Tuesday, 27 August 2024

चौंतड़ा विकास खंड की 42 ग्राम पंचायतों को प्लास्टिक कचरे से जल्द मिलेगी मुक्ति

सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा निष्पादन को पस्सल पंचायत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र स्थापित

मंडी जिला के चौंतड़ा विकास खंड की सभी 42 ग्राम पंचायतों को जल्द ही प्लास्टिक कचरे की समस्या से निजात मिलेगी। सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा निपटान के लिये विकास खंड की ग्राम पंचायत पस्सल में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र स्थापित किया गया है। इस संयंत्र के पूरी तरह क्रियाशील हो जाने से जहां विकास खंड की सभी ग्राम पंचायतों से प्राप्त होने वाले सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान किया जाएगा तो वहीं संबंधित ग्राम पंचायत को आय भी सृजित होगी। सबसे अहम बात यह है कि संयंत्र के चालू हो जाने से जहां लोगों को प्रतिदिन निकलने वाले सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे से मुक्ति मिलेगी तो वहीं पर्यावरण व ग्रामीण परिवेश स्वच्छ व साफ-सुथरा बनेगा। संभवत: जिला मंडी में इस तरह का संयंत्र स्थापित करने वाला चौंतड़ा पहला विकास खंड है।
स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के अंतर्गत लगभग 16 लाख रुपये की लागत से ग्राम पंचायत पस्सल में यह प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र स्थापित किया गया है। इस संयंत्र के माध्यम से सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटारा किया जाएगा। इस संयंत्र में एकत्रित होने वाले सिंगल यूज प्लास्टिक निपटान को बेलिंग मशीन, प्लास्टिक श्रेडर मशीन, प्लास्टिक डस्ट रिमूवर मशीन के साथ-साथ पंचायतों से प्लास्टिक कचरा एकत्रीकरण को ई-रिक्शा की सुविधा भी उपलब्ध रहेगी। इस संयंत्र के माध्यम से प्लास्टिक कचरे की प्रोसेसिंग कर इसे दोबारा काम में लाने को सीमेंट व प्लास्टिक सामान निर्माण फैक्टरियों के साथ-साथ लोक निर्माण विभाग को सडक़ों इत्यादि के निर्माण को उपलब्ध करवाया जाएगा। इससे न केवल ग्रामीणों को सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे के निपटान में मदद मिलेगी बल्कि इस कार्य से संबंधित ग्राम पंचायत को आय भी सृजित होगी।
वर्तमान में सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा जहां ग्रामीण क्षेत्रों में इधर-उधर बिखरा पड़ा रहता है तो वहीं लोग जलाकर इसे नष्ट करने का भी प्रयास करते हैं। इससे जहां हमारा पर्यावरण प्रदूषित होता है तो वहीं बिखरे प्लास्टिक कचरे के कारण गांव की नालियों इत्यादि के अवरुद्ध होने की समस्या से भी जूझना पड़ता है। यही नहीं प्लास्टिक कचरा न केवल हमारे नदी, नालों, तालाबों, कृषि भूमि इत्यादि को प्रदूषित कर रहा है बल्कि पेयजल स्त्रोत भी प्रभावित हो रहे हैं। जिसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है।
क्या कहते हैं पंचायत प्रधान:
ग्राम पंचायत पस्सल के प्रधान विशाल सिंह राठौर का कहना है कि उनकी पंचायत में स्थापित प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र को क्रियाशील कर एकत्रित सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे को पुन: इस्तेमाल योग्य बनाने को प्रोसेसिंग का कार्य किया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्लास्टिक कचरा एक बहुत बड़ी समस्या बनकर सामने आई है जिसके निष्पादन को उनकी पंचायत के माध्यम से यह प्रयास शुरू हुआ है। इसके अलावा महिलाओं व बच्चों के सेनेटरी पैड व नैपकिन निपटान को इंसीनरेटर मशीन भी स्थापित की जा रही है। उन्होंने पंचायत के इस कार्य को सफल बनाने के लिये समाज के सभी लोगों से सहयोग की अपेक्षा की है। उन्होंने बताया कि इस संयंत्र का संचालन एक स्थानीय व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है।
क्या कहते हैं अधिकारी:
खंड विकास अधिकारी (बी.डी.ओ.) चौंतड़ा सरवन कुमार का कहना है कि चौंतड़ा विकास खंड की 42 ग्राम पंचायतों के सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा निष्पादन को ग्राम पंचायत पस्सल में लगभग 16 लाख रुपये की राशि व्यय कर प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र स्थापित किया गया है। वर्तमान में विकास खंड की 17 ग्राम पंचायतों में सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा एकत्रीकरण कार्य शुरू कर लगभग 62 किलोग्राम प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि कलेक्शन सेंटर से इसे ई-रिक्शा या अन्य वाहन के माध्यम से संयंत्र तक पहुंचाया जाएगा।
उन्होंने ग्रामीणों से भी आह्वान किया है कि वे सिंगल यूज प्लास्टिक जिसमें दूध, दही, बिस्किट, चिप्स, कुरकुरे के पैकेट, पानी की बोतलों सहित विभिन्न खाद्य पदार्थों के रैपर इत्यादि को इधर-उधर फेंकने या जलाने के बजाय पंचायत प्रतिनिधियों, स्वच्छता वालंटियर, विभाग के फील्ड कर्मचारियों या फिर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत गठित स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को सौंपे ताकि इसका वैज्ञानिक तरीके से निपटारा किया जा सके। उन्होंने इस अभियान की सफलता को विकास खंड की समस्त जनता से सकारात्मक सहयोग की अपील भी की है ताकि चौंतड़ा विकास खंड की सभी ग्राम पंचायतों को प्लास्टिक कचरे से मुक्त कर स्वच्छ, सुंदर व प्रदूषण रहित बनाया जा सके। DOP 25/08/2024
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Wednesday, 21 August 2024

दिल्ली व चंडीगढ़ भी चख रहा दिलदार सिंह के मछली फार्म में तैयार रेनबो ट्राउट का स्वाद

जोगिन्दर नगर के दिलदार सिंह प्रतिवर्ष 3 से 4 टन ट्राउट मछली का कर रहे उत्पादन      

 वर्ष 2008 में शुरू किया ट्राउट मछली पालन का कार्य, अब प्रतिवर्ष कमा रहे 3 से 4 लाख रुपये

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल की ग्राम पंचायत मसौली के गांव पहलून निवासी 57 वर्षीय दिलदार सिंह के लिये ट्राउट मछली पालन पारिवारिक आजीविका का मुख्य आधार बना है। वर्ष 2008 में महज दो टैंक निर्माण से ट्राउट मछली पालन का शुरू किया उनका यह कार्य आज भी जारी है। वर्तमान में वे प्रतिवर्ष लगभग 3 से 4 टन रेनबो ट्राउट मछली का उत्पादन कर औसतन 3 से 4 लाख रूपये की शुद्ध आय सृजित कर रहे हैं। दिलदार सिंह के ट्राउट मछली फार्म में तैयार रेनबो मछली का स्वाद हिमाचल प्रदेश के प्रमुख शहरों शिमला, धर्मशाला, पर्यटन नगरी मनाली के अतिरिक्त दिल्ली, चंडीगढ़ जैसे बड़े शहर भी चख रहे हैं।
बड़े ही हंसमुख व खुशमिजाज व्यक्तित्व के धनी दिलदार सिंह का कहना है कि अस्सी के दशक से ही वे खेती-बाड़ी व पशुपालन से जुड़े रहे हैं। उन्होंने जीवन के शुरूआती दिनों में सब्जी एवं दुग्ध उत्पादन के माध्यम से परिवार की आर्थिकी को सुदृढ़ बनाने का कार्य शुरू किया। वर्ष 2008 में जब उन्हें मत्स्य पालन विभाग की योजना की जानकारी मिली तो उन्होंने ट्राउट मछली पालन की दिशा में कदम बढ़ाए। सरकार की ओर से दो टैंक निर्माण एवं फीड इत्यादि के लिए उन्हें लगभग 55 हजार रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ। इसके बाद वर्ष 2012-13 में दो तथा वर्ष 2016-17 में भी दो अतिरिक्त टैंक निर्माण के लिये सरकार से आर्थिक मदद प्राप्त हुई। शुरूआती दौर में वे प्रतिवर्ष लगभग 1 टन ट्राउट मछली का उत्पादन करने लगे। इसके बाद यह आंकड़ा बढक़र डेढ़ से दो टन तथा वर्तमान में लगभग 3 से 4 टन तक पहुंच चुका है। उनका कहना है कि रेनबो ट्राउट मछली पालन से वे प्रति वर्ष औसतन 3 से 4 लाख रूपये की शुद्ध आय सृजित कर पा रहे हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 में ट्राउट मछली की हैचरी भी तैयार करने में कामयाबी पाई है। अब वे ट्राउट मछली का बीज स्वयं तैयार करते हैं तथा आसपास के अन्य किसानों एवं मछली उत्पादकों को भी उपलब्ध करवाते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग का ट्राउट मछली उत्पादन पर भी पड़ रहा प्रभाव, बीमारियों का बना रहता है खतरा
दिलदार सिंह का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग का असर ट्राउट मछली उत्पादन पर भी देखा जा रहा है। जल्दी पिघलते ग्लेशियरों के कारण गत वर्षों के मुकाबले पानी की ठंडक लगातार कम हो रही है। पानी का तापमान बढ़ने से ट्राउट मछलियों के विकास में असर पड़ता है। इसके अलावा फंगस सहित अन्य बीमारियों का भी खतरा बना रहता है। मानसून मौसम में भारी बरसात के कारण दूसरे अन्य खतरे भी ट्राउट मछली उत्पादन में बाधक बनते हैं।
वर्ष 2014 में सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से हो चुके हैं सम्मानित, ट्राउट मछली पालन में हासिल किया है प्रशिक्षण
दिलदार सिंह को वर्ष 2014 में प्रगतिशील किसान के नाते जिला स्तर पर सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। इस दौरान उन्हें 10 हजार रुपये का नकद इनाम तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया है। उन्होंने वर्ष 2012 में शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, भीमताल, उत्तराखंड से ट्राउट मछली पालन में तीन दिन का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है। इसके अतिरिक्त पतलीकूहल ट्राउट मछली फार्म में वर्ष 2018, वर्ष 2014 व 2017 में महाशीर मछली प्रजनन फार्म, जोगिन्दर नगर में भी तीन-तीन दिन का प्रशिक्षण भी शामिल है।
बेहतर विपणन व प्रशिक्षण की मिले सुविधा तो ट्राउट मछली उत्पादन में आ सकता है क्रांतिकारी बदलाव
दिलदार सिंह कहते हैं कि उन्हें ट्राउट मछली को बड़े बाजारों तक पहुंचाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वे कहते हैं कि बस के माध्यम से ही दिल्ली, चंडीगढ़ सहित प्रदेश के अन्य क्षेत्रों को सप्लाई दी जाती है। यदि ट्राउट मछली विपणन की दिशा में कुछ मदद मिले तो इस क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं। उन्होंने ट्राउट मछली पालन को लेकर समय-समय पर गहन प्रशिक्षण की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
दिलदार सिंह का कहना है कि ट्राउट मछली पालन के क्षेत्र में रोजगार की बेहतरीन संभावनाएं मौजूद हैं। उन्होंने सरकार की योजना का लाभ उठाते हुए शिक्षित युवाओं से ट्राउट मछली उत्पादन के क्षेत्र में जुडऩे का भी आह्वान किया है।
क्या कहते हैं अधिकारी
सहायक निदेशक मात्स्यिकी विभाग मंडी नीतू सिंह का कहना है कि प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत सरकार ट्राउट मछली पालन इकाई स्थापित करने को आर्थिक मदद प्रदान कर रही है। उनका कहना है कि एक ट्राउट मछली उत्पादन इकाई को क्रियाशील बनाने के लिए जलाशय सहित अन्य जरूरतों के लिये अनुमानित साढ़े पांच लाख रुपये का खर्च आता है। जिसके लिये सरकार कुल लागत का सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को 40 प्रतिशत जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं महिलाओं के लिये 60 प्रतिशत का अनुदान मुहैया करवा रही है।
उन्होंने बताया कि जिला मंडी में 80 किसानों व मत्स्य पालकों के माध्यम से 178 ट्राउट मछली उत्पादन इकाईयां कार्य कर रही हैं। जिनके माध्यम से प्रतिवर्ष लगभग 50 मीट्रिक टन ट्राउट मछली का उत्पादन हो रहा है।    
DOP 22/08/2024
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Thursday, 8 August 2024

मैं पहाड़ हूं,आखिर मेरी भी सहनशक्ति की एक सीमा है

मैं पहाड़ हूं। अब ओर ज्यादा बोझ नहीं सह सकता। आखिर, मेरी भी सहनशक्ति की एक सीमा है। मानो ऐसा लग रहा है कि कमोबेश यही कुछ कहना चाह रहा है दुनिया के पर्वतों का सरताज हिमालय।

अगर हिमालय की बात करें तो पिछले कुछ वर्षों से चाहे बात हिमाचल की हो, उत्तराखंड की हो या फिर दूसरे हिमालयी राज्यों की। प्रतिवर्ष हमारे पहाड़ों में प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप वर्ष दर वर्ष बढ़ता जा रहा है। बीते वर्ष की भांति अगला वर्ष इन प्राकृतिक आपदाओं का एक भयावह मंजर लेकर हम सबके सामने होता है। इन प्राकृतिक आपदाओं के कारण जहां प्रत्येक वर्ष सैंकड़ों लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ रहा है तो वहीं करोड़ों की संपति पलक झपकते ही कब मिट्टी हो गई पता ही नहीं चलता है। चंद मिनटों में ही हम इन्सानों के वर्षों संजोय सपने कब धराशायी हो जाए इसकी कोई गारंटी नहीं। इन प्राकृतिक आपदाओं में जब कोई अपने सबसे करीबी को खोता है तो उसका दर्द, उसकी पीड़ा तो केवल अपनों को खोने वाला व्यक्ति ही महसूस कर सकता है। लेकिन अब प्रश्न यही खड़ा हो रहा है कि आखिर देवता तुल्य हमारे ये पहाड़ हमसे इतने रूष्ट क्यों हो चले हैं? आखिर हम इंसानों ने ऐसा क्या कर दिया है कि कभी अच्छी वर्षा के लिये ईश्वर से गुहार लगा रहे लोगों के लिये मात्र चंद घंटों की बारिश विनाश लीला लिख दे रही है। प्रत्येक वर्ष यह बरसात हमें ऐसे जख्म दे रही है जो शायद ही कभी भरें। क्या हमने इस ओर कभी सोचने का प्रयास किया है?

ऐसा नहीं है कि हमारा ये हिमालय पर्वत अभी-अभी खड़ा हुआ हो। इसने न जाने कितनी उठती, खिलखिलाती, बिखरती व खंडहर होती पीढिय़ों को अपनी गोद में खिलाया है। यह वही हिमालय पर्वत है जिससे निकलने वाली अनेकों नदियां हमें जीवन दे रही हैं। ये वही हिमालय है जिसने जल रूपी जीवन देकर अनेकों सभ्यताओं को फलने-फूलने का अवसर प्रदान किया। इसी हिमालय के आगोश में बैठकर ऋषि मुनियों ने घोर तप कर मोक्ष की अनुभूति की है। यह वही हिमालय पर्वत है जिसके आंचल में करोड़ों देवी-देवता वास करते हैं। करोड़ों इंसानों के साथ-साथ जीव जंतुओं व पेड़ पौधों का घर भी है। फिर ये हिमालय राज आज हम इन्सानों से इतने रूष्ट क्यों हो गए हैं? क्यों हमें इतनी कठोर सजा दे रहे हैं? क्या हम इंसानों ने कभी इन प्रश्नों के उत्तर को अपने भीतर टटोलने का प्रयास किया है? क्या हमारे पास इतना समय है कि हमने पहाड़ों की खूबसूरत प्रकृति को कभी समझने की ओर कदम बढ़ाए हैं? खैर मन में ऐसे असंख्य प्रश्न खड़े हो रहे हैं जिनका शायद कोई अंत ही न हो।
लेकिन लगता है प्रतिवर्ष हो रही पहाड़ों की इस विनाशलीला को रोकने के लिए कठोर कदम उठाने का समय आ गया है। हमें अब इस बात पर गंभीरता से मंथन करना होगा कि आखिर ऐसा क्या हो गया है की मन को सुकून देने वाले ये खूबसूरत पहाड़ इतने रूष्ट हो चले हैं कि अब तो यहां रहने पर भी डर लगने लगा है? क्या हम इंसान इसके लिये प्रकृति को ही दोषी ठहरा देंगे या फिर अपनी जिम्मेदारी का भी एहसास करेंगे। हम शायद यहां कुछ भूल कर रहे हैं कि आखिर इन पहाड़ों की भी सहनशक्ति की कोई सीमा तो होगी। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम इंसानों ने स्वार्थ की पूर्ति के लिये पहाड़ों का इतना दोहन कर दिया हो कि अब वो हमारा बोझ उठाने में ही सक्षम न रहे हों। लगता है कि हम इंसानों ने स्वार्थ की पूर्ति के लिए पहाड़ों पर इतना अतिक्रमण कर लिया हो कि देवता तुल्य ये पहाड़ अब हमसे नाराज हो चले हों। कहीं ऐसा तो नहीं पहाड़ों के कण-कण में वास करने वाले असंख्य देवी देवताओं के प्रति हमने निर्धारित लक्ष्मण रेखा को ही पार तो नहीं कर दिया है। हमें इस बात पर भी गौर करना होगा कि कहीं हमारे ये पहाड़ भविष्य में किसी बड़ी प्राकृतिक आपदा के प्रति हमें सजग, सचेत व सर्तक तो नहीं कर रहे हैं।  
लेकिन अब यह प्रश्न खड़ा हो रहा है कि तो क्या हम इंसान पहाड़ों को छोडक़र मैदानों की ओर चले जाएं? आखिर ये भी तो संभव नहीं है। ऐसा भी तो नहीं है कि पहाड़ों में रहने वाले केवल हम अकेले इंसान हों। सदियों से लोग यहां रहते आए हैं। तो फिर ऐसा हम क्या कर सकते हैं कि हम भी सुरक्षित रहें और देवता तुल्य हमारे ये पहाड़ भी। तो क्या हम इस दृष्टिकोण के साथ कुछ लक्ष्य निर्धारित नहीं कर सकते हैं? मुझे लगता है कि सबसे पहले हम इंसानों को जहां विकास रूपी मॉडल की परिभाषा को पहाड़ों की दृष्टि से पुन: परिभाषित करना होगा। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि पहाड़ों व मैदानों में विकास का एक जैसा मॉडल हम तय नहीं कर सकते हैं। हम पहाड़ों में चंडीगढ़, दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों की अपेक्षाकृत न तो गगनचुंबी इमारतों को खड़ा कर सकते हैं न ही प्रत्येक आंगन को सडक़ सुविधा से जोडऩे की इच्छा ही रख सकते हैं।
हम शायद यह भूल कर बैठते हैं कि पहाड़ विकास के नाम पर वह सब नहीं सह सकते जो हमारे मैदानी इलाकों में होता है। आखिर हमारे इन पहाड़ों की सहनशक्ति की भी एक सीमा है। लेकिन हम इंसान अपनी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए इन पहाड़ों को कभी सडक़ के नाम पर तो कभी रास्तों के नाम पर तो कहीं बहु मंजिला भवन बना कर चीर हरण करने में भी तो कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हद तो तब हो जाती है जब हम लालच में आकर नदी-नालों के मुहानों पर अतिक्रमण ही नहीं बल्कि बंद करने से भी गुरेज नहीं करते हैं। ऊपर से पर्यटन व धार्मिक यात्राओं के नाम हम पहाड़ों पर सुकून प्राप्त करने तो जाते हैं लेकिन कई तरह का कूड़ा कचरा भी हम इंसान ही तो छोडक़र आ रहे हैं।
हकीकत तो यह है कि हम इंसानों ने सुख सुविधाओं की लालसा में पहाड़ों को इतना छलनी कर दिया है कि अब लगता है कि वे हमारा बोझ उठाने में असमर्थ हो रहे हैं। नतीजा हमारी प्रकृति कहीं भूस्खलन, कहीं बाढ़, कहीं पेड़ गिरने तो अब बादल फटने जैसी अनेकों घटनाएं हमें आए दिन पीड़ा रूपी जख्म दे रही है। हमें यह भी याद रखना होगा कि हम भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील क्षेत्र में रहते हैं तथा रिक्टर पैमाने पर 6 या इससे अधिक की कंपन भयंकर विनाशलीला लिख सकती है। ऐसे में आओ प्रकृति के दिये इन जख्मों से हम कुछ सबक लें। भविष्य के लिए ऐसा खाका तैयार करें जिससे न केवल हम इंसान ही सुरक्षित न हों बल्कि देवता तुल्य ये पहाड़ भी अपनी प्राकृतिक विविधता एवं सुंदरता को कायम रख सकें। हमें यह नहीं भूलना होगा कि आखिर इन पहाड़ों की सहनशक्ति की भी तो कोई सीमा होगी। लेकिन स्वार्थ की हांडी में एक अंधी दौड़ दौड़ता इंसान क्या प्रकृति द्वारा आए दिन दिये जा रहे इन जख्मों से कोई सीख लेगा? DOP 06/08/2024
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Thursday, 1 August 2024

मुख्य मंत्री कन्या दान और शगुन योजनाओं के तहत बेटियों की शादी पर सरकार ने व्यय किये 25.21 लाख रुपये

 चौंतड़ा ब्लॉक में गत वर्ष 53 बेटियों को मिले 19.43 लाख रुपये, इस वर्ष 18 मामलों में 5.78 लाख रुपये स्वीकृत

हिमाचल प्रदेश में सुख की सरकार गरीब व जरूरतमंद बेटियों की शादी में मददगार बन रही है। जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत चौंतड़ा ब्लॉक में सुख की सरकार ने अपने लगभग 18 माह के कार्यकाल में मुख्यमंत्री कन्यादान तथा शगुन योजनाओं के माध्यम से बेटियों के हाथ पीले करने पर लगभग 25 लाख 21 हजार रुपये व्यय कर चुकी है। प्रदेश सरकार की ये दोनों योजनाएं हमारे समाज के ऐसे गरीब व जरूरतमंद परिवारों के लिए बेटी की शादी में न केवल एक शगुन का काम कर रही हैं बल्कि महंगाई के इस दौर में ऐसे परिवारों के लिए आर्थिक तौर पर सहारा भी प्रदान कर रही हैं।
मुख्यमंत्री कन्यादान व शगुन योजनाओं के माध्यम से जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत चौंतड़ा ब्लॉक में वित्तीय वर्ष 2023-24 में 53 पात्र बेटियों की शादी पर प्रदेश सरकार ने 19 लाख 43 हजार रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की है जबकि चालू वित्तीय वर्ष में अब तक कुल 18 मामलों में 5 लाख 78 हजार रुपये की आर्थिक मदद शामिल है।  
वित्तीय वर्ष 2023-24 में लाभान्वित 53 बेटियों की बात करें तो मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत 15 पात्र बेटियों को 7 लाख 65 हजार रुपये जबकि शगुन योजना के माध्यम से 38 बेटियों को 11 लाख 78 हजार रुपये की मदद शामिल है। जबकि चालू वित्तीय वर्ष में अब तक लाभान्वित 18 पात्र बेटियों में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत एक बेटी को 51 हजार रुपये जबकि शगुन योजना के माध्यम से 17 बेटियों को 5 लाख 27 हजार रुपये की आर्थिक सहायता शामिल है।
ऐसे में प्रदेश सरकार की मुख्यमंत्री कन्यादान तथा शगुन योजनाएं गरीब व जरूरतमंद परिवारों की बेटी की शादी में मददगार साबित हो रही हैं। इन योजनाओं के माध्यम से सरकार का भी प्रयास है कि बेटी की शादी में वह न केवल सहारा बने बल्कि परिवार की चिंता को भी कम करने में मददगार साबित हो सके। सरकार के इन प्रयासों से जहां गरीब परिवारों को बेटी की शादी की चिंता कम हो रही है बल्कि समाज में बेटियों के प्रति सोच में भी व्यापक बदलाव देखा जा रहा है।  
योजनाओं की क्या है पात्रता की शर्तें
मुख्यमंत्री कन्या दान योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए जहां परिवार की समस्त स्रोतों से आय 50 हजार रुपये वार्षिक से अधिक न हो। बेटी के पिता की मृत्यु हो गई हो या फिर शारीरिक या मानसिक तौर पर आजीविका कमाने में असमर्थ हो। इसके अलावा परित्यक्ता तलाकशुदा महिलाओं की पुत्रियां, जिनके संरक्षक की वार्षिक आय 50 हजार रुपये से अधिक न हो। साथ ही शादी के समय बेटी की आयु 18 वर्ष जबकि दूल्हे की आयु 21 वर्ष पूर्ण होनी चाहिए। ऐसे पात्र परिवारों को बेटी का शादी पर सरकार 51 हजार रुपये बतौर आर्थिक मदद प्रदान करती है।
इसी तरह शगुन योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए परिवार गरीबी रेखा से नीचे या बीपीएल सूची में चयनित होना चाहिए। इस योजना के तहत आय प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होती है। पात्र परिवार को सरकार बेटी की शादी में 31 हजार रूपये की आर्थिक सहायता प्रदान करती है।
कैसे करें आवेदन
पात्र परिवार इन योजनाओं का लाभ बेटी की शादी के 6 माह पहले या फिर शादी के 6 माह बाद तक ले सकते हैं। इसके लिए उन्हे 6 माह पहले संबंधित पंचायत प्रधान से शादी निर्धारित होने का प्रमाणपत्र तथा जबकि शादी होने के 6 माह तक विवाह प्रमाणपत्र सहित अन्य आवश्यक दस्तावेजों के आवेदन करना होगा। मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के लिए ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है जबकि शगुन योजना के लिए ऑफलाइन आवेदन करना होगा। इस संबंध में अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी आंगनबाडी कार्यकर्ता, आंगनबाडी पर्यवेक्षिका या बाल विकास परियोजना अधिकारी कार्यालय से संपर्क स्थापित कर सकते हैं।
क्या कहते हैं अधिकारी
बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) चौंतड़ा बी.आर. वर्मा का कहना है कि मुख्य मंत्री कन्यादान व शगुन योजनाओं के तहत चौंतड़ा विकास खंड में वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 53 बेटियों की शादी पर सरकार ने 19 लाख 43 हजार रुपये का शगुन दिया है। चालू वित्तीय वर्ष के दौरान इन दोनों योजनाओं के तहत अब तक कुल 18 मामलों में 5 लाख 78 हजार  रुपये की आर्थिक मदद को स्वीकृति प्रदान कर दी है। उन्होने बताया कि मुख्य मंत्री कन्यादान योजना के तहत 51 हजार जबकि शगुन योजना के माध्यम से 31 हजार रूपये की राशि सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में जमा की जाती है। DOP 25/07/2024
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