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Wednesday, 21 August 2024

दिल्ली व चंडीगढ़ भी चख रहा दिलदार सिंह के मछली फार्म में तैयार रेनबो ट्राउट का स्वाद

जोगिन्दर नगर के दिलदार सिंह प्रतिवर्ष 3 से 4 टन ट्राउट मछली का कर रहे उत्पादन      

 वर्ष 2008 में शुरू किया ट्राउट मछली पालन का कार्य, अब प्रतिवर्ष कमा रहे 3 से 4 लाख रुपये

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल की ग्राम पंचायत मसौली के गांव पहलून निवासी 57 वर्षीय दिलदार सिंह के लिये ट्राउट मछली पालन पारिवारिक आजीविका का मुख्य आधार बना है। वर्ष 2008 में महज दो टैंक निर्माण से ट्राउट मछली पालन का शुरू किया उनका यह कार्य आज भी जारी है। वर्तमान में वे प्रतिवर्ष लगभग 3 से 4 टन रेनबो ट्राउट मछली का उत्पादन कर औसतन 3 से 4 लाख रूपये की शुद्ध आय सृजित कर रहे हैं। दिलदार सिंह के ट्राउट मछली फार्म में तैयार रेनबो मछली का स्वाद हिमाचल प्रदेश के प्रमुख शहरों शिमला, धर्मशाला, पर्यटन नगरी मनाली के अतिरिक्त दिल्ली, चंडीगढ़ जैसे बड़े शहर भी चख रहे हैं।
बड़े ही हंसमुख व खुशमिजाज व्यक्तित्व के धनी दिलदार सिंह का कहना है कि अस्सी के दशक से ही वे खेती-बाड़ी व पशुपालन से जुड़े रहे हैं। उन्होंने जीवन के शुरूआती दिनों में सब्जी एवं दुग्ध उत्पादन के माध्यम से परिवार की आर्थिकी को सुदृढ़ बनाने का कार्य शुरू किया। वर्ष 2008 में जब उन्हें मत्स्य पालन विभाग की योजना की जानकारी मिली तो उन्होंने ट्राउट मछली पालन की दिशा में कदम बढ़ाए। सरकार की ओर से दो टैंक निर्माण एवं फीड इत्यादि के लिए उन्हें लगभग 55 हजार रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ। इसके बाद वर्ष 2012-13 में दो तथा वर्ष 2016-17 में भी दो अतिरिक्त टैंक निर्माण के लिये सरकार से आर्थिक मदद प्राप्त हुई। शुरूआती दौर में वे प्रतिवर्ष लगभग 1 टन ट्राउट मछली का उत्पादन करने लगे। इसके बाद यह आंकड़ा बढक़र डेढ़ से दो टन तथा वर्तमान में लगभग 3 से 4 टन तक पहुंच चुका है। उनका कहना है कि रेनबो ट्राउट मछली पालन से वे प्रति वर्ष औसतन 3 से 4 लाख रूपये की शुद्ध आय सृजित कर पा रहे हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 में ट्राउट मछली की हैचरी भी तैयार करने में कामयाबी पाई है। अब वे ट्राउट मछली का बीज स्वयं तैयार करते हैं तथा आसपास के अन्य किसानों एवं मछली उत्पादकों को भी उपलब्ध करवाते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग का ट्राउट मछली उत्पादन पर भी पड़ रहा प्रभाव, बीमारियों का बना रहता है खतरा
दिलदार सिंह का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग का असर ट्राउट मछली उत्पादन पर भी देखा जा रहा है। जल्दी पिघलते ग्लेशियरों के कारण गत वर्षों के मुकाबले पानी की ठंडक लगातार कम हो रही है। पानी का तापमान बढ़ने से ट्राउट मछलियों के विकास में असर पड़ता है। इसके अलावा फंगस सहित अन्य बीमारियों का भी खतरा बना रहता है। मानसून मौसम में भारी बरसात के कारण दूसरे अन्य खतरे भी ट्राउट मछली उत्पादन में बाधक बनते हैं।
वर्ष 2014 में सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से हो चुके हैं सम्मानित, ट्राउट मछली पालन में हासिल किया है प्रशिक्षण
दिलदार सिंह को वर्ष 2014 में प्रगतिशील किसान के नाते जिला स्तर पर सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। इस दौरान उन्हें 10 हजार रुपये का नकद इनाम तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया है। उन्होंने वर्ष 2012 में शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, भीमताल, उत्तराखंड से ट्राउट मछली पालन में तीन दिन का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है। इसके अतिरिक्त पतलीकूहल ट्राउट मछली फार्म में वर्ष 2018, वर्ष 2014 व 2017 में महाशीर मछली प्रजनन फार्म, जोगिन्दर नगर में भी तीन-तीन दिन का प्रशिक्षण भी शामिल है।
बेहतर विपणन व प्रशिक्षण की मिले सुविधा तो ट्राउट मछली उत्पादन में आ सकता है क्रांतिकारी बदलाव
दिलदार सिंह कहते हैं कि उन्हें ट्राउट मछली को बड़े बाजारों तक पहुंचाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वे कहते हैं कि बस के माध्यम से ही दिल्ली, चंडीगढ़ सहित प्रदेश के अन्य क्षेत्रों को सप्लाई दी जाती है। यदि ट्राउट मछली विपणन की दिशा में कुछ मदद मिले तो इस क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं। उन्होंने ट्राउट मछली पालन को लेकर समय-समय पर गहन प्रशिक्षण की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
दिलदार सिंह का कहना है कि ट्राउट मछली पालन के क्षेत्र में रोजगार की बेहतरीन संभावनाएं मौजूद हैं। उन्होंने सरकार की योजना का लाभ उठाते हुए शिक्षित युवाओं से ट्राउट मछली उत्पादन के क्षेत्र में जुडऩे का भी आह्वान किया है।
क्या कहते हैं अधिकारी
सहायक निदेशक मात्स्यिकी विभाग मंडी नीतू सिंह का कहना है कि प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत सरकार ट्राउट मछली पालन इकाई स्थापित करने को आर्थिक मदद प्रदान कर रही है। उनका कहना है कि एक ट्राउट मछली उत्पादन इकाई को क्रियाशील बनाने के लिए जलाशय सहित अन्य जरूरतों के लिये अनुमानित साढ़े पांच लाख रुपये का खर्च आता है। जिसके लिये सरकार कुल लागत का सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को 40 प्रतिशत जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं महिलाओं के लिये 60 प्रतिशत का अनुदान मुहैया करवा रही है।
उन्होंने बताया कि जिला मंडी में 80 किसानों व मत्स्य पालकों के माध्यम से 178 ट्राउट मछली उत्पादन इकाईयां कार्य कर रही हैं। जिनके माध्यम से प्रतिवर्ष लगभग 50 मीट्रिक टन ट्राउट मछली का उत्पादन हो रहा है।    
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Saturday, 28 November 2020

जसवाल ट्राऊट मछली फार्म शानन का दीवाना है पूरा उत्तरी भारत

 ट्राऊट मछली उत्पादन के साथ-साथ हैचरी से भी हो रही खूब कमाई

प्रदेश भर में 1166 रेसवेज के माध्यम से हो रहा है 600 मीट्रिक टन ट्राउट का उत्पादन

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर के शानन स्थित जसवाल ट्राउट मछली फॉर्म की पहुंच न केवल हिमाचल प्रदेश बल्कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित पूरे उत्तरी भारत में है। मजेदार बात तो यह है कि इस फॉर्म की तैयार मछली के दीवाने देशी व विदेशी पर्यटकों सहित देश की जानी मानी राजनैतिक हस्तियां भी रहीं हैं। ट्राऊट मछली उत्पादन में जसवाल ट्राउट फॉर्म शानन प्रदेश में एक अहम स्थान रखता है। 

जब इस संबंध में जसवाल ट्राउट फॉर्म के संचालक दोनों भाईयों राजीव व संजीव जसवाल से बातचीत की तो उन्होने बताया कि उनका यह फॉर्म उनके परिवार के लिए स्वरोजगार का एक बड़ा माध्यम बन गया है। इस फॉर्म से न केवल उनके परिवार का भरण-पोषण हो रहा है बल्कि आज वे प्रतिवर्ष लाखों रूपये का ट्राउट मछली का कारोबार भी कर पा रहे हैं। 

उन्होने बताया कि वर्ष 2001 में मात्र कुछ दिनों के लिए कॉर्प मछली पालन से शुरू किया गया यह कार्य आज ट्राउट मछली पालन के तौर पर एक बहुत बड़े कारोबार में तबदील हो गया है। यहां की भौगोलिक परिस्थितयों को देखते हुए ट्राउट मछली उत्पादन की ओर कदम बढ़ाए जिसके न केवल बेहतर परिणाम सामने आए हैं बल्कि उनका यह स्वरोजगार का जरिया धीरे-धीरे एक बड़े कारोबार में बढ़ता गया है। ट्राउट मछली पालन को उस समय नए पंख लग गए जब उन्होने इसकी हैचरी में भी सफलता प्राप्त कर ली। वर्ष 2003 में ट्राउट हैचरी तैयार होने से उनके मछली उत्पादन के काम को ओर अधिक बल मिला तथा अब दोनों भाई मिलकर इसे आगे बढ़ा रहे हैं।

उनका कहना है कि उनकी हैचरी में 98 प्रतिशत तक की सफलता मिली है जिससे उन्हे आय का अन्य बड़ा स्त्रोत मिल गया है। हैचरी को आधुनिक तकनीक प्रदान करते हुए उन्होने तुर्की से लाए गए वर्टिकल इंक्युबेटर स्थापित किये हैं जो संभवता पूरे देश में यह पहला प्रयास है। उन्होने बताया कि ट्राउट हैचरी में किये गए बेहतर प्रयासों को चलते उन्हे वर्ष 2019 में बिलासपुर में आयोजित कार्यक्रम में बेस्ट हैचरी आवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। 

दिल्ली सहित पूरे उत्तरी भारत में है जसवाल ट्राउट मछली फॉर्म की पहुंच

संजीव व राजीव जसवाल का कहना है कि उनकी ट्राउट की पहुंच राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित उत्तर के भारत के अनेक राज्यों जिसमें चंडीगढ़, पंजाब व उत्तराखंड तक है। वर्तमान में वे प्रतिवर्ष लाखों रूपये तक का ट्राउट का उत्पादन कर रहे हैं। इसके अलावा हैचरी से भी प्रतिवर्ष औसतन 3 से 4 लाख रूपये तक की आय भी प्राप्त हो रही है। इनका कहना है कि हैचरी से तैयार बीज जहां आसपास के किसान प्राप्त करते हैं तो वहीं उत्तराखंड राज्य में भी भेजा जाता है। उनकी ट्राउट उत्पादन का एक बड़ा भाग इसी क्षेत्र के आसपास बिक जाता है जबकि मांग होने पर इसे दूसरे राज्यों व बड़े शहरों को भी भेजा जाता है।

उत्तराखंड का मत्स्य विभाग भी कर रहा है शोध

जसवाल ट्राउट फॉर्म में उत्तराखंड राज्य का मत्स्य विभाग ठंडेप पानी पर ट्राउट मछली पर विशेष शोध कार्य भी कर रहा है। शोध कार्य के दौरान मछलियों के लिए खुराक, ट्रिपलोयड़ के साथ-साथ बीज का भी विशेष वितरण किया जाता है।

मछली पालन के लिए सरकार से टैंक निर्माण को मिली है आर्थिक मदद

उन्होने बताया कि ट्राउट मछली पालन के लिए सरकार से टैंक निर्माण को अनुदान भी मिला है। वर्ष 2003-04 के दौरान आठ टैंक का निर्माण किया गया है जिसके लिए प्रति टैंक 20 हजार रूपये बतौर अनुदान सरकार ने उपलब्ध करवाए हैं। मछली पालन के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने पर वर्ष 2014 में चौंतड़ा में आयोजित किसान मेले में उन्हे प्रगतिशील किसान अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है जिसमें उन्हे 10 हजार रूपये का नकद पुरस्कार मिला है।

ट्राउट मछली पालन में है स्वरोजगार की अपार संभावनाएं

संजीव व राजीव जसवाल का कहना है कि देश में बड़े पैमाने पर ट्राउट दूसरे देशों से यहां मंगवाई जाती है। यदि हमारे प्रदेश का शिक्षित युवा ट्राउट मछली पालन को स्वरोजगार के तौर पर अपनाता है तो इस क्षेत्र में आगे बढऩे की अपार संभावनाएं हैं। इनका कहना है कि कोरोना महामारी के चलते लगे लॉकडाउन के दौर में उन्हे कुछ समय के लिए जरूर दिक्कत का सामना करना पड़ा लेकिन अब पुन: धीरे-धीरे उनका यह काम आगे बढऩे लगा है। कोरोना महामारी के इस कठिन दौर में रोजगार खो चुके युवा यहां की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए ट्राउट मछली पालन से जुडक़र न केवल घर बैठे स्वरोजगार के नए अवसर का सृजन कर सकते हैं बल्कि उनकी आर्थिकी को बल देने में भी यह क्षेत्र सक्षम है। 

क्या कहते हैं अधिकारी


निदेशक मात्स्यिकी विभाग हिमाचल प्रदेश एसपी मैहता का कहना है कि प्रदेश में 31 मार्च, 2020 तक ट्राउट मछली पालन से 592 मछुआरे जुड़े हुए हैं जो 1166 रेसवेज से 600 मीट्रिक टन ट्राउट का उत्पादन कर रहे हैं। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के सात जिलों चंबा, कांगड़ा, मंडी, कुल्लू, किन्नौर, सिरमौर तथा शिमला में ट्राउट मछली पालन किया जा रहा है। उन्होने बताया कि प्रधान मंत्री संपदा मत्स्य योजना के तहत सरकार ने प्रति इकाई अनुदान राशि को एक लाख रूपये तक बढ़ा दिया है जिससे अब किसानों को अनुदान के तौर अधिक धनराशि प्राप्त होगी। 

उन्होने बताया कि ट्राउट मछली पालन के क्षेत्र में तीन लाख रूपये तक की युनिट पर अब सामान्य परिवारों को 40 प्रतिशत की दर से 1.20 लाख जबकि महिला एवं अनुसूचित जाति व जनजाति परिवार को 60 प्रतिशत की दर  से 1.80 लाख रूपये तक का अनुदान टैंक निर्माण को प्राप्त होगा। इसके अतिरिक्त बीज, खुराक व परिवहन सहायता के तौर पर सामान्य परिवार को एक लाख रूपये जबकि महिला एवं एससी व एसटी परिवार को डेढ़ लाख रूपये तक का अनुदान जो अढ़ाई लाख प्रति युनिट के तहत दिया जा रहा है। साथ ही ट्राउट हैचरी निर्माण की प्रति इकाई 50 लाख रूपये की लागत के आधार पर सामान्य परिवार को 40 प्रतिशत की दर से अधिकत्तम 20 लाख जबकि महिला तथा एससी व एसटी परिवार को 60 प्रतिशत की दर से अधिकत्तम 30 लाख रूपये तक के सरकारी अनुदान का प्रावधान किया गया है जो पहले 25 लाख रूपये प्रति इकाई था। उन्होने बताया कि प्रधान मंत्री संपदा मत्स्य योजना के तहत प्रदेश से लगभग 60 करोड़ रूपये के प्रोजैक्टस को मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजा गया था जिसमें से 40 करोड़ रूपये के प्रोजैक्टस को स्वीकृति प्राप्त हो गई है।