कहते हैं कई वर्ष पूर्व ब्यास नदी में बहकर आई है यह मूर्ति, छोटे से मंदिर में आज भी है विराजमान
मंडी जिला के जोगिंदर नगर उपमंडल के तहत गांव लांगणा में भगवान शिव की पंचमुखी मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति के पंचमुख होने पर इसे पंचमुखी महादेव के नाम से भी जाना जाता है। कई वर्षों तक यह मूर्ति खुले आसमान के नीचे ही रही। बाद में एक छोटे से मंदिर का निर्माण कर इसे मंदिर के भीतर स्थापित किया गया है। आज भी यह मूर्ति इसी छोटे से मंदिर में विराजमान है तथा श्रद्धालुओं की इसके प्रति गहरी आस्था है। हर वर्ष श्रावण मास में बेलपत्र से महादेव की पूजा की जाती है तथा प्रतिवर्ष 5 अगस्त से 15 अगस्त तक शिव महापुराण कथा का भी आयोजन किया जाता है।
कहते हैं कि यह विशाल मूर्ति ब्यास नदी में बहकर आई है। इस मूर्ति का इतिहास सैंकड़ों वर्ष पूर्व का माना जाता है। क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि भगवान शिव की यह पंचमुखी मूर्ति का इतिहास ब्रिटिश शासन के समय से ही जुड़ा रहा है। बताते हैं कि इस मूर्ति को ब्यास नदी के दूसरे छोर की ओर ले जाने के लिए कई लोगों ने प्रयास किये परन्तु उन्हे हमेशा असफलता ही मिली।
ब्यास नदी में बहकर आई पंचमुखी मूर्ति को पाबो गांव का पंडित लेकर पहुंचा था कठियार
जनश्रुति अनुसार ग्राम पंचायत धार के पाबो गांव का एक पंडित ब्यास नदी पार कर अपने घर पाबो की ओर जा रहा था। जैसे ही वह पंडित नाव से उतरा तो उसे पता चला है कि भगवान शिव की मूर्ति नदी में बहकर यहां आई है। इस मूर्ति को ले जाने के लिए नदी के दूसरे छोर के लोग पहुंचे हुए थे, लेकिन इसे ले जाने में असफल हो रहे थे। इस बीच पंडित ने शीशम पेड़ की जड़ में भगवान शिव की इस मूर्ति को देखा। उन्होने मूर्ति को प्रणाम कर स्पर्श किया तो मूर्ति डगमगाने लगी। पंडित ने मूर्ति को बड़ी आसानी से सिर पर उठा लिया तथा गांव धार पाबो की ओर चल पड़े। चलते-चलते जब पंडित वर्तमान मंदिर के समीप एक स्थान पर पहुंचे, जहां कभी मंडी राजा का कठियार हुआ करता था। इस स्थान पर पीपल के नीचे अटियाला बना हुआ था। पंडित मूर्ति को रखकर आराम करने लगा, बाद में जब दोबारा मूर्ति को उठाने का प्रयास किया तो मूर्ति जरा भी न हिल पाई। पंडित भगवान शिव को प्रणाम कर अपने गांव की ओर चल निकले। कहते हैं कि उस समय से लेकर वर्ष 1970 तक यह मूर्ति इसी तरह कठियार वर्तमान में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला लांगणा के समीप खुले आसमान के नीचे ही रही।
मूर्ति ने पुन्नू नामक व्यक्ति को दिया स्वपन, शूल में मंदिर बनाने का किया आग्रह
स्थानीय लोगों के अनुसार लांगणा स्कूल के समीप ही एक निजी मकान में पशु औषधालय हुआ करता था। इस औषधालय में पुन्नू राम नामक कर्मचारी कार्यरत था। एक रात को पुन्नू राम को सपने में भगवान शिव की मूर्ति ने बताया कि आप नि:सन्तान हो, समीप के तालाब (शूल) के पास एक छोटा सा मंदिर बनवा कर मेरी स्थापना करवाना। संतान के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। सुबह पुन्नू राम ने लांगणा स्कूल पहुंचकर सारी बात अध्यापकों के साथ साझा की। स्वपन अनुसार बताई जगह पर मंदिर निर्माण को सभी ने सहमति जताई। यथायोग्य चन्दा इकट्ठा कर एक छोटे से मंदिर का निर्माण कर बडी धूम-धाम से इस विशाल पंचमुखी मूर्ति की स्थापना की गई। कहते हैं कि मंदिर में मूर्ति स्थापना के बाद पुन्नू राम के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। आज भी यह मूर्ति इसी छोटे से मंदिर में विराजमान है। इस मूर्ति के पांच मुख होने के चलते इसे पंचमुखी महादेव के नाम से जाना जाने लगा। मंदिर में समय-समय पर कई साधु महात्माओं ने भी निवास किया। यहां पर बाबा चरण गिरि की समाधि भी स्थापित की गई है। वर्तमान में बाबा बसंत गिरि यहां रहते हैं।
मंदिर विकास को गठित की है पंचमुखी महादेव मंदिर समिति, किये कई विकास कार्य
मन्दिर कार्य चलाने के लिए पंचमुखी महादेव मंदिर समिति गठित की गई है। यह समिति पंजीकृत हैं। मंदिर समिति के सचिव कालीदास सकलानी ने बताया कि मंदिर समिति ने श्रद्धालुओं के सहयोग से सराय भवन, रसोई घर, लंगर हॉल, सत्संग भवन तथा निवास करने वाले महात्मा के लिए कुटिया का निर्माण करवाया है। पंचमुखी महादेव के भव्य मंदिर निर्माण के लिए समिति द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं।
कैसे पहुंचे मंदिर:
ब्यास नदी तथा सिकन्दर धार के बीच बसा यह पंचमुखी महादेव का मन्दिर मण्डी जिला के उपमंडल जोगिन्दर नगर की ग्राम पंचायत लांगणा के शूल में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला के समीप स्थित है। यहां पर पहुंचने के लिए जोगिन्दर नगर से सरकाघाट की ओर जाने वाली मुख्य सडक़ पर नेरी गांव से लडभड़ोल-बैजनाथ सडक़ पर लगभग अढ़ाई किलोमीटर चलकर पहुंचा जा सकता है। नेरी गांव से आगे चलकर कोटला-प्रैण लिंक रोड के माध्यम से मन्दिर के प्रांगण तक गाड़ी से भी पहुंचा जा सकता है।
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