Friday, 6 March 2020

अटल टिंकरिंग लैब से स्कूली बच्चों व युवाओं के नवोन्मेषी विचारों को मिल रही नई दिशा

एटीएल के कारण चौंतड़ा स्कूल के बच्चों द्वारा तैयार मॉडल प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर सराहे
देश में स्कूली बच्चों के साथ-साथ युवाओं के नवोन्मेषी विचारों को मंजिल तक पहुंचाने तथा रचनात्मक विचार को विकसित करने में सरकार द्वारा स्थापित अटल टिंकरिंग लैब अहम भूमिका निभा रही है।

इसी अटल टिंकरिंग लैब का कमाल है कि आज मंडी जिला के चौंतड़ा स्थित राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला के बच्चों द्वारा तैयार चार मॉडल जिनमें स्मार्ट मेडिसन बॉक्स, स्मार्ट ई-डस्टबिन, स्मार्ट इरिगेशन तथा स्मार्ट पंपिंग सिस्टम शामिल है न केवल प्रदेश बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी खासे सराहे गए हैं। इसी लैब के माध्यम से तैयार किए गए स्मार्ट मेडिसन बॉक्स को जिला में दूसरा स्थान प्राप्त हो चुका है तो वहीं राज्य स्तर पर बेहतरीन भागीदारी दर्ज करवाई है। इसी तरह स्मार्ट ई-डस्टबिन को भी प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर खूब सराहा गया है। स्कूल के टीजीटी नॉन मेडिकल अध्यापक एवं अटल टिंकरिंग लैब प्रभारी संदीप वर्मा ने बताया कि स्कूल की छात्राओं रीतिका, रश्मि तथा अंचला ठाकुर के माध्यम से स्मार्ट मेडिसन बॉक्स बनाने का आइडिया मिला।

स्कूल की एटीएल लैब के सहयोग से इस आइडिया को मूर्त रूप देने का प्रयास करते हुए स्मार्ट मेडिसन बॉक्स विकसित किया गया। इस मेडिसन बॉक्स में तीन अलग-अलग खाने बने हुए हैं जिनमें दवाई रखी जाती है। जैसे ही दवाई लेने का समय आता है तो अलार्म बज उठता है। इस मेडिसन बॉक्स का लाभ यह है कि जिन्हे दवाई लेने में भूल हो जाती है उनके लिए यह काफी लाभप्रद है। यह मेडिसन बॉक्स आकार में काफी छोटा है तथा इसे आसानी से कहीं भी ले जाया जा सकता है। इसे तैयार करने में औसतन 500-700 रूपये खर्चा आया है।
इसी तरह स्कूल की छात्रा अंचला ठाकुर के माध्यम से ही स्मार्ट ई-डस्टबिन विकसित करने का आइडिया मिला जिसे भी एटीएल के सहयोग से मूर्त रूप प्रदान किया गया। शहरी निकायों अब तो ग्राम पंचायतों में भी डस्टबिन स्थापित हो रहे हैं, लेकिन इनके खुला रहने के कारण न केवल सडऩ पैदा होती है बल्कि आवारा जानवर भी कचरे में घुसे रहते हैं। इस स्मार्ट ई-डस्टबिन में अल्ट्रासोनिक सेंसर लगा हुआ है। जैसे की कोई व्यक्ति इसके नजदीक जाता है तो यह स्वयं ही खुल जाता है। इसमें तीन बटन जिनमें लाल, हरा व नीला शामिल हैं लगे हुए हैं। लाल बटन जलने का मतलब डस्टबिन भरा, हरे का मतलब खाली तथा नीले का मतलब आधा भरा हुआ होता है। इस डस्टबिन की इंटरनेट के माध्यम से कहीं से भी निगरानी की जा सकती है।
 इसे बनाने में औसतन एक हजार रूपये तक का खर्चा आया है। यही नहीं बच्चों के माध्यम से समाज से आए अन्य रचनात्मक विचारों पर काम करते हुए एटीएल के सहयोग से स्मार्ट इरिगेशन व स्मार्ट पंपिंग सिस्टम को भी विकसित किया गया है, जिन्हे भी प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर खूब सराहा गया है।वास्तव में अटल टिंकरिंग लैब का प्रमुख उद्देश्य स्कूली बच्चों के साथ-साथ समाज के अन्य लोगों को किताबी ज्ञान के बजाए प्रेक्टिकल ज्ञान के साथ-साथ नई तकनीकों से अवगत करवाकर समाज की विभिन्न समस्याओं को हल करते हुए जीवन को सुगम बनाना है। साथ ही समाज की समुचित भागीदारी नवोन्मेषी विचारों व रचनात्मकता को एटीएल के माध्यम से मूर्तरूप प्रदान करना है।
स्कूल के प्रधानाचार्य कल्याण सिंह ठाकुर का कहना है कि वर्ष 2018-19 के दौरान हिमाचल प्रदेश को 13 हजार स्कूलों की कड़ी राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के माध्यम से दो एटीएल लैब मिली जिनमें चौंतड़ा का सरकारी स्कूल प्रदेश का पहला स्कूल था। अटल टिंकरिंग लैब के संचालन को सरकार 20 लाख रूपये की मदद करती है जिसमें 10 लाख रूपये के विभिन्न इक्यूपमेंट तथा दो लाख रूपये वार्षिक अनुदान दिया जाता है।
उन्होने कहा कि अटल टिंकरिंग लैब का प्रमुख लक्ष्य बच्चों व युवाओं में वैज्ञानिक सोच को विकसित करना है। नीति आयोग ने अटल इनोवेशन मिशन के तहत पूरे देश भर में अटल टिंकरिंग लैब स्थापित करने का प्रयोग किया है। अटल टिंकरिंग लैब में थ्री-डी प्रिंटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स के नए तकनीकों से रूबरू होने का मौका मिलता है। लैब में 6वीं कक्षा के ऊपर के विद्यार्थी, समाज के लोग शामिल होकर अपने नवोन्मेषी विचारों को मूर्तरूप प्रदान कर सकते हैं। यह लैब स्कूल समय के बाद सांय तीन बजे से कार्यरत रहती है।

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