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Monday, 4 July 2022

ढेलू हार के परस राम व अन्य के लिये शिवा प्रोजेक्ट बना बागवानी का आधार

एक हेक्टेयर क्षेत्र में अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन स्थल के तौर पर स्थापित किया है अमरूद का बगीचा

जोगिन्दर नगर उपमंडल की ग्राम पंचायत ढेलू के अंतर्गत ढेलू हार निवासी परसराम ने एचपी शिवा प्रोजेक्ट के माध्यम से अमरूद का बागीचा तैयार कर रहे हैं। लगभग एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में परसराम के साथ उनके अन्य पारिवारिक सदस्यों शुभम ठाकुर, सबनम और श्यामलाल ने मिलकर अपनी जमीन में बागवानी विभाग के माध्यम से अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन स्थल (एफएलडी) तैयार कर रहे हैं। 

जब इस बारे लाभान्वित किसान परसराम से बातचीत की तो उन्होने बताया कि उनके तथा परिवार के दूसरे हिस्सेदारों के पास लगभग एक हेक्टेयर यानि कि 12 बीघा जमीन बेकार में पड़ी थी। इस जमीन में जहां झाडियां व अन्य जंगली पेड़ पौधे उग आए थे तो वहीं देखरेख के अभाव में यह अप्रयुक्त थी। लेकिन जब उन्हे बागवानी विभाग के माध्यम से सरकार द्वारा चलाई जा रही एचपी शिवा प्रोजेक्ट की जानकारी मिली तो उन्होने स्वयं के साथ-साथ परिवार के दूसरे सदस्यों को भी प्रोत्साहित किया तथा मिलकर इस एक हेक्टेयर भूमि में फलदार पौधे रोपित करने का फैसला कर लिया। 

उन्होने बताया कि बागावानी विभाग के माध्यम से एक वर्ष पहले अमरूद के लगभग साढे 16 सौ पौधे नि:शुल्क रोपित किये हैं। इन पौधों को जंगली जानवरों व अन्य बेसहारा पशुओं से बचाने के लिये पूरी जमीन की सोलरयुक्त बाड़बंदी भी विभाग के माध्यम से नि:शुल्क हुई है। वर्तमान में पौधों को पानी की सुविधा वे अपने बोरवैल से उपलब्ध करवा रहे हैं लेकिन जल्द ही जलशक्ति विभाग के माध्यम से सिंचाई की सुविधा भी उपलब्ध होने वाली है। उन्होने बताया कि अमरूद के पौधों की देखरेख, कांट छांट इत्यादि बारे समय-समय पर विभाग के माध्यम से उन्हे मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है। इसके अलावा वे पौधों को गोबर की प्राकृतिक खाद भी दे रहे हैं। 

उन्होने उपमंडल के ज्यादा से ज्यादा किसानों व बागवानों से शिवा प्रोजेक्ट का लाभ उठाने का आहवान किया है ताकि जहां उनकी बेकार व बंजर पड़ी जमीन को बागवानी के साथ जोड़ा जा सके तो वहीं घर बैठे आमदनी का भी एक बेहतर जरिया प्राप्त होगा। साथ ही कहा कि बेरोजगार युवाओं के लिये घर बैठे बागवानी एक अच्छा स्वरोजगार का माध्यम भी बन सकती है। 

क्या कहते हैं अधिकारी:

एचपी शिवा प्रोजेक्ट के माध्यम से चौंतड़ा ब्लॉक में तैनात फैसिलिटेटर निशांत ठाकुर का कहना है कि ढेलू हार में परस राम व अन्य पारिवारिक सदस्यों की एक हेक्टेयर जमीन में शिवा प्रोजेक्ट के माध्यम से अमरूद का अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन स्थल (एफएलडी) तैयार किया जा रहा है। एक वर्ष पहले यहां पर अमरूद के 1666 पौधे रोपित किये गए हैं। आने वाले समय में यहां पर लगभग 10 हेक्टेयर क्षेत्रफल में अमरूद का एक कलस्टर तैयार किया जायेगा जिसके लिये स्थानीय किसान तैयार हो चुके हैं। उन्होने बताया कि वर्तमान में चौंतड़ा ब्लॉक में कुल पांच अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन स्थल (एफएलडी) तैयार किये जा रहे जिसमें ढेलू हार के अतिरिक्त गोलवां में अमरूद, जलाड में संतरा, कोठी-एक में अमरूद व कोठी-दो संतरा का बगीचा शामिल हैं। उन्होने बताया कि गोलवां में भी लगभग 20 हेक्टेयर क्षेत्र में अमरूद का कलस्टर तैयार किया जाएगा जिसके लिये प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। 

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Saturday, 21 May 2022

प्रकाश चंद, कृष्ण चंद, देवेन्द्र व अजय कुमार के लिये 'काफल' बना रोजगार का जरिया

 प्राकृतिक फल 'काफल' बेचकर प्रतिदिन कमा रहे औसतन एक हजार रुपये, दो महीने तक चलता है काफल

मौसमी व जंगली तौर पर पाया जाने वाला 'काफल' प्रकाश चंद, कृष्ण चंद, देवेन्द्र व अजय कुमार सहित कई लोगों के लिये आजकल आमदनी का एक बेहतरीन जरिया बना हुआ है। काफल बेचकर न केवल ये लोग प्रतिदिन एक से डेढ़ हजार रुपये की कमाई कर पा रहे हैं बल्कि डेढ से दो महीनों तक चलने वाले काफल के फल को बेचकर औसतन 60 से 70 हजार रुपये की कमाई कर लेते हैं। ऐसे में काफल बेचने वाले ग्रामीणों के लिये यह जंगली फल काफल वार्षिक आमदनी में कमाई का एक बड़ा जरिया बना है।
जोगिन्दर नगर शहर के थाना चौक में काफल बेचने वाले प्रकाश चंद से बातचीत की तो उन्होने बताया कि वे पिछले लगभग 10 वर्षों से लगातार काफल बेच रहे हैं तथा आजकल वे प्रतिदिन एक क्विंटल से अधिक मात्रा में काफल बेच देते हैं। जिससे उनको लगभग प्रतिदिन तीन हजार रुपये तक की आमदनी हो जाती है। इसी तरह जोगिन्दर नगर बस स्टैंड के बाहर काफल बेचने वाले देवेन्द्र कुमार ने बताया कि वह भी पिछले 15-16 वर्षों से लगातार काफल बेच रहे हैं तथा इससे अच्छी आमदनी हो जाती है। वर्तमान में उन्हे काफल से प्रतिदिन लगभग 15 सौ रुपये तक की कमाई हो रही है।
इसी तरह जोगिन्दर नगर रेलवे स्टेशन के नजदीक लगभग पांच वर्ष से काफल बेचने वाले अजय कुमार ने बताया कि उन्हे भी प्रतिदिन काफल से लगभग 2 हजार रुपये की आमदनी हो रही है। यही नहीं जोगिन्दर नगर बस स्टेंड में ही काफल बेच रहे कृष्ण चंद ने बताया कि वे भी प्रतिदिन काफल बेचकर एक हजार रुपये तक कमा रहे हैं। अकेले जोगिन्दर नगर शहर में ही आधा दर्जन लोगों के लिये आजकल काफल आमदनी का एक अहम जरिया बना हुआ है।

औषधीय गुणों से भरपूर होता है काफल:
काफल जंगली तौर पर पाया जाने वाला एक फल ही नहीं है बल्कि हमारे शरीर में एक औषधि का काम भी करता है। काफल में विटामिन्स, आयरन और एंटी ऑक्सीडेंन्टस प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। काफल के पेड़ की छाल, फल तथा पत्तियां भी औषधीय गुणों के लिये जानी जाती है। काफल की छाल में एंटी इन्फ्लेमेटरी, एंटी-हेल्मिंथिक, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-माइक्रोबियल क्वालिटी पाई जाती है। इतने गुणों से परिपूर्ण काफल न केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है बल्कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की रोकथाम का भी काम करता है।
काफल खाने से पेट के कई प्रकार के विकार दूर होते हैं। इसका सेवन मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के लिए भी फायदेमंद माना गया है। काफल के फूल का तेल कान दर्द, डायरिया तथा लकवे की बीमारी में उपयोग के साथ-साथ हृदय व मधुमेह रोग, उच्च एवं निम्न रक्तचाप को नियंत्रित करने में भी सहायक होता है।
काफल खाने में स्वादिष्ठ, रंग में हरा, लाल और काले रंग का फल है। इस फल को वैज्ञानिक तौर पर माइरिका एस्कुलेंटा के नाम से भी जाना जाता है। काफल का फल गर्मी में शरीर को ठंडक प्रदान करता है। साथ ही इसके फल को खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
कहां पाया जाता है काफल:
काफल उत्तरी भारत और नेपाल के पर्वतीय क्षेत्र, मुख्यत हिमालय की तलहटी क्षेत्रों में पाया जाने वाला सदा हरा भरा रहने वाला एक काष्ठीय वृक्ष प्रजाति है। काफल का पेड़ 1300 मीटर से 2100 मीटर (4000 फीट से 6000 फीट) तक की ऊँचाई पर प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाला वृक्ष है। काफल जोगिन्दर नगर क्षेत्र के गलू, बसाहीधार, घटासनी, भभौरी धार के साथ-साथ मंडी के चैलचौक, पधर इत्यादि क्षेत्रों में बहुतायत में पाया जाता है। काफल को बॉक्स मर्टल और बेबेरी के नाम से भी जाना जाता है।





Thursday, 28 April 2022

जोगिन्दर नगर के चौंतड़ा में लगभग 25 लाख रुपये की लागत से विकसित हुआ पंचवटी पार्क

वरिष्ठ नागरिकों व बच्चों को मिल रही मनोरंजन के साथ पार्क व झूलों की सुविधा

जोगिन्दर नगर उपमंडल के अंतर्गत चौंतड़ा में वरिष्ठ नागरिकों के साथ-साथ बच्चों की सुविधा के लिये पंचवटी पार्क विकसित किया गया है। इस पंचवटी पार्क में जहां वरिष्ठ नागरिकों को घूमने के लिये पक्के रास्ते, बैठने के लिये बैंच इत्यादि की सुविधा मुहैया करवाई गई है तो वहीं बच्चों के लिये झूले भी स्थापित किये गए हैं। इसके अलावा ग्रामीणों के लिये खेल सुविधा की दृष्टि से जहां बैडमिंटन कोर्ट विकसित किया गया है तो वहीं ओपन जिम की सुविधा उपलब्ध करवाई गई है। साथ ही पार्क में आने वाले सभी वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं व बच्चों के लिये शौचालय की सुविधा भी मुहैया करवाई गई है।

विकास खंड कार्यालय चौंतड़ा के परिसर के साथ विकसित किये गए इस पंचवटी पार्क के निर्माण पर लगभग 25 लाख रुपये से अधिक की धनराशि मनरेगा सहित अन्य मदों के तहत व्यय की गई है। इसके अलावा इस पार्क को चार दीवारी से भी बंद किया गया है ताकि बेसहारा पशुओं इत्यादि से भी इसे सुरक्षित एवं साफ सुथरा बनाये रखा जा सके।

इस संबंध में स्थानीय वरिष्ठ नागरिक महेंद्र सिंह, सुरेंद्र, नरेश इत्यादि का कहना है कि चौंतड़ा में पंचवटी पार्क विकसित हो जाने से उनके जैसे कई वरिष्ठ नागरिकों को सुबह-शाम घूमने व बैठने के लिये उचित स्थान की सुविधा प्राप्त हुई है। इसी गांव से संबंध रखने वाली युवती मेघना का कहना है कि इस पार्क में जहां बच्चों के लिये झूले इत्यादि की सुविधा मिली है तो वहीं युवाओं को ओपन जिम, बैडमिंटन कोर्ट इत्यादि का भी प्रावधान किया गया है।
उन्होने प्रदेश सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में पंचवटी पार्क विकसित करने के निर्णय को न केवल सराहा है बल्कि ग्रामीणों को भी शहरी क्षेत्रों की तर्ज पर पार्क इत्यादि की सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए सरकार का धन्यवाद किया है। साथ ही आग्रह किया है कि इस तरह के पार्कों का निर्माण बड़े पैमाने पर हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में किया जाना चाहिए ताकि वरिष्ठ नागरिकों के साथ-साथ बच्चों व युवाओं को पार्क की अच्छी सुविधा उपलब्ध हो सके।
क्या है पंचवटी पार्क विकसित करने की योजना:
प्रदेश सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों को ग्रामीण स्तर पर मनोरंजन के साथ-साथ पार्क व बागीचों की सुविधा मुहैया करवाने के लिए वित्तीय बजट वर्ष 2020-21 में पंचवटी पार्क विकसित करने की घोषणा की थी। पंचवटी पार्क योजना में ग्रामीण विकास विभाग के माध्यम से मनरेगा, स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) तथा 14वें वित्त आयोग सहित अन्य मदों के तहत प्रदेश के सभी विकास खंडों में एक बीघा समतल भूमि पर सभी आवश्यक सुविधाओं से लैस पार्क व बागीचे विकसित करने का अहम निर्णय लिया गया है। इन पार्कों में जहां वरिष्ठ नागरिकों की स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आयुर्वेदिक व औषधीय पौधों के रोपण का भी लक्ष्य रखा है तो वहीं बच्चों के लिये झूले, खेलने इत्यादि की व्यवस्था का भी प्रावधान किया गया है।
क्या कहते हैं अधिकारी:
खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) चौंतड़ा विवेक चौहान का कहना है कि चौंतड़ा में लगभग 25 लाख रुपये से अधिक की धनराशि मनरेगा सहित अन्य मदों से व्यय कर पंचवटी पार्क विकसित किया गया है। जिसमें वरिष्ठ नागरिकों के साथ-साथ बच्चों व युवाओं के लिये मनोरंजक गतिविधियां विकसित की गई हैं। उन्होने बताया कि इसी योजना के अंतर्गत चौंतड़ा ब्लॉक की विभिन्न ग्राम पंचायतों में लगभग 15 से 20 पार्क विकसित किये जा रहे हैं जिनका निर्माण कार्य विभिन्न चरणों में है।












Wednesday, 16 March 2022

कॉर्पोरेट सेक्टर की नौकरी छोड़, हाईड्रोपोनिक्स खेती से 50 हजार महीना कमा रहे नवीन शर्मा

 जोगिन्दर नगर के ऐहजू में 500 वर्ग मीटर क्षेत्र में स्थापित किया है हाईड्रोपोनिक्स पॉलीहाउस

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) हमीरपुर से इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त 42 वर्षीय नवीन शर्मा ने कॉर्पोरेट सेक्टर की ऊंची तनख्ख्वाह वाली नौकरी छोडक़र हाइड्रोपोनिक्स तरीके से खेती कर न केवल प्रतिमाह 50 से 60 हजार रूपये कमा रहे हैं बल्कि लाखों युवाओं के लिये प्रेरणास्त्रोत भी बने हैं। 500 वर्गमीटर क्षेत्र में स्थापित हाइड्रोपोनिक्स पॉलीहाउस के माध्यम से नवीन शर्मा न केवल अच्छी कमाई कर पा रहे हैं बल्कि दो युवाओं को सीधा रोजगार भी प्रदान किया है। हाइड्रोपोनिक्स तरीके से खेती करने वाले नवीन शर्मा न केवल जोगिन्दर नगर क्षेत्र के ऐसे पहले किसान हैं बल्कि उन्होने इस क्षेत्र में भविष्य की खेती की नींव भी रखी है।
जब इस बारे नवीन शर्मा से बातचीत की तो उन्होने बताया कि वे पिछले एक वर्ष से जोगिन्दर नगर के ऐहजू में हाइड्रोपोनिक विधि से खेती कर रहे हैं तथा उन्हे प्रतिमाह औसतन 50 से 60 हजार रूपये की शुद्ध आय हो रही है। नवीन शर्मा ने पॉलीहाउस में लैट्यूस, चैरी टोमैटो, शिमला मिर्च, स्ट्रॉबेरी, केल, धनिया, मिर्च, टमाटर इत्यादि फसलें नियमित अंतराल के बाद तैयार कर रहे हैं। उनकी यह तैयार फसलें पालमपुर, कांगड़ा, धर्मशाला, मैक्लोडगंज इत्यादि स्थानों में आसानी से बिक भी रही हैं तथा उन्हे अच्छे दाम भी प्राप्त हो रहे हैं।
उनका कहना है कि जहां तैयार लैट्यूस 400 से 450 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से बाजार में बिक रहा है तो वहीं चैरी टोमैटो 300 से 350 जबकि बेसिल तुलसी 400 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से दाम प्राप्त हो रहे हैं। इसके अलावा स्ट्रॉबेरी, केल तथा शिमला मिर्च व धनिया इत्यादि के भी अच्छे दाम प्राप्त हो रहे हैं। 
नवीन शर्मा कहते हैं कि हाइड्रोपोनिक्स खेती की एक ऐसी आधुनिक तकनीक है जिसमें केवल पानी का ही इस्तेमाल होता है। साथ ही पारंपरिक खेती के मुकाबले हाइड्रोपोनिक्स से पानी की लगभग 90 फीसदी तक बचत भी होती है। उनका कहना है कि वे पौधों की नर्सरी भी स्वयं तैयार करते हैं तथा पौधे तैयार होते ही उन्हे स्थापित पाइपों में रोप दिया जाता है। इसके बाद पाइपों के माध्यम से पानी की सप्लाई द्वारा सभी तरह के पोषक तत्व पौधों को दिये जाते हैं। नवीन शर्मा हाइड्रोपोनिक्स खेती को व्हाइट कॉलर खेती की संज्ञा भी देते हैं। हाइड्रोपोनिक्स खेती का कार्य शुरू करने से पहले नवीन शर्मा 15 वर्ष तक कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों में देश व देश के बाहर जॉब कर चुके हैं तथा उन्हे अच्छा पैकेज भी मिल रहा था। लेकिन अब उन्होने स्वरोजगार को ही आगे बढ़ने का माध्यम बनाया है तथा पिछले तीन-चार वर्षों से इस दिशा में वे आगे बढ़ रहे हैं।

पॉलीहाउस निर्माण को 5.18 लाख तो हाइड्रोपोनिक्स सेटिंग को मिला है 3 लाख का सरकारी उपदान

नवीन शर्मा बताते हैं कि पॉलीहाउस निर्माण को सरकार ने 85 प्रतिशत की दर से 5.18 लाख रूपये का उपदान मुहैया करवाया है जबकि हाइड्रोपोनिक्स सेटअप के लिये 3 लाख रूपये की सब्सिडी मिली है। उन्होने बताया कि हाइड्रोपोनिक सेटअप के लिये कुल 10 लाख रूपये की लागत आई है। इसके अलावा पॉलीहाउस की सोलर युक्त बाड़बंदी को भी सरकार ने 80 प्रतिशत की दर से 1.35 लाख रूपये का अनुदान प्रदान किया है।

हाइड्रोपोनिक खेती से जुडऩे को आगे आएं युवा, उपलब्ध करवाएंगे प्रशिक्षण की सुविधा

उन्होने हाइड्रोपोनिक विधि से खेती करने के लिये युवाओं से आगे आने का भी आहवान किया है। उन्होने कहा कि इसके लिये वे युवाओं को प्रशिक्षण भी प्रदान करने के लिये तैयार हैं। बड़े स्तर पर हाइड्रोपोनिक्स खेती से न  केवल बाजार की डिमांड को आसानी से पूरा किया जा सकता है बल्कि अपनी पहुंच को बड़े शहरों जैसे चंडीगढ़, दिल्ली, मुंबई इत्यादि तक ले जाने में उन्हे दाम भी अच्छे प्राप्त होंगे।

क्या कहते हैं अधिकारी:

एसडीएम जोगिन्दर नगर डॉ. (मेजर) विशाल शर्मा का कहना है कि नवीन शर्मा ने हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से खेती का कार्य शुरू किया है जो इस उपमंडल के हजारों युवाओं के लिये प्रेरणा का काम करेगा। उन्होने कहा कि हाइड्रोपोनिक्स तकनीक भविष्य की खेती है जिससे जुडक़र न केवल युवा घर बैठे अच्छी कमाई कर सकते हैं बल्कि रोजगार की तलाश में उन्हे प्रदेश के बाहर भी नहीं जाना पड़ेगा। उन्होने ज्यादा से ज्यादा युवाओं से इस आधुनिक खेती तकनीक से जुडऩे का आहवान किया है।









https://youtu.be/XQwl7IyEDX8

Sunday, 20 February 2022

तीन नदियों का पवित्र संगम स्थल है त्रिवेणी महादेव

जोगिन्दर नगर उपमंडल मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पवित्र धार्मिक स्थान त्रिवेणी महादेव। तीन नदियों ब्यास, बिनवा तथा गुप्त गंगा (क्षीर गंगा) के मिलन स्थल को ही त्रिवेणी महादेव के नाम से जाना जाता है। यहां पर जो शिवलिंग स्थापित है वो स्वयंभू शिवलिंग है जो अपने आप धरती से निकला है। हमारे पुराणों में एवं सनातन धर्मशास्त्रों में इसकी बड़ी व्याख्या की गई है। माना जाता है कि इस पवित्र स्थान का इतिहास लगभग तीन सौ वर्ष से अधिक पुराना है।

त्रिवेणी महादेव मंदिर का इतिहास

इस पवित्र धार्मिक स्थान से जुड़े इतिहास की चर्चा करें तो माना जाता है कि आज से करीब तीन सौ वर्ष पहले मण्डी रियासत के वजीर कर्म सिंह के कोई सन्तान नहीं थी जिसके लिए उन्होंने कई यज्ञ व अनुष्ठान किए। इसके पश्चात् उन्हें स्वपन में आदेश हुआ कि बैजनाथ से नीचे जहां पर ब्यास नदी व बिनवा नदी मिलती है उस स्थान पर जाइए। उसी संगम स्थल के ऊपर एक गुुफा है जिसमें एक महात्मा जी रहते हैं, वे महात्मा जी ही आपको सन्तान दे सकते हैं। वजीर अपने कर्मचारियों को साथ लेकर गुुुुफा में पहुंचे तथा महात्मा जी के दर्शन करके उनसे सन्तान प्राप्ति के लिए प्रार्थना की। महात्मा जी ने उन्हें साफ इन्कार कर दिया कि तुम्हारा पिछला जन्म जो था वह अच्छा नहीं था, इसलिए तुम्हें सन्तान प्राप्ति नहीं होगी। मगर वजीर को पूर्ण विश्वास था कि महात्मा जी के आशीर्वाद से सन्तान प्राप्ति हो सकती है।

तब वजीर अपने कर्मचारियों के साथ उसी गुुफा के सामने एक तंबू लगाकर बैठ गये। उस जमाने में वजीरों का बहुत बोलबाला होता था, जिसकी वजह से दूर-दूर गांव से लोग आने लगे। इसी प्रकार जब सात-आठ दिन बीत गये तो महात्मा जी गुफा से निकले और वजीर से बोले कि तुम यहां पर इतना शोरगुल क्यों कर रहे हो? मेरी साधना में बाधा हो रही है। वजीर महात्मा जी से प्रार्थना की कि महाराज जी आपके आशीर्वाद से ही मुझे सन्तान प्राप्ति होगी, यह मुझे पूर्ण विश्वास है। महात्मा जी बोले ठीक है आपको सन्तान प्राप्ति होगी या नहीं यह मैं कल सुबह बताउंगा। 

इसके पश्चात जब दूसरे दिन महात्मा जी गुफा से बाहर निकले तो वजीर ने जाकर उन्हें प्रणाम किया तब महात्मा जी ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि मैं तुम्हें दो सन्तान प्राप्ति के लिए अशीर्वाद देता हूँ। मगर भगवान स्वयं यहां प्रकट होना चाहते हैं। उनके लिए दिव्य मंदिर यहां पर बनाना होगा। वजीर के पास धन की कोई कमी नहीं थी, उन्होनें उसी समय राजमहल में आदमी भेजकर उस जमाने के चान्दी के सवा लाख सिक्के मंगवाकर महात्मा जी के चरणों में रख दिये और महात्मा जी से आग्रह किया कि आप मंदिर बनाइये व सन्तान प्राप्ति का आशीर्वाद दीजिए। वर्तमान में जिस स्थान पर शिवजी का मंदिर है उस स्थान पर पुराने वक्त में ब्यास नदी का स्वरूप अत्यंत भयंकर होता था। ऐसे में एक तरफ ब्यास नदी तो दूसरी तरफ पहाड़ होने से वहां पर मंदिर का निर्माण करना मुश्किल था। ऐसा देखते हुए लोग जब आगे बढ़े तब उन्हें नजऱ आया कि नीचे नदी किनारे एक काली गाय खड़ी है। उसके स्तनों से दूध अपने आप बह रहा था। वह गाय ब्यास नदी तैर कर आई हुई थी। तब महात्मा जी बोले कि भगवान यहीं पर होंगे, जब वहां से मिट्टी हटाई तो जो शिवलिंग अभी मंदिर में है उसके दर्शन हुए। 

तब महात्मा जी ने वहां पर मन्दिर का काम शुरू करवाया। आज जितनी चिनाई करते कल वह शिवलिंग उतना ही ऊपर आ जाता। यह सारा वृतांत देखकर महात्मा जी बड़े आश्चर्य चकित हुए और उन्होंने वहां पर एक हवन यज्ञ किया। हवन होने के पश्चात् महात्मा जी को भारी जनसमूह के सामने भविष्यवाणी हुई कि जब तक मैं स्थिर न हो जाऊं तब तक मंदिर का निर्माण नहीं करना। इसी प्रकार चिनाई के साथ साथ शिवलिंग भी ऊपर आता गया। शिवलिंग के स्थिर होने के बाद मंदिर का निर्माण किया गया। 

एक साल बाद वजीर के घर जो लडक़ा हुआ उसके पांच साल के होने तक मंदिर बनकर तैयार हो गया। बाद में उसी लडक़े से मंदिर की प्रतिष्ठा कराई गई। मन्दिर के एक तरफ ब्यास नदी, दूसरी तरफ बिनवा नदी तथा शिवलिंग के नीचे से एक गुप्त गंगा (क्षीर गंगा) बहती है। जिसका पानी गंगा नदी की तरह ही पवित्र माना जाता है। इन्हीं तीन नदियों के संगम के कारण इस मंदिर का नाम त्रिवेणी महादेव पडा़। शिखर मण्डलीय शैली में बना यह भव्य एवं प्राचीन मन्दिर नींव से लगभग 50 फुट ऊंचाई पर बना हुआ है।

वर्तमान में मुख्य मंदिर के आसपास दूसरे छोटे मंदिर भी स्थापित किये गए हैं जिनमें श्री गणेज जी, हनुमान जी, शनि महाराज, मां बगुलामुखी, बाबा बालक नाथ, राधा-कृष्ण मंदिर, नवग्रह, देवी शक्ति इत्यादि शामिल हैं। श्रद्धालु प्राचीन गुफा के भी दर्शन कर सकते हैं जो मुख्य मंदिर से महज 100 या 150 मीटर की दूरी पर है। इस मंदिर का संचालन मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा किया जा रहा है। महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर यहां पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।

प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी कम खूबसूरत नहीं है यह स्थान

धार्मिक महत्व के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी यह स्थान कम खूबसूरत नहीं है। इस स्थान पर जहां ब्यास, बिनवा व क्षीर गंगा का अनूठा संगम देखते ही बनता है तो वहीं यहां का शांत वातावरण एवं नदियों की कल-कल बहती धाराओं की गूंज मन को एक आलौकिक सुकून भी प्रदान करती हैं। ध्यान साधना की दृष्टि से भी यह स्थान महत्वपूर्ण है। 

कैसे पहुंचें त्रिवेणी महादेव

इस पवित्र धार्मिक स्थान के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु जोगिन्दर नगर से लडभड़ोल होते हुए सडक़ मार्ग से इस पवित्र स्थान तक आसानी से पहुंच सकते हैं। यह पवित्र स्थान जोगिन्दर नगर उपमंडल के अंतर्गत ग्राम पंचायत उटपुर के गांव घटोड में स्थित है। प्रसिद्ध धार्मिक स्थान बैजनाथ से यहां की दूरी लगभग 35 किलोमीटर है। इसके अलावा श्रद्धालु संधोल से होकर बैरी गांव तक सडक़ मार्ग से आ सकते हैं। यहां से झूला पुल के माध्यम से वे त्रिवेणी महादेव के दर्शन कर सकते हैं। इसके अलावा कांगडा जिला के जयसिंहपुर, हारसीपतन होते हुए सरीमोलग से भी इस पवित्र स्थान तक पहुंचा जा सकता है। यहां से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन बैजनाथ-पपरोला ही है जबकि नजदीकी हवाई अड्डा कांगडा है।





Friday, 18 February 2022

द्वापर काल से जोड़ा जाता है श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर नेर का इतिहास

जोगिन्दर नगर उपमंडल के अंतर्गत ग्राम पंचायत नेर घरवासड़ा के गांव नेर में भगवान श्री लक्ष्मी नारायण का प्राचीन मंदिर स्थापित है। इस मंदिर के इतिहास को द्वापर काल में भगवान श्री विष्णु की तपस्या से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि गांव नेर में द्वापर काल में भगवान श्री विष्णु ने कई वर्षों तक तपस्या की थी तथा इसी काल में उनका यह मंदिर यहां स्थापित हुआ माना जाता है।

इस ऐतिहासिक श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर की निर्माण शैली को देखें तो यह मंडी शहर में स्थापित अन्य मंदिरों जैसी ही है। ऐसे में माना जाता है कि यह मंदिर भी लगभग 300 या 400 वर्ष पुराना होगा। इस मंदिर से जुड़ी ऐतिहासिक बातों पर गौर करें तो कहा जाता है कि नेर गांव में द्वापर काल में भगवान श्री विष्णु ने कई वर्षों तक तपस्या की थी तथा इसी दौरान यहां पर उनका यह मंदिर स्थापित हुआ होगा। यह भी कहा जाता है कि इसी स्थान की शक्तियों द्वारा इस महाकलियुग को समाप्त किया जाएगा तथा यह स्थान बद्रीनाथ धाम के समकक्ष भी माना जाता है। इस प्राचीन मंदिर को भगवान श्री विष्णु जी के सभी मंदिरों में शक्तिशाली माना है तथा आने वाले समय में इस कलियुग में कल्याण एवं उद्धार करेगा। साथ ही कहा जाता है कि जो श्रद्धालु सच्चे मन से भगवान से प्रार्थना करेगा तो उसकी मनोकामना जरूर पूरी होगी।

इस मंदिर से जुड़ी एक घटना का वृतांत यह बताता है कि 16 मार्च, 2004 को भगवान श्री विष्णु जी की पूजा अर्चना की गई। उसी रात्रि करीब 11 बजे मंदिर की घंटियां बजीं और मूर्ति अपने स्थान से तकरीबन 4 से 5 इंच आगे सरक गई। लेकिन दूसरे दिन दोपहर यह मूर्ति फिर अपने स्थान पर आ गई। फिलवक्त इस ऐतिहासिक एवं प्राचीन मंदिर से जुड़ा कोई तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन मंदिर की निर्माण शैली को देखते हुए निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि यह मंदिर 300 या 400 वर्ष पुराना जरूर होगा। वर्तमान में इस मंदिर के रखरखाव के लिये स्थानीय ग्रामीणों ने श्री लक्ष्मी नारायण सेवा समिति पंजीकृत करवा रखी है जो इसका संचालन कर रही है। 

यह प्राचीन एवं ऐतिहासिक मंदिर जोगिन्दर नगर से लगभग 5 या 6 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत नेर घरवासड़ा के गांव नेर में स्थित है जो गांव मझारनु से लगभग एक या डेढ़ किलोमीटर दूर है। यह मंदिर पक्की सडक़ से जुड़ा हुआ है। इस मंदिर को वाया बस्सी पॉवर हाऊस होते हुए भी सडक़ मार्ग से पहुंचा जा सकता है।