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Saturday, 18 November 2023

दो विधानसभा क्षेत्रों को जोड़ेगा ब्यास नदी पर बन रहा कोठी पत्तन पुल, आवागमन होगा सुगम

स्टील ट्रस तकनीक से बन रहा है 160 मीटर लंबा डबल लेन पुल, एक साथ गुजर सकेंगे दो बड़े वाहन

पुल निर्माण पर 20 करोड़ रुपये की धनराशि हो रही है व्यय, जून 2024 तक पूरा होगा काम

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत कोठी पत्तन (लडभड़ोल) तथा धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र के तहत सिद्धपुर के समीप निर्माणाधीन ब्यास नदी के ऊपर कोठी पत्तन पुल का निर्माण कार्य प्रगति पर है। इस पुल के निर्मित हो जाने से न केवल जोगिन्दर नगर व धर्मपुर विधानसभा क्षेत्रों के हजारों लोगों को आवागमन की बेहतर सुविधा सुनिश्चित होगी बल्कि दोनों विधानसभा क्षेत्रों के कई गांवों के बीच दूरी का फासला भी कम हो जाएगा। ब्यास नदी पर लगभग 20 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित हो रहे इस महत्वपूर्ण पुल का कार्य प्रगति पर है तथा जून, 2024 तक यह पुल वाहनों के आवागमन के लिए पूरी तरह से बनकर तैयार हो जाएगा।
ब्यास नदी पर कोठी पत्तन (लडभड़ोल) में निर्मित किये जा रहे इस पुल के पूरी तरह बनकर तैयार हो जाने से जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र के लडभड़ोल क्षेत्र सहित धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र के लोगों को चंडीगढ़, दिल्ली सहित सरकाघाट, हमीरपुर, धर्मपुर, बैजनाथ, पालमपुर, धर्मशाला सहित प्रदेश के अन्य क्षेत्रों के बीच आने जाने का फासला कम हो जाएगा। इससे न केवल यहां के लोगों के धन की बचत होगी बल्कि आवागमन में समय भी कम हो जाएगा।

स्टील ट्रस तकनीक से बन रहा है 160 मीटर लंबा डबल लेन पुल, एक साथ गुजर सकेंगे दो बड़े वाहन
स्टील ट्रस तकनीक के आधार पर निर्मित हो रहा डबल लेन कोठी पतन पुल की कुल लंबाई 160 मीटर होगी। इस पुल पर एक समय पर दो बड़े वाहन आसानी से आ जा सकेंगे।
वर्तमान में नाव ही है आवागमन का एकमात्र सहारा, बरसात में तय करना पड़ता है लंबा सफर 
वर्तमान समय में ब्यास नदी के दोनों ओर धर्मपुर व जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्रों में बसे हजारों लोगों को आवागमन के लिए कोठी पत्तन में नाव का ही एकमात्र सहारा है। बरसात के दौरान ब्यास नदी में जलस्तर बढ़ने से नाव का संपर्क भी टूट जाता है। ऐसे में ब्यास नदी के दोनों ओर के इन हजारों लोगों को आने जाने में बड़ी असुविधा होती है तथा 15-20 किलोमीटर का अतिरिक्त सफर तय करना पड़ता है। लेकिन अब इस पुल के निर्मित हो जाने पर जहां देश व प्रदेश के बड़े शहरों के बीच लगभग तीन से चार घंटे का सफर कम होगा तो वहीं लडभड़ोल व धर्मपुर क्षेत्र के लोगों को आवागमन के लिए तय होने वाला लंबा सफर अब महज कुछ ही मिनटों का रह जाएगा।
इसके अतिरिक्त जोगिन्दर नगर के लडभड़ोल व धर्मपुर क्षेत्रों के मध्य लोगों की काफी रिश्तेदारी भी है। ऐसे में दोनों ओर के लोगों को विभिन्न सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों में भाग लेने में भी सुविधा होगी तथा आवागमन सुगम होने से सामाजिक रिश्ते ओर भी मजबूत होंगे।
क्या कहते हैं अधिकारी:
इस बात की पुष्टि करते हुए अधिशाषी अभियन्ता लोक निर्माण विभाग धर्मपुर *विवेक शर्मा* ने बताया कि ब्यास नदी पर कोठी पत्तन में निर्मित हो रहे 160 मीटर लंबे (स्टील ट्रस) पुल का निर्माण कार्य जारी है तथा जून, 2024 तक इसे पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होने बताया कि इस डबल लेन पुल के निर्माण कार्य पर लगभग 20 करोड़ रुपये की धनराशि व्यय हो रही है। DOP 18/11/2023











Friday, 17 November 2023

मार्च, 2024 तक पूरा होगा मच्छयाल पुल का निर्माण कार्य,आवागमन होगा सुगम

 जोगिन्दर नगर-सरकाघाट-घुमारवीं सडक़ पर आठ करोड़ रूपये की लागत से निर्मित हो रहा है पुल

बो स्ट्रिंग आर्क शैली में बन रहा अपनी तरह का एक अनूठा पुल, मच्छयाल में पर्यटन गतिविधियों को मिलेगा बल
मंडी जिला के जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत प्रमुख धार्मिक स्थान मच्छयाल में राणा खड्ड पर निर्मित हो रहा पुल का निर्माण कार्य आगामी मार्च 2024 तक पूरा कर लिया जाएगा। इस पुल का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर जोगिन्दर नगर-सरकाघाट-घुमारवीं सडक़ पर वाहनों का आवागमन बेहतर व सुगम होगा। बो स्ट्रिंग आर्क शैली में बन रहा यह पुल अपनी तरह का एक अलग पुल है तथा इसका कार्य पूर्ण होने पर प्रमुख धार्मिक स्थल मच्छयाल में धार्मिक पर्यटन गतिविधियों को भी बल मिलेगा।
राणा खड्ड पर निर्मित हो रहे इस पुल पर लगभग आठ करोड़ रूपये की धनराशि व्यय की जा रही है। वर्तमान में इस पुल का लगभग 75 से 80 फीसदी तक का कार्य पूरा कर लिया गया है। शेष बचे कार्य को भी जल्द पूरा कर इसे मार्च, 2024 तक लोगों को समर्पित करने का लक्ष्य रखा गया है।  
मच्छयाल में राणा खड्ड पर बन रहा यह 40 मीटर स्पैन बो स्ट्रिंग आर्क पुल डबललेन है। इस पुल के बन जाने से इस मार्ग पर भारी व माल वाहक वाहनों की आवाजाही भी आसानी से शुरू होने पर जोगिन्दर नगर-सरकाघाट-घुमारवीं सडक़ के दोनों और की लाखों आबादी लाभान्वित होगी।
मच्छयाल जोगिन्दर नगर क्षेत्र का एक प्रमुख धार्मिक व पर्यटक स्थल भी हैं। यहां प्रतिवर्ष लाखों लोग बाबा मछिंद्रनाथ के दर्शनार्थ यहां पहुंचते हैं। मच्छयाल पर्यटक स्थल की महत्ता इसी से पता चलती है कि यहां पर दो बार हिंदी फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है। इस पवित्र धार्मिक स्थान को देखने व जानने के लिए प्रतिवर्ष कई विदेशी सैलानी भी यहां पहुंचते हैं। पुल का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर मच्छयाल आने वाले श्रद्धालुओं व पर्यटकों को भी लाभ मिलेगा तथा इस क्षेत्र में पर्यटन गतिविधियों को भी बल मिलेगा।
इसके अतिरिक्त मच्छयाल में ही राणा खड्ड पर शनि देव मंदिर तथा मछिंद्रनाथ मंदिर को जोडऩे के लिए 50 लाख रूपये की लागत से एक फुट ब्रिज का भी निर्माण किया जा रहा है। लगभग साढ़े 27 मीटर लंबे इस पुल के बन जाने से भी मच्छयाल आने वाले श्रद्धालुओं को ओर अधिक सुविधा मिलेगी।
क्या कहते हैं अधिकारी:
इस बात की पुष्टि करते हुए अधिशाषी अभियन्ता लोक निर्माण विभाग जोगिन्दर नगर जे.पी. नायक ने बताया कि जोगिन्दर नगर-सरकाघाट-घुमारवीं मुख्य सडक़ पर मच्छयाल स्थित राणा खड्ड पर निर्मित हो रहे 40 मीटर लंबे बो स्ट्रिंग आर्क डबललेन स्पैन पुल का वर्तमान में लगभग 80 प्रतिशत कार्य पूरा कर लिया गया है। इस पुल के निर्माण कार्य को मार्च, 2024 तक पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है। उन्होने बताया कि इस डबल लेन पुल के दोनों ओर पैदल यात्रियों के लिए फुटपाथ भी निर्मित हो रहा है। इस पुल के निर्माण कार्य पर लगभग आठ करोड़ रूपये की धनराशि व्यय हो रही है जिसमें वाहनों की आवाजाही को सुचारू बनाए रखने के लिए निर्मित अस्थाई वैली ब्रिज भी शामिल है। इसके अलावा मच्छयाल धार्मिक स्थान में ही लगभग 50 लाख रूपये की लागत से फुट ब्रिज का भी निर्माण किया जा रहा है जिसे भी जल्द लोगों को समर्पित किया जाएगा। DOP 15/11/2023








मझारनु के डुमणु राम के लिए कृषि व बागवानी बना है रोजगार का जरिया

 73 वर्ष की आयु में भी खेती बाड़ी से कमा रहे हैं आजीविका ,जोगिन्दर नगर बाजार में आकर बेचते हैं उत्पाद

जोगिंदर नगर उपमंडल की ग्राम पंचायत नेर घरवासड़ा के गांव मझारनु निवासी 73 वर्षीय डुमणु राम के लिए कृषि व बागवानी रोजगार का जरिया बना हुआ है। डुमणु राम प्रतिदिन अपने खेतों व पुश्तैनी जमीन से तैयार विभिन्न तरह के कृषि व बागवानी उत्पादों को प्रतिदिन जोगिंदर नगर बाजार में लाकर बेचते हैं, इससे उन्हें प्रतिदिन आजीविका चलाने योग्य आय अर्जित हो जाती है।
जब इस संबंध में डुमणु राम से बातचीत की तो उनका कहना है कि जीवन के शुरूआती दौर से ही वे देश व प्रदेश के बाहर विभिन्न स्थानों पर रेहड़ी-फड़ी लगाकर फल इत्यादि बेचकर अपनी आजीविका कमाते आ रहे थे। इस बीच उम्र बढ़ने के साथ-साथ पारिवारिक दायित्वों को निभाने के चलते वे वापिस घर आए तथा पुश्तैनी जमीन में कृषि व बागवानी करना शुरू कर दिया। जंगली जानवरों के आतंक के चलते शुरूआती दौर में उन्हे कृषि व बागवानी घाटे का सौदा साबित होने लगी। फिर वर्ष 2018-19 में कृषि विभाग के माध्यम से मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना की जानकारी मिली तथा लगभग पांच-छह बीघा जमीन में सोलर युक्त बाड़बंदी को लगाया। बाड़बंदी होने से उन्हे जंगली जानवरों से काफी राहत मिली, लेकिन पिछले दो वर्षों से उनकी सोलर युक्त बाड़बंदी ठीक से काम नहीं कर रही है। ऐसे में वर्तमान में भले ही सोलर युक्त बाड़बंदी का उन्हे बेहतर लाभ नहीं मिल रहा है, बावजूद इसके वे लगातार कृषि व बागवानी कर रहे हैं।
डुमणु राम का कहना है कि वर्तमान में उन्होंने अमरूद, प्लम, जापानी फल, अनार, आड़ू, नाख, नाशपती, गलगल, नींबू, जामुन इत्यादि फलदार पौधों को लगाया है। इसके साथ-साथ वे साग, घीया, कद्दू, करेले इत्यादि सब्जियों का भी उत्पादन करते हैं। उनका कहना है कि जब-जब ये फल व सब्जियां पककर तैयार होती हैं तो वे इन्हें जोगिंदर नगर बाजार में आकर स्वयं बेचते हैं। जिससे उन्हे रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने योग्य आय हो जाती है। साथ ही लोगों को भी प्राकृतिक तौर पर शुद्ध व कम दाम में गुणवत्ता युक्त फल व सब्जियां मिल जाती हैं। इस तरह डुमणु राम के लिए आज भी कृषि व बागवानी आय का एक महत्वपूर्ण जरिया बना हुआ है।
डुमणु राम का कहना है कि आज के दौर में जहां अधिकतर किसान बंदरों एवं अन्य जंगली जानवरों के आतंक का बहाना बनाकर कृषि व बागवानी को छोड़ रहे हैं तो वहीं आजीविका कमाने के लिए औद्योगिक कस्बों व शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं जो अच्छी बात नहीं है। उन्होंने कृषि व बागवानी से दूर होते किसानों विशेषकर युवाओं से आह्वान किया है कि वे न केवल अपने खेतों से जुड़ें बल्कि कृषि व बागवानी के माध्यम से भी आजीविका कमाने के भरपूर अवसर मौजूद हैं। आजीविका कमाने के लिए 73 वर्ष की आयु में भी मेहनत कर रहे डुमणु राम का कहना है कि व्यक्ति को निरंतर परिश्रम करते रहना चाहिए। इससे न केवल आजीविका चलाने में ही मदद मिलती है बल्कि शारीरिक व मानसिक तौर पर भी व्यक्ति स्वस्थ रहता है।
क्या कहते हैं अधिकारी:
विषयवाद विशेषज्ञ (एसएमएस) कृषि पधर पूर्ण चंद ठाकुर का कहना है कि मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना के तहत लगाई गई सोलर युक्त बाड़बंदी में यदि किसानों को किसी प्रकार की दिक्कत आती है तो वे सीधे कृषि विभाग के कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं। उनका कहना है कि किसानों की ऐसी समस्याओं को न केवल प्राथमिकता के आधार पर निपटाया जाएगा बल्कि बाड़बंदी करने वाली कंपनी के माध्यम से होने वाली तकनीकी खामियों को दुरुस्त करने का भी प्रयास किया जाएगा ताकि किसानों को सोलर युक्त बाड़बंदी का लंबे समय तक लाभ मिल सके।  DOP 20/10/2023




Friday, 3 November 2023

लोअर चौंतड़ा गांव के राजेश कुमार ने मुर्गी पालन को बनाया स्वरोजगार का आधार

  प्रतिमाह औसतन कमा रहे 25 हजार, पशुपालन विभाग की हिम कुक्कुट योजना बनी मददगार 

जोगिन्दर नगर उपमंडल की ग्राम पंचायत चौंतड़ा के गांव लोअर चौंतड़ा निवासी 37 वर्षीय राजेश कुमार के लिए मुर्गी पालन स्वरोजगार का मजबूत आधार बना है। मुर्गी पालन से वे न केवल अपनी आजीविका को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं बल्कि प्रतिमाह औसतन 25-30 हजार रूपये की आय भी अर्जित कर पा रहे हैं। वर्तमान में राजेश कुमार के लिए पशु स्वास्थ्य एवं प्रजनन विभाग की हिम कुक्कुट योजना की 3 हजार ब्रायलर चूजा योजना न केवल मददगार साबित हो रही है बल्कि मुर्गी पालन आज उनकी आर्थिकी को सुदृढ़ बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है।

10 वर्षों तक दिल्ली में किया ड्राइविंग का काम, अब मुर्गी पालन बना है रोजगार का जरिया 

आत्मविश्वास से लबरेज 12वीं कक्षा तक शिक्षित राजेश कुमार का कहना है कि लगभग 10 वर्षों तक दिल्ली में रोजी रोटी जुटाने को ड्राइविंग का काम किया। फिर वर्ष 2014 में वापिस घर आए तथा स्वरोजगार को रोजगार का माध्यम बनाने की दिशा में प्रयास करते हुए 50 मुर्गियों से मुर्गी पालन का व्यवसाय शुरू किया। इस बीच वर्ष 2015 में कुक्कुट पालन केंद्र चौंतड़ा से 15 दिन, वर्ष 2017 व 2018 में केंद्रीय कुक्कुट विकास संगठन (सीपीडीओ) चंडीगढ़ से एक सप्ताह का मुर्गी पालन में प्रशिक्षण हासिल किया। दिसम्बर 2022 में केंद्रीय कुक्कुट विकास संगठन (सीपीडीओ) चंडीगढ़ से ही एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में भी भाग लिया। मार्च 2023 में पशु स्वास्थ्य एवं प्रजनन विभाग ने 3 हजार ब्रायलर चूजा योजना स्वीकृत की। इस योजना के अंतर्गत पहले बैच में एक हजार ब्रायलर चूजा तैयार कर वे बाजार में बेच चुके हैं तथा इससे उन्हें औसतन 40 से 50 हजार रुपये की आमदन प्राप्त हुई है। साथ ही अब दूसरे बैच के एक हजार चूजों को वे पाल रहे हैं। इस तरह 50 मुर्गियों के पालन से शुरू हुआ उनका यह कार्य अब एक हजार चूजों के पालन पोषण तक पहुंच गया है।

उन्होने बताया कि सरकार ने विभाग के माध्यम से जहां उपदान दरों पर मुर्गियों के लिए शेड बनाकर दिया है तो वहीं मुर्गियों की फीड तथा दवाईयां भी उपलब्ध करवाई हैं। राजेश कुमार कहते हैं कि कोविड-19 के कठिन दौर में जब लाखों लोग बेरोजगार होकर घर बैठ गए थे तो उन्होने मुर्गी पालन से ही न केवल अच्छी खासी आमदनी प्राप्त की बल्कि मुर्गी पालन परिवार की आजीविका को चलाने में मददगार साबित हुआ। लेकिन अब विभाग की मदद से वे इस व्यवसाय को बेहतर तरीके से कर पा रहे हैं तथा उनके आत्मबल को भी मजबूती मिली है।

दूध गंगा योजना के तहत डेयरी पालन में भी कर चुके हैं कार्य, तीन लाख का लिया है ऋण 

राजेश कुमार कहते हैं कि परिवार की आजीविका को चलाए रखने के लिए वर्ष 2018 में मुर्गी पालन के साथ-साथ डेयरी पालन का कार्य भी शुरू किया। दूध गंगा योजना के तहत बैंक से तीन लाख रुपये का ऋण लेकर 11 गायों को पालकर दूध उत्पादन शुरू किया। जिससे भी उन्हे अच्छी आमदनी हासिल हुई, लेकिन वर्ष 2021 में लंपी वायरस रोग के चलते उनकी कुछ गायें मौत का शिकार हो गई। वर्तमान में उनके पास दो गाय हैं तथा दूध बेचकर भी वे अतिरिक्त आमदनी जुटा रहे हैं। इसके अतिरिक्त वे अपनी पुश्तैनी जमीन में विभिन्न तरह की पारंपरिक व नकदी फसलें भी तैयार कर रहे हैं। 

युवा स्वरोजगार के माध्यम से घर बैठे कर सकते हैं अच्छी कमाई 

उन्होंने प्रदेश के युवाओं से आह्वान किया है कि वे यदि स्वरोजगार को अपनाते हैं तो इसके माध्यम से भी जीवन में आगे बढ़ने की अनेकों संभावनाएं मौजूद हैं। उनका कहना है कि स्वरोजगार अपनाने से पहले युवा अपनी कार्य क्षमता व प्राथमिकताओं को तय करते हुए ऐसा स्वरोजगार अपनाएं जिसमें वे बेहतर कर सकते हैं। उनका कहना है कि युवाओं का यह छोटा सा कदम न केवल उन्हे रोजगार के द्वार खोलेगा बल्कि घर बैठे ही वे अच्छी आमदनी भी अर्जित कर सकते हैं।

क्या कहते हैं अधिकारी 

पशु चिकित्सा अधिकारी एवं प्रभारी पशु चिकित्सालय चौंतड़ा डॉ. मुनीश चंद्र का कहना है कि लोअर चौंतड़ा निवासी राजेश कुमार मुर्गी पालन से अपनी आर्थिकी को सुदृढ़ बना रहे हैं। विभाग ने हिम कुक्कुट योजना के अंतर्गत तीन हजार ब्रायलर चूजा इकाई स्वीकृत की है। जिसके तहत तीन हजार चूजे लाभार्थी को तीन किस्तों में प्रदान किये जा रहे हैं।

हिम कुक्कुट योजना के अंतर्गत 60 प्रतिशत सरकारी अनुदान लाभार्थी को कुक्कुट बाड़ा, आहार, बर्तन व चूजों की कीमत पर दिया जाता है जबकि 40 प्रतिशत लाभार्थी को स्वयं वहन करना होता है। इसके अलावा फीड व दवाईयां भी उपलब्ध करवाई जाती है तथा बिजली का बिल भी विभाग द्वारा वहन किया जाता है। उन्होंने ज्यादा से ज्यादा बेरोजगार युवाओं से सरकार की स्वरोजगार योजनाओं का लाभ उठाने का आह्वान किया है। DOP 02/11/2023












Tuesday, 10 October 2023

मुख्य मंत्री कन्या दान और शगुन योजनाओं के तहत बेटियों की शादी में मददगार बन रही प्रदेश सरकार

चौंतड़ा ब्लॉक में गत वर्ष 81 बेटियों को मिले 29.71 लाख रुपये, इस वर्ष 29 मामलों 10.59 लाख रुपये

हिमाचल प्रदेश सरकार गरीब व जरूरतमंद बेटियों की शादी में मददगार बन रही है। प्रदेश सरकार मुख्य मंत्री कन्यादान तथा शगुन योजनाओं के माध्यम से बेटियों के हाथ पीले करने में आर्थिक तौर पर मदद प्रदान कर रही है। ये दोनों योजनाएं हमारे समाज के ऐसे गरीब व जरूरतमंद परिवारों के लिए बेटी की शादी में न केवल एक शगुन का काम कर रही हैं बल्कि महंगाई के इस दौर में ऐसे परिवारों के लिए आर्थिक तौर पर सहारा भी प्रदान कर रही हैं।
इन्ही योजनाओं के माध्यम से जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत चौंतड़ा ब्लॉक में वित्तीय वर्ष 2022-23 में 81 पात्र बेटियों की शादी पर प्रदेश सरकार ने 29 लाख 71 हजार रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की है जबकि चालू वित्तीय वर्ष में अब तक कुल 29 मामलों में 10 लाख 59 हजार रुपये की आर्थिक मदद दी जा चुकी है।
वित्तीय वर्ष 2022-23 में लाभान्वित 81 बेटियों की बात करें तो मुख्य मंत्री कन्यादान योजना के तहत 23 पात्र बेटियों को 11.73 लाख रुपये जबकि शगुन योजना के माध्यम से 58 बेटियों को 17.98 लाख रुपये की मदद शामिल है। जबकि चालू वित्तीय वर्ष में अब तक लाभान्वित 29 पात्र बेटियों में मुख्य मंत्री कन्यादान योजना के तहत 8 बेटियों को 4.08 लाख रुपये जबकि शगुन योजना के माध्यम से 21 बेटियों को 6.51 लाख रुपये की आर्थिक सहायता शामिल है।
इस तरह महंगाई भरे दौर में बेटी की शादी में हिमाचल प्रदेश सरकार मुख्य मंत्री कन्यादान तथा शगुन योजनाओं के माध्यम से गरीब परिवारों की बेटी की शादी में सहारा बनकर खड़ी हो रही है। सरकार की इस आर्थिक मदद से न केवल गरीब परिवारों को बेटी की शादी की चिंता कम हो रही है बल्कि समाज में बेटियों के प्रति सोच में भी जहां व्यापक बदलाव देखा जा रहा है तो वहीं हमारी बेटियों का मान सम्मान भी बढ़ा है।

योजनाओं की क्या है पात्रता की शर्तें

मुख्य मंत्री कन्या दान योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए जहां परिवार की समस्त स्रोतों से आय 50 हजार रुपये वार्षिक से अधिक न हो। बेटी के पिता की मृत्यु हो गई हो या फिर शारीरिक या मानसिक तौर पर आजीविका कमाने में असमर्थ हो। इसके अलावा परित्यक्ता तलाकशुदा महिलाओं की पुत्रियां, जिनके संरक्षक की वार्षिक आय 50 हजार रुपये से अधिक न हो। साथ ही शादी के समय बेटी की आयु 18 वर्ष जबकि दूल्हे की आयु 21 वर्ष पूर्ण होनी चाहिए। ऐसे पात्र परिवारों को बेटी का शादी पर सरकार 51 हजार रुपये बतौर आर्थिक मदद प्रदान करती है।
इसी तरह शगुन योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए परिवार गरीबी रेखा से नीचे या बीपीएल सूची में चयनित होना चाहिए। इस योजना के तहत आय प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होती है। पात्र परिवार को सरकार बेटी की शादी में 31 हजार रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान करती है।

कैसे करें आवेदन

पात्र परिवार इन योजनाओं का लाभ बेटी की शादी के 6 माह पहले या फिर शादी के 6 माह बाद तक ले सकते हैं। इसके लिए उन्हे 6 माह पहले संबंधित पंचायत प्रधान से शादी निर्धारित होने का प्रमाणपत्र तथा जबकि शादी होने के 6 माह तक विवाह प्रमाणपत्र सहित अन्य आवश्यक दस्तावेजों के आवेदन करना होगा। मुख्य मंत्री कन्यादान योजना के लिए ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है जबकि शगुन योजना के लिए ऑफ लाइन आवेदन करना होगा। इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी पर्यवेक्षिका या बाल विकास परियोजना अधिकारी कार्यालय से संपर्क स्थापित कर सकते हैं।

क्या कहते हैं अधिकारी

बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) चौंतड़ा बी.आर. वर्मा का कहना है कि मुख्य मंत्री कन्यादान व शगुन योजनाओं के तहत चौंतड़ा विकास खंड में वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान 81 बेटियों की शादी पर सरकार ने 29 लाख 71 हजार रुपये का शगुन दिया है। चालू वित्तीय वर्ष के दौरान इन दोनों योजनाओं के तहत अब तक कुल 29 मामलों में 10 लाख 59 हजार  रुपये की आर्थिक मदद की जा चुकी है। उन्होंने बताया कि मुख्य मंत्री कन्यादान योजना के तहत 51 हजार जबकि शगुन योजना के माध्यम से 31 हजार रुपये की राशि सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में जमा की जाती है।








Tuesday, 5 September 2023

राष्ट्रीय शिक्षक दिवस: कुछ प्रश्न, कुछ विचार मंथन

दोस्तों आज मैं सुबह जैसे ही उठा तो मेरी नन्ही सी बिटिया अपने छोटे-छोटे हाथों से एक सुंदर सा कार्ड बनाने में जुटी हुई थी। मैंने उससे पूछा कि यह क्या बना रही हो? तो उसने कहा कि आज शिक्षक दिवस है और मैं अपनी प्रिय अध्यापिका को अपने हाथों से बनाया हुआ एक कार्ड गिफ्ट करना चाहती हूं। जब उसने हैप्पी टीचर डे का वह सुंदर सा कार्ड बना लिया तो बिटिया ने कहा कि यह अच्छा नहीं बना है मैं दूसरा बनाना चाहती हूं लेकिन मैंने कहा कि इसे ही सुंदर बनाने में मैं आपकी मदद करता हूं। लेकिन अब यहां पर बात कार्ड के सुंदर या अच्छा होने की नहीं है बल्कि विद्यार्थी की अध्यापक के प्रति वह भावना है जिसे हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते हैं। 

दोस्तों आज राष्ट्रीय शिक्षक दिवस है, नि:संदेह सर्वप्रथम आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। दोस्तों मुझे भी बतौर शिक्षक विभिन्न शिक्षण संस्थानों में स्कूल से लेकर कॉलेज स्तर तक कार्य करने का मौका मिला है। इस दौरान शिक्षा प्राप्त किए हुए विधार्थी आज हमारी सामाजिक व्यवस्था में डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासक, सैनिक, वकील, शिक्षक सहित विभिन्न व्यवसायों में अपनी प्रतिभा के झंडे भी गाड रहे हैं। लेकिन बतौर अध्यापक मुझे जो अनुभव मिला, जो बस इतना ही बता रहा है कि कहीं न कहीं हमारी शिक्षा प्रणाली जीवन के वास्तविक लक्ष्यों व उद्देश्यों से भटकती हुई महसूस की है। हमारी शिक्षा में गौण होते मूल्य, आदर्श, नैतिकता तथा गिरती गुणवत्ता। नई शिक्षा नीति में इस दिशा में प्रयास जरूर शुरू हुए हैं, लेकिन नतीजे आने से पहले कुछ कहना जल्दबाजी होगा। हकीकत हो यह हो गई है कि डिग्रीयों व अंकों के मकडज़ाल में फंसी हमारी शिक्षा अब व्यापारिक लोगों के लिये फायदे का सौदा भी साबित हो रही है। 

मुझे लगता है कि आज सर्वप्रथम शिक्षकों के चयन प्रक्रिया पर गंभीर होना चाहिए। हमें याद रखना चाहिए की शिक्षण के माध्यम से केवल कुछेक लोगों को रोजगार देना मात्र नहीं है, बल्कि देश के करोड़ों बच्चों के साथ-साथ देश का भविष्य निर्माण भी जुड़ा हुआ है। आज हमें कागज़ी पहलवानों से अधिक दिन-रात अपने विद्यार्थियों व समाज के लिए समर्पण की भावना से कार्य करने वालों की ज्यादा जरूरत है। हमें तो वह चाहिए जो हम सबमें सर्वश्रेष्ठ हो। जो समर्पण, त्याग व उच्च मूल्यों व परंपराओं से भरा हो। ऐसा भी नहीं है कि हमारे पास ऐसे शिक्षक नहीं है। हमारे आसपास ऐसे बहुत से लोग हैं जो अभी भी अपने मिशन पर निस्वार्थ भाव से लगे हुए हैं। लेकिन ऐसे लोगों को या तो हमारी नजरें ढूंढ ही नहीं पाती या फिर हम इस चमक-धमक व जुगाड भरी दुनिया में उन्हे तलाशना ही नहीं चाहते। हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि निस्वार्थ भाव से देश सेवा में लगे ऐसे लोग स्वाभिमान व आत्म सम्मान से भरे होते हैं। 

दूसरा विद्यार्थियों को जीवन में जीवन यापन के लिए तैयार तो करना ही है, लेकिन उससे कहीं अधिक उनके भीतर एक इंसानियत का पाठ भी पढ़ाना बेहद जरूरी हो जाता है। आज हम अक्सर देखते हैं कि व्यक्ति जीवन में धन दौलत, ऊंचा पद इत्यादि सब कुछ पा लेता है, लेकिन स्वार्थ भावना से पीडि़त ऐसे व्यक्ति देश व समाज के लिए गौण साबित होने पर हमारी शिक्षा पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जाता है? 

तीसरा व अहम पहेलु देश में चल रही विभिन्न प्रकार की स्कूली शिक्षा से है। एक ऐसी स्कूली शिक्षा प्रणाली पर आगे बढऩा होगा जिसमें व्यक्ति अमीरी और गरीबी, उच्च या नीच, धर्म, जाति या संप्रदाय के आधार पर विभक्त ना होकर केवल एक विद्यार्थी के नाते शिक्षा ग्रहण करे। 

मुझे लगता है कि राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के अवसर पर देश का एक आम नागरिक होने के नाते हमें शिक्षक और शिक्षा से जुड़े ऐसे कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार मंथन करना चाहिए जो भविष्य में राष्ट्र निर्माण में अहम कड़ी साबित हो सकते हैं। लेकिन अंत में यही प्रश्न खड़ा हो जाता है कि क्या इन संवेदनशील बातों पर चर्चा व मंथन करने के लिए हमारा समाज तैयार है?


Friday, 25 August 2023

Shri Triloknath Dham Temple, Udaipur in Lahaul valley of Himachal Pradesh

Triloknath temple is situated in Udaipur sub division of District Lahaul and Spiti of Himachal Pradesh. It is nearly 45 KM from Keylong, Distt Head Quarter of Lahaul and Spiti nearly 100 KM from Manali via Atal Tunnel. Ancient name of Triloknath temple is Tunda vihar.This is holy shrine is revered equally by Hindus and the Buddhists. Hindus consider Triloknath  deity as ‘Lard Shiva’ while the Buddhists consider the deity as ‘ Arya Avalokiteshwar ‘ Tibetan language speaking people called him as ‘Garja Fagspa‘.

This holy shrine is so important that is it is considered as most scarred pilgrim thirth  next only to o kailash and  Mansarover. The uniqueness of  the temple lies in the fact that it  is the only temple in the whole world where both Hindu and Buddhists  pay their reverence to the same deity. The temple is situated in the panoramic Chandra Bhaga valley to the western Himalayas.It is highly spiritual place where one gets the  spiritual blessing of the lord of three universes i.e. Shri Triloknath jee by visit having this Darshan and offering ones prayers.

This is a single temple of Lahaul valley in Shiker Style.Deity of Triloknath Ji  is six hundred and lalitasan  Lord Buddha is sitting on head of Triloknath.The deity is made  up of marble.

There is also local story after the manifestation of this deity. It was said that there was a lake on the present Hinsa Nalla. Seven persons of milky cower use to come out of this lake & drink the milk of grazing cows. One day one of them was caught by Tundu Cowherd boy and was taken to village on his back.There the caught person converted into a marble deity.This deity was established in the temple.

This lake is called as  ‘Ome –cho milky ocean ) in Tibetan stories.Other local story described that temple was completed in one night by ‘ Mah Danav’. The present Hinsa Nalla is unique as its water is still milky white and is never  changes its color even in heaviest rainfall. Worship is performed in this temple according to Buddhist traditions.It is a practice since time immemorial.

(Source of Information-District Administration L & S Website)


The Mrikula (Markula) Devi Temple, Udaipur in Lahual valley of Himachal Pradesh

The Mrikula (Markula) Devi temple goes back to Ajayvarman’s reign in Kashmir, though no original work of so early a date survives. But part of the Mrikula (Markula) temple has been copied during repairs in the 11/12th and 16th C. The phase of Kashmiri art in the 11th and 12th C in its transition to the Lamaistic art of Western Tibet is represented by the inner facade of the temple; main characteristic of this transitional phase being three headed Vishnu images.

Markula’s wood carvings belong to two different periods, the earlier one consisting of the facade of the sanctum sanctorum and the ceiling and four main pillars of the mandapa; arid the later one consisting of two additional pillars, the dwarpala statues on both sides of the facade, window panels and the architraves supporting the ceiling. The exterior of the temple is most ordinary as it had to be renewed time and again because of vagaries of nature. The temple is the usual structure of timber-bonded stone. The temple is covered with a steep gable roof of wooden shingles in a steep pyramid looking like the Shikhara temples in the plains.
The wall panels depict scenes from the Mahabharata, Ramayana, Sunderkand, Yuddhakand, grant of ground by Raja Bali to Vaaman, three headed incarnation of Lord Vishnu, Churning of the ocean (Samudramanthan)Amritpaan, etc.
The ceiling consists of nine panels of different size and shape. Eight of these border the big centre piece. The centerpiece is in the Lantern style. The ’kirtimukha’ masks on this centre piece are characteristic of the 7th and 8th C. Four figural panels on the four basic directions depict Gandharvas busy with their mates and holding objects like crowns, bracelets, jewels and charnaras, etc. Their dance, poses are those of the Bharta Natya andthe costumes resemble the late Gupta period. Also shown are Nataraj and Gauri with dancing Ganas. Shiva on both sides is flanked by his alter egos, the Bhairavas. The next panel deviates from the Hindu pantheon or myth for it represents the “Assault of Mara”. In the centre Buddha is shown sitting on the Vajrasana in Bhumisparshasana calling the Earth goddess to witness his victory over Mara or the god of Lust and death.
The facade of the temple is most richly, elaborately and intricately carved. The niches of the door jambs have been carved into complicated gables of late Kashmiri style. The facade displays, the Ganga, the Yamuna, several Yakshas and. Kinnars, ten incarnations of Lord Vishnu the Navgrahas and Lord Surya (the sun god). The Sun god is repeatedly shown on his chariot drawn by seven horses making it explicit that the temple was dedicated to Lord Surya.
The silver idol of Kali in her aspect as Mahishasurmardini was installed by Thakur Himpala in 1569-70.The statue was cast by one Panjamanaka Jinaka from Bhadravah. The workmanship of the statue cannot be called exquisite because the bodies of the goddess and the buffallo look bloated. The statue head is too big and her Crown resembles the ceremonial headgear of a Tibetan lama. The enclosing frame suggests brass idols of the 15th and 16th C. from Rajasthan, the top of it-the backs of early Moghul thrones. The impact of the Moghul and Rajput styles is understandable which perhaps penetrated via Balor which then had some control over Bhadravah. The Tibetan element is also not surprising in a frontier area like Lahaul where Tibetan Lahaulis treat Markula Devi as rDo-rje phag-mo (sanskrit Vajravarahi). Previous to this installation Lahaul had been for several centuries under the Ladakhi supremacy, and it was then that the Lamaistic sculpture was introduced. At the time of its reconversion into a Hindu shrine it was natural to seIect an image of Kali because of its superficial similarity to Vajravarahi. The poor and uneducated local population could hardly make any distinction between the Lamaistic and the Hindu interpretations of the great goddess. This Hindu revivalist style was patronised by Raja Pratap Singh (1558-82) of Chamba.Selection of episodes from the Ramayana and Mahabharata is typical to this style.
This unique shrine is the last wooden temple built fundamentally in the tradition of the early 8th C.This is a must-visit place.
This sub-divisional headquaters Udaipur is situated at the junction of the mighty Mayar nullah with the main river Chandrabhaga.Situated 53 kms away from Keylong, earlier this village was known as Margul or Markul. Around 1695 it was renamed Udaipur when Raja Udai Singh of Chamba (1690-172’8) raised it to the status of a district centre in the Chamba-Lahaul which his father Chatter Singh had annexed to his Chamba state.
Good kail-blue pine forests can be seen all around the village.Since the altitude is low, apples, walnuts, apricots, etc. are grown in the area. This village is warm but avalanches-prone; the latter making it unsuitable for district headquarters. However Udaipur offers the most thickly forested and green scenery in Lahaul.
(Source of Information-District Administration L & S Website)