किसी भी देश की बुनियाद वहां की शिक्षा व्यवस्था तथा अध्यापकों के ऊपर निर्भर करती है। आज हमारे देश में शिक्षक प्रशिक्षण पाठयक्रमों जेबीटी, बीएड, एमएड सहित अन्य पाठयक्रमों का जो हाल है उससे हमें कागजी तौर पर ज्यादा तथा प्रैक्टीकल तौर पर कम गुणवता वाले प्रशिक्षित अध्यापक ही मिल पा रहे हैं। शिक्षाविदों एवं बुद्घिजीवियों के अनुसार जिसका प्रमुख कारण जहां शिक्षक प्रशिक्षण पाठयक्रमों का कम अवधि का होना, अधिकतर समय पाठयक्रम के लिए चयन प्रक्रिया व परीक्षा में ही निकल जाना तथा प्रैक्टीकल कार्यों के लिए कम समय मिलना तो वहीं कक्षा में बच्चों की जरूरतों तथा सामाजिक व मनोवैज्ञानिक तौर पर सशक्त अध्यापकों की कमी रहना सबसे प्रमुख कारण माना जाता रहा है।
जिससे जहां इसका असर हमारी शिक्षा व्यवस्था की महत्वपूर्ण बुनियाद स्कूली शिक्षा पर पडा है तो वहीं देश की बुनियादी शिक्षा की नींव भी कहीं न कहीं कमजोर हुई है। ऐसे में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा अध्यापक शिक्षण प्रशिक्षण पाठयक्रमों में गुणवता लाने तथा वर्तनमान कक्षा की जरूरतों एवं प्रैक्टीकल तौर पर ज्यादा अनुभवी अध्यापक तैयार करने के लिए एनसीटीई रेग्युलेशन-2014 के तहत कई महत्वपूर्ण बदलाव लाए गए हैं। जिसमें जहां एक वर्षीय बीएड पाठयक्रम को दो शैक्षणिक वर्षों में तबदील किया गया है तो वहीं चयन व परीक्षा अवधि को छोडकर शैक्षिक दिवसों को बढाकर 200 दिन प्रति वर्ष जबकि प्रति सप्ताह में कम से कम 36 घंटे निर्धारित किए गए है। इसके अलावा कक्षा में प्रशिक्षु अध्यापकों की उपस्थिति 80 प्रतिशत जबकि स्कूलबद्घ प्रशिक्षण (इंटर्नशिप) के लिए 90 प्रतिशत निर्धारित की गई है। साथ ही प्रशिक्षु अध्यापकों को प्रैक्टीकल तौर पर कक्षा में पढाने के कौशलों में ज्यादा निपुण बनाने के लिए स्कूल प्रशिक्षण (इंटर्नशिप) की अवधि को चार सप्ताह से बढाकर 20 सप्ताह किया गया है ताकि भावी अध्यापक कक्षा में पठन-पाठन की प्रक्रिया को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकें।
इसी तरह पूरे देश में जेबीटी, बीटीसी, डीएड सहित कई नामों से चल रहे प्रारंभिक अध्यापक प्रशिक्षण पाठयक्रम में भी कई बदलाव किए गए हैं। जिसमें जहां अब पूरे देश में केवल प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा (डीएलडी) के नाम से ही पाठयक्रम चलाया जाएगा तो वहीं पढने व पढाने के दिवस भी निर्धारित किए गए हैं। इसी तरह एमएड पाठयक्रम में भी बदलाव लाया गया है तथा एक वर्षीय पाठयक्रम को दो शैक्षणिक वर्षों में तबदील किया गया है ताकि देश में बेहतर शिक्षक प्रशिक्षकों के साथ-साथ अच्छे विश्लेषक, शिक्षा नीति निर्माता, योजनाकार, शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर प्रशासक तैयार किए जा सकें।
यही नहीं शिक्षक पाठयक्रमों को अन्य व्यावसायिक पाठयक्रमों जैसे डॉक्टरी, इंजीनियरिंग, विधि, प्रबंधन, फॉर्मा इत्यादि के तौर पर विकसित करने तथा शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन स्तर के प्रोफैशनल तैयार करने के लिए चार वर्षी बीए-बीएड, बीएससी-बीएड, तीन वर्षीय एकीकृत बीएड-एमएड, चार वर्षीय प्रारंभिक शिक्षा में स्नातक पाठयक्रमों पर बल दिया गया है। इसके अतिरिक्त सेवारत एवं कम से कम दो वर्ष का अध्यापन में अनुभव रखने वालों के लिए तीन वर्षीय बीएड अंशकालिक पाठयक्रम भी तैयार किया गया है।
साथ ही स्कूली स्तर पर कला शिक्षा व अभिनय कला को मजबूत आधार देने के लिए दो शैक्षिक वर्षों की अवधि वाला कला शिक्षा में डिप्लोमा (अभिनए कलाएं) एवं (दृश्य कलाएं) नाम से दो पाठयक्रम तैयार किए गए हंै। इन दोनों पाठयक्रमों के लिए एेसे अभ्यर्थी पात्र होंगें जिन्होंने दस जमा दो स्तर की कक्षा में संगीत, नृत्य, रंगमंच, पेंटिंग, ड्राईंग, ग्राफिक डिजाईन, मूर्तिकला, एप्लाइड कलाएं, हेरिटेज क्राफट के विषय सहित बाहरवीं कक्षा में कम से कम 50 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हों। यही नहीं प्रारंभिक बाल्यवस्था शिक्षा कार्यक्रम (डीईसीएड) को बदल कर पूर्व शिक्षा में डिप्लोमा (डीपीएसई) कर दिया गया है तथा इसकी अवधि भी दो शैक्षिक वर्ष निर्धारित की गई है। इस पाठयक्रम में बाल्यवस्था को केन्द्र में रखकर पाठयक्रम को निर्धारित करने पर बल दिया गया है ताकि बाल्यवस्था के दौरान बच्चे की जरूरतों व मनोवैज्ञानिक आधार पर बेहतर प्रशिक्षित अध्यापक तैयार हो सके।
इसी तरह डीपीएड, बीपीएड और एमपीएड की शिक्षा हासिल करने के लिए अभ्यर्थी का खेलकूद गतिविधियों में भागीदारी को आवश्यक शर्त बना दिया गया है ताकि खेलकूद में रूची रखने वाले लोग ही शारीरिक शिक्षा मेें अध्यापक बन सकें।
एनसीटीई रेग्युलेशन-2014 में डीएलडी, बीएड, एमएड, डीपीएड, बीपीएड, एमपीएड सहित अन्य एकीकृत पाठयक्रमों के लिए अध्यापकों की नियुक्ति बारे भी कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं ताकि शिक्षक प्रशिक्षण प्रदान करने वाले संस्थानों में तय मापदंडों के तहत ही उच्च शिक्षित अध्यापकों की तैनाती की जा सके। इसके अतिरिक्त देश के भावी अध्यापकों को बेहतर शिक्षा मिल सके इसके लिए आधारभूत संरचना मुहैया करवाने सहित कई अहम परिवर्तन किए गए हैं। साथ ही जहां पहले अध्यापक प्रशिक्षण पाठयक्रमों में 100 छात्रों पर एक युनिट तय थी उसे भी घटाकर 50 कर दिया गया है तथा छात्र-अध्यापक अनुपात को नए मापदंडों के तहत कम किया गया है ताकि प्रशिक्षु अध्यापकों को बेहतर प्रशिक्षण की सुविधा प्राप्त हो सके।
अध्यापक प्रशिक्षण पाठयक्रमों को लेकर देश भर के विभिन्न राज्यों में विशेषकर निजी क्षेत्र में चल रहे संस्थानों में आधारभूत ढांचे की कमी सहित तय मापदंडों के तहत उच्च शिक्षित अध्यापकों की नियुक्ति न होने को लेकर शिक्षा जगत में काफी बवाल मचता रहा है तथा इस बारे मूलभूत संरचना जांचने वाली कमेटियों की कार्यप्रणाली तथा बार-बार अधोसंरचना को मजबूत करने के लिए दी जाने चेतावनियों के कारण शिक्षा ढांचा जस से तस बने रहने को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में एनसीटीई के नए रेग्युलेशन के तहत आधारभूत संरचना सहित अन्य नियमों की अवहेलना होने पर संबंधित संस्थानों के खिलाफ कडी कार्रवाई का प्रावधान किया गया है ताकि देश के भावी शिक्षक निर्माताआें के निर्माण में कोई कोताही न रहे।
ऐसे में एनसीटीई रेग्युलेशन-2014 के नए प्रावधानों का जहां शिक्षाविद तथा शिक्षा जगत से जुडे बुद्घिजीवी स्वागत कर रहे हैं तो वहीं देश का आम अभिभावक भी यह उम्मीद लगाए बैठा है कि उनके बच्चों के भविष्य निर्माण के लिए बेहतर अध्यापक मिल पाएंगें। लेकिन अब प्रश्न यही खडा हो रहा है कि क्या एनसीटीई नए रेग्युलेशन के तहत नए नियमों का पालन करवा पाती है या नही यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा। परन्तु अध्यापक प्रशिक्षण पाठयक्रमों की गुणवता की ओर एनसीटीई द्वारा उठाया गया यह कदम काबिले तारिफ है तथा उम्मीद है कि अब देश की भावी पीढी को स्कूली शिक्षा का पाठ पढाने वाले ज्यादा बेहतरीन अध्यापक मिल पाएंगें।
(साभार: दिव्य हिमाचल, 10 जून, 2015 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
(साभार: दिव्य हिमाचल, 10 जून, 2015 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
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