बड़ा देव श्री हुरंग नारायण करते थे दरबार की अध्यक्षता, अब खंडहर बन चुकी है यह ऐतिहासिक धरोहर
मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल का कभी हिस्सा रही चौहार घाटी के झटिंगरी में प्राचीन काल में मंडी रियासत के राजाओं का दरबार सजता था। इस दौरान न केवल रियासत के राजा स्थानीय लोगों के साथ मिलते-जुलते थे बल्कि उनकी समस्याओं को भी सुना जाता था। इस दरबार की अध्यक्षता चौहार घाटी के बड़ा देव श्री हुरंग नारायण करते थे। वर्तमान में झटिंगरी के इस ऐतिहासिक स्थल पर न तो रियासत कालीन महल मौजूद रहा है बल्कि अब केवल कुछ अवशेष ही देखने को मिलते हैं। यहां पर राजा के साथ-साथ रानी का भी एक अलग महल हुआ करता था। लेकिन इतिहास के पन्नों से यह बात साबित हो जाती है कि चौहार घाटी के झटिंगरी में न केवल मंडी रियासत के राजा स्थानीय लोगों से मिलते जुलते थे बल्कि यहां पहुंचकर समस्याओं का भी निवारण किया करते थे।
ऐतिहासिक स्थल झटिंगरी को लेकर कुछ इतिहास की किताबों में न केवल राज दरबार लगने की जानकारी मिलती है बल्कि चौहार घाटी से जुड़ी कई ऐतिहासिक व रोचक जानकारी भी पढ़ने को मिलती है। इस संबंध में मंडी रियासत के राजा सूरज सेन (1637-1662 ई.) के समय चौहार घाटी को लेकर कुछ ऐतिहासिक संदर्भ पढ़ने को मिलते हैं। राजा सूरज सेन के युवा होने तक मंडी रियासत का राज शासन करोड़िया खत्री के पास था। जैसे-जैसे राजा सूरज सेन बड़ा होने लगा तो सत्ता करोड़िया के हाथों से निकलने लगी, ऐसे में करोड़िया ने नुरपूर के राजा जगत सिंह से मिलकर षड्यंत्र रचा। करोड़िया ने नूरपुर के राजा की बेटी का विवाह सूरज सेन से तय किया ताकि योजना के अनुसार सूरज सेन को मारा जा सके। लेकिन इस बीच सूरज सेन को इस षड्यंत्र का आभास हो गया तथा अपनी दुल्हन को वहीं पर छोड़कर वहां से भाग निकला। बाद में नूरपुर के राजा जगत सिंह ने बेटी को मंडी राजमहल पहुंचाया। इस बीच सन 1641 ई. में नूरपुर के राजा जगत सिंह ने शाहजहां के विरूद्ध मोर्चा खोल दिया। शाहजहां की ओर से गुलेर के राजा ने भाग लेते हुए रानी ताल कांगड़ा में युद्ध हुआ। इस युद्ध में न चाहते हुए भी मंडी के राजा सूरज सेन को भाग लेना पड़ा। युद्ध में नूरपुर के राजा जगत सिंह की हार हुई तथा सूरज सेन भी हार के बाद वहां से भाग निकला।
कहते हैं कि राजा सूरज सेन भागते-भागते चौहार घाटी के बरोट पहुंचा तथा यहां पर स्थानीय लोगों ने उन्हें पहचान लिया कि वे तो उनके राजा सूरज सेन हैं। उस वक्त लोगों में यह चर्चा थी कि मंडी का राजा सूरज सेन युद्ध में या तो मारा गया है या फिर गुम हो गया है। ऐसे में लोगों ने उन्हें पूरे मान-सम्मान के साथ मंडी राजमहल पहुंचाया। इसके बाद राजा सूरज सेन ने चौहार घाटी की बेगार माफ कर दी थी तथा झटिंगरी में अपना दरबार लगाकर चौहार घाटी के लोगों से मिलते थे। इस दरबार की अध्यक्षता बड़ा देव श्री हुरंग नारायण किया करते थे। इसके बाद यहां पर मंडी के राजाओं ने महल भी बनवाया। साथ ही रानी के लिए भी एक अलग महल बनवाया था। लेकिन वर्तमान में अब मात्र इन ऐतिहासिक धरोहरों के कुछ अवशेष ही रह गए हैं।
जब मंडी की रानी ने बड़ा देव हुरंग नारायण से मांगी संतान की प्राप्ति, बनवाया देवता का मोहरा
इतिहास के पन्ने बताते हैं कि मंडी रियासत के राजा साहिब सेन (1554-1575 ई.) के समय उनकी धार्मिक प्रवृत्ति की रानी प्रकाश देई ने संतान न होने पर बड़ा देव श्री हुरंग नारायण से प्रार्थना की कि यदि पुत्र हुआ तो वह अपने गहनों से देवता का मोहरा बनवाएगी। कहते हैं पुत्र होने पर रानी ने देवता का मोहरा बनवाया। इस बीच ब्यास नदी पर लोगों की सुविधा के लिए नाव चलवाई तथा रास्तों पर पीने के पानी की व्यवस्था की तथा बावडिय़ां इत्यादि भी बनवाईं। इसी दौरान मंडी के राजा ने रानी के कहने पर द्रंग के राणा पर हमला कर द्रंग की नमक खदानों को अपने अधीन कर लिया था।
चौहार घाटी का प्रवेश द्वार है झटिंगरी, प्राकृतिक तौर पर है बेहद खूबसूरत
झटिंगरी चौहार घाटी का प्रवेश द्वार है तथा पर्यटन की दृष्टि से यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। झटिंगरी व आसपास के क्षेत्र में देवदार, बुरांस, बान इत्यादि के घने जंगल मन को अलौकिक शांति का अनुभव कराते हैं। साथ ही इस स्थान से कुछ ही दूरी पर जहां एक तरफ खूबसूरत फूलाधार की वादियां हैं तो दूसरी तरफ घोघर धार है, जहां से संपूर्ण चौहार घाटी के साथ-साथ जोगिन्दर नगर व पधर क्षेत्र को निहार सकते हैं।
यह ऐतिहासिक एवं पर्यटन स्थल मंडी-जोगिन्दर नगर-पठानकोट राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर घटासनी नामक स्थान से घटासनी-बरोट सड़क पर लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है। यह स्थान उपमंडल मुख्यालय पधर से लगभग 20 किलोमीटर तथा जोगिन्दर नगर कस्बे से भी लगभग इतनी ही दूरी पर है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन जोगिन्दर नगर तथा हवाई अड्डा गग्गल (कांगड़ा) है। DOP 19/02/2025
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