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Thursday, 23 November 2017

टशी दावा और अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती का प्रतीक है रोहतांग टनल

सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रोहतांग सुरंग से खुलेगी लाहौल वासियों की किस्मत
हिमाचल प्रदेश के कबायली ईलाका लाहौल का अब जल्द ही देश व दुनिया से 12 माह तक जुडे रहने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। प्रदेश के मनाली व लाहुल के मध्य रोहतांग दर्रा के बीच बन रही लगभग 9 किलोमीटर सुरंग के पूरी तरह से क्रियाशील हो जाने से न केवल सुरक्षा की दृष्टि से इसका सीधा लाभ भारतीय सेना को होगा बल्कि इससे सदियों से बंद पडी प्रदेश के कबायली ईलाके लाहौल वासियों की किस्मत को भी पंख लगने वाले हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2018 के अंत तक इस सुरंग को पूरी तरह से मुकम्मल  करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। 
सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण रोहतांग टनल लाहौल निवासी टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल तथा देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती का प्रतीक बनकर हमारे सामने आई है। इसी दोस्ती के कारण आज न केवल लाहौल वासियों की किस्मत बदलने वाली है बल्कि वर्ष में छह माह तक बर्फ की कैद में जीवन व्यतीत करने वाले लाहौल के लोगों को अब जल्द ही बर्फ की कैद से आजादी भी मिलने वाली है। 
रोहतांग टनल के निर्माण को लेकर नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन मेें
 तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिलते टशी दावा (फाईल फोटो)
जब इस संबंध में टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल के संबंध में उनके सुपुत्र एवं जिला लोक संपर्क अधिकारी ऊना का अस्थाई कार्यभार देख रहे रामदेव से अनौपचारिक बातचीत की तो उन्होने अपने पिता एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से संबंधित कई महत्वपूर्ण बातें सांझा की। उन्होने बताया कि टशी दावा और वाजपेयी की दोस्ती देश की स्वतंत्रता के पूर्व की रही है। उन्होंने बताया कि उनके पिता टशी दावा देश के सबसे पुराने गैर राजनैतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सक्रिया कार्यकत्र्ता थे। इसी बीच वर्ष 1942 को आरएसएस के एक प्रशिक्षण शिविर के दौरान उनकी पहली मुलाकात गुजरात के बडोदरा में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ हुई थी। इस दौरान टशी दावा और वाजपेयी के बीच एक घनिष्ठ दोस्ती कायम हुई। लेकिन एक लंबे अर्से तक इन दोनों की मुलाकात जीवन की आपाधापी एवं व्यस्तता के कारण नहीं हो पाई।
 लेकिन इस दौरान टशी दावा के मन में न केवल लाहौल वासियों की समस्या हर वक्त उन्हे परेशान करती रहती थी बल्कि इस क्षेत्र को बर्फ की कैद से छुटकारा दिलाने के लिए वे हमेशा चिंतित रहते थे। इसी बीच उनके मन में लाहौल व मनाली के बीच एक सुरंग निर्मित करने का विचार आया ताकि यह क्षेत्र देश व दुनियां के साथ लगातार जुडा रह सके। इसी विचार को लेकर टशी दावा लगभग 56 वर्ष के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने दिल्ली पहुंचे। 
3 जून, 2000 को लाहौल के केलांग में आयोजित जनसभा में
पूर्व प्रधानमंत्री का अविवादन करते हुए टशी दावा (फाईल फोटो)
इस बीच एक लंबे वक्त के बाबजूद जब टशी दावा अटल बिहारी वाजपेयी से नई दिल्ली स्थित उनके निवास स्थान में मिले तो एकाएक वाजपेयी टशी दावा को शक्ल से पहचान नहीं पाए लेकिन उन्होने कहा कि उन्हे आभास हो रहा है कि यह आवाज उनके नाटे कद वाले कबायली परम मित्र टशी दावा की लग रही है। ऐसे में जब उन्हे बताया गया कि उनसे मुलाकात करने आया व्यक्ति टशी दावा ही है तो वाजपेयी ने न केवल टशी दावा को गले से लगा लिया बल्कि उस लंबे अर्से को याद कर वह भावुक भी हो गए। इस बीच वाजपेयी ने केवल उनका कुशलक्षेम पूछा बल्कि उनके यहां आने का कारण भी जाना। टशी दावा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लाहौल वासियों को लगभग छह माह तक बर्फ की कैद से छुटकारा दिलाने के लिए रोहतांग सुरंग बनाने की मांग रखी। इस पर वाजपेयी ने उन्हे इस टनल को सामरिक दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण मानते हुए इसके निर्माण की हामी भरी। इस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी जब तीन जून, 2000 को अपने हिमाचल दौरे के दौरान लाहौल के मुख्यालय केलांग में पहुंचे तो अपने परम मित्र टशी दावा की उपस्थिति में आयोजित एक जनसभा में इस सुरंग के निर्माण की घोषणा की थी। टशी दावा द्वारा बार-बार तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से सुरंग निर्माण की मांग को लेकर हुई मुलाकातों का ही नतीजा था कि केलांग जनसभा में वाजपेयी ने इसके निर्माण की घोषणा की।
टशी दावा उर्फ अर्जुन गोपाल का चित्र (फाईल फोटो)
सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण रोहतांग सुरंग अब जल्द की बनकर तैयार होने जा रही है जिसका सीधा लाभ न केवल लाहौल वासियों को होगा बल्कि भारतीय सेना को भी लेह तक रसद एवं अन्य सैन्य सामान पहुंचाने में भी सुविधा होगी तथा सैन्य दृष्टि से यह रास्ता सुरक्षित भी है। वर्ष 1924 को लाहौल के ठोलंग गांव में पैदा हुए टशी दावा भले ही प्रदेश व देश की राजनीति में एक अनभिज्ञ चेहरा रहे हों, लेकिन वर्ष 1942 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ आरएसएस के शिविर के दौरान हुई दोस्ती ने आज न केवल प्रदेश बल्कि देश के लिए लगभग 9 किलोमीटर लंबी रोहतांग सुरंग को एक तोहफे के तौर पर हिमाचल को एक सौगात मिली है। यूं कहें कि यदि रोहतांग सुरंग का निर्माण टशी दावा और अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती की उपज है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
रोहतांग दर्रा पार करते हुए ही टशी दावा ने त्यागे प्राण
दो दिसंबर, 2007 को टशी दावा ने लगभग 83 वर्ष की उम्र में उसी जगह पर अपने प्राण त्याग दिए जिस समस्या से लाहौल वासियों को छुटकारा दिलवाने के लिए वे लगातार संघर्ष कर रहे थे। उनके सुपुत्र का कहना है कि सांस की बीमारी से पीडित टशी दावा को जब ईलाज के लिए कुल्लू लाया जा रहा था तो इसी बीच रोहतांग दर्रा पार करते समय उन्होने अपने प्राण त्याग दिए थे। ऐसे में आज भले ही टशी दावा हमारे बीच नहीं हैं लेकिन आज रोहतांग सुरंग के निर्माण का सपना उनके परम मित्र अटल बिहारी वाजपेयी के आशीर्वाद से पूरा होने जा रहा है, जिससे न केवल लाहौल वासियों को छह माह बर्फ  की कैद से मुक्ति मिलने वाली है बल्कि इससे इस क्षेत्र की आर्थिकी को भी बल मिलेगा।