Monday, 7 October 2024

जोगिन्दर नगर में अनाथ बेटियों के शिक्षा के सपनों को साकार कर रही सीएम सुख आश्रय योजना

अभिभावक बनकर दो बेटियों की उच्च एवं व्यावसायिक शिक्षा का खर्च वहन कर रही सुख की सरकार

चौंतड़ा ब्लॉक में 53 पात्र लाभार्थी चिन्हित, 39 को प्रतिमाह बतौर जेब खर्च मिल रहे 4 हजार

हिमाचल प्रदेश में सुख की सरकार निराश्रित एवं अनाथ बच्चों के उच्च एवं व्यावसायिक शिक्षा के सपने को साकार करने में मददगार साबित हो रही है। जोगिन्दर नगर उपमंडल में ही प्रदेश सरकार के आर्थिक सहयोग से जहां एक बेटी का नर्सिंग करने का सपना पूरा हो रहा है तो वहीं दूसरी बेटी कॉलेज में उच्च शिक्षा हासिल करने में कामयाब हो रही है।
बी.एस.सी. नर्सिंग का प्रशिक्षण हासिल कर रही बेटी मैहक ने उस वक्त अपने पिता को खो दिया था, जब वह मां के गर्भ में ही थी। भाग्य का खेल ऐसा कि जन्म के दो माह बाद अपनी मां को भी खो दिया। बिना मां-बाप के लाड-प्यार में पली बढ़ी मैहक की परवरिश उसके दादा-दादी ने ही की। लेकिन माता-पिता के न होने का दर्द तो केवल एक अनाथ बच्चा ही महसूस कर सकता है। लेकिन दादा-दादी ने भी कभी मां-बाप की कमी मैहक को महसूस नहीं होने दी। बेटी बड़ी हुई तो नर्सिंग जैसी व्यावसायिक शिक्षा हासिल करने का सपना संजोया। लाखों रुपये की फीस एवं अन्य खर्चे पूरा करना किसी चुनौती से कम नहीं था। लेकिन ऐसे में प्रदेश की सुख की सरकार सीएम सुख आश्रय योजना के माध्यम से मददगार बन कर सामने आई है। मैहक की शिक्षा एवं अन्य खर्चों पर प्रदेश सरकार प्रति वर्ष एक लाख 22 हजार रुपये व्यय कर रही है।
इसी तरह की कहानी कॉलेज में बी.एस.सी. की शिक्षा हासिल कर रही कविता की है। कविता ने भी अपने पिता को उस वक्त खो दिया था जब वह भी मां के पेट में ही थी। जन्म के बाद मां ने बेटी को बड़े लाड़-प्यार में पालन पोषण शुरू ही किया था कि महज 5 वर्ष की आयु में मां का साथ भी छूट गया। मां-बाप के प्यार से वंचित हुई कविता का पालन पोषण दादा-दादी ने ही किया है। कविता बड़ी हुई तो उच्च शिक्षा हासिल करने का सपना संजोया। वर्तमान में कविता कॉलेज में बी.एस.सी. की शिक्षा हासिल कर रही है तथा प्रदेश सरकार प्रतिवर्ष बतौर शिक्षा खर्च 6 हजार 559 रुपये का अनुदान प्रदान कर रही है।
जीवन में मां-बाप की कमी तो कभी पूरी नहीं की जा सकती है, लेकिन अनाथ व निराश्रित बच्चों के सपने अधूरे न रह जाएं इसके लिये हमारी सरकार अवश्य मददगार साबित हो सकती है। इसी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ते हुए प्रदेश की सुख की सरकार ने हजारों निराश्रित एवं अनाथ बच्चों को 'चिल्ड्रन ऑफ द स्टेट' का दर्जा प्रदान कर न केवल उनके जीवन में नए उमंग, नए उल्लास व नए रंग भरने का प्रयास किया है बल्कि जीवन में सपनों को हकीकत में बदलने में नए संचार का भी सूत्रपात किया है। प्रदेश में मुख्यमंत्री सुख आश्रय योजना निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति करते हुए मैहक व कविता जैसे अनेक निराश्रित व अनाथ बच्चों को उच्च व व्यावसायिक शिक्षा प्रदान कर जीवन में स्थापित करने को निरंतर आगे बढ़ रही है।
क्या कहते हैं अधिकारी:
बाल विकास परियोजना अधिकारी (सी.डी.पी.ओ.) चौंतड़ा बी.आर.वर्मा का कहना है कि चौंतड़ा ब्लॉक में सीएम सुख आश्रय योजना के तहत उच्च एवं व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए कुल चार लोगों को चिन्हित किया गया है। जिनमें से एक लाभार्थी को 1 लाख 22 हजार रुपये तथा दूसरे को 6 हजार 559 रुपये वार्षिक बतौर शिक्षा अनुदान प्रदान किये जा रहे हैं। इसके अलावा शादी अनुदान के लिये एक, वोकेशनल ट्रेनिंग को 2 तथा अपना कारोबार शुरू करने को एक लाभार्थी ने अपना आवेदन प्रस्तुत किया है।
उन्होंने बताया कि चौंतड़ा ब्लॉक में कुल 53 लाभार्थी चिन्हित किये गए हैं। जिनमें से 39 को प्रतिमाह 4 हजार रुपये बतौर जेब खर्च दिया जा रहा है तो वहीं 14 को फोस्टर केयर सेवा के अंतर्गत प्रतिमाह 25 सौ रुपये प्रदान किये जा रहे हैं जिसमें 500 रुपये बतौर आरडी तथा 2 हजार रुपये नकद शामिल है। इसके अलावा 18 से 27 वर्ष आयु वर्ग के लाभार्थियों को उच्च एवं व्यावसायिक शिक्षा के साथ-साथ गृह निर्माण व शादी अनुदान तथा जमीन न होने पर 3 बिस्वा भूमि भी उपलब्ध करवाई जा रही है।  DOP 04/10/2024







Tuesday, 24 September 2024

जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र में 1.09 करोड़ रूपये से 73 परिवारों ने बनाए आशियाने

 स्वर्ण जयंती आश्रय  योजना के तहत मकान बनाने को सरकार दे रही है डेढ़ लाख रूपये

जीवन में प्रत्येक व्यक्ति का यह सपना होता है कि उसका अपना घर हो, जिसके नीचे अपने परिवार का बेहतर तरीके से पालन पोषण कर सके। इंसान जीवन भर सिर के ऊपर एक अदद छत के लिये न केवल दिन रात कड़ी मेहनत करता है बल्कि सपने को हकीकत में बदलने के लिए कोई कोर कसर भी नहीं छोड़ता है। लेकिन ऐसे में यदि परिवार की आर्थिक सेहत कमजोर हो तो इस सपने को पूरा करना किसी पहाड़ जैसी चुनौती से कम नहीं लगता है। लेकिन ऐसे में सरकार की स्वर्ण जयंती आश्रय योजना कई गरीब व जरूरतमंद परिवारों के लिये गृह निर्माण में मददगार साबित हो रही है। प्रदेश की सुख की सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान अकेले जोगिन्दर नगर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में ही 73 पात्र परिवारों को मकान निर्माण के लिए लगभग 1 करोड़ 9 लाख रूपये की राशि व्यय की है।
सरकार की मदद से हंसराज को मिली पक्की छत, बेटे की शादी करने मेें हुई सहूलियत
जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत नेर घरवासड़ा के हंसराज से बातचीत की तो उनका कहना है कि उनके पास बुजुर्गों द्वारा निर्मित काफी पुराना एक कच्चा पुश्तैनी मकान था। इस बीच बेटे की शादी भी करनी थी, लेकिन कमजोर आर्थिकी के चलते वे न केवल अपना मकान निर्मित कर पार रहे थे बल्कि बेटे की शादी करने में भी मुश्किलें आ रही थी। इस बीच उन्होंने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के माध्यम से मकान निर्माण के लिये आर्थिक सहायता हेतु आवदेन प्रस्तुत किया। उन्हें स्वर्ण जयंती आश्रय योजना के अंतर्गत मकान निर्माण को डेढ़ लाख रूपये की आर्थिक मदद प्राप्त हुई। इससे न केवल मकान निर्माण करने का उनका सपना पूरा हुआ बल्कि बेटे की शादी भी अच्छे तरीके से वे कर पाने में कामयाब हुए। उन्होंने मकान निर्माण को आर्थिक मदद प्रदान करने के लिये सरकार का आभार व्यक्त किया।
इसी तरह जोगिन्दर नगर के गांव सेरी के रमेश चंद, ग्राम पंचायत सैंथल पड़ैन के गांव स्तैन निवासी रमेश चंद, गांव त्रामट निवासी संजू कुमार, ग्राम पंचायत बदेहड़ निवासी बिहारी लाल, ग्राम पंचायत पीपली के कुराटी निवासी ज्ञान चंद, कस गांव के प्रताप सिंह, ग्राम पंचायत ब्यूंह की मंगली देवी, ग्राम पंचायत धार के पाबो निवासी राम सिंह, ग्राम पंचायत ऊपरीधार के गांव छंछेहड़ निवासी शेर सिंह जैसे कई नाम हैं जिनके लिए सरकार की स्वर्ण जयंती आश्रय योजना पक्का मकान निर्मित करने में मददगार साबित हुई है। प्रदेश में अनुसूचित जाति, अन्य पिछडा वर्ग व अल्पसंख्यक मामलों के विभाग पूर्व में कल्याण विभाग के माध्यम से चलाई जा रही स्वर्ण जयंती आश्रय योजना के तहत न केवल प्रदेश के गरीब, जरुरतमंद व मकान विहीन लोग लाभान्वित हो रहे हैं, बल्कि स्वयं की पक्की छत पाकर समाज में अपनी मान मर्यादा व प्रतिष्ठा को भी स्थापित कर पा रहे हैं।
जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र के तहत वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान लगभग एक करोड़ 9 लाख रूपये का अनुदान प्रदान कर 73 पात्र परिवारों को लाभान्वित किया गया है। जिनमें अनुसूचित जाति के 72 तथा अन्य पिछड़ा वर्ग का एक परिवार शामिल है।
किन्हे मिलती है सहायता:
स्वर्ण जयंती आश्रय योजना के तहत अनुसूचित जाति/जनजाति तथा अन्य पिछडा वर्ग परिवारों के सदस्य, जिनकी वार्षिक आय समस्त साधनों से 50 हजार रुपये से अधिक न हो, जिनके नाम राजस्व रिकार्ड में मकान निर्माण हेतु कम से कम 2 विस्वा भूमि उपलब्ध हो, मकान कच्चा हो, सरकार की किसी योजना के तहत मकान निर्माण को आर्थिक सहायता प्राप्त न की हो तथा जिनके पास अपना मकान न हो तो सरकार ऐसे जरुरतमंद लोगों को मकान निर्माण को दो किस्तों में कुल एक लाख 50 हजार रुपये की अनुदान राशि मुहैया करवाती है।
कैसे करें आवेदन:
इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र व्यक्ति निर्धारित प्रपत्र पर आवेदन कर सकते हैं। आवेदन पत्र के साथ वार्षिक आय का प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, हिमाचली प्रमाण पत्र जो कार्यकारी दण्डाधिकारी से जारी किया गया हो, आधार कार्ड की कॉपी, बैंक खाता संख्या तथा जिस भूमि पर मकान बनाना प्रस्तावित है की जमाबंदी नकल व ततीमा भी प्रस्तुत करना अनिवार्य है। इसके अलावा पुराने मकान की फोटो, पंचायत का अनापत्ति प्रमाणपत्र एवं मकान निर्माण को ग्राम सभा द्वारा पारित प्रस्ताव की कापी भी साथ संलग्न करना जरूरी है।
किसे सम्पर्क करें:
इस योजना का लाभ प्राप्त करने तथा अधिक जानकारी हासिल करने के लिए पात्र व्यक्ति या परिवार अपने क्षेत्र के तहसील कल्याण अधिकारी या जिला कल्याण अधिकारी के कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।
क्या कहते हैं अधिकारी:
इस संबंध में तहसील कल्याण अधिकारी, जोगिन्दर नगर चंदन वीर सिंह का कहना है कि प्रदेश सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान जोगिन्दर नगर विधानसभा क्षेत्र में स्वर्ण जयंती आश्रय योजना के तहत कुल 73 परिवारों को लाभान्वित कर लगभग 1 करोड़ 9 लाख रूपये का अनुदान प्रदान किया है। उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत पक्का मकान निर्माण करने को सरकार दो किस्तों में डेढ़ लाख रूपये उपलब्ध करवा रही है। DOP 25/09/2024
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Tuesday, 10 September 2024

महिलाएं सड़क किनारे मौसमी सब्जियां बेचकर परिवार की आर्थिकी को कर रही सुदृढ़

मंडी-जोगिन्दर नगर-पठानकोट हाईवे पर गलू व गुम्मा के बीच दो दर्जन महिलाएं बेच रही मौसमी फल व सब्जियां

कोविड काल के मुश्किल दौर ने दिखाई ये राह, अब दर्जनों महिलाओं की आर्थिकी का बना अहम जरिया

ग्रामीण महिलाएं अब बच्चों व परिवार की देखरेख के साथ-साथ परिवार की आर्थिकी को भी सुदृढ़ बनाने का प्रयास कर रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो आज भी बड़े स्तर पर महिलाएं खेती-बाड़ी व पशुपालन के साथ जुड़ी हुई हैं। लेकिन बदलते वक्त के साथ आज यही ग्रामीण महिलाएं घर की दहलीज पार कर परिवार की आर्थिकी को सुदृढ़ करने का प्रयास कर रहीं हैं। हकीकत तो यह है कि ग्रामीण महिलाओं ने पारंपरिक खेती-बाड़ी व पशुपालन को आज आर्थिकी का अहम जरिया बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं, जिसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
हमारी इन ग्रामीण महिलाओं की इस बदलती सोच का ही नतीजा है कि पठानकोट-मंडी राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर जोगिन्दर नगर के गलू से लेकर गुम्मा नामक स्थान तक लगभग दो दर्जन से अधिक महिलाएं प्रतिदिन सड़क किनारे मौसमी फल व सब्जियां बेचते हुए नजर आ जाएंगी। ये मेहनतकश महिलाएं प्रतिदिन अपने घर से लगभग एक से डेढ़ किलोमीटर का सफर तय कर सडक़ तक पहुंचती है। इस दौरान वे खेतों में तैयार मौसमी फल व सब्जियों को पीठ पर उठाकर न केवल सड़क तक पहुंचाती हैं बल्कि इन्हें बेचने का भी कार्य कर रही हैं। इससे न केवल उन्हे परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए धनराशि प्राप्त हो जाती है बल्कि घर में प्राकृतिक तौर पर तैयार इन मौसमी फल व सब्जियों को एक मार्केट भी उपलब्ध हो रही है। प्रतिदिन इस राष्ट्रीय उच्च मार्ग से सैंकड़ो वाहन गुजरते हैं, ऐसे में राहगीर प्राकृतिक तौर पर तैयार इन फलों व सब्जियों को खरीदने के लिए विशेष तरजीह भी देते हैं। इससे इन ग्रामीण महिलाओं को परिवार की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी धनराशि का इंतजाम भी हो रहा है।
जब इस संबंध में कुछ महिलाओं से बातचीत की तो इनका कहना है कि कोविड के दौरान जब परिवार की आय के साधन बंद हो गए थे, तो उन्होंने सड़क किनारे बैठकर फल व सब्जियां बेचनी शुरू की। इससे न केवल उन्हें उस मुश्किल दौर में आय का एक नया जरिया मिला बल्कि घर में तैयार होने वाली मौसमी फल व सब्जियां बेचने को एक मार्केट भी उपलब्ध हुई। शुरूआती दौर में मात्र कुछ महिलाएं ही सामने आई लेकिन वर्तमान में यह आंकड़ा दो दर्जन से भी अधिक का हो चुका है। इनका कहना है कि इस कार्य से न केवल उन्हें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिये जरूरी धनराशि प्राप्त हो रही है बल्कि उन्हें समाज के बीच स्वयं को स्थापित करने का एक अवसर भी मिल रहा है। ये महिलाएं अब पूरा वर्ष भर मौसम आधारित फलों व सब्जियों को बेचने का कार्य कर रही हैं। 
इसी बीच सब्जियां खरीदने के लिए रूके कुछ यात्रियों से बातचीत की तो इनका भी कहना है कि ग्रामीण महिलाओं द्वारा बेचे जा रहे ये उत्पाद जहां पूरी तरह से प्राकृतिक हैं तो वहीं कीमत बाजार भाव से भी कुछ कम है। जिसका सीधा असर उनकी सेहत के साथ-साथ आर्थिकी पर भी पड़ता है। साथ ही कहना है कि प्राकृतिक तौर पर तैयार सब्जियां बाजारों में आजकल बमुश्किल से ही मिल पाती हैं, लेकिन आज वे यहां से टमाटर, भिंडी, तोरी, देसी ककड़ी, करेला, घीया, कद्दू, घंघीरी, प्याज, आलू, अदरक, लहसुन, मूली इत्यादि खरीद कर ले जा रहे हैं जो पूरी तरह से प्राकृतिक तौर पर उगाए गए हैं तथा इनकी पौष्टिकता भी अधिक है।
ऐसे में कह सकते हैं कि ग्रामीण महिलाओं ने परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी को अपने कंधों पर उठाकर पशु पालन व खेती बाड़ी के साथ-साथ आर्थिकी को सुदृढ़ बनाने की दिशा में अहम कदम बढ़ाया है। ग्रामीण महिलाओं का यह प्रयास निश्चित तौर पर महिला सशक्तिकरण की दिशा में अहम कड़ी साबित हो रहा है। DOP 10/09/2024
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Thursday, 5 September 2024

हिमाचल प्रदेश के प्रथम वेटरन जर्नलिस्ट हैं जोगिन्दर नगर वासी रमेश बंटा

 पत्रकारिता के क्षेत्र में तय किये हैं 50 वर्ष, देखे हैं हिमाचल प्रदेश के कई उतार चढ़ाव

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के जोगिन्दर नगर निवासी 82 वर्षीय रमेश बंटा हिमाचल प्रदेश के पहले वेटरन जर्नलिस्ट हैं, जिन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में 50 वर्ष का लंबा सफर तय किया है। रमेश बंटा ने पत्रकारिता के क्षेत्र में उस दौर में कार्य किया है जब समाचारों को प्रेषण करने की केवल नाम मात्र सुविधाएं हुआ करती थीं। बावजूद इसके रमेश बंटा ने न केवल जनहित से जुड़े कई मुद्दों को प्रमुखता से उठाया बल्कि संबंधित सरकारों ने त्वरित कार्रवाई करते हुए समाज हित में कई अहम फैसले लेते हुए महत्वपूर्ण कदम भी उठाए।

रमेश बंटा का जन्म 6 अगस्त, 1942 को जोगिन्दर नगर कस्बे से महज 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव हरा बाग में हुआ। इसके बाद इनका परिवार जोगिन्दर नगर आ गया तथा यहीं पर वर्तमान में इनका कारोबार भी है। रमेश बंटा वर्ष 1963-64 में उस वक्त पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ गए जब वे कॉलेज की शिक्षा ग्रहण करने डीएवी जालंधर गए थे। इस दौरान वे जालंधर में पंजाब केसरी समाचार पत्र से जुड़े कई लोगों के संपर्क में आए तथा 13 जून, 1965 को पंजाब केसरी के पहले प्रकाशन में भी शामिल रहे। इसके उपरांत वे पंजाब केसरी समाचार पत्र से जुड़ गए तथा वर्तमान समय तक वे पंजाब केसरी समाचार पत्र से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा उन्होंने वीर प्रताप, हिंदी मिलाप जैसे समाचार पत्रों के लिए भी समय-समय पर लेखन करते रहे। उन्होंने शिमला से निकलने वाले समाचार पत्र हिमालय टाईम्स के साथ भी कार्य किया। पत्रकारिता क्षेत्र में 50 वर्ष का सफर पूरा कर चुके रमेश बंटा हिमाचल प्रदेश के प्रथम वेटरन जर्नलिस्ट भी हैं तथा वर्ष 2012 में यह दर्जा प्रदान किया है। इसके अलावा वे पंजाब केसरी समाचार पत्र के वर्ष 1965 से सरकारी मान्यता प्राप्त पत्रकार भी हैं।

रमेश बंटा ने प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डॉ.वाई.एस. परमार के साथ प्रदेश का भ्रमण भी किया तथा पत्र-पत्रिकाओं व समाचार पत्रों में प्रदेश के विकास, सांस्कृतिक पहचान तथा विभिन्न राजनैतिक पहलुओं पर विस्तृत लेख भी लिखे। रमेश बंटा वर्ष 1991 से 1993 तक हिमाचल सरकार प्रेस एक्रीडेशन कमेटी के गैर सरकारी सदस्य भी रहे। उन्हें समय-समय पर विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया गया। जिसमें वर्ष 1986 में ऊना की हिमोत्कर्ष संस्था द्वारा 'हिमाचल श्री पुरस्कार', वर्ष 1999 में महामहिम दलाई लामा द्वारा 'कलम के सिपाही' पत्रकारिता पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। इसके अलावा पानीपत की संस्था जैमिनी अकादमी द्वारा इन्हें आचार्य की मानद उपाधि तथा शताब्दी रत्न सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। धर्मशाला के हिमाचल केसरी संस्थान द्वारा पत्रकारिता के क्षेत्र में अहम योगदान देने के लिए हिमाचल केसरी सम्मान से भी सम्मानित किया है।
रमेश बंटा को वर्ष 2015 में पंजाब केसरी समाचार पत्र समूह द्वारा पत्रकारिता क्षेत्र में 50 वर्ष का योगदान प्रदान करने के लिये भी इन्हे सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा विकासात्मक पत्रकारिता के लिए भी इन्हे जिला स्तर पर सरकार की ओर से सम्मानित किया जा चुका है। रमेश बंटा लगभग 18 वर्षों तक प्रेस क्लब जोगिन्दर नगर के प्रधान भी रहे हैं।
जब देव भूमि हिमाचल में अकाल,जनता दाने-दाने को मोहताज खबर से मचा था हडकंप
रमेश बंटा कहते हैं कि वर्ष 1964 में जब उन्होंने मंडी जिला की चौहार घाटी में राशन की कमी होने को लेकर देव भूमि हिमाचल में अकाल, जनता दाने-दाने को मोहताज शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया तो न केवल प्रदेश सरकार हरकत में आई बल्कि पूरा प्रशासनिक अमला भी वास्तविकता को जानते हुए धरातल में कार्य करने को उतर आया था। इसी तरह समाज व जनहित से जुड़े कई समाचारों का वे समय-समय पर प्रकाशन करते रहे।
'हिमाचल पुलिस में एक भयानक तूफान आने की संभावना' खबर के बाद बदल गई थी पुलिस की वर्दी

रमेश बंटा कहते हैं कि 30 नवम्बर, 1977 को उन्होंने पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली एवं वर्दी को लेकर शीर्षक हिमाचल पुलिस में एक भयानक तूफान आने की संभावना से खबर प्रकाशित की। इस खबर प्रकाशन के बाद न केवल पुलिस विभाग के आलाधिकारी सकते में पड़ गए थे बल्कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शांता कुमार ने खबर का कड़ा संज्ञान लेते हुए हिमाचल प्रदेश पुलिस की कार्यप्रणाली ही नहीं बल्कि वर्दी को ही बदल दिया था।

आपराधिक समाचारों को भी पूरी तहकीकात के बाद ही बेहतरीन तरीके से करते थे कवर
रमेश बंटा विभिन्न आपराधिक घटनाओं से जुड़े समाचारों को पूरी तहकीकात करने के उपरान्त ही अपने ही अंदाज में कवर करते थे। ऐसा ही एक समाचार उन्होंने 19 अप्रैल, 1981 को मंडी में हुई चोरी की घटना को लेकर प्रकाशित किया। मामला मंडी में 2 लाख 70 हजार रुपये मूल्य के आभूषणों से जुड़ी चोरी का था। इस समाचार संकलन में पत्रकार की गहराई का इसी बात से पता चलता है कि इसमें इस बात का उल्लेख किया गया कि सेल्फ खोलकर तोड़ा गया या तोड़ कर खोला गया, रहस्मय मोटर साइकिल किसका था। साथ इस समाचार को पूरी तहकीकात करने के उपरान्त इसका प्रकाशन करना उनकी पूरी घटना से जुड़ी तथ्यपरक जानकारी की पकड़ को दिखाता है।
रमेश बंटा ने हिमाचल प्रदेश गठन से लेकर वर्तमान समय तक यहां की विकासात्मक कहानियों को भी खूब प्रसारित किया। साथ ही प्रदेश की लोक कला, संस्कृति, इतिहास एवं साहित्यिक दृष्टि पर भी खूब लिखा। उन्होंने समय-समय पर हिमाचल की राजनीतिक घटनाओं पर भी बारीकी से नजर रखते हुए विश्लेषणात्मक लेख व समाचारों का भी प्रकाशन किया।
जरूरतमंदों की हमेशा करते रहे हैं मदद, घर में स्थापित कर रखी है लाइब्रेरी
रमेश बंटा जीवन के शुरूआती दौर से ही जरूरतमंद लोगों की हमेशा मदद को हाथ बढ़ाते रहे हैं। उनकी मदद से न केवल एक व्यक्ति ने एमबीबीएस की पढ़ाई को पूरा किया बल्कि वे सीएमओ के पद से भी सेवानिवृत हुए हैं। उसी तरह एक अन्य व्यक्ति उनके सहयोग से आज न केवल जीवन में सफलता की ऊंचाइयों को छुआ है बल्कि वे वर्तमान में हिमाचल कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भी है। इस तरह ऐसे अनेक लोग हैं जिनकी उन्होंने जीवन में आगे बढ़ने में कहीं न कहीं मदद जरूर की है।
उन्होंने घर में एक खूबसूरत लाइब्रेरी भी स्थापित कर रखी है जिसमें कई महत्वपूर्ण पुस्तकें उपलब्ध हैं।
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Tuesday, 27 August 2024

चौंतड़ा विकास खंड की 42 ग्राम पंचायतों को प्लास्टिक कचरे से जल्द मिलेगी मुक्ति

सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा निष्पादन को पस्सल पंचायत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र स्थापित

मंडी जिला के चौंतड़ा विकास खंड की सभी 42 ग्राम पंचायतों को जल्द ही प्लास्टिक कचरे की समस्या से निजात मिलेगी। सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा निपटान के लिये विकास खंड की ग्राम पंचायत पस्सल में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र स्थापित किया गया है। इस संयंत्र के पूरी तरह क्रियाशील हो जाने से जहां विकास खंड की सभी ग्राम पंचायतों से प्राप्त होने वाले सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान किया जाएगा तो वहीं संबंधित ग्राम पंचायत को आय भी सृजित होगी। सबसे अहम बात यह है कि संयंत्र के चालू हो जाने से जहां लोगों को प्रतिदिन निकलने वाले सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे से मुक्ति मिलेगी तो वहीं पर्यावरण व ग्रामीण परिवेश स्वच्छ व साफ-सुथरा बनेगा। संभवत: जिला मंडी में इस तरह का संयंत्र स्थापित करने वाला चौंतड़ा पहला विकास खंड है।
स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के अंतर्गत लगभग 16 लाख रुपये की लागत से ग्राम पंचायत पस्सल में यह प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र स्थापित किया गया है। इस संयंत्र के माध्यम से सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटारा किया जाएगा। इस संयंत्र में एकत्रित होने वाले सिंगल यूज प्लास्टिक निपटान को बेलिंग मशीन, प्लास्टिक श्रेडर मशीन, प्लास्टिक डस्ट रिमूवर मशीन के साथ-साथ पंचायतों से प्लास्टिक कचरा एकत्रीकरण को ई-रिक्शा की सुविधा भी उपलब्ध रहेगी। इस संयंत्र के माध्यम से प्लास्टिक कचरे की प्रोसेसिंग कर इसे दोबारा काम में लाने को सीमेंट व प्लास्टिक सामान निर्माण फैक्टरियों के साथ-साथ लोक निर्माण विभाग को सडक़ों इत्यादि के निर्माण को उपलब्ध करवाया जाएगा। इससे न केवल ग्रामीणों को सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे के निपटान में मदद मिलेगी बल्कि इस कार्य से संबंधित ग्राम पंचायत को आय भी सृजित होगी।
वर्तमान में सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा जहां ग्रामीण क्षेत्रों में इधर-उधर बिखरा पड़ा रहता है तो वहीं लोग जलाकर इसे नष्ट करने का भी प्रयास करते हैं। इससे जहां हमारा पर्यावरण प्रदूषित होता है तो वहीं बिखरे प्लास्टिक कचरे के कारण गांव की नालियों इत्यादि के अवरुद्ध होने की समस्या से भी जूझना पड़ता है। यही नहीं प्लास्टिक कचरा न केवल हमारे नदी, नालों, तालाबों, कृषि भूमि इत्यादि को प्रदूषित कर रहा है बल्कि पेयजल स्त्रोत भी प्रभावित हो रहे हैं। जिसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है।
क्या कहते हैं पंचायत प्रधान:
ग्राम पंचायत पस्सल के प्रधान विशाल सिंह राठौर का कहना है कि उनकी पंचायत में स्थापित प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र को क्रियाशील कर एकत्रित सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे को पुन: इस्तेमाल योग्य बनाने को प्रोसेसिंग का कार्य किया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्लास्टिक कचरा एक बहुत बड़ी समस्या बनकर सामने आई है जिसके निष्पादन को उनकी पंचायत के माध्यम से यह प्रयास शुरू हुआ है। इसके अलावा महिलाओं व बच्चों के सेनेटरी पैड व नैपकिन निपटान को इंसीनरेटर मशीन भी स्थापित की जा रही है। उन्होंने पंचायत के इस कार्य को सफल बनाने के लिये समाज के सभी लोगों से सहयोग की अपेक्षा की है। उन्होंने बताया कि इस संयंत्र का संचालन एक स्थानीय व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है।
क्या कहते हैं अधिकारी:
खंड विकास अधिकारी (बी.डी.ओ.) चौंतड़ा सरवन कुमार का कहना है कि चौंतड़ा विकास खंड की 42 ग्राम पंचायतों के सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा निष्पादन को ग्राम पंचायत पस्सल में लगभग 16 लाख रुपये की राशि व्यय कर प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र स्थापित किया गया है। वर्तमान में विकास खंड की 17 ग्राम पंचायतों में सिंगल यूज प्लास्टिक कचरा एकत्रीकरण कार्य शुरू कर लगभग 62 किलोग्राम प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि कलेक्शन सेंटर से इसे ई-रिक्शा या अन्य वाहन के माध्यम से संयंत्र तक पहुंचाया जाएगा।
उन्होंने ग्रामीणों से भी आह्वान किया है कि वे सिंगल यूज प्लास्टिक जिसमें दूध, दही, बिस्किट, चिप्स, कुरकुरे के पैकेट, पानी की बोतलों सहित विभिन्न खाद्य पदार्थों के रैपर इत्यादि को इधर-उधर फेंकने या जलाने के बजाय पंचायत प्रतिनिधियों, स्वच्छता वालंटियर, विभाग के फील्ड कर्मचारियों या फिर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत गठित स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को सौंपे ताकि इसका वैज्ञानिक तरीके से निपटारा किया जा सके। उन्होंने इस अभियान की सफलता को विकास खंड की समस्त जनता से सकारात्मक सहयोग की अपील भी की है ताकि चौंतड़ा विकास खंड की सभी ग्राम पंचायतों को प्लास्टिक कचरे से मुक्त कर स्वच्छ, सुंदर व प्रदूषण रहित बनाया जा सके। DOP 25/08/2024
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Wednesday, 21 August 2024

दिल्ली व चंडीगढ़ भी चख रहा दिलदार सिंह के मछली फार्म में तैयार रेनबो ट्राउट का स्वाद

जोगिन्दर नगर के दिलदार सिंह प्रतिवर्ष 3 से 4 टन ट्राउट मछली का कर रहे उत्पादन      

 वर्ष 2008 में शुरू किया ट्राउट मछली पालन का कार्य, अब प्रतिवर्ष कमा रहे 3 से 4 लाख रुपये

मंडी जिला के जोगिन्दर नगर उपमंडल की ग्राम पंचायत मसौली के गांव पहलून निवासी 57 वर्षीय दिलदार सिंह के लिये ट्राउट मछली पालन पारिवारिक आजीविका का मुख्य आधार बना है। वर्ष 2008 में महज दो टैंक निर्माण से ट्राउट मछली पालन का शुरू किया उनका यह कार्य आज भी जारी है। वर्तमान में वे प्रतिवर्ष लगभग 3 से 4 टन रेनबो ट्राउट मछली का उत्पादन कर औसतन 3 से 4 लाख रूपये की शुद्ध आय सृजित कर रहे हैं। दिलदार सिंह के ट्राउट मछली फार्म में तैयार रेनबो मछली का स्वाद हिमाचल प्रदेश के प्रमुख शहरों शिमला, धर्मशाला, पर्यटन नगरी मनाली के अतिरिक्त दिल्ली, चंडीगढ़ जैसे बड़े शहर भी चख रहे हैं।
बड़े ही हंसमुख व खुशमिजाज व्यक्तित्व के धनी दिलदार सिंह का कहना है कि अस्सी के दशक से ही वे खेती-बाड़ी व पशुपालन से जुड़े रहे हैं। उन्होंने जीवन के शुरूआती दिनों में सब्जी एवं दुग्ध उत्पादन के माध्यम से परिवार की आर्थिकी को सुदृढ़ बनाने का कार्य शुरू किया। वर्ष 2008 में जब उन्हें मत्स्य पालन विभाग की योजना की जानकारी मिली तो उन्होंने ट्राउट मछली पालन की दिशा में कदम बढ़ाए। सरकार की ओर से दो टैंक निर्माण एवं फीड इत्यादि के लिए उन्हें लगभग 55 हजार रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ। इसके बाद वर्ष 2012-13 में दो तथा वर्ष 2016-17 में भी दो अतिरिक्त टैंक निर्माण के लिये सरकार से आर्थिक मदद प्राप्त हुई। शुरूआती दौर में वे प्रतिवर्ष लगभग 1 टन ट्राउट मछली का उत्पादन करने लगे। इसके बाद यह आंकड़ा बढक़र डेढ़ से दो टन तथा वर्तमान में लगभग 3 से 4 टन तक पहुंच चुका है। उनका कहना है कि रेनबो ट्राउट मछली पालन से वे प्रति वर्ष औसतन 3 से 4 लाख रूपये की शुद्ध आय सृजित कर पा रहे हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 में ट्राउट मछली की हैचरी भी तैयार करने में कामयाबी पाई है। अब वे ट्राउट मछली का बीज स्वयं तैयार करते हैं तथा आसपास के अन्य किसानों एवं मछली उत्पादकों को भी उपलब्ध करवाते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग का ट्राउट मछली उत्पादन पर भी पड़ रहा प्रभाव, बीमारियों का बना रहता है खतरा
दिलदार सिंह का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग का असर ट्राउट मछली उत्पादन पर भी देखा जा रहा है। जल्दी पिघलते ग्लेशियरों के कारण गत वर्षों के मुकाबले पानी की ठंडक लगातार कम हो रही है। पानी का तापमान बढ़ने से ट्राउट मछलियों के विकास में असर पड़ता है। इसके अलावा फंगस सहित अन्य बीमारियों का भी खतरा बना रहता है। मानसून मौसम में भारी बरसात के कारण दूसरे अन्य खतरे भी ट्राउट मछली उत्पादन में बाधक बनते हैं।
वर्ष 2014 में सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से हो चुके हैं सम्मानित, ट्राउट मछली पालन में हासिल किया है प्रशिक्षण
दिलदार सिंह को वर्ष 2014 में प्रगतिशील किसान के नाते जिला स्तर पर सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। इस दौरान उन्हें 10 हजार रुपये का नकद इनाम तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया है। उन्होंने वर्ष 2012 में शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, भीमताल, उत्तराखंड से ट्राउट मछली पालन में तीन दिन का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया है। इसके अतिरिक्त पतलीकूहल ट्राउट मछली फार्म में वर्ष 2018, वर्ष 2014 व 2017 में महाशीर मछली प्रजनन फार्म, जोगिन्दर नगर में भी तीन-तीन दिन का प्रशिक्षण भी शामिल है।
बेहतर विपणन व प्रशिक्षण की मिले सुविधा तो ट्राउट मछली उत्पादन में आ सकता है क्रांतिकारी बदलाव
दिलदार सिंह कहते हैं कि उन्हें ट्राउट मछली को बड़े बाजारों तक पहुंचाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वे कहते हैं कि बस के माध्यम से ही दिल्ली, चंडीगढ़ सहित प्रदेश के अन्य क्षेत्रों को सप्लाई दी जाती है। यदि ट्राउट मछली विपणन की दिशा में कुछ मदद मिले तो इस क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं। उन्होंने ट्राउट मछली पालन को लेकर समय-समय पर गहन प्रशिक्षण की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
दिलदार सिंह का कहना है कि ट्राउट मछली पालन के क्षेत्र में रोजगार की बेहतरीन संभावनाएं मौजूद हैं। उन्होंने सरकार की योजना का लाभ उठाते हुए शिक्षित युवाओं से ट्राउट मछली उत्पादन के क्षेत्र में जुडऩे का भी आह्वान किया है।
क्या कहते हैं अधिकारी
सहायक निदेशक मात्स्यिकी विभाग मंडी नीतू सिंह का कहना है कि प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत सरकार ट्राउट मछली पालन इकाई स्थापित करने को आर्थिक मदद प्रदान कर रही है। उनका कहना है कि एक ट्राउट मछली उत्पादन इकाई को क्रियाशील बनाने के लिए जलाशय सहित अन्य जरूरतों के लिये अनुमानित साढ़े पांच लाख रुपये का खर्च आता है। जिसके लिये सरकार कुल लागत का सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को 40 प्रतिशत जबकि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं महिलाओं के लिये 60 प्रतिशत का अनुदान मुहैया करवा रही है।
उन्होंने बताया कि जिला मंडी में 80 किसानों व मत्स्य पालकों के माध्यम से 178 ट्राउट मछली उत्पादन इकाईयां कार्य कर रही हैं। जिनके माध्यम से प्रतिवर्ष लगभग 50 मीट्रिक टन ट्राउट मछली का उत्पादन हो रहा है।    
DOP 22/08/2024
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