Himdhaara Search This Blog

Monday, 15 September 2014

सात वर्षीय नीरज के लिए राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम लेकर आया नया जीवन

हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के पांवटा साहिब विकास खंड की ग्राम पंचायत भाटांवाली के गांव किशनपुरा के प्राथमिक स्कूल की दूसरी कक्षा में पढ़ रहे सात वर्षीय नीरज के लिए राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम किसी नए जीवन से कम साबित नहीं हुआ है। पिछले कुछ महीनों से बुखार, पेट दर्द इत्यादि से परेशान जब इस बच्चे की राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत लगे शिविर में जांच की गई तो चिकित्सकों ने बीमारी की जटिलता को देखते हुए जांच हेतु पीजीआई चंडीगढ़ रैफर किया गया। जब जांच रिपोर्ट आई तो नीरज में थैलेसीमिया बीमारी के लक्षण पाए गए हैं। 
जब इस बारे नीरज की माता श्रीमति सरोज से बातचीत की गई तो उनका कहना है कि उनके बेटे को पिछले कुछ समय से बुखार, पेट दर्द इत्यादि की समस्या रहने लगी तथा स्थानीय स्तर पर डाॅक्टरों को दिखाया जाता रहा लेकिन जब राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत बच्चे की पीजीआई चंडीगढ़ में जांच हुई तो इस गंभीर बीमारी का पता चला है। तीन भाई बहनों में सबसे छोटे नीरज के पिता का देहान्त पिछले दिनों हो गया था ऐसे में इस गरीब परिवार के लिए इस संकट की घडी में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम सहारा बनकर आया है। श्रीमति सरोज ने बताया कि अब बच्चे का ईलाज पीजीआई चंडीगढ़ से हो रहा है तथा ईलाज हेतु अब तक लगभग 25 हजार रूपये की आर्थिक सहायता भी मिल चुकी है। 
कमोबेश कुछ इसी तरह की कहानी ग्राम पंचायत शिवपुर की 17 वर्षीय प्रदीप कौर की है। 12वीं कक्षा में पढ रही प्रदीप का चैकअप किया गया तो चिकित्सकों ने बीमारी की जटिलता को देखते हुए जांच हेतु पीजीआई चंडीगढ़ रैफर किया तथा जांच रिपोर्ट में इस बच्ची को ब्लड शुगर व आंख में जन्मजात काॅर्निया की बीमारी सामने आई है। इसी तरह भजौन पंचायत की 16 वर्षीय प्रीती व 13 वर्षीय आंचल में भी आंख में जन्मजात काॅर्निया जबकि कोलर पंचायत से 13 वर्षीय अभिषेक को ब्लड कैंसर पाया गया है। यही नहीं जहां टोका नगला की 16 वर्षीय शबनम की एक आंख में भेंगापन पाया गया तो वहीं कफोटा क्षेत्र के पवार गांव की रेणु की आंखों के साथ-2 नाक, कान व गले में भी समस्या सामने आई है। इस तरह की बीमारियों से ग्रस्त बच्चों का ईलाज पीजीआई चंडीगढ व अन्य बडे अस्पतालों में चल रहा है तथा बच्चों को स्वस्थ जीवन की एक नई रोशनी मिली है।  
क्या कहते हैं आंकडेः
ऐसे में यदि जिला सिरमौर के पांवटा विकास खंड के आंकडों का विशलेषण करें तो वर्ष 2013-14 के दौरान कुल 71 क्लस्टर कैंप ( 193 प्राथमिक स्कूल, 41 माध्यमिक, 19 हाई स्कूल तथा 29 वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल शामिल हैं ) लगाए गए जिसमें 17067 बच्चों (जिसमें 8980 लडके व 8087 लडकियां शामिल है) की स्वास्थय जांच की गई है। इस जांच के दौरान खून की कमी (अनीमिया) के 1491 (जिसमें 846 लडके व 645 लडकियां), चमडी रोग के 682 (जिसमें 355 लडके व 327 लडकियां), दांतों के 1806 (जिसमें 889 लडके व 917 लडकियां), ईएनटी के 647 (जिसमें 327 लडके व 320 लडकियां), आंखों के 2314 (जिसमें 1234 लडके व 1080 लडकियां ), हृदय रोग के 7 (जिसमें 03 लडके व 04 लडकियां), मानसिक व शारीरिक अक्षमता के 40 (जिसमें 21 लडके व 19 लडकिया शामिल हैं) मामले सामने आए। इस दौरान 107 बच्चों को बीमारी की जटिलता को देखते हुए पीजीआई चंडीगढ़ सहित अन्य बडे अस्पतालों को रैफर किया गया है। 
क्या कहते हैं अधिकारीः
खण्ड चिकित्सा अधिकारी, राजपुर डाॅ0केके पराशर का कहना है कि राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अन्तर्गत स्कूली बच्चों की स्वास्थ्य जांच की जा रही है तथा आवश्यकता पडने पर बच्चों को मुफत दवाईयां व अन्य उपचार भी दिया जा रहा है। उन्होने बताया कि इस कार्यक्रम के अन्तर्गत गंभीर बीमारी के मामलों जैसे हृदय रोग, शल्य चिकित्सा, अक्षमता इत्यादि पाए जाने पर बच्चों को ईलाज हेतु बडे अस्पतालों में भेजा जा रहा है तथा इस कार्यक्रम के अन्तर्गत बच्चों को ईलाज हेतु आर्थिक सहायता भी मुहैया करवाई जा रही है।
 ऐसे में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत लग रहे चिकित्सा जांच शिविरों में बच्चों की कई बीमारियां सामने आ रही हंै। ऐसे में जहां यह कार्यक्रम प्रदेश के ग्रामीण व दूरदराज क्षेत्रों में शिक्षा ग्रहण कर रहे प्रदेश के लाखों बच्चों के लिए वरदान साबित हो रहा है तो वहीं ईलाज के दौरान आर्थिक सहायता भी मुहैया करवा रहा है।

Wednesday, 20 August 2014

सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से सशक्त हो रही महिलाएं


महिला एवं बाल विकास विभाग की बाल विकास परियोजना पांवटा साहिब में सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाआें व कार्यक्रमों को 430 आंगनबाड़ी केन्द्रों व दो मिनी आंगनबाड़ी केन्द्रों के माघ्यम से क्षेत्र के ग्रामीण व दूरदराज क्षेत्रों में रह रहे लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। जिसमें बेटी है अनमोल, माता शबरी महिला सशक्तिकरण योजना, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, मदर टेरेसा असहाय मातृ सम्बल योजना, महिला स्वयं रोजगार योजना व विधवा पुर्नविवाह योजना इत्यादि प्रमुख है।
इन योजनाआें से संबंधित जानकारी देते हुए बाल विकास परियोजना अधिकारी श्री मदन चौहान ने बताया कि वर्ष 2013-14 के दौरान पांवटा विकास खण्ड़ में बेटी है अनमोल योजना के तहत 86 मामले में कुल 1,92,000 रुपये की राशि व्यय की गई है। ज्ञात रहे प्रदेश सरकार ने बालिका के महत्व के प्रति जागरुकता लाने के लिए बेटी है अनमोल योजना को दो घटकों में चलाया जा रहा है। पहले घटक के अन्र्तगत गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) गुजर बसर करने वाले प्रत्येक परिवार में जन्मी लडक़ी के जन्म पर (केवल दो लड़कियों तक सीमित) 10000/- रुपये ड़ाकघर में जमा किए जाते हैं, जो 18 वर्ष की आयु पर ब्याज सहित दिए जाते हैं। इसी तरह दूसरे घटक के तहत लडक़ी के स्कूल जाने पर सरकार द्वारा छात्रवृति प्रदान की जाती है। 
इसी तरह माता शबरी महिला सशक्तिकरण योजना के तहत पांवटा विकास खण्ड़ में अनुसूचित जाति के गरीब परिवारों की 125 महिलाआें को जिनके पास अपना गैस कनेक्शन नहीं था को लाभान्वित किया गया। जिस पर प्रदेश सरकार ने प्रति गैस कनेक्शन पर 1300 रुपये उपदान के हिसाब से कुल 1,62,500 रुपये खर्च किए हैं। इस योजना का मुख्य उदेश्य गरीब ग्रामीण महिलाआें को ईंधन की लकड़ी को एकत्रित करने के कार्यों से राहत दिलवाना तथा पर्यावरण में सुधार लाना प्रमुख है। मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के अन्तर्गत पांवटा विकास खण्ड़ में वर्ष 2013-14 के दौरान 12 मामलों में तीन लाख रुपये की सहायता राशि प्रदान की है। इस योजना के तहत गरीब परिवारों की बेहसारा महिलाएं/लड़कियां जिनकी वार्षिक आय 35,000 रुपये से अधिक न हो को शादी हेतू 25000/-रुपये की वित्तीय सहायता सरकार द्वारा प्रदान की जाती है। जबकि मदर टेरेसा असहाय मातृ सम्बल योजना के अन्र्तगत नि:सहाय महिलाआें के बच्चे या अनाथ बच्चे जिनकी आयु 18 वर्ष से कम हो, के पालन पोषण हेतू 1500 रुपये प्रति बच्चा प्रति वर्ष (केवल दो बच्चों तक) वितीय सहायता मिलती है। इसी योजना के तहत पांवटा विकास खण्ड़ में 326 ऐसे मामलों में 16,64,079 रुपये की राशि पिछले वर्ष के दौरान उपलब्ध करवाई गई है।
 समाज में महिलाआें को आत्मनिर्भर बनाने के लिए महिला स्वयं रोजगार योजना के तहत सालाना 35000 रुपये या इससे कम आय वाली महिलाआें को अपना काम धन्धा शुरु करने के लिए 2500 रुपये प्रति महिला आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। पांवटा विकास खण्ड़ में पिछले वितीय वर्ष के दौरान 11 एेसे मामलों में 27,500 रुपये की राशि खर्च की गई है। यही नहीं समाज में विधवाआें को पुर्नविवाह हेतू प्रेरित करने के लिए विधवा पुर्नविवाह योजना लागू की है। इस योजना के तहत पांवटा विकास खण्ड़ में वर्ष 2013-14 के दौरान एेसे एक मामलों में 50,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदेश सरकार ने मुहैया करवाई है। 
बहरहाल पांवटा विकास खण्ड़ में समेकित बाल विकास परियोजना कार्यालय के माध्यम से विभिन्न योजनाआें व कार्यक्रमों के तहत 561 मामलों में लगभग 24 लाख रुपये की राशि प्रदेश सरकार ने महिलाआें के उत्थान व कल्याण हेतू वर्ष 2013-14 के दौरान खर्च की है। 

Wednesday, 9 July 2014

मंझियाली (क्वागधार) के भूप सिंह पर्यावरण संरक्षण को मुफत में बांट रहे हैं फलदार व औषधीय पौधे


           पूरी दुनिया में बढ़ते प्रदूषण, घटते जंगलों तथा हमारे आसपास आए दिन प्रकृति के साथ बढ रही छेडछाड के कारण आज हमें बाढ़, भू-स्खलन, बादल फटना, प्रदूषित जल हवा इत्यादि जैसी अनेकों समस्याओं से दो-चार होना पड रहा है। एक तरफ जहां राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न मंचों के माध्यम से पर्यावरण को बचाए रखने के लिए गंभीर मंथन हो रहे हैं तो वहीं हमारे आसपास ऐसे लोग भी मिल जाएंगें जो बिना किसी स्वार्थ से पर्यावरण संरक्षण को लेकर केवल गंभीर में बल्कि निरन्तर कार्यशील हैं।
            हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के नाहन-सोलन उच्च मार्ग पर स्थित गांव मंझियाली (क्वागधार) के 70 वर्षीय किसान भूप सिंह हमारे बीच एक ऐसे शख्स हैं जो पर्यावरण को साफ सुथरा हरा-भरा बनाने के लिए पिछले 7-8 वर्षों से मुफत में समाज सेवा कर रहे हैं। भूप सिंह अब तक लगभग 3 हजार से अधिक फलदार औषधीय पौधे प्रदेश प्रदेश के बाहर के लोगों को मुफत में बांट चुके हैं। पर्यावरण संरक्षण को लेकर भूप सिंह को गैर सरकारी संस्था भृंगी जन कल्याण संगठन वर्ष 2013 में डा0 यशवन्त सिंह परमार की जयन्ती पर उन्हे प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी कर चुकी है।
जब इस बारे भूप सिंह से बातचीत की गई तो उनका कहना है कि वर्ष 2006 में बागवानी विभाग से 40 वर्ष तक बतौर माली सेवा करने के बाद सेवानिवृत हुए हैं। उन्होने बताया कि उन्हे हमेशा से ही हरी भरी धरती को देखने तथा अधिक से अधिक पेड पौधे लगाकर पर्यावरण को हरा-भरा करने की चाहत रहती थी। वह कहते हैं कि जब वह अपने आसपास नंगी होती पहाडियों तथा घटते वृक्षों को देखते हैं तो उन्हे बहुत अधिक पीडा होती है।
            ऐसे में उन्होनेे सेवानिवृति के बाद घर में ही पेड पौधों की नर्सरी लगाकर आसपास तथा प्रदेश के बाहर से आने वाले पर्यटकों को मुफत में पौधे बांटने शुरू कर दिए। आज तक वह हिमाचल प्रदेश सहित गुजरात, राजस्थान, उतरप्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड इत्यादि राज्यों के लोगों को लगभग 3 हजार से अधिक अखरोट, अनार, पपीता, शहतूत, अमरूद, कागजी नींबू जैसे फलदार पौधों के अतिरिक्त अश्वगंधा जैसे औषधीय पौधों का भी वितरण मुफत में कर चुके हैं।
            हिमाचल निर्माता डा0 यशवंत सिंह परमार को अपना आदर्श मानने वाले तथा बडे ही मृदुभाषी साधारण सा जीवन व्यतीत कर रहे भूप सिंह कहते हैं कि आज हमारे आसपास जंगली जानवरों विशेषकर बंदरों इत्यादि की समस्या से किसानों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड रहा है। ऐसे में वह स्थानीय तथा बाहर से आने वालों को जंगलों में ज्यादा से ज्यादा फलदार औषधीय पौधे लगाने के लिए प्रेरित करते रहते हैं जबकि वह स्वयं भी ऐसे पौधों को मुफत में लोगों को बांट रहे हैं। उनका कहना है कि वह अपनी पेंशन का लगभग 30 फीसदी हिस्सा विभिन्न पौधों की नर्सरी तैयार करने में खर्च करते हैं। वह कहते हैं इस वर्ष उन्होने नागपुर से कंधारी अनार के बीज मंगवाकर लगभग 700 पौधों के अतिरिक्त 400 पपीता तथा 200 अमरूद के पौधों की नर्सरी तैयार की है। जिन्हे वह लोगों को मुफत में वितरित करेंगें। भूप सिंह कहते हैं कि वह प्रतिदिन घर के अन्य कार्यों से समय निकालकर प्रतिदिन 2-3 घंटे पौधों की देखभाल में लगाते हैं। सबसे मजेदार बात तो यह है कि इन्होने मुफत में बांटे गए प्रत्येक पौधे का बकायदा एक रजिस्टर में पंजीकरण किया हुआ है जिसमें पौधे ले जाने वालों का नाम, पता फोन नम्बर तक उपलब्ध है।
            जब उनसे इस कार्य में सरकारी सहायता बारे प्रश्न किया तो वह कहते हैं कि पौधे तैयार करने के लिए लिफाफे वन विभाग की ओर से मुफत में दिए जाते हैं। उनका कहना है कि यदि सरकार उन्हे बीज उपलब्ध करवाए तो वह पर्यावरण संरक्षण के इस अभियान में बेहतर कार्य कर सकते हैं। ऐसे में 70 वर्षीय किसान भूप सिंह ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर समाज के सामने एक आदर्श ही स्थापित नहीं किया है बल्कि पर्यावरण को बचाने के लिए हमारे सामने एक अनूठी मिसाल भी कायम की है। 
(साभार: दैनिक न्याय सेतु 8 जुलाई, दिव्य हिमाचल, 8 जुलाई, पंजाब केसरी, 8 जुलाई, दैनिक भास्कर 8 जुलाई, हिमाचल दस्तक 8 जुलाई, हिमाचल दिस वीक 12 जुलाई, 2014 तथा गिरिराज 3 सितम्बर, 2014 में प्रकाशित)