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Thursday, 10 May 2018

गैर आवासीय विशेष प्रशिक्षण केंद्रों (एनआरएसटीसी) के माध्यम से 15 हजार बच्चे लाभान्वित

जिला ऊना में वर्तमान में 47 एनआरएसटीसी केंद्रों में 1200 बच्चों को 47 अध्यापक दे रहे शिक्षा
सार्वभौमिक प्रारंभिक शिक्षा के लक्ष्य की पूर्ति के लिए सर्व शिक्षा अभियान के माध्यम से सरकार द्वारा अनेक कदम उठाए जा रहे हैं ताकि 6-14 वर्ष आयु वर्ग का कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए सरकार ने शिक्षा गारंटी योजना (ईजीएस), वैकल्पिक शिक्षा स्कूल (एएलएस), वैकल्पिक अभिनव शिक्षा(एआईई), गैर आवासीय ब्रिज कोर्स (एनआरबीसी) तथा गैर आवासीय विशेष प्रशिक्षण केंद्र(एनआरएसटीसी) जैसे अनेक कार्यक्रम शुरू किए हैं। जिला ऊना में वर्ष 2003 में गैर आवासीय प्रशिक्षण केंद्र (एनआरएसटीसी) केंद्रों की शुरूआत हुई। शुरू में जिला में 150 बच्चों के साथ ऐसे कुल सात केंद्र झुग्गी-झोंपडी वाले क्षेत्रों में स्थापित किए गए तथा जिनकी संख्या अब बढक़र 47 हो गई है। 
वर्तमान में इन 47 एनआरएसटीसी केंद्रों में 12सौ बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, जिन्हे 47 अध्यापक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। इस योजना के माध्यम से जिला में अबतक लगभग 15 हजार बच्चों को लाभान्वित किया जा चुका है। इसके अलावा इन केंद्रों के माध्यम से लगभग 60 परिवारों को रोजगार भी मुहैया करवाया गया है।
एनआरएसटीसी केंद्रों में सरकार दे रही ये सुविधा
एनआरएसटीसी केंद्रों में सरकार बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए पढऩे व लिखने का सामान, लाईब्रेरी की किताबें, स्वच्छता किट, पठन-पाठन सामाग्री, मोबाइल टॉयलेटस, कांऊसलिंग शिविर तथा टीचर ट्रेनिंग की सुविधा दे रही है। इसके अलावा इन केंद्रों में पठन-पाठन प्रक्रिया के अतिरिक्त खेलकूद, अन्य प्रतियोगिताएं एवं अन्य विभिन्न तरह की गतिविधियों का भी आयोजन किया जाता है।
कैसे लाया गया बच्चों में परिवर्तन
इस संबंध में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाईट) ऊना के प्रधानाचार्य एवं प्रोजैक्ट डायरेक्टर एसएसए-आरएमएसए कमलदीप सिंह से बातचीत की तो उनका कहना है कि एनआरएसटीसी केंद्रों के माध्यम से सबसे पहले झुगी-झोंपडी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों के अभिभावकों को इन केंद्रों में शिक्षा हासिल करने के लिए प्रेरित किया गया। उन्हे बताया कि गया कि यदि बच्चे शिक्षित एवं विभिन्न कौशलों में प्रशिक्षित होंगे तो वे जीवन में बेहतर रोजगार के साधन जुटा सकते हैं तथा रोजगार प्राप्त करने के अवसर में भी बढ़ौतरी होगी। 
शुरूआती दौर में जहां झुग्गी-झोंपडियों में रहने वाले अप्रवासी एवं मेहनत-मजदूरी करने वाले परिवारों के बच्चे स्वच्छता के प्रति जागरूक भी नहीं थे। जिसके प्रति इन केंद्रों के माध्यम से जहां स्वच्छता को लेकर जागरूकता लाई गई तो वहीं उन्हे स्वच्छता किट भी वितरित किए गए। साथ ही बताया का आरंभिक दौर में अभिभावक बच्चों के पठन-पाठन तथा पढऩे-लिखने के लिए सामाग्री उपलब्ध करवाने के प्रति भी जागरूक नहीं थे। इस बारे भी बच्चों को सरकार के माध्यम से पढऩे-लिखने के लिए पुस्तकें, स्कूल बैग, ड्रैस इत्यादि उपलब्ध करवाकर उन्हे शिक्षा हासिल करने के लिए प्रेरित किया गया। इसके अलावा बच्चों की समय पर कांऊसलिंग भी की गई  तथा एनआरएसटीसी केंद्रों के बच्चों को एक्सपोजर देने के लिए केंद्र, ब्लॉक व जिला स्तर की विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इसके अलावा आसपास के सरकारी व निजी स्कूलों में भी इन बच्चों का भ्रमण करवाया जाता है ताकि इन्हे समाज की मुख्यधारा में जोड कर इनके जीवन में व्यापक बदलाव लाया जा सके। 

क्या कहते हैं उपायुक्त 
इस बारे उपायुक्त ऊना राकेश कुमार प्रजापति का कहना है कि एनआरएसटीसी योजना के माध्यम से जिला ऊना में कार्यरत 47 केंद्रों के तहत वर्तमान में लगभग 12 सौ बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है। उन्होने बताया कि बच्चों को शिक्षित करने के लिए 10 डाईट के अध्यापक तथा 37 गैर सरकारी संस्थाओं जिनमें राष्ट्रीय एकता मंच, सनराईज एजुकेशन सोसाइटी तथा शिक्षा सुधार समिति शामिल है के 37 अध्यापक बच्चों को शिक्षित करने के लिए वहां तैनात हैं। उन्होने बताया कि इस योजना के माध्यम से वर्ष 2003 से लेकर 2018 तक लगभग तीन करोड 80 लाख रूपये की राशि व्यय कर लगभग 15 हजार बच्चों को लाभान्वित किया जा चुका है तथा 45 सौ बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा के साथ जोडा गया है।








Tuesday, 24 April 2018

लोअर देहलां के पवन कुमार के लिए मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना बनी वरदान

एक हैक्टेयर में सोलरयुक्त बाडबंदी कर फसलों को किया सुरक्षित, उपज में हुई बढ़ौतरी
हिमाचल प्रदेश के किसान आए दिन बंदरों व अन्य जंगली जानवरों के कारण फसलों को हो रहे नुकसान के चलते जहां मजबूरीवश खेती को छोडने के लिए विवश हो रहे हैं तो वहीं खेती-बाड़ी लगातार घाटे का सौदा बनती जा रही है। इस समस्या को प्रदेश सरकार ने भी गंभीरता से लिया है तथा किसानों की फसलों को बचाने के लिए मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना को शुरू किया है। इस योजना के माध्यम से किसानों को अपने खेतों की सोलरयुक्त बाडबंदी के लिए प्रदेश सरकार 80 प्रतिशत तक अनुदान उपलब्ध करवा रही है। प्रदेश सरकार ने बजट 2018-19 के लिए तीन या इससे अधिक किसानों द्वारा संयुक्तरूप से बाडबंदी करवाने पर 85 प्रतिशत तक का अनुदान देने का प्रावधान किया है।
जिला ऊना के सांसद आदर्श गांव लोअर देहलां निवासी 62 वर्षीय पवन कुमार ऐरी के लिए मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना किसी वरदान से कम साबित नहीं हुई है। बाडबंदी के कारण जहां जंगली जानवरों द्वारा फसलों को होने वाला नुकसान कम हुआ है तो वहीं फसल के उत्पादन में भी वृद्धि दर्ज हुई है। 
इस बारे जब पवन कुमार ऐरी से बातचीत की तो उनका कहना है कि उन्होने लगभग एक हैक्टेयर कृषि योग्य भूमि में सोलरयुक्त बाडबंदी कर रखी है जिससे न केवल विभिन्न तरह के जंगली जानवरों जैसे नील गाय, सांबर, जंगली सुअर इत्यादि से उनकी फसल सुरक्षित हुई है बल्कि वह अब घर में चैन की नींद सो पाते हैं। उनका कहना है कि उनके द्वारा खेतों में की गई सोलरयुक्त बाडबंदी का असर आसपास के खेतों पर भी पडा है तथा जंगली जानवरों के नुकसान में कमी आई है। उन्होने बताया कि पहले जहां उनके इस एक हैक्टेयर रकबे में लगभग 22 से 25 क्विंटल गेंहू की पैदावार हो पाती थी जो अब बढक़र 35 से 40 क्विटल तक  पहुंच गई है।

पवन कुमार का कहना है कि सोलरयुक्त बाडबंदी से पूर्व जहां जंगली जानवर उनकी फसलों को काफी नुकसान पहुंचाते थे तो वहीं खेतों की रखवाली के लिए उन्हे दिन-रात पहरा देना पड़ता था। लेकिन उन्हे जैसे ही प्रदेश सरकार की मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना बारे पता चला तो उन्होने कृषि विभाग के अधिकारियों के सहयोग से यह बाडबंदी करवाई। उन्होने बताया कि सोलयुक्त बाड को छूने पर जहां 12 वोल्ट करंट का झटका लगता है तो वहीं इसका रखरखाव भी ज्यादा मुश्किल नहीं है। उनका कहना है कि यदि सरकार बाडबंदी करते वक्त निचले हिस्से को पक्का करने या पोलीशीट लगाने का भी प्रावधान कर दे तो घास व झाडियां इत्यादि उगने से अक्सर बाड़ में करंट अवरूद्ध होने की संभावना बनी रहती है से भी छुटकारा मिलेगा। 
उनका कहना है कि मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना बंदरों व अन्य जंगली जानवरों से परेशान किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है तथा लोगों से इन योजना का भरपूर लाभ उठाने का आहवान किया है। 
क्या कहते हैं अधिकारी:
उपनिदेशक कृषि विभाग ऊना यशपाल चौधरी का कहना है कि मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना के तहत सरकार सोलरयुक्त बाडबंदी के लिए 80 प्रतिशत तक का अनुदान उपलब्ध करवा रही है। उन्होने बताया कि जिला ऊना में इस योजना के तहत वर्ष 2017-18 के दौरान 42 किसानों को लाभान्वित कर 1.14 करोड रूपये की राशि व्यय की गई है तथा 18 हजार 400 मीटर लंबी परिधि की 9 कतारों वाली तारें लगाई गई हैं। उन्होने बताया कि एक बैटरी से लगभग 15 सौ मीटर सोलरयुक्त बाडबंदी की जा सकती है, ऐसे में किसानों से सामूहिक तौर पर इस योजना का लाभ उठाने का आहवान किया है ताकि बाडबंदी की लागत कम हो सके। साथ ही जिला के ज्यादा से ज्यादा किसानों से इस योजना का लाभ उठाने का भी आग्रह किया है ताकि उनकी फसलों को बंदरों, अवारा पशुओं एवं अन्य जंगली जानवरों से सुरक्षित रखा जा सके।







Saturday, 17 March 2018

बजट से कृषि व बागवानी के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलेगा बल

भारत एक कृषि प्रधान राष्ट्र है तथा आज भी जहां देश की 70 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में वास करती है तो वहीं कृषि व बागवानी ग्रामीणों के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में अहम भूमिका निभाते हैं। हिमाचल प्रदेश में भी लगभग 90 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है तथा कृषि के साथ-साथ बागवानी हमारी अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए गत 9 मार्च को प्रदेश विधानसभा में प्रदेश के नव निवार्चित मुख्य मंत्री जय राम ठाकुर ने भी अपने पहले आम बजट में कृषि व बागवानी के साथ-साथ ग्रामीण विकास से जुडी विभिन्न योजनाओं को विशेष प्राथमिकता प्रदान की है। प्रदेश के एक साधारण व किसान परिवार से संबंध रखने वाले प्रदेश के युवा व यशस्वी मुख्य मंत्री जय राम ठाकुर ने ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए कई अहम योजनाओं के साथ-साथ महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। 
हिमाचल प्रदेश को जैविक राज्य बनाने तथा जीरो बजट प्राकृतिक कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए जहां सरकार जैविक फसलों को बढ़ावा देने के लिए कृषकों के साथ-साथ कृषि, बागवानी तथा पशुपालन विभाग के विस्तार अधिकारियों को नई प्रणाली में प्रशिक्षित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रमों को प्रारंभ किया जाएगा तो वहीं विश्वविद्यालयों द्वारा इसके लिए पैकेजिज ऑफ प्रैक्टिसिस तैयार किए जाएंगे। खेती में कीटनाशकों के प्रयोग को हतोत्साहित करने के साथ-साथ विभागों को कीटनाशक दवाईयों को दिए जाने वाले बजट को जैविक कीटनाशकों के लिए उपयोग किया जाएगा। प्रदेश में देसी नस्ल की गाय के संरक्षण व संवर्धन के लिए एक नीति के तहत कार्य तथा प्रदेश में जैविक उत्पादों के विपणन तथा प्रमाणीकरण को प्रोत्साहित करने व जैविक कीटनाशक संयत्र स्थापित करने को सरकार 50 प्रतिशत निवेश बतौर उपदान उपलब्ध करवाएगी। इस दिशा में किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान नामक योजना को शुरू किया जाएगा।
कृषि क्षेत्र में विभिन्न विस्तार कार्यों पर बल देते हुए जहां खरीफ व रबी की बिजाई से पहले पूरे राज्य के सभी खंडों तथा उसके उपरान्त उपयुक्त समय पर कृषक मेले आयोजित करने का भी ऐलान किया है। जिनके माध्यम से बैंकों व संबंधित विभागों को एक मंच पर लाकर जहां किसानों को कृषि की तकनीकों बारे जानकारी दी जाएगी तो वहीं ऋण संबंधी जानकारी भी उपलब्ध करवाई जाएगी ताकि किसानों को अनावश्यक परेशानियों से मुक्त किया जा सके। प्रदेश में संरक्षित खेती को बढ़ावा देने के लिए जहां वाईएस परमार किसान स्वरोजगार योजना के तहत 23 करोड रूपये का प्रावधान किया है तो वहीं क्षतिग्रस्त पॉलीशीटस को बदलने के लिए मिलने वाली अनुदान राशि को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 70 प्रतिशत करने का भी प्रावधान किया है। आज के दौर में मजदूरों की कमी तथा खेती बाडी में आधुनिक तकनीकों के बढ़ते इस्तेमाल को देखते हुए सरकार ने किसानों को कम कीमत पर कृषक ट्रैक्टर, पॉवर वीडर, पॉवर टिलर इत्यादि उपकरण खरीदने के लिए प्रदेश में कृषि उपकरण सुविधा केंद्र स्थापित करने का प्रावधान किया है। इन केंद्रों के माध्यम से जहां प्रदेश के किसानों के साथ-साथ युवा उद्यमियों को 25 लाख रूपये तक की मशीनरी पर 40 प्रतिशत उपदान का प्रावधान किया है। इससे जहां किसानों को कम दाम पर कृषि उपकरण उपलब्ध हो सकेंगे तो वहीं बेरोजगार युवाओं को उद्यम स्थापित कर स्वरोजगार को भी बल मिलेगा। 
प्रदेश में बागवानी का ग्रामीण व प्रदेश अर्थव्यवस्था में अहम रोल है। ऐसे में ओलावृष्टि के कारण बागवानी को बचाने के लिए 30 वर्ग मीटर क्षेत्र में संरक्षित खेती के लिए सरकार एंटी हेलनेट प्रदान करने का प्रावधान किया है। इसके अलावा बागवानों को एंटी हेलनेट गन लगाने के लिए बागवानी सुरक्षा योजना के तहत 60 प्रतिशत उपदान मुहैया करवाने का भी बजट में प्रावधान किया है। साथ ही बागवानी विकास योजना के माध्यम से बागवानों व सब्जी उत्पादकों को 50 प्रतिशत उपदान पर प्लास्टिक क्रेट भी उपलब्ध करवाए जाएंगे। प्रदेश में किसानों की आय को दुगना करने तथा रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने के लिए केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री कृषि संपदा योजना के माध्यम से एकीकृत शीत भंडारण, खाद्यान्न प्रसंस्करण तथा समूह अधोसंरचना के विकास पर जोर दिया जाएगा। जिसके माध्यम से 5 करोड रूपये तक के खाद्यान्न प्रसंस्करण तथा 10 करोड रूपये के शीत भंडारण के लिए मशीनरी व प्लांट पर 50 प्रतिशत उपदान प्रदान करेगी। 
प्रदेश में बंदरों, जंगली जानवरों तथा बेसहारा पशुओं के कारण कृषकों को काफी नुकसान उठाना पडता है जिससे निपटने के लिए सरकार मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना के तहत सौरयुक्त बाड बंदी के लिए 80 प्रतिशत तक अनुदान उपलब्ध करवा रही है जिसे सामूहिक तौर पर लगाने के लिए अब सरकार किसानों को 85 प्रतिशत तक का अनुदान उपलब्ध करवाएगी। प्रदेश में किसानों की आय को बढ़ाने के लिए जहां प्रदेश में फल व सब्जी उत्पादन के तहत अतिरिक्त खेती को लाया जाएगा तो वहीं वर्तमान में प्रदेश के पांच जिलों में चल रही जाईका परियोजना को बढ़ाकर पूरे प्रदेश में लागू किया जाएगा। संरक्षित फूलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश में हिमाचल पुष्प क्रांति नामक योजना को प्रांरभ किया जाएगा।
पशुधन का भी हमारी आर्थिकी में अहम योगदान है। ऐसे में अच्छी नस्ल की देसी गाय पालने पर जहां किसानों को सरकार सहायता राशि प्रदान करेगी तो वहीं कृषक बकरी पालन योजना के माध्यम से 11 बकरियों की एक ईकाई की स्थापना पर सरकार 60 प्रतिशत तक का उपदान उपलब्ध करवाएगी। इसके अलावा मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए मुख्य मंत्री मधु विकास योजना के अंतर्गत 80 प्रतिशत तक उपदान मुहैया करवाया जाएगा।
इस तरह कह सकते हैं कि जयराम सरकार का पहला बजट जहां कृषि व बागवानी पर आधारित है तो वहीं ग्रामीण विकास को भी बढ़ावा देने के लिए सरकार अनेक योजनाएं लेकर आई है। इस बजट के माध्यम से किसानों के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी तथा ग्रामीण स्तर पर कृषि, बागवानी, पशुपालन, मौनपालन को बढावा मिलने के साथ-साथ स्वरोजगार गतिविधियों को भी बल मिलेगा।


 (साभार: दैनिक न्याय सेतु एवं दैनिक आपका फैसला 15 मार्च, 2018 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Tuesday, 27 February 2018

ऊना के कुटलैहड क्षेत्र में मौजूद हैं पर्यटन की अपार संभावनाएं

हिमाचल प्रदेश जहां अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पूरी दुनिया में विख्यात है तो वहीं यहां के चप्पे-चप्पे में विराजमान देवी-देवताओं के कारण इसे देवभूमि के नाम से भी पुकारा जाता है। ऐसे में यदि प्रदेश के ऊना जिला की बात करें तो जिला का कुटलैहड क्षेत्र भी पर्यटन की दृष्टि से अनेक संभावनाएं संजोए हुए है।
सोलह सिंगीधार के  ऊंचे टीले में स्थापित प्राचीन किले का बाहरी दृश्य
कुटलैहड क्षेत्र में जहां प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर अनेक स्थान हैं तो वहीं धार्मिक दृष्टि से भी कई ऐतिहासिक एवं प्रमुख स्थान मौजूद हैं। यहीं नही कुटलैहड क्षेत्र में ऐतिहासिक दृष्टि से प्राचीन किले जहां इतिहास की खोज रखने वालों के लिए आकर्षण का केंद्र हो सकते हैं बल्कि यहां पर मौजूद भरपूर जैविक संपदा व वनस्पति भी पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बन सकती हैं।
सोलह सिंगीधार के  ऊंचे टीले में स्थापित प्राचीन किले का आंतरिक दृश्य
ऐसे में यदि कुटलैहड क्षेत्र को पर्यटन की इन तमाम संभावनाओं की दिशा में आगे बढ़ाने के प्रयास किए जाएं तो न केवल इस क्षेत्र में पर्यटन की गतिविधियों को बल मिलेगा बल्कि यहां की आर्थिकी को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ युवाओं को पर्यटन के क्षेत्र में स्वरोजगार के नए साधन भी सृजित हो सकते हैं। 
गोविंद सागर झील का विहंगम दृश्य
ऐसे में धार्मिक पर्यटन की संभावनाओं पर चर्चा करें तो कुटलैहड क्षेत्र में प्राचीन व ऐतिहासिक दृष्टि से कई धार्मिक स्थान मौजूद हैं। जिनमें ब्रहम्होती स्थित ब्रहम्मा जी का प्राचीन मंदिर, बसोली में पीर गौंस पाक मंदिर, कोलका स्थित बाबा गरीबनाथ मंदिर, सोलहसिंगी धार के आंचल में बसा भगवान नरसिंह का ठाकुरद्वारा एवं मंदिर, तलमेहडा का ध्यूंसर महादेव मंदिर, बाबा रूद्रानंद आश्रम एवं पांच अश्वत्थ (पीपल) बोध वृक्ष नारी बसाल, डेरा बाबा रूद्रु, जोगीपंगा, जमासनी माता मंदिर, धुंदला, लठियाणीघाट, सोलह सिंगीधार के आंचल में पांडवों द्वारा स्थापित चामुखा मंदिर इत्यादि प्रमुख हैं। प्राकृतिक एवं जैव संपदा की दृष्टि से बात करें तो इस क्षेत्र में गोविंदसागर झील में जहां वाटर स्पोटर्स की अपार संभावनाएं मौजूद हैं तो वहीं प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज यहां की सुंदर, शांत व स्वच्छ वादियां पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख कारण हो सकती हैं। 
सोलह सिंगीधार के आंचल में प्राचीन एवं ऐतिहासिक चामुखा मंदिर
इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की बात करें तो जनश्रुतियों के अनुसार कुटलैहड की सोलह सिंगीधार में महाराजा रणजीत सिंह या फिर कटोच वंश के शासक राजा संसार चंद द्वारा निर्मित किले जिन्हे स्थानीय लोग चौकियां कहकर पुकारते हैं हों या फिर कुटलैहड रियासत का रायपुर मैदान स्थित ऐतिहासिक राजमहल। कहा जाता है कि सोलह सिंगीधार में स्थित इन प्राचीन किलों से दूरबीन के माध्यम से जहां लाहौर (पाकिस्तान) का दृश्य तक देखा जा सकता था बल्कि यहां से ऊना सहित हमीरपुर व कांगडा जिला की प्राकृतिक वादियों का भी पर्यटक व प्रकृति प्रेमी खूब लुत्फ उठा सकते हैं। 
चामुखा मंदिर में स्थापित चारमुख वाला शिवलिंग
सोलह सिंगीधार ऊंचाई पर स्थित होने के कारण जहां गर्मियों के मौसम में मैदानी क्षेत्रों के पर्यटकों को ठंडक का एहसास दिलाती हैं बल्कि यहां से दूर-दूर तक नैना विभोर दृश्य बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर यहां बार-2 आने को आकर्षित करते हैं। इसके अलावा सोलह सिंगीधार हो या फिर रामगढ़धार की खूबसूरत वादियां यहां पर ट्रैकिंग साईटस की भी भरपूर संभावनाएं मौजूद हैं। इस तरह यदि पर्यटन की दृष्टि से कुटलैहड क्षेत्र का विकास किया जाए तो जहां यहां की प्राकृतिक, धार्मिक एवं ऐतिहासकि वादियां लाखों लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर सकती हैं तो वहीं यहां के युवाओं को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार के साधन भी उपलब्ध करवा सकते हैं। यह क्षेत्र जहां सडक़ सुविधा की दृष्टि से लगभग पूरी तरह से 12 माह सडक़ों से जुडा हुआ है तो वहीं रेल सुविधा भी यहां से महज कुछ किलोमीटर दूर ऊना तक उपलब्ध है। 
जमासनी माता परिसर
पर्यटन की दृष्टि से यदि इस क्षेत्र में अधोसंरचना को विकसित कर दिया जाए तो पर्यटन के लिए यह क्षेत्र किसी भी सूरत में प्रदेश के अन्य पर्यटक स्थलों से कमतर नहीं है। 
क्या कहते हैं स्थानीय लोग:
सोलह सिंगीधार के तहत गांव रछोह निवासी संजीव कुमार का कहना है कि यदि सरकार इस क्षेत्र को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करती है तो जहां इस क्षेत्र का विकास होगा तो वहीं स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध होंगे। इसी तरह हटली निवासी सुरेंद्र हटली का कहना है कि सोलहसिंगीधार में स्थापित प्राचीन किलों का यदि सरकार जीर्णोंद्धार कर इन्हे पर्यटन की दृष्टि से विकसित करती है तो यह क्षेत्र भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र हो सकता है जिससे इस क्षेत्र की आर्थिकी को बल मिलेगा तथा युवाओं को रोजगार के नए साधन भी सृजित होंगे। 
गोविंद सागर झील के मुहाने में स्थित बाबा गरीबनाथ मंदिर कोलका
रायपुर मैदान निवासी सुखदेव सिंह का कहना है कि गोविंद सागर झील तथा यहां का शांत व स्वच्छ वातारण पर्यटन की अपार संभावनाएं संजोए हुए है, जिसे सरकार को विकसित करने की दिशा में प्रयास करने चाहिए। इसके अलावा रामगढ़धार व सोलह सिंगीधार में पर्यटकों के लिए ट्रैकिंग साईटस भी विकसित करने की पूरी संभावानाएं मौजूद हैं। 
क्या कहते हैं मंत्री: 
गोविंद सागर झील का विहंगम दृश्य
कुटलैहड विधानसभा क्षेत्र के विधायक एवं हिमाचल सरकार में कैबिनेट मंत्री वीरेंद्र कंवर का कहना है कि कुटलैहड क्षेत्र में प्राकृतिक सौंदर्य एवं स्वच्छ व साफ-सुथरा वातावरण तथा सोलह सिंगीधार, रामगढ़धार और गोविंदसागर झील में पर्यटन की अपार संभावनाएं मौजूद हैं जिनका वे ग्रामीण विकास विभाग के माध्यम से ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देकर पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने का हरसंभव प्रयास करेंगें।






Tuesday, 13 February 2018

स्वर्ग की दूसरी पौड़ी से विख्यात है पौड़ीवाला शिव मंदिर

हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में नाहन-कालाअम्ब राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर स्थित गांव अम्बवाला से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ऐतिहासिक व प्राचीन शिव मंदिर, पौड़ीवाला। स्वर्ग की दूसरी पौड़ी के नाम से विख्यात इस शिव मंदिर का शिवलिंग लंका नरेश रावण द्वारा स्थापित माना जाता है। द्वापर एवं त्रैता युग से ही अपनी महत्ता स्थापित किए हुए इस मंदिर को भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है।
रामायण में वर्णित उल्लेख के अनुसार लंका के राजा रावण शिव के अनन्य भक्त थे। महत्वकांक्षी रावण ने और अधिक शक्ति प्राप्त करने तथा अमरत्व का वरदान प्राप्त करने के लिए अपने आराध्य भगवान शिव की घोर तपस्या की। भगवान उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए तथा रावण से मनचाहा वरदान प्राप्त करने को कहा। रावण ने भगवान आशुतोश से अमरता का वरदान मांगा। भगवान ने रावण को निर्देश देते हुए कहा कि अगर वह एक ही दिन में सूर्योदय से सूर्यास्त तक अलग-अलग स्थानों पर पांच शिवलिंग स्थापित कर सके तो उसे अमरत्व प्राप्त हो जाएगा। 
लंकाधिपति रावण भगवान की इस माया को न समझ पाया। अपने पुष्पक विमान में वह पांच पौड़ियां बनाने के लिए निकल पड़ा। पहली पौड़ी हर की पौड़ी हरिद्वार में, दूसरी नाहन के समीप इस पौड़ीवाला स्थान में, तीसरी चूड़धार में तथा किन्नर कैलाश में चैथी पौड़ी स्थापित करने के उपरान्त वह विश्राम करने के लिए लेट गया। इस दौरान उसे गहरी नींद आ गई। जब वह सोकर उठा तो दूसरा सूर्योदय हो चुका था। पांचवी पौड़ी बनाने से वंचित रहने के कारण वह अमर न हो सका।
कुछ इतिहासकार मानते हैं कि पाण्डुपुत्र अर्जुन ने भी पाशुपातेय अस्त्र के लिए इस स्थान पर भगवान शिव की तपस्या की थी। मृकण्डु ऋषि के पुत्र महर्षि मार्कण्डेय की तपस्या का तो यह क्षेत्र विशेष साक्षी रहा है। शतकुम्भा, पौड़ीवाला, ढिमकी मंदिर तथा बोहलियों स्थित मार्कण्डेश्वर धाम में उन्होंने शिव की गहन तपस्या कर अमरता पाई थी। मार्कण्डेय चालीसा में तो यह भी वर्णित है कि महर्षि मार्कण्डेय को अमरत्व प्रदान कर शिव यहां स्थापित शिवलिंग में लीन हो गए थे।
यहां आने वाले तमाम श्रद्धालु भगवान शिव से शांति, ऋद्धि, सिद्धी तथा सुख-सम्पति प्राप्त करने की कामना करते हैं। भक्तों का विश्वास है कि भगवान आशुतोष उनकी तमाम मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से भी यह स्थान मनमोहक है। यहां पर शिवरात्रि व श्रावण मास में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

Monday, 8 January 2018

सरकारी कार्यालयों में व्यावसायिक दक्षता व बेहतर कार्य संस्कृति को मिले प्रोत्साहन

गत दिनों हिमाचल प्रदेश के नवनिवार्चित मुख्य मंत्री श्री जय राम ठाकुर ने सरकारी नौकरी के चाहवान युवाओं से सरकारी कार्य संस्कृति के प्रति अपनी सोच को बदलने तथा कर्मचारियों से प्रदेश के विकास व आम जनमानस के उत्थान व कल्याण के प्रति डटकर कार्य करने का आहवान किया है। उनके इस कथन का उदेश्य यही कहा जा सकता है कि सरकारी कार्यालयों को वर्तमान समय की चुनौतियों को देखते हुए जहां अपनी कार्य संस्कृति में व्यापक बदलाव लाना होगा तो वहीं प्रात: 10 से 5 बजे की कार्य संस्कृति को त्याग कर 24 घंटे सातों दिन काम करने को प्राथमिकता देनी होगी। ऐसे में भले ही बदलते दौर के साथ-साथ रोजगार व स्वरोजगार के क्षेत्रों का दायरा बढ़ा है लेकिन विश्व की खुली अर्थव्यवस्था एवं रोजगार की अपार संभावनाओं के बीच भी युवाओं में सरकारी नौकरी हासिल करना अभी भी पहली प्राथमिकता में शुमार रहता है। लेकिन तेजी से बदलती दुनिया व प्रतिस्पर्धा के इस युग में सरकारी नौकरी के चाहवान युवाओं के साथ-साथ सरकारी कर्मचारियों को भी अपने दृष्टिकोण में व्यापक बदलाव लाने की आवश्यकता महसूस हो रही है।
रोजगार की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश की बात करें तो सरकारी नौकरी रोजगार का सबसे बड़ा जरिया माना जाता है। ऐसे में कोई दोराय नहीं है कि आज हिमाचल प्रदेश में जनसंख्या के आधार पर सरकारी कर्मचारियों का अनुपात देश के अन्य राज्यों के मुकाबले भी कहीं अधिक है। लेकिन अब प्रश्न यह उठ रहा है कि प्रतिभावान, उच्च शिक्षित एवं विभिन्न कौशलों व व्यवसायों में पारंगत युवा सरकारी नौकरियों के प्रति इतने लालायित क्यों रहते हैं? क्या सरकारी नौकरी निजि व कारपोरेट सैक्टर के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित व फायदेमंद रहती है? या फिर ऐसा तो नहीं कि सरकारी नौकरी में न तो कार्य करने का झंझट, न ही जनता व कार्य के प्रति कोई जबावदेही?
ऐसे में वास्तविकता के धरातल पर देखें तो सरकारी नौकरी मिलने पर न केवल व्यक्ति व उसके परिवार का भविष्य सुरक्षित हो जाता है बल्कि आर्थिक लाभ व पदोन्नति भी समय-समय पर मिलने सुनिश्चित ही होते हैं। जहां तक नीजि व कॉरपोरेट सैक्टर की बात है तो देश व दुनिया में न केवल कर्मचारियों में एक प्रतिस्पर्धा की भावना रहती है बल्कि उनके पदोन्नति, वेतन, भत्ते व अन्य तमाम सुविधाएं उनके द्वारा अर्जित लक्ष्यों व लाभों पर ही निर्भर रहते हैं। साथ ही वर्तमान जरूरतों के आधार पर व्यावसायिक दक्षता पर ज्यादा जोर रहता है। लेकिन इसके उल्ट सरकारी क्षेत्र में न तो समय-समय पर आपको व्यावसायिक दक्षता को अपग्रेड करने का दबाव व बाध्यता रहती है न ही योग्यता, क्षमता व तय लक्ष्यों की पूर्ति न होने पर भी नौकरी के लिए कोई संकट रहता है।   
लेकिन इन्ही प्रश्नों व जज्बातों के बीच प्रदेश के युवा व नवनिर्वाचित मुख्य मंत्री ने सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों से न केवल प्रदेश व लोगों के विकास के लिए अधिक समय कार्य करने पर जोर दिया है बल्कि सरकारी नौकरियों की आस लगाए बैठे युवाओं के लिए भी यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि सरकारी नौकरी में आने से पहले उन्हे अपने मन से सरकारी कार्य संस्कृति के प्रति सोच बदलनी होगी। ऐसे में प्रदेश के मुखिया का सरकारी नौकरी के प्रति इस तरह का नजरिया न केवल सरकारी कार्यालयों की कार्य संस्कृति को ज्यादा चुस्त, दुरूस्त व दक्ष बनाएगा बल्कि प्रदेश में सरकारी कार्यालयों के प्रति समाज में एक सकारात्मक संदेश भी जाएगा जो न केवल प्रदेश की जनता के हित में होगा बल्कि इससे सरकार की योजनाओं व कार्यक्रमों के बेहतर क्रियान्वयन को भी बल मिलेगा।
ऐसे में हिमाचल प्रदेश में सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो आज प्रदेश में लगभग तीन लाख के आसपास अधिकारी व कर्मचारी हैं जिन पर प्रदेश के बजट का एक बहुत बड़ा हिस्सा उनके वेतन, भत्तों सहित अन्य सुविधाओं पर खर्च होता है। लेकिन ऐसे में अब प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या प्रदेश के विकास में सरकारी कर्मचारियों का कोई योगदान नहीं रहता है? परन्तु ऐसा नहीं है बल्कि प्रदेश में समय-समय पर सत्तासीन रही लोकप्रिय सरकारों ने आज हिमाचल प्रदेश को विकास की बुलंदियों तक पहुंचाया है तो इसमें भी प्रदेश के कर्मचारियों का एक बहुत बड़ा योगदान रहा है। वास्तव में प्रदेश सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं व नीतियों को सबसे निचले स्तर व पात्र व्यक्तियों तक पहुंचाने में सरकारी विभागों व कर्मचारियों की एक बहुत बड़ी भूमिका रहती है। जिसे प्रदेश के कर्मचारियों ने हिमाचल के गठन से लेकर अब तक इसे बखूवी निभाया भी है। 
लेकिन बदलते वक्त के साथ-साथ 21वीं सदी की नवीन चुनौतियों एवं जनआंकाक्षाओं की समयबद्ध पूर्ति करने का न केवल सरकारों पर दबाव बढ़ा है बल्कि बेहतर, उच्च गुणवत्तायुक्त, समयबद्ध तथा त्वरित सुविधाएं व सेवाओं की मांग भी तेजी से बढ़ी है। ऐसे में प्रदेश के कर्मचारियों को न केवल समय की बदलती जरूरतों व अपेक्षाओं के आधार पर अपनी कार्य संस्कृति में ज्यादा निखार लाना होगा बल्कि कार्यकुशलता में ज्यादा दक्षता हासिल करने के लिए अपने व्यावसायिक कौशलों एवं व्यवहारिक कार्य संस्कृति को भी ज्यादा मजबूती प्रदान करने की जरूरत है। साथ ही प्रत्येक अधिकारी व कर्मचारी के कौशलों एवं व्यावसायिक दक्षता में भी वृद्धि हो इस पर भी व्यक्ति विशेष को ध्यान देने की जरूरत महसूस हो रही है। इसके अतिरिक्त जहां बेहतर कार्य करने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने पर बल देना होगा तो वहीं सरकारी कार्यालयों में टीम वर्क के साथ-साथ सकारात्मक उर्जा से ओत-प्रोत प्रतिस्पर्धा की भावना को भी विकसित करना होगा। 
ऐसे में नि:संदेह प्रदेश के मुखिया द्वारा सरकारी कार्य संस्कृति को बेहतर बनाने के लिए कर्मचारियों एवं सरकारी सेवा में आने की चाह रखने वाले युवाओं से किया गया आहवान न केवल कर्मचारियों व अधिकारियों में कार्यालयों की कार्यसंस्कृति को बेहतर बनाने के साथ-साथ प्रतिस्पर्धात्मक माहौल को विकसित करेगा बल्कि इससे सरकार की जन कल्याणकारी योजनाएं व नितियां आम जन तक आसानी से पहुंचे इसे भी बल मिलेगा।

 (साभार: दैनिक आपका फैसला  6 जनवरी, 2018 एवं दैनिक न्याय सेतु 11 जनवरी, 2018 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Saturday, 23 December 2017

शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं के सुदृढ़ीकरण को मिले विशेष प्राथमिकता

नई सरकार से अपेक्षाएं
हिमाचल में हाल ही में सम्पन्न हुए प्रदेश विधानसभा चुनाव-2017 की मतदान प्रक्रिया के पूर्ण होते ही 13वीं विधानसभा का गठन कर लिया गया है। 13वीं विधानसभा चुनाव प्रक्रिया के दौरान न केवल प्रदेश की जनता ने बढ़चढ़ कर मतदान में भाग लेकर इस बार मतप्रतिशत्ता के पुराने रिकॉर्ड को ध्वस्त किया बल्कि जिस खामोशी व शांति के साथ नई विधानसभा का गठन किया गया है इसके लिए प्रदेश की तमाम जनता बधाई की पात्र है। यहीं नहीं इस तमाम चुनावी प्रक्रिया में नामांकन पत्रों के दाखिले से लेकर चुनावी प्रचार, मतदान व मतगणना की अंतिम प्रक्रिया तक प्रदेश में महज अपवाद को लेकर एक दो छुटपुट घटनाओं को छोडक़र तमाम चुनावी प्रक्रिया शांतिपूर्वक संपन्न हुई है, इसके लिए न केवल प्रदेश की जनता बल्कि तमाम प्रशासनिक मशीनरी के साथ-साथ राजनीतिक दल एवं प्रत्याशी भी बधाई के पात्र हैं।
लेकिन इस तमाम चुनावी प्रक्रिया के दौरान प्रत्याशियों की हार व जीत दो प्रमुख पहलू रहे हैं, जिंदगी का भी यही कड़वा सच है कि जीत व हार सिक्के के दो प्रमुख पहलू हैं जिन्हे न तो नजरअंदाज न ही नकारा जा सकता है। अगर यूं कहें कि हार व जीत के बिना न केवल जिंदगी अधूरी है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए। विधानसभा चुनाव के दौरान कौन हारा व कौन जीता अब यह प्रश्न यहां महत्व नहीं रखता, जितना अहम नई सरकार द्वारा लोगों के उत्थान, जनकल्याण एवं उनके विकास से जुडी विभिन्न विकास योजनाओं व मुददों को धरातल तक ले जाना व जनआंकाक्षाओं की पूर्ति करना है। हिमाचल प्रदेश के एक छोटा सा पहाड़ी प्रदेश होने के नाते जहां सरकार के साथ-साथ लोगों की आय के साधन सीमित हैं तो वहीं प्रदेश की विकट भौगोलिक परिस्थिति भी यहां के जीवन को कठिन बनाती है। हिमाचल प्रदेश में विकास योजनाओं को धरातल में लागू करने के लिए जहां देश के मैदानी राज्यों के मुकाबले न केवल दुगुनी ऊर्जा व धनराशि की जरूरत रहती है बल्कि मूलभूत सुविधाओं को आमजन तक पहुंचानें की भी एक बड़ी चुनौती होती है। ऐसे में प्रदेश में नई सरकार को न केवल मूलभूत सुविधाओं को समाज के सबसे निम्नस्तर के व्यक्ति तक पहुंचाने की चुनौती रहेगी बल्कि जनकल्याण व विकास में आमजन की भागीदारी सुनिश्चित हो इसपर भी गंभीरता से प्रयास करने होंगे।
वैसे तो हिमाचल प्रदेश ने अपने गठन से लेकर आजतक विकास के क्षेत्र में कई नींव पत्थर रखे हैं तथा विकास का यह कारवां प्रदेश में समय-समय पर सत्तासीन रही लोकप्रिय सरकारों ने आगे बढ़ाने का भी भरसक प्रयास किया है। जिसकी बदौलत आज प्रदेश देश के पहाड़ी राज्यों में एक अग्रिम पंक्ति में खड़ा हुआ है। लेकिन विकास व जनकल्याण एक सतत् प्रक्रिया है तथा इन दोनों लक्ष्यों की पूर्ति किए बिना सरकार व जनता दोनों के सपनें अधूरे ही रहते हैं। लेकिन ऐसे में नई सरकार द्वारा प्रदेश में शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं के सुदृढ़ीकरण के साथ-साथ जनकल्याण को आम लोगों तक पहुंचे इसके लिए विशेष प्रयास करने की जरूरत है। आज प्रदेश में जहां स्वास्थ्य संस्थानों का दायरा प्रदेश के ग्रामीण व दूरदराज क्षेत्रों तक जरूर पहुंचा है तो वहीं प्राथमिक से लेकर कॉलेज स्तर की शिक्षा का भी खूब विस्तारीकरण हुआ है। लेकिन ऐसे में लोगों को घरद्वार के समीप गुणात्मक व बेहतर शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाएं मिले इसके लिए नई सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में जहां शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में मूलभूत ढ़ांचे को मजबूती प्रदान करनी होगी तो वहीं स्टाफ की पर्याप्त तैनाती के साथ-साथ शिक्षा व ईलाज की तमाम सुविधाएं ग्रामीण स्तर पर मुहैया करवाने पर भी विशेष बल देना होगा।
वास्तविकता के धरातल में आज भी देखें तो लोगों को छोटे से छोटे इलाज के लिए जहां सैंकडों किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है तथा कई बार यह सफर लोगों के जीवन पर भारी भी पड़ जाता है। यहीं नहीं प्रदेश में आईजीएमसी शिमला व टांडा मेडिकल कॉलेज कांगडा को छोडक़र जिला व उपमंडल स्तरीय अस्पतालों में ही बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें इसके लिए विशेष प्रयास करने होंगे। ऐसे में जरूरत है सभी जिला स्तरीय अस्पतालों में वह तमाम आधुनिक सुविधाओं मुहैया करवाने की जिसके प्रति अभी भी हमें विशेष प्रयास की जरूरत महसूस हो रही है, इसके लिए न केवल जिला अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती को प्राथमिकता देनी होगी बल्कि आधुनिक लैब की तमाम सुविधाएं जिला व उपमंडल स्तर पर ही लोगों को नसीब हो जाएं इस पर ध्यान देना होगा। सच्चाई यह है कि आज भी प्रदेश के लोगों को छोटे-छोटे इलाज के लिए या तो शिमला, टांडा या फिर पीजीआई चंडीगढ़ का रूख करना पड़ता है। इससे न केवल प्रदेश के लोगों को अनावश्यक परेशानी झेलनी पड़ती है बल्कि समय व धन की भी बर्बादी होती है। कई बार तो लोग थक हार कर निजी अस्पतालों की मंहगे इलाज के आगे नतमस्तक होते दिखाई देते हैं। रही बात शिक्षा क्षेत्र की तो आज शिक्षण संस्थाओं के आंकड़े जरूर सुकून दे रहे हैं, लेकिन यहां भी मूलभूत सुविधाओं सहित स्टाफ की कमी हमेशा खलती रही है जिस पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत होगी।
जनकल्याण हमेशा ही किसी भी सरकार का सबसे प्राथमिक उदेश्य रहा है तथा इसका लाभ समाज के सबसे निम्न व गरीब व्यक्ति तक पहुंचे इसके लिए भी धरातल स्तर पर एक ऐसा तंत्र विकसित करना होगा ताकि कोई भी पात्र लाभार्थी वंचित न रहे। इसके अलावा समाज के हर वर्ग व तबके की सरकार से अपनी-अपनी अपेक्षाएं व इच्छाएं रहती है जिनको सरकार ने पूरा करना होता है, लेकिन सरकार की योजनाओं व कार्यक्रमों से समाज का जरूरतमंद तबका लाभान्वित हो इसके लिए शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं को ओर मजबूती प्रदान करना नई सरकार की विशेष प्राथमिकता में हो ऐसी अपेक्षा है ताकि कोई भी बेहतर ईलाज के अभाव में न तो दम तोड सके, न ही बेहतर ईलाज के लिए निजी अस्पतालों के लिए मजबूर होना पड़े। साथ ही प्रदेश के ग्रामीण व गरीब तबके के बच्चों को विश्वस्तरीय स्कूल व कॉलेज की शिक्षा घरद्वार पर ही उपलब्ध हो इस पर 
भी विशेष ध्यान देना होगा ताकि प्रदेश की नौजवान पीढ़ी महज सरकारी नौकरियों के पीछे भागने के बजाए विश्व की खुली अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को स्वीकर करने के योग्य बन अपनी प्रतिभा का डंका देश, दुनिया में स्थापित कर सकें।

(साभार: दैनिक न्याय सेतु 22 दिसम्बर, 2017 एवं दैनिक आपका फैसला, 28 दिसम्बर, 2018 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Wednesday, 6 December 2017

वर्ग विषमता व जातिगत छुआछूत मिटाकर समाज को समरस बनाएं

आज 6 दिसम्बर को राष्ट्र देश के महानायक एवं संविधान निर्माता डॉ0 भीमराव अंबेदकर जी की पुण्यतिथि मना रहा है। डॉ0 भीमराव अंबेदकर भारत के एक ऐसे महान सपूत थे जिन्होने देश से जातिप्रथा व छूआछूत के खिलाफ न केवल विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से जन जागरूकता फैलाई बल्कि वह स्वयं एक ऐसे परिवार से निकले जो इस कुप्रथा का शिकार रहे। ऐसे में हम यह सहज अनुमान लगा सकते हैं कि एक ऐसा व्यक्ति जो स्वयं वर्ग विषमता, जातिगत छुआछूत व भेदभाव की समस्या से पीडि़त रहा हो वह समाज को इस कुप्रथा से छुटकारा दिलाने के लिए कितना संघर्षरत व चिंतित हो सकता है। 
वास्तव में हमारा भारतीय समाज डॉ0 भीम राव अंबेदकर जी के जन्म व पुण्य तिथि को एक समरस समाज बनाने व समाज से वर्ग विषमता, जातिगत छुआछूत व भेदभाव को समाप्त करने का हर वर्ष प्रण तो लेता है, लेकिन आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी क्या हम एक ऐसा समाज का निर्माण कर पाए हैं जहां जातिगत भेदभाव व छुआछूत के लिए कोई स्थान न हो? क्या हम उन लोगों को समाज की मुख्यधारा में बिना किसी भेदभाव के जोड़ पाए हंै या फिर यूं कहें क्या हमारा समाज पूरी तरह से जातिगत भेदभाव व छुआछूत से मुक्त हो पाया है? कहने को तो ऐेसे अनगिनत प्रश्न हैं जो आज भी हमारे समाज में मुंहबाए खडे हैं और जातिगत भेदभाव व छुआछूत की ओर ईशारा कर रहे हों? लेकिन अब प्रश्न कितने लोगों का जीवन स्तर उठा, कितने लोगों का आर्थिक व सामाजिक सशक्तिकरण हुआ का नहीं है बल्कि प्रश्न भारतीय समाज को पूरी तरह से वर्ग विषमता, जातिगत छुआछूत व भेदभाव के उस चंगुल से बाहर निकालने का है जिसके लिए आज भी हमारा समाज किसी न किसी स्तर पर संघर्षरत है। 
भले ही वर्ग विषमता एवं जातिगत छुआछूत व भेदभाव को लेकर हमारे देश में न केवल समय-समय पर अनेक सामाजिक आंदोलन हुए बल्कि विभिन्न स्तरों पर भी समरस समाज बनाने के लगातार अनेक प्रयास होते रहे हैं। लेकिन भारतीय समाज में जातिगत छुआछूत व भेदभाव का यह जहर लोगों के मन मस्तिष्क से आज भी पूरी तरह से बाहर नहीं निकल पाया है जिसके लिए सीधे व परोक्ष तौर पर हम आजादी के इन सात दशकों से संघर्षरत हैं। यहां इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि हमारे समाज में इस दिशा में न केवल अबतक बेहतर प्रयास हुए हैं बल्कि बहुत से लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने व समाज की मुख्यधारा में जोडऩे के अनेक कदम भी उठाए हैं। लेकिन ऐसे में प्रश्न हमारे इन प्रयासों से लाभान्वित होने वालों के आंकड़ों का नहीं बल्कि प्रश्न इस कुप्रथा के शिकार समाज के सबसे निचले तबके को जोडऩे व समाज को वर्ग विषमता से मुक्त बनाने का है जिसकी तरफ शायद अभी तक हमने कोई सार्थक प्रयास करने की जहमत ही नहीं उठाई है। 
वास्तव में किसी भी समाज का उत्थान इस बात पर निर्भर करता है कि समाज के सबसे निचले स्तर के कितने लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाया गया है। वैसे तो भारतीय संविधान में वह सभी प्रावधान मौजूद हैं जो देश में वर्ग विषमता व जातिगत छुआछूत व भेदभाव को मिटाने में कारगर साबित हो सकते हैं। लेकिन वास्तव में क्या इन संवैधानिक प्रावधानों का एक समरस समाज स्थापित करने में बेहतर इस्तेमाल हो पाया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि समाज में संविधान के मूल तत्वों व भावनाओं के साथ छेड़छाड़ कर इस सामाजिक समस्या को जड़ से उखाडऩे के बजाए निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए समाज को ही एक अन्य वर्ग व्यवस्था के तहत बांटने का तो प्रयास नहीं हो रहा है। इस पर भी समाज के बुद्धिजीवी वर्ग, राजनीतिक विश्लेषकों व चिंतकों को गौर फरमाने की आवश्यकता महसूस हो रही है।
वास्तव में हमारी वर्ग विषमता तथा जातिगत छुआछूत व भेदभाव के प्रति उस समय एक बड़ी जीत होगी जब देश का एक भी कोना ऐसा नहीं रहेगा जहां जाति विशेष के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव होता हो। ऐसा कोई भी समाज नहीं होगा जहां पर व्यक्ति की पहचान महज एक इन्सान व भारतीयता के अलावा कोई दूसरी रहे। ऐसे में प्रश्न उठ रहा है कि क्या वर्तमान परिस्थितियों में देश से यह समस्या खत्म हो पाएगी? लेकिन ऐसे में हम यह क्यों भूल रहे हैं कि यह वही भारतीय समाज है जहां के लोगों ने समय-समय पर अनेक सामाजिक बुराईयों व कुरीतियों के खिलाफ झंडा बुलंद किया तथा समाज को कई कुप्रथाओं से आजाद किया है। ऐसे में हमारे समाज से वर्ग विषमता व जातिगत छुआछूत की यह समाजिक बुराई पूरी तरह से समाप्त हो इसके लिए 21वीं सदी की हमारी युवा पीढ़ी न केवल सक्षम व समर्थ है बल्कि वह एक ऐसा भारतीय समाज स्थापित करने का भी सामथ्र्य रखती है जिसमें वर्ग विषमता, जातिप्रथा व छुआछूत के लिए कोई स्थान नहीं होगा। 
ऐसे में देश से वर्ग विषमता व जाति प्रथा को मिटाना एवं डॉ0 भीमराव अंबेदकर जी के बताए सिद्धांतों व सदमार्ग पर चलने का प्रण लेना ही आज भारतीय समाज की उनके प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी। आओ आज हम सब मिलकर अपने समाज को वर्ग व जातिगत विषमता से मुक्त बनाने का प्रण लेेकर भारत को दुनिया का एक आदर्श समाज बनाएं।

(साभार: दैनिक न्याय सेतु 6 दिसम्बर, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Thursday, 23 November 2017

टशी दावा और अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती का प्रतीक है रोहतांग टनल

सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रोहतांग सुरंग से खुलेगी लाहौल वासियों की किस्मत
हिमाचल प्रदेश के कबायली ईलाका लाहौल का अब जल्द ही देश व दुनिया से 12 माह तक जुडे रहने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। प्रदेश के मनाली व लाहुल के मध्य रोहतांग दर्रा के बीच बन रही लगभग 9 किलोमीटर सुरंग के पूरी तरह से क्रियाशील हो जाने से न केवल सुरक्षा की दृष्टि से इसका सीधा लाभ भारतीय सेना को होगा बल्कि इससे सदियों से बंद पडी प्रदेश के कबायली ईलाके लाहौल वासियों की किस्मत को भी पंख लगने वाले हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2018 के अंत तक इस सुरंग को पूरी तरह से मुकम्मल  करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। 
सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण रोहतांग टनल लाहौल निवासी टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल तथा देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती का प्रतीक बनकर हमारे सामने आई है। इसी दोस्ती के कारण आज न केवल लाहौल वासियों की किस्मत बदलने वाली है बल्कि वर्ष में छह माह तक बर्फ की कैद में जीवन व्यतीत करने वाले लाहौल के लोगों को अब जल्द ही बर्फ की कैद से आजादी भी मिलने वाली है। 
रोहतांग टनल के निर्माण को लेकर नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन मेें
 तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिलते टशी दावा (फाईल फोटो)
जब इस संबंध में टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल के संबंध में उनके सुपुत्र एवं जिला लोक संपर्क अधिकारी ऊना का अस्थाई कार्यभार देख रहे रामदेव से अनौपचारिक बातचीत की तो उन्होने अपने पिता एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से संबंधित कई महत्वपूर्ण बातें सांझा की। उन्होने बताया कि टशी दावा और वाजपेयी की दोस्ती देश की स्वतंत्रता के पूर्व की रही है। उन्होंने बताया कि उनके पिता टशी दावा देश के सबसे पुराने गैर राजनैतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सक्रिया कार्यकत्र्ता थे। इसी बीच वर्ष 1942 को आरएसएस के एक प्रशिक्षण शिविर के दौरान उनकी पहली मुलाकात गुजरात के बडोदरा में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ हुई थी। इस दौरान टशी दावा और वाजपेयी के बीच एक घनिष्ठ दोस्ती कायम हुई। लेकिन एक लंबे अर्से तक इन दोनों की मुलाकात जीवन की आपाधापी एवं व्यस्तता के कारण नहीं हो पाई।
 लेकिन इस दौरान टशी दावा के मन में न केवल लाहौल वासियों की समस्या हर वक्त उन्हे परेशान करती रहती थी बल्कि इस क्षेत्र को बर्फ की कैद से छुटकारा दिलाने के लिए वे हमेशा चिंतित रहते थे। इसी बीच उनके मन में लाहौल व मनाली के बीच एक सुरंग निर्मित करने का विचार आया ताकि यह क्षेत्र देश व दुनियां के साथ लगातार जुडा रह सके। इसी विचार को लेकर टशी दावा लगभग 56 वर्ष के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने दिल्ली पहुंचे। 
3 जून, 2000 को लाहौल के केलांग में आयोजित जनसभा में
पूर्व प्रधानमंत्री का अविवादन करते हुए टशी दावा (फाईल फोटो)
इस बीच एक लंबे वक्त के बाबजूद जब टशी दावा अटल बिहारी वाजपेयी से नई दिल्ली स्थित उनके निवास स्थान में मिले तो एकाएक वाजपेयी टशी दावा को शक्ल से पहचान नहीं पाए लेकिन उन्होने कहा कि उन्हे आभास हो रहा है कि यह आवाज उनके नाटे कद वाले कबायली परम मित्र टशी दावा की लग रही है। ऐसे में जब उन्हे बताया गया कि उनसे मुलाकात करने आया व्यक्ति टशी दावा ही है तो वाजपेयी ने न केवल टशी दावा को गले से लगा लिया बल्कि उस लंबे अर्से को याद कर वह भावुक भी हो गए। इस बीच वाजपेयी ने केवल उनका कुशलक्षेम पूछा बल्कि उनके यहां आने का कारण भी जाना। टशी दावा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लाहौल वासियों को लगभग छह माह तक बर्फ की कैद से छुटकारा दिलाने के लिए रोहतांग सुरंग बनाने की मांग रखी। इस पर वाजपेयी ने उन्हे इस टनल को सामरिक दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण मानते हुए इसके निर्माण की हामी भरी। इस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी जब तीन जून, 2000 को अपने हिमाचल दौरे के दौरान लाहौल के मुख्यालय केलांग में पहुंचे तो अपने परम मित्र टशी दावा की उपस्थिति में आयोजित एक जनसभा में इस सुरंग के निर्माण की घोषणा की थी। टशी दावा द्वारा बार-बार तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से सुरंग निर्माण की मांग को लेकर हुई मुलाकातों का ही नतीजा था कि केलांग जनसभा में वाजपेयी ने इसके निर्माण की घोषणा की।
टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल का चित्र (फाईल फोटो)
सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण रोहतांग सुरंग अब जल्द की बनकर तैयार होने जा रही है जिसका सीधा लाभ न केवल लाहौल वासियों को होगा बल्कि भारतीय सेना को भी लेह तक रसद एवं अन्य सैन्य सामान पहुंचाने में भी सुविधा होगी तथा सैन्य दृष्टि से यह रास्ता सुरक्षित भी है। वर्ष 1924 को लाहौल के ठोलंग गांव में पैदा हुए टशी दावा भले ही प्रदेश व देश की राजनीति में एक अनभिज्ञ चेहरा रहे हों, लेकिन वर्ष 1942 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ आरएसएस के शिविर के दौरान हुई दोस्ती ने आज न केवल प्रदेश बल्कि देश के लिए लगभग 9 किलोमीटर लंबी रोहतांग सुरंग को एक तोहफे के तौर पर हिमाचल को एक सौगात मिली है। यूं कहें कि यदि रोहतांग सुरंग का निर्माण टशी दावा और अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती की उपज है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
रोहतांग दर्रा पार करते हुए ही टशी दावा ने त्यागे प्राण
दो दिसंबर, 2007 को टशी दावा ने लगभग 83 वर्ष की उम्र में उसी जगह पर अपने प्राण त्याग दिए जिस समस्या से लाहौल वासियों को छुटकारा दिलवाने के लिए वे लगातार संघर्ष कर रहे थे। उनके सुपुत्र का कहना है कि सांस की बीमारी से पीडित टशी दावा को जब ईलाज के लिए कुल्लू लाया जा रहा था तो इसी बीच रोहतांग दर्रा पार करते समय उन्होने अपने प्राण त्याग दिए थे। ऐसे में आज भले ही टशी दावा हमारे बीच नहीं हैं लेकिन आज रोहतांग सुरंग के निर्माण का सपना उनके परम मित्र अटल बिहारी वाजपेयी के आशीर्वाद से पूरा होने जा रहा है, जिससे न केवल लाहौल वासियों को छह माह बर्फ  की कैद से मुक्ति मिलने वाली है बल्कि इससे इस क्षेत्र की आर्थिकी को भी बल मिलेगा।