सूचना तकनीक की 21वीं सदी में जहां कम्प्यूटर व मोबाइल आधारित टेक्रालॉजी का इस्तेमाल बढ़ा है तो वहीं इंटरनेट के बढ़ते उपयोग से हमारी दिनचर्या व कामकाज में भी काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। कंप्यूटर के साथ-साथ मोबाइल में इंटरनेट के बढ़ते इस्तेमाल के कारण आज सोशल मीडिया व नेटवर्किग साइटस का इस्तेमाल करने वालों का दायरा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। इंटरनेट क्रांति की हकीकत तो यह है कि जैसे-जैसे इसकी पहुंच समाज के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक हो रही है उसी गति से न केवल कंप्यूटर एवं मोबाइल फोन आधारित सूचनाओं के आदान-प्रदान की गति बढी है बल्कि सोशल नेटवर्किग साइटस जैसे फेसबुक, टवीटर, ब्लॉगस, इंस्टाग्राम, टंबलर, लिंकडन, यू-टयूब इत्यादि का इस्तेमाल भी तेजी से बढ़ता जा रहा है। पूरी दुनिया सहित भारत में नितदिन डिजिटल क्रांति का ही परिणाम है कि आज बैंकिंग, व्यापार सहित ऑन लाइन शापिंग के लिए डेबिट व क्रेडिट कॉर्ड के साथ-साथ अन्य तरह के लेन देन व सूचनाओं के आदान प्रदान में भी इंटरनेट का प्रयोग बढा है। ऐसे में भले ही इंटरनेट के बढते इस्तेमाल के कारण सूचनाओं के आदान प्रदान के साथ-साथ आम जीवन के विभिन्न कार्यों के निपटान में सुविधा हो रही हो लेकिन उतनी ही तेजी के साथ साइबर अपराधों ने हमारी राह में मुश्किलें भी खडी कर दी हैं।
ऐसे में यदि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी 2015 के आंकडों का विश्लेषण करें तो देश में वर्ष 2014 के मुकाबले 2015 में साइबर अपराधों के मामलों में काफी वृद्धि दर्ज हुई है। प्राप्त आंकडों के आधार पर वर्ष 2014 में 9622 साइबर अपराध के मामलों के मुकाबले वर्ष 2015 में यह आंकडा बढक़र 11562 हो गया है जिसमें लगभग 20.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। जबकि साइबर अपराध से जुडे मामलों में वर्ष 2014 में गिरफतार 5752 लोगों के मुकाबले वर्ष 2015 में यह आंकडा 8121 हो गया है जिसमें भी लगभग 41.2 फीसदी की बढौतरी दर्ज हुई है। ऐसे में यदि हिमाचल प्रदेश की बात करें तो हिमाचल में भी वर्ष 2014 में 38 मामले साइबर अपराध के सामने आए थे तथा 2015 में यह आंकडा बढक़र 50 हो गया है जिसमें लगभग 31.6 फीसदी की बढ़ौतरी दर्ज हुई है जबकि प्रदेश में वर्ष 2014 में साइबर अपराध को लेकर 16 गिरफतारियों के मुकाबले वर्ष 2015 में 38 गिरफतारियां हुई है जिसमें भी लगभग 137.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है।
साइबर अपराध में सूचना प्रौद्योगिकी कानून (सेशोधित)-2008 की बात करें तो इस कानून की विभिन्न धाराओं के तहत वर्ष-2015 में कुल 8045 मामले दर्ज हुए हैं जिसमें कंप्यूटर डाक्यूमेंट के साथ छेडछाड के 88, आईटी एक्ट की धारा 66 के तहत 6567 मामले दर्ज हुए जिसमें 66ए के तहत 4154, 66 बी के तहत 132, 66सी के तहत 1081, 66 डी के तहत 1083 तथा 66 ई के तहत 117 मामले शामिल हैं। इसी दौरान साइबर आतंकवाद से जुडे 13 जबकि आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत 816 मामले दर्ज हुए हैं जिसमें 67ए के तहत 792, 67बी के तहत आठ तथा 67सी के अंतर्गत 16 मामले शामिल हैं।
ऐसे में जिस तेज रफतार के साथ हमारा इंटरनेट व इससे जुडी सोशल नेटवर्किग का इस्तेमाल बढ रहा उतनी ही रफतार के साथ लोग साइबर अपराध के शिकार भी होते जा रहे हैं। जिसमें बात चाहे ई-मेल या मोबाइल फोन के माध्यम से सूचनाओं के गलत आदान-प्रदान की हो या फिर कंप्यूटर को हैक करके जरूरी सूचनाओं को चुराने की हो। बात यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि इंटरनेट के माध्यम से कई बार किसी व्यक्ति विशेष से संबंधित अश्लील सामग्री का प्रचार-प्रसार कर दिया जाता है तो कई बार फर्जी ई-मेल, फेसबुक, टवीटर, ब्लॉगस इत्यादि के खाते बनाकर गलत प्रचार-प्रसार एवं धोखधडी या बेईमानी इत्यादि की जाती है। इस तरह साइबर अपराध को अंजाम देने वाले लोग शायद यह भूल कर बैठते हैं कि उनकी इन घटनाओं को न तो कोई देख रहा है न ही जान पा रहा है कि वह ऐसा करने वाला कौन व्यक्ति है। परन्तु साइबर अपराध करने वाले यह भूल जाते हैं कि ऐसे लोगों के लिए सूचना प्रौद्योगिकी कानून (संशोधित)-2008 के तहत सजा का सख्त प्रावधान किया गया है।
आईटी एक्ट की धारा 67 में अश्लील सामग्री को इलैक्ट्रानिक रूप में प्रकाशित या संचारित करने के लिए 3-5 साल तक की जेल व 5-10 लाख रूपये तक का जुर्माना जबकि 67ए व 67बी में किसी के आचरण व्यस्क या बच्चा से संबंधित किसी भी प्रकार की सामग्री को प्रकाशित या संचारित या इलैक्ट्रानिक रूप में प्रेषित करता है तो ऐसे व्यक्ति को 5-7 साल की जेल व 10 लाख रूपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। इसी तरह धारा 66ए, 66 बी, 66सी, 66डी, 66 ई व 66एफ के तहत यदि कोई व्यक्ति संचार सेवा के माध्यम से आक्रामक संदेश भेजता है, चोरी या बेईमानी से प्राप्त कंप्यूटर का इस्तेमाल करता है, धोखे या बेईमानी से इलैक्ट्रानिक हस्ताक्षर, पासवर्ड या अन्य व्यक्तिगत जानकारी का इस्तेमाल करता है, कंप्यूटर संसाधन के माध्यम से वेशधारण कर धोखाधडी करता है या किसी की प्राइवेसी को भंग करता है तथा साइबर आतंकवाद में भागीदार पाया जाता है तो इन धाराओं के तहत एक से तीन साल तक की जेल, एक से दो लाख रूपये तक का जुर्माना या दोनों सजाएं हो सकती है।
भले ही माननीय उच्चतम न्याायालय ने धारा 66ए को निरस्त कर दिया हो लेकिन अभी भी सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट के तहत साइबर अपराधियों को पकडने के लिए कई कानूनी प्रावधान मौजूद हैं। ऐसे में हमारे देश में इंटरनेट क्रांति के चलते जहां सूचनाओं के आदान-प्रदान व संप्रेषण में सहूलियत हुई है तो वहीं बढते साइबर अपराधों ने मुश्किलें भी खडी कर दी है। ऐसे मेें जहां हमें साइबर अपराधियों से सावधान रहने की जरूरत है तो वहीं सूचना तकनीकी कानून की जानकारी होना भी लाजमी हो जाता है ताकि कल हमें किसी भी तरह की साइबर अपराध से जुडी परेशानी न उठानी पडे।
(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 15 सितम्बर, 2016 एवं हिमाचल दिस वीक, 17 सितम्बर, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
(साभार: दैनिक न्याय सेतु, 15 सितम्बर, 2016 एवं हिमाचल दिस वीक, 17 सितम्बर, 2016 को संपादकीय पृष्ठ में प्रकाशित)
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