Himdhaara Search This Blog

Wednesday, 24 August 2016

नशाखोरी के खिलाफ समाज का हर व्यक्ति आगे आए

हमारे समाज में नशे के फैलते जहर से न केवल हमारा पारिवारिक व समाजिक ढ़ांचा प्रभावित हो रहा है बल्कि इसकी चपेट में आकर हमारी नौजवान पीढी आए दिन तबाह हो रही है। आज हमारे समाज में न जाने ऐसे कितने परिवार हैं जहां इस नशीले जहर ने किसी का भाई, किसी का बेटा तो किसी का पति असमय की जीवन के गर्त में धकेल दिया। यही नहीं ऐसे न जाने कितने परिवार होगें जिनके लिए मादक द्रव्यों एवं पदार्थों का यह काला कारोबार जीते जी मौत का कुंआ साबित हो रहा है। कितने ऐसे परिवार हैं जिनके लिए नशे का यह जहर परिवार की आर्थिकी को तबाह कर कंगाली के स्तर पर ले गया है।
लेकिन अब प्रश्न यह खडा हो रहा है कि आखिर नशीले पदार्थों का यह जहरीला कारोबार करने वाले कौन हैं? क्या हमारा समाज ऐसे लोगों के आगे बौना साबित हो रहा है? या फिर नशे का काला कारोबार करने वालों के खिलाफ हमारा समाज लडने की पहल ही नहीं कर पा रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं हम हर समस्या के समाधान की तरह नशे की इस सामाजिक बुराई को लेकर भी हल केवल सरकारी चौखट में ही ढूूंढ रहे हैं। लेकिन अब वक्त आ गया है कि नशे की इस बुराई को लेकर समाज के हर वर्ग, हर व्यक्ति यहां तक की हर परिवार को पहल करनी होगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारी इस सामाजिक व्यवस्था में ऐसी कोई भी समस्या नहीं है जिसका हम मुकाबला नहीं कर सकते हैं। लेकिन जरूरत है नशे व नशीले पदार्थों के विरूद्ध एक सकारात्मक पहल करने की। जरूरत है ऐसे लोगों को बेनकाब करने की जो इस काले कारोबार में सैंकडों नहीं बल्कि हजारों युवाओं की हंसती खेलती जिंदगी को तबाह कर रहे हैं।
हम यहां यह क्यों भूल रहे हैं कि नशे का यह जहरीला कारोबार करने वाले कोई ओर नहीं बल्कि हमारे ही समाज के वे चंद लोग हैं जो कुछ रूपयों की खातिर हंसते खेलते परिवारों में नशे का यह जहरीला दंश देकर तबाही का मंजर लिख रहे हैं। लेकिन हैरत कि हम ऐसे लोगों के विरूद्ध लडने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं। जिसका नतीजा यह है कि आए दिन अफीम, चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर, भुक्की इत्यादि जैसे घातक मादक द्रव्यों एवं पदार्थों का काला कारोबार करने वाले हमारे पडोस में आकर दस्तक देकर नितदिन एक नई जिंदगी को तबाह कर रहे हैं। हमें केवल व्यवस्था को कोसते रहना या फिर समस्या के कारणों के लिए दूसरों के ऊपर दोषारोपण करने के बजाए इसे समाज से उखाड फैंकने के लिए मिलकर प्रयास करने होगें। हमें इस सामाजिक समस्या के समाधान के लिए स्वयं से पहल करते हुए अपने परिवार व आसपास के समाज में जागरूकता फैलाकर जहां नशे के इस जहर से लोगों विशेषकर युवाओं को बचाना होगा तो वहीं नशीले पदार्थों के काले कारनामें वालों का पर्दाफाश भी करना होगा।
हमारे समाज के लिए यह एक सुखद पहल ही कही जाएगी कि इस नशे के जहरीले दंश से समाज को बचाने के लिए हमारी सरकार स्वयं आगे आई है। हिमाचल सरकार लोगों को नशे के विरूद्ध जन जागरूकता लाने के लिए 22 अगस्त से 5 सितंबर तक समाज से भांग व अफीम की खेती को नष्ट करने के लिए एक व्यापक अभियान लेकर आई है। इस अभियान का उदेश्य भी जहां नशीले पदार्थों के सेवन के प्रति समाज में जन जागरूकता फैलाना है तो वहीं नशे के अवैध कारोबार में शामिल लोगों के लिए एक चेतावनी भी कही जा सकती है ताकि वह किसी के हंसते खेलते परिवार में यह जहरीला दंश देने से पहले सौ बार सोचे। जिस तरह से प्रदेश सरकार ने इस गंभीर समस्या के निपटारे के लिए विभिन्न कानूनी पहेलुओं पर भी गंभीरता से मंथन किया है यह आने वाले समय में नशे के जहरीले कारोबारियों के लिए सुधरने व इस काले कारोबार को छोडने का एक मौका भी कह सकते है। 
इस अभियान के माध्यम से जहां समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने आसपास उगी भांग व अफीम के पौधों को नष्ट करने के लिए आगे आए तो वहीं इन नशीले पदार्थों के दुष्प्रभावों को लेकर अपने परिवार व आसपास के समाज में चर्चा करे। इस पुनीत कार्य में शिक्षण संस्थाओं के अतिरिक्त ग्रामीण स्तर पर महिला व युवक मंडल, स्वयं सहायता समूह, ग्राम पंचायतें, गैर सरकारी व स्वयं सेवी संस्थाएं लोगों को इस अभियान के साथ जोडने तथा इस अभियान का संदेश घर-घर तक पहुंचाने में अहम योगदान दे सकते हैं। साथ ही हमारे समाज में विभिन्न सामाजिक समारोहों में परोसे जाने वाले विभिन्न नशीले पेय पदार्थों मसलन शराब इत्यादि के इस्तेमाल को भी प्रतिबंधित करना होगा ताकि नशे के विरूद्ध हमारी इस जंग का हमारे आसपास एक सकारात्मक संदेश जाए। यहां हमें यह नहीं भूलना चाहिए हमारे देश में प्रतिवर्ष कुल सडक़ दुर्घटनाओं का दस प्रतिशत का कारण मादक द्रव्य व नशीले पदार्थों का सेवन कर वाहन चलाना है।
लेकिन अब प्रश्न यह उठ रहा है कि एक पखवाडे तक चलने वाला यह विशेष भांग व अफीम हटाओ अभियान महज सरकार का समाज के प्रति अपने दायित्व निर्वहन तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को इस अभियान के साथ जुडकर सरकार को अपना साकारात्मक योगदान देना होगा। हमें यहां यह नहीं भूलना चाहिए संविधान ने जहां हमें कई अधिकार दिए हैं तो वहीं समाज के प्रति हमारा क्या कर्तव्य है इसका उल्लेख भी किया है। ऐसे में अब वक्त आ गया है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति महज व्यवस्था को कोसने के बजाए अपने संवैधानिक दायित्वों व कत्र्तव्यों का निर्वहन करते हुए प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई इस मुहिम का हिस्सा बन समाज से नशे के इस जहरीले दंश को उखाड फैंकने में अपना साकारात्मक योगदान दे।

(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 22 अगस्त, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Saturday, 13 August 2016

बिना सेट टॉप बॉक्स 31 दिसम्बर के बाद नहीं देख पाएंगें केबल टीवी

हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले केबल टीवी उपभोक्ता अब बिना सेट टॉप बॉक्स 31 दिसम्बर, 2016 के बाद टेलीविजन का प्रसारण अपने टीवी पर नहीं देख पाएंगें। संपूर्ण भारत वर्ष में चलाए जा रहे केबल टीवी डिजिटाईजेशन के चलते देश के सभी ग्रामीण क्षेत्रों सहित हिमाचल प्रदेश की 3226 ग्राम पंचायतों के केबल टीवी उपभोक्ताओं को टीवी प्रसारण के लिए सेट टॉप बॉक्स या डीटीएच की सुविधा लेनी होगी अन्यथा उनके टीवी पर प्रसारण बंद हो जाएगा। साथ ही केबल टीवी प्रसारणकर्ता को भी केबल टीवी अधिनियम के तहत निर्धारित तिथि के बाद डिजिटल प्रसारण करना भी अनिवार्य है। 
भारत की जनगणना-2011 के आंकडों के अनुसार देश में 117 मिलियन यानि की 11.7 करोड घरों में टीवी की सुविधा उपलब्ध है। जबकि फीकी-केपीएमजी रिपोर्ट-2015 के अनुसार यह आंकडा बढक़र लगभग 168 मिलियन यानि की 16.8 करोड तक पहुंच गया है। जिसमें से लगभग 9.9 करोड केबल टीवी, 4 करोड डीटीएच, एक करोड डीडी फ्री डिस व आइपीटीवी तथा 1.9 करोड परिवार डीडी टेरेस्ट्रेअल के माध्यम से जुडे हुए हैं। 
ऐसे में देश के अन्दर केबल टीवी प्रसारण को केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) अधिनियम-1995 के तहत संचालित किया जा रहा है। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने अगस्त-2010 में केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) संशोधन अधिनियम-2011 के तहत भारत में डिजिटल संबोधनीय केबल प्रणालियों का कार्यान्वयन को लेकर 4 विभिन्न चरणों में एनॉलाग केबल टीवी सेवाओं को डिजिटल संबोधनीय केबल टीवी प्रणाली में परिवर्तित करने की सिफारिश की है। जिसके तहत प्रथम व द्वितीय चरण में देश के चार महानगरों एवं 38 बडे शहरों को केबल टीवी डिजिटाइजेशन के तहत लाया गया है। जबकि तीसरे चरण मे 31 दिसम्बर, 2015 तक देश के सभी नगरीय क्षेत्रों तथा 31 दिसम्बर, 2016 तक देश के बचे हुए सभी ग्रामीण क्षेत्रों को केबल टीवी डिजिटल नेटवर्क के तहत लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इसी प्रक्रिया के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश की सभी ग्रामीण क्षेत्रों को केबल टीवी डिजिटाइजेशन के साथ 31 दिसंबर, 2016 तक जोडा जाना लाजिमी है। ऐसे में प्रदेश के 54 नगरीय क्षेत्रों सहित सभी ग्रामीण क्षेत्रों में केबल टीवी का प्रसारण कर रहे मल्टी  सिस्टम आपरेटर (एमएसओ) तथा लोकल केबल आपरेटर (एलसीओ) को केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) अधिनियम-1995 एवं केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) संशोधन अधिनियम-2011 की धारा तीन के अन्तर्गत सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार तथा संबंधित प्रसारण क्षेत्र के पंजीकरण प्राधिकरण के पास पंजीकरण के लिए आवेदन करना तथा धारा चार(क) के तहत सभी केबल आपरेटर एमएसओ व एलसीओ को निर्धारित तिथि के बाद केबल टीवी का डिजिटल संबोधनीय प्रणाली(डीएएस) के तहत प्रसारण करना अनिवार्य है।
साथ ही केबल टीवी नेटवर्क पंजीकरण नियम 5 के तहत सभी स्थानीय केबल ऑपरेटर्स (एलसीओ) को अपने प्रसारण क्षेत्र के मुख्य डाकपाल तथा पंजीकरण नियम 11 सी के तहत मल्टी सिस्टम आपरेटर (एमएसओ) को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार में पंजीकरण करवाना अनिवार्य है। इसी तरह केबल टीवी नेटवर्क अधिनियम की धारा 5 के तहत प्रोग्राम कोड तथा धारा 6 के अनुसार निर्धारित विज्ञापन कोड लेना भी जरूरी है जिसके बिना केबल टीवी पर प्रसारण अवैध है। इसके अतिरिक्त धारा आठ के तहत केबल आपरेटर को दूरदर्शन के 25 चैनल जिसमें डीडी नेशनल, लोकसभा, राज्यसभा, डीडी न्यूज, ज्ञानदर्शन, स्पोटर्स, किसान चैनल इत्यादि शामिल है का प्रसारण करना भी अनिवार्य है। यही नहीं केबल प्रसारणकत्र्ता को केबल नेटवर्क अधिनियम की धारा 9 के तहत भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा प्रमाणित बीआईएस गुणवत्ता वाले सेट टॉप बॉक्स व अन्य उपकरण भी लगाने अनिवार्य हैं। 
ऐसे में यदि केबल टीवी आपरेटर सरकार द्वारा निर्धारित तिथि तथा केबल टीवी नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत नियमों का पालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ केबल टीवी नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम की धारा 11 व 12 के अनुसार प्राधिकृत अधिकारी जिसमें जिला मेजिस्ट्रेट (डीएम), अतिरिक्त जिला मेजिस्ट्रेट (एडीएम), उपमंडलीय दंडाधिकारी (एसडीएम) तथा पुलिस कमीश्नर शामिल है नियमों के विरूद्ध कार्य करने पर केबल टीवी प्रसारणकत्र्ता के उपकरणों को जब्त कर सकता है तथा नियमानुसार कडी कार्रवाई अमल में ला सकते हंै। धारा 16 के तहत नियम की उल्लंघना पाए जाने पर एक हजार रूपये का जुर्माना या दो साल तक की जेल या दोनों जबकि पुन: उल्लंघना होने पर पांच हजार रूपये तक का जुर्माना या पांच साल की जेल या दोनों सजाएं हो सकती है। 
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के अनुसार देश में अब तक हुए केबल टीवी डिजिटाइजेशन के कारण जहां उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्तायुक्त केबल टीवी प्रसारण की सुविधा सुनिश्चित हुई है तो वहीं मनपंसद चैनल देखने की आजादी भी मिली है। साथ ही केबल टीवी डिजिटाइजेशन के कारण सरकार के राजस्व में भी बतौर मनोरंजन व सेवा कर के तौर पर अभूतपूर्व बढ़ौतरी दर्ज हुई है। 
ऐसे में हिमाचल प्रदेश के सभी ग्रामीण क्षेत्रों में केबल टीवी का प्रसारण कर रहे केबल आपरेटर (एमएसओ व एलसीओ) केबल टीवी नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत अपना पंजीकरण करवाना सुनिश्चित करें ताकि प्रदेश के लाखों केबल टीवी उपभोक्ताओं को सेट टॉप बॉक्स के माध्यम से डिजिटल प्रसारण की सुविधा समयानुसार सुनिश्चित हो सके। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा निर्धारित तिथि 31 दिसम्बर, 2016 के बाद प्रदेश के  सभी ग्रामीण क्षेत्रों में एनॉलाग केबल टीवी प्रसारण की सेवा समाप्त हो जाएगी।
उपभोक्ता व केबल ऑपरेटर केबल टीवी डिजीटाईजेशन के तहत अधिक जानकारी के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के टोल फ्री हेल्पलाईन नम्बर-18001804343 पर जानकारी हासिल कर सकते हैं।

 (साभार: दैनिक न्याय सेतु 21 अक्तूबर, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Monday, 1 August 2016

स्वयं की जागरूकता से ही रूकेंगी सडक़ दुर्घटनाएं

सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय भारत सरकार की सडक़ दुर्घटनाओं को लेकर वर्ष-2015 के जारी आंकडों के अनुसार देश में वर्ष 2014 के मुकाबले 2015 में सडक़ दुर्घटनाओं में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। जबकि इसी दौरान सडक़ दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों में भी 4.6 प्रतिशत तथा घायलों की संख्या में 1.4 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज हुई है। जारी आंकडों के आधार पर देश में प्रतिदिन 1374 सडक़ दुर्घटनाओं में 400 लोगों की मौत हो रही है। यानि की हम कह सकते हैं कि हमारे देश की सडक़ें प्रतिदिन हो रही सडक़ दुर्घटनाओं के शिकार लोगों के रक्त से हर पल लाल हो रही है तथा जिस गति से यह आंकडा बढ़ रहा है सडक़ दुर्घटनाओं को लेकर देश की एक भयावह तस्वीर हमारे सामने प्रस्तुत हो रही है। 
सरकार द्वारा जारी इन्ही आंकडों का आगे विश्लेषण करें तो सबसे चौकाने वाली बात यह सामने आ रही है कि इन सडक़ दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे लोगों में से 54.1 फीसदी 15-34 आयु वर्ग के युवा हैं। युवाओं का इस तरह सडक़ दुर्घटनाओं में शिकार हो जाना हमारे देश व समाज के लिए एक बहुत बडी त्रासदी कही जा सकती है। आंकडों के आधार पर कुल सडक़ दुर्घटनाओं में से 77.1 प्रतिशत सडक हादसे चालकों की लापरवाही के कारण घटित हो रहे हैं। जिसमें से लगभग 62 फीसदी कारण ओवरस्पीड जबकि शराब व नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों का आंकडा दस फीसदी है। इसी तरह ओवरलोडिंग के कारण देश में 77 हजार से अधिक सडक़ दुर्घटनाएं हुई जिनमें 25 हजार लोगों ने अपनी जान गंवाई है। यानि की यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकतर सडक दुर्घटनाओं के कारण हम स्वयं ही बन रहे हैं। आंकडों से दूसरी सबसे चौकाने वाली बात यह सामने आ रही है कि देश में हिट व रन के मामलों में भी वृद्धि दर्ज हुई है तथा वर्ष 2015 में कुल सडक दुर्घटनाओं में से 11.4 प्रतिशत हिट व रन के मामले सामने आए जिनके तहत 20 हजार से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पडी है।
इन आंकडों से एक ओर बात मुख्य तौर पर सामने आ रही है कि गत दो वर्षों के दौरान दोपहिया वाहनों की सडक़ दुर्घटना के आंकडों में भी लगभग दो फीसदी जबकि कार, जीप, टैक्सी इत्यादि के मामले में लगभग डेढ़ फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है। पूरे देश में 26 फीसदी सडक दुर्घटनाओं के कारण दोपहिया वाहन, साढे पच्चीस फीसदी ट्रक, टैंपो इत्यादि, 19 फीसदी कार, जीप, टैक्सी इत्यादि तथा 8 फीसदी बसें सडक़ दुर्घटनाओं का कारण बन रही हैं। ऐसे में एक बार फिर यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकतर सडक़ दुर्घटनाओं के लिए वाहन चालक स्वयं ही कारण बन रहे हैं। इसके अलावा एक महत्वपूर्ण बात यह भी सामने आई है कि 79 फीसदी सडक़ दुर्घटनाओं के मामले में चालकों के पास नियमित ड्राईविंग लाईसेंस था जबकि लर्नर लाईसेंस धारकों का आंकडा 12 फीसदी तथा बिना लाईसेंस वाले चालकों का आंकडा नौ फीसदी है।
ऐसे में यदि हिमाचल प्रदेश की बात करें तो वर्ष 2015 में तीन हजार सडक़ दुर्घटनाएं घटित हुई जिनमें लगभग 11 सौ लोगों की मौत व 5 हजार से अधिक घायल हुए हैं। राष्ट्रीय स्तर की भांति हिमाचल प्रदेश में भी अधिकतर सडक़ दुर्घटनाओं का मुख्य कारण वाहन चालक की लापरवाही ही सामने आई है। प्राप्त आंकडों के आधार पर प्रदेश में कुल सडक़ दुर्घटनाओं में से 2893 वाहन चालकों की गलती के कारण हुई जिनमें 1042 लोग मारे गए तथा पांच हजार के करीब घायल हुए हैं। वाहन चालकों के कारण हुई कुल सडक़ दुर्घटनाओं में से 2670 दुर्घटनाओं का कारण तेज गति से वाहन चलाना ही सामने आया है। ऐसे में एक बार फिर स्पष्ट हो गया कि लोगों की स्वयं की गलती के कारण की अधिकतर सडक़ दुर्घटनाओं के मामले घट रहे हैं।
इन परिस्थितियों में अब यह जरूरी हो जाता है कि सडक दुर्घटनाओं के प्रति लोगों को जागरूक करने की बहुत आवश्यकता है ताकि प्रतिवर्ष लाखों लोगों को सडक़ दुर्घटनाओं के कारण असमय ही मौत के आगोश में जाने से बचाया जा सके। इसके लिए जरूरी है कि लोग वाहन चलाते समय सडक़ पर लगी संकेतावली व चिन्हों का गंभीरता से पालन करते हुए स्वयं व दूसरों की अनमोल जिंदगी को बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। साथ ही वाहन चालक गाडी चलाते समय सीट बैल्ट का प्रयोग करते हैं तो सडक दुर्घटना की स्थिति में मौत होने की 60 प्रतिशत तक संभावनाएं कम हो जाती हैं जबकि दोपहिया वाहन चलाते समय अच्छी गुणवत्ता वाला हेल्मेट पहनने से सिर पर लगने वाली चोटों की संभावनाओं को 70 प्रतिशत तक कम कर देता है। 
यही नहीं वाहन चलाते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना भी सडक दुर्घटनाओं का बहुत बडा कारण बनता जा रहा है। इस दिशा में किए गए अनुसंधानों से पता चला है कि वाहन चलाते समय फोन को सुनना, कॉल या लिखित संदेश आने से भ्रमित हो जाना, एकाएक मोबाईल फोन की घंटी बज जाना इत्यादि विभिन्न कारणों से वाहन चालक की सडक पर जोखिमों के प्रति पहचान और प्रतिक्रिया की क्षमता धीमी हो जाती है जिसके कारण सडक दुर्घटना होने का अंदेशा लगातार बना रहता है। सडक यातायात में दिन के मुकाबले रात में घातक दुर्घटनाएं होने की संभावना 3-4 गुणा अधिक होती है। इसलिए रात्रि के समय वाहन चलाते समय अतिरिक्त सावधानी व सत्तर्कता अपनाएं तथा पैदल चलने वाले यात्रियों, साइकिल सवारों, पशुओं इत्यादि के प्रति सावधान रहें। साथ ही रेट्रो-रिफलैक्टिव शीटों व टेपों का व्यापक इस्तेमाल करें।
देश में वाहनों की ओवरलोडिंग भी सडक़ दुर्घटनाओं का एक बहुत बडा कारण है इसलिए ओवर लोडिंग न करके हम देश की सडकों को क्षति पहुंचाने से बचा सकते हैं बल्कि वाहनों की क्षमता को भी बढ़ाने के साथ-साथ होने वाले आर्थिक नुकसान से भी बच सकते हैं। इसके अलावा वाहन चालकों को वाहन चलाते समय शराब व नशीले पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए। देश में 77 फीसदी सडक दुर्घटनाओं के लिए वैध ड्राईविंग लाईसैंस धारी चालक ही कारण बन रहे हैं, ऐसे मेें जरूरी है कि वाहन चालकों का समय-समय पर सडक़ सुरक्षा के प्रति औचक परीक्षण भी होना चाहिए ताकि वाहन चालक सडक़ नियमों के प्रति सचेत बने रहें।
ऐसे में यदि हमारे देश को ब्राजीलिया डिक्लेरेशन के तहत 2020 तक सडक़ दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों में 50 फीसदी तक कमी लानी है तो जरूरी है कि लोग सडक़ सुरक्षा नियमों के प्रति जागरूक बनें तथा ड्राईविंग लाईसेंस जारी किए जाने वाली प्रक्रिया में सख्ती के साथ-साथ पारदर्शिता अपनाए जाने की आवश्यकता है। साथ ही सडक सुरक्षा नियमों का पालन न करने वाले वाहन चालकों के प्रति सख्त कानूनी कार्रवाई भी अमल लानी होगी। अन्यथा हमारी सडक़ों पर मौत यह तांडव इसी तरह जारी रहेगा तथा असमय की असंख्य लोग अपनी अनमोल जिंदगी को गंवाते रहेंगें।



(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 1 अगस्त, 2016 एवं हिमाचल दिस वीक, 6 अगस्त, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Saturday, 23 July 2016

प्राचीन तालाबों का जीर्णोद्धार, पर्यावरण संरक्षण की एक अनूठी पहल

जिला ऊना में ही नहीं बल्कि हिमाचल प्रदेश के नक्शे में हरोली हलके ने गत तीन वर्षों के दौरान जहां विकास की नई ऊंचाईयों को छूआ है तो वहीं जिस रचनात्मकता के साथ हलके के विकास को पंख लगे हैं, जिसके परिणाम स्वरूप हरोली हलका पूरे प्रदेश भर में एक आदर्श विधानसभा क्षेत्र के तौर पर ऊभर कर सामने आया है। आज इस हलके में औद्योगिक विकास से लेकर शिक्षा के क्षेत्र तक, किसानों के खेत से लेकर प्रशासनिक  ढांचे के विकास में हलके ने अभूतपूर्व तरक्की कर विकास की नई ऊंचाईयों को छुआ है। 
हिमाचल प्रदेश सरकार में काबीना मंत्री एवं स्थानीय विधायक मुकेश अग्रिहोत्री की नई सोच व रचनात्मकता के साथ विकास को एक नई दिशा देकर आज हरोली हलके के प्राचीन तालाबों (टोबों) को विकास के नवीनतम मॉडल के साथ न केवल सहेजा जा रहा है बल्कि एक नई दिशा देकर इन्हे खूबसूरत सैरगाह के साथ-साथ पर्यटक केन्द्रों के तौर पर भी विकसित किया जा रहा है। आज हलके में कांगड के तालाब से लेकर पूबोवाल, ललडी, सलोह, गोंदपुर बुल्ला, गोंदपुर जयचंद, हीरां थडा, पंजाबर, दुलैहड के प्राचीन तालाबों (टोबों) को बेहद खूबसूरती के साथ विकसित किया गया है। इन तालाबों के जीर्णोद्धार के कार्य कर जहां तालाब के चारों ओर स्थानीय लोगों की सुविधा के लिए खूबसूरत ट्रैक का निर्माण किया गया है तो वहीं बैठने के लिए लॉन, बैंच व रात्रि के समय सोलर लाईटों का भी प्रबंध किया गया है। साथ ही इन तालाबों में स्थानीय पंचायत की आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए मछली पालन को भी प्रोत्साहित किया गया है। इससे न केवल स्थानीय पंचायत को आय के नए स्त्रोत के तौर इन तालाबों का महत्व बढा है बल्कि यह गांव की आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र बिन्दु बनकर भी उभर कर सामने आए हैं। 
जीर्णोद्धार से पहले तालाब का दृश्य 
आज हरोली हलके का शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जहां पर प्राचीन तालाब (टोबे) न हो। भले ही वक्त के बदलाव के साथ इन तालाबों का महत्व कम हुआ हो लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से ये तालाब आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने वह पहले हुआ करते थे। बदलते वक्त की इस तेज रफतार भरी जिन्दगी में इन प्राचीन तालाबों के रखरखाव, उत्थान व जीर्णोद्धार के लिए भले ही श्रमदान कर अब आधुनिक समाज के लोग आगे आने से कतराते रहे हों, लेकिन उद्योग मंत्री मुकेश अग्रिहोत्री ने हरोली हलके की इस प्राचीन विरासत को सहेजने में न केवल प्राथमिकता के साथ कार्य किया है बल्कि टौबों के जीर्णोद्धार कार्यों में निजी तौर पर दिलचस्पी लेकर पर्यावरण के प्रति इनके महत्व को भी बखूवी पहचाना है। मुकेश अग्रिहोत्री की इसी दूरदर्शी सोच का ही नतीजा है कि जहां हरोली हलके की प्राचीन तालाबों (टोबों) को न केवल एक नया जीवन मिला है बल्कि विकास के आईने में रचनात्मकता का भाव भी साफ झलकता है। हलके के प्रति इसी दूरदर्शी सोच का नतीजा है कि आज हरोली के कई तालाबों का जीर्णोंद्धार संभव हुआ है बल्कि इस प्राचीन विरासत को नए अंदाज में सहेजकर खूबसूरत भी बनाया गया है। 
जीर्णोंद्धार के बाद तालाब का दृश्य
वक्त के साथ नई पीढ़ी के लिए इन प्राचीन धरोहरों को सहेजना व संवारना इतना महत्वपूर्ण न रह गया हो, लेकिन हम यह क्यों भूल रहे हैं इन तालाबों के कारण न केवल स्थानीय लोगों के साथ-साथ मवेशियों एवं जंगली जानवरों को पानी की समस्या से निजात मिलती है बल्कि पर्यावरण को संरक्षित करने में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इन्ही तालाबों का नजीता रहा है कि जहां भू-जल का स्तर बेहतर बना रहता है तो वहीं खेतीबाडी से लेकर पशुपालन में इनकी अहम भूमिका रहती है। आज पूरी दुनिया सहित भारत के कई हिस्सों में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची है, लोग एक-एक पानी की बूंद को तरस रहे है, ऐसे में अपनी प्राचीन विरासत टोबों को सहेजकर न केवल आने वाली पीढिय़ों को इन तालाबों के जीर्णोद्धार के माध्यम से युवा पीढ़ी को जागरूक किया है, बल्कि पर्यावरण व वन्य जीवों को बचाने में भी अपना अहम योगदान दिया है।
एक खूबसूरत तालाब का दृश्य
इस तरह मुकेश अग्रिहोत्री ने विकास के आईने में हरोली हलके की प्राचीन धरोहर तालाबों का जीर्णोद्धार कर न केवल बुजुर्गों की अनमोल विरासत को सहेजा है बल्कि हरोली हलके के यह प्राचीन तालाब फिल्मी दुनिया के लोगों के लिए पसंदीदा स्थल के तौर पर भी उभरे हैं जिससे इस हलके को पर्यटन के क्षेत्र में भी एक नई उडान मिली है। 
इस बारे उद्योग मंत्री मुकेश अग्रिहोत्री का इन तालाबों को नया स्वरूप देने के पीछे कहना है कि पर्यावरण की दृष्टि से जहां इन प्राचीन तालाबों की हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है तो वहीं हलके की जनता को आधुनिक शहरों की भीडभाड व प्रदूषण भरी जिन्दगी से दूर गांव में ही वह तमाम सुविधाएं मुहैया करवा दी जाएं जिनके लिए लोग अकसर शहरों की ओर रूख करते हैं।








Wednesday, 13 July 2016

बुढ़ापे में देवराज व बलदेव चंद के लिए वृद्धावस्था पैंशन बनी एकमात्र सहारा

चालू वित वर्ष के दौरान जिला में सामाजिक सुरक्षा पैंशन के तहत 22062 लोगों पर व्यय होंगें 20 करोड रूपये
जिला ऊना के गगरेट विकास खंड की दूरदराज ग्राम पंचायत नंगल जरियालां के वार्ड नम्बर तीन के मुहल्ला छैवालिया के बीपीएल परिवार में शामिल निवासी देवराज व उनकी धर्मपत्नी भगवती देवी के लिए जीवन के आखिरी पडाव में सरकार की सामाजिक सुरक्षा पैंशन जीने का एकमात्र सहारा बनी है। नाई की दुकान चलाकर गुजर बसर करने वाले देवराज की कुछ वर्ष पहले आंखों की रोशनी चली गई जिसके कारण वह अपना काम करने से भी वंचित हो गए। परिवार में कोई दूसरा सदस्य न होने के कारण देवराज की मुश्किलें बढ़ती गई तथा इस मंहगाई के जमाने में गुजर बसर करना मुश्किल होता चला गया। परन्तु ऐसे में सरकार की सामाजिक सुरक्षा पैंशन इस वृद्ध दंपति के लिए जीने का एकमात्र सहारा बन कर आई है। आज देवराज व उनकी धर्मपत्नी को सरकार की ओर से मिलने वाली इस सामाजिक सुरक्षा पैंशन के कारण न केवल उनका चूल्हा जलता है बल्कि  जिंदगी की अपनी अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए भी वह इसी पैंशन पर निर्भर हैं।  
कमोवेश यही कहानी इसी जिला के हरोली विकास खंड के गांव नथूरे ग्राम पंचायत हीरां थडा के 82 वर्षीय बलदेव चंद की है। 4 बेटियों व एक बेटे के पिता बलदेव चंद ने ताउम्र मेहनत मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण किया तथा बच्चों को अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार पढ़ाई-लिखाई करवाकर उनकी शादी कर उनके परिवारों को बसाया। आज उनके सभी बच्चे अपने-अपने परिवारों के साथ खुशी-खुशी रह रहे हैं, लेकिन जीवन के इस अंतिम पडाव में बलदेव चंद व उनकी पत्नी के लिए जिंदगी उम्र बढऩे के साथ-साथ पहाड सी चुनौती बनती गई। बढ़ती उम्र के साथ-साथ जहां वह काम करने में असमर्थ होते चले गए तो वहीं आय का कोई दूसरा साधन न होने के कारण इस बुजुर्ग दंपति की मुश्किलें भी लगातार बढ़ती चली गई। लेकिन ऐसे में इस बुजुर्ग दंपति के लिए भी सरकार की सामाजिक सुरक्षा पैंशन सहारा बनकर आई। आज बलदेव चंद को प्रतिमाह सरकार की ओर से 12 सौ रूपये की दर से सामाजिक सुरक्षा पैंशन मिल रही है।
इस बारे देवराज व बलदेव चंद का कहना है कि सरकार द्वारा गरीब व जरूरतमंदों विशेषकर 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए बिना किसी आय सीमा के आरंभ की गई यह सामाजिक सुरक्षा पैंशन वास्तव में ही सहारा बन कर आई है। इस बारे उनकी सरकार से मांग है कि वृद्धावस्था के कारण बुजुर्ग लोगों की विभिन्न समस्याओं को ध्यान में रखते हुए पैंशन का भुगतान समय पर उनके घरद्वार पर ही हो जाना चाहिए ताकि उन्हे पैंशन की धनराशि लेने के लिए इधर-उधर न जाना पडे। ऐसे में देवराज व बलदेव चंद की तरह जिला ऊना में सैंकडों गरीब, जरूरतमंद व्यक्ति एवं परिवार हैं जिनके जीवन में सरकार की यह सामाजिक सुरक्षा पैंशन जिंदगी के इस आखिरी पडाव में आर्थिक सहारा बनकर खडी हुई है। 
जिला ऊना में वर्ष 2015-16 के दौरान विभिन्न सामाजिक सुरक्षा पैंशन के तहत 20683 लोगों को लाभान्वित कर लगभग साढे 15 करोड रूपये की आर्थिक सहायता मुहैया करवाई गई है। जिसमें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पैंशन के 5543, वृद्धावस्था के 6673, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पैंशन के 1929, विद्यवा पैंशन के 3860, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय अपंग पैंशन के 51, अपंग राहत भत्ता के 2582 तथा कुष्ठ रोगी राहत भत्ता के 45 मामले शामिल हैं।
जिला कल्याण अधिकारी ऊना असीम सूद ने बताया कि जिला में चालू वित्त वर्ष के दौरान सरकार ने 2594 नए पैंशन के मामलों को स्वीकृति प्रदान कर कुल 22062 लोगों को सामाजिक सुरक्षा पैंशन पर लगभग 20 करोड रूपये की धनराशि व्यय की जाएगी। उन्होने बताया कि वर्तमान सरकार ने सामाजिक सुरक्षा पैंशन को साढ़े चार सौ से बढ़ाकर 650 सौ रूपये प्रतिमाह जबकि 80 वर्ष या इससे अधिक उम्र तथा 70 प्रतिशत से अधिक अक्षमता वालों के लिए यह राशि आठ सौ रूपये से बढाकर 12 सौ रूपये प्रतिमाह कर दी है।
इस तरह जिला ऊना में हजारों गरीब व जरूरतमंद लोगों के लिए सरकार की सामाजिक सुरक्षा पैंशन जीवन के आखिरी पडाव में आर्थिक सुरक्षा के तौर पर सहारा बनकर आई है।








Friday, 1 July 2016

शैक्षणिक संस्कार बने बुजुर्गों का सम्मान

वृद्धावस्था मानव जीवन की एक ऐसी अवस्था होती है, जिसमें बुजुर्गों को न केवल आर्थिक बल्कि भावनात्मक व सामाजिक सुरक्षा की जरुरत होती है। परन्तु पिछले कुछ दशकों में तेजी से बदलते सामाजिक परिदृश्य के कारण हमारे समाज में बुजुर्गों के प्रति न केवल संवेदनहीनता बढ़ी है बल्कि जीवन के अन्तिम पड़ाव में खड़े हमारे बुजुर्गों की स्थिति दयनीय हो चली है। कितने दु:ख के साथ कहना पड़ रहा है कि जिन्होने बड़े लाड़-प्यार से बच्चों को पाला पोसा व बड़ा कर समाज में एक काबिल इन्सान बनाया वही लोग जीवन की आपाधापी, व्यस्तता व घरों से मीलों दूर बड़े-2 शहरों यहां तक कि विदेशों में जाकर अपने बुजुर्गों के प्रति कर्तव्यों को भूलते नजर आ रहे हैं। अब हम इसे समय की पुकार कहें या फिर जिन्दगी की लड़ाई में हारती मानवता। कारण कुछ भी हो सकते हैं, परन्तु यहां यह तर्क बिल्कुल ठीक बैठता है कि बढ़ते शहरीकरण, औद्योगिकरण व आधुनिकता की इस चकाचौंध में जहां हमारे समाज में संयुक्त परिवार की सदियों पुरानी संस्कृति एकल परिवारों की ओर बढ़ी है, तो वहीं घर व समाज में बड़े-बुजुर्गों के प्रति हमारे संबंध भी बदलते नजर आ रहे हैं। ऐसा एक वक्त था जब संयुक्त खुशहाल परिवार, जहां सारे सदस्य एक साथ खाना खाते थे, एक जगह एक ही देवी-देवता की पूजा पाठ में शरीक होते थे, दादा-दादी के मार्गदर्शन, लाड़ व प्यार में बच्चे बड़े होते थे, वहां अब इस प्रेम-मोहब्बत की जगह स्वार्थ और संकीर्णता का बोलवाला हो गया है और घर-परिवार, समाज में कल का सम्मानित बुजुर्ग बेगानेपन और बोझ समझे जाने की इस अहसनीय मानवीय पीड़ा से टूटता चला जा रहा है।जनगणना-2011 के आंकड़ों के अनुसार देश में प्रजननदर घट रही है, जिससे बच्चों की आबादी घटनी और बूढ़ों की बढऩी शुरु हो गई है। अनुमान है कि वर्ष 2026 तक देश में बूढ़ों की संख्या लगभग 17.5 करोड़ हो जाएगी। वर्तमान में देश की कुल आबादी का 7.3 फीसदी हिस्सा बुजुर्गों का है जो लगभग 9 करोड़ बनता है जो 2026 में लगभग 12.4 प्रतिशत के साथ 17.5 करोड़ तक पहुंच जाएगा। ऐसे में आने वाले समय में देश के अन्दर 60 वर्ष या इससे अधिक उम्र के लोगों की आबादी को हम किसी भी सूरत में नजर अन्दाज नहीं कर सकते हैं। दूसरी तरफ  हकीकत तो यह है कि वक्त के साथ-साथ औसत आयु में भी वृिद्ध हुई है। एक जानकारी के अनुसार वर्ष 1947 में व्यक्ति की औसत आयु 31 साल थी जो वर्तमान में 65 साल से भी अधिक हो गई है। ऐसे में निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि आने वाले समय में 75-80 साल आयु वाले बुजुर्ग लोगों की संख्या में बढ़ौतरी होगी। साथ ही हमारे समाज में सार्वजनिक सेवाओं से सेवानिवृति की उम्र भी अब 60 वर्ष तथा कुछेक व्यावसायों जैसे उच्च शिक्षा व स्वास्थ्य में यह 65 व 70 वर्ष तक हो गई है। ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले वर्षों में 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों का यह आंकड़ा बढऩे वाला है। वल्डऱ् पॉपुलेशन प्रोस्पेक्टस-2006 के मुताबिक 2050 में हमारे देश में 80 वर्ष से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों की संख्या मौजूदा करीब 80 लाख से 6 गुणा बढक़र करीब 5.14 करोड़ हो जाएगी। ऐसे में अब प्रश्न यह उठ रहा है कि जहां समय के साथ-साथ बुजुर्गों की आबादी बढ़ेगी तो वहीं बढ़ती उम्र के साथ-साथ कई समस्याएं भी आएंगी।
ऐसे में भले ही समय-समय पर देश व विभिन्न प्रदेशों की सरकारों ने बुजुर्गों को समाज की मुख्यधारा में सम्मानजनक जीवनयापन के लिए माता-पिता भरण पोषण अधिनियम सहित कई कानून बनाए हैं, जिसमें वृद्ध मां-बाप की उपेक्षा करने वाले बच्चों के खिलाफ  कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। सरकारी व निजी क्षेत्र में वृद्धाआश्रम खोलने के अतिरिक्त उन्हे आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने के लिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन, सरकारी योजनाओं, बैंकों, अस्पतालों, परिवहन सेवाओं इत्यादि में कई रियायती सुविधाएं भी प्रदान की गई है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश की ही बात करें तो प्रदेश सरकार 80 वर्ष या इससे अधिक आयु वाले समाज के सभी ऐसे बुजुर्गों को बिना किसी की आय सीमा के 11 सौ रूपये सामाजिक सुरक्षा पैंशन मुहैया करवा रही है। 
परन्तु इसके बावजूद इस बढ़ती उम्र के साथ-साथ हमारे बुजुर्गों को कई तरह की समस्याओं से दो चार होना पड़ता है। जिसमें चाहे बुढ़ापे के दौरान होने वाली विभिन्न बीमारियां हों या फिर सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ बढ़ता एकाकीपन हो। ऐसे में यहां बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि जिन्दगी के अंतिम पड़ाव में खड़े हमारे बुजुर्गों को जहां अकेलेपन का जो दंश झेलना पड़ता है, यह हमारे समाज के लिए किसी भी गंभीर बीमारी से होने वाली पीड़ा से ज्यादा दु:खदायी ही है, तो वहीं महानगरों, शहरों और अब ग्रामीण परिवेश में भी हमारे बुजुर्ग अपनों की बेरुखी के कारण सुरक्षित नहीं रह गए हैं। जीवनयापन के लिए वे अपनी जिस पेंशन या जमापूुंजी पर निर्भर हैं, वह भी अपनों की बेरुखी तथा अकेलेपन के चलते सुरक्षित नहीं है। आए दिन बुजुर्गों के साथ मारपीट व हत्या कर संपति की लूट करने की घटनाएं इसका जवलंत उदाहरण हैं।
इस तेजी से बदलते परिदृष्य में भविष्य में बुजुर्गों की देखभाल व सुरक्षा की जिम्मेदारी परिवार, समाज, सरकार व समुदाय की सामूहिक इच्छाशक्ति, एकजुट प्रयास व जागरुकता के बगैर संभव नहीं होगी। ऐसे में अब यह जरुरी हो जाता है कि आने वाली पीढी़ को आधुनिक व व्यावसायिक शिक्षा के साथ-साथ सुसंस्कारित, नैतिक मूल्यों व आदर्श विचारों से ओतप्रोत शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि इस बढ़ती सामाजिक समस्या का कोई बेहतर व स्थाई हल निकाला जा सके। ऐसे में हमारा सदियों पुराना पारिवारिक ढ़ांचा व समृद्ध संस्कृति बुजुर्गों को समाज की मुख्यधारा में बनाए रखने में एक अहम कड़ी का काम कर सकती है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया के विकसित व पश्चिमी संस्कृति से ओतप्रोत मुल्कों में आधुनिकता व विकास की दौड़ में जिस तेजी से पारिवारिक ढ़ांचा बिखरा आज वहां पर बच्चों व बुजुर्गों की स्थिति अत्यन्त दयनीय व दु:खदायी कही जा सकती है। कमोवेश कल हमारा समाज व देश भी उनमें से एक हो सकता है यदि हमने समय रहते इस दिशा में कठोर व प्रभावी कदम नहीं उठाए।
इस संबंध में अब यह जरूरी हो जाता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में स्कूली स्तर से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक सभी पाठयक्रमों में देश की सामाजिक व्यवस्था एवं यहां की संस्कृति से स्बरू करवाने के लिए हमारी नौजवान पीढी को अवगत करवाने की आवश्यकता है। आज भले ही हम लाखों व करोडों रूपयों का पैकेज दिलवाने वाली बडी-बडी डिग्रीयों की बात करते हैं लेकिन वास्तव में हमारी शिक्षा का उदेश्य तभी पूरा होगा जब हम आधुनिकता के चकाचौंध से भरी इस जिंदगी में बुजुर्गों की देखभाल से लेकर उन्हे पारिवारिक संरक्षण एवं वह प्यार मोहब्बत जीवन के अंतिम पडाव में परिवार के अन्दर ही मुहैया करवा पाते हैं जिनकी उन्हे बेहद जरूरत होती है।

(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 25 जून, 2016 एवं दिव्य हिमाचल 28 जून, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Wednesday, 22 June 2016

हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड बना श्रमिकों का सहारा

जिला ऊना में एक वर्ष के दौरान 4376 मजदूरों को बांटे एक करोड रूपये  के लाभ
हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड अपनी विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से श्रमिकों व उनके परिजनों के कल्याण एवं उत्थान में कारगर साबित हो रहा है। अकेले जिला ऊना में ही गत एक वर्ष के दौरान 4376 श्रमिकों को लगभग एक करोड 16 लाख रूपये से अधिक के वित्तीय व अन्य लाभ प्रदान किए गए हैं।
श्रम अधिकारी ऊना जितेन्द्र बिन्द्रा ने बताया कि जिला ऊना में गत एक वर्ष के दौरान 4376 श्रमिकों को लाभान्वित कर लगभग एक करोड 16 लाख रूपये से अधिक के वित्तीय व अन्य लाभ प्रदान किए गए हैं। जिसमें बच्चों की शिक्षा के 819 मामलों में लगभग 15 लाख 88 हजार, बच्चों के विवाह के 109 मामलों में 21 लाख 34 हजार रूपये, चिकित्सा के 32 मामलों में एक लाख, कामगार की मृत्यु होने पर दी जाने वाली आर्थिक सहायता पर दो लाख 60 हजार तथा मातृत्व व पितृत्व के लिए एक लाख 86 हजार रूपये की आर्थिक सहायता शामिल है। जबकि इस दौरान 1338 कामगारों को 26 लाख रूपये मूल्य के इंडक्शन हीटर, 388 मामलों में 5 लाख  82 हजार रूपये के कैरोसीन स्टोव तथा 64 मामलों में एक लाख 66 हजार रूपये के सोलर लैंप भी वितरित किए गए हैं। जिला ऊना में वर्तमान में हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड के तहत 10523 श्रमिक पंजीकृत हैं जिसमें 2247 मनरेगा कामगार शामिल हैं। 
किन-किन योजनाओं के तहत मिलता है लाभ
हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड के माध्यम से कामगारों एवं उनके परिजनों के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही है जिसमें कामगारों के दो बच्चों की शिक्षा तक प्रति बच्चा एक हजार से 15 हजार रूपये प्रतिवर्ष, कामगार की स्वयं अथवा दो बच्चों की शादी के लिए प्रति बच्चा 25 हजार रूपये, प्रसूति लाभ योजना के तहत महिला कामगार को प्रसूति लाभ के लिए दो बच्चों तक दस-दस हजार जबकि पुरूष कामगार को एक हजार रूपये, बीमार होने की स्थिति में सरकारी एवं सरकार द्वारा अनुमोदित अस्पतालों में उपचार के लिए आउटडोर के तौर पर दस हजार जबकि इन्डोर तीस हजार रूपये वार्षिक की आर्थिक सहायता, 60 वर्ष से अधिक उम्र के कामगारों को पांच सौ रूपये प्रतिमाह पैंशन सहित महिला कामगारों को साईकिल और वाशिंग मशीन, कामगार को औजार खरीद के लिए 6 हजार रूपये ब्याजमुक्त ऋण, लाभार्थियों को सोलर कुकर, सोलर लैंप व इंडक्शन हीटर जैसी अन्य सुविधाएं भी मुहैया करवाई जा रही है। इसके अतिरिक्त लाभार्थी पति व पत्नी सहित बच्चों के कौशल विकास हेतु 15 सौ रूपये प्रतिमाह तथा 18हजार रूपये वार्षिक कौशल विकास भत्ता एवं आवासीय व्यवसायिक पाठयक्रम का रहन सहन सहित पूरा खर्च वहन किया जाता है जबकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत कामगार पति व पत्नी सहित परिवार के अन्य तीन सदस्यों को 30 हजार रूपये तक ईलाज की सुविधा भी दी जाती है।
किसका हो सकता है पंजीकरण
हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं अन्य सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड में ऐसे कामगार अपना पंजीकरण करवा सकते हैं जो भवन एवं अन्य सन्निर्माण कार्य में 90 दिन या इससे अधिक दिनों से कार्यरत तथा मनरेगा में एक वर्ष में 50 दिन तक कार्य करने वाले कामगार अपना पंजीकरण करवा सकते हैं। इस सबंध में अधिक जानकारी के लिए मुख्य कार्यकारी अधिकारी हिमाचल प्रदेश भवन निर्माण एवं सन्निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड के शिमला कार्यालय या अपने जिला के श्रम अधिकारी कार्यालय से संपर्क स्थापित कर सकते हैं।

Monday, 20 June 2016

ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री पांवटा साहिब हिमाचल प्रदेश

गुरु गोबिन्द सिंह जी का यमुना नदी के तट पर बसाया नगर पांवटा साहिब इतिहास की कई महान घटनाओं को संजोए हुए है। एक तरफ जहां सिख धर्म के इतिहास में विशेष स्थान रखता है तो दूसरी तरफ  सिक्खों के गौरवमयी इतिहास की यादों को ताजा करता है। इस धरती पर पांवटा साहिब ही एक ऐसा नगर है जिसका नामकरण स्वयं गुरु गोबिन्द सिंह जी ने किया है। इतिहास में लिखा है कि गुरु गोबिन्द सिंह जी 17 वैशाख संवत 1742 (1685 ई0) को नाहन पहुंचे तथा संक्राति 1742 संवत को पांवटा साहिब की नींव रखी। इसी स्थान से गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 16 वैशाख संवत 1746 (1689 ई0) को भंगाणी के मैदान में पहला युद्ध लड़ा था। बिना प्रशिक्षण एकत्रित फौज को बाईसधार के राजाओं के मुकाबले में लाकर उनकी 25,000 फौज की कमर तोड़ दी थी। इसी युद्ध से गुरु जी ने जुल्म के विरुद्ध जंग लडऩे का ऐलान किया और एक-एक करके 13 युद्ध लड़े। 
गुरु गोबिन्द सिंह जी 4 साल तक पांवटा साहिब में रहे। इस दौरान उन्होने यहां रहकर बहुत से साहित्य तथा गुरुवाणी की रचनांए भी की है। प्राचीन साहित्य का अनुभव और ज्ञान से भरी रचनाओं को सरल भाषा में बदलने का काम भी गुरु गोबिन्द सिंह जी ने लेखकों से करवाया। गुरु गोबिन्द सिंह जी यहां पर एक कवि दरबार स्थान की स्थापना की जिसमें 52 भाषाओं के भिन्न-भिन्न कवि थे। कवि दरबार स्थान पर गुरु गोबिन्द सिंह जी पूर्णमाशी की रात को एक विशेष कवि दरबार भी सजाया। 
यमुना नदी के तट की ओर से गुरूद्वारे का विहंगम दृश्य
इतिहास के पन्नों के अनुसार बाईस धार के राजाओं में परस्पर लड़ाई झगड़े चलते रहते थे। नाहन रियासत के तत्कालीन राजा मेदनी प्रकाश का कुछ इलाका श्रीनगर गढ़वाल के राजा फतहशाह ने अपने कब्जे में कर लिया था, और राजा मेदनी प्रकाश अपने क्ष्ेात्र को वापिस लेने में विफल रहा था। राजा मेदनी प्रकाश ने रियासत के प्रसिद्ध तपस्वी ऋषि काल्पी से सलाह मांगी। उन्होने कहा कि दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी को अपनी रियासत में बुलाओ वही तुम्हारा संकट दूर कर सकते हैं। राजा मेदनी प्रकाश के आग्रह पर गुरु गोबिन्द सिंह जी नाहन पहुंचे। जब गुरु जी नाहन पहुंचे तो राजा मेदनी प्रकाश, उनके मंत्रियों, दरबारियों व गुरु घर के सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने उनका शानदार और परंमपरागत स्वागत किया। कुछ दिन नाहन रहकर गुरु गोबिन्द सिंह जी इलाके का दौरा किया और कई स्थान देखे। वह वर्तमान पांवटा साहिब नगर वाली एक जगह पर यमुना नदी के किनारे पहुंचे तो गुरु जी को यहां का प्राकृतिक सौंदर्य बहुत ही पसंद आया और यहीं ठहरने का फैसला कर लिया। इसी स्थान पर कुछ ही दिनों के भीतर एक किले जैसी इमारत बन गई और लोगों के रहने और कारोबार के लिए नगर का निर्माण शुरु हो गया। राजा मेदनी प्रकाश ने यहां की सारी जमीन गुरु गोबिन्द सिंह जी को सौंप दी। गुरु जी ने इस नगर का नाम पांवटा रखा। महान शब्द कोश में पांवटा शब्द के तीन अर्थ मिलते हैं।
1 जिसमें पांव टिकाया जा सके, रकाब
2 जोड़ा जूता
3 मकान के आगे बिछाया गया कालीन जिस पर सम्मान योग्य मेहमान पांव रख कर आए। 
विशेष आयोजन के दौरान गुरूद्वारे का खूबसूरत दृश्य
यह सारे अर्थ ही इस नगर के नाम से मेल खाते कहे जा सकते हैं। गुरु जी अपने बसाए इस नगर में 4 वर्ष तक रहे तथा बाईस धार के राजाओं के साथ भंगाणी के मैदान में युद्ध लड़े और शानदार विजय प्राप्त कर राजा मेदनी प्रकाश की समस्या को हल किया। यमुना नदी के तट पर बसा यह गुरुद्वारा विश्व प्रसिद्ध है। यहां पर भारत से ही नहीं अपितु दुनियाभर से श्रद्धालु आते हैं। पांवटा साहिब आने वाला प्रत्येक यात्री चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित क्यों न हो, गुरुद्वारे में माथा टेकना नहीं भूलता है। प्रतिवर्ष होला मोहल्ला पर्व भी पांवटा साहिब में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। जिसमें सभी धर्मों के लोग बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं। धार्मिक आस्था रखने वालों के लिए यह स्थान अति महत्वपूर्ण है। यह स्थान देश के सभी प्रमुख स्थानों से सडक़ मार्ग से वर्ष भर जुड़ा हुआ है। यहां से जिला मुख्यालय नाहन लगभग 45 कि0मी0, यमुनानगर 50 कि0मी0, चण्डीगढ 125 कि0मी0, अंबाला 104 कि0मी0, शिमला वाया सरांहा 178 कि0मी0 तथा देहरादून लगभग 45 कि0मी0 दूर है। इसके अलावा पांवटा व आसपास के क्षेत्र में भी अनेक गुरुद्वारे है, जिनका धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टि से अपना महत्व हैं । 
गुरुद्वारा तीरगढ़ी साहिब:
यह सुन्दर स्थान पांवटा साहिब से लगभग 18 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। यह वह स्थान है जहॉं ऊंचे टीले पर खड़े होकर कलगीधार पातशाह खुद तीर चलाते हुए दुश्मनों की फौजों का सामना करते रहे हैं। गुरु साहिब के यहॉं तीर चलाने के कारण ही इस स्थान को तीर गढ़ी कहा जाता है। 
गुरुद्वारा भंगाणी साहिब:
यह सुन्दर स्थान भी पांवटा साहिब से लगभग 18 कि0मी0 तथा तीरगढ़ी साहिब से 01 कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। यह वह स्थान है जहां पर कलगीधार पातशाह ने बाईसधार के राजाओं के विरुद्ध पहल युद्ध लड़ा है। यहॉं गुरु साहिब रात को विश्राम किया करते थे और अगले दिन युद्ध की रुप रेखा तैयार करते थे। हरे भरे खेतों, यमुना नदी व ऊंचे पहाड़ों के बीच एक रमणीय स्थल है। 
गुरुद्वारा रणथम्म साहिब:
यह पवित्र स्थान गुरुद्वारा श्री तीरगढ़ी साहिब व गुरुद्वारा श्री भंगाणी साहिब के बीच में है। भंगाणी साहिब के युद्ध के समय श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के नियुक्त किये हुए सेनापति संगोशाह ने गुरु जी का हुक्म मानकर अपनी आधी सेना को मैदान में ले जाकर रणथम्म गाड़ कर हुक्म किया कि इससे पीछे नहीं हटना, आगे बेशक बढ़ जाना। गुरु जी की इस रणनीति की वजह से गुरु घर के आत्म बलिदानियों ने दुश्मन की 25 हजार की हर तरह से ट्रेंड़ और हथियारों से लैस फौज का डट कर मुकाबला किया और रणथम्म से आगे आने का मौका ही नहीें दिया। गुरु साहिब ने यह युद्ध जीत लिया। इस तरह यह ऐतिहासिक स्थान एक विशेष महत्व रखता है। 
गुरुद्वारा शेरगाह साहिब:
यह पवित्र स्थान पांवटा साहिब से पांच कि0मी0 दूर निहालगढ़ गांव में है। इस स्थान पर श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने महाराजा नाहन, मेदनी प्रकाश और महाराजा गढ़वाल फतह चंद के सामने उस आदमखोर शेर को तलवार से मारा था जिस ने इलाके में बहुत बड़ा जानी नुकसान कर दिया था और जिस के सामने बड़े-बड़े शूरवीर भी जाने से कतराते थे। बताते हैं कि यह शेर राजा जैयदर्थ था जिस ने वीर अभिमन्यु को महाभारत की जंग में छलावे से मारा था और अब शेर की जूनी भुगत रहा था। गुरु जी ने उस की मुक्ति की। 
गुरुद्वारा दशमेश दरबार साहिब:
  यह ऐतिहासिक स्थान पांवटा साहिब से लगभग 8 कि0मी0 श्री भंगाणी साहिब मार्ग पर गांव हरिपुर के साथ छावनीवाला में स्थित है। यहां पर गुरु जी भंगाणी साहिब के योद्धाओं से विचार विमर्श किया करते थे, इसलिए इस जगह का नाम छावनी वाला पड़ गया।
गुरुद्वारा कृपाल शिला पांवटा साहिब:
यह गुरुद्वारा मुख्य गुरुद्वारे से मात्र एक कि0मी0 की दूरी पर है। यहां गुरु गोविन्द सिंह जी के शिष्य बाबा कृपालदास ने शिला के ऊपर बैठक कर तपस्या की थी।
गुरुद्वारा साहिब, नाहन:
जब गुरु जी महाराजा सिरमौर मेदनी प्रकाश के बुलावे पर नाहन पहुंचे तो उनका शानदार और श्रद्धापूर्वक स्वागत हुआ। जिस स्थान पर गुरु जी ठहरे वहां ऐतिहासिक यादगार के तौर पर महाराजा ने गुरुद्वारा बना दिया।
गुरुद्वारा टोका साहिब:
यह वह ऐतिहासिक स्थान है जहॉं पंजाब (अब हरियाणा) से सिरमौर रियासत में दाखिल होते समय गुरु जी ने पहला पड़ाव किया था। गुरु जी का यह ऐतिहासिक यादगार स्थान औद्योगिक कस्बे कालाअंब से महज पांच कि0मी0 की दूरी पर स्थित है। 
गुरुद्वारा बडूसाहिब:
यह स्थान खालसा की गुप्त तपोभूमि के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस स्थान को वर्ष 1957 में संत अतर सिंह ने खोजा था। यह स्थान राजगढ़ से 20 कि0मी0, नाहन से 50 कि0मी0, तथा पांवटा साहिब से लगभग 100 कि0मी0 दूर है।

Saturday, 21 May 2016

श्री देई जी साहिबा मंदिर पांवटा साहिब

सिक्खों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा स्थापित ऐतिहासिक व धार्मिक नगरी पांवटा साहिब जहां बीते समय की कई महान घटनाओं को संजोए हुए है तो वहीं सर्वधर्म समभाव की एक मिशाल भी है। इस पवित्र धार्मिक नगरी में जहां विभिन्न धर्मों के लोग निवास करते हैं तो वहीं अपनी कई ऐतिहासिक यादों को भी संजोए हुए है। इन ऐतिहासिक यादों में से एक है-यमुना नदी के तट पर बना श्री देई जी साहिबा रघुनाथ मंदिर। यह ऐतिहासिक व प्राचीन मंदिर लगभग 125 वर्षों का इतिहास संजोए हुए है। 
श्री देई जी साहिबा मंदिर
जानकारी के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 21 फरवरी 1889 ई0 को सिरमौर रियासत काल में रानी साहिबा कांगडा श्री देई जी साहिबा ने अपने भाई महाराजा शमशेर प्रकाश बहादुर जी0सी0एस0आई0 की मदद से अपने पति व लम्बागांव (कांगडा) के राजा प्रताप चन्द बहादुर की याद में करवाया था। यह रघुनाथ मंदिर महाराजा सिरमौर श्री शमशेर प्रकाश बहादुर द्वारा उनकी बहन के अनुरोध पर बनवाया था। राजकुमारी सिरमौर  जिसे प्यार व आदर से देई जी साहिबा पुकारा जाता था की शादी लम्बागांव (कांगडा) के राजा प्रताप चन्द बहादुर से हुई थी, परन्तु दुर्भाग्यवश देई जी साहिबा छोटी आयु में ही विधवा हो गई तथा वापिस सिरमौर आ गई थी। महाराजा सिरमौर ने इस मंदिर के साथ सराय का निर्माण भी करवाया था तथा मंदिर की व्यवस्था चलाने हेतू इसके साथ लगते तीन गांव जिनकी कुल भूमि 2400 बिघा थी मंदिर को दान स्वरुप दे दी थी। रियासत काल में बने इस मंदिर में भगवान श्री राम, माता सीता व लक्ष्मण जी की मूर्तियां स्थापित है।
मंदिर की दिवारों पर कांगड़ा पेंटिग
 रघुनाथ मंदिर के साथ ही बजरंगबली श्री हनुमान जी तथा शिवजी के छोटे मंदिर भी स्थापित किए गए हैं। इस श्री देई जी साहिबा मंदिर की दिवारों पर कांगड़ा पेंटिग भी बनाई गई है, जो अब काफी पुरानी हो चुकी है। यही नहीं इस मंदिर के साथ ही एक यज्ञशाला भी बनवाई गई है जहां समय-समय पर यज्ञ भी किए जाते रहे हैं। साथ ही यमुना नदी के तट पर पुजारीघाट भी है। इस पुजारीघाट में एक प्राकृतिक जल स्त्रोत {चस्मां} भी है, जहां पर मंदिर के पुजारी रियासत काल से ही पूजा अर्चना से पहले स्नान करते रहे हैं।
सन 1989-90 में इस मंदिर का रखरखाव सरकार ने अपने अधीन ले लिया, जिसके अन्र्तगत एक न्यास गठित किया गया है। इस न्यास के आयुक्त, उपायुक्त सिरमौर, सह आयुक्त, एस0डी0एम0 पांवटा व मंदिर अधिकारी तहसीलदार पांवटा साहिब स्थाई नियुक्त किए गए हैं। इस न्यास में कुछ सरकारी व गैर सरकारी सदस्य भी 5-5 साल के लिए नियुक्त किए जाते रहे हैं। 
यमुना नदी व आसपास का विहंगम दृष्य
यह मन्दिर हिमाचल व उतराखण्ड को जोड़ने वाले यमुना पुल के साथ ही है। इस मंदिर के प्रांगण से जहां यमुना नदी व आसपास का विहंगम दृष्य देखा जा सकता है तो वहीं यहां आकर शहर की भागदौड़ भरी जिन्दगी से एक शान्ति का अनुभव भी होता है। इस मंदिर में पूजा पाठ के अलावा समय-2 पर धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ व भण्डारे आदि का आयोजन भी होता रहता है। इस तरह गुरु की नगरी पांवटा साहिब में यह मंदिर भी धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टि से अपना विषेश स्थान रखता है। 


(साभार: दिव्य हिमाचल 29 जून, 2013 को आस्था अंक में प्रकाशित)

 

Monday, 2 May 2016

मुख्य मंत्री राज्य स्वास्थ्य देखभाल योजना के तहत गंभीर बीमारी में पौने दो लाख तक का ईलाज फ्री

हिमाचल प्रदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) की तर्ज पर राज्य स्वास्थ्य बीमा योजना बनाने वाला देश का एक अग्रणी राज्य बना है। इस योजना के तहत ऐसी 9 विभिन्न श्रेणीयों को शामिल किया गया है, जिन्हे स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करवाने के लिए आरएसबीवाई के तहत नहीं लाया गया है। इस योजना के तहत आरएसबीवाई की तर्ज पर ही पात्र परिवार के पांच व्यक्तियों जिसमें परिवार का मुखिया, उसकी पत्नी तथा उन पर आश्रित तीन सदस्य शामिल है को इस योजना के तहत चिन्हित अस्पातलों व स्वास्थ्य संस्थानों में सामान्य बीमारी में भर्ती होने पर प्रति परिवार को प्रतिवर्ष अधिकत्तम तीस हजार रूपये जबकि गंभीर बीमारी में एक लाख पचहत्तर हजार रूपये तक का नि:शुल्क (कैशलेस) ईलाज की सुविधा मिलेगी। यह योजना शतप्रतिशत राज्य सरकार द्वारा पोषित है।
मुख्य मंत्री राज्य स्वास्थ्य देखभाल योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र व्यक्ति को मात्र तीस रूपये शुल्क अदा कर स्मार्ट कार्ड मुहैया करवाया जाएगा। जिसके तहत लाभान्वित होने वाले परिवार को इस स्मार्ट कार्ड के माध्यम से सरकार द्वारा चिन्हित किसी भी अस्पताल में ईलाज करवाने पर मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधा का नि:शुल्क लाभ मिलेगा। इसके अतिरिक्त यदि पात्र परिवार के स्मार्ट कार्ड में किसी भी सदस्य का नाम हटाना या जोडना है तो लाभार्थी बीमा कम्पनी द्वारा स्थापित जिला कियोस्क जो कि प्रत्येक जिले के क्षेत्रीय अस्पताल में स्थापित है में जाकर परिवर्तन करा सकता है। इसके अतिक्ति राज्य स्तर पर आईजीएमसी शिमला और आरपी मेडिकल कॉलेज एंव अस्पताल टांडा कांगडा में भी यह सुविधा उपलब्ध है। 
किन्हे मिलेगा इस योजना का लाभ:
इस योजना का लाभ प्रदेश सरकार द्वारा चिन्हित 9 विभिन्न वर्गों जिसमें 80 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिक, एकल महिलाएं, विभिन्न सरकारी विभागों, निगमों, बोर्डो इत्यादि में कार्यरत दैनिक वेतनभोगी व अंशकालिक कर्मचारी, आंगनवाडी वर्कर व हैल्पर, मिड-डे-मील वर्कर, राज्य सरकार के विभिन्न विभागों, निगमों, बोर्डों इत्यादि में अनुबंध पर कार्यरत कर्मचारी एवं 70 प्रतिशत से अधिक असक्षमता वाले व्यक्ति पात्र हैं। इस योजना के तहत प्रदेश के लगभग दो लाख परिवार लाभान्वित होंगें।
किन अस्पतालों में मिलेगी यह सुविधा:
इस योजना के तहत सामान्य बीमारी होने पर प्रदेश के 174 अस्पतालों को चिन्हित किया गया है, जिसमें जिला ऊना में यह सुविधा क्षेत्रीय अस्पताल ऊना, सिविल अस्पताल चिंतपूर्णी, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र अंब, हरोली, दौलतपुर, गगरेट, बंगाणा, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र अम्लैहड, थानाकलां, जिला आयुर्वेदिक अस्पताल ऊना, आयुर्वेदिक अस्पताल ईसपुर, नंदा अस्पताल एवं चौहान आई अस्पताल ऊना में उपलब्ध है। जबकि किसी भी गंभीर बीमारी के दौरान यह सुविधा आईजीएमसी शिमला, आरपी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल टांडा कांगडा तथा पीजीआई चंडीगढ़ शामिल है।
क्या कहते हैं अधिकारी:
जिला स्वास्थ्य अधिकारी ऊना डॉ0 निखिल शर्मा का कहना है कि इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए जिला के पात्र व्यक्ति निर्धारित प्रपत्र पर मांगी संपूर्ण जानकारी के साथ-साथ अपनी पहचान का प्रमाण पत्र जिसमें आधार कार्ड, वोटर कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र, पैन कार्ड, अक्षमता प्रमाण पत्र, एकल महिला प्रमाण पत्र, दसवीं पास प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, राशन कार्ड इत्यादि शामिल है कि प्रति सलंग्ति कर तथा सरकार के विभिन्न विभागों में कार्यरत दैनिक वेतन भोगी, पार्ट टाईम वर्कर व अनुबंध कर्मचारी, आंगनवाडी कार्यकत्र्ता व हेल्पर, मिड डे मील वर्कर अपने फॉर्म को सबंधित विभाग से सत्यापित करवाकर प्रस्तुत कर सकते हैं। इससे संबंधित अधिक जानकारी के लिए पात्र व्यक्ति जिला प्रोजैक्ट कॉर्डिनेटर दीपक चब्बा के मोबाइल नम्बर-9882487364 पर संपर्क कर सकते हैं।

Tuesday, 5 April 2016

भक्त माई दास के माध्यम से प्रकट हुई मां चिंतपूर्णी

हिमाचल प्रदेश जहां अपने प्राकृतिक सौंदर्य, हिमाच्छादित पर्वतों एवं सुंदर घाटियों के लिए विश्वविख्यात है तों वहंी चप्पे-चप्पे में विराजमान देवी-देवताओं के कारण इसे देवभूमि के नाम से भी पुकारा जाता है। आज हिमाचल प्रदेश में अनेकों प्रसिद्ध धार्मिक स्थान हैं जहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शनार्थ यहां पहुंचते हैं। इन्ही धार्मिक स्थानों में से एक है भारत वर्ष के प्रसिद्ध 52 शक्ति पीठों में विराजमान छिन्नमस्तिका धाम चिंतपूर्णी, जो ऊना जिला के मुख्यालय ऊना से  लगभग 50 किलोमीटर तथा उपमंडल अंब के भरवाईं से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 
चिंतपूर्णी मां के स्थान का प्रादुर्भाव देवी भक्त माई दास के माध्यम से माना जाता है। प्रचलित एक जनश्रुति के अनुसार प्राचीन काल में पंजाब के जिला पटियाला के अठूर नामक गांव में माई दास और दुर्गा दास नामक दो भाई रहते थे। लेकिन इसके बाद ये दोनों हिमाचल प्रदेश के रपोह मुचलेयां नामक गांव में आकर रहने लगे तथा यहां आकर खेतीबाडी करने लगे। माई दास का अधिकतर समय पूजा पाठ में व्यतीत होने लगा जबकि दुर्गा दास अकेले ही खेती बाडी करता था। कहते हैं कि माई दास का ससुराल पिरथीपुर नामक गांव में था। एक बार जब माई दास अपने ससुराल से लोटते वक्त छपरोह गांव से गुजर रहा था तो वह कुछ देर विश्राम करने के लिए एक वट वृक्ष के नीचे लेट गया तथा उसे नींद आ गई। नींद आते ही स्वपन्न में माई दास को एक कन्या ने दर्शन दिए तथा कहा कि तुम मेरी यहां नित्य प्रेम पूर्वक पूजा-अर्चना आरंभ करो। लेकिन जैसे ही स्वप्र टूटा माई दास को कुछ भी दिखाई नहीं दिया तथा वह अपने ससुराल चला गया। परन्तु रात को बिस्तर में लेटने पर नींद नहीं आ रही थी तथा बार-बार सोने का प्रयास करने के बावजूद वह सो नहीं पाया और रात को ही ससुराल से छपरोह आ गया तथा यहां आकर मां से विनम्रतापूर्वक प्रार्थना करने लगा कि मां यदि तू सच्ची है तो अभी दर्शन दो। माई दास की प्रार्थना से प्रसन्न होकर मां ने कन्या रूप में दर्शन दिए तथा कहा कि वह चिरकाल से यहां स्थित वट वृक्ष के नीचे मेरा घर है तथा तुम यहां पूजा-अर्चना आरंभ कर दो। मां ने कहा कि यहां पूजा अर्चना करने से तुम्हारे और अन्य समस्त लोगों के कष्ट एवं चिंताए समाप्त हो जाएंगी।
लेकिन माई दास ने कन्या से कहा कि न तो मेरे रहने की व्यवस्था है न ही यहां पीने के लिए पानी का प्रबंध है। ऐसे में कन्या ने कहा कि मैं भक्तों के ऊपर प्रकाश डालूगीं जो यहां मंदिर बनवाएंगें तथा भोग का प्रबंध करेंगें। जबकि यहां से 50 गज की दूरी पर पहाडी के नीचे एक पत्थर को उखाडने से पानी की समस्या का समाधान हो जाएगा। मां ने कहा कि मेरी पूजा के समस्त अधिकार आपके तथा आपके परिवार के होंगें तथा आपके वंश के लिए किसी प्रकार का सूतक-पातक का बंधन नहीं होगा। यहां किसी प्रकार का अत्याचार या गलत कार्य होने पर मैं किसी भी कन्या में प्रवेश कर आपकी समस्या का समाधान करूंगी। ऐसा कहते ही कन्या पिंडी के रूप में लोप हो गई। मंदिर के प्रांगण में स्थित वट वृक्ष अति प्राचीन है। इस बारे श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां डोरियां बांधने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है तत्पश्चात श्रद्धालु बांधी हुई डोरी को खोलते हैं। यहां प्रति वर्ष नव वर्ष, श्रावण अष्टमी,चैत्र एवं आश्विन के नवरात्रों में मेले लगते हैं। इस वर्ष के चैत्र नवरात्र मेलों का आयोजन 8 अप्रैल से 15 अप्रैल तक किया जा रहा है।
मां के दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालु सडक़ मार्ग के अतिरिक्त रेल के माध्यम से भी यहां पहुंच सकते हैं। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन अंब है जो मंदिर से महज 25 किलोमीटर दूर है। इसके अतिरिक्त हवाई मार्ग के माध्यम से सबसे नजदीकीहवाई अडडा गगल कांगडा है जहां से श्रद्धालु लगभग दो घंटे का सडक मार्ग से सफर कर मां के दरबार में पहुंच सकते हैं। बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ठहरने के लिए मंदिर न्यास के यात्री सदन के अतिरिक्त यहां निजी क्षेत्र में कई होटल व धर्मशालाएं हैं।

(साभार: दिव्य हिमाचल, 09 अप्रैल, 2016 को आस्था अंक तथा गिरिराज 11 मई, 2016 के अंक में प्रकाशित)

Tuesday, 22 March 2016

हिमाचल प्रदेश में बेटी बचाओ अभियान को गति मिले

हमारे समाज में बढ़ती कन्या भ्रूण हत्याएं तथा समाज में घटते लिंगानुपात के कारण एक बहुत बडी सामाजिक असमानता खडी हो गई है। इस लिंगभेद की बढ़ती खाई से जहां पूरे देश में लडकियों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है तो वहीं कुछ राज्यों सहित देश भर के एक सौ से अधिक जिलों में इस समस्या ने भयावह रूप धारण कर लिया है। यह कितनी विडंबना है कि जिस भारतीय समाज में कन्याओं का पूजन किया जाता है उसी समाज मेें बेटियों को पैदा होने से पहले ही मॉं की कोख में मौत की नींद सुला दिया जा रहा है। जो बेटियां पैदा भी हो रही उनके प्रति हमारी रूढिवादी मानसिकता हमेशा रोडा बनकर खडी हो जाती है। जिसका नतीजा यह है कि आज भी हमारे समाज व परिवार में बेटियां बेटों के मुकाबले न केवल भेदभाव की शिकार होती है बल्कि सामाजिक तौर पर भी उसे न तो बेहतर शिक्षा के अवसर मुहैया करवाने को तरजीह दी जाती है न ही जीवन में आगे बढऩे के लिए लडकों की भांति प्रेरित किया जाता है। 
आज हमारे समाज में से ऐसे सैंकडों नहीं बल्कि हजारों बेटियों के नाम मिल जाएंगें जिन्होने न केवल कामयाबी की बुलंदी को चूमा है बल्कि  हमारे परिवार व समाज का नाम भी रोशन किया है। यही नहीं यही बेटियां जहां बडी होकर किसी परिवार में बेटी बनकर मां-बाप का सहारा बनती है तो वहीं शादी के बाद किसी की पत्नी व बहु बनकर परिवार की बगिया को महकाती है। यहां हम यह क्यों भूल जाते हैं कि किसी भी पुरूष को जन्म देने वाली भी ये बेटियां ही होती है। परन्तु यह सब जानने के बावजूद भी न जाने हम ऐसी कौन सी रूढिवादी परम्परा के शिकार हुए बैठे हैं कि विकास व सूचना तकनीकि की इस 21वीं सदी में भी हम बेटियों के प्रति दोयम दर्जे का व्यवहार का कलंक अपने माथे पर लिए फिर रहे हैं। कहने को तो आज हम आधुनिक सुविधाओं से लैस हैं, हमारे पास सुख सुविधाओं के तमाम आधुनिक साधन मौजूद है परन्तु बेटियों के प्रति हमारी संकीर्ण सोच व मानसिकता ने दिखा दिया है कि आज भी हम सामाजिक तौर पर पिछडे हुए ही हैं। 
ऐसे में यदि जनगणना-2011 के आंकडों का विश्लेषण करें तो जहां पूरे देश में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति हजार लडक़ों के मुकाबले 918 लड़कियां है तो वहीं देश के सौ जिलों में यह स्थिति राष्ट्रीय औसत से भी कम है। जिसमें हिमाचल प्रदेश के ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर, कांगडा व सोलन जिले भी शामिल है।प्राप्त आंकडों के आधार पर हिमाचल प्रदेश का शिशु लिंगानुपात जनगणना-2001 के आंकडे 896 के मुकाबले जनगणना-2011 में 906 जरूर हुआ है लेकिन प्रदेश के आर्थिक व शैक्षणिक दृष्टि से अग्रणी कांगडा-873, ऊना-875, हमीरपुर-881, बिलासपुर-893 तथा सोलन जिला का यह आंकडा 899 है जो न केवल राष्ट्रीय अनुपात 918 के मुकाबले बल्कि प्रदेश के औसत अनुपात 906 से भी कम है। दूसरी ओर जहां प्रदेश के जन जातीय जिला लाहुल स्पिति में यह आंकडा 1013 तथा किन्नौर में 953 हैै तो वहीं प्रदेश में अन्य जिलों के मुकाबले आर्थिक तौर पर कमजोर कहे जाने वाले चंबा में यह आंकडा 950 तथा सिरमौर में 931 है जो कि अन्तर्राष्ट्रीय मानक एसआरबी (जन्म के समय शिशु लिंगानुपात) के 952 आंकडे के मुकाबले बेहतर कहा जा सकता है। लेकिन ऐसे में अब प्रश्न यही खडा हो रहा है कि क्या हमारे समाज में ज्यादा पढे लिखे व आर्थिक तौर पर सम्पन्न लोग कन्या भ्रूण हत्याओं के कारण बन रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी सोच विकास की इस दौड में कहीं पिछडती तो नहीं जा रही है? फिलहाल तो प्रदेश में शिशु लिंगानुपात के बयान करते जिलों के आंकडे तो यही बता रहे हैं। 
ऐसे में अब यह जरूरी हो जाता है कि प्रदेश में जिला ऊना में चलाए गए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की तर्ज पर कम शिशु लिंगानुपात वाले जिलों में कन्या भ्रूण हत्या सहित बेटियों के प्रति समाज में व्याप्त रूढिवादी मानसिकता के प्रति लोगों के दृष्टिकोण में व्यापक बदलाव लाने के लिए बेटी बचाओ जैसे बडे अभियान को बल दिया जाए। इस तरह के अभियान के माध्यम से जहां समाज में बेटियों व महिलाओं के प्रति व्याप्त रूढि़वादी मानसिकता के प्रति जन जागरूकता अभियान चलाया जाए तो वहीं शिक्षण संस्थानों से लेकर समाज के विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर कार्य करने वाली लडकियों व महिलाओं को प्रोत्साहित किया जाए। साथ ही बेटियों को पैतृक संपति में बेटो के बराबर अधिकार को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ समाज में ऐसे सभी सामाजिक कार्यों के प्रति व्याप्त रूढिवादी मानसिकता को भी ख्ंागाला जाए जो अक्सर बेटियों के पैदा होने में बाधक का काम करती है। 
इसलिए अब वक्त आ गया है कि बेटियों को कोख में ही मारने वाले शैतानों को फिर से इन्सान बनाया जाए अन्यथा हमारे पढ़े लिखे और तथाकथित आधुनिक समाज यह कुकृत्य इसी तरह जारी रहा तो हमारे समाज में विकट सामाजिक परिस्थितियां पैदा हो जाएंगी जिसके हम सब को गंभीर परिणाम भुगतने पड सकते हैं।


(साभार: हिमाचल दिस वीक 5 मार्च, 2016 एवं दिव्य हिमाचल 21 मार्च, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Monday, 21 March 2016

डेरा बाबा बडभाग सिंह के दरबार में बुरी आत्माओं व मानसिक बीमारी से मिलती है मुक्ति

हिमाचल प्रदेश जहां प्राकृतिक सौंदर्य के चलते विश्व विख्यात है तो वहीं विभिन्न धार्मिक स्थानों के कारण भी प्रदेश की राष्ट्रीय व अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक पहचान है। प्रदेश में स्थित विभिन्न पवित्र धार्मिक स्थानों के चलते जहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शनार्थ यहां पहुंचते हैं तो वहीं प्रदेश की शुद्ध, शांत व साफ-सुथरी आवोहवा का आनन्द भी उठाते हैं। प्रदेश में स्थित विभिन्न पवित्र धार्मिक स्थानों में से एक है जिला ऊना के उपमंडल अंब में बाबा बडभाग सिंह जी का पवित्र स्थान मैडी। उपमंडल अंब के मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर जंगल के मध्य में स्थित मैडी एक अत्यंत सुंदर, शांत व रमणीय स्थान है। 
इस पवित्र स्थान के बारे में कई किंवदन्तियां व कथाएं प्रचलित हैं जिसमें एक कथा के अनुसार लगभग 300 वर्ष पूर्व पंजाब के कस्बा करतारपुर से बाबा राम सिंह के सुपुत्र बड़भाग सिंह अहमदशाह अब्दाली के हमले से तंग आकर शिवालिक पहाडियों की ओर चल पड़े। जब वह नैहरी गांव के साथ लगते क्षेत्र दर्शनी खड्ड के समीप पहुंचे तो उनका सामना अफगानी सैनिकों के साथ हुआ। यह भी कहा जाता है कि उन्होने अपने ओजस्वी तेज से अफगानी फौज को वहां से खदेड दिया। कहते हैं कि उस समय मैड़ी एक निर्जन स्थान था और दूर-दूर तक कोई बस्ती नहीं थी। यह भी कहा जाता है कि इस क्षेत्र में यदि कोई गलती से प्रवेश कर जाता था तो उसे भूत प्रेत आत्माएं या तो बीमार कर देतीं थीं या फिर पागल कर देती थीं। बाबा बडभाग सिंह जी ने इस जगह पर घोर तपस्या की तथा कहते हैं कि ऐसी प्रेत आत्माओं ने बाबा जी को खूब तंग किया लेकिन वह अपने प्रयास में कामयाब नहीं हो सकीं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार वर्ष 1761 में पंजाब के कस्बा करतारपुर जो जिला जालंधर में पडता है, सिख गुरू अर्जुन देव जी के वंशज बाबा राम सिंह सोढ़ी और उनकी धर्मपत्नी माता राजकौर के घर में बड़भाग सिंह का जन्म हुआ था। उन दिनों अ$फगानों के साथ सिख जत्थेदारों की खूनी भिड़ंतें होती रहती थीं। बाबा बड़भाग सिंह बाल्याकाल से ही आध्यात्म को समर्पित होकर पीडित मानवता की सेवा को अपना लक्ष्य मानने लगे थे। कहते हैं कि वह एक दिन घूमते हुए मैडी गांव स्थित दर्शनी खड्ड जिसे अब चरण गंगा के नाम से भी जाना जाता है, पहुंचे और यहां के पवित्र जल में स्नान करने के बाद मैडी़ स्थित एक बेरी के वृक्ष के नीचे ध्यानमग्र हो गए। मैडी का यह क्षेत्र एक दम वीरान था और दूर-दूर तक कोई बस्ती नहीं थी। कहते यह भी हैं कि यह क्षेत्र वीर नाहर सिंह नामक एक पिशाच के प्रभाव में था। नाहर सिंह द्वारा परेशान किए जाने के बावजूद बाबा बडभाग सिंह जी ने इस जगह पर घोर तपस्या की तथा एक दिन दोनों के आमने सामने हुआ तो बाबा बडभाग सिंह ने दिव्य शक्ति से नाहर सिंह को काबू करके बेरी के वृक्ष के नीचे एक पिंजरे में कैद कर लिया। कहते हैं कि बाबा बडभाग सिंह ने उसे इस शर्त पर आजाद किया कि वीर नाहर सिंह अब वह इसी स्थान पर मानसिक रूप से बीमार और बुरी आत्माओं के शिकंजे में जकडे लोगों को स्वस्थ करेंगें और साथ ही नि:संतान लोगों को फलने का आर्शीवाद भी देगेें। बेरी का पेड़ आज भी यहां मौजूद है और डेरा बाबा बड़भाग सिंह नामक धार्मिक स्थल के साथ सटा है। प्रतिवर्ष इस डेरा में लाखों श्रद्धालु आकर बाबा जी की आर्शीवाद प्राप्त करते हैं। 

इस वर्ष का डेरा बाबा बडभाग सिंह होली मेला का आयोजन 16 से 26 मार्च तक किया जा रहा है। 23 मार्च को झंडे की रस्म होगी जबकि 25 व 26 मार्च की मध्यरात्रि को पंजा साहिब का पवित्र प्रसाद श्रद्धालुओं को वितरित किया जाएगा। 
इस तरह हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना की शिवालिक पहाडियों में स्थापित इस पवित्र धार्मिक स्थान पर जहां लाखों भक्त प्रतिवर्ष बाबा जी का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं तो वहीं बाबा जी बुरी आत्माओं व मानसिक बीमारी से पीडित लोगों को स्वस्थ जीवन जीने तथा नि:संतान परिवारों को फलने फूलने का आशीर्वाद भी प्रदान करते हैं।

  (साभार: दिव्य हिमाचल, 19 मार्च, 2016 को आस्था अंक तथा गिरिराज 11 मई, 2016 के अंक में प्रकाशित)

Sunday, 21 February 2016

हिमाचल प्रदेश में बेटियों को बचाने में जिला ऊना के लोगों ने की सकारात्मक पहल

भारत वर्ष की जनगणना-2011 के आंकडों के आधार पर पूरे देश में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति हजार लडक़ों के मुकाबले लड़कियों के कम लिंगानुपात वाले 100 जिलों में शुमार ऊना ने महज चार वर्षों के दौरान ही कम पैदा होती बेटियों के दाग को धो डाला है। वर्ष 2011 में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रदेश में सबसे कम शिशु लिंगानुपात 875 के मुकाबले वर्ष 2015 के अंत तक इस आंकडे को स्वास्थ्य विभाग के एक सर्वेक्षण के आधार पर बढ़ाकर 900 कर लिया है। जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर तीन वर्षों में शिशु लिंगानुपात की दर में 10 प्वाइंट की वृद्धि के निर्धारित लक्ष्य के मुकाबले गत चार वर्षों में 25 प्वाइंट की वृद्धि दर्ज होना एक सुखद अहसास है। जिला में बढते लिंगानुपात के इस आंकडे न केवल प्रदेश बल्कि पूरे देश भर में बेटियों को बचाने में एक मिशाल कायम की है। जिसके लिए न केवल जिला प्रशासन के प्रयासों की सराहना की जा सकती है बल्कि जिला ऊना के लोगों ने इस सामाजिक बुराई के खिलाफ जो एक जन आन्दोलन खडा कर इस सामाजिक समस्या से जिला को बाहर निकालने में अपना सकारात्मक योगदान दिया है वह न केवल प्रशसंनीय है बल्कि दूसरे राज्यों व जिलों के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत भी कहा जा सकता है।
भारत की जनगणना-2011 के आंकडों के अनुसार देश का शिशु लिंगानुपात वर्ष 1961 में 976 से घटकर वर्ष 2011 में 918 तक पहुंच गया है जो कि अब तक हुई जनगणनाओं में सबसे कम आंका गया है। ऐसे में समाज में बेटियों के प्रति नजरिए में आए बदलाव तथा भ्रूण में ही कन्याओं की बढ़ती हत्यों के प्रति जागरूकता लाने के लिए पूरे देश के सबसे प्रभावित चुनिंदा 100 जिलों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को आरंभ किया गया है। जिसके तहत हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला को भी शामिल किया गया है। गौरतलब है कि जिला ऊना का शिशु लिंगानुपात जनसंख्या आंकडे-2011 के आधार पर प्रतिहजार लडक़ों के मुकाबले 875 लडकियां हैं जो राष्ट्रीय अनुपात 918 के मुकाबले काफी कम आंका गया है। जिला में कम शिशु लिंगानुपात आंकडे के चलते बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को आरंभ किया गया है जिसके अब सकारात्मक नतीजे आने आरंभ हो गए हैं।
जिला में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की सफलता की कहानी बयान करते हुए उपायुक्त अभिषेक जैन ने बताया कि इस अभियान को चलाने के लिए जिला प्रशासन ने सर्वप्रथम तीन स्तरीय टॉस्क फोर्स जिला स्तर पर उपायुक्त, खंड स्तर पर एसडीएम जबकि पंचायत स्तर पर स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों की अध्यक्षता में गठित की गई। जिनके माध्यम से इस अभियान को जन-जन तक पहुंचाने एवं ज्यादा से ज्यादा लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए गांवों से लेकर जिला स्तर तक विभिन्न शिक्षण संस्थाओं सहित पंचायतों में कई तरह के जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। स्कूली स्तर पर बेटियों के ड्राप आउट को कम करने व शिक्षा ग्रहण करने के लिए बेटियों को प्रोत्साहित करने के दृष्टिगत दसवीं से ग्याहरवीं कक्षा में शत प्रतिशत छात्राओं की नामांकन दर हासिल करने वाले स्कूलों को क्रमश: पचास, तीस व दस-दस हजार रूपये के पुरस्कार प्रदान कर प्रोत्साहित किया गया। साथ ही जिला के सभी स्कूलों एवं आंगनवाडी केन्द्रों में प्रत्येक माह की दस तरीख को विशेष कन्या दिवस के तौर पर मनाया जाना, जिला में इस अभियान के साथ उद्योगों को जोडने के लिए सबसे अधिक महिला कामगारों को रोजगार प्रदान करने वाले तीन उद्योगों को भी क्रमश: इक्यावन, इक्तीस व इक्कीस हजार रूपये के प्रथम, द्वितीय व तृतीय ईनाम प्रदान करना, जिला की सभी 234 पंचायतों में पंचायत स्तर पर पैदा होने वाले बच्चों के आंकडों को प्रतिमाह सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करने के लिए गुडडी-गुडडा बोर्ड लगाना शामिल है। 
इसके अलावा इस अभियान से जन-जन को जोडने के लिए सोशल मीडिया का सहारा भी लिया गया। जिसके तहत बेटी बचाओ नाम से व्हाटस ऐप ग्रुप तथा फेसबुक पेज शामिल है। जिसमें विभिन्न विभागों के अधिकारियों, कर्मचारियों सहित समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को भी जोडा गया ताकि बेटियों के प्रति वह अपने विचारों को साझा कर सकें तथा बहुमूल्य सुझाव दे सकें। इसके अतिरिक्त जिला में पीसी पीएनडीटी एक्ट-1994 की कडाई से अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य विभाग को अल्ट्रासांऊड क्लीनिकों का समय-समय पर निरीक्षण करने तथा लिंग परीक्षण का कोई भी मामला संज्ञान में आने पर कडी कार्रवाई अमल में लाने के निर्देश अधिकारियों को दिए गए।साथ ही इस अभियान के तहत जिला में पैदा होने वाली लडकियों के जन्म पंजीकरण को समय पर दर्ज करवाना सुनिश्चित बनाया गया तथा मदर-चाईल्ड ट्रैकिंक सिस्टम को भी गंभीरता से लिया गया है। जिला के सभी स्कूलों में लडकियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था भी सुनिश्चित की गई है जबकि सभी आंगनबाडी केन्द्रों में शौचालय की सुविधा मुहैया करवाने पर बल दिया गया है। इसके अतिरिक्त बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए मीडिया व अन्य प्रचार प्रसार माध्यमों के साथ-साथ जिला के धार्मिक व आध्यात्मिक गुरूओं को भी शामिल गया है ताकि इस सामाजिक बुराई के खिलाफ लोगों को धार्मिक आस्थाओं के माध्यम से भी जागरूक बनाया जा सके। उनका कहना है कि हिमाचल प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व, राजनैतिक इच्छा शक्ति तथा जिला के लोगों की इस सामाजिक बुराई के खिलाफ जो एक सकारात्मक पहल हुई है, उसके परिणाम स्वरूप जिला ऊना ने कम पैदा होती बेटियों के दाग को धो दिया है।
ऐसे में अब उम्मीद की जा सकती है कि बेटियों को बचाने एवं समाज में एक सम्मानजनक स्थान प्रदान करने की दिशा में जिला ऊना के लोगों ने न केवल प्रदेश स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर जो एक सकारात्मक पहल की है वह भविष्य में भी कायम रहेगी तथा वह दिन दूर नहीं होगा जब जिला ऊना का शिशु लिंगानुपात पूरे देशभर में सर्वश्रेष्ठ आंका जाएगा।



(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 18 फरवरी, 2016 एवं दैनिक आपका फैसला 27 फरवरी, 2018 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)