राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पंचायतों के महत्वों को प्रतिपादित करते हुए कहा था, ''सच्चा लोकतंत्र वही है जो निचले स्तर पर लोगों की भागीदारी पर आधारित है। यह तभी संभव है जब गांव में रहने वाले आम आदमी को भी शासन के बारे में फैसला करने का अधिकार मिले। इसी के दृष्टिगत देश में पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से शासन की शक्तियों के विकेन्द्रीकरण को महत्व प्रदान किया गया तथा पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त बनाने के लिए कई प्रभावी कदम भी उठाए गए।
पंचायती राज व्यवस्था में संविधान के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम,1992 द्वारा इस दिशा में आगे बढ़ते हुए पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक अधिकार प्रदान कर तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था जिसमें ग्राम पंचायत, पंचायत समिति तथा जिला परिषद शामिल है के गठन का रास्ता प्रशस्त हुआ। इसमें भी महत्वपूर्ण बिन्दु यह रहा कि पंचायत स्तर पर ग्राम सभा को सुप्रीम दर्जा प्रदान किया गया। ऐसे में 73वें संविधान संशोधन के कारण न केवल पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से जन सहभागिता बढ़ाकर देश में लोकतंत्र की जडों को मजबूती प्रदान की गई बल्कि शक्तियों के विकेन्द्रीकरण के कारण देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था का सशक्तिकरण भी हुआ है। आज इसी त्रि-स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का नतीजा है कि देश में लगभग 30 लाख पंचायत प्रतिनिधि देश की कुल आबादी का लगभग 73 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
लेकिन अब प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या पंचायतों में विभिन्न कार्यों से लेकर अन्य महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार महज पंचायतों के चुने हुए प्रधानों व वार्ड सदस्यों के पास ही रहता है? या फिर पंचायत में आम मतदाता की भी कोई भूमिका रहती है। ऐसे में पंचायतों के सभी मतदाताओं को यह समझ लेना जरूरी है कि पंचायत संचालन महज चंद चुने हुए प्रतिनिधियों तक सीमित नहीं रहता है बल्कि संविधान के अनुच्छेद 243( क व ख) में ग्राम सभा को पंचायतों के संचालन व अहम निर्णय लेने के लिए सर्वोच्च संस्था माना गया है। जिसमें पंचायतों के वार्षिक बजट, आय-व्यय का विवरण से लेकर प्रशासनिक व विकास कार्यों से जुडे कई अहम निर्णय लेने की शक्ति ग्राम सभा के पास रहती है।
यही नहीं ग्राम सभा प्रधानों, पंचायत सदस्यों से किसी भी प्रमुख क्रिया कलाप, सरकारी विकास कार्यक्रमों, आय-व्यय के संबंध में स्पष्टीकरण भी मांग सकती है। साथ ही ग्रामीण स्तर पर विकास कार्यों की देखरेख, जांच पडताल के लिए ग्राम सभा एक या एक से अधिक निगरानी समिति का गठन भी कर सकती है। इसके अतिरिक्त ग्राम सभा ग्रामीण शिक्षा, परिवार व सामुदायिक कल्याण कार्यक्रमों सहित ग्रामीण समाज में भाईचारा, एकता और सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने का कार्य भी करती है। भारत सरकार ने वर्ष 1999-2000 को ग्राम सभा वर्ष के तौर पर मनाने का निर्णय लिया ताकि पंचायती राज व्यवस्था की महत्वपूर्ण इकाई ग्राम सभा को ज्यादा सशक्त व प्रभावी बनाया जा सके।
लेकिन ऐसे में अब यह प्रश्न खडा हो रहा है कि आखिर ग्राम सभा है क्या? वास्तव में पंचायत स्तर पर ग्राम सभा एक ऐसी संस्था है जिसका निर्माण उन व्यक्तियों से होता है जो उस गांव की चुनाव सूची में पंजीकृत हो या पंचायत के अंतर्गत गांवों के समूह जो पंचायत का चुनाव करते हैं। साधारण शब्दों में पंचायत गठन में शामिल प्रत्येक व्यस्क मतदाता ग्राम सभा का सदस्य है। ऐसे में किसी भी पंचायत के विकास कार्यों सहित सरकार की विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों के लाभार्थियों के चयन से लेकर क्रियान्वयन तक सभी महत्वपूर्ण निर्णय ग्राम सभा में ही लिए जाते हैं। इस तरह किसी भी पंचायत की सफलता वहां की जागरूक एवं निरन्तर क्रियाशील ग्राम सभा पर निर्भर करती है।
ग्राम सभा की बैठक बुलाने तथा इसकी सूचना पहुंचाने की जिम्मेदारी पंचायत मुखिया की होती है। ग्राम सभा की बैठक का कोरम पूरा करने के लिए ग्राम सभा के कुल सदस्यों का 20वां हिस्सा हाजिर होना लाजमी होता है। कोरम पूरा न होने की स्थिति में बैठक अगले दिन या फिर किसी अन्य दिन तक स्थगित कर दी जाती है। अगली बार होने वाली ग्राम सभा की बैठक में कोरम पूरा होने के लिए कुल सदस्यों का 40वां हिस्सा होना जरूरी होता है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि ग्राम सभा के सभी सदस्य प्रत्येक तीन माह के दौरान आयोजित होने वाली ग्राम सभा की बैठकों में एक जागरूक नागरिक के नाते निरन्तर भाग लेना सुनिश्चित करें ताकि विकास से जुडे कार्यों पर बिना कोई विलंब गांव के हित में अहम निर्णय लिए जा सकें।
हिमाचल प्रदेश में अगले कुछेक दिनों में नई पंचायती राज संस्थाओं का गठन होने जा रहा है। ऐसे में हमारे लोकतंत्र की जड पंचायती राज व्यवस्था ज्यादा पारदर्शिता के साथ-साथ ग्राम सभा के प्रति जबावदेह व उत्तरदायी बने इसके लिए समाज का हर वर्ग सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ गांव व देश के विकास में लोकतंत्र के इस उत्सव में एक जागरूक नागरिक के नाते अपनी भागीदारी सुनिश्चित करे। अंत में यही कहेंगें-
अरमानों के पंख लगाकर भरना है परवाज,
नए सफर का नए जोश से करना है आगाज।
मंजिल मिल ही जाएगी है पूरा हमें यकीन,
बोल रहा है हमसे अपना उडने का अंदाज।।
(साभार: हिमाचल दिस वीक, 19 दिसम्बर, 2015 एवं दैनिक दिव्य हिमाचल, 30 दिसम्बर, 2015 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
(साभार: हिमाचल दिस वीक, 19 दिसम्बर, 2015 एवं दैनिक दिव्य हिमाचल, 30 दिसम्बर, 2015 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
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