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Monday, 29 September 2025

साहसिक पर्यटन गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बनकर उभर रहा हिमाचल का बिलासपुर

 गोविंद सागर झील में जलक्रीड़ा और बंदलाधार से पैराग्लाइडिंग बन रही आकर्षण का केंद्र

हिमाचल प्रदेश पर्यटन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण गंतव्य है तथा पर्यटन की अपार संभावनाएं संजोए हुए है। प्रदेश में धार्मिक, साहसिक और स्वास्थ्य पर्यटन विकास के मुख्य स्तंभ हैं। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए प्रदेश सरकार ने बिलासपुर की गोविंद सागर झील में साहसिक पर्यटन को बढ़ावा देते हुए मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू के मार्गदर्शन में वर्ष 2024 में साहसिक जलक्रीड़ा (एडवेंचर स्पोर्ट्स) की विभिन्न गतिविधियां शुरू की हैं। इन प्रयासों से न केवल जिला बिलासपुर को पर्यटन मानचित्र पर नई पहचान मिल रही है, बल्कि स्थानीय युवाओं को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से रोजगार के अवसर भी प्राप्त हो रहे हैं।
बंदलाधार की तलहटी में भाखड़ा बांध निर्माण से सतलुज नदी पर बनी गोविंद सागर झील के किनारे बसा बिलासपुर कस्बा प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। झील का नीला पानी यहां आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आकर्षित करता है। बडोलधार व बंदलाधार के मध्य फैली यह झील कश्मीर की डल झील जैसा मनोहारी दृश्य प्रस्तुत करती है। सरकार ने यहां मौजूद पर्यटन विकास की अपार संभावनाओं को देखते हुए साहसिक जलक्रीड़ा गतिविधियों को प्रोत्साहित करने का महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
प्रदेश सरकार ने जिला प्रशासन के माध्यम से पर्यटन, खेल, व्यापार एवं रोजगार सृजन सोसायटी का गठन कर झील में अनेक जलक्रीड़ा और साहसिक पर्यटन गतिविधियां शुरू की हैं। इनमें स्पीड बोट, क्रूज राइड, वाटर स्कूटर, बनाना राइड जैसी रोमांचक सवारी शामिल हैं। पर्यटकों को कश्मीर की डल झील जैसा अनुभव देने के लिए शिकारा राइड की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई है। ये सभी सेवाएं बिलासपुर के मंडी भराड़ी फोरलेन पुल के समीप संचालित हो रही हैं। साहसिक जलक्रीड़ा को और बढ़ावा देने के लिए जिला प्रशासन शीघ्र ही तीन दिवसीय वॉटर स्पोर्ट्स महोत्सव आयोजित करने जा रहा है, जिसमें ड्रैगन बोट रेस, कायकिंग तथा कैनोइंग प्रतियोगिताएं मुख्य आकर्षण होंगी। बिलासपुर की गोविंद सागर झील चंडीगढ़-कीरतपुर-मनाली फोरलेन सड़क पर स्थित होने के कारण पर्यटक आसानी से इन साहसिक जलक्रीड़ाओं का आनंद ले सकते हैं।
साहसिक खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए पर्यटन विभाग के सहयोग से जिला की प्रसिद्ध बंदलाधार से पैराग्लाइडिंग गतिविधियां भी चलाई जा रही हैं। यह साइट उत्तर भारत की बेहतरीन पैराग्लाइडिंग स्थलों में से एक है, जहां पर्यटक न केवल इस खेल का रोमांच अनुभव करते हैं, बल्कि गोविंद सागर झील का बेहद मनमोहक एवं आकर्षक नजारा भी देखने को मिलता है। मार्च 2025 में यहां अंतरराष्ट्रीय पैराग्लाइडिंग फिएस्टा सफलतापूर्वक आयोजित किया जा चुका है, जिसमें छह देशों के पैराग्लाइडरों सहित 70 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। इसके अतिरिक्त एयरो स्पोर्ट्स गतिविधियों के लिए भी गोविंद सागर झील को उत्तरी भारत का सबसे उपयुक्त स्थान माना गया है। सरकार के सतत प्रयासों से आज बिलासपुर साहसिक जलक्रीड़ा, पैराग्लाइडिंग और एयरो स्पोर्ट्स के लिए पर्यटन की दृष्टि से उत्कृष्ट गंतव्य बनकर उभरा है। साथ ही, झील में आइलैंड टूरिज्म की अवधारणा पर भी कार्य जारी है, जिससे पर्यटक अंडमान-निकोबार की तर्ज पर झील के द्वीपों पर सैर का आनंद भी ले सकेंगे।
प्रदेश सरकार की इन पहलों से न केवल बिलासपुर के पर्यटन विकास को नई गति मिली है, बल्कि युवाओं के लिए परिवहन, आतिथ्य और सेवा क्षेत्रों में रोजगार एवं उद्यमिता के अवसर भी बढ़े हैं। हिमाचल सरकार ने पर्यटन को राज्य अर्थव्यवस्था का मजबूत स्तंभ बनाते हुए रोजगार और विकास के नए द्वार खोल दिए हैं।
क्या कहते हैं अधिकारी :
उपायुक्त बिलासपुर राहुल कुमार का कहना है कि बिलासपुर को एडवेंचर स्पोर्ट्स का प्रमुख हब बनाने के लिए जिला प्रशासन लगातार प्रयासरत है। यहां वाॅटर स्पोर्ट्स, एयरो स्पोर्ट्स सहित अन्य साहसिक गतिविधियों को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि यह क्षेत्र न केवल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर सके बल्कि इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे तथा क्षेत्र में व्यापारिक गतिविधियों को भी बल मिलेगा। जिला प्रशासन पर्यटकों की सुविधा और सुरक्षा के लिए लगातार प्रयासरत है तथा आने वाले समय में और नई साहसिक गतिविधियों को भी यहां शुरू करने के प्रयास किये जाएंगे। DOP 29/09/2025
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Sunday, 31 August 2025

जिला बिलासपुर के बरठीं के टिहरी क्लस्टर में लहलहा रही है अनार की फसल

शिवा परियोजना ने बदली 44 किसानों की तकदीर, 60 मीट्रिक टन अनार उत्पादन का लक्ष्य 

प्रदेश सरकार एचपी शिवा परियोजना के माध्यम से चालू वितवर्ष में व्यय कर रही है 100 करोड़

हिमाचल प्रदेश में बागवानी न केवल किसानों व बागवानों के लिए आजीविका का स्त्रोत है बल्कि यह ग्रामीण विकास, रोजगार सृजन और आर्थिक स्थिरता का भी प्रमुख स्तंभ है। प्रदेश में ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू सरकार ने बागवानी को बढ़ावा देते हुए वितीय वर्ष 2025-26 के दौरान प्रदेश में एचपी शिवा परियोजना के माध्यम से 100 करोड़ रूपये व्यय करने का प्रावधान किया है। सरकार इस महत्वपूर्ण कदम से न केवल प्रदेश के निचले क्षेत्रों में शिवा परियोजना के माध्यम से बागवानी को बल मिल रहा है बल्कि प्रदेश सरकार के यह प्रयास धरातल में फलीभूत भी हो रहे हैं।

हिमाचल सरकार के निरंतर प्रयासों का ही नतीजा है कि आजकल जिला बिलासपुर के बरठीं के अंतर्गत टिहरी कलस्टर में अनार की फसल लहलहा रही है। एचपी शिवा परियोजना के तहत लगभग 100 बीघा में स्थापित इस बगीचे में अनार की फसल पक कर तैयार हो चुकी है तथा लाभार्थी किसान अब इसे बाजार भेजने की तैयारी में जुट गए हैं। वर्ष 2021 में फ्रंट लाइन डेमोंस्ट्रेशन (एफएलडी) के तौर पर टीहरी-एक व टीहरी-दो में लगभग 2 हैक्टेयर क्षेत्र में अनार के पौधों का रोपण किया गया, जिसे वर्ष 2022 में बढ़ाकर 8 हैक्टेयर (लगभग 100 बीघा) भूमि में 44 किसानों को जोड़ते हुए कलस्टर के तौर पर विकसित किया गया है। इस कलस्टर में भगवा प्रजाति के लगभग 8900 अनार के पौधे रोपित किये हैं तथा इस वर्ष 60 मिट्रिक टन अनार उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। कलस्टर में जुडे़ किसानों की विभिन्न गतिविधियों को संचालित करने के लिए दि बरठीं कन्वर्जिंग हॉर्टिकल्चर प्रोडक्शन मार्केटिंग एसोसिएशन (सीएचपीएमए) सहकारी समिति लिमिटेड का भी गठन किया गया है।

जब इस संबंध में लाभार्थी किसान एवं कलस्टर के अंतर्गत गठित दि बरठीं सीएचपीएमए सहकारी समिति लिमिटेड के प्रधान प्रेम लाल नड्डा से बातचीत की तो बताया कि वर्ष 2021 में बतौर एफएलडी-एक व दो में बागवानी विभाग के माध्यम से अनार के पौधे रोपित किये गए। वर्ष 2022 में अन्य किसानों को जोड़ते हुए लगभग 100 बीघा क्षेत्र में इसे कलस्टर के तौर पर विकसित किया गया है। वर्तमान में लगभग 44 किसान जुड़ चुके हैं, और कुछ किसानों ने गत वर्ष अनार बेचकर लगभग 1 से 1.5 लाख रुपये तक की आमदनी अर्जित कर ली है। इस वर्ष कुछ किसान लगभग 3 से 4 लाख रुपये तक की आमदनी अर्जित कर सकते हैं।
प्रेम लाल नड्डा ने बताया कि शिवा परियोजना के अंतर्गत स्थापित इस अनार क्लस्टर में बागवानी एवं जलशक्ति विभाग के माध्यम से विभिन्न विकास कार्य किए गए हैं, जिनमें भूमि का विकास, बेड व पिट तैयार करना, सोलर बाड़बंदी, ड्रिप सिंचाई सुविधा तथा उठाऊ सिंचाई परियोजना के माध्यम से जल उपलब्धता सुनिश्चित करना शामिल है। इसके अतिरिक्त जलशक्ति विभाग द्वारा सिंचाई सुविधा हेतु लगभग 2 लाख लीटर क्षमता वाला पानी का टैंक भी निर्मित किया गया है।
इसी बीच लाभार्थी किसान सोम देव शर्मा का कहना है कि गत वर्ष लगभग 1 से डेढ लाख रूपये अनार से आमदनी हुई है। इस वर्ष फसल ज्यादा अच्छी है, लगभग 3 से 4 लाख रूपये आमदनी की उम्मीद है। क्लस्टर में उनके लगभग 125 अनार के पौधे हैं जिनसे औसतन प्रति पौधा 25 से 30 किलोग्राम अनार उत्पादन की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि अनार की फसल के साथ-साथ गेंदे का फूल भी लगाया, जिससे भी लगभग 25 हजार रूपये की अतिरिक्त आमदनी हुई है।
लाभार्थी किसानों का कहना है कि भगवा प्रजाति का यह अनार लगभग बिना बीज का होता है, जिसे बच्चे व बुजुर्ग भी आसानी से खा सकते हैं। इसके छिलके पतले होते हैं और इसमें रस की मात्रा अधिक होती है। यह अनार स्वाद में भी अत्यंत उत्तम है। किसानों को उम्मीद है कि इस बार उन्हें अच्छे दाम मिलेंगे और आमदनी में और वृद्धि होगी। बागवानी विभाग ने किसानों को तकनीकी मार्गदर्शन देने के लिए फैसिलिटेटर, क्लस्टर इंचार्ज तथा फील्ड ऑपरेटर भी तैनात किए हुए हैं।
उन्होंने युवाओं से भी बागवानी के साथ जुड़ने का आहवान किया है ताकि घर के समीप ही न केवल रोजगार के अवसर सृजित किये जा सकते हैं बल्कि वह स्वावलंबी बनकर दूसरों के लिए रोजगार सृजन का कार्य भी कर सकते हैं।
क्या कहते हैं अधिकारीः
उपनिदेशक बागवानी डॉ. जगदीश चंद वर्मा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश शिवा परियोजना के माध्यम से जिला बिलासपुर में कुल 37 क्लस्टर स्थापित किए हैं। इन क्लस्टरों के अंतर्गत नींबू प्रजाति, अमरूद और अनार की खेती को बढ़ावा दिया गया है तथा लगभग 134 हेक्टेयर भूमि को कवर किया गया है। उन्होंने कहा कि टिहरी क्लस्टर जिला का एकमात्र अनार का क्लस्टर है, और इस वर्ष लगभग 60 मीट्रिक टन अनार उत्पादन का लक्ष्य है। बागवानी विभाग किसानों को मार्केटिंग की सुविधा भी उपलब्ध करवा रहा है ताकि फसल के बेहतर दाम मिल सकें।
उपायुक्त बिलासपुर राहुल कुमार ने कहा कि सरकार ने किसानों व बागवानों के उत्थान के लिए अनेक योजनाएं आरंभ की हैं ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था और अधिक सशक्त हो सके। शिवा परियोजना के माध्यम से जिला के किसान आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं और संबंधित विभागों के माध्यम से अधिक से अधिक किसानों को लाभान्वित करने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। उन्होंने लोगों से सरकार की योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ उठाने का आह्वान भी किया। DOP 01/09/2025
















Monday, 10 March 2025

जोगिन्दर नगर के त्रामट घट में स्थित है बाबा बालक नाथ व मां तारा तामेश्वरी के प्राचीन मंदिर

 शीघ्र मनोकामना पूर्ण करती है मां तारा तामेश्वरी, आषाढ़ माह में लगता है तीन दिवसीय मेला

बच्चों के मुंडन संस्कार के लिए गाजे बाजे के साथ बाबा बालक नाथ के मंदिर पहुंचते हैं श्रद्धालु

जोगिन्दर नगर उपमंडल की ग्राम पंचायत ऐहजु के गांव त्रामट घट में मां तारा तामेश्वरी तथा बाबा बालक नाथ जी के प्राचीन मंदिर स्थित हैं। श्रद्धालु जहां मां तारा तामेश्वरी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं तो वहीं दियोट सिद्ध बाबा बालक नाथ के प्रति आस्था रखने वाले स्थानीय लोग मंदिर में पहुंचकर बाबा बालक नाथ जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। साथ ही बच्चों का मुंडन संस्कार भी यहां किया जाता है।
जानकार कहते हैं कि त्रामट घट में स्थित मां तारा तामेश्वरी का यह प्राचीन मंदिर वर्ष 1905 में आए कांगड़ा भूकंप के दौरान नष्ट हो गया था। इसके बाद यहां पर स्थानीय लोगों द्वारा एक छोटा मंदिर का निर्माण करवाया था। लेकिन अब भक्तजनों के सहयोग से यहां पर मां तारा तामेश्वरी के नए मंदिर परिसर को स्थापित किया गया है। कहते हैं कि मां तारा तामेश्वरी भक्तों की मनोकामना को शीघ्र पूरा करती हैं। इस मंदिर में मां बगलामुखी की तर्ज पर फलदायी हवन व यज्ञ भी किये जाते हैं। प्रत्येक वर्ष आषाढ़ माह की सक्रांति को तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। मां तारा तामेश्वरी मंडी व कांगड़ा जिला के लोगों की कुल देवी भी है।
मां तारा तामेश्वरी के इस प्राचीन मंदिर से महज 50 मीटर की दूरी पर दियोट सिद्ध बाबा बालक नाथ जी का भी प्राचीन मंदिर स्थित है। स्थानीय जानकारों का कहना है कि इस स्थान पर पहुंचकर आसपास क्षेत्रों के लोग बच्चों का मुंडन संस्कार करते हैं। कहते हैं कि पुरातन समय में जब लोग बाबा बालक नाथ जी के दर्शनार्थ दियोटसिद्ध नहीं जा पाते थे तो वे इसी स्थान पर पहुंचकर बाबा बालक नाथ जी का आशीर्वाद प्राप्त करते थे। इस पवित्र स्थान में जहां छोटे बच्चों का मुंडन संस्कार किया जाता है तो वहीं बाबा बालक नाथ जी की परिक्रमा करने के लिए भी श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
वर्तमान में इन दोनों मंदिरों के संचालन के लिए आसपास के गांवों के लोगों द्वारा मंदिर प्रबंधन कमेटी भी गठित की गई है।

प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से है खूबसूरत स्थान, शांत वातावरण से श्रद्धालुओं को होती है दिव्य अनुभूति

यह पवित्र स्थान प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी बेहद खूबसूरत है। यहां का शांत वातावरण जहां श्रद्धालुओं को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है तो वहीं यहां पहुंचकर अलग तरह की दिव्य अनुभूति भी होती है। मंदिर परिसर से एक तरफ जहां लडभड़ोल व बैजनाथ क्षेत्र को निहारा जा सकता है तो दूसरी तरफ संपूर्ण चौंतड़ा क्षेत्र के साथ-साथ विश्व प्रसिद्ध पैराग्लाइडिंग साईट बीड़-बीलिंग की वादियों को भी देख सकते हैं।
ये प्राचीन मंदिर मंडी-जोगिन्दर नगर-पठानकोट राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर ऐहजु नामक स्थान से ऐहजु-गोलवां-लडभड़ोल सडक़ पर लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर छोटे वाहनों के साथ-साथ बस के माध्यम से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है।




Tuesday, 18 February 2025

चौहार घाटी के झटिंगरी में कभी सजता था मंडी रियासत के राजाओं का दरबार

बड़ा देव श्री हुरंग नारायण करते थे दरबार की अध्यक्षता, अब खंडहर बन चुकी है यह ऐतिहासिक धरोहर

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल का कभी हिस्सा रही चौहार घाटी के झटिंगरी में प्राचीन काल में मंडी रियासत के राजाओं का दरबार सजता था। इस दौरान न केवल रियासत के राजा स्थानीय लोगों के साथ मिलते-जुलते थे बल्कि उनकी समस्याओं को भी सुना जाता था। इस दरबार की अध्यक्षता चौहार घाटी के बड़ा देव श्री हुरंग नारायण करते थे। वर्तमान में झटिंगरी के इस ऐतिहासिक स्थल पर न तो रियासत कालीन महल मौजूद रहा है बल्कि अब केवल कुछ अवशेष ही देखने को मिलते हैं। यहां पर राजा के साथ-साथ रानी का भी एक अलग महल हुआ करता था। लेकिन इतिहास के पन्नों से यह बात साबित हो जाती है कि चौहार घाटी के झटिंगरी में न केवल मंडी रियासत के राजा स्थानीय लोगों से मिलते जुलते थे बल्कि यहां पहुंचकर समस्याओं का भी निवारण किया करते थे।
ऐतिहासिक स्थल झटिंगरी को लेकर कुछ इतिहास की किताबों में न केवल राज दरबार लगने की जानकारी मिलती है बल्कि चौहार घाटी से जुड़ी कई ऐतिहासिक व रोचक जानकारी भी पढ़ने को मिलती है। इस संबंध में मंडी रियासत के राजा सूरज सेन (1637-1662 ई.) के समय चौहार घाटी को लेकर कुछ ऐतिहासिक संदर्भ पढ़ने को मिलते हैं। राजा सूरज सेन के युवा होने तक मंडी रियासत का राज शासन करोड़िया खत्री के पास था। जैसे-जैसे राजा सूरज सेन बड़ा होने लगा तो सत्ता करोड़िया के हाथों से निकलने लगी, ऐसे में करोड़िया ने नुरपूर के राजा जगत सिंह से मिलकर षड्यंत्र रचा। करोड़िया ने नूरपुर के राजा की बेटी का विवाह सूरज सेन से तय किया ताकि योजना के अनुसार सूरज सेन को मारा जा सके। लेकिन इस बीच सूरज सेन को इस षड्यंत्र का आभास हो गया तथा अपनी दुल्हन को वहीं पर छोड़कर वहां से भाग निकला। बाद में नूरपुर के राजा जगत सिंह ने बेटी को मंडी राजमहल पहुंचाया। इस बीच सन 1641 ई. में नूरपुर के राजा जगत सिंह ने शाहजहां के विरूद्ध मोर्चा खोल दिया। शाहजहां की ओर से गुलेर के राजा ने भाग लेते हुए रानी ताल कांगड़ा में युद्ध हुआ। इस युद्ध में न चाहते हुए भी मंडी के राजा सूरज सेन को भाग लेना पड़ा। युद्ध में नूरपुर के राजा जगत सिंह की हार हुई तथा सूरज सेन भी हार के बाद वहां से भाग निकला।
कहते हैं कि राजा सूरज सेन भागते-भागते चौहार घाटी के बरोट पहुंचा तथा यहां पर स्थानीय लोगों ने उन्हें पहचान लिया कि वे तो उनके राजा सूरज सेन हैं। उस वक्त लोगों में यह चर्चा थी कि मंडी का राजा सूरज सेन युद्ध में या तो मारा गया है या फिर गुम हो गया है। ऐसे में लोगों ने उन्हें पूरे मान-सम्मान के साथ मंडी राजमहल पहुंचाया। इसके बाद राजा सूरज सेन ने चौहार घाटी की बेगार माफ कर दी थी तथा झटिंगरी में अपना दरबार लगाकर चौहार घाटी के लोगों से मिलते थे। इस दरबार की अध्यक्षता बड़ा देव श्री हुरंग नारायण किया करते थे। इसके बाद यहां पर मंडी के राजाओं ने महल भी बनवाया। साथ ही रानी के लिए भी एक अलग महल बनवाया था। लेकिन वर्तमान में अब मात्र इन ऐतिहासिक धरोहरों के कुछ अवशेष ही रह गए हैं।
जब मंडी की रानी ने बड़ा देव हुरंग नारायण से मांगी संतान की प्राप्ति, बनवाया देवता का मोहरा
इतिहास के पन्ने बताते हैं कि मंडी रियासत के राजा साहिब सेन (1554-1575 ई.) के समय उनकी धार्मिक प्रवृत्ति की रानी प्रकाश देई ने संतान न होने पर बड़ा देव श्री हुरंग नारायण से प्रार्थना की कि यदि पुत्र हुआ तो वह अपने गहनों से देवता का मोहरा बनवाएगी। कहते हैं पुत्र होने पर रानी ने देवता का मोहरा बनवाया। इस बीच ब्यास नदी पर लोगों की सुविधा के लिए नाव चलवाई तथा रास्तों पर पीने के पानी की व्यवस्था की तथा बावडिय़ां इत्यादि भी बनवाईं। इसी दौरान मंडी के राजा ने रानी के कहने पर द्रंग के राणा पर हमला कर द्रंग की नमक खदानों को अपने अधीन कर लिया था।
चौहार घाटी का प्रवेश द्वार है झटिंगरी, प्राकृतिक तौर पर है बेहद खूबसूरत
झटिंगरी चौहार घाटी का प्रवेश द्वार है तथा पर्यटन की दृष्टि से यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। झटिंगरी व आसपास के क्षेत्र में देवदार, बुरांस, बान इत्यादि के घने जंगल मन को अलौकिक शांति का अनुभव कराते हैं। साथ ही इस स्थान से कुछ ही दूरी पर जहां एक तरफ खूबसूरत फूलाधार की वादियां  हैं तो दूसरी तरफ घोघर धार है, जहां से संपूर्ण चौहार घाटी के साथ-साथ जोगिन्दर नगर व पधर क्षेत्र को निहार सकते हैं।
यह ऐतिहासिक एवं पर्यटन स्थल मंडी-जोगिन्दर नगर-पठानकोट राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर घटासनी नामक स्थान से घटासनी-बरोट सड़क पर लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है। यह स्थान उपमंडल मुख्यालय पधर से लगभग 20 किलोमीटर तथा जोगिन्दर नगर कस्बे से भी लगभग इतनी ही दूरी पर है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन जोगिन्दर नगर तथा हवाई अड्डा गग्गल (कांगड़ा) है। DOP 19/02/2025
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Saturday, 15 February 2025

नाबार्ड के तहत सवा 4 करोड़ से निर्मित हुई सिमस-नैल्ला-ग्वैला संपर्क सड़क

 धार्मिक स्थल सिमस एवं नागेश्वर महादेव कुड्ड के दर्शन करने में श्रद्धालुओं को होगी सुविधा 

नाबार्ड के माध्यम से लगभग सवा चार करोड़ रूपये की लागत से सिमस-नैल्ला-ग्वैला संपर्क सड़क का निर्माण कार्य लगभग पूर्ण कर लिया गया है। इस सड़क के निर्मित हो जाने से जहां मां सिमसा के दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालुओं को एक वैकल्पिक मार्ग की सुविधा सुनिश्चित हुई है तो वहीं नागेश्वर महादेव कुड्ड के दर्शन करना भी अब आसान हो जाएगा। साथ ही इस सुविधा का लाभ ग्राम पंचायत सिमस के साथ-साथ ग्राम पंचायत लडभड़ोल के ग्वैला गांव के लोगों को भी सुनिश्चित हुआ है। इस संपर्क मार्ग के बन जाने से न केवल सिमस-लडभड़ोल के मध्य दूरी कम हुई है बल्कि नागेश्वर महादेव कुड्ड के साथ-साथ मां सिमसा के दर्शन करने को एक अन्य वैकल्पिक मार्ग की सुविधा भी प्राप्त हुई है।

नाबार्ड के माध्यम से निर्मित की गई लगभग सवा तीन किलोमीटर लंबी सिमस-नैल्ला-ग्वैला संपर्क सड़क से जोगिन्दर नगर उपमंडल के लडभड़ोल क्षेत्र के दो प्रमुख धार्मिक स्थल संतान दात्री मां शारदा सिमस तथा नागेश्वर महादेव कुड्ड जहां इस सडक़ मार्ग से आपस में जुड़ गए हैं तो वहीं दोनों धार्मिक स्थलों की दूरी भी कम हुई है। साथ ही ग्राम पंचायत सिमस वासियों को जहां तहसील मुख्यालय लडभड़ोल जाने के लिए वैकल्पिक मार्ग की सुविधा मिली है तो वहीं सडक़ मार्ग का फासला भी लगभग 2 से 3 किलोमीटर कम हुआ है।

नवरात्रों में आवाजाही को नियंत्रित करने में मिलेगी मदद, सड़क से नजर आता है प्रकृति का विहंगम दृश्य 

सिमस-नैल्ला-ग्वैला संपर्क सड़क के बन जाने से जहां सिमस पंचायत के उप गांव नैल्ला को पक्की सड़क की सुविधा सुनिश्चित हुई है तो वहीं सिमस से ग्वैला आना-जाना भी सुलभ हुआ है। इस सड़क का सर्वाधिक लाभ नवरात्रों के दौरान मां सिमसा के दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालुओं को मिलेगा। इस सड़क के माध्यम से न केवल वाहनों की आवाजाही को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी बल्कि जाम की स्थिति में एक वैकल्पिक मार्ग की सुविधा भी उपलब्ध रहेगी।

लगभग सवा तीन किलोमीटर इस संपर्क सड़क से गुजरते वक्त श्रद्धालु न केवल यहां के प्राकृतिक नजारों लुत्फ उठा पाएंगे बल्कि यहां से एक तरह संधोल, हारसीपतन, जयसिंहपुर, चढिय़ार, धर्मपुर इत्यादि क्षेत्र तो दूसरी तरफ बर्फ से ढकी धौलाधार पर्वत माला के मनमोहक दृश्यों को भी निहार सकेंगे। साथ ही श्रद्धालु बाबा कमलाहिया (धर्मपुर) तथा मां आशापुरी (जिला कांगड़ा) के पवित्र स्थलों को भी आसानी देख पाएंगे।

क्या कहते हैं अधिकारी: 

एसडीएम जोगिन्दर नगर मनीश चौधरी का कहना है कि संतान दात्री मां शारदा (सिमसा) इस क्षेत्र का प्रमुख धार्मिक स्थल है। मां सिमसा के लिए वैकल्पिक सड़क मार्ग की सुविधा सुनिश्चित हो जाने से जहां श्रद्धालुओं को आवाजाही के लिए अन्य सड़क की सुविधा मिलेगी तो वहीं स्थानीय लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा। 

उन्होंने कहा कि उपमंडल के सभी विभागीय अधिकारियों को सरकार की विभिन्न विकासात्मक परियोजनाओं को तय समय अवधि में पूर्ण करने के निर्देश दिए हैं ताकि लोगों को समयबद्ध इन विकास परियोजनाओं का लाभ मिल सके। DOP 14/02/2025