आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी व एलोपैथी दवा निर्माण में तुलसी का होता है इस्तेेमाल
तुलसी की चर्चा शुरू होते ही हमारे सामने प्रत्येक घर के आंगन में उगने वाली तुलसी की तस्वीर सामने आ जाती है। तुलसी भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा भी है। धार्मिक आस्था की दृष्टि से घर में तुलसी का पौधा लगाने को न केवल शुभ माना जाता है बल्कि तुलसी की पूजा भी की जाती है। आखिर हो भी क्यों न? तुलसी महज एक पौधा ही नहीं है बल्कि कई औषधीय गुणों का खजाना भी है। घर आंगन में लगा तुलसी का पौधा न केवल विभिन्न कीड़ों व वैक्टीरिया को समाप्त करता है बल्कि हवा को भी शुद्ध बनाता है। ऐसे में यदि किसान तुलसी की खेती को बड़े पैमाने पर शुरू करते हैं तो इससे उन्हे आमदनी बढ़ाने का एक बेहतरीन विकल्प भी मिलेगा। हिमाचल प्रदेश की बात करें तो इसकी खेती को समुद्रतल से 900 मीटर ऊंचाई वाले उष्ण कटिबंधीय और उप-उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्र अनुकूल हैं। प्रदेश के मंडी, ऊना, बिलासपुर, सिरमौर, कांगड़ा और सोलन जिलों के निचले क्षेत्रों में इसे आसानी से उगाया जा सकता है। इसकी रोपाई के लिए प्रति एकड़ 80 से 120 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। इसका बीज 8-12 दिनों में अंकुरित हो जाता है जबकि नर्सरी पौध 6 सप्ताह में रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। पौधों को 40-40 या 40-50 सेंटीमीटर की दूरी पर प्रत्यारोपित करें। तुलसी की पहली फसल को 90-95 जबकि इसके बाद 65-75 दिनों के अंतराल में फसल को काटा जा सकता है। एक एकड़ भूमि से लगभग पांच क्विंटल सूखा पंचांग प्राप्त किया जा सकता है तथा औसतन 80 रूपये प्रति किलोग्राम की दर से 40 हजार रूपये तक की सकल जबकि 25 हजार रूपये तक की शुद्ध आय अर्जित की जा सकती है।
तुलसी एक खास औषधीय महत्व वाला पौधा है। इसके जड़, तना, पत्तियों समेत सभी भाग उपयोगी हैं। तुलसी का इस्तेमाल आयुर्वेदिक, यूनानी, होम्योपैथी व एलोपैथी दवा निर्माण में किया जाता है। इसकी पत्तियों में चमकीला वाष्पशील तेल पाया जाता है जो कीड़ों व वैक्टीरिया के खिलाफ काफी कारगर साबित होता है। तुलसी मुख्यत: तीन प्रकार जिसमें हरी, काली व नीली बैंगनी रंग शामिल है की पत्तियों वाली होती है। तुलसी एक झाड़ी के रूप मेें उगती है तथा इसका पौधा एक से तीन फुट तक ऊंचा होता है। पत्तियां एक से दो इंच लंबी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती है। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिन्हों से युक्त अंडाकार होते हैं तथा इसका पौधा सामान्यता दो से तीन वर्ष तक हरा बना रहता है।
तुलसी की खेती सामान्य मिटटी में आसानी से की जा सकती है। इसके लिए गरम जलवायु बेहतर है। तुलसी की नर्सरी फरवरी माह में तैयार, अप्रैल माह में इसकी रोपाई शुरू कर सकते हैं। वास्तव में तुलसी मूलरूप से बरसात की फसल है जिसे गेहूं काटने के बाद लगाया जाता है। यह फसल लगभग 90 दिनों में तैयार हो जाती है तथा इसमें रोग और कीट बहुत ही कम लगते हैं।
क्या कहते हैं अधिकारी:
नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक उत्तर भारत स्थित जोगिन्दर नगर डॉ. अरूण चंदन का कहना है कि कोरोना संकट के बीच औषधीय पौधों एवं जड़ी बूटियों की मांग में एकाएक बढ़ौतरी दर्ज हुई है। इस क्षेत्र में स्वरोजगार की अपार संभावनाओं को देखते हुए युवा किसान इस ओर आगे बढ़ सकते हैं। सरकार राष्ट्रीय आयुष मिशन (एनएएम) योजना के तहत औषधीय पौधों की खेती को समुचित वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है। उनका कहना है कि सरकार तुलसी की खेती के लिए प्रति हैक्टेयर लगभग 13 हजार रूपये तक की वित्तीय मदद प्रदान करती है। वित्तीय मदद एवं तुलसी की खेती से जुड़ी अन्य जरूरी शर्तों से संबंधित अधिक जानकारी के लिए कृषक निदेशक आयुर्वेद विभाग हिमाचल प्रदेश से संपर्क कर सकते हैं।
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