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Tuesday, 18 September 2018

ऊना उत्कर्ष से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान होगा अधिक प्रबल

भारत वर्ष की जनगणना-2011 के आंकडों के आधार पर पूरे देश में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति हजार लडक़ों के मुकाबले लड़कियों के लिंगानुपात में कमी दर्ज हुई है। आंकडों के अनुसार यह लिंगानुपात वर्ष 1961 में 976 से वर्ष 2011 में 918 तक पहुंच गया है जो कि अब तक हुई जनगणनाओं में सबसे कम आंका गया है। ऐसे में समाज में बेटियों के प्रति नजरिए में आए बदलाव तथा भ्रूण में ही कन्याओं की बढ़ती हत्यों के प्रति व्यापक जन जागरूकता लाने के लिए प्रथम चरण में पूरे देश के सबसे प्रभावित चुनिंदा 100 जिलों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत से आरंभ किया। इस अभियान के तहत ऊना जिला को भी शामिल किया गया है जहां पर यह लिंगानुपात 875 दर्ज हुआ था। 
जिला ऊना में गत तीन वर्षों के दौरान इस अभियान के माध्यम से जिला प्रशासन द्वारा लगातार अनेक कदम उठाए जाते रहे हैं जिसके परिणाम स्वरूप आज जिला का 0-6 वर्ष आयु वर्ग का कन्या शिशु लिंगानुपात 875 से बढक़र 915 तक पहुंचा है। लेकिन जिला प्रशासन जहां ऊना में कन्या शिशु लिंगानुपात को प्रतिहजार लडकों के पीछे 950 तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है तो वहीं बेटियों के प्रति समाज में व्याप्त नकारात्मक सोच को बदलने के लिए ऊना उत्कर्ष के माध्यम से तीन नई योजनाओं को शुरू किया है। जिनका प्रमुख लक्ष्य जहां बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को प्रबल व गतिशील बनाना है तो वहीं जिला की बेटियों व उनके माता-पिता को सम्मानित भी करना है। साथ ही जिला की बेटियों को शिक्षा के साथ-साथ समाज में प्रोत्साहित करने, बेटियों को जीवन में सक्षम बनाने तथा भविष्य उज्ज्वल हो इस दिशा में मदद का हाथ भी बढ़ाना है।
उपायुक्त राकेश कुमार प्रजापति का कहना है कि ऊना उत्कर्ष के माध्यम से बेटियों के प्रति समाज की सोच में बदलाव लाने को तीन प्रमुख कार्य किए जाएंगे। जिनमें सर्वप्रथम बेटियों वाले परिवारों के माता-पिता को उपायुक्त कार्ड देकर जहां सम्मानित करना है तो वहीं इस कार्ड के माध्यम से सरकारी कार्यालयों, अस्पतालों इत्यादि में सरकारी सेवाओं को प्राथमिकता के आधार पर उपलब्ध करवाना है ताकि बेटी परिवार का गौरव बन सके। दूसरा प्रयास जन भागीदारी के माध्यम से जहां दुकानों व व्यापारिक प्रतिष्ठानों का नामकरण बेटियों के नाम पर करना व उन्हे 21 सौ रूपये की प्रोत्साहन राशि भी प्रदान करना है ताकि जिला में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के प्रचार-प्रसार को एक जन आंदोलन बनाया जा सके।
इसी कडी में तीसरा प्रयास जिला में पैदा होने वाली बेटियों के जन्म को एक उत्सव के रूप में मनाना है। इसके लिए जिला की वे पंचायतें पात्र होंगी जहां वर्ष 2017-18 के आंकडों के आधार पर कन्या लिंगानुपात 800 से कम है तथा ग्राम पंचायत इस आशय का प्रस्ताव पारित करेंगी कि वह अपने क्षेत्र में कन्या भ्रूण हत्या नहीं होने देंगे तथा समस्त घरों के बाहर महिला सदस्य के नाम का बोर्ड लगवाना सुनिश्चित करेंगे। इस प्रयास के माध्यम से चिंतपूर्णी मंदिर न्यास के सौजन्य से पहली बेटी के जन्म पर 11 हजार, दूसरी बेटी के जन्म पर 21 हजार तथा तीसरी बेटी के जन्म पर 51 हजार रूपये की राशि प्रदान की जाएगी। इस योजना का लाभ इसके लागू होने की तिथि के उपरान्त पैदा होने वाली बेटियों को दिया जाएगा। साथ ही बेटी का विवाह परिवार के लिए बोझ न बने इस नकारात्मक दृष्टिकोण को समाप्त करने के लिए बेटी के विवाह पर उपहार स्वरूप 51 हजार रूपये की राशि उन पंचायतों में प्रदान की जाएंगी जिनमें वर्ष 2017-18 के दौरान कन्या लिंगानुपात की दर 950 से अधिक रही है।
इसके अलावा जिला में दसवीं व 12वीं कक्षाओं के कला, विज्ञान तथा वाणिज्य संकायों में बेहतर प्रदर्शन करने वाली पहली 10 बेटियों को 21-21 हजार रूपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान कर सम्मानित किया जाएगा। साथ ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रमाणित पहले 100 रैंक वाले विश्व विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में अध्ययन कर रही जिला की बेटियों का पूरा खर्चा भी जिला प्रशासन द्वारा वहन किया जाएगा। जिन बेटियों ने 12वीं कक्षा के बाद परिवार की तंग आर्थिकी के कारण आगे दाखिला नहीं लिया है, जिला प्रशासन द्वारा सरकारी महाविद्यालयों में पुन: दाखिला लेने के लिए पांच हजार रूपये की राशि एक मुश्त प्रदान की जाएगी। साथ ही जिला में खंड स्तर पर लगने वाले नि:शुल्क विशेषज्ञ चिकित्सा शिविरों में जिला की 0-18 वर्ष आयु वर्ग की बेटियों की नि:शुल्क चिकित्सा जांच भी की जाएगी।
इस तरह ऊना जिला प्रशासन द्वारा बेटियों को समाज में स्थापित करने, सक्षम बनाने तथा लोगों में व्याप्त नकारात्मक सोच को बदलने के लिए ऊना उत्कर्ष के माध्यम से यह महत्वपूर्ण पहल निश्चित तौर जहां समाज में बेेटियों के कारण हाशिए पर गए परिवारों को समाज में गौरवान्ति होने का एक अवसर प्रदान करेगी बल्कि बेटी का माता-पिता होना गौरव की बात भी बनेगा। साथ ही बेटी परिवार व क्षेत्र में सरकार की मूलभूत सुविधाओं में सुधार लाने का भी कारण बने इस दिशा में भी जिला प्रशसान की यह अनूठी पहल निश्चित तौर पर सफल होगी।

(साभार: आपका फैसला 17 सितम्बर, 2018 के संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Friday, 3 August 2018

स्वरोजगार योजनाओं से जुडक़र बेरोजगार युवा मजबूत करें आर्थिकी

हिमाचल प्रदेश सरकार ने बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार योजनाओं के माध्यम से स्वावलंबी बनाने को कई योजनाओं एवं कार्यक्रमों की शुरूआत की है। इन योजनाओं के माध्यम से युवा न केवल स्वयं के लिए रोजगार के साधन सृजित कर सकते हैं बल्कि दूसरों को भी रोजगार के अवसर उपलब्ध करवा सकते हैं। कहने का अर्थ है युवाओं को सरकारी नौकरियों के पीछे भागने के बजाए उद्यमिता को अपनाकर अपने व दूसरे के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने वालों की श्रेणी में खड़ा होना चाहिए।   
युवाओं को अपने पैरों पर खडा करने के लिए प्रदेश सरकार ने मुख्य मंत्री स्वावलंबन योजना, खाद्य प्रसंस्करण आधारित स्टेट मिशन तथा मुख्य मंत्री स्टार्ट अप जैसी अनेक योजनाओं को शुरू किया है। मुख्य मंत्री स्वाबलंबन योजना की बात करें तो इस योजना का लाभ उठाकार प्रदेश के 18 से 35 वर्ष आयु वर्ग के युवा उद्यम इत्यादि स्थापित कर रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं। इस योजना के माध्यम से बेरोजगार युवा नए उद्योग एवं सेवा इकाई में लगने वाली मशीनरी या अन्य उपकरण पर 40 लाख रूपये के निवेश तक 25 प्रतिशत की दर से अनुदान जबकि महिला उद्यमियों के लिए यह अनुदान की दर 35 प्रतिशत तक है। इसके अलावा बैंक ऋण पर पांच प्रतिशत की दर से ब्याज अनुदान, सी श्रेणी के औद्योगिक क्षेत्रों में प्लाट आवंटन की दरों में 25 प्रतिशत तक की छूट तथा अनुमोदित उद्योगों को निजी भूमि की लीज पर तीन प्रतिशत की दर से स्टांप डयूटी का प्रावधान किया गया है। सरकार ने इस योजना के लिए बजट में 80 करोड रूपये का प्रावधान किया गया है। 
इसके साथ ही सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण आधारित स्टेट मिशन की भी शुरूआत की है। इस योजना के माध्यम से खाद्य प्रसंस्करण से जुडी इकाई स्थापित एवं अपग्रेड करने पर प्लांट की कुल लागत व मशीनरी पर 33.33 प्रतिशत तक अनुदान जबकि तकनीकी सिविल कार्य के लिए अधिकत्तम 75 लाख रूपये तक का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा कोल्ड स्टोर व कोल्ड चेन स्थापित करने के लिए सरकार इकाई की कुल लागत का 50 प्रतिशत तक का अनुदान तथा इकाई निर्माण के दौरान अधिकत्तम पांच करोड रूपये तक का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा इसी योजना के अंतर्गत प्राथमिक प्रसंस्करण केंद्र या संग्रहण केंद्र की स्थापना पर परियोजना की कुल लागत का 75 प्रतिशत जो अधिकत्तम अढ़ाई करोड़ रूपये तक हो सकता है का भी प्रावधान किया गया है। साथ ही मीट की दुकान के आधुनिकीकरण के लिए मशीनरी इत्यादि पर 75 प्रतिशत तथा तकनीकी सिविल कार्य के लिए अधिकत्तम पांच लाख रूपये तक की आर्थिक सहायता का प्रावधान है जबकि रीफीर व प्री मोबाइल कूलिंग वाहन खरीदने के लिए 50 प्रतिशत या अधिकत्तम 50 लाख रूपये तक का प्रावधान किया गया है। इस योजना के लिए सरकार ने बजट में 10 करोड रूपये का प्रावधान किया है।  
इसी तरह प्रधान मंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के अंतर्गत 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोग नई औद्योगिक इकाई में 25 लाख तक जबकि सेवा इकाई मेें 10 लाख रूपये तक के निवेश पर ग्रामीण क्षेत्रों में 25 प्रतिशत की दर से तथा शहरी क्षेत्रों में 15 प्रतिशत की दर से अनुदान जबकि महिला, अनुसूचित जाति एवं जनजाति, अल्प संख्यक, भूतपूर्व सैनिकों तथा दिव्यांगों के लिए 35 प्रतिशत की दर से अनुदान मुहैया करवाया जाता है। इस योजना के तहत 10 लाख रूपये से ऊपर औद्योगिक इकाई तथा पांच लाख रूपये से ऊपर सेवा इकाई की स्थापना के लिए आवेदक का आठवीं पास होना अनिवार्य है तथा यह सहायता केवल नई इकाई की स्थापना के लिए मुहैया करवाई जाती है।
साथ ही सरकार ने नवाचार एवं स्वरोजगार के लिए महत्वकांक्षी मुख्य मंत्री स्टार्ट अप योजना भी शुरू की गई है। इस योजना के अंतर्गत रचनात्मक तथा नवाचार परियोजना के लिए 25 हजार रूपये प्रतिमाह की दर से एक वर्ष के लिए छात्रवृति, परियोजना, उत्पाद के वितरण तथा बाजारीकरण के लिए 10 लाख तथा पेटेंट आवेदन के लिए दो लाख रूपये तक की सहायता दी जाती है। इसी तरह नए उद्योगों के लिए 25 लाख रूपये तक के ऋण पर पांच प्रतिशत की दर से ऋण अनुदान, औद्योगिक प्लाटों की दरों में 50 प्रतिशत की छूट, नई औद्योगिक इकाई के लिए तीन प्रतिशत की दर से स्टांप डयूटी तथा स्व-प्रमाणीकरण को मान्यता एवं तीन वर्ष तक विभिन्न विभागीय निरीक्षणों से छूट दी जाती है। 
इसके अलावा सरकार ने स्वरोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने तथा स्थानीय उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए 18 से 40 वर्ष आयु वर्ग के स्थानीय युवाओं को आजीविका प्रदान हेतु मुख्य मंत्री युवा आजीविका योजना को भी प्रारंभ करने का निर्णय लिया है। इस योजना के अंतर्गत अधिकत्तम 30 लाख निवेश पर पुरूष उम्मीदवारों को 25 प्रतिशत तथा महिलाओं को 30 प्रतिशत उपदान का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा पहले वर्ष ब्याज पर आठ प्रतिशत अनुदान तथा अगले वर्षों के लिए दो प्रतिशत कम ब्याज पर अनुदान दिया जाएगा। 
इस तरह प्रदेश सरकार ने वर्षों सरकारी नौकरी की चाहत में समय बर्बाद करने के बजाए युवा सीधे अपने पांव पर खडे होकर आर्थिक व सामाजिक तौर पर सशक्त बनें इस दिशा में आगे बढऩे के लिए प्रगति के द्वार खोल दिए हैं। युवाओं के स्वरोजगार अपनाने की ओर उठाए गए थोडे से साहस से वे न केवल स्वयं बल्कि आसपास के दूसरे युवाओं को भी रोजगार के अवसर पैदा करने वाली की श्रेणी में खडे हो सकते हैं। ऐसे में बस जरूरत है तो प्रदेश के शिक्षित युवाओं को थोडी हिम्मत बांधकर स्वरोजगार की ओर मन लगाकर कदम बढ़ाने की। 

  (साभार: आपका फैसला 30 जुलाई, 2018 एवं दिव्य हिमाचल 2 अगस्त, 2018 के संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Friday, 13 July 2018

जन मंच कार्यक्रम बना आम आदमी की सशक्त आवाज

हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा प्रत्येक माह के पहले रविवार को जन मंच कार्यक्रम की शुरूआत की है। प्रदेश में अब तक सभी जिलों में दो-दो जन मंच कार्यक्रम सफलता पूर्वक आयोजित किए जा चुके हैं। प्रदेश भर में हजारों लोग अपनी छोटी-छोटी समस्याओं के निपटारे के लिए जन मंच कार्यक्रमों में पहुंच रहे हैं। जन मंच में जहां लोग पेयजल, बिजली, सडक़, रास्तों व गलियों के निर्माण, गंदे पानी की निकासी, अवैध कब्जों, मकान बनाने एवं बीमारी के ईलाज इत्यादि के लिए आर्थिक सहायता, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, राशन कार्ड जैसे मामले उठा रहे हैं तो वहीं स्कूलों, स्वास्थ्य संस्थानों, सरकारी कार्यालयों इत्यादि में रिक्त पदों एवं मूलभूत सुविधाओं का मामला भी रखा जा रहा है। कहने को तो ये लोगों की छोटी-छोटी समस्याएं हो सकती हैं लेकिन वास्तव में प्रदेश के गरीब, पिछडे तथा आम आदमी के लिए इन समस्याओं का समाधान उनके लिए सरकार की किसी बडी सौगात से कम नहीं कहा जा सकता है। ऐसे में यदि ये समस्याएं सरकार के किसी बड़े मंत्री की उपस्थिति में बड़े अधिकारियों द्वारा मौके पर ही निपटा ली जाएं तो सच में गरीब व आम आदमी के लिए लोकतंत्र में सरकार होने का सपना एवं उसके मायने वास्तविकता के धरातल में साकार होते नजर आते हैं। 
प्रदेश के युवा एवं मिलनसार व्यक्तित्व के धनी मुख्य मंत्री जय राम ठाकुर ने 26 मई को शिमला से जन मंच कार्यक्रम की शुरूआत की थी। इस कार्यक्रम को शुरू करने का प्रमुख उदेश्य भी जहां सरकार की पहुंच आम आदमी तक आसानी से ले जाना है तो वहीं लोगों के घर-द्वार के समीप समस्याओं का समयबद्ध व त्वरित निपटारा सुनिश्चित बनाना है। ऐसा भी नहीं है कि प्रदेश में इस तरह के प्रयास पहले नहीं हुए हैं। प्रदेश में समय-समय पर सत्तासीन रही सरकारों ने लोगों की समस्याओं का उनके घर-द्वार निपटारे के लिए कभी प्रशासन जनता के द्वार तो कभी सरकार आपके द्वार जैसे अनेक कार्यक्रम होते रहे हैं। लेकिन इन सबसे आगे बढक़र जन मंच एक ऐसा सरकारी कार्यक्रम आम आदमी की आवाज बनकर सामने आया है जिसमें न केवल जन मंच के दिन बल्कि उससे 15 दिन पहले तथा 10 दिन बाद तक भी समस्याओं का निपटारा सुनिश्चित बनाया जा रहा है। जन मंच एक ऐसा कार्यक्रम है जिसे तीन स्तरों पर लागू किया जाता है। प्रत्येक माह के पहले रविवार को होने वाले जन मंच कार्यक्रम को प्रत्येक जिला के एक निर्धारित विधानसभा क्षेत्र के दूर-दराज एवं ग्रामीण क्षेत्र में आयोजित किया जाता है। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष सहित कैबिनेट मंत्री द्वारा की जाती है। जन मंच में न तो मुख्यातिथि का हार व फूलों से स्वागत किया जाता है, न ही कोई उद्घाटन व शिलान्यास तथा न ही किसी नई योजना की शुरूआत।
यह कार्यक्रम पूरी तरह से आम आदमी की जन सुनवाई के लिए समर्पित है तथा जनता की समस्याओं का निपटारा तमाम बड़े अधिकारियों की उपस्थिति में सुनिश्चित बनाया जाता है। जन मंच से 15 दिन पूर्व संबंधित विधानसभा क्षेत्र की चिन्हित 10 पंचायतों में विभिन्न विभागों की कल्याणकारी योजनाओं एवं कार्यक्रमों को लेकर जहां व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाया जाता है तो वहीं छूटे हुए पात्र लाभार्थियों को योजनाओं के साथ जोड़ा भी जाता है। इसके अलावा सरकार द्वारा निर्धारित योजनाओं को लेकर चिन्हित 10 पंचायतों में शत प्रतिशत लक्ष्य की पूर्ति भी सुनिश्चित बनाई जाती है। साथ ही जन मंच के दौरान जिन समस्याओं पर संबंधित अधिकारियों द्वारा आवश्यक कदम उठाए जाने की जरूरत होती है उन्हे जन मंच के बाद 10 दिनों के भीतर हल करना होता है। इस तरह जन मंच के माध्यम से न केवल हमारे समाज के गरीब व आम आदमी की जन सुनवाई सुनिश्चित होती है बल्कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से पात्रों को जोड़ा भी जाता है। जन मंच कार्यक्रम की सबसे बडी बात यह है कि जन मंच के दिन कोई भी व्यक्ति भूखा व प्यासा न रहे इसके लिए सरकार ने भोजन व पानी की भी समुचित व्यवस्था की है। 
ऐसे में यदि प्रदेश में हुए पहले दो जन मंच कार्यक्रमों की बात करें तो पूरे प्रदेश में जहां लगभग आठ हजार से अधिक जन शिकायतों को लोगों ने जन मंच कार्यक्रम के माध्यम से सरकार के पास रखा है बल्कि अधिकत्तर का निपटारा भी समयबद्ध सुनिश्चित हुआ है। वास्तव में जन मंच आम आदमी की सशक्त आवाज बनकर सामने आया है तथा सरकार को इस कार्यक्रम की लगातार न केवल निगरानी की आवश्यकता होगी बल्कि समस्याओं के निपटारे को प्राथमिकता देते हुए गरीब व आम आदमी को पूरा अधिमान देना होगा। सरकार को इस बात पर ही गंभीरता से विश्लेषण करना होगा की आने वाले समय में प्रदेश के गरीब, पिछडे व आम आदमी की यह आवाज आंकड़ों के मायाजाल में उलझकर न रह जाए इस पर विभागीय अधिकारियों की जबावदेही सुनिश्चित बनानी होगी। जिस गति व लोकप्रियता के साथ आज जन मंच गरीब व आम आदमी की आवाज बना है निश्चित तौर पर भविष्य में सरकारी व राजनैतिक स्तर पर इसके परिणाम चौकाने वाले हो सकते हैं। 

(साभार: दैनिक आपका फैसला के अंक 12 जुलाई, 2018 के संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
                 

Monday, 9 July 2018

मीडिया की समरस समाज निर्माण में भूमिका

भारतीय समाज और यहां की परंपराएं व संस्कृति 21वीं सदी की आधुनिकता भरी इस दुनिया में आज भी न केवल कायम है बल्कि अपनी पहचान बनाए हुए है। भले ही दुनिया के कई देशों की संस्कृति व परंपराओं का विलोपन व कई सभ्यताएं समाप्त हो गई हैं, लेकिन भारतीय संस्कृति व परंपराएं न केवल आज भी पूरी दुनिया में विख्यात हैं बल्कि हमारा समाज उन्हे बेहतर ढ़ंग से संजोए हुए है। 
भारतीय समाज में वर्ग विषमता व जातिगत भेदभाव की बात आती है तो हमारा शीश शर्मसार होकर झुक जाता है। बदलते वक्त व बदलती दुनिया के साथ भारतीय समाज भी तेजी से प्रगति के पथ पर अग्रसर है तथा कई रूढिवादी परंपराओं को न केवल हमने बदला है बल्कि उनका त्याग भी किया है। बात चाहे विधवा विवाह, सत्ती प्रथा, स्वच्छता, छुआछूत, महिला उत्पीडन जैसी अनेक बुराईयों को लेकर लडे गए आंदोलनों की हो या फिर समाज सुधारकों व बुद्धिजीवियों द्वारा जन जागरूकता के अलख जगाने की। भारतीय समाज को वर्ग विषमता से मुक्त बनाने तथा सामाजिक बुराईयों से मुक्त बनाने के लिए जितना कठिन परिश्रम देश के महान समाज सुधारकों व पथ प्रदर्शकों ने किया उतना ही अहम योगदान मीडिया का भी रहा है। विभिन्न सामाजिक व स्वतंत्रता आंदोलनों की बात करें तो व्यापक जन जागरूकता लाने में लंबे वक्त तक संघर्ष जारी रहा बल्कि एक साथ समाज के बडे वर्ग को जागरूक बनाने व जोडने में समाचार पत्रों का भी सहारा लिया गया। देश के महान स्वतंत्रता सेनानियों, देशभक्तों व समाज सुधारकों ने समाचार पत्रों के माध्यम से अपने आंदलनों को आगे बढ़ाने तथा सामाजिक बुराईयों को लेकर जन जागरूकता के लिए अभियान चलाए। 
ऐसे में जहां मीडिया ने विभिन्न सामाजिक बुराईयों के प्रति जागरूकता लाने में अहम भूमिका अदा की तो वहीं सामाजिक रूख बदलने में भी पीछे नहीं रहा है। भारतीय समाज के लिए आज कितने खेद व चिंताजनक बात है कि आजादी के सात दशकों उपरान्त जातिगत छुआछूत के नाम पर व्यक्तियों के साथ भेदभाव होना न केवल घोर निंदनीय है बल्कि शर्मनाक भी है। ऐसा भी नहीं है कि जातिगत भेदभाव को लेकर सरकारी स्तर पर प्रयास नहीं हुए। इस सामाजिक समस्या से छुटकारा पाने तथा दलित व पिछडे लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए कानूनी तौर पर कई संवैधानिक प्रावधान किए गए और बल्कि सरकारी सेवा के साथ-साथ लोकसभा व विधान सभाओं के चुनाव में अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण का भी प्रावधान किया गया है। वाबजूद इसके वर्तमान में भारतीय समाज में जातिगत आधार पर भेदभाव की घटनाएं सामने आना किसी दु:ख दायी पीड़ा से कम नहीं है।
हिमाचली समाज की बात करें तो जाति विशेष के आधार पर मंदिर में प्रवेश न देना, एक ही कुंए से पानी न भरना, एक साथ बैठकर भोजन न करना तथा एक की श्मशानघाट में व्यक्ति का अंतिम संस्कार न करना जैसी घटनाओं को जहां मीडिया समय-समय पर उजागर करता रहा है बल्कि शासन व प्रशासन की आंखे भी खोलता रहा है। पिछले वर्ष कुल्लू जिला के बंजार में हुए अग्रिकांड के दौरान तबाह हुए एक गांव के लोगों को जब एक जाति विशेष के कारण  एक साथ खाना खाने से रोका तो इस घटना को प्रदेश के मीडिया ने न केवल प्रमुखता से उठाया बल्कि इस संवेदनशील मुददे को लेकर व्यापक जन जागरूकता लाने का भी भरसक प्रयास किया। इसी तरह की एक अन्य घटना इसी वर्ष कुल्लू जिला में ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बच्चों के साथ आयोजित टीवी वार्तालाप के सीधे प्रसारण के दौरान एक स्कूल में भी सामने आई। इस घटना के दौरान जहां निचली जाति से बच्चों को सामान्य बच्चों से दूर बिठाया गया बल्कि उनके साथ भेदभाव भी हुआ। इस घटना को भी मीडिया ने न केवल प्रमुखता से उठाया बल्कि इसकी गूंज सरकार व प्रशासन तक पहुंची। जिसके परिणाम स्वरूप सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है तथा घटना में शामिल लोगों के विरूद्ध कानूनी मामला भी दर्ज किया। इसी तरह के मामले मीडिया समय-समय पर उजागर करता आ रहा है।
लेकिन अब प्रश्न जातिगत भेदभाव से जुडी इन घटनाओं के उजागर होने का नहीं बल्कि प्रश्न समाज में व्याप्त उस जातिगत भेदभाव व छूआछूत का है जो आज भी गाहे बगाहे हमारे समाज में व्याप्त है। इस तरह की घटनाएं न केवल मानवता के विरूद्ध है बल्कि सभ्य समाज के लिए चिंता का कारण भी हैं। भले ही आज हमने आधुनिक जीवन की वो तमाम ऊचांईयों छू ली हों, जो कभी हमसे कोसों दूर थीं। लेकिन महज एक व्यक्ति का इसलिए तिरस्कार कर दिया जाए कि वो तथाकथित नीच जाति से है, यह न केवल निंदनीय है बल्कि सभ्य समाज में स्वीकार्य भी नहीं हो सकता है। आखिर वर्ग विषमता से मुक्त एक आदर्श समाज बनाने में हम पीछे क्यों  हैं, इस पर भी गंभीरता से मंथन होना चाहिए। साथ ही जातिगत प्रथा के कारण समाज में विघटन पैदा हो हमें उस मानसिकता के खिलाफ भी जंग लडनी होगी। साथ ही उन स्वार्थी लोगों से भी हमें सतर्क रहना होगा जो जातिगत भेदभाव की घटनाओं को हवा देकर निजी हित साधते रहे हैं। 
इन परिस्थितियों में मीडिया को न केवल जातिगत भेदभाव से जुडी घटनाओं को प्रमुखता से उठाना चाहिए बल्कि जाति के आधार पर समाज को बांटने वाले भी बेनकाव हों ताकि जहां जातिप्रथा व छूआछूत के प्रति व्याप्त सामाजिक मानसिकता में व्यापक बदलाव लाया जा सके तो वहीं निजी हित साधने वाली राष्ट्र विरोधी ताकतों का भी डटकर विरोध किया जा सके। 
ऐसे में हमारे समाज से वर्ग विषमता व जातिगत छुआछूत की यह समाजिक बुराई पूरी तरह से समाप्त हो इसके लिए जहां देश का जागरूक मीडिया व्यापक जन जागरूकता लाने में एक अहम रोल अदा कर सकता है तो वहीं 21वीं सदी की हमारी युवा पीढ़ी इस सामाजिक समस्या को जड़ से उखाडऩे में न केवल सक्षम व समर्थ है बल्कि वह एक ऐसा भारतीय समाज स्थापित करने का भी सामथ्र्य रखती है जिसमें वर्ग विषमता, जातिप्रथा व छुआछूत के लिए कोई स्थान नहीं होगा। आओ हम सब मिलकर जाति प्रथा से मुक्त एक नए व आधुनिक भारतीय समाज निर्माण के लिए आगे आएं जहां व्यक्ति की पहचान उसकी जाति व वर्ग से नहीं बल्कि उसके कर्म व पुरूषार्थ से हो।



 (साभार: हिम संचार विशेषांक विश्व संवाद केंद्र शिमला में प्रकाशित)

Tuesday, 3 July 2018

गृहिणी सुविधा योजना के तहत ऊना जिला में लाभान्वित होंगे 2487 परिवार

गृहिणी सुविधा योजना के अंतर्गत जिला ऊना में प्रथम चरण में 2487 पात्रों को लाभान्वित करने का लक्ष्य रखा गया है। गृहिणी सुविधा योजना हिमाचल प्रदेश सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी योजना है, जिसका शुभारंभ 26 मई, 2018 को प्रदेश के मुख्य मत्री जय राम ठाकुर ने शिमला से किया है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य जहां महिलाओं का सशक्तिकरण करना है तो वहीं प्रदेश के पात्र उपभोक्ताओं को स्वच्छ व धुंआ रहित ईंधन उपलब्ध करवाकर पर्यावरण का संरक्षण भी करना है।
किन्हे मिलेगा योजना का लाभ:
गृहिणी सुविधा योजना के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश के ऐसे महिला परिवार वाले स्थायी निवासी जिनके पास एल.पी.जी. कनैक्शन नहीं है, को एक घरेलू एल.पी.जी. कनैक्शन हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा उपलब्ध करवाया जा रहा है। इस योजना में महिलाओं वाले ऐसे हिमाचली परिवार (किसी भी श्रेणी से संबंधित) जिनके पास अपना या किसी भी सरकारी योजना जैसे उज्ज्वला इत्यादि के तहत घरेलू गैस कनैक्शन नही हैं, को लाभान्वित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, आग्रि, भूकंप इत्यादि से प्रभावित परिवारों को भी इस योजना के अन्तर्गत लाभान्वित किया जाएगा। प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित परिवारों को संबंधित कार्यकारी दंडाधिकारी द्वारा जारी प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा।
किन्हे नहीं मिलेगा लाभ:
 इस योजना के अन्तर्गत ऐसे परिवारों को लाभान्वित नहीं किया जाएगा जिनके पास पहले से ही एलपीजी गैस कनेक्शन उपलब्ध है तथा ऐसे परिवार जिनका कोई भी सदस्य सरकारी/अद्र्ध सरकारी, स्वायत्त संस्था, बोर्ड, कॉर्पोरेशन में कार्यरत इत्यादि में नियमित या अनुबंध के आधार पर कार्यरत न हो। इसके अलावा ऐसे परिवार जिनका कोई भी सदस्य ठेकेदार के नाते सरकार के साथा पंजीकृत है को भी लाभ नहीं मिलेगा। साथ ही ऐसे परिवार जिनका कोई भी सदस्य राज्य/केन्द्र सरकार, बोर्ड, कॉर्पोरेशन, बैंक, स्वायत्त संस्था से पारिवारिक पेंशन तथा सामाजिक सुरक्षा पेंशन लेता हो।
कैसे मिलेगा लाभ:
इस योजना के अंतर्गत पात्र परिवारों का चयन संबंधित ग्राम पंचायत जबकि शहरी क्षेत्रों में संबंधित शहरी निकाय संस्थाओं द्वारा निर्धारित प्रपत्र पर आवेदन प्राप्त किए जाएंगे। प्राप्त आवेदन पत्रों को किसी प्रकार आपत्ति के लिए संबंधित पंचायत या शहरी निकाय के नोटिस बोर्ड में 10 दिन के लिए प्रदर्शित किया जाएगा तथा किसी प्रकार का आपत्ति होने पर जिला नियंत्रक खाद्य, नागरिक आपूर्ति को 15 दिन के भीतर मामला प्रस्तुत करना होगा। इसके उपरान्त चयनित पात्र लोगों की सूची को तेल कंपनियों को भेजा जाएगा तथा निदेशक खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले गैस कनेक्शन के लिए धनराशि जारी करेंगे। गैस एजैंसी तथा संबंधित विभाग द्वारा आयोजित होने वाले कार्यक्रम में पात्रों को एलपीजी गैस कनेक्शन वितरित किए जाएंगे।
क्या कहते हैं अधिकारी:
जिला नियन्त्रक खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले ऊना राजीव शर्मा ने बताया कि इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र लोग अपनी ग्राम पंचायत या शहरी निकाय के कार्यालयों से संपर्क कर निर्धारित प्रपत्र प्राप्त कर सकते हैं। उन्होने बताया कि सरकार ने इस योजना के प्रथम चरण में ऊना जिला में 2487 पात्रों को लाभान्वित करने का लक्ष्य रखा है तथा वर्तमान में संबंधित पंचायतों एवं स्थानीय नगर निकायों से प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग 5958 लोगों ने अपने आवेदन पत्र प्रस्तुत कर दिए हैं। उन्होने कहा कि पात्रों के चयन प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए लगभग 2 माह का समय लगेगा। उन्होने बताया कि इस योजना बारे लोगों को जागरूक करने के लिए पंचायत स्तर पर विभागीय अधिकारियों द्वारा जागरूकता शिविर भी आयोजित किए जा रहे हैं।







Monday, 28 May 2018

बकरी पालन से जुडक़र बीपीएल परिवार मजबूत करें आर्थिकी


बकरी पालन हेतु सरकार दे रही 60 प्रतिशत तक अनुदान, तीन वर्ष का बीमा मुफ्त 

सरकार द्वारा बीपीएल परिवारों की आर्थिकी में उत्थान लाने के उदेश्य से कृषक बकरी पालन योजना को प्रारंभ किया गया है। इस योजना के माध्यम से बीपीएल परिवार को बकरी पालने के लिए सरकार 60 प्रतिशत तक का अनुदान उपलब्ध करवा रही है। 
इस स्कीम के तहत सरकार पशुपालन विभाग के माध्यम से गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) परिवारों को कृषक बकरी पालन योजना के तहत दो बकरियां (मादा) तथा एक बकरा (नर), चार बकरियां (मादा) तथा एक बकरा (नर) या दस बकरियां (मादा) तथा एक बकरा (नर) की इकाईयों में उपलब्ध करवाया जा रहा है। इस योजना के तहत बीपीएल परिवार के लाभार्थी को लागत का चालीस प्रतिशत भाग बतौर लाभार्थी शेयर के रूप में जमा करवाना होता जबकि 60 प्रतिशत सरकार द्वारा वहन किया जाता है। बीपीएल कृषक बकरी पालन योजना के अंतर्गत सामान्य वर्ग के 66 प्रतिशत अनुसूचित जाति के 25 प्रतिशत तथा अनुसूचित जनजाति के 9 प्रतिशत परिवारों के हिसाब से इकाईयां वितरित की जा रही हैं।
इस योजना के माध्यम से दो जमा एक इकाई की कुल लागत 21 हजार 88 रूपये है जिनमें से सरकार की ओर से अनुदान 60 प्रतिशत 13 हजार 888 रूपये तथा लाभार्थी का 40 प्रतिशत की दर से शेयर 72 सौ रूपये बनता है। इसी तरह जहां चार जमा एक इकाई की कुल लागत 34 हजार 356 रूपये है जिनमें से सरकार की ओर से अुनदान 23 हजार 156 रूपये बतौर 60 प्रतिशत तथा लाभार्थी का शेयर 11 हजार 200 रूपये जो 40 प्रतिशत है जबकि दस जमा एक इकाई की कुल लागत 72 हजार 160 रूपये है जिनमें से सरकार की ओर से अनुदान 48 हजार 960 रूपये बतौर 60 प्रतिशत तथा लाभार्थी का शेयर 23 हजार 200 रूपये बतौर 40 प्रतिशत दिया जाता है।
इस योजना के माध्यम से अबतक पूरे प्रदेश भर में 1153 विभिन्न इकाईयां बकरियों की आवंटित की गई हैं। जिनमें दस जमा एक इकाई की 194, चार जमा एक इकाई की 430 तथा दो जमा एक इकाई की 529 इकाईयां शामिल हैं। जिलावार आंकडों का विश्लेषण करें तो जिला बिलासपुर को 164 इकाईयां आवंटित की गई है जिनमें दस जमा एक इकाई की 22, चार जमा एक की 50 तथा दो जमा एक इकाई की 92 इकाईयां शामिल है। चंबा जिला को कुल 56 इकाईयां आवंटित की गई हैं जिनमें दस जमा एक इकाई की दस, चार जमा एक की 24 इकाई तथा दो जमा एक की 22 इकाईयां शामिल हैं। हमीरपुर जिला को कुल 196 इकाईयां आवंटित की गई है जिनमें दस जमा एक इकाई की 27, चार जमा एक की 145 तथा दो जमा एक इकाई की 24 शामिल हैं। कांगडा जिला को कुल 129 इकाईयां आवंटित की हैं जिनमें दस जमा एक की 37, चार जमा एक की 45 तथा दो जमा एक इकाई की 37 इकाईयां शामिल हैं। किन्नौर जिला को 37 ईकाईयां बकरियों की आवंटित की गई हैं जिनमें दस जमा एक ईकाई की आठ, चार जमा एक इकाई की 10 तथा दो जमा एक इकाई की 19 युनिट शामिल हैं। 
इसी तरह जहां कुल्लू जिला को कुल 70 इकाईयां बकरियों की आवंटित की गई है जिनमें दस जाम एक इकाई की 10, चार जमा एक इकाई की 28 तथा दो जमा एक इकाई की 32 बकरियां शामिल है तो वहीं जिला लाहौल एवं स्पिति को कुल 41 बकरियों की इकाइयों को आवंटित किया गया है जिनमें दस जमा एक इकाई की नौ, चार जमा एक इकाई की 11 तथा दो जमा एक इकाई की 21 इकाईयां शामिल है। यही नहीं मंडी जिला को कुल 75 इकाईयां का आवंटन किया गया है जिनमें दस जमा एक युनिट के आठ, चार जमा एक युनिट के 25 तथा दो जमा एक युनिट के 42 मामले शामिल हैं जबकि जिला शिमला को बकरियों की कुल 143 युनिट का आवंटन किया गया है जिनमें दस जमा एक युनिट के 27, दस जमा चार युनिट के 26 तथा दो जमा एक युनिट के 90 मामले शामिल हैं। 
इसी योजना के तहत जिला सिरमौर के लिए कुल 67 बकरियों की इकाईयां आवंटित की गई हैं जिनमें सात दस जमा एक, 39 चार जमा एक तथा 21 दो जमा एक युनिट जबकि सोलन जिला के लिए 49 इकाइयां आवंटित की गई हैं जिनमें दस जमा एक की पांच, चार जमा एक की 12 तथा दो जमा एक की 32 युनिट शामिल है। इसी तरह जिला ऊना के लिए कुल 126 बकरियों की इकाईयां आवंटित की गई हैं जिनमें दस जमा एक की 24, चार जमा एक की 15 तथा दो जमा एक की 87 इकाईयां शामिल है। 
इस योजना के माध्यम से सरकार दो जमा एक इकाई पर 13888 रूपये, चार जमा एक इकाई पर 23156 तथा दस जमा एक इकाई पर 48960 रूपये बतौर उपदान मुहैया करवा रही है। इसके अलावा बकरियों का तीन वर्ष का बीमा भी सरकार की ओर किया जाता है ताकि किसानों को किसी प्रकार की दिक्कतों का सामना न करना पड़े। साथ ही बकरियों की इकाईयां वितरण करते वक्त सरकार की ओर से संबंधित किसान को तीन माह का चारा (फीड) भी दी जा रही है।
क्या कहते हैं मंत्री:
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री वीरेंद्र कंवर का कहना है कि प्रदेश में बीपीएल परिवारों की आर्थिकी को मजबूत करने के लिए सरकार ने बीपीएल बकरी पालन योजना शुरू की है। इस योजना के माध्यम से सरकार 60 प्रतिशत अनुदान पर बकरियां उपलब्ध करवा रही है। उन्होने बताया कि दस (मादा) जमा एक (नर) की युनिट से एक परिवार वर्ष में कम से कम दो से अढ़ाई लाख रूपये तक की आय अर्जित कर सकता है। किसान पर विपरीत परिस्थितियों में बोझ न पड़े इसके लिए बकरियों का तीन वर्ष का बीमा भी मुफ्त किया जाता है।

Thursday, 10 May 2018

गैर आवासीय विशेष प्रशिक्षण केंद्रों (एनआरएसटीसी) के माध्यम से 15 हजार बच्चे लाभान्वित

जिला ऊना में वर्तमान में 47 एनआरएसटीसी केंद्रों में 1200 बच्चों को 47 अध्यापक दे रहे शिक्षा
सार्वभौमिक प्रारंभिक शिक्षा के लक्ष्य की पूर्ति के लिए सर्व शिक्षा अभियान के माध्यम से सरकार द्वारा अनेक कदम उठाए जा रहे हैं ताकि 6-14 वर्ष आयु वर्ग का कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। इसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए सरकार ने शिक्षा गारंटी योजना (ईजीएस), वैकल्पिक शिक्षा स्कूल (एएलएस), वैकल्पिक अभिनव शिक्षा(एआईई), गैर आवासीय ब्रिज कोर्स (एनआरबीसी) तथा गैर आवासीय विशेष प्रशिक्षण केंद्र(एनआरएसटीसी) जैसे अनेक कार्यक्रम शुरू किए हैं। जिला ऊना में वर्ष 2003 में गैर आवासीय प्रशिक्षण केंद्र (एनआरएसटीसी) केंद्रों की शुरूआत हुई। शुरू में जिला में 150 बच्चों के साथ ऐसे कुल सात केंद्र झुग्गी-झोंपडी वाले क्षेत्रों में स्थापित किए गए तथा जिनकी संख्या अब बढक़र 47 हो गई है। 
वर्तमान में इन 47 एनआरएसटीसी केंद्रों में 12सौ बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, जिन्हे 47 अध्यापक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। इस योजना के माध्यम से जिला में अबतक लगभग 15 हजार बच्चों को लाभान्वित किया जा चुका है। इसके अलावा इन केंद्रों के माध्यम से लगभग 60 परिवारों को रोजगार भी मुहैया करवाया गया है।
एनआरएसटीसी केंद्रों में सरकार दे रही ये सुविधा
एनआरएसटीसी केंद्रों में सरकार बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए पढऩे व लिखने का सामान, लाईब्रेरी की किताबें, स्वच्छता किट, पठन-पाठन सामाग्री, मोबाइल टॉयलेटस, कांऊसलिंग शिविर तथा टीचर ट्रेनिंग की सुविधा दे रही है। इसके अलावा इन केंद्रों में पठन-पाठन प्रक्रिया के अतिरिक्त खेलकूद, अन्य प्रतियोगिताएं एवं अन्य विभिन्न तरह की गतिविधियों का भी आयोजन किया जाता है।
कैसे लाया गया बच्चों में परिवर्तन
इस संबंध में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाईट) ऊना के प्रधानाचार्य एवं प्रोजैक्ट डायरेक्टर एसएसए-आरएमएसए कमलदीप सिंह से बातचीत की तो उनका कहना है कि एनआरएसटीसी केंद्रों के माध्यम से सबसे पहले झुगी-झोंपडी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों के अभिभावकों को इन केंद्रों में शिक्षा हासिल करने के लिए प्रेरित किया गया। उन्हे बताया कि गया कि यदि बच्चे शिक्षित एवं विभिन्न कौशलों में प्रशिक्षित होंगे तो वे जीवन में बेहतर रोजगार के साधन जुटा सकते हैं तथा रोजगार प्राप्त करने के अवसर में भी बढ़ौतरी होगी। 
शुरूआती दौर में जहां झुग्गी-झोंपडियों में रहने वाले अप्रवासी एवं मेहनत-मजदूरी करने वाले परिवारों के बच्चे स्वच्छता के प्रति जागरूक भी नहीं थे। जिसके प्रति इन केंद्रों के माध्यम से जहां स्वच्छता को लेकर जागरूकता लाई गई तो वहीं उन्हे स्वच्छता किट भी वितरित किए गए। साथ ही बताया का आरंभिक दौर में अभिभावक बच्चों के पठन-पाठन तथा पढऩे-लिखने के लिए सामाग्री उपलब्ध करवाने के प्रति भी जागरूक नहीं थे। इस बारे भी बच्चों को सरकार के माध्यम से पढऩे-लिखने के लिए पुस्तकें, स्कूल बैग, ड्रैस इत्यादि उपलब्ध करवाकर उन्हे शिक्षा हासिल करने के लिए प्रेरित किया गया। इसके अलावा बच्चों की समय पर कांऊसलिंग भी की गई  तथा एनआरएसटीसी केंद्रों के बच्चों को एक्सपोजर देने के लिए केंद्र, ब्लॉक व जिला स्तर की विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इसके अलावा आसपास के सरकारी व निजी स्कूलों में भी इन बच्चों का भ्रमण करवाया जाता है ताकि इन्हे समाज की मुख्यधारा में जोड कर इनके जीवन में व्यापक बदलाव लाया जा सके। 

क्या कहते हैं उपायुक्त 
इस बारे उपायुक्त ऊना राकेश कुमार प्रजापति का कहना है कि एनआरएसटीसी योजना के माध्यम से जिला ऊना में कार्यरत 47 केंद्रों के तहत वर्तमान में लगभग 12 सौ बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है। उन्होने बताया कि बच्चों को शिक्षित करने के लिए 10 डाईट के अध्यापक तथा 37 गैर सरकारी संस्थाओं जिनमें राष्ट्रीय एकता मंच, सनराईज एजुकेशन सोसाइटी तथा शिक्षा सुधार समिति शामिल है के 37 अध्यापक बच्चों को शिक्षित करने के लिए वहां तैनात हैं। उन्होने बताया कि इस योजना के माध्यम से वर्ष 2003 से लेकर 2018 तक लगभग तीन करोड 80 लाख रूपये की राशि व्यय कर लगभग 15 हजार बच्चों को लाभान्वित किया जा चुका है तथा 45 सौ बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा के साथ जोडा गया है।








Tuesday, 24 April 2018

लोअर देहलां के पवन कुमार के लिए मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना बनी वरदान

एक हैक्टेयर में सोलरयुक्त बाडबंदी कर फसलों को किया सुरक्षित, उपज में हुई बढ़ौतरी
हिमाचल प्रदेश के किसान आए दिन बंदरों व अन्य जंगली जानवरों के कारण फसलों को हो रहे नुकसान के चलते जहां मजबूरीवश खेती को छोडने के लिए विवश हो रहे हैं तो वहीं खेती-बाड़ी लगातार घाटे का सौदा बनती जा रही है। इस समस्या को प्रदेश सरकार ने भी गंभीरता से लिया है तथा किसानों की फसलों को बचाने के लिए मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना को शुरू किया है। इस योजना के माध्यम से किसानों को अपने खेतों की सोलरयुक्त बाडबंदी के लिए प्रदेश सरकार 80 प्रतिशत तक अनुदान उपलब्ध करवा रही है। प्रदेश सरकार ने बजट 2018-19 के लिए तीन या इससे अधिक किसानों द्वारा संयुक्तरूप से बाडबंदी करवाने पर 85 प्रतिशत तक का अनुदान देने का प्रावधान किया है।
जिला ऊना के सांसद आदर्श गांव लोअर देहलां निवासी 62 वर्षीय पवन कुमार ऐरी के लिए मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना किसी वरदान से कम साबित नहीं हुई है। बाडबंदी के कारण जहां जंगली जानवरों द्वारा फसलों को होने वाला नुकसान कम हुआ है तो वहीं फसल के उत्पादन में भी वृद्धि दर्ज हुई है। 
इस बारे जब पवन कुमार ऐरी से बातचीत की तो उनका कहना है कि उन्होने लगभग एक हैक्टेयर कृषि योग्य भूमि में सोलरयुक्त बाडबंदी कर रखी है जिससे न केवल विभिन्न तरह के जंगली जानवरों जैसे नील गाय, सांबर, जंगली सुअर इत्यादि से उनकी फसल सुरक्षित हुई है बल्कि वह अब घर में चैन की नींद सो पाते हैं। उनका कहना है कि उनके द्वारा खेतों में की गई सोलरयुक्त बाडबंदी का असर आसपास के खेतों पर भी पडा है तथा जंगली जानवरों के नुकसान में कमी आई है। उन्होने बताया कि पहले जहां उनके इस एक हैक्टेयर रकबे में लगभग 22 से 25 क्विंटल गेंहू की पैदावार हो पाती थी जो अब बढक़र 35 से 40 क्विटल तक  पहुंच गई है।

पवन कुमार का कहना है कि सोलरयुक्त बाडबंदी से पूर्व जहां जंगली जानवर उनकी फसलों को काफी नुकसान पहुंचाते थे तो वहीं खेतों की रखवाली के लिए उन्हे दिन-रात पहरा देना पड़ता था। लेकिन उन्हे जैसे ही प्रदेश सरकार की मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना बारे पता चला तो उन्होने कृषि विभाग के अधिकारियों के सहयोग से यह बाडबंदी करवाई। उन्होने बताया कि सोलयुक्त बाड को छूने पर जहां 12 वोल्ट करंट का झटका लगता है तो वहीं इसका रखरखाव भी ज्यादा मुश्किल नहीं है। उनका कहना है कि यदि सरकार बाडबंदी करते वक्त निचले हिस्से को पक्का करने या पोलीशीट लगाने का भी प्रावधान कर दे तो घास व झाडियां इत्यादि उगने से अक्सर बाड़ में करंट अवरूद्ध होने की संभावना बनी रहती है से भी छुटकारा मिलेगा। 
उनका कहना है कि मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना बंदरों व अन्य जंगली जानवरों से परेशान किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है तथा लोगों से इन योजना का भरपूर लाभ उठाने का आहवान किया है। 
क्या कहते हैं अधिकारी:
उपनिदेशक कृषि विभाग ऊना यशपाल चौधरी का कहना है कि मुख्य मंत्री खेत संरक्षण योजना के तहत सरकार सोलरयुक्त बाडबंदी के लिए 80 प्रतिशत तक का अनुदान उपलब्ध करवा रही है। उन्होने बताया कि जिला ऊना में इस योजना के तहत वर्ष 2017-18 के दौरान 42 किसानों को लाभान्वित कर 1.14 करोड रूपये की राशि व्यय की गई है तथा 18 हजार 400 मीटर लंबी परिधि की 9 कतारों वाली तारें लगाई गई हैं। उन्होने बताया कि एक बैटरी से लगभग 15 सौ मीटर सोलरयुक्त बाडबंदी की जा सकती है, ऐसे में किसानों से सामूहिक तौर पर इस योजना का लाभ उठाने का आहवान किया है ताकि बाडबंदी की लागत कम हो सके। साथ ही जिला के ज्यादा से ज्यादा किसानों से इस योजना का लाभ उठाने का भी आग्रह किया है ताकि उनकी फसलों को बंदरों, अवारा पशुओं एवं अन्य जंगली जानवरों से सुरक्षित रखा जा सके।