भारतीय लोकतंत्र में देश के 18 वर्ष या इससे अधिक आयु वर्ग के प्रत्येक नागरकि को मताधिकार के माध्यम से सरकार चुनने का अधिकार प्रदान किया है। मतदाता निष्पक्ष व निर्भय होकर उम्मीदवारों का चयन कर सकें इसके लिए चुनाव आयोग को एक स्वतंत्र एजैंसी के तौर पर स्थापित किया गया है। परन्तु जैसे जैसे हमारा लोकतंत्र परिपक्वता की तरफ बढ़ रहा है वैसे-वैसे चुनावों के दौरान धन-बल का प्रभाव भी बढ़ता रहा है। जिससे न केवल मतदाताओं में सही व योग्य उम्मीदवारों के चुनाव में बाधा उत्पन्न होती है बल्कि चुनावी प्रक्रिया के दौरान भ्रम की स्थिति भी पैदा होती है। लेकिन यही प्रभाव यदि मीडिय़ा में इस्तेमाल होने लगे तो लोकतंत्र के उदेश्यों की पूर्ति न केवल असंभव हो जाएगी बल्कि चुनावों के माध्यम से निष्पक्ष तौर पर उम्मीदवारों के चयन को लेकर मतदाताओं में भ्रम की स्थिति भी पैदा होती है।
मीडिया समाज का आईना होता है तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया में मीडिया जनमत तैयार करने में बहुत बडी भूमिका अदा करता है। मीडिया के माध्यम से न केवल मतदाताओं को उम्मीदवारों के संबंध में सही सूचनाओं की जानकारी उपलब्ध होती है बल्कि सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं अन्य महत्वपूर्ण विषयों को लेकर भी एक जनमत तैयार करता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से चुनावों के दौरान मीडिया में पेड न्यूज का चलन तेजी से बढ़ा है। जिससे न केवल भारतीय लोकतंत्र की आत्मा पर प्रहार हुआ है बल्कि पेड न्यूज निष्पक्ष मतदान में एक बाधक बनकर सामने आई है। वास्तव में पेड न्यूज के माध्यम से धन-बल या अन्य प्रकार के प्रलोभन देकर एक उम्मीदवार अपने पक्ष में न केवल समाचारों को बढ़ा चढ़ाकर प्रसारण व प्रकाशन करवाता है बल्कि ऐसे भ्रामक समाचारों से लोगों में सही निर्णय लेने को लेकर भ्रम की स्थिति भी उत्पन्न होती है। भारतीय लोकतंत्र में पेड न्यूज के बढ़ते चलन को लेकर वर्ष 2010 में विभिन्न राजनैतिक दलों की मांग तथा भारतीय प्रेस परिषद के प्रयासों से पेड न्यूज को परिभाषित करते हुए निगरानी रखने के लिए चुनाव आयोग ने मीडिया प्रमाणीकरण एवं निगरानी समिति (एमसीएमसी) का गठन करने का निर्णय लिया।
लोकसभा व विधानसभा चुनावों के दौरान मीडिया में पेड न्यूज पर नजर रखने के लिए मीडिया प्रमाणीकरण एवं निगरानी समिति (एमसीएमसी) को राज्य व जिला स्तर पर गठित किया जाता है। एमसीएमसी का प्रमुख उदेश्य जहां प्रिंट व इलैक्ट्रानिक मीडिया में उम्मीदवारों द्वारा अपने-अपने पक्ष में प्रसारित किए जाने वाले विज्ञापनों के साथ-साथ पेड न्यूज का गहनता से विश्लेषण करना है तो वहीं उम्मीदवारों द्वारा प्रचार के लिए पोस्टर, पंफलेट, हैंडबिल, होर्र्डिंग्स, बैनर इत्यादि को इस्तेमाल करने से पहले जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1951 की धारा 127ए के तहत अनुमोदन करना भी है। जबकि वर्ष 2013 में इंटरनेट व सोशल मीडिया को भी एमसीएमसी के दायरें में लाया गया है।
चुनावी प्रक्रिया के दौरान उम्मीदवारों द्वारा मीडिया में अपने-अपने पक्ष में धन या अन्य प्रलोभन देकर बढ़ा चढ़ाकर समाचारों को प्रकाशित करवाना पेड न्यूज के दायरे में आता है। ऐसे में मीडिया की भूमिका न केवल महत्वपूर्ण हो जाती है बल्कि बिना मिलावट एवं भेदभाव एक स्वस्थ एवं साफ सुथरा जनमत तैयार करने में भी मीडिया बहुत बडा कार्य करता है। इन परिस्थितियों में चुनावी प्रक्रिया के दौरान स्वतंत्र व निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करने में एमसीएमसी एक महत्वपूर्ण कडी के तौर पर कार्य करती है।
चुनावी प्रक्रिया के दौरान एमसीएमसी द्वारा पेड न्यूज का मामला सामने आने पर संबंधित निर्वाचन अधिकारी को अगली कार्रवाई के लिए प्रेषित किया जाता है। जबकि पेड न्यूज के संबंध में एमसीएमसी से सूचना मिलने पर संबंधित निर्वाचन अधिकारी 96 घंटे की समयावधि में उम्मीदवार को नोटिस जारी करता है तथा नोटिस मिलने के 48 घंटे के भीतर संबंधित उम्मीदवार को इसका जबाव देना होता है। यदि इस संबंध में उम्मीदवार नोटिस का जवाब नहीं देता है तो एमसीएमसी का निर्णय अंतिम माना जाता है तथा जिला स्तरीय एमसीएमसी के निर्णय के खिलाफ राज्य स्तरीय एमसीएमसी में अपील की जा सकती है। तदोपरान्त मामला चुनाव आयोग के पास भेजा जा सकता है तथा इस संदर्भ में चुनाव आयोग का निर्णय अंतिम होता है। एमसीएमसी या चुनाव आयोग द्वारा पेड न्यूज साबित होने पर इससे संबंधित सारे खर्चे को उम्मीदवार के चुनावी व्यय में जोडा जाता है। जहां तक हिमाचल प्रदेश की बात है तो विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने प्रत्येक उम्मीदवार के लिए 28 लाख रूपये की चुनावी खर्च की सीमा निर्धारित की है।
ऐसे में पेड न्यूज के संबंध में प्राप्त आंकडों का भी विश्लेषण करें तो वर्ष 2010 के बाद हुए विधानसभा चुनावों के दौरान बडे पैमाने पर पेड न्यूज के मामले सामने आते रहे हैं। 2010 बिहार विस चुनावों में 15, 2011 के विस चुनाव केरल में 65, पुडूच्चेरी में तीन, असम में 27, पश्चिम बंगाल में आठ, तमिलनाडू में 22 पेड न्यूज के मामलों की पुष्टि हुई है। इसी तरह 2012 के विस चुनावों में उत्तर प्रदेश में 97, उत्तराखंड में 30, पंजाब में 523, गोवा में नौ, गुजरात में 414, हिमाचल प्रदेश में 104 पेड न्यूज के मामले साबित हुए हैं। जबकि 2013 के विस चुनावों में कर्नाटक में 93, मध्यप्रदेश में 165, दिल्ली में 25, छतीसगढ़ में 32 तथा राजस्थान में 81 पेड न्यूज के मामलों की पुष्टि हुई है। पंजाब विधानसभा चुनाव-2017 के दौरान पेड न्यूज के 107 मामले संज्ञान में लाए गए हैं, जबकि हाल ही में पेड न्यूज के मामले में मध्य प्रदेश के एक मामले में चुनाव आयोग ने संबंधित व्यक्ति को दोषी पाया है।
ऐसे में पेड न्यूज को लेकर मीडिया को न केवल स्वयं की आचार संहिता को लागू कर स्वस्थ व सशक्त लोकतंत्र निर्माण में सकारात्मकता से अपने दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए बल्कि पेड न्यूज का वहिष्कार कर समाज के सामने एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए। अन्यथा लोकतंत्र के महापर्व चुनावों में मीडिया द्वारा धन-बल के आधार पर उम्मीदवार विशेष के पक्ष में समाचारों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रकाशन व प्रसारण करके न केवल भारतीय लोकतंत्र की आत्मा ही कमजोर होगी बल्कि मीडिया के प्रति लोगों का विश्वास भी कम होगा।
(साभार: दैनिक न्याय सेतु 2 नवम्बर, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
(साभार: दैनिक न्याय सेतु 2 नवम्बर, 2017 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
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