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Thursday, 27 January 2022

हिमाचल के ग्रामीण इलाकों में आज भी जीवित है आयुर्वेद

 निरमंड के लीला चंद शिलाजीत निकालने के पुश्तैनी काम को बढ़ा रहे हैं आगे

हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में आयुर्वेद आज भी जिंदा है। हमारे यहां ऐसे कई लोग मिल जाएंगे जो आज भी पुरातन चिकित्सा पद्धति एवं उपचार आयुर्वेद को न केवल आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं बल्कि इसके माध्यम से अपनी आर्थिकी को भी सुदृढ़ करने को प्रयासरत हैं।

ऐसे ही एक व्यक्ति है जिला कुल्लू की तहसील निरमंड के गांव ओडीधार निवासी 55 वर्षीय लीला चंद प्रेमी जो शिलाजीत निकालने के अपने पुश्तैनी काम को न केवल आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं बल्कि आर्थिकी को सुदृढ़ करने में भी प्रयासरत हैं। आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान जोगिंदर नगर में पहुंचे लीला चंद का कहना है कि उनके पिता ने वर्ष 1960- 61 से निरमंड व आसपास के पहाड़ों से शिलाजीत निकालने का काम शुरू किया था, लेकिन आयुर्वेद विधि का ज्ञान न होने के बावजूद भी वह शिलाजीत से लोगों का उपचार करते रहे हैं तथा लोग ठीक भी होते रहे हैं। लेकिन वर्ष 1979 में उनके मामा जीवन लाल ने जालंधर से आयुर्वेद फार्मासिस्ट का प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद उनके द्वारा तैयार नोटस के आधार पर शिलाजीत के शोधन कार्य को आयुर्वेद पद्धति के आधार पर निकालने का वह काम कर रहे हैं।

महज पांचवीं तक की शिक्षा प्राप्त एवं बीपीएल परिवार में शामिल लीला चंद इसी उम्मीद के साथ आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान जोगिंदर नगर पहुंचे हैं कि शिलाजीत निकालने के उनके कार्य का प्रमाणीकरण हो सके। इससे न केवल लोगों को गुणवत्तायुक्त शिलाजीत मिल सकेगी बल्कि वे अपनी आर्थिकी को सुदृढ़ कर सकें। उनका कहना है कि वे अब इस पुश्तैनी कार्य को अपने बेटे लोकेंद्र सिंह को सौंप रहे ताकि वह इसे आगे बढ़ा सके।

क्या कहते हैं अधिकारी:

इस संबंध में राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक, क्षेत्रीय एवं सुगमता केंद्र उत्तर भारत स्थित जोगिन्दर नगर डॉ. अरूण चंदन का कहना है कि आयुर्वेद निदेशालय के माध्यम से उनके यहां पहुंचे लीला चंद के शिलाजीत निकालने व शोधन पद्धति कि वह जांच करेंगे तथा उनके इस कार्य का प्रमाणीकरण भी किया जाएगा। इससे जहां उनके इस तैयार उत्पाद को एक पहचान मिल सकेगी तो वहीं वे बेहतर तरीके से इसकी मार्केटिंग भी कर पाएंगे। उनका कहना है कि प्रथम दृष्टया में शिलाजीत शोधन की उनकी पद्धति बिल्कुल आयुर्वेदिक आधार पर सही पाई गई है, बावजूद इसके इनके शोधन की प्रक्रिया की पूरी जांच पड़ताल की जाएगी।

क्या होती है शिलाजीत:

शिलाजीत आयुर्वेद में एक ऐसी प्राकृतिक तौर पर तैयार होने वाली औषधी है जिससे न केवल व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है बल्कि यह एक टोनिक का काम भी करती है। इसके अलावा विभिन्न आयुर्वेदिक दवा निर्माण में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। 

शीलाजीत प्राकृतिक तौर पर हिमालय पर्वत की ऊंचे पहाड़ों में ग्रीष्म ऋतु के समय चट्टानों में सूर्य की पडऩे वाली तेज किरणों के कारण पिघलने वाले रस व इसके जमने के कारण तैयार होती है। शीलाजीत देखने में कोलतार के समान काला व गाढ़ा सा द्रव होता है तथा सूखने पर चमकीला व भंगुर हो जाता है। यह द्रव पानी में घुलनशील होता है तथा तारों को छोड़ता है, जबकि रासायनिक प्रक्रिया में उदासीन रहता है।

शीलाजीत खनिज पदार्थ के तौर पर चार प्रकार से पाई जाती है। जिसमें स्वर्ण, रजत, लोह व ताम्र शामिल है। निरमंड व आसपास के पहाड़ों में यह लोह व ताम्र रूप में ही पाई जाती है। पहाड़ों से प्राप्त इस खनिज पदार्थ को पानी में घोलने के बाद सूर्य तापी व अग्रि तापी विधि के माध्यम से इसका शोधन किया जाता है जिसमें औसतन 15 दिन से एक महीने तक का समय लग जाता है। शीलाजीत हिमालय क्षेत्र जिसमें हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड इत्यादि शामिल है में पायी जाती है।

चरक संहिता में शीलाजीत को सर्वरोगनाशी बताया गया है। जिसमें उल्लेख किया गया है कि जब सभी प्रकार की दवाईयों का असर खत्म हो जाए तब शीलाजीत का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। 

Sunday, 23 January 2022

सोलरयुक्त बाड़बंदी से बरनाऊ चौंतड़ा निवासी पूर्ण चंद ने लिखी सफलता की कहानी

मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना से कृषि बना फायदा का सौदा, जंगली जानवरों से सुरक्षित हो रही फसलें

हिमाचल प्रदेश सरकार की मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना किसानों के लिये वरदान से कम साबित नहीं हो रही है। इसी योजना के माध्यम से की जा रही बाड़बंदी से न केवल किसानों की फसलें बंदरों व अन्य जंगली जानवरों से बच पा रही हैं बल्कि खेती-बाड़ी फायदे का सौदा भी साबित हो रही है। इसी योजना से जुडक़र जोगिन्दर नगर उपमंडल के विकास खंड चौंतड़ा के अंतर्गत ग्राम पंचायत भडयाड़ा के बरनाऊ गांव निवासी पूर्ण चंद न केवल अपनी फसलों को बचाने में कामयाब हो पाये हैं बल्कि खेती-बाड़ी फायदे का सौदा भी साबित हो रही है। 

इस इस बारे ग्राम पंचायत भडयाड़ा के बरनाऊ गांव निवासी 65 वर्षीय पूर्ण चंद से बातचीत की तो उन्होने बताया कि मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना के तहत सोलरयुक्त बाड़बंदी कर न केवल अपनी बेकार पड़ी पुश्तैनी जमीन को उपजाऊ बना दिया है बल्कि फसलों को भी बंदरों, जंगली एवं आवारा जानवरों से भी सुरक्षित कर लिया है। मार्च 2020 में 70:30 अनुपात में कृषि विभाग के माध्यम से लगभग पांच बीघा जमीन में साढ़े तीन लाख रूपये की लागत से कम्पोजिट बाडबंदी की है। जिस पर सरकार ने लगभग 2 लाख 42 हजार रूपये का उपदान प्रदान किया है। 

पंजाब बिजली बोर्ड से वर्ष 2014 में सेवा निवृति के बाद पूर्ण चंद ने अपनी पुश्तैनी जमीन में खेती-बाड़ी को आगे बढ़ाने का काम शुरू किया। लेकिन बंदरों एवं अन्य जंगली जानवरों के कारण उनके लिये कृषि घाटे का सौदा साबित होने लगी। उनका कहना है कि उनके पास लगभग 11-12 बीघा जमीन है लेकिन बाडबंदी से पहले जहां महज सात से आठ क्विंटल गेंहू की पैदावार हो पाती थी तो वहीं अब बाड़बंदी के बाद 23 से 24 क्विंटल गेहूं तैयार हो रही है। इसी तरह जहां मक्की की पैदावार महज 40 से 50 किलोग्राम थी तो वहीं अब 7 से 8 क्विंटल जबकि धान की पैदावार में भी काफी वृद्धि हुई है। इसके अलावा वे मौसमी सब्जियों का भी उत्पादन कर रहे हैं जिसमें आलू, लहुसन, धनिया, मिर्च, हल्दी, टमाटर, गोभी, मटर, अदरक के साथ-साथ सोयाबीन की भी पैदावार कर रहे हैं। उनका कहना है कि उनके परिवार में 12 लोग हैं जिनके वर्ष भर की खाने की जरूरतों को वे अपने इन्हीं खेतों से ही पूरा कर लेते हैं जबकि अतिरिक्त पैदावार होने पर वे बेच भी रहे हैं।  

पूर्ण चंद कहते हैं कि उन्होने सेब के भी 100 पौधे लगाए हैं तथा पहली फसल में 50 पौधों से प्रति पौधा 20 से 25 किलोग्राम की पैदावार प्राप्त हुई है। अपने खेतों में वे स्वयं की तैयार प्राकृतिक खाद का ही इस्तेमाल कर रहे हैं, इसके लिये उन्होने कृषि विभाग के सहयोग से दो वर्मी कम्पोस्ट पिट तैयार किये हैं। जिन पर सरकार ने 12 हजार रूपये का उपदान प्रदान किया है। सिंचाई के लिये उन्होने सरकार के सहयोग से टयूबवैल स्थापित किया है जिस पर सरकार ने लगभग एक लाख 10 हजार रूपये का उपदान दिया है। टयूब वैल को चलाने के लिये उन्होने सोलर पंपिंग सिस्टम भी स्थापित किया है लेकिन यहां की भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यह कामयाब नहीं हो पाया है। खेतों में सिंचाई सुविधा के लिये 6 हजार क्यूसेक क्षमता का एक पानी का टैंक भी निर्मित किया है जिस पर सरकार की ओर से 70 हजार रूपये की आर्थिक मदद मिली है। उन्होने बताया कि आने वाले समय में सब्जियों एवं सेब की फसल को खराब मौसम के साथ-साथ कीट पतंगों एवं पक्षियों से बचाने के लिये हेलनेट सुविधा के लिये भी आवेदन किया है।  

पूर्ण चंद का कहना है कि सोलरयुक्त बाड़बंदी से अब न केवल उनकी फसलें बंदरों एवं अन्य आवारा व जंगली जानवरों से सुरक्षित हुई है बल्कि कृषि अब फायदे का सौदा साबित हो रहा है। उन्होने प्रदेश के किसानों विशेषकर शिक्षित व बेरोजगार युवाओं से सरकार की इन योजनाओं का लाभ उठाकर कृषि व्यवसाय को अपनाने का भी आहवान किया है। 

क्या कहते हैं अधिकारी:

जब इस बारे विषयवाद विशेषज्ञ कृषि चौंतड़ा ब्लॉक जय सिंह से बातचीत की तो उनका कहना है कि मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना का लाभ उठाकर किसान पूर्ण चंद एक सफल किसान बनने की ओर अग्रसर हैं। उन्होने बताया कि गत चार वर्षों के दौरान इस योजना के माध्यम से अब तक चौंतड़ा ब्लॉक में 49 किसानों की लगभग  19 हजार 538 वर्ग मीटर जमीन को सोलरयुक्त बाड़बंदी के तहत लाया गया है। जिस पर सरकार ने लगभग एक करोड़ 63 लाख रूपये बतौर उपदान मुहैया करवाए हैं।

उन्होने बताया कि इस योजना के माध्यम से व्यक्तिगत तौर पर सोलरयुक्त बाड़बंदी के लिए सरकार 80 प्रतिशत जबकि सामूहिक तौर पर 85 प्रतिशत तक उपदान मुहैया करवा रही है। इसके साथ-साथ कम्पोजिट बाड़बंदी के लिए 70 प्रतिशत तथा कांटेदार तार लगाने को 50 प्रतिशत तक अनुदान दिया जा रहा है। उन्होने ज्यादा से ज्यादा किसानों से सरकार की इस योजना का लाभ उठाने का आग्रह किया है ताकि उनकी फसलों को बंदरों, जंगली जानवरों एव आवारा पशुओं से बचाया जा सके।












Sunday, 9 January 2022

राजस्व की बारीकियां सिखाता है हिमाचल प्रदेश राजस्व प्रशिक्षण संस्थान जोगिन्दर नगर

वर्ष 1996 में हुआ है स्थापित, अब तक 11 हजार 566 अधिकारी व कर्मचारी हो चुके हैं प्रशिक्षित

जोगिन्दर नगर में स्थापित हिमाचल प्रदेश राजस्व प्रशिक्षण संस्थान (आरटीआई) पटवारी से लेकर भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारियों तक राजस्व की बारीकियों को न केवल अवगत करवाता है बल्कि प्रशिक्षित भी करता है। जोगिन्दर नगर में स्थापित यह प्रशिक्षण संस्थान हिमाचल प्रदेश का एक मात्र ऐसा संस्थान है जो राजस्व की बारीकियों को सिखाते हुए प्रशिक्षण प्रदान करता है। इस संस्थान में एक सप्ताह से लेकर चार माह तक के विभिन्न अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए राजस्व संबंधित प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जाते हैं। सबसे अहम बात तो यह है कि यह संस्थान महज राजस्व कार्य से जुड़े अधिकारियों व कर्मचारियों को ही प्रशिक्षित नहीं करता है बल्कि पुलिस सेवा के साथ-साथ बैंकिंग एवं आपदा प्रबंधन से जुड़े अधिकारियों को भी राजस्व से जुड़े विभिन्न कार्यों के प्रति प्रशिक्षित करता है। इस संस्थान से अब तक 11 हजार 566 अधिकारी व कर्मचारी राजस्व की बारीकियों के गुर जान चुके हैं। 

हिमाचल प्रदेश राजस्व प्रशिक्षण संस्थान (आरटीआई) जोगिन्दर नगर की स्थापना 01 अप्रैल, 1996 को की गई है। इस संस्थान का प्रमुख उद्देश्य राजस्व से संबंधित विभिन्न अधिकारियों एवं कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करना है। वर्तमान में इस संस्थान में पटवारी से लेकर भारतीय प्रशासनिक सेवा तक के अधिकारियों व कर्मचारियों को राजस्व संबंधी प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इस संस्थान की स्थापना केंद्रीय प्रायोजित स्कीम एसआरयू व यूएलआर के तहत 50:50 के अनुपात में हुई है। इस संस्थान के लिये भारत सरकार ने साढ़े आठ करोड़ रूपये 50:50 के अनुपात में राज्य व केंद्रीय अंश के रूप में स्वीकृत किये हैं। इस संस्थान के निर्माण के लिये केंद्रीय व राज्य अंश के रूप में 5.29 करोड़ रूपये की धनराशि स्वीकृत की जा चुकी है। इस संस्थान के प्रथम चरण में प्रशासनिक भवन, छात्र होस्टल, मैस, टाईप-पांच आवास, जबकि द्वितीय चरण में गर्ल हास्टल, गेस्ट हाउस, आवास टाईप-तीन व टाईप-एक भी बनाये जा चुके हैं। इसके अतिरिक्त टाईप-2 आवास के चार सैट भी बनाये जा चुके हैं। साथ ही निर्माण संबंधी कुछ अन्य कार्य अभी प्रगति पर हैं।

आईएएस अधिकारियों को 2 सप्ताह, तो पटवारियों को मिलती है 4 माह की ट्रेनिंग

हिमाचल प्रदेश राजस्व प्रशिक्षण संस्थान जोगिन्दर नगर में भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा हिमाचल प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को राजस्व की बारीकियों से संबंधित दो सप्ताह का प्रशिक्षण दिया जाता है। राजस्व सेवा से जुड़े विभिन्न अधिकारियों को भी यहां प्रशिक्षित किया जाता है जिनमें तहसीलदार व नायब तहसीलदार को 28 दिन, पटवारी को चार माह का राजस्व प्रशिक्षण शामिल है। साथ ही तहसीलदार, नायब तहसीलदार एवं कानूनगो के पदों पर तैनात कर्मियों के रिफ्रैशर कोर्स भी करवाए जाते हैं।

इस संस्थान में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) व हिमाचल पुलिस सेवा (एचपीएस) से जुड़े अधिकारियों के साथ-साथ पुलिस प्रशासन से जुड़े उप निरीक्षक एवं सहायक निरीक्षक के पदों पर तैनात कर्मियों को भी एक सप्ताह का राजस्व प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अतिरिक्त बैंकिंग सेवा से जुड़े अधिकारियों को भी राजस्व की बारीकियां बताई जाती हैं। यही नहीं इस संस्थान में नाइलेट के माध्यम से कंप्यूटर प्रशिक्षण के दो पाठयक्रम पीजीडीसीए व डीसीए भी चलाये जा रहे हैं। 

राजस्व प्रशिक्षण संस्थान से 11 हजार 566 अधिकारी व कर्मचारी सीख चुके हैं राजस्व की बारीकियां

हिमाचल प्रदेश राजस्व प्रशिक्षण संस्थान से प्राप्त आंकड़ों की बात करें तो 21 दिसम्बर, 2021 तक 11 हजार 566 अधिकारी व कर्मचारी राजस्व की बारीकियों को सीख चुके हैं। जिनमें 3417 कर्मियों ने पुनश्चर्या कार्यक्रम में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की है जबकि 3477 पटवारियों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। इसके अलावा जहां 3492 अधिकारियों व कर्मचारियों को आपदा प्रबंधन पर प्रशिक्षित किया गया है तो वहीं 32 परीवीक्षाधीन आईएएस, 103 एचएएस, 41 तहसीलदार, 49 नायब तहसीलदार, 05 भारतीय पुलिस सेवा व 34 हिमाचल पुलिस सेवा के परीवीक्षाधीन अधिकारियों को भी राजस्व की बारीकियां सिखाई जा चुकी हैं। साथ ही पुलिस विभाग के 187 उप निरीक्षकों, 601 बैंक अधिकारियों व कर्मचारियों, 9 सहायक लोक अभियोजक, 11 एसजेवीएनएल के अधिकारियों को भी राजस्व बारे प्रशिक्षण दिया जा चुका है। इसी संस्थान से कम्पयूटर साक्षरता कार्यक्रम के तहत 49 तथा ईटीएस व जीपीएस पर 59 प्रतिभागियों को भी प्रशिक्षित किया जा चुका है।




Saturday, 8 January 2022

हिमाचल प्रदेश में चंदन की खेती के जनक है करसोग के भूप राम शर्मा

 प्रदेश में पांच लाख से अधिक चंदन के पौधे हो चुके हैं तैयार, किसानों को होगा आर्थिक लाभ

हिमाचल प्रदेश की जलवायु चंदन की खेती के लिये न केवल उपयुक्त है बल्कि प्रदेश के किसानों की आर्थिकी को मजबूती प्रदान करने में भी अहम कदम साबित हो सकती है। प्रदेश में चंदन की खेती को बढ़ावा देने के लिये मंडी जिला के चुराग (करसोग) निवासी 50 वर्षीय भूप राम शर्मा पिछले 12 वर्षों से चंदन की खेती को निरंतर प्रयासरत हैं। इनके अब तक के प्रयासों से प्रदेश में लगभग पांच लाख चंदन के पौधे न केवल तैयार कर लिये गए हैं बल्कि इन पौधों की उम्र 4 से 6 वर्ष के मध्य भी हो चुकी है। ऐसे में भूप राम शर्मा को हिमाचल प्रदेश में चंदन की खेती का जनक कहें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के क्षेत्रीय कार्यालय जोगिन्दर नगर में पहुंचे भूप राम शर्मा से बातचीत की तो इनका कहना है कि वर्ष 2006 में आध्यात्मिक दृष्टि से चंदन के महत्व बारे उन्होने कार्य प्रारंभ किया। वेदों एवं आध्यात्मिक ग्रंथों में चंदन को सबसे पवित्र पौधा बताया गया है। इसे विष नाशक, रोग नाशक तथा आयुवर्धक माना गया है। ऐसे में प्रदेश में चंदन की खेती की संभावनाओं पर उन्होने प्रयास प्रारंभ किये।

उन्होने बताया कि वर्ष 2008 में सुंदर नगर में चंदन की अवैध लकड़ी के पकडऩे जाने का समाचार पढ़ा तो उन्हे लगा कि प्रदेश में न केवल चंदन तैयार हो सकता है बल्कि चोरी छिपे इसे तैयार भी किया जा रहा है। ऐसे में चंदन की खेती को लेकर न केवल वे प्रदेश बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर वन विभाग के बड़े अधिकारियों से मिले तथा चंदन की खेती बारे मार्गदर्शन प्राप्त किया। इसी संबंध में उन्होने वर्ष 2008 में देहरादून, 2009 में चेन्नई व केरल का दौरा किया तथा चंदन की खेती बारे जानकारी प्राप्त की। बाद में भारतीय वुड साइंस शोध संस्थान बेंगलुरु भी गये तथा चंदन की खेती बारे प्रशिक्षण प्राप्त करने को आवेदन दिया। उनका कहना है कि वर्ष 2015 को देश में पहली बार किसानों के लिये चंदन की खेती का प्रशिक्षण प्रारंभ हुआ तथा उन्होने स्वयं 2017 में  बेंगलुरु से एक सप्ताह का प्रशिक्षण हासिल किया। प्रदेश में चंदन की खेती को लेकर केंद्रीय मंत्रियों से लेकर प्रदेश के सांसदों से भी मिले। इस बीच तत्कालीन केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने चंदन की खेती को स्किल इंडिया में शामिल करने का भी आश्वासन दिया।

2008 में चंदन की नर्सरी तैयार करने को शुरू हुए प्रयास, 2014 में मिली सफलता

भूप राम शर्मा का कहना है कि वर्ष 2008 में देहरादून से चंदन के बीच लेकर आये तथा इन्हे उगाने का प्रयास किया लेकिन सफलता प्राप्त नहीं हुई। इसके बाद वे लगातार देश के विभिन्न स्थानों में पहुंचकर इसका तकनीकी अध्ययन करते रहे तथा वर्ष 2014 को तत्तापानी में चंदन की नर्सरी तैयार करने में सफलता प्राप्त हुई। वर्तमान में वे इस नर्सरी से प्रति वर्ष लगभग 60 हजार चंदन के पौधे तैयार कर किसानों को बांट रहे हैं। इसके अतिरिक्त कोलर नाहन में भी वे प्रति वर्ष 8-9 हजार चंदन के पौधे तैयार कर रहे हैं तथा अब तक प्रदेश में लगभग पांच लाख चंदन के पौधे तैयार करने में कामयाब हो चुके हैं।

12 वर्ष में चंदन का एक पौधा देता है एक लाख रूपये का उत्पाद, पौधे की सफलता दर है 10 प्रतिशत

भूप राम शर्मा का कहना है कि रोपण के बाद चंदन के पौधे की सफलता दर लगभग 10 प्रतिशत तक रहती है। वे किसानों को तीन वर्ष तक पौधे उपलब्ध करवाते हैं। जहां तक आर्थिक पक्ष की बात है तो चंदन का एक पौधा पांच वर्ष की आयु में लगभग 5 से 20 हजार जबकि 12 वर्ष की आयु तक 20 से 50 हजार रूपये तक की आमदनी देता है जबकि काटने पर 50 हजार से एक लाख रूपये तक की आमदनी हो जाती है।

हिमाचल में बर्फ रहित क्षेत्रों में आसानी से उग सकता है चंदन का पौधा 

उनका कहना है कि हिमाचल प्रदेश में बर्फ रहित क्षेत्र में चंदन के पौधे को उगाया जा सकता है। यह पौधा हिमाचल प्रदेश में किसानों की आर्थिकी को एक नई दिशा दे सकता है। वे कहते हैं कि चंदन का एक वर्ष का पौधा 40 रूपये जबकि दो साल का पौधा 200 रूपये में किसानों को उपलब्ध करवाते हैं। तीन वर्ष तक यदि पौधा मर जाता है तो वे फ्री में उसके बदले पौधा किसान को उपलब्ध करवाते हैं। साथ ही तैयार उत्पाद को भी वे स्वयं खरीद रहे हैं।

क्या कहते हैं अधिकारी:

इस संदर्भ में राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के क्षेत्रीय निदेशक उत्तर भारत स्थित जोगिन्दर नगर डॉ. अरूण चंदन का कहना है कि करसोग के भूप राम शर्मा हिमाचल प्रदेश के चंदन पुरुष हैं जिनके प्रयासों से आज प्रदेश में न केवल चंदन की खेती बड़े पैमाने पर आगे बढ़ी है बल्कि वर्तमान में पांच लाख से अधिक पौधे तैयार हो चुके हैं।
प्रदेश में चंदन की खेती को बढ़ावा देने के लिए चंदन को 75 प्रतिशत अनुदान वाले पौधे में शामिल करने का प्रयास किया जाएगा ताकि यहां के किसानों को इसका लाभ प्राप्त हो सके। इसके अलावा चंदन के पौधे से तैयार होने वाले बायो प्रोडक्टस को इंक्यूबेशन केंद्र के माध्यम से भी शामिल करने का प्रयास किया जाएगा ताकि चंदन के आर्थिक पहलुओं पर गंभीरता से शोध कार्य किया जाएगा ताकि किसानों को इसका सीधा लाभ प्राप्त हो सके।
उनका कहना है कि भूप राम शर्मा ने चंदन की खेती को केवल आर्थिक लाभ की दृष्टि से ही प्रदेश में आगे नहीं बढ़ाया है बल्कि आध्यात्मिक पहलुओं को भी ध्यान में रखते हुए इस कार्य कर रहे हैं जो एक सराहनीय कार्य है।








Saturday, 18 December 2021

राजा जोगिन्द्रसेन के नाम पर वर्ष 1925 में सकरोहटी गांव बना जोगिन्दर नगर

1932 में उत्तर भारत की पहली मैगावॉट शानन पन बिजली परियोजना के कारण दुनिया भर में हुआ मशहूर

जोगिन्दर नगर में कार्यरत हैं राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर के कई संस्थान, पर्यटन की दृष्टि से भी है खूबसूरत

धौलाधार पर्वतमाला की तलहटी में लगभग 1200 मीटर की ऊंचाई पर बसा जोगिन्दर नगर हिमाचल प्रदेश का एक खूबसूरत कस्बा है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर जोगिन्दर नगर पर्यटन की दृष्टि से प्रदेश का एक महत्वपूर्ण स्थान भी है। जोगिन्दर नगर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला का एक उप-मंडल मुख्यालय होने के साथ-साथ विधानसभा क्षेत्र भी है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर नजर दौड़ाएं तो जोगिन्दर नगर को पहले सकरोहटी नाम से जाना जाता था। तत्कालीन मंडी रियासत के प्रसिद्ध राजा जोगिन्द्रसेन के नाम पर इस नगर का नाम जोगिन्दर नगर पड़ा। उत्तर भारत की 110 मैगावॉट की पहली पन बिजली परियोजना (शानन परियोजना) (ऊहल चरण-एक) के यहां निर्मित होने के चलते यह कस्बा एकाएक पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। बाद में यहां पर शानन के बाद 66 मैगावॉट की बस्सी पन बिजली परियोजना (ऊहल चरण-2) बनने तथा 100 मैगावॉट की चुल्ला (उहल-तृतीय चरण) की निर्माणाधीन पन बिजली परियोजना के कारण जोगिन्दर नगर क्षेत्र पन बिजली उत्पादन गृह के नाम से भी जाना जाने लगा। 

सन 1922 को तत्कालीन पंजाब सरकार के चीफ इंजीनियर कर्नल बी.सी. बैटी ने 48 मैगावॉट की पन बिजली परियोजना बनाने की योजना बनाई। इसके बाद वर्ष 1925 में मंडी रियासत के तत्कालीन राजा जोगिन्द्रसेन तथा सैक्रेटरी ऑफ स्टेट इन इंडिया केमध्य सकरोहटी गांव के समीप पन बिजली परियोजना निर्मित करने को 3 मार्च, 1925 को लाहौर में एक समझौता हुआ। इस समझौते के बाद राजा जोगिन्द्रसेन के नाम पर सकरोहटी गांव का नाम बदलकर जोगिन्दर नगर कर दिया गया। इसके बाद इंजीनियर कर्नल बैटी ने अपनी टीम के साथ सकरोहटी गांव की पहाड़ी के दूसरी ओर स्थित बरोट से सुरंग के माध्यम से ऊहल नदी का पानी लाने की योजना पर कार्य शुरू किया। इस सुरंग में पानी की बड़ी-बड़ी पाईप बिछाकर सकरोहटी गांव के शानन नामक स्थान तक लाया गया। शानन में बिजली घर स्थापित किया गया तथा भारी भरकम मशीनरी को शानन से बरोट तक की पहाड़ी में पहुंचाने के लिए 1928 में हालीजे ट्राली लाइन का भी निर्माण किया गया।

कर्नल बैटी ने ब्रिटेन से आयातित भारी भरकम मशीनों को शानन तक पहुंचाने के लिए पठानकोट से जोगिन्दर नगर के शानन तक संकरी रेलवे लाइन (नैरोगेज लाइन) बिछाई गई जो वर्ष 1929 में शुरू हो गई। साथ ही शानन से बरोट तक सामान ले जाने के लिए लोहे के रस्सों की सहायता से चलने वाली हालीजे ट्राली मार्ग को भी बनाया गया। ऊहल नदी के पानी को सुंरग के माध्यम से शानन लाने के लिए बरोट में डैम का भी निर्माण किया गया। वर्ष 1932 में शानन पन बिजली परियोजना के विद्युत गृह का निर्माण पूरा हुआ तथा जोगिन्दर नगर मैगावॉट स्तर की पन बिजली परियोजना के कारण एकाएक पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया। कुल 2 करोड़ 53 लाख 43 हजार 709 रूपये की लागत से यह प्रोजेक्ट बनकर तैयार हुआ। इस परियोजना का सपना संजोने वाले कर्नल बीसी बैटी की धारीवाल पंजाब के समीप दुर्घटना में मौत हो गई। कर्नल बैटी की मौत के बाद 10 मार्च, 1933 को तत्कालीन वायसराय ऑफ इंडिया ने लाहौर के शालीमार रिसीविंग स्टेशन में बटन दबाकर इस परियोजना का शुभांरभ किया था। इसके बाद वर्ष 1982 में शानन पन बिजली परियोजना के उत्पादन स्तर को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त 50 मैगावॉट क्षमता को जोड़ा गया तथा इसकी कुल उत्पादन क्षमता बढक़र 110 मैगावॉट हो गई।

जोगिन्दर नगर हिमाचल प्रदेश के उन गिने चुने स्थानों में शामिल है जो रेल नेटवर्क के साथ जुड़ा हुआ है। जोगिन्दर नगर से प्रतिदिन पठानकोट के लिए रेल सुविधा उपलब्ध है। भले ही ऐतिहासिक दृष्टि से शानन विद्युत गृह तक रेल सुविधा उपलब्ध नहीं है लेकिन अभी भी यह रेलवे ट्रैक यहां मौजूद है, जो यहां के इतिहास को बयान कर रहा है। शानन विद्युत गृह से बरोट के मध्य बिछाई गई हॉलीजे ट्राली लाइन आज भी मौजूद है लेकिन इसका बेहतर रखरखाव न होने के कारण यह ऐतिहासिक धरोहर भी दिन प्रतिदिन नष्ट होने की कगार पर जा पहुंची है। वर्ष 1966 में पंजाब राज्य पुर्नगठन के दौरान प्रदेश की पहली मैगावॉट स्तर की शानन पन बिजली परियोजना पंजाब सरकार को 99 वर्ष की लीज पर दे दी गई। वर्तमान में यहां पैदा होने वाली बिजली की आपूर्ति पंजाब राज्य को की जाती है।

देश की आजादी तथा हिमाचल प्रदेश की स्थापना के बाद यहां पर राष्ट्रीय व प्रदेश स्तर के कई महत्वपूर्ण संस्थान स्थापित हुए हैं। जिनमें प्रदेश का राजस्व प्रशिक्षण संस्थान, भारतीय चिकित्सा पद्धति अनुसंधान संस्थान (हर्बल गार्डन), आयुर्वेदिक फॉर्मेसी, प्रदेश का पहला आयुर्वेदिक बीफॉर्मा प्रशिक्षण संस्थान, नेशनल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड का उत्तर भारत का क्षेत्रीय एवं सुगमता केंद्र तथा कृषि विभाग का बीज गुणन प्रेक्षत्र प्रमुखता से शामिल हैं। इसके अतिरिक्त जोगिन्दर नगर शहर से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर देश का पहला गोल्डन महाशीर मछली प्रजनन फॉर्म भी स्थापित किया गया है। जोगिन्दर नगर हिमाचल प्रदेश के उन गिने चुनें शहरी क्षेत्रों में शामिल है जहां पर सीवरेज की सुविधा उपलब्ध है।

पर्यटन की दृष्टि से जोगिन्दर नगर व यहां के आसपास का स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहां की साफ व स्वच्छ वायु बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। सर्दियों में जहां जोगिन्दर नगर के चारों ओर बर्फ से ढक़ी वादियां नयनाविभोर दृष्य बनाती है तो वहीं गर्मियों के दौरान यहां का तापमान 30 डिग्री सैल्सियस से अधिक नहीं जाता है। यहां की सबसे खास बात यह है कि ग्रीष्म मौसम में जैसे ही तापमान थोड़ा सा बढ़ता है तो यहां पर एकाएक बारिश मौसम को ओर सुहावना बना देती है। इसके अलावा पर्यटक विश्व प्रसिद्ध पैराग्लाइडिंग साइट बीड़-बीलिंग, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर झटींगरी, फूलाधार, घोघरधार, बरोट व चौहारघाटी का भी आनंद उठा सकते हैं। धार्मिक दृष्टि से भी जोगिन्दर नगर के आसपास कई प्रसिद्ध व ऐतिहासिक धार्मिक स्थान मौजूद हैं जिनमें मच्छयाल, मां चतुर्भुजा मंदिर, मां सिमसा मंदिर, नागेश्वर महादेव कुड्ड, बाबा बालकरूपी, त्रिवेणी संगम इत्यादि प्रमुख हैं। यहां पर प्रतिवर्ष 1-5 अप्रैल तक राज्य स्तरीय जोगिन्दर नगर देवता मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें यहां की देव संस्कृति देखते ही बनती है। इसके अलावा मेले के दौरान रंगारंग सांस्कृतिक संध्याएं भी मुख्य आकर्षण का केंद्र रहती हैं।

जोगिन्दर नगर शहर पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय उच्च मार्ग 154 से जुड़ा हुआ है। रेल नेटवर्क (नैरोगेज लाइन) की सुविधा जोगिन्दर नगर तक पठानकोट से उपलब्ध है जबकि नजदीकी हवाई अड्डा गगल कांगड़ा में है। यहां पर रहने के लिए कई सरकारी विश्राम गृहों के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के होटल के अतिरिक्त कई निजी होटल भी उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त प्रदेश की होम स्टे योजना के तहत पंजीकृत कई होम स्टे होटल भी हैं जहां पर्यटक प्रदेश की संस्कृति के साथ-साथ लोकल पकवानों व खाने का भी आनंद उठा सकते हैं।

Friday, 17 December 2021

स्टीविया के शुगर फ्री प्रोडक्ट्स तैयार करने को प्रदेश में 200 एकड़ खेती की है जरूरत

प्रतिवर्ष 2 हजार टन स्टीविया की पत्तियों की है जरूरत, किसान प्रति एकड़ कमा सकता है एक लाख रूपया

स्टीविया की खेती को राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय जोगिन्दर नगर किसानों को करेगा प्रोत्साहित

हिमाचल प्रदेश में स्टीविया के शुगर फ्री प्रोडक्ट्स तैयार करने के लिए प्रतिवर्ष 2 हजार टन स्टीविया की पत्तियों की जरूरत है। इसके लिये किसानों को लगभग 200 एकड़ जमीन में स्टीविया की खेती करनी होगी। स्टीविया की खेती से एक किसान एक एकड़ जमीन से प्रतिवर्ष एक से डेढ़ लाख रुपया कमा सकता है। लेकिन प्रदेश में गुणवत्तायुक्त स्टीविया की पत्तियां उपलब्ध न हो पाने के कारण प्रदेश में ही स्टीविया के शुगर फ्री प्रोडक्ट्स तैयार करने में कामयाबी नहीं मिल पा रही है।

प्रदेश के अंदर ही बद्दी में दिल्ली के 53 वर्षीय उद्योगपति सौरभ अग्रवाल ने लगभग साढ़े आठ करोड़ रूपये की लागत से अंतर्राष्ट्रीय स्तर की आयातित तकनीक के आधार पर स्टीविया प्रोडक्ट्स 'स्टीविया लाईफ Ó ब्रांड तैयार करने को स्टीविया बायोटेक उद्योग स्थापित कर लिया है। लेकिन प्रदेश के भीतर गुणवत्तायुक्त स्टीविया की पत्तियां न मिल पाने के कारण वे इस कार्य को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होने विदेशों से आयात किये हुए उच्च गुणवत्ता युक्त एवं स्थानीय पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए स्टीविया के पौधे तैयार कर लिये हैं। जिन्हे टिश्यू कल्चर के माध्यम से मदर नर्सरी तैयार कर किसानों को उपलब्ध करवाया जाएगा ताकि कंपनी को जरूरत अनुसार उच्च गुणवत्ता युक्त स्टीविया का कच्चा माल उपलब्ध हो सके। इसके लिये उन्होने राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय उत्तर भारत स्थित जोगिन्दर नगर में पहुंचकर स्टीविया की खेती से प्रदेश के किसानों को जोड़ने का विशेष आग्रह किया है ताकि स्टीविया के शुगर फ्री प्रोडक्ट्स तैयार करने के लिये प्रदेश के भीतर ही आवश्यक कच्चा माल उपलब्ध हो सके। वर्तमान में जो स्टीविया के पौधे तैयार हो रहे हैं वे न केवल गुणवत्ता की दृष्टि से निम्न दर्जे के हैं बल्कि उन्हे उद्योग में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

क्या कहते हैं अधिकारी:

इस संदर्भ में राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के क्षेत्रीय निदेशक उत्तर भारत स्थित जोगिन्दर नगर डॉ. अरूण चंदन का कहना है कि स्टीविया एक प्राकृतिक स्वीटनर है जो गन्ने से न केवल 300 गुणा अधिक मीठा होता है बल्कि इसमें जीरो शुगर व कैलोरी होती है। ऐसे में देश के लगभग 8 करोड़ मधुमेह मरीजों के लिए शुगर फ्री प्रोडक्ट्स की बहुत मांग है। लेकिन वर्तमान में देश के भीतर शुगर फ्री प्रोडक्ट्स केवल विदेशों से आयातित कच्चे माल के आधार पर ही तैयार हो रहें जिसके लिये हमारे यहां कोई स्थानीय व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।

उनका कहना है कि स्टीविया बायोटेक किसानों से अनुबंध कर 'स्टीविया लाइफÓ ब्रांड के तहत अपने स्तर पर स्टीविया के पौधे तैयार करना चाहती है। इससे न केवल कंपनी को उच्च गुणवत्ता युक्त स्टीविया का कच्चा माल मिल सकेगा बल्कि किसानों को उनके उत्पाद की उचित लागत भी प्राप्त होगी। राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड का क्षेत्रीय एवं सुगमता केंद्र-एक उत्तर भारत स्थित जोगिन्दर नगर कार्यालय अगले दो वर्ष में 50 एकड़ से लेकर 200 एकड़ तक की स्टीविया खेती से जोड़ने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने का काम करेगा।

उन्होने बताया कि जिला ऊना में औषधीय पौधों व जड़ी बूटियों की खेती को मनरेगा कन्वर्जेन्स के तहत जोड़ा गया है, ऐसे मेें उपायुक्त ऊना के सहयोग से स्टीविया को भी शामिल करने का प्रयास किया जाएगा। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर का ऊना स्थित कृषि विज्ञान केंद्र भी स्टीविया बायोटेक के साथ स्टीविया के क्षेत्र में काम करने को आगे आया है।

डॉ. अरूण चंदन का कहना है कि स्टीविया विदेशों से आयातित पौधा है। हिमाचल प्रदेश में स्टीविया के पौधे तैयार करने के लिए जलवायु की दृष्टि से जिला ऊना, बिलासपुर, निचला सोलन तथा कांगड़ा जिला के गर्म व मैदानी इलाके उपयुक्त हैं।