आज 6 दिसम्बर को राष्ट्र देश के महानायक एवं संविधान निर्माता डॉ0 भीमराव अंबेदकर जी की पुण्यतिथि मना रहा है। डॉ0 भीमराव अंबेदकर भारत के एक ऐसे महान सपूत थे जिन्होने देश से जातिप्रथा व छूआछूत के खिलाफ न केवल विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से जन जागरूकता फैलाई बल्कि वह स्वयं एक ऐसे परिवार से निकले जो इस कुप्रथा का शिकार रहे। ऐसे में हम यह सहज अनुमान लगा सकते हैं कि एक ऐसा व्यक्ति जो स्वयं वर्ग विषमता, जातिगत छुआछूत व भेदभाव की समस्या से पीडि़त रहा हो वह समाज को इस कुप्रथा से छुटकारा दिलाने के लिए कितना संघर्षरत व चिंतित हो सकता है।
वास्तव में हमारा भारतीय समाज डॉ0 भीम राव अंबेदकर जी के जन्म व पुण्य तिथि को एक समरस समाज बनाने व समाज से वर्ग विषमता, जातिगत छुआछूत व भेदभाव को समाप्त करने का हर वर्ष प्रण तो लेता है, लेकिन आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी क्या हम एक ऐसा समाज का निर्माण कर पाए हैं जहां जातिगत भेदभाव व छुआछूत के लिए कोई स्थान न हो? क्या हम उन लोगों को समाज की मुख्यधारा में बिना किसी भेदभाव के जोड़ पाए हंै या फिर यूं कहें क्या हमारा समाज पूरी तरह से जातिगत भेदभाव व छुआछूत से मुक्त हो पाया है? कहने को तो ऐेसे अनगिनत प्रश्न हैं जो आज भी हमारे समाज में मुंहबाए खडे हैं और जातिगत भेदभाव व छुआछूत की ओर ईशारा कर रहे हों? लेकिन अब प्रश्न कितने लोगों का जीवन स्तर उठा, कितने लोगों का आर्थिक व सामाजिक सशक्तिकरण हुआ का नहीं है बल्कि प्रश्न भारतीय समाज को पूरी तरह से वर्ग विषमता, जातिगत छुआछूत व भेदभाव के उस चंगुल से बाहर निकालने का है जिसके लिए आज भी हमारा समाज किसी न किसी स्तर पर संघर्षरत है।
भले ही वर्ग विषमता एवं जातिगत छुआछूत व भेदभाव को लेकर हमारे देश में न केवल समय-समय पर अनेक सामाजिक आंदोलन हुए बल्कि विभिन्न स्तरों पर भी समरस समाज बनाने के लगातार अनेक प्रयास होते रहे हैं। लेकिन भारतीय समाज में जातिगत छुआछूत व भेदभाव का यह जहर लोगों के मन मस्तिष्क से आज भी पूरी तरह से बाहर नहीं निकल पाया है जिसके लिए सीधे व परोक्ष तौर पर हम आजादी के इन सात दशकों से संघर्षरत हैं। यहां इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि हमारे समाज में इस दिशा में न केवल अबतक बेहतर प्रयास हुए हैं बल्कि बहुत से लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने व समाज की मुख्यधारा में जोडऩे के अनेक कदम भी उठाए हैं। लेकिन ऐसे में प्रश्न हमारे इन प्रयासों से लाभान्वित होने वालों के आंकड़ों का नहीं बल्कि प्रश्न इस कुप्रथा के शिकार समाज के सबसे निचले तबके को जोडऩे व समाज को वर्ग विषमता से मुक्त बनाने का है जिसकी तरफ शायद अभी तक हमने कोई सार्थक प्रयास करने की जहमत ही नहीं उठाई है।
वास्तव में किसी भी समाज का उत्थान इस बात पर निर्भर करता है कि समाज के सबसे निचले स्तर के कितने लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाया गया है। वैसे तो भारतीय संविधान में वह सभी प्रावधान मौजूद हैं जो देश में वर्ग विषमता व जातिगत छुआछूत व भेदभाव को मिटाने में कारगर साबित हो सकते हैं। लेकिन वास्तव में क्या इन संवैधानिक प्रावधानों का एक समरस समाज स्थापित करने में बेहतर इस्तेमाल हो पाया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि समाज में संविधान के मूल तत्वों व भावनाओं के साथ छेड़छाड़ कर इस सामाजिक समस्या को जड़ से उखाडऩे के बजाए निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए समाज को ही एक अन्य वर्ग व्यवस्था के तहत बांटने का तो प्रयास नहीं हो रहा है। इस पर भी समाज के बुद्धिजीवी वर्ग, राजनीतिक विश्लेषकों व चिंतकों को गौर फरमाने की आवश्यकता महसूस हो रही है।
वास्तव में हमारी वर्ग विषमता तथा जातिगत छुआछूत व भेदभाव के प्रति उस समय एक बड़ी जीत होगी जब देश का एक भी कोना ऐसा नहीं रहेगा जहां जाति विशेष के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव होता हो। ऐसा कोई भी समाज नहीं होगा जहां पर व्यक्ति की पहचान महज एक इन्सान व भारतीयता के अलावा कोई दूसरी रहे। ऐसे में प्रश्न उठ रहा है कि क्या वर्तमान परिस्थितियों में देश से यह समस्या खत्म हो पाएगी? लेकिन ऐसे में हम यह क्यों भूल रहे हैं कि यह वही भारतीय समाज है जहां के लोगों ने समय-समय पर अनेक सामाजिक बुराईयों व कुरीतियों के खिलाफ झंडा बुलंद किया तथा समाज को कई कुप्रथाओं से आजाद किया है। ऐसे में हमारे समाज से वर्ग विषमता व जातिगत छुआछूत की यह समाजिक बुराई पूरी तरह से समाप्त हो इसके लिए 21वीं सदी की हमारी युवा पीढ़ी न केवल सक्षम व समर्थ है बल्कि वह एक ऐसा भारतीय समाज स्थापित करने का भी सामथ्र्य रखती है जिसमें वर्ग विषमता, जातिप्रथा व छुआछूत के लिए कोई स्थान नहीं होगा।
ऐसे में देश से वर्ग विषमता व जाति प्रथा को मिटाना एवं डॉ0 भीमराव अंबेदकर जी के बताए सिद्धांतों व सदमार्ग पर चलने का प्रण लेना ही आज भारतीय समाज की उनके प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी। आओ आज हम सब मिलकर अपने समाज को वर्ग व जातिगत विषमता से मुक्त बनाने का प्रण लेेकर भारत को दुनिया का एक आदर्श समाज बनाएं।
(साभार: दैनिक न्याय सेतु 6 दिसम्बर, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
(साभार: दैनिक न्याय सेतु 6 दिसम्बर, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
No comments:
Post a Comment