बैजनाथ पपरोला जबकि नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल कांगड़ा है। DOP 02/01/2024
Saturday, 23 December 2023
मकान निर्माण को रोपा पधर के बनेहड़ निवासी तेज राम व संजय कुमार को सरकार से मिली आर्थिक मदद
पीड़ितों ने कहा..........धन्यवाद मुख्य मंत्री जी आपदा की दुखद घड़ी में आर्थिक मदद देने के लिए
बरसाती आपदा में आशियाना खोने वालों को प्रदेश सरकार दे रही है 7-7 लाख रुपये की राहत राशि
गत 23 अगस्त की बदनसीब बरसात जोगिन्दर नगर उपमंडल की ग्राम पंचायत रोपा पधर के गांव बनेहड़ निवासी दो भाईयों तेज राम व संजय कुमार के लिए आफत बन कर सामने आई। इस भारी बरसात के कारण इन दोनों भाईयों को अपने आशियाने से महरूम होना पड़ा है। आलम तो यह है कि अब इन दोनों भाईयों को परिवार के अन्य सदस्यों सहित गांव के दूसरे लोगों के घरों में शरण लेनी पड़ी है। तेज राम व संजय कुमार ने कड़ी मेहनत मजदूरी कर एक-एक पाई जोडक़र खूबसूरत आशियाना बनाया ही था कि बरसात ने चंद मिनटों में सब कुछ मिट्टी कर दिया। घर के पीछे पहाड़ी से हुए भारी भूस्खलन ने इन दोनों भाइयों को उनके सपनों के आशियाने से वंचित कर दिया। सच में किसी परिवार के सिर से एक अदद छत के मिट जाने के दर्द को यूं चंद शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है।
जब पीड़ित परिवार के सदस्य तेज राम से बातचीत की उनका कहना है कि दिन रात कड़ी मेहनत कर उन्होने यह सुंदर आशियाना बनाया था, लेकिन प्रकृति को शायद कुछ ओर ही मंजूर था। आज इस टूटे हुए आशियाने को देखकर न केवल उनका दिल बैठ जाता है बल्कि इस पहाड़ जैसी जिंदगी में स्वयं को परिवार सहित पुन: खड़ा करना किसी चुनौती से कम नहीं लग रहा है। लेकिन आपदा की इस दुखद घड़ी में प्रदेश के मुख्य मंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने उन जैसे कई आपदा पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदनशीलता का जो परिचय दिया है निश्चित तौर पर इसके लिए वे उनके सदा धन्यवादी रहेंगे।
तेज राम का कहना है कि इस प्राकृतिक आपदा से आशियाना खोने पर स्थानीय प्रशासन के माध्यम से सरकार ने पहले प्रति परिवार एक लाख 20 हजार रुपये की आर्थिक मदद पहुंचाई। इसके बाद मुख्य मंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने पीड़ितों के दर्द को समझते हुए इस राशि को बढ़ाकर 7 लाख रुपये किया है जो काबिले तारीफ है। उनका कहना है कि सरकार की ओर से अब उन्हें 3-3 लाख रुपये की अतिरिक्त किस्त भी उनके बैंक खाते में जमा हो चुकी है। वे इस महान व नेक कार्य के लिए मुख्य मंत्री का आभार जताते हुए कहते हैं कि आने वाले समय में फिर से वे सपनों का आशियाना बनाने में जरूर कामयाब होंगे। सरकार की यह आर्थिक मदद परिवार के सपनों के आशियाने को फिर से बसाने में मददगार साबित होगी।
सच में हिमाचल प्रदेश में तेज राम व संजय कुमार जैसे सैंकड़ों परिवार हैं जिन्होंने प्राकृतिक आपदा के चलते न केवल अपने सपनों के आशियाने को टूटते बिखरते हुए देखा है बल्कि इस अभागी बरसात ने कई परिवारों के सदस्यों को सदा के लिए जुदा भी कर दिया है। सच में यह प्राकृतिक आपदा प्रदेश वासियों को एक ऐसा जख्म दे गई है जो शायद ही कभी भर पाए।
लेकिन इस प्राकृतिक त्रासदी में प्रदेश के मुख्य मंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने पीड़ितों के प्रति संवेदनशीलता का परिचय देते हुए न केवल उनके दुख दर्द को अपना समझा है बल्कि मरहम लगाने का भी भरपूर प्रयास किया है। इसी संवेदनशीलता के चलते जहां सरकार की ओर से बेघर हुए परिवारों को अपना आशियाना बनाने के लिए 7-7 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी जा रही है तो वहीं सीमित आर्थिक संसाधनों के चलते अन्य पीड़ितों को हुए नुकसान पर भी आर्थिक सहारा देने का पूरा प्रयास किया जा रहा है।
क्या कहते हैं अधिकारी:
इस बात की पुष्टि करते हुए एसडीएम जोगिन्दर नगर कृष्ण कुमार शर्मा का कहना है कि बरसाती आपदा से अपना मकान खोने वाले रोपा पधर पंचायत के बनेहड़ निवासी तेज राम व संजय कुमार को पुन: गृह निर्माण के लिए सरकार की ओर से अब तक चार लाख बीस हजार रुपये प्रति परिवार धनराशि उनके बैंक खातों में हस्तांतरित कर दी गई है। उन्होंने कहा कि पीड़ित परिवार जल्द से जल्द घर का कार्य शुरू करें ताकि शेष राशि भी उन्हें उपलब्ध करवाई जा सके। साथ ही पंचायत के माध्यम से भी उन्हें 100-100 सीमेंट के बैग उपलब्ध करवाए जाएंगे। इसके अतिरिक्त उपमंडल में बरसात से प्रभावित अन्य परिवारों के मामलों में भी कार्रवाई अमल में लाई जा रही है तथा आपदा राहत मैन्युअल व सरकारी दिशा निर्देशों के तहत चरणबद्ध तरीके से राहत राशि उपलब्ध करवाने के भी प्रयास जारी हैं। DOP 25/11/2023
Wednesday, 20 December 2023
जोगिन्दर नगर के मच्छयाल में बाबा मछिन्दर नाथ ने कई वर्षों तक की थी तपस्या
सच्चे मन से मांगी मन्नत को पूरा करते हैं मछिन्दर नाथ, माया कुंड के पानी से दूर होते हैं चर्म रोग
मंडी जिला के जोगिन्दर नगर कस्बे से जोगिन्दर नगर-सरकाघाट-घुमारवीं मुख्य सडक़ पर महज आठ किलोमीटर दूर रणा खड्ड के किनारे बाबा मछिन्दर नाथ का पवित्र स्थान मच्छयाल स्थित है। कहते हैं कि हजारों वर्ष पूर्व इस स्थान के प्राकृतिक सौंदर्य से वशीभूत होकर बाबा मछिन्दर नाथ ने कई वर्षों तक यहां तपस्या की थी। इस स्थान पर रणा खड्ड में प्राकृतिक तौर पर लगभग 300 से 400 मीटर दायरे में बने सात तटबंधों के बीच वाले क्षेत्र में स्थित मछलियों को भगवान विष्णु जी के मत्स्य अवतार को बाबा मछिन्दर नाथ के रूप में पूजा जाता है।
जानकार कहते हैं कि मत्स्य पुराण में मछलियों को पूजा जाने का उल्लेख मिलता है तथा मत्स्य पुराण 18 पुराणों में से एक पुराण है जिसमें मत्स्य अवतार से जुड़े कई रहस्यों की जानकारी मिलती है। मच्छयाल स्थित रणा खड्ड में मछलियों को आटा खिलाने से जहां लोग कई दोषों से मुक्ति पाते हैं तो वहीं मनोकामना को पूर्ण करने की मन्नतें भी मांगते हैं। कहते हैं सच्चे मन से मांगी गई मन्नत को बाबा मछिन्दर नाथ पूर्ण करते हैं। साथ ही नि संतान श्रद्धालु जहां बच्चे होने की, तो वहीं अविवाहित लोग विवाह होने की मन्नत भी मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु ढ़ोल नगाड़ों के साथ जातर लाकर बाबा मछिन्दर नाथ के दर्शन करते हैं तथा प्रसाद चढ़ाते हैं। साथ ही मछलियों को आटा भी खिलाते हैं। मन्नतें पूरी होने की कई घटनाएं आए दिन देखने को मिलती हैं तथा बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा मछिन्दर नाथ के दर्शनार्थ यहां पहुंचते हैं।
माया कुंड के पानी से दूर होते हैं चर्म रोग, कभी विवाह शादियों के लिए मिलते थे बर्तन
मच्छयाल स्थित बाबा मछिन्दर नाथ के परिसर में प्राकृतिक तौर पर पत्थरनुमा चट्टान में एक बड़ा प्राकृतिक सुराख है। जिसमें वर्ष भर पानी भरा रहता है जिसे माया कुंड के नाम से जाना जाता है। कहते हैं इस पानी को नियमित तौर पर लगाने से कई तरह के चर्म रोग ठीक होते हैं। यह भी कहा जाता है कि बाबा मछिन्दर नाथ इसी स्थान से विवाह-शादियों इत्यादि के आयोजन के लिए बर्तन भी उपलब्ध करवाते थे।
कहते हैं कि विवाह शादियों या अन्य धार्मिक व सामाजिक आयोजनों के लिए लोग बाबा मछिन्दर नाथ से बर्तन उपलब्ध करवाने की अरदास करते थे तो सुबह होने पर इस स्थान पर बर्तन उपलब्ध हो जाते थे। एक बार किसी व्यक्ति ने इन बर्तनों को लौटाते समय इन्हें बदल दिया। इसके बाद बर्तन उपलब्ध होने की यह परंपरा बंद हो गई।
जब राजा ने मछिन्दर नाथ के चमत्कार से प्रभावित होकर मछली को पहनाई थी सोने की नथ
जानकार बताते हैं कि एक बार राजा ने सिपाहियों को भोजन में मछली बनाने के आदेश दिये। सिपाहियों को काफी प्रयास करने के बाद जब मछली नहीं मिली तो उन्होने मच्छयाल के इस पवित्र स्थान से मछली को पकड़ा। कहते हैं कि जब मछली को फ्राई कर प्लेट में रखा तो पुन: जीवित हो गई। इस घटना को देखकर राजा भी दंग रह गए। जब उन्होंने मछली से जुड़ा वृतांत सुना तो वे इस पवित्र स्थान पर पहुंचे तथा बाबा मछिन्दर नाथ की पूजा अर्चना कर मछली को सोने की नथ पहनाई। कहते हैं कि भाग्यवान लोगों को अभी भी ऐसी मछली के दर्शन होते हैं।
बाबा मछिन्दर नाथ ने प्राकृतिक तौर पर बने सात तटबंधों से निर्मित की है अपनी सीमा
रणा खड्ड में बाबा मछिन्दर नाथ ने प्राकृतिक तौर पर सात तटबंधों के माध्यम से अपनी सीमा को निर्धारित किया है। 300-400 मीटर के दायरे में यह प्राकृतिक सीमा फैली हुई है तथा इसके भीतर मछलियों का शिकार करना पूर्ण तौर पर प्रतिबंधित है।
प्राकृतिक तौर पर चट्टान के ऊपर निर्मित है भगवान शिव की प्रतिमा
इसी स्थान पर प्राकृतिक तौर पर एक भारी भरकम चट्टान के ऊपर भगवान शिव की प्रतिमा निर्मित है। कहते हैं कि एक बार मां चतुर्भुजा ने खेल के माध्यम से इस चट्टान के गिरे होने की जानकारी दी। जब क्रेन के माध्यम से चट्टान को ऊपर उठाया गया तो उसमें भगवान शिव का प्रतीकात्मक रूप शिवलिंग प्राकृतिक तौर पर बना हुआ मिला। इसके अलावा चट्टान में अन्य मूर्तियां भी उकेरी गई हैं।
प्राकृतिक तौर पर है खूबसूरत स्थान, बैसाखी को लगता है चार दिवसीय मेला
यह स्थान प्राकृतिक तौर पर बेहद खूबसूरत है। इसकी खूबसूरती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां पर कई हिंदी फीचर फिल्मों का फिल्मांकन भी हुआ है। यहां प्रतिवर्ष 13 अप्रैल बैसाखी पर्व को चार दिवसीय मेले का आयोजन होता है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस दौरान कई तरह के सांस्कृतिक एवं खेलकूद कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है।
वर्तमान में इस मंदिर के संचालन हेतु एसडीएम जोगिन्दर नगर की अध्यक्षता में मंदिर विकास प्रबंधन समिति गठित की गई है। जिसमें स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों सहित कई सरकारी व गैर सरकारी सदस्य शामिल हैं।
कैसे पहुंचे मच्छयाल
मच्छयाल मंडी जिला मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर है। उपमंडल मुख्यालय जोगिन्दर नगर से महज आठ किलोमीटर तथा प्रसिद्ध धाम बैजनाथ से 30 किलोमीटर दूर है। यह स्थान सडक़ मार्ग से जुड़ा हुआ है तथा मंदिर परिसर में ही वाहन को आसानी से पार्क किया जा सकता है। इसके अलावा रेल नेटवर्क के माध्यम से भी पठानकोट से जोगिन्दर नगर पहुंचा जा सकता है। सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल कांगड़ा है। DOP 12/12/2023
Saturday, 18 November 2023
दो विधानसभा क्षेत्रों को जोड़ेगा ब्यास नदी पर बन रहा कोठी पत्तन पुल, आवागमन होगा सुगम
स्टील ट्रस तकनीक से बन रहा है 160 मीटर लंबा डबल लेन पुल, एक साथ गुजर सकेंगे दो बड़े वाहन
पुल निर्माण पर 20 करोड़ रुपये की धनराशि हो रही है व्यय, जून 2024 तक पूरा होगा काम
मंडी जिला के जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत कोठी पत्तन (लडभड़ोल) तथा धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र के तहत सिद्धपुर के समीप निर्माणाधीन ब्यास नदी के ऊपर कोठी पत्तन पुल का निर्माण कार्य प्रगति पर है। इस पुल के निर्मित हो जाने से न केवल जोगिन्दर नगर व धर्मपुर विधानसभा क्षेत्रों के हजारों लोगों को आवागमन की बेहतर सुविधा सुनिश्चित होगी बल्कि दोनों विधानसभा क्षेत्रों के कई गांवों के बीच दूरी का फासला भी कम हो जाएगा। ब्यास नदी पर लगभग 20 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित हो रहे इस महत्वपूर्ण पुल का कार्य प्रगति पर है तथा जून, 2024 तक यह पुल वाहनों के आवागमन के लिए पूरी तरह से बनकर तैयार हो जाएगा।
ब्यास नदी पर कोठी पत्तन (लडभड़ोल) में निर्मित किये जा रहे इस पुल के पूरी तरह बनकर तैयार हो जाने से जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र के लडभड़ोल क्षेत्र सहित धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र के लोगों को चंडीगढ़, दिल्ली सहित सरकाघाट, हमीरपुर, धर्मपुर, बैजनाथ, पालमपुर, धर्मशाला सहित प्रदेश के अन्य क्षेत्रों के बीच आने जाने का फासला कम हो जाएगा। इससे न केवल यहां के लोगों के धन की बचत होगी बल्कि आवागमन में समय भी कम हो जाएगा।
स्टील ट्रस तकनीक से बन रहा है 160 मीटर लंबा डबल लेन पुल, एक साथ गुजर सकेंगे दो बड़े वाहन
स्टील ट्रस तकनीक के आधार पर निर्मित हो रहा डबल लेन कोठी पतन पुल की कुल लंबाई 160 मीटर होगी। इस पुल पर एक समय पर दो बड़े वाहन आसानी से आ जा सकेंगे।
वर्तमान में नाव ही है आवागमन का एकमात्र सहारा, बरसात में तय करना पड़ता है लंबा सफर
वर्तमान समय में ब्यास नदी के दोनों ओर धर्मपुर व जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्रों में बसे हजारों लोगों को आवागमन के लिए कोठी पत्तन में नाव का ही एकमात्र सहारा है। बरसात के दौरान ब्यास नदी में जलस्तर बढ़ने से नाव का संपर्क भी टूट जाता है। ऐसे में ब्यास नदी के दोनों ओर के इन हजारों लोगों को आने जाने में बड़ी असुविधा होती है तथा 15-20 किलोमीटर का अतिरिक्त सफर तय करना पड़ता है। लेकिन अब इस पुल के निर्मित हो जाने पर जहां देश व प्रदेश के बड़े शहरों के बीच लगभग तीन से चार घंटे का सफर कम होगा तो वहीं लडभड़ोल व धर्मपुर क्षेत्र के लोगों को आवागमन के लिए तय होने वाला लंबा सफर अब महज कुछ ही मिनटों का रह जाएगा।
इसके अतिरिक्त जोगिन्दर नगर के लडभड़ोल व धर्मपुर क्षेत्रों के मध्य लोगों की काफी रिश्तेदारी भी है। ऐसे में दोनों ओर के लोगों को विभिन्न सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों में भाग लेने में भी सुविधा होगी तथा आवागमन सुगम होने से सामाजिक रिश्ते ओर भी मजबूत होंगे।
क्या कहते हैं अधिकारी:
इस बात की पुष्टि करते हुए अधिशाषी अभियन्ता लोक निर्माण विभाग धर्मपुर *विवेक शर्मा* ने बताया कि ब्यास नदी पर कोठी पत्तन में निर्मित हो रहे 160 मीटर लंबे (स्टील ट्रस) पुल का निर्माण कार्य जारी है तथा जून, 2024 तक इसे पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होने बताया कि इस डबल लेन पुल के निर्माण कार्य पर लगभग 20 करोड़ रुपये की धनराशि व्यय हो रही है। DOP 18/11/2023
Friday, 17 November 2023
मार्च, 2024 तक पूरा होगा मच्छयाल पुल का निर्माण कार्य,आवागमन होगा सुगम
जोगिन्दर नगर-सरकाघाट-घुमारवीं सडक़ पर आठ करोड़ रूपये की लागत से निर्मित हो रहा है पुल
बो स्ट्रिंग आर्क शैली में बन रहा अपनी तरह का एक अनूठा पुल, मच्छयाल में पर्यटन गतिविधियों को मिलेगा बल
मंडी जिला के जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत प्रमुख धार्मिक स्थान मच्छयाल में राणा खड्ड पर निर्मित हो रहा पुल का निर्माण कार्य आगामी मार्च 2024 तक पूरा कर लिया जाएगा। इस पुल का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर जोगिन्दर नगर-सरकाघाट-घुमारवीं सडक़ पर वाहनों का आवागमन बेहतर व सुगम होगा। बो स्ट्रिंग आर्क शैली में बन रहा यह पुल अपनी तरह का एक अलग पुल है तथा इसका कार्य पूर्ण होने पर प्रमुख धार्मिक स्थल मच्छयाल में धार्मिक पर्यटन गतिविधियों को भी बल मिलेगा।
राणा खड्ड पर निर्मित हो रहे इस पुल पर लगभग आठ करोड़ रूपये की धनराशि व्यय की जा रही है। वर्तमान में इस पुल का लगभग 75 से 80 फीसदी तक का कार्य पूरा कर लिया गया है। शेष बचे कार्य को भी जल्द पूरा कर इसे मार्च, 2024 तक लोगों को समर्पित करने का लक्ष्य रखा गया है।
मच्छयाल में राणा खड्ड पर बन रहा यह 40 मीटर स्पैन बो स्ट्रिंग आर्क पुल डबललेन है। इस पुल के बन जाने से इस मार्ग पर भारी व माल वाहक वाहनों की आवाजाही भी आसानी से शुरू होने पर जोगिन्दर नगर-सरकाघाट-घुमारवीं सडक़ के दोनों और की लाखों आबादी लाभान्वित होगी।
मच्छयाल जोगिन्दर नगर क्षेत्र का एक प्रमुख धार्मिक व पर्यटक स्थल भी हैं। यहां प्रतिवर्ष लाखों लोग बाबा मछिंद्रनाथ के दर्शनार्थ यहां पहुंचते हैं। मच्छयाल पर्यटक स्थल की महत्ता इसी से पता चलती है कि यहां पर दो बार हिंदी फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है। इस पवित्र धार्मिक स्थान को देखने व जानने के लिए प्रतिवर्ष कई विदेशी सैलानी भी यहां पहुंचते हैं। पुल का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर मच्छयाल आने वाले श्रद्धालुओं व पर्यटकों को भी लाभ मिलेगा तथा इस क्षेत्र में पर्यटन गतिविधियों को भी बल मिलेगा।
इसके अतिरिक्त मच्छयाल में ही राणा खड्ड पर शनि देव मंदिर तथा मछिंद्रनाथ मंदिर को जोडऩे के लिए 50 लाख रूपये की लागत से एक फुट ब्रिज का भी निर्माण किया जा रहा है। लगभग साढ़े 27 मीटर लंबे इस पुल के बन जाने से भी मच्छयाल आने वाले श्रद्धालुओं को ओर अधिक सुविधा मिलेगी।
क्या कहते हैं अधिकारी:
इस बात की पुष्टि करते हुए अधिशाषी अभियन्ता लोक निर्माण विभाग जोगिन्दर नगर जे.पी. नायक ने बताया कि जोगिन्दर नगर-सरकाघाट-घुमारवीं मुख्य सडक़ पर मच्छयाल स्थित राणा खड्ड पर निर्मित हो रहे 40 मीटर लंबे बो स्ट्रिंग आर्क डबललेन स्पैन पुल का वर्तमान में लगभग 80 प्रतिशत कार्य पूरा कर लिया गया है। इस पुल के निर्माण कार्य को मार्च, 2024 तक पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होने बताया कि इस डबल लेन पुल के दोनों ओर पैदल यात्रियों के लिए फुटपाथ भी निर्मित हो रहा है। इस पुल के निर्माण कार्य पर लगभग आठ करोड़ रूपये की धनराशि व्यय हो रही है जिसमें वाहनों की आवाजाही को सुचारू बनाए रखने के लिए निर्मित अस्थाई वैली ब्रिज भी शामिल है। इसके अलावा मच्छयाल धार्मिक स्थान में ही लगभग 50 लाख रूपये की लागत से फुट ब्रिज का भी निर्माण किया जा रहा है जिसे भी जल्द लोगों को समर्पित किया जाएगा। DOP 15/11/2023
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