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Tuesday, 5 April 2016

भक्त माई दास के माध्यम से प्रकट हुई मां चिंतपूर्णी

हिमाचल प्रदेश जहां अपने प्राकृतिक सौंदर्य, हिमाच्छादित पर्वतों एवं सुंदर घाटियों के लिए विश्वविख्यात है तों वहंी चप्पे-चप्पे में विराजमान देवी-देवताओं के कारण इसे देवभूमि के नाम से भी पुकारा जाता है। आज हिमाचल प्रदेश में अनेकों प्रसिद्ध धार्मिक स्थान हैं जहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शनार्थ यहां पहुंचते हैं। इन्ही धार्मिक स्थानों में से एक है भारत वर्ष के प्रसिद्ध 52 शक्ति पीठों में विराजमान छिन्नमस्तिका धाम चिंतपूर्णी, जो ऊना जिला के मुख्यालय ऊना से  लगभग 50 किलोमीटर तथा उपमंडल अंब के भरवाईं से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 
चिंतपूर्णी मां के स्थान का प्रादुर्भाव देवी भक्त माई दास के माध्यम से माना जाता है। प्रचलित एक जनश्रुति के अनुसार प्राचीन काल में पंजाब के जिला पटियाला के अठूर नामक गांव में माई दास और दुर्गा दास नामक दो भाई रहते थे। लेकिन इसके बाद ये दोनों हिमाचल प्रदेश के रपोह मुचलेयां नामक गांव में आकर रहने लगे तथा यहां आकर खेतीबाडी करने लगे। माई दास का अधिकतर समय पूजा पाठ में व्यतीत होने लगा जबकि दुर्गा दास अकेले ही खेती बाडी करता था। कहते हैं कि माई दास का ससुराल पिरथीपुर नामक गांव में था। एक बार जब माई दास अपने ससुराल से लोटते वक्त छपरोह गांव से गुजर रहा था तो वह कुछ देर विश्राम करने के लिए एक वट वृक्ष के नीचे लेट गया तथा उसे नींद आ गई। नींद आते ही स्वपन्न में माई दास को एक कन्या ने दर्शन दिए तथा कहा कि तुम मेरी यहां नित्य प्रेम पूर्वक पूजा-अर्चना आरंभ करो। लेकिन जैसे ही स्वप्र टूटा माई दास को कुछ भी दिखाई नहीं दिया तथा वह अपने ससुराल चला गया। परन्तु रात को बिस्तर में लेटने पर नींद नहीं आ रही थी तथा बार-बार सोने का प्रयास करने के बावजूद वह सो नहीं पाया और रात को ही ससुराल से छपरोह आ गया तथा यहां आकर मां से विनम्रतापूर्वक प्रार्थना करने लगा कि मां यदि तू सच्ची है तो अभी दर्शन दो। माई दास की प्रार्थना से प्रसन्न होकर मां ने कन्या रूप में दर्शन दिए तथा कहा कि वह चिरकाल से यहां स्थित वट वृक्ष के नीचे मेरा घर है तथा तुम यहां पूजा-अर्चना आरंभ कर दो। मां ने कहा कि यहां पूजा अर्चना करने से तुम्हारे और अन्य समस्त लोगों के कष्ट एवं चिंताए समाप्त हो जाएंगी।
लेकिन माई दास ने कन्या से कहा कि न तो मेरे रहने की व्यवस्था है न ही यहां पीने के लिए पानी का प्रबंध है। ऐसे में कन्या ने कहा कि मैं भक्तों के ऊपर प्रकाश डालूगीं जो यहां मंदिर बनवाएंगें तथा भोग का प्रबंध करेंगें। जबकि यहां से 50 गज की दूरी पर पहाडी के नीचे एक पत्थर को उखाडने से पानी की समस्या का समाधान हो जाएगा। मां ने कहा कि मेरी पूजा के समस्त अधिकार आपके तथा आपके परिवार के होंगें तथा आपके वंश के लिए किसी प्रकार का सूतक-पातक का बंधन नहीं होगा। यहां किसी प्रकार का अत्याचार या गलत कार्य होने पर मैं किसी भी कन्या में प्रवेश कर आपकी समस्या का समाधान करूंगी। ऐसा कहते ही कन्या पिंडी के रूप में लोप हो गई। मंदिर के प्रांगण में स्थित वट वृक्ष अति प्राचीन है। इस बारे श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां डोरियां बांधने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है तत्पश्चात श्रद्धालु बांधी हुई डोरी को खोलते हैं। यहां प्रति वर्ष नव वर्ष, श्रावण अष्टमी,चैत्र एवं आश्विन के नवरात्रों में मेले लगते हैं। इस वर्ष के चैत्र नवरात्र मेलों का आयोजन 8 अप्रैल से 15 अप्रैल तक किया जा रहा है।
मां के दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालु सडक़ मार्ग के अतिरिक्त रेल के माध्यम से भी यहां पहुंच सकते हैं। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन अंब है जो मंदिर से महज 25 किलोमीटर दूर है। इसके अतिरिक्त हवाई मार्ग के माध्यम से सबसे नजदीकीहवाई अडडा गगल कांगडा है जहां से श्रद्धालु लगभग दो घंटे का सडक मार्ग से सफर कर मां के दरबार में पहुंच सकते हैं। बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ठहरने के लिए मंदिर न्यास के यात्री सदन के अतिरिक्त यहां निजी क्षेत्र में कई होटल व धर्मशालाएं हैं।

(साभार: दिव्य हिमाचल, 09 अप्रैल, 2016 को आस्था अंक तथा गिरिराज 11 मई, 2016 के अंक में प्रकाशित)

Tuesday, 22 March 2016

हिमाचल प्रदेश में बेटी बचाओ अभियान को गति मिले

हमारे समाज में बढ़ती कन्या भ्रूण हत्याएं तथा समाज में घटते लिंगानुपात के कारण एक बहुत बडी सामाजिक असमानता खडी हो गई है। इस लिंगभेद की बढ़ती खाई से जहां पूरे देश में लडकियों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है तो वहीं कुछ राज्यों सहित देश भर के एक सौ से अधिक जिलों में इस समस्या ने भयावह रूप धारण कर लिया है। यह कितनी विडंबना है कि जिस भारतीय समाज में कन्याओं का पूजन किया जाता है उसी समाज मेें बेटियों को पैदा होने से पहले ही मॉं की कोख में मौत की नींद सुला दिया जा रहा है। जो बेटियां पैदा भी हो रही उनके प्रति हमारी रूढिवादी मानसिकता हमेशा रोडा बनकर खडी हो जाती है। जिसका नतीजा यह है कि आज भी हमारे समाज व परिवार में बेटियां बेटों के मुकाबले न केवल भेदभाव की शिकार होती है बल्कि सामाजिक तौर पर भी उसे न तो बेहतर शिक्षा के अवसर मुहैया करवाने को तरजीह दी जाती है न ही जीवन में आगे बढऩे के लिए लडकों की भांति प्रेरित किया जाता है। 
आज हमारे समाज में से ऐसे सैंकडों नहीं बल्कि हजारों बेटियों के नाम मिल जाएंगें जिन्होने न केवल कामयाबी की बुलंदी को चूमा है बल्कि  हमारे परिवार व समाज का नाम भी रोशन किया है। यही नहीं यही बेटियां जहां बडी होकर किसी परिवार में बेटी बनकर मां-बाप का सहारा बनती है तो वहीं शादी के बाद किसी की पत्नी व बहु बनकर परिवार की बगिया को महकाती है। यहां हम यह क्यों भूल जाते हैं कि किसी भी पुरूष को जन्म देने वाली भी ये बेटियां ही होती है। परन्तु यह सब जानने के बावजूद भी न जाने हम ऐसी कौन सी रूढिवादी परम्परा के शिकार हुए बैठे हैं कि विकास व सूचना तकनीकि की इस 21वीं सदी में भी हम बेटियों के प्रति दोयम दर्जे का व्यवहार का कलंक अपने माथे पर लिए फिर रहे हैं। कहने को तो आज हम आधुनिक सुविधाओं से लैस हैं, हमारे पास सुख सुविधाओं के तमाम आधुनिक साधन मौजूद है परन्तु बेटियों के प्रति हमारी संकीर्ण सोच व मानसिकता ने दिखा दिया है कि आज भी हम सामाजिक तौर पर पिछडे हुए ही हैं। 
ऐसे में यदि जनगणना-2011 के आंकडों का विश्लेषण करें तो जहां पूरे देश में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति हजार लडक़ों के मुकाबले 918 लड़कियां है तो वहीं देश के सौ जिलों में यह स्थिति राष्ट्रीय औसत से भी कम है। जिसमें हिमाचल प्रदेश के ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर, कांगडा व सोलन जिले भी शामिल है।प्राप्त आंकडों के आधार पर हिमाचल प्रदेश का शिशु लिंगानुपात जनगणना-2001 के आंकडे 896 के मुकाबले जनगणना-2011 में 906 जरूर हुआ है लेकिन प्रदेश के आर्थिक व शैक्षणिक दृष्टि से अग्रणी कांगडा-873, ऊना-875, हमीरपुर-881, बिलासपुर-893 तथा सोलन जिला का यह आंकडा 899 है जो न केवल राष्ट्रीय अनुपात 918 के मुकाबले बल्कि प्रदेश के औसत अनुपात 906 से भी कम है। दूसरी ओर जहां प्रदेश के जन जातीय जिला लाहुल स्पिति में यह आंकडा 1013 तथा किन्नौर में 953 हैै तो वहीं प्रदेश में अन्य जिलों के मुकाबले आर्थिक तौर पर कमजोर कहे जाने वाले चंबा में यह आंकडा 950 तथा सिरमौर में 931 है जो कि अन्तर्राष्ट्रीय मानक एसआरबी (जन्म के समय शिशु लिंगानुपात) के 952 आंकडे के मुकाबले बेहतर कहा जा सकता है। लेकिन ऐसे में अब प्रश्न यही खडा हो रहा है कि क्या हमारे समाज में ज्यादा पढे लिखे व आर्थिक तौर पर सम्पन्न लोग कन्या भ्रूण हत्याओं के कारण बन रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी सोच विकास की इस दौड में कहीं पिछडती तो नहीं जा रही है? फिलहाल तो प्रदेश में शिशु लिंगानुपात के बयान करते जिलों के आंकडे तो यही बता रहे हैं। 
ऐसे में अब यह जरूरी हो जाता है कि प्रदेश में जिला ऊना में चलाए गए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की तर्ज पर कम शिशु लिंगानुपात वाले जिलों में कन्या भ्रूण हत्या सहित बेटियों के प्रति समाज में व्याप्त रूढिवादी मानसिकता के प्रति लोगों के दृष्टिकोण में व्यापक बदलाव लाने के लिए बेटी बचाओ जैसे बडे अभियान को बल दिया जाए। इस तरह के अभियान के माध्यम से जहां समाज में बेटियों व महिलाओं के प्रति व्याप्त रूढि़वादी मानसिकता के प्रति जन जागरूकता अभियान चलाया जाए तो वहीं शिक्षण संस्थानों से लेकर समाज के विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर कार्य करने वाली लडकियों व महिलाओं को प्रोत्साहित किया जाए। साथ ही बेटियों को पैतृक संपति में बेटो के बराबर अधिकार को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ समाज में ऐसे सभी सामाजिक कार्यों के प्रति व्याप्त रूढिवादी मानसिकता को भी ख्ंागाला जाए जो अक्सर बेटियों के पैदा होने में बाधक का काम करती है। 
इसलिए अब वक्त आ गया है कि बेटियों को कोख में ही मारने वाले शैतानों को फिर से इन्सान बनाया जाए अन्यथा हमारे पढ़े लिखे और तथाकथित आधुनिक समाज यह कुकृत्य इसी तरह जारी रहा तो हमारे समाज में विकट सामाजिक परिस्थितियां पैदा हो जाएंगी जिसके हम सब को गंभीर परिणाम भुगतने पड सकते हैं।


(साभार: हिमाचल दिस वीक 5 मार्च, 2016 एवं दिव्य हिमाचल 21 मार्च, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Monday, 21 March 2016

डेरा बाबा बडभाग सिंह के दरबार में बुरी आत्माओं व मानसिक बीमारी से मिलती है मुक्ति

हिमाचल प्रदेश जहां प्राकृतिक सौंदर्य के चलते विश्व विख्यात है तो वहीं विभिन्न धार्मिक स्थानों के कारण भी प्रदेश की राष्ट्रीय व अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक पहचान है। प्रदेश में स्थित विभिन्न पवित्र धार्मिक स्थानों के चलते जहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शनार्थ यहां पहुंचते हैं तो वहीं प्रदेश की शुद्ध, शांत व साफ-सुथरी आवोहवा का आनन्द भी उठाते हैं। प्रदेश में स्थित विभिन्न पवित्र धार्मिक स्थानों में से एक है जिला ऊना के उपमंडल अंब में बाबा बडभाग सिंह जी का पवित्र स्थान मैडी। उपमंडल अंब के मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर जंगल के मध्य में स्थित मैडी एक अत्यंत सुंदर, शांत व रमणीय स्थान है। 
इस पवित्र स्थान के बारे में कई किंवदन्तियां व कथाएं प्रचलित हैं जिसमें एक कथा के अनुसार लगभग 300 वर्ष पूर्व पंजाब के कस्बा करतारपुर से बाबा राम सिंह के सुपुत्र बड़भाग सिंह अहमदशाह अब्दाली के हमले से तंग आकर शिवालिक पहाडियों की ओर चल पड़े। जब वह नैहरी गांव के साथ लगते क्षेत्र दर्शनी खड्ड के समीप पहुंचे तो उनका सामना अफगानी सैनिकों के साथ हुआ। यह भी कहा जाता है कि उन्होने अपने ओजस्वी तेज से अफगानी फौज को वहां से खदेड दिया। कहते हैं कि उस समय मैड़ी एक निर्जन स्थान था और दूर-दूर तक कोई बस्ती नहीं थी। यह भी कहा जाता है कि इस क्षेत्र में यदि कोई गलती से प्रवेश कर जाता था तो उसे भूत प्रेत आत्माएं या तो बीमार कर देतीं थीं या फिर पागल कर देती थीं। बाबा बडभाग सिंह जी ने इस जगह पर घोर तपस्या की तथा कहते हैं कि ऐसी प्रेत आत्माओं ने बाबा जी को खूब तंग किया लेकिन वह अपने प्रयास में कामयाब नहीं हो सकीं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार वर्ष 1761 में पंजाब के कस्बा करतारपुर जो जिला जालंधर में पडता है, सिख गुरू अर्जुन देव जी के वंशज बाबा राम सिंह सोढ़ी और उनकी धर्मपत्नी माता राजकौर के घर में बड़भाग सिंह का जन्म हुआ था। उन दिनों अ$फगानों के साथ सिख जत्थेदारों की खूनी भिड़ंतें होती रहती थीं। बाबा बड़भाग सिंह बाल्याकाल से ही आध्यात्म को समर्पित होकर पीडित मानवता की सेवा को अपना लक्ष्य मानने लगे थे। कहते हैं कि वह एक दिन घूमते हुए मैडी गांव स्थित दर्शनी खड्ड जिसे अब चरण गंगा के नाम से भी जाना जाता है, पहुंचे और यहां के पवित्र जल में स्नान करने के बाद मैडी़ स्थित एक बेरी के वृक्ष के नीचे ध्यानमग्र हो गए। मैडी का यह क्षेत्र एक दम वीरान था और दूर-दूर तक कोई बस्ती नहीं थी। कहते यह भी हैं कि यह क्षेत्र वीर नाहर सिंह नामक एक पिशाच के प्रभाव में था। नाहर सिंह द्वारा परेशान किए जाने के बावजूद बाबा बडभाग सिंह जी ने इस जगह पर घोर तपस्या की तथा एक दिन दोनों के आमने सामने हुआ तो बाबा बडभाग सिंह ने दिव्य शक्ति से नाहर सिंह को काबू करके बेरी के वृक्ष के नीचे एक पिंजरे में कैद कर लिया। कहते हैं कि बाबा बडभाग सिंह ने उसे इस शर्त पर आजाद किया कि वीर नाहर सिंह अब वह इसी स्थान पर मानसिक रूप से बीमार और बुरी आत्माओं के शिकंजे में जकडे लोगों को स्वस्थ करेंगें और साथ ही नि:संतान लोगों को फलने का आर्शीवाद भी देगेें। बेरी का पेड़ आज भी यहां मौजूद है और डेरा बाबा बड़भाग सिंह नामक धार्मिक स्थल के साथ सटा है। प्रतिवर्ष इस डेरा में लाखों श्रद्धालु आकर बाबा जी की आर्शीवाद प्राप्त करते हैं। 

इस वर्ष का डेरा बाबा बडभाग सिंह होली मेला का आयोजन 16 से 26 मार्च तक किया जा रहा है। 23 मार्च को झंडे की रस्म होगी जबकि 25 व 26 मार्च की मध्यरात्रि को पंजा साहिब का पवित्र प्रसाद श्रद्धालुओं को वितरित किया जाएगा। 
इस तरह हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना की शिवालिक पहाडियों में स्थापित इस पवित्र धार्मिक स्थान पर जहां लाखों भक्त प्रतिवर्ष बाबा जी का आर्शीवाद प्राप्त करते हैं तो वहीं बाबा जी बुरी आत्माओं व मानसिक बीमारी से पीडित लोगों को स्वस्थ जीवन जीने तथा नि:संतान परिवारों को फलने फूलने का आशीर्वाद भी प्रदान करते हैं।

  (साभार: दिव्य हिमाचल, 19 मार्च, 2016 को आस्था अंक तथा गिरिराज 11 मई, 2016 के अंक में प्रकाशित)

Sunday, 21 February 2016

हिमाचल प्रदेश में बेटियों को बचाने में जिला ऊना के लोगों ने की सकारात्मक पहल

भारत वर्ष की जनगणना-2011 के आंकडों के आधार पर पूरे देश में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति हजार लडक़ों के मुकाबले लड़कियों के कम लिंगानुपात वाले 100 जिलों में शुमार ऊना ने महज चार वर्षों के दौरान ही कम पैदा होती बेटियों के दाग को धो डाला है। वर्ष 2011 में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रदेश में सबसे कम शिशु लिंगानुपात 875 के मुकाबले वर्ष 2015 के अंत तक इस आंकडे को स्वास्थ्य विभाग के एक सर्वेक्षण के आधार पर बढ़ाकर 900 कर लिया है। जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर तीन वर्षों में शिशु लिंगानुपात की दर में 10 प्वाइंट की वृद्धि के निर्धारित लक्ष्य के मुकाबले गत चार वर्षों में 25 प्वाइंट की वृद्धि दर्ज होना एक सुखद अहसास है। जिला में बढते लिंगानुपात के इस आंकडे न केवल प्रदेश बल्कि पूरे देश भर में बेटियों को बचाने में एक मिशाल कायम की है। जिसके लिए न केवल जिला प्रशासन के प्रयासों की सराहना की जा सकती है बल्कि जिला ऊना के लोगों ने इस सामाजिक बुराई के खिलाफ जो एक जन आन्दोलन खडा कर इस सामाजिक समस्या से जिला को बाहर निकालने में अपना सकारात्मक योगदान दिया है वह न केवल प्रशसंनीय है बल्कि दूसरे राज्यों व जिलों के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत भी कहा जा सकता है।
भारत की जनगणना-2011 के आंकडों के अनुसार देश का शिशु लिंगानुपात वर्ष 1961 में 976 से घटकर वर्ष 2011 में 918 तक पहुंच गया है जो कि अब तक हुई जनगणनाओं में सबसे कम आंका गया है। ऐसे में समाज में बेटियों के प्रति नजरिए में आए बदलाव तथा भ्रूण में ही कन्याओं की बढ़ती हत्यों के प्रति जागरूकता लाने के लिए पूरे देश के सबसे प्रभावित चुनिंदा 100 जिलों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को आरंभ किया गया है। जिसके तहत हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला को भी शामिल किया गया है। गौरतलब है कि जिला ऊना का शिशु लिंगानुपात जनसंख्या आंकडे-2011 के आधार पर प्रतिहजार लडक़ों के मुकाबले 875 लडकियां हैं जो राष्ट्रीय अनुपात 918 के मुकाबले काफी कम आंका गया है। जिला में कम शिशु लिंगानुपात आंकडे के चलते बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को आरंभ किया गया है जिसके अब सकारात्मक नतीजे आने आरंभ हो गए हैं।
जिला में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की सफलता की कहानी बयान करते हुए उपायुक्त अभिषेक जैन ने बताया कि इस अभियान को चलाने के लिए जिला प्रशासन ने सर्वप्रथम तीन स्तरीय टॉस्क फोर्स जिला स्तर पर उपायुक्त, खंड स्तर पर एसडीएम जबकि पंचायत स्तर पर स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों की अध्यक्षता में गठित की गई। जिनके माध्यम से इस अभियान को जन-जन तक पहुंचाने एवं ज्यादा से ज्यादा लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए गांवों से लेकर जिला स्तर तक विभिन्न शिक्षण संस्थाओं सहित पंचायतों में कई तरह के जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। स्कूली स्तर पर बेटियों के ड्राप आउट को कम करने व शिक्षा ग्रहण करने के लिए बेटियों को प्रोत्साहित करने के दृष्टिगत दसवीं से ग्याहरवीं कक्षा में शत प्रतिशत छात्राओं की नामांकन दर हासिल करने वाले स्कूलों को क्रमश: पचास, तीस व दस-दस हजार रूपये के पुरस्कार प्रदान कर प्रोत्साहित किया गया। साथ ही जिला के सभी स्कूलों एवं आंगनवाडी केन्द्रों में प्रत्येक माह की दस तरीख को विशेष कन्या दिवस के तौर पर मनाया जाना, जिला में इस अभियान के साथ उद्योगों को जोडने के लिए सबसे अधिक महिला कामगारों को रोजगार प्रदान करने वाले तीन उद्योगों को भी क्रमश: इक्यावन, इक्तीस व इक्कीस हजार रूपये के प्रथम, द्वितीय व तृतीय ईनाम प्रदान करना, जिला की सभी 234 पंचायतों में पंचायत स्तर पर पैदा होने वाले बच्चों के आंकडों को प्रतिमाह सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करने के लिए गुडडी-गुडडा बोर्ड लगाना शामिल है। 
इसके अलावा इस अभियान से जन-जन को जोडने के लिए सोशल मीडिया का सहारा भी लिया गया। जिसके तहत बेटी बचाओ नाम से व्हाटस ऐप ग्रुप तथा फेसबुक पेज शामिल है। जिसमें विभिन्न विभागों के अधिकारियों, कर्मचारियों सहित समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को भी जोडा गया ताकि बेटियों के प्रति वह अपने विचारों को साझा कर सकें तथा बहुमूल्य सुझाव दे सकें। इसके अतिरिक्त जिला में पीसी पीएनडीटी एक्ट-1994 की कडाई से अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य विभाग को अल्ट्रासांऊड क्लीनिकों का समय-समय पर निरीक्षण करने तथा लिंग परीक्षण का कोई भी मामला संज्ञान में आने पर कडी कार्रवाई अमल में लाने के निर्देश अधिकारियों को दिए गए।साथ ही इस अभियान के तहत जिला में पैदा होने वाली लडकियों के जन्म पंजीकरण को समय पर दर्ज करवाना सुनिश्चित बनाया गया तथा मदर-चाईल्ड ट्रैकिंक सिस्टम को भी गंभीरता से लिया गया है। जिला के सभी स्कूलों में लडकियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था भी सुनिश्चित की गई है जबकि सभी आंगनबाडी केन्द्रों में शौचालय की सुविधा मुहैया करवाने पर बल दिया गया है। इसके अतिरिक्त बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए मीडिया व अन्य प्रचार प्रसार माध्यमों के साथ-साथ जिला के धार्मिक व आध्यात्मिक गुरूओं को भी शामिल गया है ताकि इस सामाजिक बुराई के खिलाफ लोगों को धार्मिक आस्थाओं के माध्यम से भी जागरूक बनाया जा सके। उनका कहना है कि हिमाचल प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व, राजनैतिक इच्छा शक्ति तथा जिला के लोगों की इस सामाजिक बुराई के खिलाफ जो एक सकारात्मक पहल हुई है, उसके परिणाम स्वरूप जिला ऊना ने कम पैदा होती बेटियों के दाग को धो दिया है।
ऐसे में अब उम्मीद की जा सकती है कि बेटियों को बचाने एवं समाज में एक सम्मानजनक स्थान प्रदान करने की दिशा में जिला ऊना के लोगों ने न केवल प्रदेश स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर जो एक सकारात्मक पहल की है वह भविष्य में भी कायम रहेगी तथा वह दिन दूर नहीं होगा जब जिला ऊना का शिशु लिंगानुपात पूरे देशभर में सर्वश्रेष्ठ आंका जाएगा।



(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 18 फरवरी, 2016 एवं दैनिक आपका फैसला 27 फरवरी, 2018 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)


Thursday, 7 January 2016

सरकार की मदद से मिलेगी बख्शो देवी के हौंसले को उड़ान

जिला युवा सेवाएं एवं खेल विभाग द्वारा ऊना के इंदिरा स्टेडियम में आयोजित जिला स्तरीय दौड प्रतियोगिता में अस्वस्थता के बावजूद कडाके की ठंड में नंगे पांव एवं बिना किसी सुविधा के दौडकर पांच हजार मीटर की रेस जीतने वाली बख्शो देवी ने साबित कर दिया कि जीवन में विजयी होने के लिए सुविधाओं से अधिक हौंसले की जरूरत होती है। पिछले दिनों आयोजित इस खेलकूद प्रतियोगिता के माध्यम से मीडिया की सुर्खियों में सामने आई जिला के हरोली उपमंडल के गांव ईसपुर निवासी बख्शो देवी के हौंसले को सलाम करने के लिए यूं तो प्रदेश व देश भर के कई लोगों के हाथ मदद के लिए आगे बढ़े हैं। बावजूद इसके प्रदेश सरकार ने इस बच्ची के जज्बे को पहचान कर इसे स्पोट्र्स हॉस्टल बिलासपुऱ में भर्ती करवाने का निर्णय लिया है ताकि प्रशिक्षण, मार्गदर्शन व आधुनिक सुविधाओं के अभाव में यह बच्ची अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन से किसी भी स्तर पर वंचित न रह जाए।
गरीब परिवार में पैदा हुई ईसपुर स्कूल की नौंवी कक्षा की इस छात्रा के सिर से जहां बाप का साया लगभग 9 वर्ष पहले की उठ चुका है तो वहीं माँ भी गरीबी के कारण जैसे तैसे मेहनत मजदूरी कर अपने बच्चों के लालन-पालन के साथ-साथ पढ़ाने का भी पूरा प्रयास कर रही है। अपने ननिहाल में नाना दाता राम के साथ चार बहनों व एक भाई वाले इस परिवार में मां के साथ जीवन के इस संघर्ष में बख्शो देवी अपना पूरा सहयोग प्रदान कर रही है। सुबह पांच बजे से हरदिन की शु़रूआत करने वाली बख्शो देवी घर के सभी जरूरी कार्यों को निपटाने में जहां मां विमला देवी का पूरा सहयोग करती है तो वहीं अपनी पढ़ाई में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ती है। आज भले ही वह समाज के इस ताने बाने में आर्थिक तौर पर गरीब जरूर है परन्तु जीवन में उंचाईयां हासिल करने में बख्शो का जज्बा किसी से भी कम नहीं है। बस जरूरत है उसके हौंसले को एक सही दिशा व मार्गदर्शन देने की जिसके लिए प्रदेश सरकार आगे आई है।
हमेशा से ही जिला ऊना की धरती ने न केवल राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न खेलों में प्रदेश को एक से बढक़र एक खिलाडी दिए हैं बल्कि अपनी खेल प्रतिभा के माध्यम से इन खिलाडियों ने समय-समय पर प्रदेश का नाम अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर रोशन करते रहे हैं। जिसमें राष्ट्रीय खेल हॉकी में भारतीय टीम के पूर्व कप्तान, ओलंपियन व अर्जुन तथा पदमश्री पुरस्कार से अलंकृत चरणजीत सिंह, ओलंपियन व अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित दीपक ठाकुर, भारतीय वालीबाल टीम के कप्तान रहे सुरजीत सिंह, हैंडबाल में हर्ष त्रिपाठी, शूटिंग में मोहिन्द्र सिंह जैसे खिलाडियों का नाम आते ही प्रदेश के हर व्यक्ति का सीना गर्व से ऊँचा हो जाता है। बात यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि ऊना के हरोली उपमंडल के खडड गांव का नाम जुबान पर आते ही फुटबाल में भी कई नामी खेल हस्तियां भी हमारे सामने आ जाती हैं जिन्होने राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश को एक पहचान दी है। आज जिला का खडड गांव पृूरे प्रदेश भर में फुटबाल नर्सरी के तौर पर मशहूर है तथा फुटबाल के प्रति यहां के लोगों के जज्बे को हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि यहां प्रत्येक परिवार का बच्चा चाहे वह लडक़ा या लडक़ी हो फुटबाल खेलने के लिए हमेशा लालायित रहता है।
प्रदेश सरकार ने भी फुटबाल की नर्सरी कहे जाने वाले खडड गांव में बच्चों को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की बेहतर प्रशिक्षण की सुविधाएं मिले इसके लिए स्थानीय विधायक एवं प्रदेश सरकार में उद्योग मंत्री मुक़ेश अग्हिोत्री के प्रयासों से यहां प्रदेश की पहली फुटबाल अकादमी स्थापित होने जा रही है। इस अकादमी के यहां स्थापित हो जाने से जहां नवोदित फुटबाल खिलाडियों को आधुनिक व बेहतर सुविधाएं सुनिश्चित होंगी तो वहीं खिलाडियों को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान बनाने का मौका भी मिलेगा।
ऐसे में इसी जिला के ईसपुर गांव की इस नवोदित धाविका बख्शो देवी के हौंसले व जज्बे को सलाम करते हुए प्रदेश सरकार ने इसके बेहतर भविष्य निर्माण का बीडा उठा लिया है। इन परिस्थितियों में अब हम यह कह सकते हैं कि वह दिन दूर नहीं है जब जिला ऊना हॉकी, वॉलीबाल, फुटबाल, हैंडबाल सहित अन्य खेल स्पर्धाओं में प्रदेश का नाम रोशन करने वाले खिलाडियों में धाविका बख्शो देवी के माध्यम से दौड प्रतियोगिता में भी प्रदेश व देश का नाम रोशन करेगा।


Tuesday, 29 December 2015

पंचायतों के संचालन एवं अहम निर्णयों में ग्राम सभा सुप्रीम

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पंचायतों के महत्वों को प्रतिपादित करते हुए कहा था, ''सच्चा लोकतंत्र वही है जो निचले स्तर पर लोगों की भागीदारी पर आधारित है। यह तभी संभव है जब गांव में रहने वाले आम आदमी को भी शासन के बारे में फैसला करने का अधिकार मिले।  इसी के दृष्टिगत देश में पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से शासन की शक्तियों के विकेन्द्रीकरण को महत्व प्रदान किया गया तथा पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त बनाने के लिए कई प्रभावी कदम भी उठाए गए। 
पंचायती राज व्यवस्था में संविधान के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम,1992 द्वारा इस दिशा में आगे बढ़ते हुए पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक अधिकार प्रदान कर तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था जिसमें ग्राम पंचायत, पंचायत समिति तथा जिला परिषद शामिल है के गठन का रास्ता प्रशस्त हुआ। इसमें भी महत्वपूर्ण बिन्दु यह रहा कि पंचायत स्तर पर ग्राम सभा को सुप्रीम दर्जा प्रदान किया गया। ऐसे में 73वें संविधान संशोधन के कारण न केवल पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से जन सहभागिता बढ़ाकर देश में लोकतंत्र की जडों को मजबूती प्रदान की गई बल्कि शक्तियों के विकेन्द्रीकरण के कारण देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का सशक्तिकरण भी हुआ है। आज इसी त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का नतीजा है कि देश में लगभग 30 लाख पंचायत प्रतिनिधि देश की कुल आबादी का लगभग 73 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
लेकिन अब प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या पंचायतों में विभिन्न कार्यों से लेकर अन्य महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार महज पंचायतों के चुने हुए प्रधानों व वार्ड सदस्यों के पास ही रहता है? या फिर पंचायत में आम मतदाता की भी कोई भूमिका रहती है। ऐसे में पंचायतों के सभी मतदाताओं को यह समझ लेना जरूरी है कि पंचायत संचालन महज चंद चुने हुए प्रतिनिधियों तक सीमित नहीं रहता है बल्कि संविधान के अनुच्छेद 243( क व ख) में ग्राम सभा को पंचायतों के संचालन व अहम निर्णय लेने के लिए सर्वोच्च संस्था माना गया है। जिसमें पंचायतों के वार्षिक बजट, आय-व्यय का विवरण से लेकर प्रशासनिक व विकास कार्यों से जुडे कई अहम निर्णय लेने की शक्ति ग्राम सभा के पास रहती है। 
यही नहीं ग्राम सभा प्रधानों, पंचायत सदस्यों से किसी भी प्रमुख क्रिया कलाप, सरकारी विकास कार्यक्रमों, आय-व्यय के संबंध में स्पष्टीकरण भी मांग सकती है। साथ ही ग्रामीण स्तर पर विकास कार्यों की देखरेख, जांच पडताल के लिए ग्राम सभा एक या एक से अधिक निगरानी समिति का गठन भी कर सकती है। इसके अतिरिक्त ग्राम सभा ग्रामीण शिक्षा, परिवार व सामुदायिक कल्याण कार्यक्रमों सहित ग्रामीण समाज में भाईचारा, एकता और सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने का कार्य भी करती है। भारत सरकार ने वर्ष 1999-2000 को ग्राम सभा वर्ष के तौर पर मनाने का निर्णय लिया ताकि पंचायती राज  व्यवस्था की महत्वपूर्ण इकाई ग्राम सभा को ज्यादा सशक्त व प्रभावी बनाया जा सके।
लेकिन ऐसे में अब यह प्रश्न खडा हो रहा है कि आखिर ग्राम सभा है क्या? वास्तव में पंचायत स्तर पर ग्राम सभा एक ऐसी संस्था है जिसका निर्माण उन व्यक्तियों से होता है जो उस गांव की चुनाव सूची में पंजीकृत हो या पंचायत के अंतर्गत गांवों के समूह जो पंचायत का चुनाव करते हैं। साधारण शब्दों में पंचायत गठन में शामिल प्रत्येक व्यस्क मतदाता ग्राम सभा का सदस्य है। ऐसे में किसी भी पंचायत के विकास कार्यों सहित सरकार की विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों के लाभार्थियों के चयन से लेकर क्रियान्वयन तक सभी महत्वपूर्ण निर्णय ग्राम सभा में ही लिए जाते हैं। इस तरह किसी भी पंचायत की सफलता वहां की जागरूक एवं निरन्तर क्रियाशील ग्राम सभा पर निर्भर करती है।
 ग्राम सभा की बैठक बुलाने तथा इसकी सूचना पहुंचाने की जिम्मेदारी पंचायत मुखिया की होती है। ग्राम सभा की बैठक का कोरम पूरा करने के लिए ग्राम सभा के कुल सदस्यों का 20वां हिस्सा हाजिर होना लाजमी होता है। कोरम पूरा न होने की स्थिति में बैठक अगले दिन या फिर किसी अन्य दिन तक स्थगित कर दी जाती है। अगली बार होने वाली ग्राम सभा की बैठक में कोरम पूरा होने के लिए कुल सदस्यों का 40वां हिस्सा होना जरूरी होता है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि ग्राम सभा के सभी सदस्य प्रत्येक तीन माह के दौरान आयोजित होने वाली ग्राम सभा की बैठकों में एक जागरूक नागरिक के नाते निरन्तर भाग लेना सुनिश्चित करें ताकि विकास से जुडे कार्यों पर बिना कोई विलंब गांव के हित में अहम निर्णय लिए जा सकें।
हिमाचल प्रदेश में अगले कुछेक दिनों में नई पंचायती राज संस्थाओं का गठन होने जा रहा है। ऐसे में हमारे लोकतंत्र की जड पंचायती राज व्यवस्था ज्यादा पारदर्शिता के साथ-साथ ग्राम सभा के प्रति जबावदेह व उत्तरदायी बने इसके लिए समाज का हर वर्ग सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ गांव व देश के विकास में लोकतंत्र के इस उत्सव में एक जागरूक नागरिक के नाते अपनी भागीदारी सुनिश्चित करे। अंत में यही कहेंगें-
अरमानों के पंख लगाकर भरना है परवाज,
नए सफर का नए जोश से करना है आगाज।
मंजिल मिल ही जाएगी है पूरा हमें यकीन,
बोल रहा है हमसे अपना उडने का अंदाज।।


(साभार: हिमाचल दिस वीक, 19 दिसम्बर, 2015 एवं दैनिक दिव्य हिमाचल, 30 दिसम्बर, 2015 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Tuesday, 1 December 2015

31 दिसम्बर तक हिमाचल के 53 नगरों का होगा केबल टीवी नेटवर्क डिजिटाइजेशन

भारत की जनगणना-2011 के आंकडों के अनुसार देश में 117 मिलियन यानि की 11.7 करोड घरों में टीवी की सुविधा उपलब्ध है। जबकि फीकी-केपीएमजी रिपोर्ट-2015 के अनुसार यह आंकडा बढक़र लगभग 168 मिलियन यानि की 16.8 करोड तक पहुंच गया है जो चीन व अमरीका के बाद भारत दुनिया का तीसरा बडा मुल्क है। इसी रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल टीवी उपभोक्ताओं का 59 फीसदी यानि की लगभग 9.9 करोड केबल टीवी, 24 फीसदी लगभग 4 करोड डीटीएच, 6 फीसदी यानि की एक करोड डीडी फ्री डिस व आइपीटीवी तथा 11 फीसदी यानि की 1.9 करोड परिवार डीडी टेरेस्ट्रेअल के साथ जुडे हुए हैं। 
ऐसे में देश के अन्दर केबल टीवी प्रसारण को केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) अधिनियम-1995 एवं केबल टीवी नेटवर्क नियम-1994 के तहत संचालित किया जा रहा है। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने अगस्त-2010 में केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) संशोधन अध्यादेश-2011 के तहत भारत में डिजिटल संबोधनीय केबल प्रणालियों का कार्यान्वयन को लेकर 4 विभिन्न चरणों में एनॉलाग केबल टीवी सेवाओं को डिजिटल संबोधनीय केबल टीवी प्रणाली में परिवर्तित करने की सिफारिश की है। जिसके तहत प्रथम चरण में 31 अक्तूबर, 2012 तक देश के चार महानगरों दिल्ली, मुंबई, कोलकत्ता और चेन्नई जबकि दूसरे चरण के अन्तर्गत 31 मार्च, 2013 तक देश के एक मिलियन आबादी वाले 38 शहरों को केबल टीवी डिजिटाइजेशन के तहत लाया गया है। जबकि तीसरे फेज मे 31 दिसम्बर, 2015 तक देश के सभी नगरीय क्षेत्रों तथा 31 दिसम्बर, 2016 तक देश के बचे हुए क्षेत्रों को केबल टीवी डिजिटल नेटवर्क के तहत लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
इसी प्रक्रिया के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश के 53 नगरीय क्षेत्रों के लगभग सवा लाख परिवारों को केबल टीवी डिजिटाइजेशन के साथ 31 दिसंबर, 2015 तक जोडा जाना लाजिमी है। जिसमें प्रदेश का नगर निगम क्षेत्र शिमला, 30 नगर परिषद क्षेत्र जिसमें रोहडू, रामपुर, ठियोग, सोलन, नालागढ़, नाहन, पांवटा साहिब, परवाणू, बददी, बिलासपुर, श्री नयनादेवी जी, घुमारवीं, मंडी, सुंदरनगर, नेरचौक, कुल्लू, मनाली, ऊना, संतोखगढ़, हमीरपुर, सुजानपुर, धर्मशाला, कांगडा, पालमपुर, नूरपुर, नगरोटा, देहरा, ज्वालाजी, चंबा व डल्हौजी तथा 22 नगर पंचायतों वाले क्षेत्र जिसमें नारकंडा, चौपाल, कोटखाई, जुब्बल, अर्की, सुन्नी, राजगढ़, तलाई, सरकाघाट, जोगेन्द्रनगर, रिवालसर, करसोग, भुन्तर, बन्जार, दौलतपुर, गगरेट, मैहतपुर, टाहलीवाल, नादौन, भोटा, बैजनाथ-पपरोला और चुवाडी शामिल है। ऐसे में प्रदेश के इन 53 नगरीय क्षेत्रों में केबल टीवी का प्रसारण कर रहे मल्टी सिस्टम आपरेटर (एमएसओ) तथा लोकल केबल आपरेटर (एलसीओ) को केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) अधिनियम-1995 एवं केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन्) संशोधन अधिनियम-2011 की धारा तीन के अन्तर्गत सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार तथा संबंधित प्रसारण क्षेत्र के पंजीकरण प्राधिकरण के पास पंजीकरण के लिए आवेदन करना तथा धारा चार(क) के तहत सभी केबल आपरेटर एमएसओ व एलसीओ को निर्धारित तिथि के बाद केबल टीवी का डिजिटल संबोधनीय प्रणाली(डीएएस) के तहत प्रसारण करना अनिवार्य है।
 यही नहीं केबल टीवी नेटवर्क पंजीकरण नियम 5 के तहत सभी स्थानीय केबल ऑपरेटर्स (एलसीओ) को अपने प्रसारण क्षेत्र के मुख्य डाकपाल तथा पंजीकरण नियम 11 सी के तहत मल्टी सिस्टम आपरेटर (एमएसओ) को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार में पंजीकरण करवाना अनिवार्य है। इसी तरह केबल टीवी नेटवर्क अधिनियम की धारा 5 के तहत प्रोग्राम कोड तथा धारा 6 के अनुसार निर्धारित विज्ञापन कोड लेना भी जरूरी है जिसके बिना केबल टीवी पर प्रसारण अवैध है। इसके अतिरिक्त धारा आठ के तहत केबल आपरेटर को दूरदर्शन के 25 चैनल जिसमें डीडी नेशनल, लोकसभा, राज्यसभा, डीडी न्यूज, ज्ञानदर्शन, स्पोटर्स, किसान चैनल शामिल है का प्रसारण करना भी अनिवार्य है। 
ऐसे में यदि केबल टीवी आपरेटर सरकार द्वारा निर्धारित तिथि तथा केबल टीवी नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत नियमों का पालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ केबल टीवी नेटवर्क विनियमन संशोधन अधिनियम-2011 के अनुसार प्राधिकृत अधिकारी जिसमें जिला मेजिस्ट्रेट (डीएम), उपमंडलीय दंडाधिकारी (एसडीएम) तथा पुलिस कमीश्नर शामिल है नियमों के विरूद्ध केबल टीवी प्रसारणकत्र्ता के उपकरणों को जब्त कर सकता है तथा नियमानुसार कडी कार्रवाई अमल में ला सकते हंै। 
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के अनुसार देश में प्रथम व द्वितीय चरण में हुए केबल टीवी डिजिटाइजेशन के कारण जहां उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्तायुक्त केबल टीवी प्रसारण की सुविधा सुनिश्चित हुई है तो वहीं मनपंसद चैनल देखने की आजादी भी मिली है। साथ ही केबल टीवी के डिजिटलाइजेशन के कारण सरकार के राजस्व में भी बतौर मनोरंजन कर तथा सेवा कर के तौर पर अभूतपूर्व बढ़ौतरी दर्ज हुई है। मंत्रालय के एक आकलन के आधार पर दिल्ली में यह वृद्धि 200 प्रतिशत तक जा पहुंची तो वहीं अहमदाबाद में भी यह आंकडा बढक़र लगभग 165 फीसदी तक पहुंच गया है। इसी तरह देश के अन्य शहरों में भी अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज हुई है।
ऐसे में हिमाचल प्रदेश के सभी 53 नगर निकाय क्षेत्रों में केबल टीवी का प्रसारण कर रहे केबल आपरेटर एमएसओ व एलसीओ केबल टीवी नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत अपना पंजीकरण करवाना सुनिश्चित करें ताकि प्रदेश के लाखों केबल टीवी उपभोक्ताओं को सेट टॉप बॉक्स के माध्यम से डिजिटल प्रसारण की सुविधा समयानुसार सुनिश्चित हो सके। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा निर्धारित तिथि 31 दिसम्बर, 2015 के बाद प्रदेश के इन सभी 53 नगरीय क्षेत्रों में एनॉलाग केबल टीवी सेवाएं समाप्त हो जाएंगी।


 (साभार: दिव्य हिमाचल, 18 नवम्बर, 2015 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)

Tuesday, 22 September 2015

एनसीटीई रेग्युलेशन-2014, शिक्षक पाठयक्रमों में गुणवता की ओर कदम

                                                                     
किसी भी देश की बुनियाद वहां की शिक्षा व्यवस्था तथा अध्यापकों के ऊपर निर्भर करती है। आज हमारे देश में शिक्षक प्रशिक्षण पाठयक्रमों जेबीटी, बीएड, एमएड सहित अन्य पाठयक्रमों का जो हाल है उससे हमें कागजी तौर पर ज्यादा तथा प्रैक्टीकल तौर पर कम गुणवता वाले प्रशिक्षित अध्यापक ही मिल पा रहे हैं। शिक्षाविदों एवं बुद्घिजीवियों के अनुसार जिसका प्रमुख कारण जहां शिक्षक प्रशिक्षण पाठयक्रमों का कम अवधि का होना, अधिकतर समय पाठयक्रम के लिए चयन प्रक्रिया व परीक्षा में ही निकल जाना तथा प्रैक्टीकल कार्यों के लिए कम समय मिलना तो वहीं कक्षा में बच्चों की जरूरतों तथा सामाजिक व मनोवैज्ञानिक तौर पर सशक्त अध्यापकों की कमी रहना सबसे प्रमुख कारण माना जाता रहा है।
जिससे जहां इसका असर हमारी शिक्षा व्यवस्था की महत्वपूर्ण बुनियाद स्कूली शिक्षा पर पडा है तो वहीं देश की बुनियादी शिक्षा की नींव भी कहीं न कहीं कमजोर हुई है। ऐसे में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा अध्यापक शिक्षण प्रशिक्षण पाठयक्रमों में गुणवता लाने तथा वर्तनमान कक्षा की जरूरतों एवं प्रैक्टीकल तौर पर ज्यादा अनुभवी अध्यापक तैयार करने के लिए एनसीटीई रेग्युलेशन-2014 के तहत कई महत्वपूर्ण बदलाव लाए गए हैं। जिसमें जहां एक वर्षीय बीएड पाठयक्रम को दो शैक्षणिक वर्षों में तबदील किया गया है तो वहीं चयन व परीक्षा अवधि को छोडकर शैक्षिक दिवसों को बढाकर 200 दिन प्रति वर्ष जबकि प्रति सप्ताह में कम से कम 36 घंटे निर्धारित किए गए है। इसके अलावा कक्षा में प्रशिक्षु अध्यापकों की उपस्थिति 80 प्रतिशत जबकि स्कूलबद्घ प्रशिक्षण (इंटर्नशिप) के लिए 90 प्रतिशत निर्धारित की गई है। साथ ही प्रशिक्षु अध्यापकों को प्रैक्टीकल तौर पर कक्षा में पढाने के कौशलों में ज्यादा निपुण बनाने के लिए स्कूल प्रशिक्षण (इंटर्नशिप) की अवधि को चार सप्ताह से बढाकर 20 सप्ताह किया गया है ताकि भावी अध्यापक कक्षा में पठन-पाठन की प्रक्रिया को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकें।
इसी तरह पूरे देश में जेबीटी, बीटीसी, डीएड सहित कई नामों से चल रहे प्रारंभिक अध्यापक प्रशिक्षण पाठयक्रम में भी कई बदलाव किए गए हैं। जिसमें जहां अब पूरे देश में केवल प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा (डीएलडी) के नाम से ही पाठयक्रम चलाया जाएगा तो वहीं पढने व पढाने के दिवस भी निर्धारित किए गए हैं। इसी तरह एमएड पाठयक्रम में भी बदलाव लाया गया है तथा एक वर्षीय पाठयक्रम को दो शैक्षणिक वर्षों में तबदील किया गया है ताकि देश में बेहतर शिक्षक प्रशिक्षकों के साथ-साथ अच्छे विश्लेषक, शिक्षा नीति निर्माता, योजनाकार, शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर प्रशासक तैयार किए जा सकें। 
यही नहीं शिक्षक पाठयक्रमों को अन्य व्यावसायिक पाठयक्रमों जैसे डॉक्टरी, इंजीनियरिंग, विधि, प्रबंधन, फॉर्मा इत्यादि के तौर पर विकसित करने तथा शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन स्तर के प्रोफैशनल तैयार करने के लिए चार वर्षी बीए-बीएड, बीएससी-बीएड, तीन वर्षीय एकीकृत बीएड-एमएड, चार वर्षीय प्रारंभिक शिक्षा में स्नातक पाठयक्रमों पर बल दिया गया है। इसके अतिरिक्त सेवारत एवं कम से कम दो वर्ष का अध्यापन में अनुभव रखने वालों के लिए तीन वर्षीय बीएड अंशकालिक पाठयक्रम भी तैयार किया गया है। 
साथ ही स्कूली स्तर पर कला शिक्षा व अभिनय कला को मजबूत आधार देने के लिए दो शैक्षिक वर्षों की अवधि वाला कला शिक्षा में डिप्लोमा (अभिनए कलाएं) एवं (दृश्य कलाएं) नाम से दो पाठयक्रम तैयार किए गए हंै। इन दोनों पाठयक्रमों के लिए एेसे अभ्यर्थी पात्र होंगें जिन्होंने दस जमा दो स्तर की कक्षा में संगीत, नृत्य, रंगमंच, पेंटिंग, ड्राईंग, ग्राफिक डिजाईन, मूर्तिकला, एप्लाइड कलाएं, हेरिटेज क्राफट के विषय सहित बाहरवीं कक्षा में कम से कम 50 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हों। यही नहीं प्रारंभिक बाल्यवस्था शिक्षा कार्यक्रम (डीईसीएड) को बदल कर पूर्व शिक्षा में डिप्लोमा (डीपीएसई) कर दिया गया है तथा इसकी अवधि भी दो शैक्षिक वर्ष निर्धारित की गई है। इस पाठयक्रम में बाल्यवस्था को केन्द्र में रखकर पाठयक्रम को निर्धारित करने पर बल दिया गया है ताकि बाल्यवस्था के दौरान बच्चे की जरूरतों व मनोवैज्ञानिक आधार पर बेहतर प्रशिक्षित अध्यापक तैयार हो सके। 
इसी तरह डीपीएड, बीपीएड और एमपीएड की शिक्षा हासिल करने के लिए अभ्यर्थी का खेलकूद गतिविधियों में भागीदारी को आवश्यक शर्त बना दिया गया है ताकि खेलकूद में रूची रखने वाले लोग ही शारीरिक शिक्षा मेें अध्यापक बन सकें।   
एनसीटीई रेग्युलेशन-2014 में डीएलडी, बीएड, एमएड, डीपीएड, बीपीएड, एमपीएड सहित अन्य एकीकृत पाठयक्रमों के लिए अध्यापकों की नियुक्ति बारे भी कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं ताकि शिक्षक प्रशिक्षण प्रदान करने वाले संस्थानों में तय मापदंडों के तहत ही उच्च शिक्षित अध्यापकों की तैनाती की जा सके। इसके अतिरिक्त देश के भावी अध्यापकों को बेहतर शिक्षा मिल सके इसके लिए आधारभूत संरचना मुहैया करवाने सहित कई अहम परिवर्तन किए गए हैं। साथ ही जहां पहले अध्यापक प्रशिक्षण पाठयक्रमों में 100 छात्रों पर एक युनिट तय थी उसे भी घटाकर 50 कर दिया गया है तथा छात्र-अध्यापक अनुपात को नए मापदंडों के तहत कम किया गया है ताकि प्रशिक्षु अध्यापकों को बेहतर प्रशिक्षण की सुविधा प्राप्त हो सके। 
अध्यापक प्रशिक्षण पाठयक्रमों को लेकर देश भर के विभिन्न राज्यों में विशेषकर निजी क्षेत्र में चल रहे संस्थानों में आधारभूत ढांचे की कमी सहित तय मापदंडों के तहत उच्च शिक्षित अध्यापकों की नियुक्ति न होने को लेकर शिक्षा जगत में काफी बवाल मचता रहा है तथा इस बारे मूलभूत संरचना जांचने वाली कमेटियों की कार्यप्रणाली तथा बार-बार अधोसंरचना को मजबूत करने के लिए दी जाने चेतावनियों के कारण शिक्षा ढांचा जस से तस बने रहने को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में एनसीटीई के नए रेग्युलेशन के तहत आधारभूत संरचना सहित अन्य नियमों की अवहेलना होने पर संबंधित संस्थानों के खिलाफ कडी कार्रवाई का प्रावधान किया गया है ताकि देश के भावी शिक्षक निर्माताआें के निर्माण में कोई कोताही न रहे। 
ऐसे में एनसीटीई रेग्युलेशन-2014 के नए प्रावधानों का जहां शिक्षाविद तथा शिक्षा जगत से जुडे बुद्घिजीवी स्वागत कर रहे हैं तो वहीं देश का आम अभिभावक भी यह उम्मीद लगाए बैठा है कि उनके बच्चों के भविष्य निर्माण के लिए बेहतर अध्यापक मिल पाएंगें। लेकिन अब प्रश्न यही खडा हो रहा है कि क्या एनसीटीई नए रेग्युलेशन के तहत नए नियमों का पालन करवा पाती है या नही यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा। परन्तु अध्यापक प्रशिक्षण पाठयक्रमों की गुणवता की ओर एनसीटीई द्वारा उठाया गया यह कदम काबिले तारिफ है तथा उम्मीद है कि अब देश की भावी पीढी को स्कूली शिक्षा का पाठ पढाने वाले ज्यादा बेहतरीन अध्यापक मिल पाएंगें।

(साभार: दिव्य हिमाचल, 10 जून, 2015 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)


Friday, 17 April 2015

जिला ऊना में बेटियों को बचाने के लिए घर-घर तक पहुंचेगा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान

भारत वर्ष की जनगणना-2011 के आंकडों के आधार पर पूरे देश में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति हजार लडक़ों के मुकाबले लड़कियों के लिंगानुपात में कमी दर्ज हुई है। आंकडों के अनुसार यह लिंगानुपात वर्ष 1961 में 976 से वर्ष 2011 में 918 तक पहुंच गया है जो कि अब तक हुई जनगणनाओं में सबसे कम आंका गया है। ऐसे में समाज में बेटियों के प्रति नजरिए में आए बदलाव तथा भ्रूण में ही कन्याओं की बढ़ती हत्यों के प्रति जागरूकता लाने के लिए पूरे देश के सबसे प्रभावित चुनिंदा 100 जिलों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को आरंभ किया गया है। 
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का प्रमुख लक्ष्य जहां बालिका जन्मोत्सव मनाना और उसे शिक्षा दिलाना है तो वहीं जेंडर आधारित लिंग चयन में समापन का निवारण करना, बालिका की उत्तरजीविता और संरक्षण तथा बालिका की शिक्षा सुनिश्चित करना इस अभियान का प्रमुख उदेश्य है। इसके अतिरिक्त समाज में बालिकाओं के जन्म को प्रोत्साहित करने के लिए सभी ग्राम पंचायतों में गुडडा गुडडी बोर्ड लगाकर प्रत्येक माह संबंधित गांव के बालक-बालिका अनुपात को दर्शाया जाएगा। साथ ही ग्राम पंचायत हर लडकी के जन्म होने पर उसके परिवार को तोहफे भेजेगी,प्रतिवर्ष कम से कम एक दर्जन लडकियों का जन्म दिवस मनाया जाएगा। यही नहीं जहां सभी ग्राम पंचायतों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की शपथ दिलाई जाएगी तो वहीं जिस ग्राम पंचायत में बालक-बालिका अनुपात बढ़ता है तो उस ग्राम पंचायत को सम्मानित भी किया जाएगा। जबकि किसी भी गांव में बाल विवाह होने पर संबंधित ग्राम पंचायत प्रधान को जिम्मेदार माना जाएगा और उसके खिलाफ कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। 
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत हमारे समाज में बेटियों के प्रति सामाजिक मानसिकता को बदल कर लडकियों एवं महिलाओं के प्रति हो रहे भेदभाव को समाप्त कर समाज की मुख्यधारा में जोडकर उन्हे आगे बढ़ाया जाएगा। आज भले ही हम अपनी कामयाबी के कितने ही झंडे गाडने के दावे कर रहे हों लेकिन हमारे समाज में बढ़ती कन्या भ्रूण हत्याएं तथा बालिकाओं के प्रति दोयम दर्जे के व्यवहार ने यह साबित कर दिया है आज भी हम मानवीय दृष्टिकोण से काफी पिछडे हुए हैं। जिसमें बात चाहे बालिकाओं के प्रति शिक्षा की हो या फिर गर्भ में ही कन्या भ्रूण हत्या करने की हो। ऐसे में बालिकाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव लाने तथा जागरूकता पैदा करने के लिए देश भर के चुुनिंदा सौ जिलों में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को आरंभ किया गया है। 
इस अभियान के तहत हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला को भी शामिल किया गया है। जनगणना-2011 के आंकडों के अनुसार ऊना जिला देश के उन 100 जिलों में शामिल है जिन्हे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के साथ जोडा गया है। जनसंख्या आंकडे-2011 के आधार पर जिला में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रतिहजार लडक़ों के मुकाबले 875 लडकियां हैं जो राष्ट्रीय अनुपात 918 के मुकाबले काफी कम है। जिला में इस अभियान को उपायुक्त ऊना की अगुआई में चलाया जाएगा जिसमें महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, शिक्षा तथा पुलिस विभाग सहित गैर सरकारी एवं स्वयं सेवी संस्थों से मिलकर घर-घर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का संदेश पहुंचाया जाएगा। 
उपायुक्त ऊना अभिषेक जैन ने बताया कि जिला ऊना में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए एक्शन प्लान तैयार कर लिया गया है तथा इसके बेहतर कार्यान्वयन के लिए जिला स्तर पर उपायुक्त, खंड स्तर पर एसडीएम जबकि पंचायत स्तर पर स्थानीय पंचायत प्रधान की अध्यक्षता में तीन स्तरीय टॉस्क फोर्स गठित की गई है। जिला में स्कूली स्तर पर बेटियों के ड्राप आउट को कम करने व शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूली स्तर पर विशेष प्रयास किए जाएंगे। लडकियों की शिक्षा में शतप्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करने तथा आसपास के क्षेत्र में लडकियों को शिक्षा हासिल करने लिए के प्रेरित करने वाले स्कूल को जिला स्तर पर एक लाख रूपये का ईनाम भी दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त प्रत्येक माह ही दस तरीख को विशेष कन्या दिवस के तौर पर मनाया जाएगा। 
उपायुक्त ने बताया कि इस अभियान के तहत समाज के प्रत्येक व्यक्ति को जोडने के लिए सोशल मीडिया का सहारा भी लिया जाएगा तथा बेटी बचाओ नाम से वाहटस ऐप ग्रुप बनाया जाएगा। जिसमें विभिन्न विभागों के अधिकारियों, कर्मचारियों के अतिरिक्त समाज से आम जन को भी जोडा जाएगा ताकि वह बेटियों के प्रति अपने विचारों को साझा कर सकें तथा अपने बहुमूल्य सुझाव दे सकें। साथ ही जिला के उद्योगों में हजारों कर्मचारी कार्यरत हैं ऐसे में उद्योगों को भी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के साथ जोडा जाएगा।
डीसी ने बताया कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को जन-जन तक पहुंचाने तथा सफल बनाने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, महिला एवं बाल विकास, पुलिस, पंचायतीराज विभागों तथा पंचायत प्रतिनिधियों के साथ मिलकर इस अभियान को एक जनआंदोलन बनाया जाएगा। उन्होने बताया कि जिला में पीसी पीएनडीटी एक्ट के तहत अवैध तौर पर कन्या भ्रूण हत्या का मामला पकडने पर दी जाने वाली दस हजार रूपये की ईनाम राशि के अतरिक्त संबंधित पुलिस स्टेशन को 21 हजार रूपये की प्रोत्साहन राशि अलग से प्रदान की जाएगी। साथ ही इस अभियान के तहत जिला में पैदा होने वाली लडकियों के जन्म पंजीकरण को समय पर दर्ज करवाना सुनिश्चित बनाया जाएगा तथा मदर-चाईल्ड ट्रैकिंक सिस्टम को भी गंभीरता से लिया जाएगा। साथ ही मदर-चाईल्ड प्रोटेक्शन कॉर्ड को भी गंभीरता से बनाया जाएगा तथा समय पर अपडेट किया जाएगा। इसके अतिरिक्त जिला के सभी स्कूलों में लडकियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाएगी जबकि सभी आंगनबाडी केन्द्रों में शौचालय की सुविधा मुहैया करवाने पर बल दिया जाएगा। 
उन्होने बताया कि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए मीडिया व अन्य प्रचार प्रसार माध्यमों के साथ-साथ जिला के धार्मिक व आध्यात्मिक गुरूओं को भी शामिल किया जाएगा। उपायुक्त ने बताया कि जिला के विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए पीसी पीएनडीटी एक्ट की कडाई से अनुपालना सुनिश्चित की जाएगी तथा अवहेलना करने वालों के विरूद्ध सख्त कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। इस अभियान के साथ समाज के प्रत्येक वर्ग को जोडने तथा जागरूक करने के लिए विभिन्न स्तरों पर जागरूकता शिविर भी लगाए जाएंगें तथा उनका पूरा सहयोग लिया जाएगा ताकि बेटियों के प्रति व्याप्त इस सामाजिक विषमता को जल्दी ठीक किया जा सके।

(साभार: दिव्य हिमाचल, 7 अप्रैल, 2015 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)  

Wednesday, 26 November 2014

श्रद्धालुओं व पर्यटकों के लिए बेहतरीन स्थान है श्री रेणुका जी

हिमाचल प्रदेश अपने प्राकृतिक सौंदर्य धार्मिक स्थानों के चलते केवल राष्ट्रीय बल्कि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी पर्यटन की दृष्टि से ख्याति प्राप्त है। जिसके चलते जहां प्रदेश में प्रतिवर्ष लाखों देशी विदेशी सैलानी भ्रमण हेतु यहां पहुंचते हैं तो वहीं पर्यटकों के आवागमन के चलते प्रदेश को करोडों रुपयों की आमदन भी होती है। प्रदेश में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सैंकडों धार्मिक प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थान है। जिनमें से एक है जिला सिरमौर का श्री रेणुका जी यह स्थान जहां प्रदेश की सबसे बडी प्राकृतिक झील के नाते पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बिन्दु है तो वहीं भगवान परशुराम की जन्मस्थली होने के नाते एक पवित्र धार्मिक स्थान भी है।
रेणुका झील लगभग 3 वर्ग कि0मी0 के दायरे में फैली है। इस झील के चारों ओर हरे भरे जंगल तथा इसमें चहचाहते पक्षियों की मधुर आवाजें मन को मोह लेती हैं। सबसे अहम पहेलु यह है कि जहां झील का शीतल निर्मल जल पर्यटकों को अपनी ओर आर्किषत करता है तो वहीं दूर से देखने पर झील की आकृति एक सोई हुई महिला जैसी प्रतीत होती है। किंवदतियों के अनुसार भगवान परशुराम की मां रेणुका जब तत्कालिन राम सरोवर में जलमग्न हुई तो इसका आकार एक निद्रामग्न नारी के रुप में परिवर्तित हो गया। तभी से ही इस झील के जल को भी गंगा जल के समान पवित्र माना गया है। झील में पवित्र स्नान हेतु स्नानाघाट भी बनें है। जिसमें महिलाओं पुरुषों को अलग-अलग से पवित्र स्नान की व्यवस्था है। झील में अठखेलियां करती मछलियां तथा विचरण करते कछुए भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। रेणुका का एक अन्य आकर्षण है यहां का लघु चिडियाघर और लायन सफारी। जहां पर हम एशियाई बब्बर शेरों] काले भालू] तेंदुओं] हिरण आदि को देख सकते हैं। यहां पर झील के चारों ओर लगभग 3 कि0मी0 के दायरे में स्थापित रेणुका वन्य प्राणी अभयारण्य भी पर्यटकों को अपनी ओर आर्किषत करता है। जहां पर लंगूर] धोरल] उल्लू] लाल मुर्गे] मुर्गाबी] मोर] बतख इत्यादि भी देखे जा सकते हैंै। रेणुका झील में बोटिंग की सुविधा भी है] जिसके चलते पर्यटक यहां के प्राकृतिक सौंदर्य का ज्यादा आनंद उठा सकते हैं।

                                                 इसके अलावा पर्यटक धार्मिक दृष्टि से यहां पर भगवान परशुराम का मंदिर(जिसे सिरमौर रियासत के तत्कालिन राजा सुरेन्द्र विक्रम प्रकाश ने बनाया था ¼मां रेणुका की प्रतिमा] परशुराम शीला] परशुराम ताल] सिरमौर रियासत की तत्कालिन राज नर्तकी कुब्जा देवी के नाम पर स्थापित कुब्जा पवेलियन) यहां देखने योग्य स्थान हैं। घने पेडों की छाया तथा भगवान परशुराम मां रेणुका के आर्शीवाद से मन को एक आलौकिक शांति का भी अनुभव मिलता है। यहां आने वाले पर्यटक घण्टों ध्यान लगाते हैं। प्रतिवर्ष नवम्बर महीने में इस पवित्र स्थल पर देवोत्थान एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक विशाल अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का श्री रेणुका जी मेला मनाया जाता है। यहां से लगभग 10 कि0मी0 की दूरी पर गांव जामूकोटी में भगवान परशुराम का मंदिर है जहां जाकर भगवान परशुराम के दर्शन करने के साथ-साथ यहां से लगभग 3 कि0मी0 आगे पहाड़ी की चोटी पर पहुंचकर महर्षि जमदग्नि की तपोस्थली तपे-का-टिला भी देखने योग्य स्थान हैं। इस स्थान से जहां आसपास का विहंगम दृष्य देखा जा सकता है तो वहीं यहां का शुद्ध, शांत स्वच्छ वातावरण यहां बार-बार आने को पे्ररित करता है।

पौराणिक कथानुसार भगवान परशुराम कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां से मिलने श्रीरेणुकाजी में पधारते हैं। कहते हैं कि प्राचीन काल में आर्यवर्त में हैहवंषी क्षत्रीय राज्य राज करते थे तथा भृगुवंशी ब्राहमण उनके राज पुरोहित थे। इसी भृगुवंशी के महर्षि ऋचिक के घर महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ। इनका विवाह इक्ष्वाकु कुल के ऋषि रेणु की कन्या रेणुका से हुआ। महर्षि जमदग्नि सपरिवार इसी क्षेत्र में तपे का टिला] जो वर्तमान में जामुकोटी में स्थित है] रहने लगे। वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीय को मां रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का जन्म हुआ। इन्हे भगवान विष्णु का छठा अवतार भी माना जाता है। कथानुसार महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी] जिसे पाने के लिए सहóबाहु ने महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी। हत्या का समाचार सुनकर मां रेणुका शोकवश राम सरोवर में कूद गई] जो आज रेणुका झील के नाम से प्रसिद्ध है। उधर महेन्द्र पर्वत पर तपस्या में लीन भगवान परशुराम को जब मां रेणुका की मौत का पता चला तो क्रोधित होकर भगवान परशुराम सहóबाहु को ढ़ूंढ़ने निकल पड़े। तत्पश्चात भगवान परशुराम ने अपनी योगशक्ति से पिता महर्षि जमदग्नि माता रेणुका को जीवित कर दिया। भगवान परशुराम ने महेन्द्रपर्वत  पर लौटने से पूर्व मां रेणुका को वचन दिया कि वह प्रतिवर्ष कार्तिक मास की दशमी को डेढ़ दिन के लिए रेणुकाजी में आया करेंगें] तभी से लेकर आजतक इस पावन तीर्थ पर प्रतिवर्ष रेणुका मेला बड़ी धूमधाम से यहां मनाया जाता है। मेले में प्रदेश क्षेत्र की संस्कृति को देखने जानने का सुअवसर भी मिलता है। पहले यह मेला राजस्तरीय था परन्तु वर्ष 2011 में प्रदेश सरकार ने इसे अन्र्तराष्ट्रीय स्तर का बना दिया है। जबकि इससे पहले प्रदेश सरकार ने वर्ष 1984 में इस क्षेत्र के बेहतर विकास हेतू श्री रेणुकाजी विकास बोर्ड की स्थापना भी की है। यहां ठहरने हेतू हिमाचल पर्यटन विकास निगम का होटल] श्री रेणुका जी विकास बोर्ड का विश्राम गृह] वन विभाग का विश्राम गृह प्रमुख है। इसके अलावा यहां से लगभग 02 कि0मी0 की दूरी पर ददाहू में लोक निर्माण विभाग पंचायती राज विभाग के विश्राम गृह के साथ-साथ कई निजी होटल भी हैं।

यह स्थान वर्ष भर सडक मार्ग से जुडा हुआ है। यहां से जिला मुख्यालय नाहन लगभग 40 कि0मी0] पांवटा साहिब 60 कि0मी0] चण्डीगढ 100 कि0मी0 तथा देहरादून लगभग 105 कि0मी0 दूर है।



(साभार: आपका फैसला 22 अक्तूबर, 2014, दिव्य हिमाचल 6 नवम्बर, 2014 को संपादकीय पृष्ठ तथा गिरिराज 12 नवम्बर में प्रकाशित)