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Sunday, 21 February 2016

हिमाचल प्रदेश में बेटियों को बचाने में जिला ऊना के लोगों ने की सकारात्मक पहल

भारत वर्ष की जनगणना-2011 के आंकडों के आधार पर पूरे देश में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति हजार लडक़ों के मुकाबले लड़कियों के कम लिंगानुपात वाले 100 जिलों में शुमार ऊना ने महज चार वर्षों के दौरान ही कम पैदा होती बेटियों के दाग को धो डाला है। वर्ष 2011 में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रदेश में सबसे कम शिशु लिंगानुपात 875 के मुकाबले वर्ष 2015 के अंत तक इस आंकडे को स्वास्थ्य विभाग के एक सर्वेक्षण के आधार पर बढ़ाकर 900 कर लिया है। जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर तीन वर्षों में शिशु लिंगानुपात की दर में 10 प्वाइंट की वृद्धि के निर्धारित लक्ष्य के मुकाबले गत चार वर्षों में 25 प्वाइंट की वृद्धि दर्ज होना एक सुखद अहसास है। जिला में बढते लिंगानुपात के इस आंकडे न केवल प्रदेश बल्कि पूरे देश भर में बेटियों को बचाने में एक मिशाल कायम की है। जिसके लिए न केवल जिला प्रशासन के प्रयासों की सराहना की जा सकती है बल्कि जिला ऊना के लोगों ने इस सामाजिक बुराई के खिलाफ जो एक जन आन्दोलन खडा कर इस सामाजिक समस्या से जिला को बाहर निकालने में अपना सकारात्मक योगदान दिया है वह न केवल प्रशसंनीय है बल्कि दूसरे राज्यों व जिलों के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत भी कहा जा सकता है।
भारत की जनगणना-2011 के आंकडों के अनुसार देश का शिशु लिंगानुपात वर्ष 1961 में 976 से घटकर वर्ष 2011 में 918 तक पहुंच गया है जो कि अब तक हुई जनगणनाओं में सबसे कम आंका गया है। ऐसे में समाज में बेटियों के प्रति नजरिए में आए बदलाव तथा भ्रूण में ही कन्याओं की बढ़ती हत्यों के प्रति जागरूकता लाने के लिए पूरे देश के सबसे प्रभावित चुनिंदा 100 जिलों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को आरंभ किया गया है। जिसके तहत हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला को भी शामिल किया गया है। गौरतलब है कि जिला ऊना का शिशु लिंगानुपात जनसंख्या आंकडे-2011 के आधार पर प्रतिहजार लडक़ों के मुकाबले 875 लडकियां हैं जो राष्ट्रीय अनुपात 918 के मुकाबले काफी कम आंका गया है। जिला में कम शिशु लिंगानुपात आंकडे के चलते बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को आरंभ किया गया है जिसके अब सकारात्मक नतीजे आने आरंभ हो गए हैं।
जिला में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की सफलता की कहानी बयान करते हुए उपायुक्त अभिषेक जैन ने बताया कि इस अभियान को चलाने के लिए जिला प्रशासन ने सर्वप्रथम तीन स्तरीय टॉस्क फोर्स जिला स्तर पर उपायुक्त, खंड स्तर पर एसडीएम जबकि पंचायत स्तर पर स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों की अध्यक्षता में गठित की गई। जिनके माध्यम से इस अभियान को जन-जन तक पहुंचाने एवं ज्यादा से ज्यादा लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए गांवों से लेकर जिला स्तर तक विभिन्न शिक्षण संस्थाओं सहित पंचायतों में कई तरह के जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। स्कूली स्तर पर बेटियों के ड्राप आउट को कम करने व शिक्षा ग्रहण करने के लिए बेटियों को प्रोत्साहित करने के दृष्टिगत दसवीं से ग्याहरवीं कक्षा में शत प्रतिशत छात्राओं की नामांकन दर हासिल करने वाले स्कूलों को क्रमश: पचास, तीस व दस-दस हजार रूपये के पुरस्कार प्रदान कर प्रोत्साहित किया गया। साथ ही जिला के सभी स्कूलों एवं आंगनवाडी केन्द्रों में प्रत्येक माह की दस तरीख को विशेष कन्या दिवस के तौर पर मनाया जाना, जिला में इस अभियान के साथ उद्योगों को जोडने के लिए सबसे अधिक महिला कामगारों को रोजगार प्रदान करने वाले तीन उद्योगों को भी क्रमश: इक्यावन, इक्तीस व इक्कीस हजार रूपये के प्रथम, द्वितीय व तृतीय ईनाम प्रदान करना, जिला की सभी 234 पंचायतों में पंचायत स्तर पर पैदा होने वाले बच्चों के आंकडों को प्रतिमाह सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करने के लिए गुडडी-गुडडा बोर्ड लगाना शामिल है। 
इसके अलावा इस अभियान से जन-जन को जोडने के लिए सोशल मीडिया का सहारा भी लिया गया। जिसके तहत बेटी बचाओ नाम से व्हाटस ऐप ग्रुप तथा फेसबुक पेज शामिल है। जिसमें विभिन्न विभागों के अधिकारियों, कर्मचारियों सहित समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को भी जोडा गया ताकि बेटियों के प्रति वह अपने विचारों को साझा कर सकें तथा बहुमूल्य सुझाव दे सकें। इसके अतिरिक्त जिला में पीसी पीएनडीटी एक्ट-1994 की कडाई से अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य विभाग को अल्ट्रासांऊड क्लीनिकों का समय-समय पर निरीक्षण करने तथा लिंग परीक्षण का कोई भी मामला संज्ञान में आने पर कडी कार्रवाई अमल में लाने के निर्देश अधिकारियों को दिए गए।साथ ही इस अभियान के तहत जिला में पैदा होने वाली लडकियों के जन्म पंजीकरण को समय पर दर्ज करवाना सुनिश्चित बनाया गया तथा मदर-चाईल्ड ट्रैकिंक सिस्टम को भी गंभीरता से लिया गया है। जिला के सभी स्कूलों में लडकियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था भी सुनिश्चित की गई है जबकि सभी आंगनबाडी केन्द्रों में शौचालय की सुविधा मुहैया करवाने पर बल दिया गया है। इसके अतिरिक्त बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए मीडिया व अन्य प्रचार प्रसार माध्यमों के साथ-साथ जिला के धार्मिक व आध्यात्मिक गुरूओं को भी शामिल गया है ताकि इस सामाजिक बुराई के खिलाफ लोगों को धार्मिक आस्थाओं के माध्यम से भी जागरूक बनाया जा सके। उनका कहना है कि हिमाचल प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व, राजनैतिक इच्छा शक्ति तथा जिला के लोगों की इस सामाजिक बुराई के खिलाफ जो एक सकारात्मक पहल हुई है, उसके परिणाम स्वरूप जिला ऊना ने कम पैदा होती बेटियों के दाग को धो दिया है।
ऐसे में अब उम्मीद की जा सकती है कि बेटियों को बचाने एवं समाज में एक सम्मानजनक स्थान प्रदान करने की दिशा में जिला ऊना के लोगों ने न केवल प्रदेश स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर जो एक सकारात्मक पहल की है वह भविष्य में भी कायम रहेगी तथा वह दिन दूर नहीं होगा जब जिला ऊना का शिशु लिंगानुपात पूरे देशभर में सर्वश्रेष्ठ आंका जाएगा।



(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 18 फरवरी, 2016 एवं दैनिक आपका फैसला 27 फरवरी, 2018 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)


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