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Wednesday, 5 June 2024

विश्व पर्यावरण दिवस पर कुछ चिंतन कुछ प्रश्न

5 जून प्रतिवर्ष विश्व पर्यावरण दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य भी पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाना है। ऐसा नहीं है कि इस तरह का आयोजन हम पहले नहीं करते आए हैं बल्कि यह सिलसिला कई वर्षों से अनवरत जारी भी है। बावजूद इसके हमारा पर्यावरण लगातार कमजोर हो रहा है, नतीजा जहां धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है तो वहीं बढ़ते तापमान के कारण हमें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। 

बात केवल मनुष्य तक की सीमित होती तो ठीक था लेकिन पर्यावरण क्षरण का असर धरती के प्रत्येक जीव जंतु को चुकाना पड़ रहा है। आलम तो यह है कि प्रतिवर्ष जीवन दायिनी जंगल धू-धू जलते हैं। अनमोल वन संपदा जलकर नष्ट हो जाती है। कई जंगली जीव जंतुओं को अपना आशियाना या फिर अपने जीवन तक से हाथ तक धोना पड़ रहा है। जिसका नतीजा तो यह है कि न केवल हमारा पारिस्थतिकी तंत्र लगातार प्रभावित हो रहा है बल्कि कई जीव जंतुओं के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिंह लग रहा है। आखिर जंगलों में आग लगाने वाले वे कौन से मनुष्य हैं? कौन सी दुनिया से यहां आते हैं तथा वे ऐसा कौन सी वायु लेते हैं? जिनके लिए हमारा वास्तविक पर्यावरण कोई महत्व ही नहीं रखता है। 

हो सकता है जंगलों को नष्ट करने वाले लोग अलग मिट्टी, हवा या पानी से बने हों जिनके लिए हमारे वास्तविक जंगल कोई अहम स्थान न रखते हों। अगर ऐसा नहीं है तो क्या हम इतने कमजोर, निर्दयी व स्वार्थी हो गए हैं कि हम जंगलों को आग के हवाले करने से गुरेज भी नहीं करते हैं। क्या हम इतने ताकतवर हैं कि हमे कोई डरा भी नहीं सकता है? लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए की स्वार्थवश जंगलों को नष्ट करने वाला मनुष्य यह शायद भूल कर बैठता है कि इस धरती को चलाने वाला कोई ओर नहीं बल्कि खुद प्रकृति है। जिसके आगे मनुष्य महज एक खिलौना है। प्रकृति ने समय-समय पर हम मनुष्यों को सचेत भी किया है लेकिन हमारी बुद्धि इतनी कमजोर है कि हम चंद दिनों या फिर महीनों में प्रकृति के दिये दंश को भूलकर पुन: पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से गुरेज नहीं करते हैं। 

पर्यावरण दिवस के अवसर पर आज केवल यही कहना है कि यदि हमने आज प्रकृति को नहीं बचाया तो कल हम भी नहीं बचेंगे। पर्यावरण के प्रति हमारा उदद्ेश्य महज चंद पेड़ लगा देना या फिर पर्यारवरण जागरूकता के प्रति भाषण दे देना या फिर चंद पंक्तियों को लिख देना मात्र नहीं है। पर्यावरण बचाने के लिए इस धरती के प्रत्येक व्यक्ति को अपना कुछ न कुछ सहयोग अवश्य देना होगा। सर्व प्रथम तो हमें अपने आसपास के वातावरण को साफ-सुथरा रखने की दिशा में प्रयास करने होंगे। पौध रोपण करने के साथ-साथ उनका संरक्षण व पोषण करने की जिम्मेदारी लेनी होगी। 

हम जब कभी भी पर्यटन की दृष्टि से प्राकृतिक स्थानों का भ्रमण करने जाते हैं तो कूड़ा-कचरे को इधर उधर फैलाने के बजाए सही तरीके से नष्ट करने की दिशा में कार्य करना होगा।  पेयजल स्त्रोतों को गंदा करने से बचाना होगा। प्लास्टिक व ऐसे किसी सामान के उपयोग से बचना होगा जो सीधे हमारे पर्यावरण को प्रभावित करता है। जंगलों को आग से बचाने के लिए हमें स्वयं एक जागरूक नागरिक होने के नाते प्रयास करने होंगे। याद रखें यदि हम स्वार्थ की हांडी से जल्दी बाहर नहीं निकले तो आने वाला हमारा कल कैसा होगा इसकी कल्पना भी हमें कर ही लेनी चाहिए। आओ पर्यावरण दिवस के अवसर पर हम सब इस धरती को प्रदूषण से मुक्त करने की दिशा में प्रयास करें। 

याद रखें हमारी धरती सुरक्षित रहेगी तभी तो हम भी सुरक्षित रह सकते हैं। एअर कंडीशनर की हवा तथा सिलेंडर की ऑक्सजीन हमें कब तक जिंदा रख सकती है ये सब हमने करोना महामारी के दौरान जान ही लिया है। तो चलो पर्यावरण दिवस के अवसर पर हम सब धरती के संरक्षण का संकल्प लें ताकि कल हमारा सुरक्षित रह सके। 

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Saturday, 23 July 2016

प्राचीन तालाबों का जीर्णोद्धार, पर्यावरण संरक्षण की एक अनूठी पहल

जिला ऊना में ही नहीं बल्कि हिमाचल प्रदेश के नक्शे में हरोली हलके ने गत तीन वर्षों के दौरान जहां विकास की नई ऊंचाईयों को छूआ है तो वहीं जिस रचनात्मकता के साथ हलके के विकास को पंख लगे हैं, जिसके परिणाम स्वरूप हरोली हलका पूरे प्रदेश भर में एक आदर्श विधानसभा क्षेत्र के तौर पर ऊभर कर सामने आया है। आज इस हलके में औद्योगिक विकास से लेकर शिक्षा के क्षेत्र तक, किसानों के खेत से लेकर प्रशासनिक  ढांचे के विकास में हलके ने अभूतपूर्व तरक्की कर विकास की नई ऊंचाईयों को छुआ है। 
हिमाचल प्रदेश सरकार में काबीना मंत्री एवं स्थानीय विधायक मुकेश अग्रिहोत्री की नई सोच व रचनात्मकता के साथ विकास को एक नई दिशा देकर आज हरोली हलके के प्राचीन तालाबों (टोबों) को विकास के नवीनतम मॉडल के साथ न केवल सहेजा जा रहा है बल्कि एक नई दिशा देकर इन्हे खूबसूरत सैरगाह के साथ-साथ पर्यटक केन्द्रों के तौर पर भी विकसित किया जा रहा है। आज हलके में कांगड के तालाब से लेकर पूबोवाल, ललडी, सलोह, गोंदपुर बुल्ला, गोंदपुर जयचंद, हीरां थडा, पंजाबर, दुलैहड के प्राचीन तालाबों (टोबों) को बेहद खूबसूरती के साथ विकसित किया गया है। इन तालाबों के जीर्णोद्धार के कार्य कर जहां तालाब के चारों ओर स्थानीय लोगों की सुविधा के लिए खूबसूरत ट्रैक का निर्माण किया गया है तो वहीं बैठने के लिए लॉन, बैंच व रात्रि के समय सोलर लाईटों का भी प्रबंध किया गया है। साथ ही इन तालाबों में स्थानीय पंचायत की आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए मछली पालन को भी प्रोत्साहित किया गया है। इससे न केवल स्थानीय पंचायत को आय के नए स्त्रोत के तौर इन तालाबों का महत्व बढा है बल्कि यह गांव की आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र बिन्दु बनकर भी उभर कर सामने आए हैं। 
जीर्णोद्धार से पहले तालाब का दृश्य 
आज हरोली हलके का शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जहां पर प्राचीन तालाब (टोबे) न हो। भले ही वक्त के बदलाव के साथ इन तालाबों का महत्व कम हुआ हो लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से ये तालाब आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने वह पहले हुआ करते थे। बदलते वक्त की इस तेज रफतार भरी जिन्दगी में इन प्राचीन तालाबों के रखरखाव, उत्थान व जीर्णोद्धार के लिए भले ही श्रमदान कर अब आधुनिक समाज के लोग आगे आने से कतराते रहे हों, लेकिन उद्योग मंत्री मुकेश अग्रिहोत्री ने हरोली हलके की इस प्राचीन विरासत को सहेजने में न केवल प्राथमिकता के साथ कार्य किया है बल्कि टौबों के जीर्णोद्धार कार्यों में निजी तौर पर दिलचस्पी लेकर पर्यावरण के प्रति इनके महत्व को भी बखूवी पहचाना है। मुकेश अग्रिहोत्री की इसी दूरदर्शी सोच का ही नतीजा है कि जहां हरोली हलके की प्राचीन तालाबों (टोबों) को न केवल एक नया जीवन मिला है बल्कि विकास के आईने में रचनात्मकता का भाव भी साफ झलकता है। हलके के प्रति इसी दूरदर्शी सोच का नतीजा है कि आज हरोली के कई तालाबों का जीर्णोंद्धार संभव हुआ है बल्कि इस प्राचीन विरासत को नए अंदाज में सहेजकर खूबसूरत भी बनाया गया है। 
जीर्णोंद्धार के बाद तालाब का दृश्य
वक्त के साथ नई पीढ़ी के लिए इन प्राचीन धरोहरों को सहेजना व संवारना इतना महत्वपूर्ण न रह गया हो, लेकिन हम यह क्यों भूल रहे हैं इन तालाबों के कारण न केवल स्थानीय लोगों के साथ-साथ मवेशियों एवं जंगली जानवरों को पानी की समस्या से निजात मिलती है बल्कि पर्यावरण को संरक्षित करने में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इन्ही तालाबों का नजीता रहा है कि जहां भू-जल का स्तर बेहतर बना रहता है तो वहीं खेतीबाडी से लेकर पशुपालन में इनकी अहम भूमिका रहती है। आज पूरी दुनिया सहित भारत के कई हिस्सों में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची है, लोग एक-एक पानी की बूंद को तरस रहे है, ऐसे में अपनी प्राचीन विरासत टोबों को सहेजकर न केवल आने वाली पीढिय़ों को इन तालाबों के जीर्णोद्धार के माध्यम से युवा पीढ़ी को जागरूक किया है, बल्कि पर्यावरण व वन्य जीवों को बचाने में भी अपना अहम योगदान दिया है।
एक खूबसूरत तालाब का दृश्य
इस तरह मुकेश अग्रिहोत्री ने विकास के आईने में हरोली हलके की प्राचीन धरोहर तालाबों का जीर्णोद्धार कर न केवल बुजुर्गों की अनमोल विरासत को सहेजा है बल्कि हरोली हलके के यह प्राचीन तालाब फिल्मी दुनिया के लोगों के लिए पसंदीदा स्थल के तौर पर भी उभरे हैं जिससे इस हलके को पर्यटन के क्षेत्र में भी एक नई उडान मिली है। 
इस बारे उद्योग मंत्री मुकेश अग्रिहोत्री का इन तालाबों को नया स्वरूप देने के पीछे कहना है कि पर्यावरण की दृष्टि से जहां इन प्राचीन तालाबों की हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है तो वहीं हलके की जनता को आधुनिक शहरों की भीडभाड व प्रदूषण भरी जिन्दगी से दूर गांव में ही वह तमाम सुविधाएं मुहैया करवा दी जाएं जिनके लिए लोग अकसर शहरों की ओर रूख करते हैं।








Wednesday, 9 July 2014

मंझियाली (क्वागधार) के भूप सिंह पर्यावरण संरक्षण को मुफत में बांट रहे हैं फलदार व औषधीय पौधे


           पूरी दुनिया में बढ़ते प्रदूषण, घटते जंगलों तथा हमारे आसपास आए दिन प्रकृति के साथ बढ रही छेडछाड के कारण आज हमें बाढ़, भू-स्खलन, बादल फटना, प्रदूषित जल हवा इत्यादि जैसी अनेकों समस्याओं से दो-चार होना पड रहा है। एक तरफ जहां राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न मंचों के माध्यम से पर्यावरण को बचाए रखने के लिए गंभीर मंथन हो रहे हैं तो वहीं हमारे आसपास ऐसे लोग भी मिल जाएंगें जो बिना किसी स्वार्थ से पर्यावरण संरक्षण को लेकर केवल गंभीर में बल्कि निरन्तर कार्यशील हैं।
            हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के नाहन-सोलन उच्च मार्ग पर स्थित गांव मंझियाली (क्वागधार) के 70 वर्षीय किसान भूप सिंह हमारे बीच एक ऐसे शख्स हैं जो पर्यावरण को साफ सुथरा हरा-भरा बनाने के लिए पिछले 7-8 वर्षों से मुफत में समाज सेवा कर रहे हैं। भूप सिंह अब तक लगभग 3 हजार से अधिक फलदार औषधीय पौधे प्रदेश प्रदेश के बाहर के लोगों को मुफत में बांट चुके हैं। पर्यावरण संरक्षण को लेकर भूप सिंह को गैर सरकारी संस्था भृंगी जन कल्याण संगठन वर्ष 2013 में डा0 यशवन्त सिंह परमार की जयन्ती पर उन्हे प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी कर चुकी है।
जब इस बारे भूप सिंह से बातचीत की गई तो उनका कहना है कि वर्ष 2006 में बागवानी विभाग से 40 वर्ष तक बतौर माली सेवा करने के बाद सेवानिवृत हुए हैं। उन्होने बताया कि उन्हे हमेशा से ही हरी भरी धरती को देखने तथा अधिक से अधिक पेड पौधे लगाकर पर्यावरण को हरा-भरा करने की चाहत रहती थी। वह कहते हैं कि जब वह अपने आसपास नंगी होती पहाडियों तथा घटते वृक्षों को देखते हैं तो उन्हे बहुत अधिक पीडा होती है।
            ऐसे में उन्होनेे सेवानिवृति के बाद घर में ही पेड पौधों की नर्सरी लगाकर आसपास तथा प्रदेश के बाहर से आने वाले पर्यटकों को मुफत में पौधे बांटने शुरू कर दिए। आज तक वह हिमाचल प्रदेश सहित गुजरात, राजस्थान, उतरप्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड इत्यादि राज्यों के लोगों को लगभग 3 हजार से अधिक अखरोट, अनार, पपीता, शहतूत, अमरूद, कागजी नींबू जैसे फलदार पौधों के अतिरिक्त अश्वगंधा जैसे औषधीय पौधों का भी वितरण मुफत में कर चुके हैं।
            हिमाचल निर्माता डा0 यशवंत सिंह परमार को अपना आदर्श मानने वाले तथा बडे ही मृदुभाषी साधारण सा जीवन व्यतीत कर रहे भूप सिंह कहते हैं कि आज हमारे आसपास जंगली जानवरों विशेषकर बंदरों इत्यादि की समस्या से किसानों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड रहा है। ऐसे में वह स्थानीय तथा बाहर से आने वालों को जंगलों में ज्यादा से ज्यादा फलदार औषधीय पौधे लगाने के लिए प्रेरित करते रहते हैं जबकि वह स्वयं भी ऐसे पौधों को मुफत में लोगों को बांट रहे हैं। उनका कहना है कि वह अपनी पेंशन का लगभग 30 फीसदी हिस्सा विभिन्न पौधों की नर्सरी तैयार करने में खर्च करते हैं। वह कहते हैं इस वर्ष उन्होने नागपुर से कंधारी अनार के बीज मंगवाकर लगभग 700 पौधों के अतिरिक्त 400 पपीता तथा 200 अमरूद के पौधों की नर्सरी तैयार की है। जिन्हे वह लोगों को मुफत में वितरित करेंगें। भूप सिंह कहते हैं कि वह प्रतिदिन घर के अन्य कार्यों से समय निकालकर प्रतिदिन 2-3 घंटे पौधों की देखभाल में लगाते हैं। सबसे मजेदार बात तो यह है कि इन्होने मुफत में बांटे गए प्रत्येक पौधे का बकायदा एक रजिस्टर में पंजीकरण किया हुआ है जिसमें पौधे ले जाने वालों का नाम, पता फोन नम्बर तक उपलब्ध है।
            जब उनसे इस कार्य में सरकारी सहायता बारे प्रश्न किया तो वह कहते हैं कि पौधे तैयार करने के लिए लिफाफे वन विभाग की ओर से मुफत में दिए जाते हैं। उनका कहना है कि यदि सरकार उन्हे बीज उपलब्ध करवाए तो वह पर्यावरण संरक्षण के इस अभियान में बेहतर कार्य कर सकते हैं। ऐसे में 70 वर्षीय किसान भूप सिंह ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर समाज के सामने एक आदर्श ही स्थापित नहीं किया है बल्कि पर्यावरण को बचाने के लिए हमारे सामने एक अनूठी मिसाल भी कायम की है। 
(साभार: दैनिक न्याय सेतु 8 जुलाई, दिव्य हिमाचल, 8 जुलाई, पंजाब केसरी, 8 जुलाई, दैनिक भास्कर 8 जुलाई, हिमाचल दस्तक 8 जुलाई, हिमाचल दिस वीक 12 जुलाई, 2014 तथा गिरिराज 3 सितम्बर, 2014 में प्रकाशित)