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Tuesday, 18 February 2025

चौहार घाटी के झटिंगरी में कभी सजता था मंडी रियासत के राजाओं का दरबार

बड़ा देव श्री हुरंग नारायण करते थे दरबार की अध्यक्षता, अब खंडहर बन चुकी है यह ऐतिहासिक धरोहर

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल का कभी हिस्सा रही चौहार घाटी के झटिंगरी में प्राचीन काल में मंडी रियासत के राजाओं का दरबार सजता था। इस दौरान न केवल रियासत के राजा स्थानीय लोगों के साथ मिलते-जुलते थे बल्कि उनकी समस्याओं को भी सुना जाता था। इस दरबार की अध्यक्षता चौहार घाटी के बड़ा देव श्री हुरंग नारायण करते थे। वर्तमान में झटिंगरी के इस ऐतिहासिक स्थल पर न तो रियासत कालीन महल मौजूद रहा है बल्कि अब केवल कुछ अवशेष ही देखने को मिलते हैं। यहां पर राजा के साथ-साथ रानी का भी एक अलग महल हुआ करता था। लेकिन इतिहास के पन्नों से यह बात साबित हो जाती है कि चौहार घाटी के झटिंगरी में न केवल मंडी रियासत के राजा स्थानीय लोगों से मिलते जुलते थे बल्कि यहां पहुंचकर समस्याओं का भी निवारण किया करते थे।
ऐतिहासिक स्थल झटिंगरी को लेकर कुछ इतिहास की किताबों में न केवल राज दरबार लगने की जानकारी मिलती है बल्कि चौहार घाटी से जुड़ी कई ऐतिहासिक व रोचक जानकारी भी पढ़ने को मिलती है। इस संबंध में मंडी रियासत के राजा सूरज सेन (1637-1662 ई.) के समय चौहार घाटी को लेकर कुछ ऐतिहासिक संदर्भ पढ़ने को मिलते हैं। राजा सूरज सेन के युवा होने तक मंडी रियासत का राज शासन करोड़िया खत्री के पास था। जैसे-जैसे राजा सूरज सेन बड़ा होने लगा तो सत्ता करोड़िया के हाथों से निकलने लगी, ऐसे में करोड़िया ने नुरपूर के राजा जगत सिंह से मिलकर षड्यंत्र रचा। करोड़िया ने नूरपुर के राजा की बेटी का विवाह सूरज सेन से तय किया ताकि योजना के अनुसार सूरज सेन को मारा जा सके। लेकिन इस बीच सूरज सेन को इस षड्यंत्र का आभास हो गया तथा अपनी दुल्हन को वहीं पर छोड़कर वहां से भाग निकला। बाद में नूरपुर के राजा जगत सिंह ने बेटी को मंडी राजमहल पहुंचाया। इस बीच सन 1641 ई. में नूरपुर के राजा जगत सिंह ने शाहजहां के विरूद्ध मोर्चा खोल दिया। शाहजहां की ओर से गुलेर के राजा ने भाग लेते हुए रानी ताल कांगड़ा में युद्ध हुआ। इस युद्ध में न चाहते हुए भी मंडी के राजा सूरज सेन को भाग लेना पड़ा। युद्ध में नूरपुर के राजा जगत सिंह की हार हुई तथा सूरज सेन भी हार के बाद वहां से भाग निकला।
कहते हैं कि राजा सूरज सेन भागते-भागते चौहार घाटी के बरोट पहुंचा तथा यहां पर स्थानीय लोगों ने उन्हें पहचान लिया कि वे तो उनके राजा सूरज सेन हैं। उस वक्त लोगों में यह चर्चा थी कि मंडी का राजा सूरज सेन युद्ध में या तो मारा गया है या फिर गुम हो गया है। ऐसे में लोगों ने उन्हें पूरे मान-सम्मान के साथ मंडी राजमहल पहुंचाया। इसके बाद राजा सूरज सेन ने चौहार घाटी की बेगार माफ कर दी थी तथा झटिंगरी में अपना दरबार लगाकर चौहार घाटी के लोगों से मिलते थे। इस दरबार की अध्यक्षता बड़ा देव श्री हुरंग नारायण किया करते थे। इसके बाद यहां पर मंडी के राजाओं ने महल भी बनवाया। साथ ही रानी के लिए भी एक अलग महल बनवाया था। लेकिन वर्तमान में अब मात्र इन ऐतिहासिक धरोहरों के कुछ अवशेष ही रह गए हैं।
जब मंडी की रानी ने बड़ा देव हुरंग नारायण से मांगी संतान की प्राप्ति, बनवाया देवता का मोहरा
इतिहास के पन्ने बताते हैं कि मंडी रियासत के राजा साहिब सेन (1554-1575 ई.) के समय उनकी धार्मिक प्रवृत्ति की रानी प्रकाश देई ने संतान न होने पर बड़ा देव श्री हुरंग नारायण से प्रार्थना की कि यदि पुत्र हुआ तो वह अपने गहनों से देवता का मोहरा बनवाएगी। कहते हैं पुत्र होने पर रानी ने देवता का मोहरा बनवाया। इस बीच ब्यास नदी पर लोगों की सुविधा के लिए नाव चलवाई तथा रास्तों पर पीने के पानी की व्यवस्था की तथा बावडिय़ां इत्यादि भी बनवाईं। इसी दौरान मंडी के राजा ने रानी के कहने पर द्रंग के राणा पर हमला कर द्रंग की नमक खदानों को अपने अधीन कर लिया था।
चौहार घाटी का प्रवेश द्वार है झटिंगरी, प्राकृतिक तौर पर है बेहद खूबसूरत
झटिंगरी चौहार घाटी का प्रवेश द्वार है तथा पर्यटन की दृष्टि से यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। झटिंगरी व आसपास के क्षेत्र में देवदार, बुरांस, बान इत्यादि के घने जंगल मन को अलौकिक शांति का अनुभव कराते हैं। साथ ही इस स्थान से कुछ ही दूरी पर जहां एक तरफ खूबसूरत फूलाधार की वादियां  हैं तो दूसरी तरफ घोघर धार है, जहां से संपूर्ण चौहार घाटी के साथ-साथ जोगिन्दर नगर व पधर क्षेत्र को निहार सकते हैं।
यह ऐतिहासिक एवं पर्यटन स्थल मंडी-जोगिन्दर नगर-पठानकोट राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर घटासनी नामक स्थान से घटासनी-बरोट सड़क पर लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर है। यह स्थान उपमंडल मुख्यालय पधर से लगभग 20 किलोमीटर तथा जोगिन्दर नगर कस्बे से भी लगभग इतनी ही दूरी पर है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन जोगिन्दर नगर तथा हवाई अड्डा गग्गल (कांगड़ा) है। DOP 19/02/2025
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Saturday, 15 February 2025

नाबार्ड के तहत सवा 4 करोड़ से निर्मित हुई सिमस-नैल्ला-ग्वैला संपर्क सड़क

 धार्मिक स्थल सिमस एवं नागेश्वर महादेव कुड्ड के दर्शन करने में श्रद्धालुओं को होगी सुविधा 

नाबार्ड के माध्यम से लगभग सवा चार करोड़ रूपये की लागत से सिमस-नैल्ला-ग्वैला संपर्क सड़क का निर्माण कार्य लगभग पूर्ण कर लिया गया है। इस सड़क के निर्मित हो जाने से जहां मां सिमसा के दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालुओं को एक वैकल्पिक मार्ग की सुविधा सुनिश्चित हुई है तो वहीं नागेश्वर महादेव कुड्ड के दर्शन करना भी अब आसान हो जाएगा। साथ ही इस सुविधा का लाभ ग्राम पंचायत सिमस के साथ-साथ ग्राम पंचायत लडभड़ोल के ग्वैला गांव के लोगों को भी सुनिश्चित हुआ है। इस संपर्क मार्ग के बन जाने से न केवल सिमस-लडभड़ोल के मध्य दूरी कम हुई है बल्कि नागेश्वर महादेव कुड्ड के साथ-साथ मां सिमसा के दर्शन करने को एक अन्य वैकल्पिक मार्ग की सुविधा भी प्राप्त हुई है।

नाबार्ड के माध्यम से निर्मित की गई लगभग सवा तीन किलोमीटर लंबी सिमस-नैल्ला-ग्वैला संपर्क सड़क से जोगिन्दर नगर उपमंडल के लडभड़ोल क्षेत्र के दो प्रमुख धार्मिक स्थल संतान दात्री मां शारदा सिमस तथा नागेश्वर महादेव कुड्ड जहां इस सडक़ मार्ग से आपस में जुड़ गए हैं तो वहीं दोनों धार्मिक स्थलों की दूरी भी कम हुई है। साथ ही ग्राम पंचायत सिमस वासियों को जहां तहसील मुख्यालय लडभड़ोल जाने के लिए वैकल्पिक मार्ग की सुविधा मिली है तो वहीं सडक़ मार्ग का फासला भी लगभग 2 से 3 किलोमीटर कम हुआ है।

नवरात्रों में आवाजाही को नियंत्रित करने में मिलेगी मदद, सड़क से नजर आता है प्रकृति का विहंगम दृश्य 

सिमस-नैल्ला-ग्वैला संपर्क सड़क के बन जाने से जहां सिमस पंचायत के उप गांव नैल्ला को पक्की सड़क की सुविधा सुनिश्चित हुई है तो वहीं सिमस से ग्वैला आना-जाना भी सुलभ हुआ है। इस सड़क का सर्वाधिक लाभ नवरात्रों के दौरान मां सिमसा के दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालुओं को मिलेगा। इस सड़क के माध्यम से न केवल वाहनों की आवाजाही को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी बल्कि जाम की स्थिति में एक वैकल्पिक मार्ग की सुविधा भी उपलब्ध रहेगी।

लगभग सवा तीन किलोमीटर इस संपर्क सड़क से गुजरते वक्त श्रद्धालु न केवल यहां के प्राकृतिक नजारों लुत्फ उठा पाएंगे बल्कि यहां से एक तरह संधोल, हारसीपतन, जयसिंहपुर, चढिय़ार, धर्मपुर इत्यादि क्षेत्र तो दूसरी तरफ बर्फ से ढकी धौलाधार पर्वत माला के मनमोहक दृश्यों को भी निहार सकेंगे। साथ ही श्रद्धालु बाबा कमलाहिया (धर्मपुर) तथा मां आशापुरी (जिला कांगड़ा) के पवित्र स्थलों को भी आसानी देख पाएंगे।

क्या कहते हैं अधिकारी: 

एसडीएम जोगिन्दर नगर मनीश चौधरी का कहना है कि संतान दात्री मां शारदा (सिमसा) इस क्षेत्र का प्रमुख धार्मिक स्थल है। मां सिमसा के लिए वैकल्पिक सड़क मार्ग की सुविधा सुनिश्चित हो जाने से जहां श्रद्धालुओं को आवाजाही के लिए अन्य सड़क की सुविधा मिलेगी तो वहीं स्थानीय लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा। 

उन्होंने कहा कि उपमंडल के सभी विभागीय अधिकारियों को सरकार की विभिन्न विकासात्मक परियोजनाओं को तय समय अवधि में पूर्ण करने के निर्देश दिए हैं ताकि लोगों को समयबद्ध इन विकास परियोजनाओं का लाभ मिल सके। DOP 14/02/2025








Friday, 7 February 2025

वर्षा के देवता हैं बजीर-ए-चौहार घाटी देव पशाकोट

 चौहार घाटी में विभिन्न स्थानों पर देव पशाकोट के हैं अनेक मंदिर, क्षेत्र के हैं सर्वमान्य देवता

हिमाचल प्रदेश देवी देवताओं की पवित्र स्थली है। यहां पर कदम-कदम पर देवी-देवताओं के अनेक पवित्र स्थान मौजूद हैं। इन देवी देवताओं के प्रति लोगों की न केवल गहरी आस्था है बल्कि वे हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा भी हैं।
मंडी जिला के पधर उपमंडल के अंतर्गत चौहार घाटी में प्रसिद्ध देव पशाकोट के अनेक पवित्र स्थान मौजूद हैं। देव पशाकोट न केवल चौहार घाटी के सर्वमान्य देवता हैं बल्कि इन्हें बजीर-ए-चैहारघाटी भी कहा जाता है। इनका पहाड़ी शैली में चौहार घाटी की ग्राम पंचायत तरस्वाण के मंठी बजगाण नामक गांव में प्राचीन मंदिर स्थित है। इस मंदिर में पशाकोट देवता का रथ व भंडारगृह भी है। साथ ही चौहारघाटी के टिक्कन गांव के समीप ऊहल व थल्टूखोड़ नदी के संगम स्थल नालदेहरा में भी पहाड़ी शैली में देव पशाकोट का मदिंर बना हुआ है। इसके अलावा झटींगरी-बरोट मुख्य सडक़ पर देवता ढांक पर भी देव पशाकोट का मंदिर स्थापित है। इसके अलावा बरोट गांव के सिल्ह देहरा में भी इनका प्राचीन मंदिर स्थापित है। यही नहीं छोटा भंगाल के लोहारडी के पोलिंग गांव के समीप मराड़ में भी देव पशाकोट का प्राचीन मंदिर स्थित है, जिसे पशाकोट देवता का मूल स्थान माना जाता है। असीम प्राकृतिक सौंदर्य के मध्य स्थापित देव पशाकोट के ये सभी देवस्थल श्रद्धालुओं व देव आस्था रखने वालों को आकर्षित करते हैं।
हरेे भरे विशाल घने वृक्षों से युक्त देवता के इन पवित्र स्थानों पर स्वयं के जंगल के साथ-साथ देवता की निजी भूमि भी है। इस भूमि में देवता की आज्ञा के बिना कोई भी व्यक्ति किसी भी पेड़ से लोहा भी स्पर्श नहीं करा सकता। नालदेहरा स्थित ऊहल नदी पर देवता की आल (सरोवर) भी है तथा कहा जाता है कि पुरातन समय में देव पशाकोट अपने मूल स्थान मराड़ से चलकर अंत में यहीं पर आकर रूके थे।
देव पशाकोट का है एक चोकोर रथ, प्रत्येक वर्ष रथ के साथ करते हैं मेलों व हार का भ्रमण
देव पशाकोट का एक चौकोर रथ भी है। इस चौकोर रथ के शीर्ष पर पगड़ी सुशोभित है तथा गुंबदनुमा सोने का छतर भी है। रथ के चारों और चार देव मोहरे तथा सोना, चांदी, अष्टधातु सुशोभित हैं। रथ उठाने के लिए लकड़ी की लचीली अर्गलाएं लगी है, जिन्हें स्थानीय बोली में आगल भी कहा जाता है। सफेद, पीले, लाल इत्यादि परिधान युक्त देव पशाकोट का रथ प्रत्येक व्यक्ति में आस्था का संचार करता है।
देव पशाकोट (रथ द्वारा) निश्चित किए दिनों में अनेक स्थानों की यात्राओं में जाते है, जिसमें मंडी का अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव, राज्य स्तरीय लघु शिवरात्रि मेला जोगिन्दर नगर सहित कई स्थानीय मेले जैसे गलू की जातर, माला का मेला, सायर का मेला इत्यादि शामिल हैं। देवता के साथ विभिन्न वाद्य यंत्रों वाले यथा ढोल, कांसी, तुरही, नरसिंगा, शहनाई आदि सहित गूर, पुजारी, भंडारी, ध्वजवाहक आदि लगभग 45 देवलू साथ चलते हैं। इसके अतिरिक्त देव अपनी हार की हर वर्ष एक फेरा भी लगाते हैं जिसमें श्रद्धालु अपनी मन्नतों के पूरा होने पर देवता को अपनी मन्नत व जातर देते हैं।
देवता पशाकोट को वर्षा का देवता भी माना जाता है। जब-जब क्षेत्र में सूखा पड़ता है तो लोग देवता से बारिश की मांग करते हैं। साथ ही यदि अत्यधिक बारिश होने पर भी लोग देवता की शरण में जाकर वर्षा रोकने की अरदास करते हैं। इसके अतिरिक्त भूत, व्याधि, बीमारी, चोरी-दंगा, शांक-समाधान तथा व्यक्तिगत मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी चौहारवासी देवता की शरण में जाते हैं। देवता का अपना विधान है जिसकी सभी को पालना करनी पड़ती है।
देव पशाकोट के इन विभिन्न पवित्र स्थानों पर सडक़ मार्ग के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। देव पशाकोट का पहला मंदिर पठानकोट-जोगिन्दर नगर-मंडी राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर घटासनी नामक स्थान से लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर देवता ढ़ांक में स्थित है। इनका दूसरा मंदिर लगभग 15 किलोमीटर दूर टिक्कन गांव के समीप नालदेहरा नामक स्थान पर स्थित है। यहां पर पहाड़ी शैली में निर्मित इनका प्राचीन मंदिर है। साथ ही यहां पर ऊहल नदी के मध्य देवता की आल (सरोवर) भी है।
इसके अलावा मंठी बजगाण गांव में भी इनका भव्य मंदिर है जहां देवता का भंडार गृह भी है। साथ ही घटासनी से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी प्रसिद्ध पर्यटक स्थल बरोट के सिल्ह देहरा में भी देव पशाकोट का प्राचीन मंदिर स्थित है। कहते हैं कि इनका मूल स्थान छोटा भंगाल क्षेत्र के पोलिंग गांव के मराड़ में स्थित है जो घटासनी से लगभग 35 किलोमीटर दूर है।
श्रद्धालु जोगिन्दर नगर के साथ-साथ मंडी से घटासनी होकर भी यहां पहुंच सकते हैं। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन जोगिन्दर नगर है जबकि हवाई अड्डा गग्गल कांगड़ा है। DOP 06/02/2025