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Saturday, 28 November 2020

जसवाल ट्राऊट मछली फार्म शानन का दीवाना है पूरा उत्तरी भारत

 ट्राऊट मछली उत्पादन के साथ-साथ हैचरी से भी हो रही खूब कमाई

प्रदेश भर में 1166 रेसवेज के माध्यम से हो रहा है 600 मीट्रिक टन ट्राउट का उत्पादन

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर के शानन स्थित जसवाल ट्राउट मछली फॉर्म की पहुंच न केवल हिमाचल प्रदेश बल्कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित पूरे उत्तरी भारत में है। मजेदार बात तो यह है कि इस फॉर्म की तैयार मछली के दीवाने देशी व विदेशी पर्यटकों सहित देश की जानी मानी राजनैतिक हस्तियां भी रहीं हैं। ट्राऊट मछली उत्पादन में जसवाल ट्राउट फॉर्म शानन प्रदेश में एक अहम स्थान रखता है। 

जब इस संबंध में जसवाल ट्राउट फॉर्म के संचालक दोनों भाईयों राजीव व संजीव जसवाल से बातचीत की तो उन्होने बताया कि उनका यह फॉर्म उनके परिवार के लिए स्वरोजगार का एक बड़ा माध्यम बन गया है। इस फॉर्म से न केवल उनके परिवार का भरण-पोषण हो रहा है बल्कि आज वे प्रतिवर्ष लाखों रूपये का ट्राउट मछली का कारोबार भी कर पा रहे हैं। 

उन्होने बताया कि वर्ष 2001 में मात्र कुछ दिनों के लिए कॉर्प मछली पालन से शुरू किया गया यह कार्य आज ट्राउट मछली पालन के तौर पर एक बहुत बड़े कारोबार में तबदील हो गया है। यहां की भौगोलिक परिस्थितयों को देखते हुए ट्राउट मछली उत्पादन की ओर कदम बढ़ाए जिसके न केवल बेहतर परिणाम सामने आए हैं बल्कि उनका यह स्वरोजगार का जरिया धीरे-धीरे एक बड़े कारोबार में बढ़ता गया है। ट्राउट मछली पालन को उस समय नए पंख लग गए जब उन्होने इसकी हैचरी में भी सफलता प्राप्त कर ली। वर्ष 2003 में ट्राउट हैचरी तैयार होने से उनके मछली उत्पादन के काम को ओर अधिक बल मिला तथा अब दोनों भाई मिलकर इसे आगे बढ़ा रहे हैं।

उनका कहना है कि उनकी हैचरी में 98 प्रतिशत तक की सफलता मिली है जिससे उन्हे आय का अन्य बड़ा स्त्रोत मिल गया है। हैचरी को आधुनिक तकनीक प्रदान करते हुए उन्होने तुर्की से लाए गए वर्टिकल इंक्युबेटर स्थापित किये हैं जो संभवता पूरे देश में यह पहला प्रयास है। उन्होने बताया कि ट्राउट हैचरी में किये गए बेहतर प्रयासों को चलते उन्हे वर्ष 2019 में बिलासपुर में आयोजित कार्यक्रम में बेस्ट हैचरी आवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। 

दिल्ली सहित पूरे उत्तरी भारत में है जसवाल ट्राउट मछली फॉर्म की पहुंच

संजीव व राजीव जसवाल का कहना है कि उनकी ट्राउट की पहुंच राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित उत्तर के भारत के अनेक राज्यों जिसमें चंडीगढ़, पंजाब व उत्तराखंड तक है। वर्तमान में वे प्रतिवर्ष लाखों रूपये तक का ट्राउट का उत्पादन कर रहे हैं। इसके अलावा हैचरी से भी प्रतिवर्ष औसतन 3 से 4 लाख रूपये तक की आय भी प्राप्त हो रही है। इनका कहना है कि हैचरी से तैयार बीज जहां आसपास के किसान प्राप्त करते हैं तो वहीं उत्तराखंड राज्य में भी भेजा जाता है। उनकी ट्राउट उत्पादन का एक बड़ा भाग इसी क्षेत्र के आसपास बिक जाता है जबकि मांग होने पर इसे दूसरे राज्यों व बड़े शहरों को भी भेजा जाता है।

उत्तराखंड का मत्स्य विभाग भी कर रहा है शोध

जसवाल ट्राउट फॉर्म में उत्तराखंड राज्य का मत्स्य विभाग ठंडेप पानी पर ट्राउट मछली पर विशेष शोध कार्य भी कर रहा है। शोध कार्य के दौरान मछलियों के लिए खुराक, ट्रिपलोयड़ के साथ-साथ बीज का भी विशेष वितरण किया जाता है।

मछली पालन के लिए सरकार से टैंक निर्माण को मिली है आर्थिक मदद

उन्होने बताया कि ट्राउट मछली पालन के लिए सरकार से टैंक निर्माण को अनुदान भी मिला है। वर्ष 2003-04 के दौरान आठ टैंक का निर्माण किया गया है जिसके लिए प्रति टैंक 20 हजार रूपये बतौर अनुदान सरकार ने उपलब्ध करवाए हैं। मछली पालन के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने पर वर्ष 2014 में चौंतड़ा में आयोजित किसान मेले में उन्हे प्रगतिशील किसान अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है जिसमें उन्हे 10 हजार रूपये का नकद पुरस्कार मिला है।

ट्राउट मछली पालन में है स्वरोजगार की अपार संभावनाएं

संजीव व राजीव जसवाल का कहना है कि देश में बड़े पैमाने पर ट्राउट दूसरे देशों से यहां मंगवाई जाती है। यदि हमारे प्रदेश का शिक्षित युवा ट्राउट मछली पालन को स्वरोजगार के तौर पर अपनाता है तो इस क्षेत्र में आगे बढऩे की अपार संभावनाएं हैं। इनका कहना है कि कोरोना महामारी के चलते लगे लॉकडाउन के दौर में उन्हे कुछ समय के लिए जरूर दिक्कत का सामना करना पड़ा लेकिन अब पुन: धीरे-धीरे उनका यह काम आगे बढऩे लगा है। कोरोना महामारी के इस कठिन दौर में रोजगार खो चुके युवा यहां की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए ट्राउट मछली पालन से जुडक़र न केवल घर बैठे स्वरोजगार के नए अवसर का सृजन कर सकते हैं बल्कि उनकी आर्थिकी को बल देने में भी यह क्षेत्र सक्षम है। 

क्या कहते हैं अधिकारी


निदेशक मात्स्यिकी विभाग हिमाचल प्रदेश एसपी मैहता का कहना है कि प्रदेश में 31 मार्च, 2020 तक ट्राउट मछली पालन से 592 मछुआरे जुड़े हुए हैं जो 1166 रेसवेज से 600 मीट्रिक टन ट्राउट का उत्पादन कर रहे हैं। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के सात जिलों चंबा, कांगड़ा, मंडी, कुल्लू, किन्नौर, सिरमौर तथा शिमला में ट्राउट मछली पालन किया जा रहा है। उन्होने बताया कि प्रधान मंत्री संपदा मत्स्य योजना के तहत सरकार ने प्रति इकाई अनुदान राशि को एक लाख रूपये तक बढ़ा दिया है जिससे अब किसानों को अनुदान के तौर अधिक धनराशि प्राप्त होगी। 

उन्होने बताया कि ट्राउट मछली पालन के क्षेत्र में तीन लाख रूपये तक की युनिट पर अब सामान्य परिवारों को 40 प्रतिशत की दर से 1.20 लाख जबकि महिला एवं अनुसूचित जाति व जनजाति परिवार को 60 प्रतिशत की दर  से 1.80 लाख रूपये तक का अनुदान टैंक निर्माण को प्राप्त होगा। इसके अतिरिक्त बीज, खुराक व परिवहन सहायता के तौर पर सामान्य परिवार को एक लाख रूपये जबकि महिला एवं एससी व एसटी परिवार को डेढ़ लाख रूपये तक का अनुदान जो अढ़ाई लाख प्रति युनिट के तहत दिया जा रहा है। साथ ही ट्राउट हैचरी निर्माण की प्रति इकाई 50 लाख रूपये की लागत के आधार पर सामान्य परिवार को 40 प्रतिशत की दर से अधिकत्तम 20 लाख जबकि महिला तथा एससी व एसटी परिवार को 60 प्रतिशत की दर से अधिकत्तम 30 लाख रूपये तक के सरकारी अनुदान का प्रावधान किया गया है जो पहले 25 लाख रूपये प्रति इकाई था। उन्होने बताया कि प्रधान मंत्री संपदा मत्स्य योजना के तहत प्रदेश से लगभग 60 करोड़ रूपये के प्रोजैक्टस को मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजा गया था जिसमें से 40 करोड़ रूपये के प्रोजैक्टस को स्वीकृति प्राप्त हो गई है। 

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